आधुनिक पियानो के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है इटली के बार्तोलोमियो क्रिस्तोफ़ोरी (Bartolomeo Chritofori) को, जो साज़ों के देखरेख के काम के लिए नियुक्त थे Ferdinando de' Medici, Grand Prince of Tuscany में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, जैसा कि कल से हमने पियानो पर केन्द्रित शृंखला की शुरुआत की है, आइए पियानो के विकास संबंधित चर्चा को आगे बढ़ाते हैं। तो बार्तोलोमेओ को हार्प्सिकॊर्ड बनाने में महारथ हासिल थी और पहले की सभी स्ट्रिंग्ड इन्स्ट्रुमेण्ट्स संबंधित तमाम जानकारी उनके पास थी। इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है कि बार्तोलोमियो ने अपना पहला पियानो किस साल निर्मित किया था, लेकिन उपलब्ध तथ्यों से यह सामने आया है कि सन् १७०० से पहले ही उन्होंने पियानो बना लिया था। बार्तोलोमियो का जन्म १६५५ में हुआ था और उनकी मृत्यु हुई थी साल १७३१ में। उनके द्वारा निर्मित पियानो की सब से महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उन्होंने पियानो के डिज़ाइन की तब तक की मूल त्रुटि का समाधान कर दिया था। पहले के सभी पियानो में हैमर स्ट्रिंग् पर वार करने के बाद उसी से चिपकी रहती थी जिसकी वजह से उत्पन्न ध्वनि कुछ बुझी हुई सी सुनाई पड़ती थी। लेकिन बार्तोलोमियो ने ऐसी तरकीब सूझी कि जिससे हैमर स्ट्रिंग् को स्ट्राइक करने के बाद उससे अलग हो जाएगी। और हैमर अपने पूर्व 'रेस्ट पोज़िशन' पे वापस लौट जाएगी बिना देर तक बाउन्स किए। इससे यह फ़ायदा हुआ कि किसी नोट को जल्दी जल्दी रिपीट करना भी आसान हो गया। बार्तोलोमियो के इस महत्वपूर्ण अभियंतिकी ने पियानो निर्माण का रुख ही मोड़ कर रख दिया। उसके बाद बनने वाले सभी पियानो में उनकी इस मूल तकनीक को अपनाया गया। बार्तोलोमियो क्रिस्तोफ़ोरी के पहले पहले के बनाये हुए साज़ों में पतली स्ट्रिंग्स का इस्तमाल होता था और आधुनिक पियानो के मुकाबले उनसे ध्वनियाँ भी कम शक्तिशाली उत्पन्न होती थी। लेकिन क्लैविकॊर्ड के मुकाबले वो शक्तिशाली थे और ध्वनि को देर तक सस्टेन कर सकते थे। अपने पियानो की ध्वनियों को और ज़्यादा शक्तिशाली बनाने के लिए उन्होंने एक नई साज़ का इजाद किया लेकिन दुर्भाग्यवश इस साज़ की तरफ़ ध्यान कम ही गया तब तक जब तक इटली के किसी लेखक, स्किपिओन माफ़ेइ ने १७११ में एक लेख प्रकाशित किया जिसमें इस नये साज़ के मेकनिज़्म को एक चित्र के माध्यम से समझाया। इस लेख का दूर दूर तक प्रचार हुआ और इस लेख को पढ़ने के बाद अगली पीढ़ी के पियानो निर्माताओं ने पियानो निर्माण का कार्य फिर से शुरु किया।
'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला में कल ३० के दशक का गीत सुनने के बाद आइए आज क़दम रखते हैं ४० के दशक में और आपको सुनवाते हैं 'फ़ादर ऑफ फ़िल्म म्युज़िक डिरेक्टर्स', यानी कि फ़िल्म संगीतकारों के भीष्म पितामह की हैसियत रखने वाले राय चंद बोराल अर्थात आर. सी. बोराल की एक संगीत रचना। यह गीत है १९४१ की फ़िल्म 'लगन' का जिसे कानन देवी ने गाया है। फ़िल्म में सिचुएशन कुछ इस तरह का है कि कानन देवी को सहगल साहब के किसी कविता पर गीत गानें का अनुरोध किया जा रहा है, और कानन देवी पियानो पर बैठ कर यह गीत गाती हैं "तुम बिन कल न आवे मोहे"। इस गीत को लिखा है आरज़ू लखनवी साहब ने। आइए आज कुछ बातें हो जाए आर. सी. बोराल साहब की! १९०३ में तीन भाइयों के बीच सबसे छोटा रायचन्द बोराल का जन्म श्री लाल चन्द बोराल के घर हुआ। लाल चन्द जी अमीर तो थे ही, साथ ही कुशल संगीतज्ञ भी थे। अत: राय चन्द बोराल का मन भी स्वभावत: संगीत की ओर आकृष्ट हुआ। ऒल इण्डिया कॊन्फ़रेन्स का सर्वप्रथम उत्सव भी इनके घर से ही प्रारम्भ हुआ। पिता की मृत्यु के बाद पंडित विश्वनाथ राव से इन्होंने धमार की शिक्षा ली और उस्ताद मसीतुल्लाह ख़ाँ से तबले की। संगीत एवं धनी वातावरण से इनमें सुनहरे भविष्य की कल्पना जगी। किन्तु सफलता इन्हें न्यु थियेटर्स में प्रवेश करने के बाद ही मिली। दोस्तों, ये तमाम बातें मैंने अपनी लाइब्रेरी में संग्रहित 'लिस्नर्स बुलेटिन' पत्रिका के १९७५ के एक अंक से खोज निकाली और इस लेख को लिखा था निर्मल कुमार रवानी ने जो आसानसोल के रहने वाले थे उस वक़्त। राय चन्द बोराल जी के संगीत सफ़र के आगे का हाल हम फिर किसी दिन बताएँगे, आइए अब आज के गीत का आनंद लें कानन देवी की आवाज़ में।
क्या आप जानते हैं...
कि पियानो दरसल संक्षिप्त नाम (abbreviation) है बार्तेलोमेओ क्रिस्तोफ़ोरी के उस साज़ का जिसे 'पियानो ए फ़ोर्ट' (Piano E Forte) कहा जाता था, जिसका अर्थ है 'सॊफ़्ट ऐण्ड लाउड'।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 03/शृंखला 10
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र -संगीतकार हैं अनिल बिस्वास .
सवाल १ - किस अभिनेता पर है ये गीत फिल्माया - 2 अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - 3 अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
जहाँ अंजना जी और अमित जी को जहाँ २ अंकों से संतुष्ट होना पड़ा विजय जी चुपके से ३ अंक लूट गए....बधाई....
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
विशेष सहयोग: सुमित चक्रवर्ती
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Lyrics : Rajinder Krishan
ReplyDeleteगीतकार-राजिंदर किशन
ReplyDeleteActor: Premnath
ReplyDeleteFilm: Aaram
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