फ़िल्म-संगीत इतिहास के सुप्रसिद्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला '...और कारवाँ बनता गया' की सातवीं कड़ी में एक ऐसे संगीतकार की रचना लेकर आज हम उपस्थित हुए हैं जिस संगीतकार के साथ भी मजरूह साहब नें एक सफल और बहुत लम्बी पारी खेली है। आप हैं राहुल देव बर्मन। इन दोनों के साथ की बात बताने से पहले यह बताना ज़रूरी है कि इस जोड़ी को मिलवाने में फ़िल्मकार नासिर हुसैन की मुख्य भूमिका रही है। वैसे कहीं कहीं यह भी सुनने/पढ़ने में आता है कि मजरूह साहब नें पंचम की मुलाक़ात नासिर साहब से करवाई। उधर ऐसा भी कहा जाता है कि साहिर लुधियानवी नें नासिर साहब की आलोचना की थी उनकी व्यावसायिक फ़िल्में बनाने के अंदाज़ की। नासिर साहब नाराज़ होकर साहिर साहब से यह कह कर मुंह मोड़ लिया कि साहिर साहब चाहते हैं कि हर निर्देशक गुरु दत्त बनें। नासिर हुसैन को अपना स्टाइल पसंद था, जिसमें वो कामयाब भी थे, तो फिर किसी और फ़िल्मकार के नक्श-ए-क़दम पर क्यों चलना! और इस तरह से मजरूह बन गये नासिर हुसैन की पहली पसंद और उन्होंने मजरूह साहब से दस फ़िल्मों में गीत लिखवाये। इन दस फ़िल्मों में जिनमें राहुल देव बर्मन का संगीत था, उनमें शामिल हैं 'तीसरी मंज़िल', 'बहारों के सपने', 'यादों की बारात', 'प्यार का मौसम', 'हम किसी से कम नहीं', 'कारवाँ', 'ज़माने को दिखाना है', 'मंज़िल मंज़िल', और 'ज़बरदस्त'।
आइए आज राहुल देव बर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी की जोड़ी को समर्पित एक गीत सुना जाये फ़िल्म 'बहारों के सपने' से। लता मंगेशकर की आवाज़ में यह गीत है "क्या जानू सजन होती है क्या ग़म की शाम, जल उठे सौ दीये जब लिया तेरा नाम"। इस गीत में पंचम नें उस ज़माने के हिसाब से एक अनूठा और नवीन प्रयोग किया। उस ज़माने में सुपरिम्पोज़िंग् या मिक्सिंग् की तकनीक विकसित नहीं हुई थी। लेकिन पंचम नें समय से पहले ही इस बारे में सोचा और इसे अपने तरीके से सच कर दिखाया। इस गीत को सुनते हुए आप महसूस करेंगे कि मुख्य गीत के पार्श्व में भी अंतरे में एक गायिका की आवाज़ निरंतर चलती रहती है। पंचम नें गीत को लता की आवाज़ में ईरेज़िंग् हेड को हटाकर रेकॉर्ड किया। उसके बाद दोबारा लता जी से ही आलाप के साथ उसी रेकॉडिंग् पर रेकॉर्ड किया। मिक्सिंग् की तकनीक के न होते हुए भी पंचम नें मिक्सिंग् कर दिखाया था। लेकिन शायद यह बात कुछ लोगों के पल्ले नहीं पड़ी और उन्होंने इस गीत की विनाइल रेकॉर्ड पर लता मंगेशकर के साथ साथ उषा मंगेशकर को भी क्रेडिट दे दी। और लोग यह समझते रहे कि पार्श्व में गाया जा रहा आलाप उषा जी का है। लता जी के ट्विटर पर आने के बाद किसी नें उनसे जब इस बारे में पूछा था कि क्या उषा जी की आवाज़ उस गीत में शामिल है, तो उन्होंने सच्चाई बता दी कि गीत को सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्होंने ही गाया था और दो बार इसकी रेकॉर्डिंग् हुई थी। इसी बात से पंचम के सृजनशीलता का पता चलता है। तो आइए इस ख़ूबसूरत गीत को सुनें और सलाम करें मजरूह-पंचम की इस जोड़ी को। सचमुच ऐसे लाजवाब गीतों को सुनते हुए जैसे सौ दीये जल उठते हैं हमारे मन में।
क्या आप जानते हैं...
कि मजरूह सुल्तानपुरी नें करीब करीब ३५० फ़िल्मों में करीब ४००० गीत लिखे हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 8/शृंखला 17
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान.
सवाल १ - फिल्म के निर्देशक कौन थे - ३ अंक
सवाल २ - किन युगल आवाजों में है ये गीत - २ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं- १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी के आने से मुकाबला रोचक हो गया है, बाज़ी शरद जी, अविनाश जी और क्षिति जी किसी की भी हो सकती है
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी

Hrishikesh Mukherjee
ReplyDeleteMOHAMMAD RAFI, LATA MANGESHKAR
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ReplyDeletesachin dev burman
ReplyDeleteGaayak - Kishor Kumar & Lata Mangeshkar
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