Thursday, December 1, 2011

आवाज़ पर सजीव सारथी का अंतिम सलाम, अपने हजारों हज़ारों श्रोताओं के नाम



दोस्तों हर सफर एक मंजिल को लक्ष्य करके शुरू होता है और धीरे धीरे आपके इस सफर में हमसफ़र जुड़ते जाते हैं, और कारवाँ बनता जाता है. आवाज़ और मेरा यानी सजीव सारथी का ये सफर भी एक अच्छे और सच्चे लक्ष्य को मंजिल बनाकर शुरू हुआ था ३ जुलाई २००८ को. लगभग साढे तीन सालों के इस सुहाने सफर में आवाज़ को मिले ढेरों हमसफ़र, शुभचिंतक, मददगार और हजारों श्रोताओं का जबरदस्त प्यार. ब्लोग्गर के आंकड़ों के मुताबिक आवाज़ पर हर रोज औसतन १००० छापे लगते थे और लगभग १००० अन्य श्रोताओं ने इसे सब्सक्राईब भी किया हुआ था. पर दोस्तों दुनिया का नियम ही शायद कुछ ऐसा है कि हर शय अच्छी हो या बुरी किसी न किसी दिन उसे थमना ही होता है, चाहे अनचाहे. आवाज़ और मेरा ये सफर भी आज यहाँ इस मोड पर हमेशा के लिए खत्म हो रहा है. पर साढे तीन सालों में कमाए इस प्यार को, इस विश्वास को मैं अपने जीवन से कभी अलग नहीं होने देना चाहता. और वैसे भी आवाज़ मुझ अकेले का तो हो ही नहीं सकता. आज यहाँ इतने सारे मंच है जिसे सँभालने वाले मेरे इतने अच्छे साथियों का, आप सब श्रोताओं का इस जालस्थल पर मुझसे भी ज्यादा हक है.

आवाज़ हिंद युग्म का एक हिस्सा है, और मेरे लिए इस छत्र के नीचे काम करना कुछ असहज हो चला है, पर यक़ीनन मैं इतने वर्षों की, अपने और अपने साथियों की मेहनत और आप सब के प्यार को कभी नहीं खोना चाहूँगा. इसी उद्देश्य से एक नए पते पर अपनी टीम के साथ स्थान्तरित हो रहा हूँ. आप सभी श्रोताओं का मैं रेडियो प्लेबैक इंडिया में स्वागत करता हूँ. यहाँ सब कुछ एक फिर नए सिरे से शुरू होगा, हालाँकि पुराना सब भी संग्रह में सुरक्षित रहेगा. एक बार फिर आप सब के दुगने प्यार और प्रोत्साहन की अपेक्षा हमारी टीम को रहेगी. दोस्तों न तो मैं बदला हूँ न मेरी टीम और न हमारा उत्साह तनिक भी कम हुआ है, बल्कि अब हौंसलों में एक नई ताजगी है, और एक नया जोश है इस नई उड़ान में. बस आप सब से दरख्वास्त है कि यहाँ भी आप यूहीं हमारे हमसफ़र बने रहिये, प्रोत्साहन देते रहिये. फीडबर्नर के आंकडे बढे हुआ अच्छे लगते हैं, हमें अपने मेल में सब्सक्राईब कीजिये. यहाँ हम फेसबुक पर भी उपलब्ध हैं, जिसका पता साईट पर बने फेसबुक के लोगो पर क्लिक करके पाया जा सकता है. हमारे संगीत प्रेमी श्रोता इसे अपना खुद का मंच समझें और खुल कर अपने विचारों को अभिव्यक्त करें.

अंत में एक बार फिर अपनी भूल चूक के लिए माफ़ी मांगते हुए आप सब के स्नेह और सहयोग के लिए दिल से आभार व्यक्त करते हुए मैं सजीव सारथी आवाज़ के इस मंच पर आपसे हमेशा के लिए विदा हो रहा हूँ, फिर कभी ये महफ़िल सजीव सारथी के नाम से नहीं सजेगी. पर अपने नए पते पर मैं आप सब श्रोताओं का बेसब्री से इंतज़ार करूँगा....
आईये एक बार फिर एक नई शुरुआत करें –

हम भी दरिया हैं हमें अपने हुनर मालूम है,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगें, रास्ता हो जायेगा...

Wednesday, November 30, 2011

सांची कहे तोरे आवन से हमरे....याद आया ये मासूम सा गीत दादु के संगीत से संवरा



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 799/2011/239

वीन्द्र जैन के लिखे और संगीतबद्ध किए गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' में हमने गीतों के साथ-साथ हम दादु के करीयर से जुड़ी बातें भी जान रहे हैं। अब तक आपने जाना कि दादु का बचपन कैसा था, किस तरह से अलीगढ़ में जन्म के बाद वो गीत-संगीत से रु-ब-रु हुए, फिर कलकत्ता आए और आख़िरकार बम्बई को अपनी कर्मभूमि बनाई। यहाँ आकर ७० के दशक के शुरुआती वर्षों में 'पारस', 'लोरी' और 'कांच और हीरा' जैसी फ़िल्मों से अपनी पारी की शुरुआत की, पर उन्हें पहली कामयाबी मिली फ़िल्म 'सौदागर' में। 'सौदागर' के बाद उनके कामयाब फ़िल्मों का दौर शुरु हो गया। हालाँकि इस शृंखला में हम केवल उन फ़िल्मों के गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गीत और संगीत दोनों ही रवीन्द्र जैन ने तैयार किया है। पर बहुत सी फ़िल्में ऐसी भी रहीं जिनमें रवीन्द्र जैन का केवल संगीत था। 'सौदागर' के बाद दादु द्वारा स्वरबद्ध जिन फ़िल्मों के गीत बहुत ज़्यादा चर्चित हुए उनकी फ़ेहरिस्त इस प्रकार है - चोर मचाये शोर, दो जासूस, तपस्या, दीवानगी, चितचोर, फ़कीरा, सफ़ेद हाथी, पहेली, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, कोतवाल साब, अखियों के झरोखों से, पति पत्नी और वो, सुनयना, नैया, सरकारी महमान, मान अभिमान, ख़्वाब, गीत गाता चल, नदिया के पार, अय्याश, राम तेरी गंगा मैली, मरते दम तक, जंगबाज़, ये आग कब बुझेगी, हिना, विवाह, एक विवाह ऐसा भी। ये तो बस वो नाम थे जिन्हें व्यावसायिक सफलता मिली थी, पर इनके अलावा भी बहुत सारी फ़िल्मों में जैन साहब नें संगीत दिया और/अथवा गीत लिखे, पर फ़िल्मों के ना चलने से वो ज़्यादा लोकप्रिय न हो सके। फ़िल्मों के अलावा टेलीविज़न पर रवीन्द्र जैन के संगीत में रामानन्द सागर की महत्वाकांक्षी धारावाहिक 'रामायण' बनी जो रवीन्द्र जैन के करीयर की एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही। पुरस्कारों की बात करें तो जैन साहब को १९८५ में 'राम तेरी गंगा मैली' फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार मिला था। सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के नामांकनों में 'चितचोर', 'अखियों के झरोखों से' फ़िल्मों के लिए उन्हें नामांकन मिला; जबकि "अखियों के झरोखों से" और "मैं हूँ ख़ुशरंग हिना" गीतों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का नामांकन मिला था।

आज के अंक में हम आपको सुनवा रहे हैं फिर एक बार 'राजश्री' और 'रवीन्द्र जैन की जोड़ी की एक और ज़बरदस्त हिट फ़िल्म 'नदिया के पार' (१९८२) का गीत जसपाल सिंह की आवाज़ में। बोल हैं "सांची कहे तोरे आवन से हमरे अंगना में आये बहार भौजी"। फ़िल्म का पार्श्व ग्रामीण था, इसलिए फ़िल्म के गीतों में संगीत भी भोजपुरी शैली के थे। पर जब 'राजश्री' ने ९० के दशक में इसी फ़िल्म का शहरी रूपान्तर कर 'हम आपके हैं कौन' के रूप में पेश किया, तब इसी गीत का शहरी रूप बन गया "धिकताना धिकताना धिकताना, भाभी तुम ख़ुशियों का ख़ज़ाना"। आइए आज जाने बातें जसपाल सिंह के जीवन की उन्हीं के द्वारा प्रस्तुत 'जयमाला' कार्यक्रम से। "फ़ौजी भाइयों, मैं ख़ुद ही बचपन से रफ़ी साहब का फ़ैन बोलिये, या मुजीद बोलिये, मैंने कॉलेज, स्कूल, जहाँ भी मैंने गाया है, रफ़ी साहब के गाने ही गाया है, और रफ़ी साहब की आवाज़ मेरे अंदर ऐसे घुसी कि जैसे मेरी आत्मा की आवाज़ है। मैंने जो भी गाने गाये, उन्हीं के गाये, और मेरे अंदर ऐसे बसी है जैसे नस-नस में आदमी के ख़ून बसा होता है न! और मैं यह बताना चाहता हूँ कि उन्हीं से इन्स्पिरेशन लेके मैं समझता हूँ कि मैं गाना गाता था और उन्ही को अपना गुरु मानता रहा हूँ हमेशा। मैं पंजाब में, अमृतसर में पैदा हुआ, बचपन से मैं वहीं पे था, वहीं से मैंने ग्रजुएशन की। तो वहीं पे मैं स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटीज़ में गाता था, अवार्ड्स मिलते थे, 'even I was declared best singer of Punjab University also'. फिर मैं दिल्ली आ गया, लॉ किया मैंने, वहाँ सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की, मगर मेरे मन में एक सिंगर बनने की बड़ी इच्छा थी और सब मेरे को, आसपास जितने लोग, रिश्तेदार, सब मेरे को बोलते थे कि तुम्हारे पास यह गुण है, इसका फ़ायदा उठाओ। तो मैंने कहा कि गुण तो है लेकिन ऐसा कोई आदमी तो होना चाहिए न कि जो आपको ब्रेक दे, आपको चान्स दे, और इसके लिए बहुत बड़ी स्ट्रगल है, और मैं बहुत सिम्पल सा आदमी हूँ और मैं बहुत सी बातें नहीं कर सकता। मगर कुदरत ने कुछ ऐसा करवाना था कि मेरी बहन की शादी बम्बई में हो गई। और मेरे जीजाजी भी फ़िल्म-लाइन से थोड़े कन्सर्ण्ड थे, तो मैं बम्बई आ गया। बम्बई आ गया तो मेरी बहन ने जो मेरे लिए किया वो तो शायद माँ-बाप भी नहीं करते। मैं अभी क्या उसके बारे में बोलूँ! मेरी बहन नें मेरे लिए बहुत कोशिशें की, मेरे जीजाजी ने मेरे को पहली पिक्चर में गाना गवाया, 'बंदिश' पिक्चर थी, उषा खन्ना जी के संगीत में, वह पिक्चर नहीं चली, लोग मुझे भूल गए। फिर एक गाना महेन्द्र कपूर जी के साथ गवाया। फिर ये रवीन्द्र जैन जी के साथ मेरे ताल्लुक़ात हो गए, आना-जाना, उठना-बैठना, दोस्ती हुई, उनके साथ गाता था मैं, तो यह 'गीत गाता चल' पिक्चर के लिए, ये 'राजश्री' वाले पिक्चर बनाना चाहते थे, उन लोगों को एक नए लड़के की आवाज़ चाहिए थी, तो मैं एक दिन किसी और वजह से अपना टेप रेकॉर्डर पे अपना एक गाना उनको सुनाके आया था, तो किस्मत बोलिए या ईश्वर की कुछ कृपा बोलिए, आप सब लोगों का आशिर्वाद होगा, वह ब्रेक मेरे को मिला, और आप लोगों ने जिस गाने से मुझे पहचाना वह गाना था "गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल, हँसते हँसाते बीते हर घड़ी हर पल"। दोस्तों, 'गीत गाता चल' फ़िल्म का एक गीत तो हम इसी शृंखला में बजा चुके हैं, इसलिए आज पेश है 'नदिया के पार' से "सांची कहे..."।



पहचानें अगला गीत -दादु की सबसे बड़ी हिट फिल्म में ये गीत थे जिसके मुखड़े में शब्द है - "अंतर"

पिछले अंक में


खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9871123997 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन