tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post2402431739635139079..comments2024-03-19T02:10:35.267+05:30Comments on आवाज़: सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'गुल्ली डंडा'नियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-3277994531114839602009-01-27T09:47:00.000+05:302009-01-27T09:47:00.000+05:30सजीव जी, तो आपको भी यह कहानी-वाचन अच्छा लगा. धन्यब...सजीव जी, तो आपको भी यह कहानी-वाचन अच्छा लगा. धन्यबाद. बचपन में गुल्ली डंडा खेलने की इजाजत नहीं थी मुझे तो क्या हुआ, उसकी कहानी पढ़ने और सुनाने का एक मौका हाथ आया तो उसी में ही मैं खुश हूँ. कई लोग मिलकर अपनी-अपनी आवाजों में एक ही कहानी सुनाएँ, यह बिचार बहुत अच्छा लगा मुझे भी. लेकिन कैसे सम्भव हो सकता है यह? EDITING में तो बड़ी दिक्कत हो सकती है. अगर ऐसा सम्भव हो सके तो कितना अच्छा होगा.<BR/>शन्नोShanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-75101250470372577852009-01-26T13:29:00.000+05:302009-01-26T13:29:00.000+05:30शन्नो जी बहुत बढ़िया कहानी लगी और आपका वाचन भी निर...शन्नो जी बहुत बढ़िया कहानी लगी और आपका वाचन भी निरंतर निखर रहा है ...आप और नौराग जी शैलेश की सलाह पर गौर करेंSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-52893280208318338292009-01-25T15:55:00.000+05:302009-01-25T15:55:00.000+05:30मुझे जानकर बहुत खुशी हुई कि आप सबने 'गुल्ली डंडा' ...मुझे जानकर बहुत खुशी हुई कि आप सबने 'गुल्ली डंडा' कहानी का आनंद उठाया. आप सभी को धन्यबाद! और शैलेश जी, इस कहानी से मुझे अपने बचपन के वह पल याद आ गए जब मैं बड़े चाव से भाई को अपने दोस्तों के साथ गुल्ली डंडा खेलते हुए देखती थी और अक्सर आदेश मिलता था 'जा जल्दी से वह गुल्ली उठा कर ला' और मैं उस आदेश का पालन करने को तत्पर रहती थी. पर कोई मुझे खेलने नहीं देता था, और मैं मन मसोस कर रह जाती थी. अब कभी-कभी सोचती हूँ:<BR/><BR/>'कुछ भी करो, कुछ भी सोचो जीवन में <BR/>फिर भी करने को कितना छूट जाता है<BR/>कहानी ही सुनकर यदि खुशी दे पाती हूँ <BR/>तो इसी में ही मुझे बड़ा आनंद आता है.'<BR/><BR/>और अनुराग जी, आप के प्रयास से कहानी, कवितायें सही सलामत श्रोतायों तक पहुँच रही हैं इसके लिए मैं आपको अति धन्यबाद कहना चाहती हूँ.Shanno Aggarwalhttps://www.blogger.com/profile/00253503962387361628noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-13917392006288585792009-01-25T01:49:00.000+05:302009-01-25T01:49:00.000+05:30शन्नो जी,यह कहानी भी बहुत अच्छी लगी. आगे बहुत सी अ...शन्नो जी,<BR/>यह कहानी भी बहुत अच्छी लगी. आगे बहुत सी अन्य रोचक कहानियां सुनने की इच्छा है.<BR/>शुभकामनाओं सहित,<BR/>अनुराग.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-39929011822548441832009-01-24T19:11:00.000+05:302009-01-24T19:11:00.000+05:30यह कहानी मुझे पहली बार मुझे एक मेरे मित्र ने सुनाई...यह कहानी मुझे पहली बार मुझे एक मेरे मित्र ने सुनाई थी (पढ़कर)। मुझे बहुत पसंद आई थी। फिर उसे मानसरोवर में पढ़ा। उसके बाद आज दुबारा सुन रहा हूँ। स्मृतियाँ ताजी हो गईं। मैं हाँव में पला-बढ़ा हूँ। रोज़ गुल्ली-डंडा खेला करता था। <BR/>शन्नो जी,<BR/>आपकी प्रस्तुति में निरंतर सुधार आता जा रहा है। जहाँ पर गया और नायक का संवाद है, वहाँ आपने भावों को इस तरह से अपनी आवाज़ में उड़ेला है कि मन भाव-विह्वल हो जाता है। कभी प्रेमचंद की कोई ऐसी कहानी रिकॉर्ड करें जिसमें आप और अनुराग जी दोनों की आवाज़ का इस्तेमाल हो।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-70985493900880373482009-01-24T16:57:00.000+05:302009-01-24T16:57:00.000+05:30बहुत सुंदर, धन्यवादबहुत सुंदर, <BR/>धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-57503637336847199232009-01-24T13:36:00.000+05:302009-01-24T13:36:00.000+05:30बहुत सुन्दर उपक्रम।प्रेम्चन्दजी छोटि छोटि बातो मे ...बहुत सुन्दर उपक्रम।<BR/><BR/>प्रेम्चन्दजी छोटि छोटि बातो मे जीवन कि सच्चाइया बता देते है।Charjanhttps://www.blogger.com/profile/06291917579692540153noreply@blogger.com