tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post6578845855717472073..comments2024-03-19T02:10:35.267+05:30Comments on आवाज़: शततंत्री वीणा से आधुनिक संतूर तक, वादियों की खामोशियों को सुरीला करता ये साज़ और निखरा पंडित शिव कुमार शर्मा के संस्पर्श सेनियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-30666665581798455412020-12-23T07:46:09.388+05:302020-12-23T07:46:09.388+05:30I really enjoyed this site. This is such a Great r...I really enjoyed this site. This is such a Great resource that you are providing and you give it away for free.happy wheelshttps://happywheels8.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-41158692914792794942017-07-11T16:52:00.402+05:302017-07-11T16:52:00.402+05:30बहुत सुन्दर जुगलबंदी.....👌
बहुत सुन्दर जुगलबंदी.....👌<br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/00955506652376723417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-85088816085861362842011-03-06T15:40:46.730+05:302011-03-06T15:40:46.730+05:30'खमाचा' एक गज-तंत्र-लोक वाद्य है | यह वर्त...'खमाचा' एक गज-तंत्र-लोक वाद्य है | यह वर्तमान परिष्कृत 'सारंगी' का देशज रूप है | यूँ तो थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ देश के कई भागों में लोक वाद्य के रूप में प्रचलित है, किन्तु 'खमाचा' के नाम से राजस्थानी लोक संगीत में संगत वाद्य के रूप में जाना जाता है | राजस्थान के 'माँगनियार' और 'लंगा' जातियों के लोक कलाकार इस लोक वाद्य का प्रयोग करते हैं | परिवार के मांगलिक अवसरों पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों समाज में 'माँगनियार' सम्मान के साथ बुलाए जाते हैं | जिस परिवार में ये जाते हैं उस परिवार कि आस्था के अनुसार ही मंगलकामना प्रस्तुत करते है | इनका संगीत एक सीमा तक सूफी संगीत कि श्रेणी में रखा जा सकता है |krishnamohannoreply@blogger.com