tag:blogger.com,1999:blog-28061915429488359412024-03-19T09:45:10.808+05:30आवाज़musical platform young talented new music song composers singers lyricists arrangers poets story tellers writers critics review writers hindi content writers bloggers are welcome every friday a new release new song fresh sound rock hard rock hindi rock hard metel pop jazz filmy lounge folk sufi poetic expressions podcast poetry your poem your voice online poetry recital online audience critics story new generation song foot tapping songs soul searching intruments new star featured artistनियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.comBlogger1822125tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-81948666845741548382011-12-01T07:45:00.014+05:302012-05-27T20:32:51.132+05:30आवाज़ पर सजीव सारथी का अंतिम सलाम, अपने हजारों हज़ारों श्रोताओं के नाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दोस्तों हर सफर एक मंजिल को लक्ष्य करके शुरू होता है और धीरे धीरे आपके इस सफर में हमसफ़र जुड़ते जाते हैं, और कारवाँ बनता जाता है. आवाज़ और मेरा यानी सजीव सारथी का ये सफर भी एक अच्छे और सच्चे लक्ष्य को मंजिल बनाकर शुरू हुआ था ३ जुलाई २००८ को. लगभग साढे तीन सालों के इस सुहाने सफर में आवाज़ को मिले ढेरों हमसफ़र, शुभचिंतक, मददगार और हजारों श्रोताओं का जबरदस्त प्यार. ब्लोग्गर के आंकड़ों के मुताबिक आवाज़ पर हर रोज औसतन १००० छापे लगते थे और लगभग १००० अन्य श्रोताओं ने इसे सब्सक्राईब भी किया हुआ था. पर दोस्तों दुनिया का नियम ही शायद कुछ ऐसा है कि हर शय अच्छी हो या बुरी किसी न किसी दिन उसे थमना ही होता है, चाहे अनचाहे. आवाज़ और मेरा ये सफर भी आज यहाँ इस मोड पर हमेशा के लिए खत्म हो रहा है. पर साढे तीन सालों में कमाए इस प्यार को, इस विश्वास को मैं अपने जीवन से कभी अलग नहीं होने देना चाहता. और वैसे भी आवाज़ मुझ अकेले का तो हो ही नहीं सकता. आज यहाँ इतने सारे मंच है जिसे सँभालने वाले मेरे इतने अच्छे साथियों का, आप सब श्रोताओं का इस जालस्थल पर मुझसे भी ज्यादा हक है. <br />
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आवाज़ हिंद युग्म का एक हिस्सा है, और मेरे लिए इस छत्र के नीचे काम करना कुछ असहज हो चला है, पर यक़ीनन मैं इतने वर्षों की, अपने और अपने साथियों की मेहनत और आप सब के प्यार को कभी नहीं खोना चाहूँगा. इसी उद्देश्य से एक नए पते पर अपनी टीम के साथ स्थान्तरित हो रहा हूँ. आप सभी श्रोताओं का मैं <a href="http://radioplaybackindia.com/"><span style="font-size: large;">रेडियो प्लेबैक इंडिया</span></a> में स्वागत करता हूँ. यहाँ सब कुछ एक फिर नए सिरे से शुरू होगा, हालाँकि पुराना सब भी संग्रह में सुरक्षित रहेगा. एक बार फिर आप सब के दुगने प्यार और प्रोत्साहन की अपेक्षा हमारी टीम को रहेगी. दोस्तों न तो मैं बदला हूँ न मेरी टीम और न हमारा उत्साह तनिक भी कम हुआ है, बल्कि अब हौंसलों में एक नई ताजगी है, और एक नया जोश है इस नई उड़ान में. बस आप सब से दरख्वास्त है कि यहाँ भी आप यूहीं हमारे हमसफ़र बने रहिये, प्रोत्साहन देते रहिये. फीडबर्नर के आंकडे बढे हुआ अच्छे लगते हैं, हमें अपने मेल में सब्सक्राईब कीजिये. यहाँ हम फेसबुक पर भी उपलब्ध हैं, जिसका पता साईट पर बने फेसबुक के लोगो पर क्लिक करके पाया जा सकता है. हमारे संगीत प्रेमी श्रोता इसे अपना खुद का मंच समझें और खुल कर अपने विचारों को अभिव्यक्त करें. <br />
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अंत में एक बार फिर अपनी भूल चूक के लिए माफ़ी मांगते हुए आप सब के स्नेह और सहयोग के लिए दिल से आभार व्यक्त करते हुए मैं सजीव सारथी आवाज़ के इस मंच पर आपसे हमेशा के लिए विदा हो रहा हूँ, फिर कभी ये महफ़िल सजीव सारथी के नाम से नहीं सजेगी. पर अपने <a href="http://radioplaybackindia.com/">नए पते</a> पर मैं आप सब श्रोताओं का बेसब्री से इंतज़ार करूँगा....<br />
आईये एक बार फिर एक नई शुरुआत करें –<br />
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<span style="font-style: italic;">हम भी दरिया हैं हमें अपने हुनर मालूम है,<br />
जिस तरफ भी चल पड़ेंगें, रास्ता हो जायेगा...</span></div>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-83115594921783681722011-11-30T18:30:00.002+05:302011-11-30T18:30:01.188+05:30सांची कहे तोरे आवन से हमरे....याद आया ये मासूम सा गीत दादु के संगीत से संवरा<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 799/2011/239</span><br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">र</span>वीन्द्र जैन के लिखे और संगीतबद्ध किए गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' में हमने गीतों के साथ-साथ हम दादु के करीयर से जुड़ी बातें भी जान रहे हैं। अब तक आपने जाना कि दादु का बचपन कैसा था, किस तरह से अलीगढ़ में जन्म के बाद वो गीत-संगीत से रु-ब-रु हुए, फिर कलकत्ता आए और आख़िरकार बम्बई को अपनी कर्मभूमि बनाई। यहाँ आकर ७० के दशक के शुरुआती वर्षों में 'पारस', 'लोरी' और 'कांच और हीरा' जैसी फ़िल्मों से अपनी पारी की शुरुआत की, पर उन्हें पहली कामयाबी मिली फ़िल्म 'सौदागर' में। 'सौदागर' के बाद उनके कामयाब फ़िल्मों का दौर शुरु हो गया। हालाँकि इस शृंखला में हम केवल उन फ़िल्मों के गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गीत और संगीत दोनों ही रवीन्द्र जैन ने तैयार किया है। पर बहुत सी फ़िल्में ऐसी भी रहीं जिनमें रवीन्द्र जैन का केवल संगीत था। 'सौदागर' के बाद दादु द्वारा स्वरबद्ध जिन फ़िल्मों के गीत बहुत ज़्यादा चर्चित हुए उनकी फ़ेहरिस्त इस प्रकार है - चोर मचाये शोर, दो जासूस, तपस्या, दीवानगी, चितचोर, फ़कीरा, सफ़ेद हाथी, पहेली, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, कोतवाल साब, अखियों के झरोखों से, पति पत्नी और वो, सुनयना, नैया, सरकारी महमान, मान अभिमान, ख़्वाब, गीत गाता चल, नदिया के पार, अय्याश, राम तेरी गंगा मैली, मरते दम तक, जंगबाज़, ये आग कब बुझेगी, हिना, विवाह, एक विवाह ऐसा भी। ये तो बस वो नाम थे जिन्हें व्यावसायिक सफलता मिली थी, पर इनके अलावा भी बहुत सारी फ़िल्मों में जैन साहब नें संगीत दिया और/अथवा गीत लिखे, पर फ़िल्मों के ना चलने से वो ज़्यादा लोकप्रिय न हो सके। फ़िल्मों के अलावा टेलीविज़न पर रवीन्द्र जैन के संगीत में रामानन्द सागर की महत्वाकांक्षी धारावाहिक 'रामायण' बनी जो रवीन्द्र जैन के करीयर की एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही। पुरस्कारों की बात करें तो जैन साहब को १९८५ में 'राम तेरी गंगा मैली' फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार मिला था। सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के नामांकनों में 'चितचोर', 'अखियों के झरोखों से' फ़िल्मों के लिए उन्हें नामांकन मिला; जबकि "अखियों के झरोखों से" और "मैं हूँ ख़ुशरंग हिना" गीतों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का नामांकन मिला था।<br /><br />आज के अंक में हम आपको सुनवा रहे हैं फिर एक बार 'राजश्री' और 'रवीन्द्र जैन की जोड़ी की एक और ज़बरदस्त हिट फ़िल्म 'नदिया के पार' (१९८२) का गीत जसपाल सिंह की आवाज़ में। बोल हैं "सांची कहे तोरे आवन से हमरे अंगना में आये बहार भौजी"। फ़िल्म का पार्श्व ग्रामीण था, इसलिए फ़िल्म के गीतों में संगीत भी भोजपुरी शैली के थे। पर जब 'राजश्री' ने ९० के दशक में इसी फ़िल्म का शहरी रूपान्तर कर 'हम आपके हैं कौन' के रूप में पेश किया, तब इसी गीत का शहरी रूप बन गया "धिकताना धिकताना धिकताना, भाभी तुम ख़ुशियों का ख़ज़ाना"। आइए आज जाने बातें जसपाल सिंह के जीवन की उन्हीं के द्वारा प्रस्तुत 'जयमाला' कार्यक्रम से। "<span style="font-weight:bold;">फ़ौजी भाइयों, मैं ख़ुद ही बचपन से रफ़ी साहब का फ़ैन बोलिये, या मुजीद बोलिये, मैंने कॉलेज, स्कूल, जहाँ भी मैंने गाया है, रफ़ी साहब के गाने ही गाया है, और रफ़ी साहब की आवाज़ मेरे अंदर ऐसे घुसी कि जैसे मेरी आत्मा की आवाज़ है। मैंने जो भी गाने गाये, उन्हीं के गाये, और मेरे अंदर ऐसे बसी है जैसे नस-नस में आदमी के ख़ून बसा होता है न! और मैं यह बताना चाहता हूँ कि उन्हीं से इन्स्पिरेशन लेके मैं समझता हूँ कि मैं गाना गाता था और उन्ही को अपना गुरु मानता रहा हूँ हमेशा। मैं पंजाब में, अमृतसर में पैदा हुआ, बचपन से मैं वहीं पे था, वहीं से मैंने ग्रजुएशन की। तो वहीं पे मैं स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटीज़ में गाता था, अवार्ड्स मिलते थे, 'even I was declared best singer of Punjab University also'. फिर मैं दिल्ली आ गया, लॉ किया मैंने, वहाँ सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की, मगर मेरे मन में एक सिंगर बनने की बड़ी इच्छा थी और सब मेरे को, आसपास जितने लोग, रिश्तेदार, सब मेरे को बोलते थे कि तुम्हारे पास यह गुण है, इसका फ़ायदा उठाओ। तो मैंने कहा कि गुण तो है लेकिन ऐसा कोई आदमी तो होना चाहिए न कि जो आपको ब्रेक दे, आपको चान्स दे, और इसके लिए बहुत बड़ी स्ट्रगल है, और मैं बहुत सिम्पल सा आदमी हूँ और मैं बहुत सी बातें नहीं कर सकता। मगर कुदरत ने कुछ ऐसा करवाना था कि मेरी बहन की शादी बम्बई में हो गई। और मेरे जीजाजी भी फ़िल्म-लाइन से थोड़े कन्सर्ण्ड थे, तो मैं बम्बई आ गया। बम्बई आ गया तो मेरी बहन ने जो मेरे लिए किया वो तो शायद माँ-बाप भी नहीं करते। मैं अभी क्या उसके बारे में बोलूँ! मेरी बहन नें मेरे लिए बहुत कोशिशें की, मेरे जीजाजी ने मेरे को पहली पिक्चर में गाना गवाया, 'बंदिश' पिक्चर थी, उषा खन्ना जी के संगीत में, वह पिक्चर नहीं चली, लोग मुझे भूल गए। फिर एक गाना महेन्द्र कपूर जी के साथ गवाया। फिर ये रवीन्द्र जैन जी के साथ मेरे ताल्लुक़ात हो गए, आना-जाना, उठना-बैठना, दोस्ती हुई, उनके साथ गाता था मैं, तो यह 'गीत गाता चल' पिक्चर के लिए, ये 'राजश्री' वाले पिक्चर बनाना चाहते थे, उन लोगों को एक नए लड़के की आवाज़ चाहिए थी, तो मैं एक दिन किसी और वजह से अपना टेप रेकॉर्डर पे अपना एक गाना उनको सुनाके आया था, तो किस्मत बोलिए या ईश्वर की कुछ कृपा बोलिए, आप सब लोगों का आशिर्वाद होगा, वह ब्रेक मेरे को मिला, और आप लोगों ने जिस गाने से मुझे पहचाना वह गाना था "गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल, हँसते हँसाते बीते हर घड़ी हर पल</span>"। दोस्तों, 'गीत गाता चल' फ़िल्म का एक गीत तो हम इसी शृंखला में बजा चुके हैं, इसलिए आज पेश है 'नदिया के पार' से "सांची कहे..."।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_799.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत -दादु की सबसे बड़ी हिट फिल्म में ये गीत थे जिसके मुखड़े में शब्द है - "अंतर"</span><br /><br /><a href="http://radioplaybackindia.blogspot.com/2011/11/blog-post_29.html">पिछले अंक</a> में <br /><br /><br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://radioplaybackindia.blogspot.com/2009/06/blog-post_9757.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" />इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://radioplaybackindia.blogspot.com/2010/10/blog-post_5209.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9871123997 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-9173936354184957102011-11-29T18:30:00.001+05:302011-11-30T11:25:21.831+05:30ऐ मेरे उदास मन चल दोनों कहीं दूर चलें...येसुदास ने अपने सबसे बेहतरीन गीत गाये दादु के लिए<span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'ओ</span>ल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों जारी है गीतकार-संगीतकार-गायक रवीन्द्र जैन पर केन्द्रित लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले'। रवीन्द्र जैन नें जिन नवोदित कलाकारों को हिन्दी फ़िल्मों में गाने का मौका दिया, उनमें एक नाम येसुदास का भी है। हालाँकि वो दक्षिण में स्थापित हो चुके थे, पर हिन्दी फ़िल्मों में उन्हें दादु ही लेकर आए थे फ़िल्म 'चितचोर' में। दादु के शब्दों में "<span style="font-weight:bold;">'चितचोर' में हम येसुदास को लेकर आए, इस फ़िल्म से मुझे बहुत दाद मिले हैं बड़े-बड़े गुणी लोगों से, "जब दीप जले आना" के लिए, जैसे सुधीर फड़के जी, वो जब भी मिलते थे, कहते थे कि राग यमन में इतना अच्छा गाना मैंने कैसे बनाया। यह जो राग यमन है न, यह प्राइमरी राग है, यही सबसे पहले आता है। फिर लता जी, आशा जी ने भी बहुत तारीफ़ की, हृदयनाथ जी, सभी ने। एक दिन बासु भट्टाचार्य जी ने येसुदास को लाकर कहा कि यह लड़का गाएगा, इसे सुन लो। हम लोग अमोल पालेकर के लिए एक नई आवाज़ की तलाश कर रहे थे, तो येसुदास जी की आवाज़ उन पर बिल्कुल फ़िट हो गई, बहुत ही अच्छे गुणी कलाकार हैं। और यह जो गाना है न, "जब दीप जले आना", इसकी धुन मैंने पहले कलकत्ते में तैयार किया था एक नाटक के लिए, 'मृच्छ कटिका'। इसके बाद हम तो चल पड़े, मंज़िल की जिसको धुन हो, उसे कारवाँ से क्या!" दोस्तों, इसी बात पर येसुदास का गाया फ़िल्म 'मान अभिमान' का वह गीत यकायक याद आ गया, जिसके बोल हैं "ऐ मेरे उदास मन चल दोनों कहीं दूर चलें, मेरे हमदम, तेरी मंज़िल, ये नहीं ये नहीं कोई और है</span>"। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बारी इसी गीत की।<br /><br />'चितचोर' और 'मान अभिमान' का ज़िक्र हमने किया। इनके अलावा रवीन्द्र जैन और येसुदास की जोड़ी कई और फ़िल्मों में सुनाई दी जैसे कि 'नैया' में "ओ गोरिया रे" और "ऊँची-नीची लहरों के कांध पे चढ़के", 'अय्याश' में "बीती हुई रात की सुनाती है कहानी", 'सुनैना' में "सुनैना, इन नज़ारों को तुम देखो"। कहा जाता है कि रवीन्द्र जैन येसुदास के गायन से इतने ज़्यादा प्रभावित थे कि एक बार उन्होंने कहा था कि अगर उनकी दृष्टि वापस मिल जाए तो सबसे पहले वो येसुदास को देखना चाहेंगे। १९८९ में रवीन्द्र जैन नें येसुदास के प्रोडक्शन हाउस 'तरंगिनी ऑडियोज़' के तले मलयालम ऐल्बम 'आवनी पूछेन्दु' में संगीत दिया था। फ़िल्म 'मान अभिमान' १९८० की फ़िल्म थी जिसका निर्माण ताराचन्द बरजात्या नें अपनी 'राजश्री' के बैनर तले किया था और फ़िल्म के निर्देशक थे हीरेन नाग। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राज किरण, रामेश्वरी, कविता किरण, यूनुस परवेज़, इफ़्तेख़र, अमरीश पुरी प्रमुख। फ़िल्म के गीतों को आवाज़ें दी येसुदास, हेमलता, सुरेश वाडकर और ख़ुद रवीन्द्र जैन ने। और फ़िल्म का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत आज का प्रस्तुत गीत ही है। तो आइए सुना जाए यह गीत। <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_798.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत -एक देवर अपनी भाभी का गुणगान करा रहा है इस गीत में, ये फिल्म दो बार बनी एक ही बैनर पर और दोनों बार सुपर हिट साबित हुई</span><br /><br /><a href="http://radioplaybackindia.blogspot.com/2011/11/blog-post_27.html">पिछले अंक</a> में <br /><br /><br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://radioplaybackindia.blogspot.com/2009/06/blog-post_9757.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" />इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://radioplaybackindia.blogspot.com/2010/10/blog-post_5209.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9871123997 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-14172076563337310312011-11-28T18:30:00.000+05:302011-11-28T18:30:06.480+05:30एक दिन तुम बहुत बड़े बनोगे...और दिल से बहुत बड़े बने दादु हमारे<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 797/2011/237</span><br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'मे</span>रे सुर में सुर मिला ले' शृंखला की सातवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। रवीन्द्र जैन के लिखे और स्वरबद्ध किए गीतों की इस शृंखला में आइए आज आपको बतायें कि दादु को बम्बई में पहला मौका किस तरह से मिला। "<span style="font-weight:bold;">झुनझुनवाला जी नें मुझे कहा कि तुम अभी थोड़ा धैर्य रखो, यहाँ बैठ के काम करो, अपने घर में जगह दी, और काम करता रहा, उनको धुनें बना बना के सुनाता था, उन्होंने एक फ़िल्म प्लैन की 'लोरी', जिसके लिए हम बम्बई गानें रेकॉर्ड करने आए थे, जिसका मुकेश जी नें दो गानें गाये। मुकेश जी का एक गाना मैं आपको सुनाता हूँ, जो कुछ मैं कलकत्ते से यहाँ लेके आया था - "दुख तेरा हो कि दुख मेरा हो, दुख की परिभाषा एक है, आँसू तेरे हों कि आँसू मेरे हों, आँसू की भाषा एक है</span>"।" दोस्तों, 'लोरी' फ़िल्म तो रिलीज़ नहीं हुई, और दादु के संगीत की पहली फ़िल्म आई 'कांच और हीरा'। लेकिन उससे पहले उनका पहला गाना जा चुका था फ़िल्म 'पारस' में। इस बारे में दादु बताते हैं - "<span style="font-weight:bold;">जी हाँ, जी हाँ, 'पारस' में मेरी रमेश सिप्पी साहब से मुलाक़ात हुई थी, संजीव ने मिलाया मुझे उनसे, संजीव यानि हरि भैया, संजीव कुमार जी। तो 'पारस' की शूटिंग् चल रही थी, तो मैंने कहा कि 'हरि भाई, मैं बम्बई आ गया हूँ, अब क्या करना है, यू हैव टू हेल्प मी आउट'। उन्होंने कहा कि ठीक है, आप 'पारस' की शूटिंग् के बाद शाम को हमारी सिप्पी साहब से मीटिंग् करवाई, और मैं कलकत्ते से जो कुछ गानें लाया था, उनको सुनाये। तो उन्होंने कहा कि ज़रूर हम साथ में काम करेंगे, और सिप्पी साहब को जो गाना पसंद आता था, उनके लिए १० रुपय मुझे देते थे कि यह गाना मेरा हो गया। तो उनमें से कौन कौन से गानें थे वो भी मैं आपको बताउँगा, जो पॉपुलर हुए हैं। तो पहला गाना रेकॉर्ड किया हमने, वो एक शायर की कहानी बना रहे थे जो एक गायक भी है, और उसमें रफ़ी साहब नें अपनी आवाज़ से नवाज़ा। १४ जनवरी का ज़िक्र है यह १९७१ का। रफ़ी साहब, मैं अब तक नहीं समझ पाया कि वो एक बेहतर कलाकार थे या एक बेहतर इंसान। दोनों ही ख़ूबियों के मालिक थे।</span>" <br /><br />तो दोस्तों, इस तरह से रवीन्द्र जैन का पहला गाना रफ़ी साहब की आवाज़ में रेकॉर्ड हुआ और रवीन्द्र जैन के पारी की शुरुआत हो गई और एक बड़े कलाकार बनने का सपना भी, बिल्कुल उनके उस गीत के बोलों की तरह कि "एक दिन तुम बहुत बड़े बनोगे, चाँद से चमक उठोगे"। दोस्तों, क्यों न आज के अंक में इसी गीत को सुना जाये। यह है १९७८ की फ़िल्म 'अखियों के झरोखों से' का हेमलता और शैलेन्द्र सिंह का गाया यह बहुत ही लोकप्रिय गीत। यह फ़िल्म अंग्रेज़ी फ़िल्म 'ए वाक टू रेमेम्बेर' का हिन्दी रीमेक थी जिसमें सचिन और रंजीता नें अभिनय किया था। वैसे इस फ़िल्म का सबसे लोकप्रिय गीत फ़िल्म का शीर्षक गीत ही रहा है जो हेमलता के करीयर का सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में से एक रहा। रवीन्द्र जैन द्वारा स्वरबद्ध गीत ज़्यादातर लोक-संगीत और शास्त्रीय संगीत पर आधारित हुआ करते थे, पर क्योंकि इस फ़िल्म का पार्श्व शहरी था, नायक-नायिका कॉलेज में पढ़ने वाले नौजवान थे, इसलिए इस फ़िल्म में आधुनिक संगीत की ज़रूरत थी। और दादु नें अपनी गुणवत्ता को कायम रखते हुए पाश्चात्य संगीत पर आधारित धुनें बनाई, और उन्होंने इस बात को साबित किया कि मेलडी और स्तर को बनाए रखते हुए भी आधुनिक संगीत दिया जा सकता है। प्रस्तुत गीत में तो अंग्रेज़ी के शब्दों तक का प्रयोग किया है दादु नें। याद है न "विल यू फ़ॉरगेट मी देन, हाउ आइ कैन..."? और हम भी कैसे भुला सकते हैं रवीन्द्र जैन जी के सुरीले गीतों को! आइए सुना जाए यह गीत।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_797.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत -हिरेन नाग निर्देशित इस फिल्म में ये गीत गाया था येसुदास ने</span><br /><br /><a href="http://radioplaybackindia.blogspot.com/2011/11/blog-post_27.html">पिछले अंक</a> में <br /> <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-90953799953040333212011-11-27T18:30:00.001+05:302011-11-27T18:30:01.106+05:30ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में...दादू की धुनों पर खूब सजी हेमलता की आवाज़<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 796/2011/236</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'ओ</span>ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी संगीत-रसिकों को सुजॉय चटर्जी और सजीव सारथी का प्यार भरा नमस्कार! आज रविवार, छुट्टी का यह दिन आपनें हँसी-ख़ुशी मनाया होगा, ऐसी हम उम्मीद करते हैं। और अब शाम ढल चुकी है भारत में, कल से नए सप्ताह का शुभारम्भ होने जा रहा है, फिर से ज़िन्दगी रफ़्तार पकड़ लेगी, दफ़्तर के कामों में, दैनन्दिन जीवन के उलझनों में फिर एक बार हम डूब जाएंगे। इन सब से अगर हमें कोई बचा सकता है तो वह है सुरीला संगीत। और इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जो शृंखला चल रही है वह भी बड़ा ही सुरीला है, क्योंकि जिन कलाकार पर यह शृंखला केन्द्रित है, वो बहुत ज़्यादा सुरीले हैं, स्तरीय हैं। रवीन्द्र जैन के लिखे और स्वरबद्ध किए गीतों से सजी शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' की आज है छठी कड़ी। दोस्तों, पिछले अंक में हमने दादु से सुनते हुए आए कि कैसे वो कलकत्ता छोड़ बम्बई का रुख़ किया। बम्बई में कैसे उन्हें पहली फ़िल्म मिली, यह कहानी हम आपको कल की कड़ी में बताएँगे। आज कुछ और बात करते हैं। दोस्तों, रवीन्द्र जैन नें कई नवोदित गायक गायिकाओं को अपनी फ़िल्मों में गाने का मौका दिया है जिनमें हेमलता, जसपाल सिंह, येसुदास, सुरेश वाडकर, चन्द्राणी मुखर्जी आदि शामिल हैं। आइए आज हेमलता से सुनें दादु के बारे में - "<strong>मैंने १४ मूल भाषाएँ सीखी हैं, कुल ३८ भाषाएँ पढ़ीं हैं। संगीत नौशाद साहब से सीखा, उस्ताद रइस ख़ाँ से ग़ज़ल सीखा, फिर मदन मोहन जी, कल्याणजी भाई, रवीन्द्र जैन जी से भी बहुत सीखा है। दादु (रवीन्द्र जैन) मेरे बाबा के शिष्य हुआ करते थे कलकत्ते से। तो उनके क्लास के बाद वो मुझसे अपने गाने गवाया करते थे। और वो मुझे हर गीत के लिए १ रुपय देते थे। पहले ५० पैसे रेट था, फिर मैंने रेट बढ़ा दिया, बर्फ़ के गोले महंगे हो गए थे न! वो सिखाते थे मुझे, उनकी बंदिशें। जब यहाँ आकर मुझे लोगों को अपनी वॉयस सुनानी पड़ती थी, मैं उन्हीं के ये सब गानें गाती थी। यूं तो मुझे फ़िल्मों के गानें याद रहते थे, रफ़ी साहब और मुकेश जी के गानें भी याद होते थे, लता जी के गानों की तो हिसाब ही नहीं थी। दादु इस इन्डस्ट्री में ७० के दशक के शुरु में आए, तब तक १००/१५० गानें मैं गा चुकी थी।</strong>"<br /><br />रवीन्द्र जैन और हेमलता की जोड़ी नें हमें कई यादगार गीत दिए हैं, जिनमें सब से ज़्यादा लोकप्रिय और सदाबहार रहा है फ़िल्म 'अखियों के झरोखों से' का शीर्षक गीत। पर आज के अंक में हम इस गीत को नहीं बल्कि 'राजश्री' की ही एक अन्य फ़िल्म 'दुल्हन वही जो पिया मन भाये' का एक और ख़ूबसूरत गीत "ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में, प्यार की छाँव में बिठाए रखना, सजना ओ सजना"। 'दुल्हन वही...' १९७७ की फ़िल्म थी जिसके निर्माता थे ताराचन्द बरजात्या और निदेशक थे लेख टंडन। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे रामेश्वरी और प्रेम किशन। फ़िल्म तो लो-बजट फ़िल्म थी, पर इसके गीत बहुत मशहूर हुए थे। प्रस्तुत गीत के अलावा फ़िल्म के अधिकांश गीत भी हेमलता नें ही गाए जिनमें शामिल हैं "अब रंज से, ख़ुशी से, बहारों से क्या", "जहाँ प्रेम का पावन दियरा जरे", "मंगल भवन अमंगल हारी", पुरवैया के झोंके आये, चंदन बन की महक भी लाये" और "श्यामा ओ श्यामा"। एक गीत हेमलता, येसुदास और बनश्री सेनगुप्ता नें गाया था "ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हो दामन में जिसके, क्यों न ख़ुशी से वो दीवाना हो जाये", और रवीन्द्र जैन की आवाज़ में भी एक गीत था "अचरा के फुलवा लहके आये हम तोरे दुवार"। सर्वश्रेष्ठ संवाद के लिए व्रजेन्द्र गौड़ को और सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए लेख टंडन, व्रजेन्द्र गौड़ और मधुसुदन कालेकर को उस वर्ष का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिया गया था। तो आइए सुनते हैं हेमलता और रवीन्द्र जैन की जोड़ी का यह सुन्दर गीत।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_796.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत - गीत में अंग्रेजी पंक्तियाँ का भी प्रयोग हुआ है</span> <br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_24.html">पिछले अंक</a> में <br />विज जी बहुत धन्येवाद इस जानकारी के लिए <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-82135879653374780082011-11-27T09:15:00.002+05:302011-11-27T09:15:00.279+05:30‘ए हो जन्मी है बिटिया हमार...’ कन्या-जन्म पर पारम्परिक सोहर का अभाव है<div><span style="font-weight:bold;">सुर संगम- 46 – संस्कार गीतों में अन्तरंग पारिवारिक सम्बन्धों की सोंधी सुगन्ध </span></div><div><br /><strong>संस्कार गीतों की नयी श्रृंखला - दूसरा भाग </strong><br /><br />‘सुर संगम’ के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब लोक-संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। पिछले अंक से हमने संस्कार गीतों की श्रृंखला आरम्भ की है। प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुसार सम्पूर्ण मानव जीवन को १६ संस्कारों में बाँटा गया है। इन विशेष अवसरों पर विशेष लोक-धुनों में गीतों को गाने की परम्परा है। हमने पिछले अंक में जातकर्म संस्कार, अर्थात पुत्र-जन्म के मांगलिक अवसर पर गाये जाने ‘सोहर’ गीतों की चर्चा की थी। आज के अंक में हम उसी चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।<br /><br />लोकगीतों में छन्द से अधिक भाव और रस का महत्त्व होता है। प्रत्येक अवसरों के लिए प्रकृतिक रूप से उपजी धुने शताब्दियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रहीं हैं। लोक-गीतकार इन धुनों में अपने बोली के शब्दों को समायोजित करके गाने लगता है। इन गीतों में सामाजिक और पारिवारिक सम्बन्धों की बात होती है, इसी प्रकार सोहर गीतों में सास-बहू, ननद-भाभी और देवर-भाभी के नोक-झोक के रोचक प्रसंग होते हैं। उल्लास और संवेदनशीलता का भाव मुखर होता है। नवजात शिशु की तुलना राम, कृष्ण, लव-कुश आदि से की जाती है और पौराणिक प्रसंगों को लौकिक रूप दे दिया जाता है। मात्र लय पर आधारित, भावप्रधान गीतों में सोहर गीत सम्भवतः सबसे प्राचीन है। पुत्र-जन्म के अवसर पर गाये जाने वाले सोहर में उल्लास और उत्साह का भाव होता है, किन्तु जन्म से पूर्व के गीतों में माँ और नवागत शिशु के प्रति मंगल-कामनाएँ की जाती हैं। अधिकतर गीतों में देवी-देवताओं की प्रार्थना भी की जाती है। अब हम आपको एक ऐसा सोहर सुनवाते हैं, जिसमे सन्तान-प्राप्ति के लिए माँ गंगा से प्रार्थना की गई है। इसे प्रस्तुत किया है, शास्त्रीय और लोक संगीत की विदुषी प्रो. कमला श्रीवास्तव ने-<br /><br /><strong>सोहर : ‘गंगा जामुनवा के बीच तिवइया एक तप करें...’ स्वर - विदुषी कमला श्रीवास्तव</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SsSihorePart2/SSSANSAKAR0203.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOONbW1kKiL0ulNP_yhEXOyZ3PPGxLfRfbxSxeJUYUavmtPQbJaEBnxL_yE3c1_p3flcAWIJi0fqN6O6k85R2OQWNeU_zCbv3F2R9d31tMLtDvRREkG1sAODz1usWu1mQTVDSNH5mCrmmJ/s1600/sohar.JPG"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 133px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiOONbW1kKiL0ulNP_yhEXOyZ3PPGxLfRfbxSxeJUYUavmtPQbJaEBnxL_yE3c1_p3flcAWIJi0fqN6O6k85R2OQWNeU_zCbv3F2R9d31tMLtDvRREkG1sAODz1usWu1mQTVDSNH5mCrmmJ/s200/sohar.JPG" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5679225973822086978" /></a><br />सोहर गीत चाहे किसी भी क्षेत्र का क्यों न हो, उसका भाव और मन्तव्य एक ही होता है। अन्तर केवल भाषा अथवा बोली में ही होता है। लगभग एक दशक पूर्व जब मैंने संस्कार गीतों का संकलन करना आरम्भ किया था, तब कुछ उल्लेखनीय तथ्य प्रकाश में आए थे। आज उनमें से कुछ तथ्य आपके साथ बाँटना चाहूँगा। ब्रज, कन्नौज, बुन्देलखण्ड, अवध और भोजपुरी क्षेत्रों के २०० से अधिक सोहर गीतों के संकलन में मुझे एक भी ऐसा सोहर नहीं मिला, जिसमें पुत्री के जन्म का उल्लेख हो अथवा पुत्री-जन्म पर प्रसन्नता व्यक्त किया गया हो। जिस देश की प्राचीन संस्कृति में नारी को ‘शक्ति-स्वरूपा’ देवी के रूप में पूजने की परम्परा हो, वहीं पुत्री-जन्म पर प्रसन्नता व्यक्त करने वाले लोकगीत का अभाव हो, यह आश्चर्य का विषय है। उन्ही दिनों लोकगीतों के विद्वान राधाबल्लभ चतुर्वेदी की पुस्तक ‘ऊँची अटरिया रंग भरी’ में एक बुन्देलखण्ड के सोहर की पंक्तियों पर मेरा ध्यान गया। वह पंक्तियाँ हैं- ‘धिया बिन कोख न सोहे, ललन बिन सोहर रे महाराज...’। आगे की पंक्तियों में केवल पुत्र-जन्म के उल्लास का ही वर्णन है। मैं आंशिक रूप से ही सन्तुष्ट हुआ कि कम से कम एक सोहर की मात्र एक पंक्ति में तो ‘धिया’ अर्थात पुत्री-जन्म को रेखांकित तो किया गया। एक बार प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव, लोकगीतों की एक कार्यशाला का निर्देशन कर रहीं थी। मैंने अपनी शंका उनके सम्मुख रखी। कमला दीदी ने मेरी बात को गम्भीरता से सुना और तत्काल पुत्री-जन्म पर एक सोहर रच कर कार्यशाला में शामिल महिलाओं को गायन के लिए प्रशिक्षित भी किया। पिछले एक दशक से अवधी लोकगीतों की प्रायः प्रत्येक मंच प्रस्तुतियों मे यह सोहर चर्चित हुआ है। संस्कार गीतों की प्रस्तुतियों में यदि कभी यह गीत शामिल नहीं होता तो श्रोता अनुरोध करने लगते हैं। आइए आपको अब हम पुत्री-जन्म के लिए प्रो. कमला श्रीवास्तव रचित वह सोहर सुनवाते हैं, जिसे पारम्परिक धुन में पिरोया गया है।<br /><br /><strong>सोहर : ‘ए हो जन्मी है बिटिया हमार, सहेलिया मंगल गाओ...’ : रचना - विदुषी कमला श्रीवास्तव</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SsSihorePart2/SSSANSKAR0201.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />अनेक फिल्म-संगीतकारों ने लोक संगीत का प्रयोग अपनी फिल्मों में किया है। इन संगीतकारों में एक थे चित्रगुप्त। उन्होने भोजपुरी फिल्म ‘सजनवाँ बैरी भइलें हमार’ में एक सोहर गीत शामिल किया था, जिसे अलका याज्ञिक और उदित नारायण ने स्वर दिया है। बाल्मीकि आश्रम में सीता जी ने दो जुड़वा पुत्रों, लव-कुश को जन्म दिया है। फिल्म में यह सोहर गीत इसी प्रसंग में प्रस्तुत किया गया है। आइए सुनते हैं, यह फिल्मी सोहर-<br /><br /><strong>सोहर : फिल्म - सजनवाँ बैरी भइलें हमार : ‘धन धन भाग ललनवाँ..’ : स्वर - अलका याज्ञिक और उदित नारायण</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SsSihorePart2/DhanDhanBhagLalanwa-SajanwaBairiBhaileHamar-BhojpuriFilmSong.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />इसी के साथ संस्कार गीतों के अन्तर्गत आने वाले सोहर गीतों को इस अंक से विराम देते हैं। अगले अंक में हम आपसे एक अन्य प्रकार के संस्कार गीत पर चर्चा करेंगे। <br /><br />और अब बारी है इस कड़ी की पहेली की जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अन्दर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।<br /><br />सुर संगम 46 की पहेली : <strong>भारतीय समाज के वे कौन से संस्कार हैं, जिनमें बालक के सिर के बालों का मुंडन कर दिया जाता है? उन संस्कारों का नाम बताइए। नाम की सही पहचान करने पर आपको मिलेंगे ५ अंक।</strong><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_20.html">पिछ्ली पहेली </a>का परिणाम - सुर संगम के ४५वें अंक में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर है- अलका याज्ञिक। और इस पहेली का सही उत्तर फिर एक बार क्षिति जी ने दिया है। बहुत-बहुत बधाई! <br /><br />अब समय आ चला है, आज के 'सुर-संगम' के अंक को यहीं पर विराम देने का। परन्तु संस्कार गीतों पर यह चर्चा हम ‘सुर संगम’ के अगले अंक में भी जारी रखेंगे। अगले रविवार को हम पुनः उपस्थित होंगे। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई होगी। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तम्भ को और रोचक बना सकते हैं। आप अपने विचार और सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। शाम ६-३० बजे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की सूजोय जी द्वारा सजायी गई महफ़िल में पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!<br /> <br /></div><div>खोज व आलेख -<a href="http://vahak.hindyugm.com/2011/04/blog-post.html"> कृष्णमोहन मिश्र</a></div><div><br /><br /></div><div><hr /></div><div><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/?cx=partner-pub-9993819084412964:kw52fxuglx0&cof=FORID:11&ie=UTF-8&q=sur+sangam&sa=%E0%A4%87%E0%A4%B8+%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9F+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%82&siteurl=podcast.hindyugm.com/"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiujumNxPtyDKPOhvxIB-53f2BHklyxfqOg4T5kXg_lepylRkX7-68f5GuhTtJ3i3ZYT1uHL-rVJnHA9Ppen5gi-zUTCwGPgTsh1Y1F-fO9i9i0rXFPM2r-ltcK1GxZEmXKiRJuSrW-fF1W/s740/legend.jpg" /></a>आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.</div><blockquote></blockquote></div>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-13988692640549535432011-11-26T17:00:00.000+05:302011-11-26T17:00:00.901+05:30मिलिए २३-वर्षीय फ़िल्मकार हर्ष पटेल से<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 69</span><br /><br />ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष' में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। दोस्तों, आज हम आपकी मुलाक़ात करवाने जा रहे हैं एक ऐसे फ़िल्म-मेकर से जिनकी आयु है केवल २३ वर्ष। ज़्यादा भूमिका न देते हुए आइए मिलें हर्ष पटेल से और उन्हीं से विस्तार में जाने उनके जीवन और फ़िल्म-मेकिंग् के बारे में। <br /><br />सुजॉय - हर्ष, बहुत बहुत स्वागत है आपका 'आवाज़' पर। यह साहित्य, संगीत और सिनेमा से जुड़ी एक ई-पत्रिका है, इसलिए हमने आपको इस मंच पर निमंत्रण दिया और आपको धन्यवाद देता हूँ हमारे निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद! </span><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://media.linkedin.com/mpr/pub/image-4lM0lR-ZPon1mNbnuYxJlp3vBAZxmUsnuzmJlvBuXViQl0ha/harsh-patel.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 80px; height: 80px;" src="http://media.linkedin.com/mpr/pub/image-4lM0lR-ZPon1mNbnuYxJlp3vBAZxmUsnuzmJlvBuXViQl0ha/harsh-patel.jpg" border="0" alt="" /></a><br />सुजॉय - हर्ष, यूं तो आपकी उम्र बहुत ही कम है, और भविष्य में आप बहुत बड़े फ़िल्मकार बनेंगे ऐसी हम ईश्वर से दुआ करते हैं, पर अब तक भी आपकी जो उपलब्धियाँ रही हैं, वो भी कुछ कम नहीं हैं। हम शुरु करना चाहेंगे आपके परिवार से। कौन कौन हैं आपके परिवार में? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - मेरा जन्म अहमदाबाद में ४ अक्टूबर १९८८ को हुआ था। हमारा संयुक्त परिवार है जिसमें ९ सदस्य हैं। मैं, मेरा छोटा भाई, मेरे मम्मी-पापा, मेरी दादी, और मेरे चाचा जी के परिवार के ४ सदस्य। इस तरह से ९ सदस्यों का हमारा परिवार है। मेरा बचपन भी बहुत अच्छे से गुज़रा। हमारे परिवार में लगभग २५ साल बाद किसी बच्चे का जन्म हुआ और वह मैं था। मेरा भाई मेरे से ५ साल बाद और चाचाजी के बच्चे भी बाद में आये। इसलिए मुझे अपने परिवार और आस-पड़ोस से बहुत लाड-प्यार मिला। मैंने अपने दादाजी को नहीं देखा, पर मेरी दादी नें जैसे मेरी सारी ज़िम्मेदारियाँ ले रखी थीं।</span> <br /><br />सुजॉय - वाह! बहुत अच्छा लगा आपके परिवार के बारे में जान कर। बचपन में कौन कौन से खेल खेला करते थे? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - बचपन में ज़्यादातर आउटडोर गेम्स का मुझे शौक था। छुटपन से ही मैं बहुत ज़्यादा धार्मिक भी था क्योंकि मैं अपनी दादी के बहुत करीब था। खेलों में मुझे तैराकी ही सबसे ज़्यादा पसन्द था। और मुझे क्रिकेट से सख़्त नफ़रत थी जो कि हमारे देश में सबसे ज़्यादा फ़ेवरीट है।</span> <br /><br />सुजॉय - ये तो थी खेल-कूद की बात, कला के क्षेत्र में आपकी किस तरह की रुचि थी, यह हम आपसे अभी जानेंगे, लेकिन उससे पहले हम चाहेंगे कि आप अपनी पसन्द का कोई गीत हमारे श्रोता-पाठकों को सुनवाएँ? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - हिन्दी फ़िल्मों में इतने अच्छे अच्छे गानें आये हैं कि किसी एक गीत को चुनना बड़ा मुश्किल लगता है। फिर भी, इस वक़्त जो गीत मुझे याद आ रहा है, वह है "हँसता हुआ नूरानी चेहरा", 'पारसमणि' फ़िल्म का।</span> <br /><br />सुजॉय - वाह! मुझे ताज्जुब हो रहा है कि आपनें इतने पुराने गीत को चुना, लता मंगेशकर और कमल बारोट की आवाज़ों में पेश है यह गीत। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - हँसता हुआ नूरानी चेहरा (पारसमणि)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_69/OIG_SS_69_01.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />सुजॉय - हर्ष, अब बताइए आपकी कलात्मक रुचियों के बारे में। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - मुझे शुरु से ही कला के विभिन्न क्षेत्रों में गहरी दिलचस्पी रही है। डान्स, मॉडलिंग्, ऐक्टिंग्, पेण्टिंग्, फ़ैशन-डिज़ाइनिंग् और भी न जाने किस किस में रुचि थी। पर सबसे ज़्यादा जो माध्यम, जो कला मुझे आकर्षित करती, वह था 'मोशन मीडियम'। I used think like How these Characters play with magic in Ramayana & Mahabharata. कोई फ़िल्म देखता तो उसके डिरेक्शन और एडिटिंग् के नज़रिये से विश्लेषण किया करता, किस तरह से शॉट्स लिए गए होंगे, लॉंग् शॉट्स, क्लोज़-अप, आदि। </span><br /><br />सुजॉय - यानि आप फ़िल्म देखते समय उसकी तकनीकी पहलुओं पर भी ग़ौर किया करते थे। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - बिलकुल!</span> <br /><br />सुजॉय - तो फिर इस शौक को करीयर बनाने के लिए आपने कौन सी राह अख़्तियार की? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - मैं C-DAC इन्स्टिट्युट में भर्ति हो गया जहाँ मैंने 'मौल्टि-मीडिया' सीखा, और साथ ही साथ साइन्स में ग्रजुएशन भी पास किया। मीडिया स्टडी के बाद मैं मुम्बई में Vision 2000 स्टुडियो जॉइन कर ली और एडिटिंग् के क्षेत्र से अपने सफ़र की शुरुआत की। Documentary, short films, film teaser जैसे प्रोजेक्ट्स में मैंने काम किया। फिर फ़िल्म-मेकिंग् सीखने के लिए मैं 'बालाजी टेलीफ़िल्म्स लिमिटेड' के साथ जुड़ गया। वहाँ मैंने टीवी धारावाहिक 'कितनी मोहब्बत है' में सहायक के रूप में काम किया, और 'प्यार की यह एक कहानी' धारावाहिक के कई एपिसोड्स एडिट किए। और अब मैं गुजरात के गांधीनगर में CPIFT (City Pulse Institute of Film & TV) में काम कर रहा हूँ बतौर प्रोडक्शन ऐसिस्टैण्ट और एडिटर। </span><br /><br />सुजॉय - बहुत ख़ूब! हर्ष, अब आपके पसन्द के एक और गीत की बारी। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - "गुनगुना रहे हैं भँवरें", 'आराधना' फ़िल्म से।</span> <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - गुनगुना रहे हैं भँवरें (आराधना)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_69/OIG_SS_69_02.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />सुजॉय - हर्ष, बहुत अच्छा लग रहा है आपसे बातें करते हुए, और आपके पसन्द की भी मैं दाद दूंगा। अच्छा, यह बताइए कि आप ने अब तक कौन कौन सी फ़िल्मों का निर्माण किया है? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - मैं स्वतंत्र रूप से लघु फ़िल्में बनाता हूँ। इसके अलावा सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थानों के लिए वृत्तचित्र (documentary) भी बनाता हूँ। मेरी पहली लघु फ़िल्म थी 'After Black'।</span> <br /><br />सुजॉय - इस फ़िल्म के बारे में बताइए। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - इस फ़िल्म की कहानी में वर्ष २०१४ दिखाया गया है। जैसा कि आप जानते हैं कि २०१२ के दिसंबर में दुनिया के समाप्त हो जाने की बात या अफ़वाह, जो भी कहें, चल रही है, तो अगर ऐसा हुआ तो २०१४ में धरती पर क्या-कुछ हो सकता है, उसी का अनुमान है इस लघु फ़िल्म में। बहुत कम लोग शेष रह गए हैं धरती पर। पेड़-पौधे मर चुके हैं, हरियाली ग़ायब है, इन्सान आदमख़ोर बन चुका है। खेती के लिए धरती उपयुक्त नहीं रही। कुछ जीवित वैज्ञानिक ऐसी धरती की तलाश में है जहाँ पर जीवन-यापन किया जा सके। एक वैज्ञानिक नें ऐसा बीज और तकनीक तैयार कर लिया है जो केवल ४८ घण्टों में पैदावार दे सके। ज़मीन की भी खोज मिल जाती है पर वहाँ पहुँचने पर वहाँ मौजूद आबादी उन्हें मार कर खा जाती है। उनके बाद उनकी बहन उसके अधूरे मिशन को कामयाब करने वहाँ जाती है।</span> <br /><br />सुजॉय - बड़ा ही रोमांचक विषय चुना है आपने। हम आपकी अगली फ़िल्म के बारे में भी जानना चाहेंगे, पर उससे पहले एक और गीत हो जाए? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - "एक चतुर नार बड़ी होशियार"</span> <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - एक चतुर नार बड़ी होशियार (पड़ोसन)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_69/OIG_SS_69_03.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />सुजॉय - आपकी दूसरी फ़िल्म कौन सी थी? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - मेरी दूसरी फ़िल्म का नाम था 'Corruption Live in Action'। यह ३० मिनट की लघु फ़िल्म थी। कहानी जवान लड़के-लड़कियों की थी जिन्होंने अभी अभी पढ़ाई पूरी की है और उन्हें समझ में आने लगा है कि अब और मौज-मस्ती का वक़्त नहीं रहा, अगर ज़िन्दा रहना है तो काम करना पड़ेगा। पर वो जहाँ भी काम ढूंढने गए, वहीं उन्हें भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ा। अन्त में उन युवक-युवतियों नें हिडन कैमरों की मदद से भ्रष्टाचारियों का पर्दाफ़ाश किया, और इस प्रयास में उन लोगों ने मीडिया का भी सहारा लिया। </span><br /><br />सुजॉय - वाह! यह बहुत ही सार्थक विषय है आज, अभी हाल ही में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ पूरे हिन्दुस्तान को आवाज़ उठाते हुए हमने देखा था। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - जी। मेरी तीसरी फ़िल्म थी 'समय नी हाथताली', जो ७ मिनट की एक गुजराती फ़िल्म थी। जौनर था सोशल ड्रामा। कहानी पिता-पुत्र की थी जिनके बीच मतभेद है और जिसका कारण है जेनरेशन गैप। पुत्र घर बेचना चाहता है क्योंकि उसके १० गुणा ज़्यादा कीमत मिल रही है; जबकि पिता का उस घर के साथ बहुत सारी यादें जुड़ी होने की वजह से उसे नहीं बेचना चाहते। 'सुवर्ण पथ' एक डॉकुमेन्टरी-ड्रामा थी जिसे मैंने BAPS स्वामीनारायण संस्था के लिए एडिट किया था और जिसकी बहुत चर्चा हुई थी और राज्य स्तर पर प्रथम पुरस्कार भी मिला था। </span><br /><br />सुजॉय - वाह! और किन किन फ़िल्मों के लिए आपको पुरस्कार मिले? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - 'Corruption Live in Action' गुजरात की पहली लघु फ़िल्म थी जिसे सबसे ज़्यादा दर्शकों के बीच में प्रदर्शित किया गया था। 'समय नी हाथताली' को 'अहमदाबाद फ़िल्म प्रोजेक्ट' के लिए चुना गया था।</span> <br /><br />सुजॉय - अब एक और गीत की बारी, बताइये कौन सा गीत सुनवाना चाहेंगे? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - "बीती न बिताई रैना"</span> <br /><br />सुजॉय - क्या बात है! <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - बीती न बिताई रैना (परिचय)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_69/OIG_SS_69_04.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />सुजॉय - निकट भविष्य में क्या कर रहे हैं? <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - भविष्य में मैं और भी कई लघु फ़िल्में बनाना चाहता हूँ और एक टेलीफ़िल्म भी प्लैन कर रहा हूँ। और एक फ़ीचर फ़िल्म में भी बतौर सहायक निर्देशक और एडिटर काम करने जा रहा हूँ। </span> <br /><br />सुजॉय - बहुत बहुत शुभकामनाएँ आपको कि आप अपने लक्ष्य तक पहुँचे, कामयाबी आपके कदम चूमे। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - धन्यवाद!</span> <br /><br />सुजॉय - अच्छा हर्ष, ये जो आपने अपने पसन्द के गानें हमें बताए, मुझे ऐसा लगता है कि आपको संगीत में भी ज़रूर रुचि होगी, क्योंकि आपकी पसन्द जो इतनी अच्छी है, इतनी रुचिकर है। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - मुझे भारतीय शास्त्रीय संगीत से बहुत प्यार है और साथ ही इण्डियन-वेस्टर्ण फ़्युज़न से भी। मैंने 'सप्तक म्युज़िक फ़ेस्टिवल' अटेण्ड की थी जो संगीत-प्रेमियों में बहुत लोकप्रिय है। मेरी ख़ुशकिस्मती है कि इन दिनों मैं एक म्युज़िक शो भी एडिट कर रहा हूँ गुजरात के GTPL चैनल पर और शो का नाम है 'दि फ़्राइडे'। 'दि फ़्राइडे' CPIFT द्वारा आयोजित एक ईवेण्ट है जो हर शुक्रवार को होता है और मैं उस ईवेण्ट शूटिंग् का डिरेक्टर और एडिटर हूँ। अब तक जिन महान संगीत शिल्पियों के साथ ईवेण्ट करने का मौका मिला है, उनमें शुभा मुदगल और शुजात ख़ान शामिल हैं।</span> <br /><br />सुजॉय - बहुत अच्छा लगा हर्ष जो आप हमारे साथ इतनी सारी बातें की। आप बहुत बड़े फ़िल्मकार बनें, और अपने परिवार का नाम रोशन करें, ऐसी हम आपको शुभकामना देते हैं, बहुत बहुत धन्यवाद, नमस्ते। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">हर्ष - मुझे भी बहुत अच्छा लगा आपसे बातें करते हुए, आपका बहुत अभुत धन्यवाद!</span> <br /> <br />तो ये था आज का 'शनिवार विशेष', आशा है आपको पसन्द आया होगा, आज बस इतना ही, फिर मुलाक़ात होगी, नमस्कार!Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-26825552080186196332011-11-24T18:30:00.001+05:302011-11-24T18:30:03.353+05:30साथी रे, भूल न जाना मेरा प्यार....कोई कैसे भूल सकता है दादु के संगीत योगदान को<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 795/2011/235</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'ओ</span>ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, इन दिनों आप आनन्द ले रहे हैं सुरीले संगीतकार व अर्थपूर्ण गीतों के गीतकार रवीन्द्र जैन पर केन्द्रित लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' का। आज पाँचवीं कड़ी में हम आपको बताने जा रहे हैं रवीन्द्र जैन का हिन्दी फ़िल्म जगत में आगमन कैसे हुआ। ४० के दशक के अन्त और ५० के दशक के शुरुआती सालों में अलीगढ़ में रहते हुए ही रवीन्द्र जैन के अन्दर संगीत का बीजारोपण हो चुका था। वो गोष्ठियों में जाया करते, मुशायरों में जाया करते। उनमें शायर इक़बाल उनके अच्छे दोस्त थे। उनका एक और दोस्त था निसार जो रफ़ी, मुकेश और तमाम गायकों के गीत उन्हीं के अंदाज़ में गाया करते थे। इस तरह से वो शामें बड़ी हसीन हुआ करती थीं। कभी बाग में, कभी रेस्तोरां में, देर रात तक महफ़िलें चला करतीं और रवीन्द्र जैन उनमें हारमोनियम बजाया करते गीतों के साथ। अन्ताक्षरी में जब कोई अटक जाता तो वो तुरन्त गीत बता दिया करते। ६० के दशक में रवीन्द्र जैन कलकत्ता आ गए। वहाँ पर नामचीन फ़िल्मकार हृतिक घटक से उनकी मुलाकात हुई जिन्होंने उन्हें सुन कर यह कहा था कि वे बड़ा तरक्की करेंगे। कलकत्ते से बम्बई किस तरह से आना हुआ यह जानिए दादु के ही शब्दों में - "<span style="font-weight:bold;">घूमते फिरते आए। शंकर था मेरे साथ, मेरा छोटा भाई, राधेश्याम जी और शंकर, हम लोग वहाँ से बाइ रोड आए यहाँ पे, तमाम जगहों से गुज़रते हुए, जैसे पंचमरही, फिर रायपुर; रायपुर में जहाँ मेरी मुलाक़ात हुई डॉ. सेन से, अरुण कुमार जी, जिनके बेटे शेखर कल्याण आजकल अच्छा काम कर रहे हैं। और कलकत्ते में जैसा मैंने आपको बताया कि संगीत की बहुमुखी प्रतिभाओं से मेरा साक्षात हुआ है। वहाँ पे क्लासिकल का भी लोगों में उतना ही लगाव है और सुनने का, रात-रात भर कॉनफ़रेन्सेस होती थी, हम लोग सुना करते थे, हमारे वो मित्र राधेश्याम जी के भतीजे, महेन्द्र जी, रघुनाथ जी, हम सब जाया करते थे, टिकट लेके कॉनफ़रेन्सेस सुना करते थे, लेकिन वो बड़ा काम आया, क्योंकि देश के जो शीर्ष के जितने कलाकार हैं न, सब वहाँ होते थे।</span>" आगे की कहानी अगली कड़ी में।<br /><br />आज हम दादु के लिखे और संगीतबद्ध किए जिस गीत को सुनवाने के लिए लाये हैं, वह है आशा भोसले का गाया फ़िल्म 'कोतवाल साहब' का गीत "साथी रे, भूल न जाना मेरा प्यार"। १९७७ में बनी इस फ़िल्म में मुख्य कलाकार थे शत्रुघ्न सिन्हा और अपर्णा सेन। पवन कुमार निर्मित इस फ़िल्म को ऋषी दा नें, यानी ऋषीकेश मुखर्जी नें निर्देशित किया था। प्रस्तुत गीत बड़ा ही सुन्दर गीत है, जितने सुन्दर बोल दादु नें लिखे हैं, उतना ही सुरीला संगीत है इस गीत का, और आशा जी नें भी उतनी ही ख़ूबसूरती से इसे निभाया है। फ़िल्मांकन में इस गीत का पार्श्वगीत के रूप में इस्तमाल किया गया है। पता नहीं क्यों, पर इस गीत को सुनते हुए एक हौन्टिंग् सी फ़ील होती है। गीत का मूड तो ज़रा सा संजीदा है, पर यहाँ पर हम रवीन्द्र जैन जी से जुड़ा एक मज़ेदार किस्सा आपके साथ बाँटना चाहते हैं जिसे दादु नें ही उस साक्षात्कार में बताया था - "<span style="font-weight:bold;">एक बार मैं और मेरा एक दोस्त, हम लोग कटपुरा एक जगह है, वहाँ एक दिन बाहर खाने का बड़ा शौक हुआ, तो हमने एक टिन ली और गाने बजाने लगे और लोगों से पैसे इकट्ठा किए। जब मेरे पिताजी को यह बात पता चली तो बड़े नाराज़ हुए और बोले कि जाओ, जिन जिन से पैसे लिए थे, उनको लौटा के आओ। लेकिन यह कैसे हो सकता है, किससे कितने लिए यह मैं कैसे याद रखता! फिर मैंने सोचा कि इससे अच्छा है मन्दिर में जाके डाल देता हूँ। थोड़े से पैसों से हमने खा लिए थे जो हमको खाना था, लेकिन ऐसे ही बड़े मज़ेदार घटनाएँ हैं। बहुत बार प्रोग्राम में बुला लिया लोगों ने, और वहाँ से लौट रहे हैं बाजा हाथ में उठाए, ना रिक्शा के पैसे दिए ना....</span>"। तो दोस्तों, रवीन्द्र जी के इन मज़ेदार यादों के बाद आइए अब ज़रा सा मूड को बदलते हुए सुनें आशा जी की आवाज़ में "साथी रे, भूल न जाना मेरा प्यार"।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_795.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत - राजश्री की एक लो बजेट फिल्म से है ये गीत जिसके शीर्षक में "पिया" शब्द आता है और जिसे हेमलता ने गाया है</span> <br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_23.html">पिछले अंक</a> में <br />किशोर जी की आमद हुई बहुत दिनों बाद <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-28851438968782085622011-11-23T18:30:00.001+05:302011-11-23T18:30:03.701+05:30अकेला चल चला चल...मंजिल की पुकार सुनाता ये गीत दादु का रचा<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 794/2011/234</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'ओ</span>ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी साथियों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार और स्वागत है आप सभी का रवीन्द्र जैन के लिखे और स्वरबद्ध किए गीतों से सजी लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' की चौथी कड़ी में। आइए एक बार फिर रुख़ करते हैं विविध भारती के उसी साक्षात्कार की ओर जिसमें दादु बता रहे हैं अपने शुरुआती दिनों के बारे में। पिछली कड़ी में ज़िक्र आया था दादु के बड़े भाई डी. के. जैन का, जिनका रवीन्द्र जैन के जीवन में बड़ा महत्व है, आइए आज वहीं से बात को आगे बढ़ाते हैं। "<span style="font-weight:bold;">भाईसाहब साहित्य कर रहे थे उन दिनों, उन्होंने डी.लिट किया, जैन ऑथर्स ऑफ़ फ़्रेन्च पे काम कर रहे थे, तो किताबें रहती थी उनके रूम में ढेर सारी, तो मैं वहीं बैठा रहता था उनके पास, उनको कहता था कि थोड़ा ज़ोर-ज़ोर से पढ़ें ताकि मैं अपने अन्दर समेट सकूँ उन रचनाओं को, उस साहित्य को सहेज के रख सकूँ। आप जो भी आज सुनते हैं वो सारा वहीं से अनुप्रेरीत है। और अलीगढ़ में मेरे ज़्यादातर दोस्त मुस्लिम रहे, मेरे घर के पास ही मोहल्ला है, उपर कोर्ट, दिन वहीं गुज़रता था, मेरे बचपन की एक बान्धवी मेरे लिए ग़ज़लें इकट्ठा करती थीं, गुल्दस्ता, एक मैगज़िन आती थी 'शमा', उर्दू साहित्य की बहुत पॉपुलर मैगज़िन थी, उसमें से ग़ज़लें छाँट-छाँट के सुनाया करती थी मुझे। ख़ूबसूरत दिन थे, मैंने एक शेर कहा कि "आज कितने भी हसीन रंग में गुज़रे लेकिन कल जो गुज़रे थे वो ही लगते हैं बेहतर लम्हे"। तो ठीक है, दिनों के साथ साथ आदमी तरक्की भी करता है, शोहरत दौलत भी कमाता है लेकिन वो जो अतीत हम कहते हैं, माज़ी जिसको कहते हैं न, वो हमेशा ही हौन्ट करता है और पंडित जनार्दन से जब मैं सीखता था, तब मेरे एक और कन्टेम्पोररी दोस्त थे, हमारी एक फ़मिली थी अलीगढ़ में, हेमा जी मेरे साथ सीखा करती थीं, अब तो अमरीका में रह रही हैं, तो साथ में अभ्यास किया करते थे, फिर मेरी सिस्टर लक्ष्मी, मुन्नी जिसको हम बुलाते थे, उनका भी निधन हो गया है, और वो भी हमारे साथ साथ सुर अभ्यास करती थी।</span>"<br /><br />दोस्तों, अब तक आप दादु से उनके अलीगढ़ के दिनों का हाल जान रहे हैं, अगली कड़ी में आप जानेंगे उनके कलकत्ते के दिनों के बारे में और बम्बई में उनके पदार्पण के बारे में। फ़िल्हाल आज के गीत पर आया जाए! आज सुनिए १९७६ की फ़िल्म 'फ़कीरा' का शीर्षक गीत "सुन के तेरी पुकार, संग चलने को तेरे कोई हो न हो तैयार, हिम्मत न हार, चल चला चल अकेला चल चला चल, फ़कीरा चल चला चल"। इस गीत के दो संस्करण हैं, एक महेन्द्र कपूर का गाया हुआ और एक हेमलता की आवाज़ में। आज सुनिए महेन्द्र कपूर की आवाज़। दोस्तों, यह एक बड़ा ही प्रेरणादायक गीत रहा है, और जैसा कि आप जानते हैं कि रवीन्द्र जैन जी की भी आँखों की रोशनी नहीं थी और उन्होंने भी हिम्मत नहीं हारी और जो राह उन्होंने चुनी थी, उसी राह पे राही की तरह चलते चले गए और आज भी चल रहे हैं। जानते हैं इस बारे में और ख़ास कर इस गीत के बारे में दादु का क्या कहना है? "<span style="font-weight:bold;">मैं जानता हूँ कि दुनिया में हर आदमी किसी न किसी पहलु से विकलांग है, चाहे वो शरीर से हो, मानसिक रूप से हो, है न, या कोई अभाव जीवन में हो, है न! विकलांगता का मतलब यह नहीं कि टांग या हाथ की प्रॉबलेम है, कहीं न कहीं लोग मोहताज हैं, अपाहिज हैं, और उसी पर विजय प्राप्त करना होता है, उसी को ओवरकम करना होता है, वो एक चैलेंज हो जाता है आपके सामने, है न! तो उससे कभी निराश होने की ज़रूरत नहीं है, आज तो मेडिकल भी बहुत उन्नत हो गया है, और मैं समझता हूँ कि अब इस तरह की कोई बात रही नहीं है जैसा कि मैंने कहा कि 'डिज़अबिलिटी कैन बी योर अबिलिटी ऑल्सो', उससे आपकी क्षमता दुगुनी हो जाती है। "चल चला चल" गीत में भी यही बात है। टैगोर का एक गीत है "जोदी तोर डाक शुने केउ ना आशे, तॉबे ऐक्ला चॉलो रे" (अगर तुम्हारी पुकार सुन कर कोई न आए तो तुम अकेले ही चल पड़ो)। इसी से इन्स्पायर्ड होकर मैंने 'फ़कीरा' का वह गीत लिखा था। इसमें मुझे वह अंतरा पसंद है अपना लिखा हुआ कि "सूरज चंदा तारे जुगनु सबकी अपनी हस्ती है, जिसमें जितना नीर वो उतनी देर बरसती है, तेरी शक्ति अपार, तू तो लाया है गंगा धरती पे उतार, हिम्मत न हार, चल चलाचल"।</span>" तो दोस्तों, आइए अब इस गीत का आनन्द लिया जाए महेन्द्र कपूर की आवाज़ में, गीत-संगीत एक बार फिर रवीन्द्र जैन का।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_794.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत - आशा जी का गाया ये गीत है जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा फिल्म के नायक हैं</span> <br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_22.html">पिछले अंक</a> में <br /> <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-88997270667089132202011-11-22T18:30:00.001+05:302011-11-22T18:30:17.374+05:30तू जो मेरे सुर में सुर मिला दे...दादु के इस मनुहार को भला कौन इनकार कर पाये<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 793/2011/233</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">"तू</span> जो मेरे सुर में सुर मिला ले, संग गा ले, तो ज़िन्दगी हो जाये सफल"। यह बात किसी और के लिए सटीक हो न हो, रवीन्द्र जैन के लिए १००% सही है क्योंकि उनके सुरों में जिन जिन नवोदित गायक गायिकाओं नें सुर मिलाया, उन्हें प्रसिद्धि मिली, उन्हें यश प्राप्त हुआ, उनका करीयर चल पड़ा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार सुजॉय चटर्जी का और इन दिनों इस स्तंभ में जारी है लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' जिसमें आप सुन रहे हैं गीतकार-संगीतकार रवीन्द्र जैन की फ़िल्मी रचनाएँ और जान रहे हैं उनके जीवन की दास्तान उनकी ही ज़ुबानी विविध भारती की शृंखला 'उजाले उनकी यादों के' के सौजन्य से। कल की कड़ी में आपने जाना कि किस तरह से जन्म से ही उनकी आँखों की रोशनी जाती रही और इस कमी को ध्यान में रखते हुए उनके पिताजी नें उन्हें गीत-संगीत की तरफ़ प्रोत्साहित किया। अब आगे की कहानी दादु की ज़ुबानी - "<span style="font-weight:bold;">तो यहाँ अलीगढ़ में नाटकों में मास्टर जी. एल. जैन संगीत निर्देशन किया करते थे, आर्य-जैन समाज के, और उन्होंने सबसे पहले जो ग़ज़ल मुझे सिखाई थी, उसका ख़याल मुझे आ रही है, (गाते हुए) "लबों पे तबस्सुम निगाहों में बिजली, क़यामत कहीं से चली आ रही है..."। जी. एल. जैन, यानि घमण्डी लाल जी, घमण्ड कुछ नहीं था, सीधे सादे व्यक्तित्व के धनि थे। उसके बाद पंडित जनार्दन शर्मा, जिन्होंने स्वर का ज्ञान कराया। बड़ी मेहनत कराई उन्होंने, उनका अभ्यास कराने का एक ढंग था, वो ऐसे नहीं कहते थे कि इतनी बार इसको गाना है तुमको, एक 'मैच-बॉक्स' ले लिया, माचिस की तीलियाँ निकाल के रख ली, उन्होंने कहा कि इसमें से आप एक एक तीली निकाल के रखते जाइए और १०-१० बार उन सरगमों को गाइए, अब किसको गिनना है कि उसमें कितनी तीलियाँ हैं और उतनी बार गाना है, क़ैद नहीं थी समय की। ऐसे ही एक कटोरी ले ली चने की, उसमें से एक एक चना निकालिए और गाइए उसको, सरगम गाते रहिए। इस तरह पूरा दिन निकल जाता था, कब दिन निकल गया पता भी नहीं चला। उस समय मेरी उम्र थी पाँच साल। मुझे एक छोटा सा हारमोनियम दिया था खिलौने के जैसा, क्योंकि बड़ा हारमोनियम तो हैण्डल नहीं कर सकता था, हाथ ही नहीं जाता था वहाँ तक, तो छोटा हारमोनियम दिया गया था और फिर पंडित जनार्दन शर्मा नें रागों से परिचित कराया, स्वर-ज्ञान कराया, और एक छोटा सा कोर्स है प्रयाग संगीत समिति का, फ़ॉरमल एडुकेशन जिसे हम कहते हैं, अलीगढ़ के ही पंडित नथुराम शर्मा, उनके साथ बैठ के फिर उनके शिक्षण में संगीत प्रभाकर की डिग्री हासिल की, फिर गुरुदेव नें कहा कि तुम्हारी अलीगढ़ की जो सीखना है वह हो चुका है, अब देशाटन करो और इस बीच में बड़े भैया के साथ, डी.के. जैन जी के साथ, इनका बड़ा योगदान है मेरे करीयर में, मेरे साहित्यिक प्रकाश में, ख़ास तौर से उन्होंने बड़ा योगदान दिया, तो उनके साथ नागपुर आया और इत्तेफ़ाक़ की बात है कि नागपुर से बम्बई की दूरी एक रात की थी। और रांची फिर गया, रांची से कलकत्ते की दूरी एक रात की थी, तो मेरे कज़िन थे जो मुझे कलकत्ते ले गए और कलकत्ते से ही जो मेरा फ़िल्मी करीयर और गैर-फ़िल्मी रेकॉरडिंग्स शुरु हुई।</span>"<br /><br />'मेरे सुर में सुर मिला ले' में आज हमने जिस गीत को चुना है, वह गीत है रवीन्द्र जैन के करीयर का एक बेहद उल्लेखनीय पड़ाव 'चितचोर' का। इस फ़िल्म में केवल चार ही गीत थे, पर चारों ही एक से बढ़ कर एक। येसुदास के गाये दो एकल गीत "गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा" और "आज से पहले आज से ज़्यादा" तथा येसुदास और हेमलता के गाये दो युगल गीत "जब दीप जले आना" और "तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले", इनमें से कौन किससे बेहतर है कहना आसान नहीं। हमनें इस अन्तिम गीत को आज की कड़ी के लिए चुना है। 'चितचोर' बासु चटर्जी निर्देशित फ़िल्म थी जिसमें अमोल पालेकर और ज़रीना वहाब मुख्य कलाकार थे। 'सौदागर' और 'गीत गाता चल' ही की तरह 'चितचोर' भी राजश्री प्रोडक्शन्स की ही फ़िल्म थी। 'चितचोर' को बॉक्स ऑफ़िस पर कामयाबी मिली और उस वर्ष कई पुरस्कारों के लिए मनोनित हुई। इस फ़िल्म से अमोल पालेकर नें अपनी डॆब्यु सिल्वर जुबिली हैट्रिक पूरी की - 'रजनीगंधा' (१९७४), 'छोटी सी बात' (१९७५) और 'चितचोर' (१९७६)। "गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा" गीत के लिए येसुदास को राष्ट्रीय पुरस्कार और आज के प्रस्तुत गीत के लिए हेमलता को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। हेमलता इस गीत के बारे में बताते हैं - "<span style="font-weight:bold;">इस गीत की रेकॉर्डिंग् के दिन मैं स्टुडियो लेट पहुँची, किस कारण से लेट हुई थी, यह तो अब याद नहीं, बस लेट हो गई थी। वहाँ येसुदास जी आ चुके थे। गाने की रेकॉर्डिंग् के बाद दादु नें मुझसे कहा कि अगर तुम मेरे गुरु की बेटी नहीं होती तो वापस कर देता। यह सुन कर मैं इतना रोयी उस दिन। मुझे उन पर बहुत अभिमान हो गया, कि वो मुझे सिर्फ़ इसलिए गवाते हैं क्योंकि मैं उनके गुरु की बेटी हूँ? बर्मन दादा, कल्याणजी भाई, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल, ये सब भी तो मुझसे गवाते हैं, तो फिर उन्होंने ऐसा क्यों कह दिया? मुझे बहुत बुरा लगा और मैं दिन भर बैठ के रोयी। मैं दादु से जाकर यह कहा कि देर से आने के लिए अगर आप मुझे बाहर निकाल देते तो मुझे एक सबक मिलता, बुरा नहीं लगता पर आप ने ऐसा क्यों कहा कि अगर गुरु की बेटी न होती तो बाहर कर देता। तो उन्होंने मुझसे बड़े प्यार से कहा कि एक दिन ऐसा आएगा कि जब तुम्हारे लिए सारे म्युज़िक डिरेक्टर्स वेट करेंगे, तुम नहीं आओगी तो रेकॉर्डिंग् ही नहीं होगी।</span>" 'चितचोर' फ़िल्म की कई रीमेक भी बनी है। ॠतीक रोशन, करीना कपूर, अभिषेक बच्चन अभिनीत 'मैं प्रेम की दीवानी हूँ' के अलावा १९९० में मलयालम में 'मिन्दाप्पुचयक्कू कल्याणम्', तेलुगू में 'अम्मयी मनासू' और बंगला में 'शेदिन चैत्र मास' जैसी फ़िल्में इसी कहानी पर आधारित थीं। तो आइए रवीन्द्र जैन के सुरों में हम भी सुर मिलाते हैं और सुनते हैं यह अवार्ड-विनिंग् गीत जो आधारित है राग पीलू पर।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_793.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत - आवाज़ है महेंद्र कपूर की, गीत मूल रूप से एक प्रेरणादायक कविता से प्रेरित है</span> <br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_21.html">पिछले अंक</a> में <br /> <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-34328726208003873922011-11-21T18:30:00.002+05:302011-11-21T19:32:21.886+05:30श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम....दादु का ये गीत कितना सकून भरा है<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 792/2011/232</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">गी</span>तकार-संगीतकार-गायक रवीन्द्र जैन पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' की दूसरी कड़ी में आप सभी का फिर एक बार हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, जैसा कि कल हमने कहा था कि रवीन्द्र जैन की दास्तान शुरु से हम आपको बताएंगे, तो आज की कड़ी में पढ़िए उनके जीवन के शुरुआती दिनों का हाल दादु के ही शब्दों में (सौजन्य: उजाले उनकी यादों के, विविध भारती)। जब दादु से यह पूछा गया कि वो अपने बचपन के दिनों के बारे में बताएँ, तो उनका जवाब था - "<span style="font-weight:bold;">बचपन तो अभी गया नहीं है, क्योंकि जहाँ तक ज्ञान का सम्बंध है, आदमी हमेशा बच्चा ही रहता है, यह मैं मानता हूँ। उम्र में भले ही हमने बचपन खो दिया हो, लेकिन ज्ञान में अभी बच्चे हैं। तो अलीगढ़ में थे मेरे माता-पिता, अलीगढ़ से ही जन्म मुझको मिला, अलीगढ़ में ही हो गया था शुरु ये गीत और संगीत का सिलसिला। डॉ. मोहनलाल, जो मेरे पिताश्री के कन्टेम्पोररी थे, मेरे पिताजी का नाम पंडित इन्द्रमणि ज्ञान प्रसाद जी, तो मोहनलाल जी नें जन्म के दिन ही आँखों का छोटा सा एक ऑपरेशन किया, उन्होंने आँखें खोली, क्योंकि बन्द थी आँखें, आँखें बन्द होने का वरदान मुझे जन्म से मिला है। क्योंकि यह मैं मानता हूँ कि आँखें इन्सान को भटका देते हैं क्योंकि आँखें जो हैं न, इन्सान का ध्यान यहाँ-वहाँ लगा देता है, तो कन्सेन्ट्रेशन के लिए वैसे भी हम आँखें बन्द कर लेते हैं। तो डॉ. मोहनलाल नें ऑपरेट किया आँखों को, अलीगढ़ के बड़े नामी डॉक्टर थे, और उन्होंने कहा कि इस बच्चे की आँखों में रोशनी धीरे-धीरे आ सकती है और आयेगी लेकिन पढ़ना मुनासिब नहीं रहेगा उतना क्योंकि उससे जितना देख पाएगा उसका नुकसान होगा। तो ऐसे में मेरे पिताजी, उनकी दूरदर्शिता को मैं सराहता हूँ कि देखिए उन्होंने क्या मेरे लिए निर्णय लिया, कि संगीत ही मेरे जीवन का लक्ष्य होगा और संगीत में ही मेरी पहचान बनेगी।</span>"<br /><br />दोस्तों, रवीन्द्र जैन जी की सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने अपनी आँखों की रोशनी के न होने की वजह से जीवन से हार नहीं मान लिया, बल्कि अपनी इस विकलांगता पर विजय प्राप्त कर न केवल अपनी ज़िन्दगी को संवारा, बल्कि दूसरे नेत्रहीन लोगों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनें। और अब आते हैं आज के गीत पर। धार्मिक और पौराणिक फ़िल्मों के संगीतकारों की बात करें तो ४०, ५० और ६० के दशकों में जो नाम सुनाई देते थे, वो थे शंकरराव व्यास, चित्रगुप्त, एस. एन. त्रिपाठी, अविनाश व्यास प्रमुख। और ७०-८० के दशकों में अगर इस जौनर की बात करें तो शायद रवीन्द्र जैन का नाम सर्वोपरी रहेगा। दादु के संगीत से सजी जो धार्मिक फ़िल्में आईं, वो हैं 'सोलह शुक्रवार', 'हर हर गंगे', 'गंगा सागर', 'गोपाल कृष्ण', 'राधा और सीता', 'दुर्गा माँ', 'जय देवी सर्वभूतेषु', 'शनिव्रत महिमा', 'जय शकुम्भरी माँ' आदि। और कई फ़िल्मे ऐसी भी रहीं जो धार्मिक या पौराणिक विषयों की तो नहीं थीं, पर उनमें भी रवीन्द्र जैन नें भक्ति रस के कई सुमधुर गीत रचे। उदाहरण स्वरूप फ़िल्म 'लड़के बाप से बढ़के' में हेमलता की आवाज़ में "रक्षा करो भवानी माता" काफ़ी लोकप्रिय हुआ था। लेकिन इस तरह की ग़ैर-भक्ति रस की फ़िल्मों में भक्ति रस पर आधारित जो गीत सर्वाधिक सफल हुआ, वह था १९७५ की फ़िल्म 'गीत गाता चल' का "श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम, लोग करे मीरा को यूंही बदनाम"। जसपाल सिंह और आरति मुखर्जी की गाई यह भक्ति रचना इतनी कामयाब हुई कि हर धार्मिक पर्व पर मन्दिरों में यह गीत गूंजती हुई सुनाई देती है। गीत के बोल भी दादु नें ऐसे लिखे हैं कि सुन कर ही जैसे मन पवित्र हो जाता है। कभी कभी तो आश्चर्य होता है कि क्या इसे दादु नें ही लिखा है या फिर कोई पारम्परिक रचना है। दरअसल यह दादु के पौराणिक विषयों के अगाध ज्ञान का नतीजा है। आइए आनद ली जाये इस कालजयी भक्ति रचना की फ़िल्म 'गीत गाता चल' से।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_792.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत - इन युगल स्वरों में दो गीत हैं फिल्म में एक के मुखड़े में शब्द है "शाम", गायक गायिका का नाम बताएं </span> <br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_5796.html">पिछले अंक</a> में <br /> <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-84874712528202630262011-11-20T18:30:00.006+05:302011-11-21T19:30:37.581+05:30हर हसीं चीज़ का मैं तलबगार हूँ...कहता हुआ आया वो सुरों का सौदागर<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 791/2011/231</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'ओ</span>ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी रसिक श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, ७० के दशक के मध्य भाग से फ़िल्म-संगीत में व्यवसायिक्ता सर चढ़ कर बोलने लग पड़ी थी। धुनों में मिठास कम और शोर-शराबा ज़्यादा होने लगा। गीतों के बोल भी अर्थपूर्ण कम और चलताऊ क़िस्म के होने लगे थे। गीतकार और संगीतकार को न चाहते हुए भी कई बंधनों में बंध कर काम करने पड़ते थे। लेकिन तमाम पाबन्दियों के बावजूद कुछ कलाकार ऐसे भी हुए जिन्होंने कभी हालात के दबाव में आकर अपने उसूलों और कला के साथ समझौता नहीं किया। भले इन कलाकारों नें फ़िल्में रिजेक्ट कर दीं, पर अपनी कला का सौदा नहीं किया। ७० के दशक के मध्य भाग में एक ऐसे ही सुर-साधक का फ़िल्म जगत में आगमन हुआ था जो न केवल एक उत्कृष्ट संगीतकार हुए, बल्कि एक बहुत अच्छे काव्यात्मक गीतकार और एक सुरीले गायक भी हैं। यही नहीं, यह लाजवाब कलाकार पौराणिक विषयों के बहुत अच्छे ज्ञाता भी हैं। फ़िल्म-संगीत के गिरते स्तर के दौर में अपनी रुचिकर रचनाओं से इसके स्तर को ऊँचा बनाये रखने में उल्लेखनीय योगदान देने वाले इस श्रद्धेय कलाकार को हम सब जानते हैं रवीन्द्र जैन के नाम से। प्यार से फ़िल्म-इंडस्ट्री के लोग उन्हें दादु कह कर बुलाते हैं। आइए आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में शुरु करते हैं दादु पर केन्द्रित लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले'। यूं तो रवीन्द्र जैन नें बहुत से ऐसे फ़िल्मों में भी संगीत दिया है जिनके गीत किसी और गीतकार नें लिखे हैं, पर इस शृंखला में हम कुछ ऐसे गीतों को चुना है जिन्हें रवीन्द्र जैन नें लिखे और स्वरबद्ध किए हैं। <br /><br />'मेरे सुर में सुर मिला ले' शृंखला की पहली कड़ी के लिए हमने उस फ़िल्म का एक गीत चुना है जिसमें रवीन्द्र जैन को अपनी पहली कामयाबी हासिल हुई थी। १९७३ की अमिताभ बच्चन, नूतन और पद्मा खन्ना अभिनीत यह फ़िल्म थी 'सौदागर', जो बंगाल के ग्रामीण पार्श्व पर आधारित थी और खजूर के रस से गुड़ बनाने की प्रक्रिया के इर्द-गिर्द घूमती कहानी थी। रवीन्द्र जैन का फ़िल्म जगत में किस तरह से आगमन हुआ इसके बारे में तफ़सील से हम आनेवाली कड़ियों में बताएंगे, आज बस 'सौदागर' फ़िल्म के बारे में जानिए दादु से ही। "<strong>जब हम बॉम्बे फ़ाइनली आ गए, तो फिर हरिभाई (संजीव कुमार) ही यहाँ मेरे आत्मीय या दोस्त थे, और हम बॉम्बे १९७० में आ गए, और यहाँ जो पहली नशिष्ट हुई रात को, उसी रात को मुरली हरि बजाज, राधेश्यामजी के दोस्त थे, उनके बेटे का जन्मदिन था, जहाँ मैंने गाना गाया और ख़ूब गाने गाए, और वहाँ रामजी मन्हर, हास्य कवि हमारे, तो उन्होंने सुना और उन्होंने कई लोगों से मीटिंग्स कराई। उन्होंने काफ़ी सहयोग दिया, 'राजश्री प्रोडक्शन्स' वालों से उन्होंने ही मिलाया, सागर साहब से मिलाया और बहुत दिनों तक प्रोग्राम्स उनके लिए करता रहा जब तक काम नहीं था मेरे पास। इस तरह मदद की उन्होंने। 'सौदागर' में जब, एक बार दुर्गा पूजा की छुट्टियों में १० दिन के लिए आया था जब, तो राजश्री वालों से मुलाक़ात हुई थी, इन्होंने कहा था कि 'तुम्हारे लायक जब भी कोई सब्जेक्ट होगा तो ज़रूर बुलाएंगे और हम काम करेंगे साथ में'। और ताराचन्द जी उस समय हयात थे, वो ही प्रोडक्शन्स सारा देख भाल करते थे और धुनें सिलेक्ट करना, गानें सिलेक्ट करना, 'सौदागर' से उनके साथ यह सिलसिला शुरु हुआ, 'राजश्री प्रोडक्शन्स' के साथ काम करने का। 'सौदागर' के सभी गानें बेहद मक़बूल हुए। यह एक शॉर्ट स्टोरी थी नरेन्द्रनाथ मित्र की लिखी हुई, जिसका शीर्षक था 'रस', बंगला कहानी थी, और गुड़ बनाने वाले की कहानी, खजूर के रस से गुड़ बनाना। तो बंगाल तो मेरे लिए मतलब, मेरा मनचाहा सब्जेक्ट मिल गया। तो मेरे गानें उस फ़िल्म में, मुझे रिकग्निशन सौदागर से मिला।</strong>" (सौजन्य: उजाले उनकी यादों के, विविध भारती)। तो लीजिए सुनते हैं फ़िल्म 'सौदागर' का यह गीत किशोर कुमार की आवाज़ में। <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_791_800/OIG_791.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">पहचानें अगला गीत - आरती मुखर्जी और एक पुरुष गायक की युगल आवाज़ में ये एक भक्ति गीत है जिसके मुखड़े में शब्द है - "बदनाम" </span> <br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_17.html">पिछले अंक</a> में <br />हा हा हा....खूब कहा कृष्ण मोहन जी <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://www.indianetzone.com/photos_gallery/18/Ravindra-Jain_9947.jpg" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-58550932559372686642011-11-20T09:15:00.001+05:302011-11-20T09:15:00.832+05:30‘सिया रानी के जाये दुई ललनवा, विपिन कुटिया में...’ सोहर से होता है नवागन्तुक का स्वागत<div><span style="font-weight:bold;">सुर संगम- 44 – संस्कार गीतों में अन्तरंग पारिवारिक सम्बन्धों की सोंधी सुगन्ध </span></div><div><br /><strong>संस्कार गीतों की नयी श्रृंखला - पहला भाग </strong><br /><br />‘सुर संगम’ स्तम्भ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः उपस्थित हूँ। पिछले अंकों में आपने शास्त्रीय गायन और वादन की प्रस्तुतियों का रसास्वादन किया था, आज बारी है, लोक संगीत की। आज के अंक से हम आरम्भ कर रहे हैं, लोकगीतों के अन्तर्गत आने वाले संस्कार गीतों का सिलसिला।<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/3/36/Indian_village_musicians.jpg/220px-Indian_village_musicians.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 220px; height: 166px;" src="http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/3/36/Indian_village_musicians.jpg/220px-Indian_village_musicians.jpg" border="0" alt="" /></a><br />किसी देश के लोकगीत उस देश के जनमानस के हृदय की अभिव्यक्ति होते हैं। वे उनकी हार्दिक भावनाओं के सच्चे प्रतीक हैं। प्रकृतिक परिवेश में रहने वाला मानव अपने आसपास के वातावरण और संवेदनाओं से जुड़ता है तो नैसर्गिक रूप से उनकी अभिव्यक्ति के लिए एकमात्र साधन है, लोकगीत अथवा ग्राम्यगीत। भारतीय उपमहाद्वीप के निवासियों का जीवन आदिकाल से ही संगीतमय रहा है। वैदिक ऋचाओं को भी तीन स्वरों में गान की प्राचीन परम्परा चली आ रही है। भारतीय परम्परा के अनुसार प्रचलित लोकगीतों को हम चार वर्गों में बाँटते हैं। प्रत्येक उत्सव, पर्व और त्योहारों पर गाये जाने वाले गीतों को हम ‘मंगल गीत’ की श्रेणी में, तथा घरेलू और कृषि कार्यों के दौरान श्रम को भुलाने के लिए गाने वाले गीतों को ‘श्रम गीत’ के नाम से पुकारा जाता है। तीसरी श्रेणी के गीतों को ‘ऋतु गीत’ कहा जाता है, जिसके अन्तर्गत चैती, कजरी, सावनी आदि का गायन होता है। लोकगीतों की चौथी श्रेणी है- ‘संस्कार गीत’ की, जिसका गायन मानव जीवन से जुड़े १६ संस्कार के अवसरों पर किया जाता है।<br /> <br />आज से हम ‘सुर संगम’ के आगामी अंकों में संस्कार गीतों पर आपसे चर्चा करेंगे। भारतीय समाज में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के जीवन को १६ संस्कारों में बाँटा जाता है। भारत के गैर हिन्दू समुदाय में भी इन अवसरों पर थोड़े नाम परिवर्तन और भिन्न रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। १६ संस्कारों में से आज हम ‘जातकर्म संस्कार’ अर्थात पुत्र-जन्म के अवसर पर मनाए जाने वाले उत्सव और इस अवसर पर गाये जाने वाले गीतों की चर्चा करेंगे। इस विधा के गीतों में सन्तान के जन्म का उल्लास होता है, नवगन्तुक शिशु के प्रति मंगल-कामनाएँ प्रकट की जाती है और शिशु की माता को बधाई दी जाती है। शिशु जन्मोत्सव के गीतों का चलन देश के हर प्रान्त और हर क्षेत्र में है। भाषा में आंचलिक परिवर्तन के होते हुए भी गीतों का मूलभाव सर्वत्र एक ही रहता है। समूचे उत्तर भारत में इस प्रकार के गीत को ‘सोहर’ के नाम से जाना जाता है। सोहर-गायन की कई धुने प्रचलित हैं। एक सर्वाधिक लोकप्रिय धुन में बँधे सोहर से हम आज शुरुआत करते हैं। जाने-माने शास्त्रीय गायक पण्डित छन्नूलाल मिश्र इस पारम्परिक सोहर में प्रयुक्त स्वरों के माध्यम से सामवेद की ऋचाओं के स्वरों की व्याख्या और तुलना कर रहे हैं। लीजिए पहले आप सुनिए यह सोहर-<br /><br /><span style="font-weight:bold;">भोजपुरी सोहर : ‘मोरे पिछवरवा चन्दन गाछ....’ : स्वर – पण्डित छन्नूलाल मिश्र</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sssihorepart01/sssohar01.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />‘जातकर्म संस्कार’ पुत्र-जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। परन्तु १६ संस्कारों की सूची में यह चौथे क्रमांक पर है। जातकर्म से पूर्व के तीन संस्कार और मनाए जाते हैं, जिन्हें गर्भाधान, पुंसवन और सीमान्त संस्कार कहते हैं। इन अवसरों पर प्रस्तुत किए जाने वाले गीतों में गर्भस्थ शिशु और माँ के स्वास्थ्य की कामना की जाती है। अवध क्षेत्र में इन गीतों को ‘सरिया’ कहा जाता है। सरिया गीतों में प्रायः ननद-भाभी के बीच रोचक और कटाक्षपूर्ण वार्तालाप भी उपस्थित रहता है। सोहर गीतों के वर्ण्य विषयों में पर्याप्त विविधता होती है। इन गीतों में कहीं सास और ननद पर कटाक्ष होता है तो ससुर से धन-धान्य का मुक्त-हस्त दान का अनुरोध होता है। नवजात शिशु के स्वस्थ रहने, बुद्धिमान बनने और भावी जीवन में सफलता पाने की कामना भी इन गीतों में की जाती है। ब्रज, बुन्देलखण्ड, अवध और भोजपुर क्षेत्र के सोहर गीतों में राम और कृष्ण के जन्म के प्रसंग सहज और सरल लौकिक रूप में चित्रण अनिवार्य रूप से मिलता है। कुछ सोहर गीतों में बाल्मीकि आश्रम में सीता के पुत्रों- लव और कुश के जन्म का प्रसंग भी वर्णित होता है। आइए, अब हम आपको एक ऐसा ही सोहर सुनवाते हैं, जिसमे लव-कुश के जन्म का प्रसंग है। यह सोहर गीत पारम्परिक नहीं है। इसकी रचना और गायन लखनऊ के भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त प्रोफेसर तथा शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक संगीत की विदुषी कमला श्रीवास्तव ने किया है। आइए सुनते हैं, यह मनमोहक अवधी सोहर गीत-<br /><br /><span style="font-weight:bold;">अवधी सोहर : ‘सिया रानी के जाये दुई ललनवाँ...’ : स्वर – विदुषी कमला श्रीवास्तव</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sssihorepart01/sssihore03.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /> <br />सोहर गीतों का वर्ण्य विषय कुछ भी हो, कोई भी भाषा हो अथवा किसी भी क्षेत्र की हो, नवजात शिशु के स्वागत और उसके भावी सुखमय जीवन की कामना तथा उल्लास का भाव हर गीत में मौजूद होता है। एक भोजपुरी सोहर की एक पंक्ति है- ‘सासु लुटावेली रुपैया, त ननदी मोहरवा रे....’, जिसका भाव यह है कि शिशु के आगमन से हर्षित सास रूपये का और ननद सोने की मोहरों का दान करतीं हैं। सोहर का ही एक प्रकार होता है- ‘मनरजना’, जिसे प्रसव से ठीक पहले गाया जाता है। नाम से ही सहज अनुमान हो जाता है इन गीतों का उद्देश्य परिवार के सदस्यों का मनोरंजन करना होता है। मनरजना गीतों का एक उद्देश्य यह भी होता है कि गर्भवती के कष्ट को कम किया जा सके। ऐसी ही एक अवधी मनरजना गीत की एक पंक्ति देखें- ‘ननदी जो तोरे हुईहैं भतीजवा, तोहे देहों गले की तिलरी...’। इस गीत में वर्णित ‘तिलरी’ का अर्थ है, तीन लड़ियों वाला गले का आभूषण। अब हम आपको अवध क्षेत्र का एक लोकप्रिय सोहर गीत सुनवाते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस सोहर की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने किया था। इस सोहर गीत को स्वर दिया है, सुपरिचित गायिका इन्दिरा श्रीवास्तव ने।<br /><br /><span style="font-weight:bold;">अवधी सोहर : ‘चैतहि के तिथि नौमी त नौबत बाजै हो...’ : स्वर – विदुषी इन्दिरा श्रीवास्तव</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sssihorepart01/sssihore02.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /> <br />और अब बारी है इस कड़ी की पहेली की जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अन्दर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।<br /><br />सुर संगम 45 की पहेली : एक भोजपुरी फिल्म में सोहर गीत शामिल किया गया था। इस ऑडियो क्लिप को सुन कर गीत की गायिका को पहचानिए। गायिका के नाम की सही पहचान करने पर आपको मिलेंगे 5 अंक।<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sssihorepart01/sssihorpaheli01.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_13.html">पिछ्ली पहेली</a> का परिणाम : सुर संगम के 44 वें अंक में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर है- सोहर, और पहेली का सही उत्तर दिया है- क्षिति जी ने, जिन्हें मिलते हैं 5 अंक, बधाई। <br /><br />अब समय आ चला है आज के 'सुर-संगम' के अंक को यहीं पर विराम देने का। परन्तु सोहर गीतों पर यह चर्चा हम ‘सुर संगम’ के अगले अंक में भी जारी रखेंगे। अगले रविवार को हम पुनः उपस्थित होंगे। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई होगी। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तम्भ को और रोचक बना सकते हैं। आप अपने विचार और सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। शाम ६-३० बजे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!<br /><br /></div><div>खोज व आलेख -<a href="http://vahak.hindyugm.com/2011/04/blog-post.html"> कृष्णमोहन मिश्र</a></div><div><br /></div><div><hr /></div><div><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/?cx=partner-pub-9993819084412964:kw52fxuglx0&cof=FORID:11&ie=UTF-8&q=sur+sangam&sa=%E0%A4%87%E0%A4%B8+%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9F+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%82&siteurl=podcast.hindyugm.com/"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiujumNxPtyDKPOhvxIB-53f2BHklyxfqOg4T5kXg_lepylRkX7-68f5GuhTtJ3i3ZYT1uHL-rVJnHA9Ppen5gi-zUTCwGPgTsh1Y1F-fO9i9i0rXFPM2r-ltcK1GxZEmXKiRJuSrW-fF1W/s740/legend.jpg" /></a>आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.</div><blockquote></blockquote></div>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-28714414292467949352011-11-19T17:00:00.001+05:302011-11-19T17:00:01.864+05:30"बुझ गई है राह से छाँव" - डॉ. भूपेन हज़ारिका को 'आवाज़' की श्रद्धांजलि (भाग-२)<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 68</span><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_12.html">भाग ०१</a> <br /><br />'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! 'शनिवार विशेषांक' मे पिछले हफ़्ते हमने श्रद्धांजलि अर्पित की स्वर्गीय डॉ. भूपेन हज़ारिका को। उनके जीवन सफ़र की कहानी बयान करते हुए हम आ पहुँचे थे सन् १९७४ में जब भूपेन दा नें अपनी पहली हिन्दी फ़िल्म 'आरोप' में संगीत दिया था। आइए उनकी दास्तान को आगे बढ़ाया जाये आज के इस अंक में। दो अंकों वाली इस लघु शृंखला 'बुझ गई है राह से छाँव' की यह है दूसरी व अन्तिम कड़ी। <br /><br />भूपेन हज़ारिका नें असमीया और बंगला में बहुत से ग़ैर फ़िल्मी गीत तो गाये ही, असमीया और हिन्दी फ़िल्मों में भी उनका योगदान उल्लेखनीय रहा। १९७५ की असमीया फ़िल्म 'चमेली मेमसाब' के संगीत के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। आपको याद होगा उषा मंगेशकर पर केन्द्रित असमीया गीतों के 'शनिवार विशेषांक' में हमने इस फ़िल्म का एक गीत आपको सुनवाया था। १९७६ में भूपेन दा नें अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा निर्मित हिन्दी फ़िल्म 'मेरा धरम मेरी माँ' को निर्देशित किया और इसमें संगीत देते हुए अरुणाचल के लोक-संगीत को फ़िल्मी धारा में ले आए। मैं माफ़ी चाहूंगा दोस्तों कि 'पुरवाई' शृंखला में हमने अरुणाचल के संगीत से सजी इस फ़िल्म का कोई भी सुनवा न सके। पर आज मैं आपके लिए इस दुर्लभ फ़िल्म का एक गीत ढूंढ लाया हूँ, आइए सुना जाए.... <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - अरुणाचल हमारा (मेरा धरम मेरी माँ)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_68/OIG_SS_68_01.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />१९८५ में कल्पना लाजमी की फ़िल्म 'एक पल', जो असम की पृष्ठभूमि पर निर्मित फ़िल्म थी, में भूपेन दा का संगीत बहुत पसन्द किया गया। पंकज राग के शब्दों में 'एक पल' में भूपेन हज़ारिका ने आसामी लोकसंगीत और भावसंगीत का बहुत ही लावण्यमय उपयोग "फूले दाना दाना" (भूपेन, भूपेन्द्र, नितिन मुकेश), बिदाई गीत "ज़रा धीरे ज़रा धीमे" (उषा, हेमंती, भूपेन्द्र, भूपेन) जैसे गीतों में किया। "जाने क्या है जी डरता है" तो लता के स्वर में चाय बागानों के ख़ूबसूरत वातावरण में तैरती एक सुन्दर कविता ही लगती है। "मैं तो संग जाऊँ बनवास" (लता, भूपेन), "आने वाली है बहार सूने चमन में" (आशा, भूपेन्द्र) और "चुपके-चुपके हम पलकों में कितनी सदियों से रहते हैं" (लता) जैसे गीतों में बहुत हल्के और मीठे ऑरकेस्ट्रेशन के बीच धुन का उपयोग भावनाओं को उभारने के लिए बड़े सशक्त तरीके से किया गया है। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - चुपके-चुपके हम पलकों में कितनी सदियों से रहते हैं (एक पल)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_68/OIG_SS_68_02.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />१९९७ में भूपेन हज़ारिका के संगीत से सजी लेख टंडन की फ़िल्म आई 'मिल गई मंज़िल मुझे' जिसमें उन्होंने एक बार फिर असमीया संगीत का प्रयोग किया और फ़िल्म के तमाम गीत आशा, सूदेश भोसले, उदित नारायण, कविता कृष्णमूर्ति जैसे गायकों से गवाये। कल्पना लाजमी के अगली फ़िल्मों में भी भूपेन दा का ही संगीत था। १९९४ में 'रुदाली' के बाद १९९७ में 'दरमियान' में उन्होंने संगीत दिया।<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://onionlive.com/wp-content/uploads/2011/11/bhupan1.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 280px; height: 180px;" src="http://onionlive.com/wp-content/uploads/2011/11/bhupan1.jpg" border="0" alt="" /></a> इस फ़िल्म में आशा और उदित का गाया डुएट "पिघलता हुआ ये समा" तो बहुत लोकप्रिय हुआ था। १९९६ की फ़िल्म 'साज़' में बस एक ही गीत उन्होंने कम्पोज़ किया। २००० में 'दमन' और २००२ में 'गजगामिनी' में भूपेन हज़ारिका का ही संगीत था। पुरस्कारों की बात करें तो पद्मश्री (१९७७), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, राष्ट्रीय नागरिक सम्मान, असम का सर्वोच्च शंकरदेव पुरस्कार जैसे न जाने कितने और पुरस्कारों से सम्मानित भूपेन दा को १९९३ में दादा साहब फालके पुरस्कार से भी नवाज़ा जा चुका है। लेकिन इन सब पुरस्कारों से भी बड़ा जो पुरस्कार भूपेन दा को मिला, वह है लोगों का प्यार। यह लोगों का उनके प्रति प्यार ही तो है कि उनके जाने के बाद जब पिछले मंगलवार को उनकी अन्तेष्टि होनी थी, तो ऐसा जनसैलाब उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करने उस क्षेत्र में उमड़ा कि असम सरकार को अन्तेष्टि क्रिया उस दिन के रद्द करनी पड़ी। अगले दिन बहुत सुबह सुबह २१ तोपों की सलामी के साथ गुवाहाटी में लाखों की तादाद में उपस्थित जनता नें उन्हें अश्रूपूर्ण विदाई दी। भूपेन दा चले गए। भूपेन दा से पहली जगजीत सिंह भी चले गए। इस तरह से फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के कलाकार हम से एक एक कर बिछड़ते चले जा रहे हैं। ऐसे में तो बस यही ख़याल आता है कि काश यह समय धीरे धीरे चलता। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - समय ओ धीरे चलो (रुदाली)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_68/OIG_SS_68_03.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />'आवाज़' परिवार की तरफ़ से यह थी स्वर्गीय डॉ. भूपेन हज़ारिका की सुरीली स्मृति को श्रद्धा-सुमन और नमन। भूपेन जैसे कलाकार जा कर भी नहीं जाते। वो तो अपनी कला के ज़रिए यहीं रहते हैं, हमारे आसपास। आज अनुमति दीजिए, फिर मुलाकात होगी अगर ख़ुदा लाया तो, नमस्कार! <br /><br /><span style="font-weight:bold;">चित्र परिचय - भुपेन हजारिका को अंतिम विदाई देने को उमड़ा जनसमूह</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-40490724195675529022011-11-18T06:58:00.001+05:302011-11-18T06:58:47.572+05:30सुनो कहानी - ढपोलशंख मास्टर हो गए - हरिशंकर परसाई<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने <a href="http://pittpat.blogspot.com/" target="_blank">अनुराग शर्मा</a> की आवाज़ में उभरते लेखक <a href="http://www.blogger.com/profile/12513762898738044716">अभिषेक ओझा</a> की कहानी "<a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/ghoos-de-doon-kya-by-abhishek-ojha.html">घूस दे दूँ क्या?</a>" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य "<strong>ढपोलशंख मास्टर हो गए</strong>", जिसको स्वर दिया है <a href="http://www.smartindian.com/anurag.html" target="_blank">अनुराग शर्मा</a> ने।<br />
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कहानी का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 58 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।<br />
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यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया <a href="http://podcast.hindyugm.com/2008/08/to-be-part-of-literary-hindi-audio-book.html">यहाँ</a> देखें।<br />
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<table><tbody>
<tr><td><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_HFCDLB5avjZv7StRCvQgZuyoir_ivSessFBrkSK5j-0LAnDfz9k8OlaseC8QVz6xoSrcfiRq1FZl7VseG7cpGwES0NW50L-vHir_u6lPhxDhIvJ6ZimSu0xfqLn7VpS-A7fd0WiOcNw/s1600-h/Harishankar-Parsai.gif"><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5385635238830818322" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_HFCDLB5avjZv7StRCvQgZuyoir_ivSessFBrkSK5j-0LAnDfz9k8OlaseC8QVz6xoSrcfiRq1FZl7VseG7cpGwES0NW50L-vHir_u6lPhxDhIvJ6ZimSu0xfqLn7VpS-A7fd0WiOcNw/s320/Harishankar-Parsai.gif" style="cursor: hand; cursor: pointer; height: 318px; width: 220px;" /></a></div></td><td><br />
मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । <br />
~ <strong>हरिशंकर परसाई (1922-1995)</strong><br />
<hr /><strong>हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी</strong><br />
<hr />तुलसीदास की पत्नी रत्नावली कौन-कौन से आभूषण पहनती थी?<br />
(<strong>हरिशंकर परसाई की "ढपोलशंख मास्टर हो गए" से एक अंश</strong>) </td></tr>
</tbody></table><br />
<hr />नीचे के प्लेयर से सुनें.<br />
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)<br />
<script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js">
</script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/DhapolshankhMaster/HP-dhapolshankh.master.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br />
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यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:<br />
<a href="http://www.archive.org/download/DhapolshankhMaster/HP-dhapolshankh.master.mp3">VBR MP3</a><br />
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<strong>#153rd Story, Gate: Harishankar Parsai/Hindi Audio Book/2011/34. Voice: Anurag Sharma</strong></div>Smart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-87242276594596061432011-11-17T18:30:00.002+05:302011-11-17T18:30:15.067+05:30काहे मेरे राजा तुझे निन्दिया न आए...शृंखला की अंतिम लोरी कुमार सानु की आवाज़ में<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 790/2011/230</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'ओ</span>ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज इस स्तंभ में प्रस्तुत है लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' का अन्तिम अंक। अब तक इस शृंखला में आपने जिन गायकों की गाई लोरियाँ सुनी, वो थे चितलकर, तलत महमूद, हेमन्त कुमार, मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार, येसुदास और तलत अज़ीज़। आज इस शृंखला का समापन हम करने जा रहे हैं गायक कुमार सानू की आवाज़ से, और साथ मे हैं अनुराधा पौडवाल। १९९१ की फ़िल्म 'जान की कसम' की यह लोरी है "सो जा चुप हो जा...काहे मेरे राजा तुझे निन्दिया न आए, डैडी तेरा जागे तुझे लोरियाँ सुनाये"। जावेद रियाज़ निर्मित व सुशील मलिक निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे कृष्णा, साथी गांगुली, सुरेश ओबेरोय प्रमुख। फ़िल्म में संगीत था नदीम श्रवण का और गीत लिखे समीर नें। दोस्तों, यह वह दौर था कि जब टी-सीरीज़, नदीम श्रवण, समीर, अनुराधा पौडवाल की टीम पूरी तरह से फ़िल्म-संगीत के मैदान में छायी हुई थी, और एक के बाद एक म्युज़िकल फ़िल्में बनती चली जा रही थीं। गुलशन कुमार की हत्या के बाद ही जाकर यह दौर ख़त्म हुई और अलका याज्ञ्निक अनुराधा पौडवाल से आगे निकल गईं। उस दौर की कई फ़िल्में तो ऐसी थीं कि फ़िल्म ज़्यादा नहीं चली, पर उनके गानें चारों तरफ़ गूंजे और ख़ूब गूंजे। 'जान की कसम' भी एक ऐसी ही फ़िल्म थी जिसके गीत ख़ूब चर्चित हुए जैसे कि "जो हम न मिलेंगे तो गुल न खिलेंगे", "I just called you to say I love you", "चम चम चमके चाँदनी चौबारे पे" और "बरसात हो रही है, बरसात होने दे", तथा आज का प्रस्तुत गीत भी।<br /><br />फ़िल्मी लोरियों की बात करते हुए इस शृंखला में हम ४० के दशक से ९० के दशक में पहुँच गए। पर अफ़सोस की बात यह है कि आज के दौर में फ़िल्मी लोरियों का चलन बन्द ही हो गया है। फ़िल्म 'अनाड़ी' में एक लोरी थी "छोटी सी प्यारी नन्ही सी आई कोई परी" जिसे अलका और उदित नें अलग अलग गाया था। फिर २००४ की शाहरुख़ ख़ान की फ़िल्म 'स्वदेस' में एक उदित-साधना की गाई एक लोरी थी "आहिस्ता आहिस्ता निन्दिया तू आ", २००६ की फ़िल्म 'फ़ैमिली' में भी सोना महापात्र की आवाज़ में एक लोरी थी "लोरी लोरी लोरी"। इस तरह से यदा-कदा कोई लोरी सुनाई दे जाती है, पर संख्या में बिल्कुल नगण्य है। यह सच है कि आजकल फ़िल्मों की कहानी असल ज़िन्दगी के करीब आ गई है, और नाटकीयता कम हो गई है। पर यह लोरियों के न होने का कारण नहीं हो सकता, क्योंकि लोरियाँ तो असल ज़िन्दगी में आज भी जारी है। आज भी माँ-बाप रात को जाग जाग कर अपने बच्चों को सुलाने के लिए लोरियाँ गाते हैं, और सिर्फ़ हमारे यहाँ ही नहीं, पूरे विश्व भर में। तो फिर फ़िल्मों की कहानियों में लोरी की गुंजाइश क्यों ख़त्म हो गई? काश कि फ़िल्मों में पहली जैसी मासूमियत वापस लौट आये और एक बार फिर से कोमल, मखमली, मेलोडियस लोरियाँ श्रोताओं को सुनने को मिले। इसी आशा के साथ अब मुझे, यानी सुजॉय चटर्जी को 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' शृंखला को समाप्त करने की अनुमति दीजिए, और आप सुनिए आज की यह लोरी। यह शॄंखला आपको कैसी लगी, ज़रूर बताइएगा टिप्पणी में या oig@hindyugm.com पर ईमेल भेज कर। नमस्कार!<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_781_790/OIG790.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">आज की चर्चा -बचपन के दिनों की वो कौन सी लोरी है जो आपको आज भी गुदगुदा जाती है हमें बताएं</span> <br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_16.html">पिछले अंक</a> में <br /> <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://datastore.rediff.com/briefcase/6A60625C5C5B695F6B/e8la60o0hhw92vvm.D.241199.Sridevi_Surmai_Akhiyon_Mein.flv-0001.png" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-35702771956734158142011-11-16T18:30:00.001+05:302011-11-16T18:30:22.051+05:30घर के उजियारे सो जा रे....याद है "डैडी" की ये लोरी<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 789/2011/229</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'चं</span>दन का पलना, रेशम की डोरी' - पुरुष गायकों की गाई फ़िल्मी लोरियों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की नवी कड़ी में आप सभी का मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ फिर एक बार स्वागत करता हूँ। आज की कड़ी के लिए हमनें जिस गीत को चुना है वह है १९८९ की फ़िल्म 'डैडी' का। फ़िल्म की कहानी पिता-पुत्री के रिश्ते की कहानी है। यह कहानी है पूजा की जिसे जवान होने पर पता चलता है कि उसका पिता ज़िन्दा है, जो एक शराबी है। पूजा किस तरह से उनकी ज़िन्दगी को बदलती है, कैसे शराब से उसे मुक्त करवाती है, यही है इस फ़िल्म की कहानी। बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है इस फ़िल्म की। पूजा को उसके नाना-नानी पाल-पोस कर बड़ा करते हैं और उसे अपनी मम्मी-डैडी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं। उसके नाना, कान्ताप्रसाद के अनुसार उसके डैडी की मृत्यु हो चुकी है। पर जब पूजा बड़ी होती है तब उसे टेलीफ़ोन कॉल्स आने लगते हैं जो केवल 'आइ लव यू' कह कर कॉल काट देता है। कान्ताप्रसाद को जब आनन्द नामक कॉलर का पता चलता है तो उसे पिटवा देते हैं और पूजा से न मिलने की धमकी देते हैं। पर एक दिन जब पूजा का एक बदमाश इज़्ज़त लूटने की कोशिश करता है तो आनन्द उसकी जान बचाता है और पूजा को पता चल जाता है यह बदसूरत और शराबी आनन्द ही उसका पिता है। पूजा और आनन्द की ज़िन्दगी किस तरह से मोड़ लेती है, यही है इस फ़िल्म की कहानी।<br /><br />महेश भट्ट की इस फ़िल्म के माध्यम से पूजा भट्ट नें फ़िल्म के मैदान में कदम रखा था। डैडी की भूमिका में थे अनुपम खेर। बड़ी ख़ूबसूरत फ़िल्म है 'डैडी' और इस फ़िल्म के लिए अनुपम खेर को उस साल सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के 'फ़िल्मफ़ेयर क्रिटिक्स अवार्ड' से सम्मानित किया गया था। सूरज सनीम को सर्वश्रेष्ठ संवाद का 'फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड' से नवाज़ा गया था। और दोस्तों, सूरज सनीम नें ही इस फ़िल्म के तमाम गानें लिखे थे जिन्हें ख़ूब सराहना मिली। ख़ास तौर से तलत अज़ीज़ के गाये दो गीत - "आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे, मेरे अपने मेरे होने की निशानी माँगे" और "घर के उजियारे सो जा रे, डैडी तेरा जागे तू सो जा रे"। और यही दूसरा गीत, जो कि एक लोरी है, आज के अंक में हम प्रस्तुत कर रहे हैं। 'डैडी' के संगीतकार थे राजेश रोशन। राजेश रोशन की अन्य फ़िल्मों के संगीत से बिल्कुल भिन्न है 'डैडी' का संगीत। एक कलात्मक फ़िल्म में जिस तरह का संगीत होना चाहिए, राजेश जी नें बिल्कुल वैसा संगीत इस फ़िल्म के लिए तैयार किया था। और तलत अज़ीज़ की आवाज़ भी अनुपम खेर पर सटीक बैठी है। शायद जगजीत सिंह की आवाज़ भी सही रहती। अच्छा दोस्तों, जगजीत सिंह से याद आया कि तलत अज़ीज़ का पहला ऐल्बम, जो १९७९ में जारी हुआ था, उसका शीर्षक था 'Jagjit Singh presents Talat Aziz'। इस ऐल्बम तलत के लिए एक स्टेपिंग् स्टोन था, जिसे ख़ूब मकबूलियत हासिल हुई। मूलत: एक ग़ज़ल गायक, तलत अज़ीज़ नें कुछ गिनी-चुनी फ़िल्मों में भी पार्श्वगायन किया है जिनमें शामिल हैं 'उमरावजान', 'बाज़ार', 'औरत औरत औरत', 'धुन' और 'डैडी'। तो आइए सुना जाए तलत अज़ीज़ की मुलायम आवाज़ में इस लोरी को।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_781_790/OIG789.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -<br /><span style="font-weight:bold;">आज की पहली बिल्कुल सीधे सीधे पूछ रहे हैं। कुमार सानू और अनुराधा पौडवाल की गाई हुई एकमात्र फ़िल्मी लोरी है यह, बताइए कौन सी है?</span><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_15.html">पिछले अंक</a> में <br /> <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://datastore.rediff.com/briefcase/6A60625C5C5B695F6B/e8la60o0hhw92vvm.D.241199.Sridevi_Surmai_Akhiyon_Mein.flv-0001.png" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-74386770796564287052011-11-15T18:30:00.001+05:302011-11-15T18:30:07.959+05:30ज़िन्दगी महक जाती है....जब सुरीली आवाज़ को येसुदास की और हो लोरी का वात्सल्य<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 788/2011/228</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">न</span>मस्कार दोस्तों! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आजकल आप आनन्द ले रहे हैं पुरुष गायकों द्वारा गाई हुई फ़िल्मी लोरियों की, और शृंखला है 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी'। किसी भी बच्चे के सर से माँ और बाप में से किसी का भी अगर साया उठ जाये, तो वह बच्चा बड़ा ही अभागा होता है। माँ का प्यार एक तरह का होता है, और पिता का प्यार दूसरी तरह का। दोनों की समान अहमियत होती है बच्चे के विकास में। लेकिन हर बच्चा तो किस्मतवाला नहीं होता न! किसी को माँ नसीब नहीं होता तो किसी को पिता। माँ के अभाव में पिता को पिता और माँ, दोनों की भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। ऐसी सिचुएशन कई बार हमारी फ़िल्मों में भी देखी गई है। आज हम जिस गीत को सुनने जा रहे हैं उसकी कहानी भी इसी तरह की है। गोविंदा पर फ़िल्माई यह लोरी है 'हत्या' फ़िल्म की - "ज़िन्दगी महक जाती है, हर नज़र बहक जाती है, न जाने किस बगिया का फूल है तू मेरे प्यारे, आ रा रो आ रा रो"। गायक हैं येसुदास और साथ में आवाज़ लता जी की है जो उस मातृहीन बच्चे के सपने में उसकी माँ की भूमिका में गाती हैं। दोस्तों, येसुदास और लोरी की जब साथ-साथ बात चलती है तो सबसे पहले जिस लोरी की याद आती है वह है फ़िल्म 'सदमा' की "सुरमई अखियों में नन्हा मुन्ना एक सपना दे जा रे"। लेकिन क्योंकि हम इस लोरी को पहले ही सुनवा चुके हैं, इसलिए हमनें 'हत्या' फ़िल्म की लोरी चुनी। येसुदास की आवाज़ भी इतनी कोमल है कि उनकी आवाज़ में कोई लोरी सुनना एक अदभुत अनुभव होता है। यह हैरत की ही बात है कि उनसे और भी लोरियाँ क्यों नहीं गवाई गई! <br /><br />'हत्या' १९८८ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण व निर्देशन कीर्ति कुमार नें किया था, जो गोविंदा के भाई हैं। गोविंदा, नीलम, राज किरण, अनुपम खेर प्रमुख अभिनीत इस फ़िल्म में संगीत था बप्पी लाहिड़ी का और गीत लिखे इंदीवर नें। फ़िल्म सुपरहिट हुई और इसके गीत भी ख़ूब चले थे। आज की लोरी के अलावा इस फ़िल्म के अन्य चर्चित गीत थे "मैं प्यार का पुजारी मुझे प्यार चाहिए" (मोहम्मद अज़ीज़, सपना मुखर्जी), "आप को अगर ज़रूरत है" (आशा, किशोर), "मैं तो सबका मेरा न कोई" (कीर्ति कुमार), और "प्यार मिलेगा यार मिलेगा" (कीर्ति कुमार)। 'हत्या' एक म्युज़िकल थ्रिलर फ़िल्म थी, इसकी कहानी भी एक बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती है जिसनें अपनी माँ-बाप की हत्या अपनी आँखों से देखी है। राजा एक गूंगा और बधीर बच्चा है जिसनें हत्या होते देख लिया, और उसके बाद उसकी आँखों के सामने उसकी माँ की भी हत्या कर दी गई। राजा वहाँ से किसी तरह भाग निकला पर बेघर, बेसहारा होकर रह गया। किस्मत इतनी ज़रूर अच्छी थी कि उसे सागर (गोविंदा) नामक एक पेण्टर मिल गया। सागर की पत्नी और बच्चे की मौत हो गई थी और वो एक अकेलेपन से भरी ज़िन्दगी जी रहा था। ऐसे में सागर के जीवन का एक ही लक्ष्य रह गया इस गूंगे-बहरे बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा करना। लेकिन वो हत्यारे राजा की तलाश में थे क्योंकि वही एक चश्मदीद गवाह था उनके कूकर्मों का। सागर को भी धीरे धीरे पता चला उस हत्या के बारे में। पर कातिलों नें सागर को ही फँसा दिया और सागर की जेल हो गई। सागर जेल से बाहर आकर मर्डर मिस्ट्री को सॉल्व किया। आइए सुनते हैं यह लोरी जिसमें सागर राजा को सुला रहे हैं और राजा को अपनी माँ की याद आ रही है। माँ की भूमिका में है अंजना मुमताज़, जो बच्चे के सपने में आकर गाती है "ज़मीं पे रहूँ या फ़लक पर तेरे आसपास हूँ मैं, दुआओं का साया बन कर तेरे साथ-साथ हूँ मैं"। सुनते हैं यह सुन्दर लोरी।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_781_790/OIG788.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -<br /><span style="font-weight:bold;">पिता-पुत्री के रिश्ते की कहानी पर बनी इस फ़िल्म को क्रिटिकल अक्लेम मिली थी। पर्दे पर जिन अभिनेता-अभिनेत्री नें बाप-बेटी के रिश्ते को साकार किया, उसी जोड़ी नें एक अन्य फ़िल्म में भी बाप-बेटी का रिश्ता निभाया था जिसमें आमिर ख़ान नायक थे। राजेश रोशन स्वरबद्ध किस लोरी की हम बात कर रहे हैं?</span><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_14.html">पिछले अंक</a> में <br /> <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://datastore.rediff.com/briefcase/6A60625C5C5B695F6B/e8la60o0hhw92vvm.D.241199.Sridevi_Surmai_Akhiyon_Mein.flv-0001.png" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-31390488004323155222011-11-14T18:30:00.001+05:302011-11-14T18:30:08.427+05:30आ री आजा, निन्दिया तू ले चल कहीं....बाल दिवस पर किशोर दा लाये एक मीठी लोरी बच्चों के लिए<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 787/2011/227</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">'ओ</span>ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी नियमित व अनियमित श्रोता-पाठकों को हमारा सप्रेम नमस्कार! आज १४ नवंबर है, भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरु का जन्मदिन, जिसे हम सब 'बाल-दिवस' के रूप में मनाते हैं। संयोग देखिए कि इन दिनों हम जिस शृंखला को प्रस्तुत कर रहे हैं, उसका भी बच्चों के साथ ही ज़्यादा ताल्लुख़ है। पुरुष गायकों द्वारा गाई हुई फ़िल्मी लोरियों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' की सातवीं कड़ी में आज हम लेकर आये हैं किशोर कुमार की आवाज़ में फ़िल्म 'कुवारा बाप' की लोरी "आ री आजा, निन्दिया तू ले चल कहीं, उड़नखटोले में, दूर, दूर, दूर, यहाँ से दूर"। साथ में लता जी की आवाज़ भी शामिल है। जहाँ किशोर दा की आवाज़ सजी है महमूद पर, लता जी नें एक बालकलाकार का पार्श्वगायन किया है। फ़िल्म के संगीतकार थे राजेश रोशन और इस लोरी को लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी। १९७४ में बनी 'कुंवारा बाप' के नायक थे महमूद। फ़िल्म के शीर्षक से ज़ाहिर है कि महमूद नें इसमें कुंवारे बाप की भूमिका निभाई होगी और इस तरह से इस लोरी की फ़िल्म में अहमियत बढ़ जाती है। यूं तो महमूद हास्य चरित्रों के लिए जाने जाते हैं, पर इस फ़िल्म में उन्होंने वह मर्मस्पर्शी अभिनय किया कि दर्शकों को रुलाकर छोड़ा। दोस्तों, मुझे महमूद के अभिनय वाली एक और फ़िल्म याद आ रही है जिसमें भी किशोर दा और लता जी की गाई हुई एक लोरी थी। फ़िल्म 'लाखों में एक' और गीत के बोल "चंदा ओ चंदा, किसने चुराई तेरी मेरी निन्दिया, जागे सारी रैना, तेरे मेरे नैना"। इस लोरी का एक लता सोलो वर्ज़न भी है।<br /><br />'कुंवारा बाप' की कहानी अज़ीज़ क़ैसी की लिखी हुई है और फ़िल्म का निर्देशन महमूद नें ही किया था। इस फ़िल्म की कहानी कुछ ऐसी थी कि महेश (महमूद) एक साइकिल रिक्शा चालक है जिसे अपने माँ-बाप की कोई जानकारी नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण का वह उपासक है और एक जुग्गी झोपड़ी में रहता है। शीला (मनोरमा) नामक लड़की से उसकी दोस्ती है जो घर घर बाई का काम करती है, और जिसे वो एक दिन शादी करना चाहता है। पर कालू दादा (भूषण तिवारी) की गन्दी नज़र शीला पर है। एक रात महेश घर लौट रहा था कि उसे एक मन्दिर के बाहर एक छोटा बच्चा दिखाई दिया। वो इधर-उधर उसके परिवारवालों को ढूंढ़ा, मन्दिर के पुजारी से भी पूछा, पुलिस को भी सूचित किया, पर कहीं से भी उस बच्चे के माँ-बाप का पता न चल सका। न चाहते हुए भी हालात कुछ ऐसे बन गए कि उस बच्चे को उसे गले से लगाना ही पड़ा, पर उसके आस-पड़ोस वाले महेश के बच्चे के गोद लेने के ख़िलाफ़ थे। महेश भी बच्चे से नफ़रत करने लगा। वो उस बच्चे की तरफ़ ध्यान नहीं दिया करता, और इस तरह से बच्चा पोलियो का शिकार हो गया। इस घटना नें महेश के दिल पर असर किया और उसके दिल में बच्चे के लिए प्यार उमड़ पड़ा। उस बच्चे का नाम उसने हिन्दुस्तान रखा, उसका इलाज शुरु करवाया, उसे क्रच दिलवाये, और तमाम मुसीबतों से लड़ते हुए उसे बिशॉप कॉटन जुनियर कॉलेज में भर्ती करवाया। १२ साल बाद हिन्दुस्तान जब बड़ा हुआ, तब उसे हड्डी के एक ऑपरेशन की ज़रूरत आन पड़ी जिसके लिए महेश को १००० रुपय का बन्दोपस्त करना था। उसने पैसा इकट्ठा करने के लिए दारा से कुश्ती लड़ने और एक रिकशा रेस में भाग लेने का फ़ैसला किया, पर दारा और कालू नें उसे बुरी तरह पीटा। महेश रात-दिन काम करने लगा, पर इससे पहले कि वो पैसे जमा कर पाता, पुलिस इन्स्पेक्टर रमेश (विनोद खन्ना) ने उसे गिरफ़्तार कर लिया हिन्दुस्तान को अगवा करने के जुर्म में। रमेश और राधा (भारती) के अनुसार हिन्दुस्तान के जन्मदाता वो दोनों हैं। अदालत में मुकद्दमा चलता है और फ़िल्म का क्या अंजाम होता है, वह आप कभी फ़िल्म को ख़ुद ही देख कर जान लीजिएगा। इस कहानी को पढ़ कर आप समझ चुके होंगे कि इस लोरी की फ़िल्म में क्या अहमियत होगी। तो आइए सुना जाये किशोर दा की आवाज़ महेश पर और लता जी की आवाज़ हिन्दुस्तान पर।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_781_790/OIG787.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -<br /><span style="font-weight:bold;">कल की लोरी एक डुएट है। जिस गायक-गायिका जोड़ी नें इसे गाया, उस जोड़ी नें साथ में बहुत ज़्यादा गीत नहीं गाये हैं, पर राकेश रोशन और जया प्रदा अभिनीत एक अन्य फ़िल्म में इस जोड़ी के गाये गीत लोकप्रिय हुए थे। बताइए गोविंदा पर फ़िल्माई हुई किस लोरी की हम बात कर रहे हैं और राकेश रोशन-जया प्रदा के उस अन्य फ़िल्म का नाम क्या है?</span><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_1116.html">पिछले अंक</a> में <br />कल की हमारी शृंखला का सीरियल नंबर था ७८६, क्या किसी ने गौर किया <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://datastore.rediff.com/briefcase/6A60625C5C5B695F6B/e8la60o0hhw92vvm.D.241199.Sridevi_Surmai_Akhiyon_Mein.flv-0001.png" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-86281868582437115552011-11-13T18:30:00.002+05:302011-11-13T18:30:04.300+05:30लल्ला लल्ला लोरी....जब सुनाने की नौबत आये तो यही लोरी बरबस होंठों पे आये<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 786/2011/226</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">न</span>मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और नई सप्ताह के साथ हम उपस्थित हैं, मैं सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ, आप सभी का इस सुरीले सफ़र में फिर एक बार स्वागत करते हैं। आमतौर पर बच्चों के साथ माँ के रिश्ते को ज़्यादा अहमियत दी जाती है, फ़िल्मों में भी माँ और बच्चे के रिश्ते को ज़्यादा साकार किया गया है। पर कई फ़िल्में ऐसी भी बनीं जिनमें पिता-पुत्र या पिता-पुत्री के सम्बंध को पर्दे पर साकार किया गया। ऐसी कई फ़िल्मों में पिता द्वारा गाई लोरियाँ भी रखी गईं, हालाँकि संख्या में ये बहुत कम हैं। पर इन लोरियों के माध्यम से गीतकारों नें वो सब जज़्बात, वो सब मनोभाव भरें जो एक पिता के मन में होता है अपने बच्चे के लिए। ऐसी ही कुछ लाजवाब पुरुष लोरियों को लेकर इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में जारी है लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी', जिसमें आप दस लोरियाँ सुन रहे हैं दस अलग अलग गायकों के गाये हुए। अब तक आपनें चितलकर, तलत महमूद, हेमन्त कुमार, मन्ना डे और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ें सुनी। और ये लोरियाँ केवल पाँच अलग गायक ही नहीं, बल्कि पाँच अलग गीतकारों के लिखे और पाँच अलग संगीतकारों द्वारा स्वरबद्ध किए हुए थे। ये गीतकार-संगीतकार जोड़ियाँ हैं राजेन्द्र कृष्ण - सी. रामचन्द्र, ख़ुमार बाराबंकवी - नाशाद, शक़ील - नौशाद, प्रेम धवन - रवि, और शैलेन्द्र - शंकर-जयकिशन। ५० और ६० के दशकों के बाद आज हम ७० के दशक में क़दम रखते हुए आपको सुनवाने जा रहे हैं गायक की मुकेश की गाई हुई लोरी और इसमें गीतकार-संगीतकार जोड़ी है आनन्द बक्शी - राहुल देव बर्मन। १९७७ की फ़िल्म 'मुक्ति' की यह कालजयी लोरी है "लल्ला लल्ला लोरी, दूध की कटोरी, दूध में बताशा, मुन्नी करे तमाशा"।<br /><br />गायक मुकेश की आवाज़ भी बहुत ही कोमल है और लोरियों के लिए तो बिल्कुल पर्फ़ेक्ट। उनकी गाई फ़िल्म 'मिलन' की लोरी "राम करे ऐसा हो जाए, मेरी निन्दिया तोहे मिल जाए" हम जितनी भी बार सुनें एक अद्भुत अनुभव होता है। इसी तरह से 'मुक्ति' की यह लोरी भी अपने ज़माने का हिट गीत रहा है। शशि कपूर पर ज़्यादातर किशोर कुमार और रफ़ी साहब की आवाज़ ही सजी है, पर कई फ़िल्मों में मुकेश नें उनका पार्श्वगायन किया है जैसे कि 'मुक्ति', 'दिल ने पुकारा', 'माइ लव' आदि। 'मुक्ति' फ़िल्म की तमाम जानकारियाँ हमनें उस अंक में दिया था जिसमें हमनें मुकेश का ही गाया "सुहानी चाँदनी रातें हमें सोने नहीं देती" गीत सुनवाया था। आज बस इस लोरी की बात करते हैं। इस लोरी के भी दो संस्करण है; मुकेश वाले संसकरण का मिज़ाज हँसमुख है जिसमें पिता अपनी पुत्री को प्यार करते हुए यह लोरी गाते हैं, जबकि लता जी वाला संस्करण सैड वर्ज़न है। पिता के बिछड़ जाने के बाद जब बच्चा अपनी माँ से पापा कब आयेंगे पूछता है, तो उसे सम्भालते हुए, सुलाते हुए माँ उसी लोरी को गाती हैं, पर "मुन्नी करे तमाशा" के जगह पर बोल हो जाते हैं "जीवन खेल तमाशा"। दोनों ही संस्करण अपने आप में उत्कृष्ट है। क्योंकि इस शृंखला में हम गायकों की गाई लोरियाँ बजा रहे हैं, इसलिए लता जी वाला संस्करण हम फिर कभी सुनवाने की कोशिश करेंगे अगर सम्भव हो सका तो। आइए मुकेश की कोमल आवाज़ में सुनें यह लोरी।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_781_790/OIG786.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -<br /><span style="font-weight:bold;">मूलत: एक हास्य अभिनेता पर फ़िल्माई यह लोरी है, जो इस फ़िल्म के नायक भी हैं, पर यह फ़िल्म हास्य फ़िल्म नहीं बल्कि एक मर्मस्पर्शी फ़िल्म है। जिस बच्चे के लिए यह लोरी गाई जा रही है, उसका फ़िल्म में नाम है 'हिन्दुस्तान'। बताइए किस फ़िल्म के लोरी की बात हो रही है?</span><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_10.html">पिछले अंक</a> में <br />अमित जी सवाल तो पढ़िए ध्यान से <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://datastore.rediff.com/briefcase/6A60625C5C5B695F6B/e8la60o0hhw92vvm.D.241199.Sridevi_Surmai_Akhiyon_Mein.flv-0001.png" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-60521739489888562682011-11-13T09:15:00.001+05:302011-11-13T09:15:00.667+05:30सुर संगम में आज - एन. राजम् के वायलिन-तंत्र बजते नहीं, गाते हैं...<div><span style="font-weight:bold;">सुर संगम- 43 – संगीत विदुषी डॉ. एन. राजम् की संगीत-साधना</span></div><div><br /><br />सुर संगम के इस सुरीले सफर में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आज एक बेहद सुरीले गज-तंत्र वाद्य वायलिन और इस वाद्य की स्वर-साधिका डॉ. एन. राजम् के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आपसे चर्चा करने जा रहा हूँ। डॉ. राजम् वायलिन जैसे पाश्चात्य वाद्य पर उत्तर भारतीय संगीत पद्यति को गायकी अंग में वादन करने वाली प्रथम महिला स्वर-साधिका हैं। उनकी वायलिन पर अब तक जो कुछ भी बजाया गया है, उसका प्रारम्भ स्वयं उन्हीं से हुआ है। गायकी अंग में वायलिन-वादन उनकी विशेषता भी है और उनका अविष्कार भी।<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJubPXkd0m1AAKjxf13eo-zecCpULwRg0zMaaK-CYaC7vKNnO5cqsGyjOVNn0HJhsCfnjtZziY6h-i_ozFkkhkjhuZVyBUPLQA5h9MHcgUmrgj_VR0gz40WufKAMi46ZlGuqY9ZJ70-_bF/s1600/n.+rajam1.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 133px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJubPXkd0m1AAKjxf13eo-zecCpULwRg0zMaaK-CYaC7vKNnO5cqsGyjOVNn0HJhsCfnjtZziY6h-i_ozFkkhkjhuZVyBUPLQA5h9MHcgUmrgj_VR0gz40WufKAMi46ZlGuqY9ZJ70-_bF/s200/n.+rajam1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5673596458317294066" /></a><br />डॉ. राजम् के पिता नारायण अय्यर कर्नाटक संगीत पद्यति के सुप्रसिद्ध वायलिन वादक और गुरु थे। वायलिन की प्रारम्भिक शिक्षा उन्हें अपने पिता से ही प्राप्त हुई। बाद में सुविख्यात संगीतज्ञ पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर से उन्हें उत्तर भारतीय संगीत पद्यति में शिक्षा मिली। इस प्रकार शीघ्र ही उन्हें संगीत की दोनों पद्यतियों में कुशलता प्राप्त हुई। पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर अपने प्रदर्शन-कार्यक्रमों में एन. राजम् को वायलिन संगति के लिए बैठाया करते थे। संगति के दौरान उनका यही प्रयास होता था कि उनके गुरु जो क्रियाएँ कण्ठ से करते हों, उन्हें यथावत वायलिन के तंत्रों पर उतारा जाए। इस साधना के बल पर मात्र १७ वर्ष की आयु में एन. राजम् गायकी अंग में वायलिन-वादन में दक्ष हो गईं। उस दौर के संगीतविदों ने गायकी शैली में वायलिन-वादन को एक नया आविष्कार माना और इसका श्रेय एन. राजम् को दिया गया। उनके गायकी अंग के वादन में जैसी मिठास और करुणा है, उसे सुन कर ही अनुभव किया जा सकता है। उनके वादन में कोई चमत्कारिक लटके-झटके नहीं, बल्कि सादगी और तन्मयता है। सुनने वालों को ऐसा प्रतीत होता है, मानो वायलिन के तंत्र बजते नहीं बल्कि गा रहे हों। लीजिए, डॉ. एन. राजम् के वायलिन को राग जयजयवन्ती का गायन करते हुए, आप भी सुनें। प्रस्तुति में पण्डित अभिजीत बनर्जी ने तबला संगति की है।<br /><br /><span style="font-weight:bold;">डॉ. एन. राजम् : राग – जयजयवन्ती : आलाप और बन्दिश</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ssrajam/ssrajam01.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />एन. राजम् की प्रारम्भिक संगीत शिक्षा दक्षिण भारतीय कर्नाटक संगीत पद्यति में हुई थी। उन दिनों दक्षिण भारत में वायलिन प्रचलित हो चुका था, किन्तु उत्तर भारतीय संगीत में इस वाद्य का पदार्पण नया-नया ही हुआ था। एन. राजम् की आयु उस समय मात्र १२ वर्ष थी। अपने गुरु पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर के मार्गदर्शन में उन्होने वायलिन को गायकी अंग में बजाने का निश्चय किया। स्वर और लय का ज्ञान तो उन्हें पहले से ही था, गुरु जी की स्वरावली का अनुसरण करते-करते वादन में भाव, रस और माधुर्य उत्पन्न करने की कठोर साधना उन्होने की। ध्रुवपद-धमार, खयाल-तराना, ठुमरी-दादरा आदि गायन की सभी विधाओं की बारीकियों का गहन अध्ययन कर वायलिन पर साध लिया। उन दिनों अधिकतर वादको ने तंत्रकारी अंग में ही वायलिन को अपनाया था। परन्तु एन. राजम् का मानना था कि सारंगी की भाँति वायलिन भी गायकी अंग के निकट है। आइए अब सुनते हैं- डॉ. एन. राजम् से राग दरबारी की दो खयाल रचनाएँ जो विलम्बित एकताल में और द्रुत तीनताल में निबद्ध है।<br /><br /><span style="font-weight:bold;">डॉ. एन. राजम् : राग – दरबारी : विलम्बित एकताल और द्रुत तीनताल</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ssrajam/ssrajam02.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgO4X7_FxRSjmeIXYpeh2P5eCQBNgBUCyc4Uwi3d-oYe9J1o9yOoBoQwoYAKMXD17k_sUDNpF3WASpkioFEaHhVESUx7cruMhBvh6HPMu5AxE0qoybAHxlKoGcO9hxpjL_IdVM5Y6MQvmKM/s1600/n.+rajam.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 133px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgO4X7_FxRSjmeIXYpeh2P5eCQBNgBUCyc4Uwi3d-oYe9J1o9yOoBoQwoYAKMXD17k_sUDNpF3WASpkioFEaHhVESUx7cruMhBvh6HPMu5AxE0qoybAHxlKoGcO9hxpjL_IdVM5Y6MQvmKM/s200/n.+rajam.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5673596938673724210" /></a><br />विदुषी एन. राजम् के गुरु पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर ग्वालियर घराने के थे, इसलिए स्वयं को इसी घराने की शिष्या मानतीं हैं। घरानॉ के सम्बन्ध में उनका मत है कि कलाकार को किसी एक ही घराने में बंध कर नहीं रहना चाहिए, बल्कि हर घराने की अच्छाइयों का अनुकरण करना चाहिए। घरानों की प्राचीन परम्परा के अनुसार तीन पीढ़ियों तक यदि विधा की विशेषता कायम रहे तो प्रथम पीढ़ी के नाम से घराना स्वतः स्थापित हो जाता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो आने वाले समय में राजम् जी के नाम से भी यदि एक नए घराने का नामकरण हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। डॉ. राजम् को प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता पण्डित नारायण अय्यर से मिली। उनके बड़े भाई पण्डित टी.एन. कृष्णन् कर्नाटक संगीत पद्यति के प्रतिष्ठित और शीर्षस्थ वायलिन-वादक रहे हैं। डॉ. राजम् की एक भतीजी कला रामनाथ वर्तमान में विख्यात वायलिन-वादिका हैं। राजम् जी की सुपुत्री और शिष्या संगीता शंकर अपनी माँ की शैली में ही गायकी अंग में वादन कर रहीं हैं। यही नहीं संगीता की दो बेटियाँ अर्थात डॉ. राजम् की नातिनें- नंदिनी और रागिनी भी अपनी माँ और नानी के साथ मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रही हैं।<br /><br />और अब इस अंक को विराम देते हुए हम आपको विदुषी डॉ. एन. राजम् द्वारा प्रस्तुत राग भैरवी का एक दादरा सुनवाते हैं। यह उल्लेखनीय है कि उनके गुरु पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर ने मंच पर कभी भी ठुमरी-दादरा प्रस्तुत नहीं किया। उपशास्त्रीय संगीत का ज्ञान उन्होने वाराणसी में प्राप्त किया था। वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संगीत संकाय में पहले प्रोफेसर और बाद में विभागाध्यक्ष होकर सेवानिवृत्त हुई। लीजिए, सुनिए- विदुषी डॉ. एन. राजम् की वायलिन पर राग भैरवी में दादरा-<br /><br /><span style="font-weight:bold;">डॉ. एन. राजम् : राग – भैरवी : दादरा</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ssrajam/ssrajam03.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /> <br />और अब बारी है इस कड़ी की पहेली की जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से। <br /><br />सुर संगम 44 की पहेली :<span style="font-weight:bold;"> इस ऑडियो क्लिप को सुन कर संस्कार गीतों के अन्तर्गत आने वाली लोक संगीत की विधा को पहचानिए। सही पहचान करने पर आपको मिलेंगे 5 अंक</span>।<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ssrajam/sspaheli.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">चित्र परिचय <br />ऊपर बाएं - विदुषी डा. एन. राजम्<br />नीचे दायें - डा. एन. राजम्अपनी सुपुत्री संगीता शंकर के साथ</span> <br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_06.html">पिछ्ली पहेली</a> का परिणाम : सुर संगम के 43वें अंक में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर है- वायलिन और राग दरबारी। इस अंक की पहेली के पहले भाग का सही उत्तर हमारे एक नए पाठक/श्रोता उज्ज्वल कुमार ने और दूसरे भाग का सही उत्तर क्षिति तिवारी ने दिया है। दोनों विजेताओं को मिलते हैं 5-5 अंक। इन्हें हार्दिक बधाई।<br /><br />अब समय आ चला है आज के 'सुर-संगम' के अंक को यहीं पर विराम देने का। अगले रविवार को हम एक और संगीत-कलासाधक अथवा विधा के साथ पुनः उपस्थित होंगे। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई होगी। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तम्भ को और रोचक बना सकते हैं! आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। शाम ६:३० 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!<br /><br /></div><div>खोज व आलेख -<a href="http://vahak.hindyugm.com/2011/04/blog-post.html"> कृष्णमोहन मिश्र</a></div><div><br /></div><div><hr /></div><div><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/?cx=partner-pub-9993819084412964:kw52fxuglx0&cof=FORID:11&ie=UTF-8&q=sur+sangam&sa=%E0%A4%87%E0%A4%B8+%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9F+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%82&siteurl=podcast.hindyugm.com/"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiujumNxPtyDKPOhvxIB-53f2BHklyxfqOg4T5kXg_lepylRkX7-68f5GuhTtJ3i3ZYT1uHL-rVJnHA9Ppen5gi-zUTCwGPgTsh1Y1F-fO9i9i0rXFPM2r-ltcK1GxZEmXKiRJuSrW-fF1W/s740/legend.jpg" /></a>आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.</div><blockquote></blockquote></div>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-32733001230664883912011-11-12T17:00:00.001+05:302011-11-12T17:00:02.473+05:30बुझ गई है राह से छाँव - डॉ. भूपेन हज़ारिका को 'आवाज़' की श्रद्धांजलि<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 67</span><br /><span style="font-weight:bold;">बुझ गई है राह से छाँव - भाग ०१</span> <br /><br />'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! 'शनिवार विशेषांक' मे आज श्रद्धांजलि उस महान कलाकार को जिनका नाम असमीया गीत-संगीत का पर्याय बन गया है, जिन्होने असम और उत्तरपूर्व के लोक-संगीत को दुनियाभर में फैलाने का अद्वितीय कार्य किया, जिन्होंने हिन्दी फ़िल्म-संगीत में असम की पहाड़ियों, चाय बागानों और वादियों का विशिष्ट संगीत देकर फ़िल्म-संगीत को ख़ास आयाम दिया, जो न केवल एक गायक और संगीतकार थे, बल्कि एक लेखक और फ़िल्मकार भी थे। पिछले शनिवार, ४ नवंबर को ८५ वर्ष की आयु में हमें अलविदा कह कर हमेशा के लिए जब भूपेन हज़ारिका चले गए तो उनका रचा एक गीत मुझे बार बार याद आने लगा..... "समय ओ धीरे चलो, बुझ गई है राह से छाँव, दूर है पी का गाँव, धीरे चलो...." आइए आज के इस विशेषांक में भूपेन दा के जीवन सफ़र के कुछ महत्वपूर्ण पड़ावों पर नज़र डालें। <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://www.asomtube.com/oldies%20cover/bhupen%20hazarika.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 170px; height: 234px;" src="http://www.asomtube.com/oldies%20cover/bhupen%20hazarika.jpg" border="0" alt="" /></a><br />भूपेन हज़ारिका का जन्म १ मार्च १९२६ को असम के नेफ़ा के पास सदिया नामक स्थान पर हुआ था। पिता संत शंकरदेव के भक्त थे और अपने उपदेश गायन के माध्यम से ही देते थे। बाल भूपेन में भी बचपन से ही संगीत की रुचि जागी और ११ वर्ष की आयु में उनका पहला ग़ैर-फ़िल्मी गीत रेकॉर्ड हुआ। फ़िल्म 'इन्द्र मालती' में उन्होंने बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया और इसी फ़िल्म में अपना पहला फ़िल्मी गीत "विश्व विजय नौजवान" भी गाया। तेजपुर से मैट्रिक और गुवाहाटी से इंटर पास करने के बाद उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एम.ए. किया और साथ ही साथ शास्त्रीय संगीत भी सीखते रहे। १९४२ में साम्प्रदायिक एकता पर लिखा उनका एक गीत काफ़ी लोकप्रिय रहा जो बाद में 'शीराज़' फ़िल्म में भी लिया गया। गुवाहाटी में कुछ दिनों के लिए अध्यापन करने के बाद वो जुड़े आकाशवाणी से और यहीं से छात्रवृत्ति लेकर वो गए अमरीका के कोलम्बिया यूनिवर्सिटी 'मास कम्युनिकेशन' में एम.ए. करने। वहीं फ़िल्म माध्यम का भी गहन अध्ययन किया, रॉबर्ट स्टेन्स और रॉबर्ट फ्लैहर्टी से भी बहुत कुछ सीखा। वापसी में जहाज़ी सफ़र में जगह जगह से लोक-संगीत इकट्ठा करते हुए जब वो भारत पहुँचे तो उनके पास विश्वभर के लोक-संगीत का ख़ज़ाना था। <br /><br />गुवाहाटी वापस लौट कर फिर एक बार उन्होंने अध्यापन किया, पर जल्दी ही पूर्ण मनोयोग से वो गीत-संगीत-सिनेमा से जुड़ गए। इप्टा (IPTA) के वे सक्रीय सदस्य थे। असम के बिहू, बन गीत और बागानों के लोक संगीत को राष्ट्रीय फ़लक पर स्थापित करने का श्रेय भूपेन दा को ही जाता है। असमीया फ़िल्म 'सती बेहुला' (१९५४) से वो फ़िल्म-संगीतकार बने। उसके बाद 'मनीराम देवान' और 'एरा बाटोर सुर' जैसी फ़िल्मों के गीतों नें चारों तरफ़ तहल्का मचा दिया। उसके बाद उनके लिखे, निर्देशित और संगीतबद्ध 'शकुंतला', 'प्रतिध्वनि' और 'लटिघटि' के लिए उन्हे लगातार तीन बार राष्ट्रपति पदक भी मिला। भूपेन हज़ारिका का व्यक्तित्व उसी समय इतना विराट बन चुका था कि १९६७ में विधान सभा चुनाव उनसे लड़वाया गया और उन्हें जीत भी हासिल हुई। १९६७-७२ तक विधान सभा सदस्य के रूप में उन्होंने असम में पहले स्टुडियो की स्थापना करवाई। <br /><br />बांगलादेश के जन्म के उपलक्ष्य में भूपेन हज़ारिका की रचित 'जय जय नवजात बांगलादेश' को अपार लोकप्रियता मिली थी। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के दिनों में प्रसिद्ध अमरीकी बीग्रो गायक पॉल रोबसन के मित्र रहे हज़ारिका अश्वेतों के अधिकारों के लिए लड़ाई से बहुत प्रभावित रहे हैं। रोबसन की प्रसिद्ध रचना 'Old man river' से प्रेरणा लेकर हज़ारिका ने ब्रह्मपुत्र पर अपनी यादगार रचना "बूढ़ा लुई तुमि बुआ कियो" (बूढ़े ब्रह्मपुत्र तुम बहते क्यों हो?)। इसी गीत का हिन्दी संस्करण भी आया, जिसमें ब्रह्मपुत्र के स्थान पर गंगा का उल्लेख हुआ। "विस्तार है अपार, प्रजा दोनों पार, करे हाहाकार, निशब्द सदा, ओ गंगा तुम, ओ गंगा बहती हो क्यों?" आइए भूपेन दा की इसी कालजयी रचना को यहाँ पर सुना जाए। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - गंगा बहती हो क्यों (ग़ैर फ़िल्म)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_67/OIG_SS_67_01.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />१९६३ में भूपेन दा के संगीत में असमीया फ़िल्म 'मनीराम देवान' में उन्होंने एक गीत रचा व गाया जो उनके सबसे लोकप्रिय गीतों में दर्ज हुआ। गीत के बोल थे "बुकु हॉम हॉम कॉरे मुर आई"। इसी गीत की धुन पर दशकों बाद कल्पना लाजमी की फ़िल्म 'रुदाली' में भूपेन दा नें "दिल हूम हूम करे गरजाए" कम्पोज़ कर इस धुन को असम से निकाल कर विश्व भर में फैला दिया। आइए इन दोनों गीतों को एक के बाद एक सुनें, पहले प्रस्तुत है असमीया संस्करण। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - बुकु हॉम हॉम कॉरे मुर आई (मनीराम देवान - असमीया)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_67/OIG_SS_67_02.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />फ़िल्म 'रुदाली' में इस गीत को लता मंगेशकर और भूपेन हज़ारिका, दोनों नें ही अलग अलग गाया था। सुनते हैं भूपेन दा की आवाज़। ख़ास बात देखिये, यह संगीत है असम का, पर 'रुदाली' फ़िल्म का पार्श्व था राजस्थान। तो किस तरह से पूर्व और पश्चिम को भूपेन दा नें एकाकार कर दिया इस गीत में, ताज्जुब होती है! कोई और संगीतकार होता तो राजस्थानी लोक-संगीत का इस्तेमाल किया होता, पर भूपेन दा नें ऐसा नहीं किया। यही उनकी खासियत थी कि कभी उन्होंने अपने जड़ों को नहीं छोड़ा। <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - दिल हूम हूम करे घबराए (रुदाली)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_67/OIG_SS_67_03.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />हिन्दी फ़िल्म जगत में भूपेन हज़ारिका के संगीत से सजी पहली फ़िल्म थी १९७४ की 'आरोप'। दोस्तों, आपको याद होगा अभी हाल ही में 'पुरवाई' शृंखला में हमने दो गीत भूपेन दा के सुनवाये थे, जिनमें एक 'आरोप' का भी था "जब से तूने बंसी बजाई रे..."। इसी फ़िल्म में उन्होंने लता मंगेशकर और किशोर कुमार का गाया युगल गीत "नैनों में दर्पण है, दर्पण में कोई देखूँ जिसे सुबह शाम" ख़ूब ख़ूब चला था। भूपेन दा के संगीत की खासियत रही है कि उन्होंने न केवल असम के संगीत का बार बार प्रयोग किया, बल्कि उनका संगीत हमेशा कोमल रहा, जिन्हें सुन कर मन को सुकून मिलती है। आइए फ़िल्म 'आरोप' के इस युगल गीत को सुना जाये, पर उससे पहले लता जी की भूपेन दा को श्रद्धांजलि ट्विटर के माध्यम से... "<span style="font-weight:bold;">भूपेन हज़ारिका जी, एक बहुत ही गुणी कलाकार थे, वो बहुत अच्छे संगीतकार और गायक तो थे ही, पर साथ-साथ बहुत अच्छे कवि और फ़िल्म डिरेक्टर भी थे। उनकी असमीया फ़िल्म (एरा बाटोर सुर) में मुझे गाने का मौका मिला यह मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। ऐसा महान कलाकार अब हमारे बीच नहीं रहा इसका मुझे बहुत दुख है, ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे।</span>" <br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत - नैनों में दर्पण है (आरोप)</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_SS_67/OIG_SS_67_04.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />भूपेन हज़ारिका से संबंधित कुछ और जानकारी हम अगले सप्ताह के अंक में जारी रखेंगे। भूपेन दा को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आज की यह प्रस्तुति हम यहीं समाप्त करते हैं, नमस्कार!Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-79450117380481657062011-11-12T02:43:00.001+05:302011-11-12T02:43:34.381+05:30अभिषेक ओझा की कहानी "घूस दे दूँ क्या?"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने <a href="http://www.blogger.com/profile/16654262548719423445" target="_blank">गिरिजेश राव</a> की कहानी "<a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/shraap-by-girijesh-rao.html">श्राप</a>" का पॉडकास्ट <a href="http://pittaudio.blogspot.com/" target="_blank">अनुराग शर्मा</a> की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं <a href="http://www.blogger.com/profile/12513762898738044716">अभिषेक ओझा</a> की कहानी "<strong>घूस दे दूँ क्या?</strong>", <a href="http://podcast.hindyugm.com/2008/09/anuraag-sharma-smart-indian-pittsburgh.html" target="_blank">अनुराग शर्मा</a> की आवाज़ में।<br />
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कहानी "घूस दे दूँ क्या?" का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 33 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।<br />
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इस कथा का टेक्स्ट <a href="http://uwaach.aojha.in/2009/05/blog-post_14.html" target="_blank">ओझा-उवाच</a> पर उपलब्ध है।<br />
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यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया <a href="http://podcast.hindyugm.com/2008/08/to-be-part-of-literary-hindi-audio-book.html">यहाँ</a> देखें।<br />
<hr /><span class="fullpost"> </span><br />
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<tr><td><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPsf-KnHcxHSfvyi0mR9OTfAYDcZrnQ3p-PAn6V4NrGXwBfoey4SV3bJpB2o-QeRo7frTALxOo4BPUIXGPGAZjibTMI04AOJ5hkpFGRVPMCepl-w-4QOxlu7moUFyPObTf5iGxH-u8Cdo/s1600/abhishek.ojha.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjPsf-KnHcxHSfvyi0mR9OTfAYDcZrnQ3p-PAn6V4NrGXwBfoey4SV3bJpB2o-QeRo7frTALxOo4BPUIXGPGAZjibTMI04AOJ5hkpFGRVPMCepl-w-4QOxlu7moUFyPObTf5iGxH-u8Cdo/s1600/abhishek.ojha.JPG" /></a></div></td><td>वास्तविकता तो ये है कि किसे फुर्सत है मेरे बारे में सोचने की, लेकिन ये मानव मन भी न! <br />
~ <strong><a href="http://www.blogger.com/profile/12513762898738044716">अभिषेक ओझा</a></strong><br />
<hr /><strong>हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी</strong><br />
"बोतल का ही पानी पीते हो, नहीं? इंसान भी कितना शौकीन हो गया है!" <br />
(<strong>अभिषेक ओझा की "घूस दे दूँ क्या?" से एक अंश</strong>) </td></tr>
</tbody></table><br />
<hr />नीचे के प्लेयर से सुनें.<br />
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)<br />
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</script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GhoosDeDoonKya/abhishek.ojha.ghoos.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br />
यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:<br />
<a href="http://www.archive.org/download/GhoosDeDoonKya/abhishek.ojha.ghoos.mp3">VBR MP3</a><br />
<strong>#152nd Story, Ghoos De doon Kya : Abhishek Ojha/Hindi Audio Book/2011/33. Voice: Anurag Sharma</strong></div>Smart Indianhttp://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-29064368582259085852011-11-10T18:30:00.001+05:302011-11-10T18:30:00.344+05:30आज कल में ढल गया....रफ़ी साहब की आवाज़ में लोरी का वात्सल्य<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 785/2011/225</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">न</span>मस्कार! 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी' की पाँचवी कड़ी में आज आवाज़ रफ़ी साहब की। दोस्तों, रफ़ी साहब और लोरी का जब साथ-साथ ज़िक्र हो तो सबसे पहले जो दो गीत याद आते हैं वो हैं फ़िल्म 'ब्रह्मचारी' का "मैं गाऊँ तुम सो जाओ" और फ़िल्म 'बेटी-बेटे' का "आज कल में ढल गया दिन हुआ तमाम"। दोनों ही मास्टरपीसेस हैं अपनी अपनी जगह और मज़े की बात तो यह है कि दोनों ही शैलेन्द्र नें लिखे हैं और संगीत दिया है शंकर जयकिशन नें। बस इतना ज़रूर है कि 'ब्रह्मचारी' के गीत को व्यवसायिक कामयाबी ज़्यादा मिली, जबकि स्तर की बात करें तो 'बेटी-बेटे' का गीत ज़्यादा बेहतर लगता है। मैं बड़ा परेशान हो गया कि इन दोनों में से किस लोरी को चुना जाये, अन्त में "आज कल में ढल गया" के पक्ष में ही मन बना लिया। इस लोरी की सब से ख़ास बात यह है कि इसमें रफ़ी साहब नें हर एक शब्द में जान डाल दी है, आत्मा डाल दी है। और एस.जे. के ऑरकेस्ट्रेशन की भी क्या तारीफ़ करें! और शैलेन्द्र का काव्य, उफ़! गायक, गीतकार, और संगीतकार, तीनों के टीमवर्क नें इस लोरी को उस मुकाम तक पहुँचाया है कि इसमें किसी तरह का नुक्स निकाल पाना असंभव है। वायलिन और पियानो की ध्वनियों से शुरु हो कर इस गीत को रफ़ी साहब आगे बढ़ाते हैं "आज कल में ढल गया, दिन हुआ तमाम, तू भी सो जा सो गई रंग भरी शाम"।<br /><br />गीत के अंतरों में लाइन दो बार गाई जाती है, पहली बार रफ़ी साहब नें सीधे सीधे गाया है जबकि दोहराव करते वक़्त उसमें इस तरह से जज़्बात भरे हैं कि जो उनके तरह का कोई भावुक गायक ही गा सकता है। शैलेन्द्र के लेखन की बात करें तो "नींद कह रही है चल, मेरी बाहें थाम" में कितना सुन्दर मानवीकरण किया है उन्होंने। इस लोरी के एक अंतरे में पंक्ति है "जी रहे हैं फिर भी हम सिर्फ़ कल की आस पर"। ठीक इसी तरह के बोल उन्होंने "मैं गाऊँ तुम सो जाओ" में भी लिखा था - "पर जग बदला, बदलेगी एक दिन तक़दीर हमारी, कल तुम जब आँखें खोलोगे, तब होगा उजियारा"। इसी उम्मीद पर, इसी आशा पर तो दुनिया टिकी हुई है। शैलेन्द्र अपने इन्हीं सरल पर गहरे अर्थ वाले बोलों के लिए याद किए जाते रहे हैं। और रफ़ी साहब इस लोरी को समाप्त करते हुए "जिनके आहटें सुनी, जाने किसके थे क़दम" को इस तरह से गाया है कि जो किसी भी गायक के लिए एक लेसन है कि किस तरह से धुन पर नियंत्रण रखते हुए दर्द को उजागर करना चाहिए। इस लोरी के कुल तीन संस्करण फ़िल्म में है। पहला रफ़ी साहब का एकल, दूसरा लता जी का एकल जो एक बच्चे पर फ़िल्माया गया है, और तीसरा रफ़ी और लता का डुएट है जो सुनिल दत्त और जमुना (फ़िल्म की नायिका) पर फ़िल्माया गया है। आज हम सुनने जा रहे हैं रफ़ी साहब का एकल संस्करण। आइए आनन्द लें रफ़ी साहब की आवाज़ में वात्सल्य रस का।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_781_790/OIG785.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -<br /><span style="font-weight:bold;">मुकेश की आवाज़ में इस फ़िल्म का एक अन्य गीत 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बज चुका है। इस लोरी का एक सैड वर्ज़न लता जी की आवाज़ में भी है। बताइए फ़िल्म का नाम।</span><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_09.html">पिछले अंक</a> में <br /> <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://datastore.rediff.com/briefcase/6A60625C5C5B695F6B/e8la60o0hhw92vvm.D.241199.Sridevi_Surmai_Akhiyon_Mein.flv-0001.png" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-20713331415758311412011-11-09T18:30:00.001+05:302011-11-09T18:30:08.412+05:30तुझे सूरज कहूँ या चन्दा...शायद आपके पिता ने भी कभी आपके लिए ये गाया होगा<span style="font-weight:bold;">ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 784/2011/224</span> <br /><br /><span style="float:left;background:#fff;line-height:60px; padding-top:1px; padding-right:5px; font-family:times;font-size:70px;color:#000;">न</span>मस्कार! दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हम प्रस्तुत कर रहे हैं लघु शृंखला 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी'। इस शृंखला में आपनें बलराज साहनी पर फ़िल्माया तलत साहब का गाया फ़िल्म 'जवाब' का गीत सुना था। आज एक बार फिर बलराज साहब पर फ़िल्माई एक लोरी हम आपके लिए ले आये हैं, और इस बार आवाज़ है मन्ना डे की। एक समय ऐसा था जब किसी वयस्क चरित्र पर जब भी कोई गीत फ़िल्माया जाना होता तो संगीतकार और निर्माता मन्ना दा की खोज करते। इस बात का मन्ना दा नें एक साक्षात्कार में हँसते हुए ज़िक्र भी किया था कि मुझे बुड्ढों के लिए प्लेबैक करने को मिलते हैं। मन्ना दा की आवाज़ में कुछ ऐसी बात है कि नायक से ज़्यादा उनकी आवाज़ वयस्क चरित्रों पर फ़िट बैठती थी। लेकिन इससे उन्हें नुकसान कुछ नहीं हुआ, बल्कि कई अच्छे अच्छे अलग हट के गीत गाने को मिले। आज उनकी गाई जिस लोरी को हम सुनने जा रहे हैं, वह भी एक ऐसा ही अनमोल नग़मा है फ़िल्म-संगीत के धरोहर का। १९६९ की फ़िल्म 'एक फूल दो माली' का यह गीत है "तुझे सूरज कहूँ या चन्दा, तुझे दीप कहूँ या तारा, मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा"। प्रेम धवन के बोल और रवि का संगीत। इस गीत के बोल हैं तो बड़े साधारण, पर शायद हर माँ-बाप के दिल की आवाज़ है। हर माँ-बाप की यह उम्मीद होती है कि उसका बच्चा बड़ा हो कर बहुत नाम कमाये, उनका नाम रोशन करे। और यही बात इस गीत का मूल भाव है।<br /><br />पिता-पुत्र के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती 'एक फूल दो माली' देवेन्द्र गोयल की फ़िल्म थी, जिसमें बलराज साहनी, संजय ख़ान और साधना मुख्य भूमिकाओं में थे। बलराज साहनी को इस फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार के लिए नामांकन मिला था। फ़िल्म की भूमिका कुछ इस तरह की थी कि सोमना (साधना), एक ग़रीब लड़की, अपनी विधवा माँ लीला के साथ भारत-नेपाल बॉर्डर की किसी पहाड़ी में रहती हैं और सेब के बाग़ में काम करती है जिसका मालिक है कैलाश नाथ कौशल (बलराज साहनी)। कौशल पर्वतारोहण का एक स्कूल भी चलाता है जिसमें अमर कुमार (संजय ख़ान) एक विद्यार्थी है। सोमना और अमर मिलते हैं, प्यार होता है, और दोनों शादी करने ही वाले होते हैं कि एक तूफ़ान में अमर और सह-पर्वतारोहियों के मौत की ख़बर आती है। पर उस वक़्त सोमना गर्भवती हो चुकी होती हैं। उसे और उसके बच्चे को बचाने के लिए कौशल उससे शादी कर लेते हैं और बच्चे को अपना नाम देते हैं। ख़ुद पिता न बन पाने की वजह से उनका सोमना के बच्चे के साथ कुछ इस तरह का लगाव हो जाता है कि कोई कह ही नहीं सकता कि वो उस बच्चे का पिता नहीं है। पर नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। पाँच वर्ष बाद जब सोमना और कौशल अपने बेटे का छठा जनमदिन मना रहे होते हैं, उस पार्टी में अमर आ खड़ा होता है। आगे कहानी का क्या अंजाम होता है, यह तो आप ख़ुद ही देख लीजिएगा फ़िल्म की डी.वी.डी मँगवा कर, फ़िलहाल इस बेहद ख़ूबसूरत लोरी का आनन्द लीजिए मन्ना दा के स्वर में।<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OIG_781_790/OIG784.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -<br /><span style="font-weight:bold;">शैलेन्द्र, शंकर-जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी के कम्बिनेशन की यह लोरी है, पर इसे शम्मी कपूर पर फ़िल्माई नहीं गई है। तो बताइए किस लोरी की हम बात कर रहे हैं? अतिरिक्त हिण्ट - इस लोरी के तीन संस्करण हैं - रफ़ी सोलो, लता सोलो, रफ़ी-लता डुएट।</span><br /><br /><a href="http://podcast.hindyugm.com/2011/11/blog-post_08.html">पिछले अंक</a> में <br />बहुत अच्छे उज्जवल <br /> <br /><span style="font-weight:bold;">खोज व आलेख- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/interview-sujoi-chatterjee-old-is-gold.html">सुजॉय चट्टर्जी</a></span><br /><hr /><br /><div style="background:#e1f8fe; padding:5px 5px; font-weight:bold;"><a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/old-is-gold-100-songs-plahttp://podcast.hindyugm.com/2011/10/blog-post_18.htmlylist.html"><img title="Listen Sadabahar Geet" align="right" src="http://datastore.rediff.com/briefcase/6A60625C5C5B695F6B/e8la60o0hhw92vvm.D.241199.Sridevi_Surmai_Akhiyon_Mein.flv-0001.png" /></a>इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/10/blog-post_09.html">फ्लेशबैक एपिसोड</a> में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को</div><blockquote></blockquote>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com2