tag:blogger.com,1999:blog-28061915429488359412024-03-19T09:45:10.808+05:30आवाज़musical platform young talented new music song composers singers lyricists arrangers poets story tellers writers critics review writers hindi content writers bloggers are welcome every friday a new release new song fresh sound rock hard rock hindi rock hard metel pop jazz filmy lounge folk sufi poetic expressions podcast poetry your poem your voice online poetry recital online audience critics story new generation song foot tapping songs soul searching intruments new star featured artistनियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.comBlogger29125tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-78515096125149409182010-08-29T09:07:00.003+05:302010-08-29T09:09:16.477+05:30रविवार सुबह की कॉफी और एक और क्लास्सिक "अंदाज़" के दो अप्रदर्शित और दुर्लभ गीतनौशाद अली की रूहानियत और मजरूह सुल्तानपुरी की कलम जब जब एक साथ मिलकर परदे पर चलीं तो एक नया ही इतिहास रचा गया. उस पर महबूब खान का निर्देशन और मिल जाए तो क्या बात हो, जैसे सोने पे सुहागा. राज कपूर और नर्गिस जिस जोड़ी ने कितनी ही नायाब फ़िल्में भारतीय सिनेमा को दीं हैं उस पर अगर दिलीप कुमार का अगर साथ और मिल जाए तो कहने की ज़रुरत नहीं कि एक साथ कितनी ही प्रतिभाओं को देखने का मौका मिलेगा......अब तक तो आप समझ गए होंगे के हमारी ये कलम किस तरफ जा रही है...जी हाँ सही अंदाजा लगाया आपने लेकिन यहाँ कुछ का अंदाजा गलत भी हो सकता है. साहब अंदाजा नहीं अंदाज़ कहिये. साथ में मुराद, कुक्कु वी एच देसाई, अनवरीबाई, अमीर बानो, जमशेदजी, अब्बास, वासकर और अब्दुल. सिनेमा के इतने लम्बे इतिहास में दिलीप कुमार और राज कपूर एक साथ इसी फिल्म में पहली और आखिरी बार नजर आये. फिल्म की कहानी प्यार के त्रिकोण पर आधारित थी जिस पर अब तक न जाने कितनी ही फिल्मे बन चुकी हैं. फिल्म में केवल दस गीत थे जिनमे आवाजें थीं लता मंगेशकर, मुकेश, शमशाद बेगम और मोहम्मद रफ़ी साब की. फिल्म को लिखा था शम्स लखनवी ने, जी बिलकुल वोही जिन्होंने सेहरा १९६३ के संवाद लिखे थे. फिल्म १४८ मिनट की बनी थी जो बाद में काटकर १४२ मिनट की रह गयी. ये ६ मिनट कहाँ काटे गए इसका जवाब हम आज लेकर आये हैं.<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUtaFI5jxnFDHjWNi6KAwOeIbyIXF5hfI_R-6DkSbmDGo4ANgwFhx1zIAT9guNMkN7s7jO06wSCDuN4I43otsrjwQV1lPDI5TaHIzr9xXRtmX5S7xypbK6qVqxzla6RcnqVIMZ6cpBjAJh/s1600/Copy_of_Andaaz7.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 224px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUtaFI5jxnFDHjWNi6KAwOeIbyIXF5hfI_R-6DkSbmDGo4ANgwFhx1zIAT9guNMkN7s7jO06wSCDuN4I43otsrjwQV1lPDI5TaHIzr9xXRtmX5S7xypbK6qVqxzla6RcnqVIMZ6cpBjAJh/s320/Copy_of_Andaaz7.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5510475915270738338" /></a> <br />फिल्म में जैसे कि मैं कह चुका हूँ और आप भी जानते हैं दस गीत थे लेकिन बहुत कम लोग ये जानते होंगे के इस फिल्म में दो और गीत थे एक मुकेश के अकेली आवाज़ में और दूसरा मोहम्मद रफ़ी तथा लता मंगेशकर कि आवाज़ में. आज हम यहाँ दोनों ही गीतों को सुनवाने वाले हैं.पहला गीत है क्यूँ फेरी नज़र मुकेश कि आवाज़ में जिसकी अवधि कुल २ मिनट ५८ सेकंड है. दूसरा गीत जो युगल मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर कि आवाज़ में है जिसकी अवधि २ मिनट ४५ सेकंड है, गीत के बोल हैं सुन लो दिल का अफसाना मेरा अपना जो विचार है कि फिल्म के जो ६ मिनट कम हुए होंगे वो शायद इन्ही दो गीतों कि वजह से हुए होंगे जिनकी कुल अवधि ५ मिनट ५६ सेकंड है. बातें तो इस फिल्म और इसके गीतों के बारे में इतनी है के पूरी एक वेबसाइट बनायीं जा सके लेकिन आपका ज्यादा वक़्त न लेते हुए सुनते हैं ये दोनों गीत. <br /><br /><span style="font-weight:bold;">Song- Kyon feri nazar (mukesh), An Unreleased Song From the movie "Andaaz"</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OigPlusSundaymorningcoffee/andaazunreleasedmukesh.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">Song - Sun lo dil ka afsana (Lata-Rafi), An Unreleased song from the movie "Andaaz"</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OigPlusSundaymorningcoffee/andaazunreleasedrafilata.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/07/moveen-host-of-sunday-morning-coffee.html">मुवीन</a></span><br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-30508125054811359262010-08-22T09:13:00.002+05:302010-08-22T09:13:00.546+05:30रविवार सुबह की कॉफी और हिंदी सिनेमा में मुस्लिम समाज के चित्रण पर एक चर्चाभारतीय फिल्म जगत में समय समय पर कई प्रकार के दौर आये हैं. और इन्ही विशेष दौर से मुड़ते हुए भारतीय सिनेमा भी चल्रता रहा कभी पथरीली सड़क की तरह कम बजट वाली फ़िल्में तो कभी गृहस्थी में फसे दांपत्य जीवन को निशाना बनाया गया, लेकिन हर दौर में जो भी फ़िल्में बनीं हर एक फिल्म किसी न किसी रूप से किसी न किसी संस्कृति से जुड़ीं रहीं. जैसे बैजू बावरा (१९५२) को लें तो इस फिल्म में नायक नायिका के बीच प्रेम कहानी के साथ साथ एतिहासिक पृष्ठभूमि, गुरु शिष्य के सम्बन्ध, संगीत की महिमा का गुणगान भी किया गया है. भारतीय फिल्मों में एक ख़ास समाज या धर्म को लेकर भी फ़िल्में बनती रहीं और कामयाब भी होती रहीं. भारत बेशक हिन्दू राष्ट्र है लेकिन यहाँ और धर्मों की गिनती कम नहीं है. अपनी भाषा शैली, संस्कृति और रीति रिवाजों से मुस्लिम समाज एक अलग ही पहचान रखता है. भारतीय सिनेमा भी इस समाज से अछूता नहीं रहा और समय समय पर इस समाज पर कभी इसकी भाषा शैली, संस्कृति और कभी रीति रिवाजों को लेकर फ़िल्में बनीं और समाज को एक नयी दिशा दी. सिनेमा जब से शुरू हुआ तब से ही निर्माताओं को इस समाज ने आकर्षित किया और इसकी शुरुआत ३० के दशक में ही शुरू हो गयी ४० के दशक में शाहजहाँ १९४६ और ५० एवं ६० के दशक में अनारकली (१९५३), मुमताज़ महल (१९५७), मुग़ल ए आज़म (१९६०), चौदहवीं का चाँद (१९६०), छोटे नवाब (१९६१), मेरे महबूब (१९६३), बेनजीर (१९६४), ग़ज़ल (१९६४), पालकी (१९६७), बहु बेगम (१९६७) आदि फ़िल्में बनीं. उस दौर में जो भी इस समाज को लेकर फ़िल्में आयीं ज्यादातर एतिहासिक ही थीं. इस प्रकार की फिल्मों में ख़ास संगीत और ख़ालिश इसी समाज की भाषा प्रयोग की जाती थी. फिल्मांकन और कलाकारों के हाव भाव से ही इनको पहचान लिया जाता है.<br /><br />संगीत की द्रष्टि से देखा जाए तो इनका संगीत भी दिल को छू लेने वाला बनाया जाता था. जिसके माहिर नौशाद अली साहब थे. कौन भूल सकता है "ये जिंदगी उसी की है जो किसी का हो लिया (अनारकली १९५३), प्यार किया तो डरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या, ये दिल की लगी कम क्या होगी (मुग़ल ए आज़म, १९६०), रंग और नूर की बारात किसे पेश करूँ (ग़ज़ल १९६४) हम इंतज़ार करेंगे क़यामत तक, खुदा करे के क़यामत हो और तू आये (बहु बेगम, १९६७) ये कुछ वो झलकियाँ थीं जो इस समाज के संगीत की छाप दिल ओ दिमाग पर छोडती है….<br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत : ये जिंदगी उसी की है जो किसी का हो गया - लता मंगेशकर - अनारकली -१९५३</span> <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OigPlusSundaymorningcoffee/sundaymuslimsamaaj03.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />थोडा आगे चलकर ७० और ८० के दशक में इस समाज की फिल्मों में कुछ बदलाव ज़रूर आये लेकिन भाषा शैली और संस्कृति अब भी वही रही. इस दशक ने इस समाज के परदे को हटाकर कोठो पर ला खड़ा किया. अब नवाब या सामंती स्वामी पान चबाते हुए अपना धन कोठो पर नाचने वाली तवायफों पर लुटाते नज़र आते हैं. उमराव जान (१९८२) और पाकीज़ा (१९७२) ने इस समाज की शकल ही बदलकर रख दी. लेकिन भाषा शैली और संस्कृति से इस दौर में कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी. ७० के दशक से ही समानांतर सिनेमा की शुरुआत हुयी तो इससे ये समाज भी अछूता नहीं रहा और एलान (१९७१) और सलीम लंगड़े पर मत रो (१९९०) जैसी फ़िल्में आई. सलीम लंगड़े पर मत रो (१९९०) निम्न मध्य वर्गीय युवाओं की अच्छी समीक्षा करती है. गरम हवा (१९७३) उस दौर की एक और उत्तम फिल्मों की श्रेणी में खड़ी हो सकती है जो विभाजन के वक़्त लगे ज़ख्मों को कुरेदती है.<br /> <br />इस दौर की दो इसी समाज पर बनी फ़िल्में जो इस पूरे समाज की फिल्मों का प्रतिनिधित्व करती है एक निकाह (१९८२) और बाज़ार (१९८२). एक तरफ निकाह (१९८२) में जहाँ मुस्लिम समाज में प्रचलित तलाक शब्द पर वार किया गया है तो वहीँ दूसरी तरफ बाज़ार (१९८२) में एक नाबालिग लड़की को एक ज्यादा उम्र के व्यक्ति के साथ शादी की कहानी है. यहाँ हम बताते चलें कि उमराव जान १९०५ में मिर्ज़ा रुसवा नामक उपन्यास पर आधारित थी. ७० के दशक में कुछ फिल्मों में एक समाज के किरदार भी डाले गए और वो किरदार भी खूब चले यहाँ तक के फिल्म को नया मोड़ देने के लिए काफी थे. मुक़द्दर का सिकंदर (१९७८) में जोहरा बाई और शोले (१९७५) में रहीम चाचा इसके अच्छे उदाहरण हो सकते हैं. अलीगढ कट शेरवानी, मुंह में पान चबाते हुए, जुबां पर अल्लामा इकबाल या मिर्ज़ा ग़ालिब कि ग़ज़ल गुनगुनाते हुए एक अलग ही अंदाज़ में चलना तो बताने की ज़रुरत नहीं थी के ये किरदार किस समाज से ताल्लुक रखता है. घर कि औरतें या तो पारंपरिक बुर्के मैं या फिर भारी बर्कम लहंगा और घाघरा पहने नज़र आती हैं. बड़ी उमर की औरतें जैसे अम्मीजान नमाज़ में मशगूल होती हैं या फिर पान चबाते हुए घमंडी तरीके की चाल में जब दरवाजे का पर्दा उठाते हुए बाहर आती हैं तो दर्शक समझ जाते हैं कि ये वक़्त ग़ज़ल का आ पहुंचा है जो मुजरे की शक्ल में होगा.<br /> <br /><span style="font-weight:bold;">गीत : चलते चलते यूंही कोई मिल गया था - लता मंगेशकर - पाकीज़ा - १९७२ </span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OigPlusSundaymorningcoffee/sundaymuslimsamaaj02.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />८० के दशक का अंत होते होते और ९० के दशक कि शुरुआत में इस समाज कि फिल्मों का चेहरा पूरी तरह से बदल चुका था. अब जो किरदार पहले रहीम चाचा कि शकल में डाले जाते थे अब वो तस्कर बन चुके हैं.फिल्म अंगार (१९८०) को हम उदाहरण के लिए ले सकते हैं. जहाँ एक तरफ खालिश इस समाज के प्रति समर्पित फ़िल्में बनी तो वहीँ दूसरी तरफ हिन्दू मुस्लिम के मिलाने के लिए भी इस समाज कि फिल्मों का सहारा लिया गया. याद दिला दूं ६० के दशक का वो गीत 'तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान कि औलाद है इंसान बनेगा' इसका अच्छा खाका खीचता है. इस प्रकार कि श्रेणी में ईमान धरम (१९७७), क्रांतिवीर (१९९४) आदि को ले सकते हैं. ९० से अब तक इस समाज का दूसरा रूप ही सामने आया है जिसे आतंकवाद का नाम दिया गया है. इस तर्ज़ पर भी अनगिनत फ़िल्में बनीं और बन रहीं है कुछ के नाम लें तो सरफ़रोश (१९९९), माँ तुझे सलाम , पुकार (२०००), फिजा (२०००), मिशन कश्मीर (२०००), के नाम लिए जा सकते हैं. छोटे छोटे घरों से गाँव बनता है, छोटे छोटे गाँवों से जिला और स्टेट बनकर देश बनता है. इसी प्रकार छोटे छोटे समाजों और संस्कृतियों से सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति बनी हुई है. लेकिन इतना तो तय है के समाज कोई भी हो संस्कृति कोई भी हो, भारतीय समाज अपने आप में एक सम्पूर्ण समाज और संस्कृति है जिसमे न कुछ जोड़ा जा सकता है और न कुछ निकाला जा सकता है.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत : तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा - मोहम्मद रफ़ी - धूल का फूल - १९५९</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OigPlusSundaymorningcoffee/sundaymuslimsamaaj01.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/07/moveen-host-of-sunday-morning-coffee.html">मुवीन</a></span><br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-47929080580082411952010-08-15T08:28:00.002+05:302010-08-15T11:13:42.268+05:30रविवार सुबह की कॉफी और जश्न-ए-आजादी पर जोश से भरने वाला एक अप्रकाशित दुर्लभ गीत रफ़ी साहब का गाया - लहराओ तिरंगा लहराओरात कुछ अजीब थी सच कहूँ तो रात चाँदनी ऐसे लग रही थी जैसे आकाश से फूल बरसा रही हो और बादल समय समय पर इधर उधर घूमते हुए सलामी दे रहे हों. और सुबह सुबह सूरज की किरणों की भीनी भीनी गर्मी एक अलग ही अंदाज़ मे अपनी चह्टा बिखेर रही थी. ऐसा लग रहा था के जैसे ये सब अलमतें हमें किसी ख़ास दिन का एहसास क़रना चाहते हैं. रात कुछ अजीब थी सच कहूँ तो रात चाँदनी ऐसे लग रही थी जैसे आकाश से फूल बरसा रही हो और बादल समय समय पर इधर उधर घूमते हुए सलामी दे रहे हों. और सुबह सुबह सूरज की किरणों की भीनी भीनी गर्मी एक अलग ही अंदाज़ मे अपनी छटा बिखेर रही थी. ऐसा लग रहा था के जैसे ये सब अलमतें हमें किसी ख़ास दिन का एहसास क़रना चाहते हैं. शायद आज सचमुच कोई ख़ास दिन ही तो है और ऐसा ख़ास दिन कि जिसकी तलाश करते हुए ना जाने कितनी आँखें पथरा गयीं, कितनी आँखें इसके इंतज़ार मे हमेशा के लिए गहरी नींद मे सो गयीं. <br /><br />आज हमारे द्वारा 15 ऑगस्ट को मनाने का अंदाज़ सिर्फ़ कुछ भाषण होते हैं या फिर तिरंगे को फहरा देना कुछ देशभक्ति गीत बजाना जो सिर्फ़ इसी दिन के लिए होते हैं. मुझे याद आ रहा है के 90 के दशक की शुरुआत मे 1 हफ्ते पहले ही से देशभक्ति के गीत रेडियो टीवी पर गूंजने लगते थे. रविवार को प्रसारित होने वाली रंगोली 15 दिन पहले से ही इस दिन का एहसास लेकर आती थी, मगर आज क्या होता है कहने की ज़रूरत नहीं है समझना काफ़ी है. आज़ादी पाने के लिए क्या कुछ करना पड़ा कितनी क़ुर्बानियाँ दीं गयी इन पर लाखों किताबें लिखी जा चुकी हैं और भी शायद लिखी जाती रहेंगी. आज़ादी से पहले भी कुछ साहित्य छपता रहता था दैनिक, साप्ताहिक या मासिक पत्र निकाले जाते थे जिनमें क्रांतिकारियों के लिए संदेश या फिर उनमें जोश भरने के लेख होते थे. कई ऐसे पत्रों को अंग्रेज सरकार ने बंद करा दिया, जब्त कर लिया, उनकी प्रतिया बेचने और खरीदने पर पाबंदियाँ लगा दीं मगर इन सब के बावजूद भी वो उस सैलाब को नहीं रोक पाए. लेखन सामग्री के साथ साथ ही भारतीय फिल्मों ने भी इसमें योगदान किया लेकिन फिल्मों का दायरा पत्रों से ज़्यादा बड़ा था और ज़्यादा असर करता था दूसरे इस प्रकार की फ़िल्मे बनाना एक जोखिम का काम था क्योंकि इसमे पैसा ज़्यादा लगता था. लेकिन फिर भी समय समय पर इस प्रकार की फ़िल्मे बनीं जो अंग्रेज हुकूमत पर सीधे सीधे तो नहीं लेकिन शब्दों के बाणों को छुप छुप कर चलाते थे. <br /><br />मुझे याद आ रहा है 1944 मे नौशाद अली के संगीत निर्देशन मे बनी “पहले आप” का गीत “हिन्दुस्तान के हम हैं हिन्दुस्तान हमारा, हिंदू मुस्लिम दोनो की आँखों का तारा” इस गीत मे सभी धर्मो को एक साथ मिलकर देश प्रेम की शिक्षा दी गयी है, जो अंगेजों की फुट डालो और शासन करो की नीति को चुनौती देता है यानी एक साथ मिलजुल के रहेंगे तो किसी भी मुसीबत का मुक़ाबला कर सकते हैं. इससे पहले भी 1936 मे आई फिल्म जन्मा भूमि के गीत “ जाई जाई प्यारी जन्मा भूमि” , “ माता ने जानम दिया” और ना जाने कितने ही…….<br /><br />एक बात जो हम सब पर लागू होती है के जब कोई चीज़ हमें नयी नयी मिलती है तो उसका उन्माद कुछ ज़्यादा होता है जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जाता है ये उल्लास कम होता जाता है मगर अपनी आज़ादी के बारे मे ऐसा नहीं है 63 साल गुज़र जाने के बाद भी ये उन्माद कम नहीं हुवा. आज़ादी के बाद जब 31 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी “बापू” वीरगति को प्राप्त हुए तो ‘हुसनलाल भगातराम’ के संगीत मे सुर मिलाए ‘राजेन्द्र कृष्णा’ ने और आवाज़ दी मोहम्मद रफ़ी ने. उसके बाद तो फिल्मकारों के जज़्बात ने ऐसा जोश मारा के आज़ादी और देश प्रेम को लेकर फिल्म की जो झड़ी लगी तो ये बारिश अब तक रुकने का नाम नहीं ले रही है शहीद (1948), हिन्दुस्तान हमारा (1950), जलियाँवाला बाग की ज्योति (1953), झाँसी की रानी (1953), शहीद ए आज़म भगत सिंह (1954), वतन (1954), शहीद भगत सिंह (1963), हक़ीक़त (1964), शहीद (1965), नेताजी सुभाष चंद्र बोस् (1966), क्रांति (1980) बॉर्डर (1997), लगान (2001), मंगल पांडे (2005) आदि फ़ेरहिस्त बहुत लंबी है वक़्त बहुत कम.<br /><br />अच्छा दोस्तो कभी आपने गौर किया है के आज़ादी का पहला जनमदिन कैसे मनाया गया होगा. मैं कभी कभी सोचता हूँ के 15 आगस्त 1948 को आज़ाद देश मे साँस लेने वाले लोगों के लिए कितना सुखदाई होगा वो दिन, क्या जोश रहा होगा, क्या जज़्बात रहे होंगे, किस प्रकार से एक दूसरे को बधाइयाँ दीं गयीं होंगी.<br /><br />उस वक़्त 15 आगस्त महज़ कोई छुट्टी का दिन नहीं रहा होगा बल्कि एक त्योहार के रूप मे मनाया गया होगा.. इसी से संबंधित एक गीत आज यहाँ पेश किया जा रहा है मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज़ मे इस गीत के बोल नीचे लिखे हैं इन पर ज़रा ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि सुनते वक़्त इतना ध्यान नहीं दे पाते…<br /><br /><span style="font-weight:bold;">आओ एक बरस की आज़ादी का आओ सब त्योहार मनाओ <br />नगर नगर और डगर डगर लहराओ तिरंगा लहराओ <br /><br />यही तिरंगा प्राण हमारा यही हमारी माया<br />हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पर इसकी छाया <br />आज इसी झंडे के नीचे आए भारत के बेटों सोचो<br />आज़ादी के एक बरस मे क्या खोया क्या पाया<br />आज ईद है आज दीवाली आओ गले लग जाओ<br />तिरंगा लहराओ <br /><br />आज के दिन तुम भूल ना जाना बापू जी की अमृत वाणी<br />दूर ले गयी हमसे उनको एक हमारी नादानी<br />कब समझोगे राम, मोहम्मद और नानक के बेटों <br />कब लाएगी रंग हमारे देश पिता की कुर्बानी<br />जिसने दिया तिरंगा तुमको उसको भूल ना जाओ<br />तिरंगा लहराओ <br /><br />आओ आज तिरंगे के नीचे खा लें हम कसमे<br />प्यार की रीत से बदल डालेंगे नफ़रत की सब रस्मे<br />वीर जवाहर की सेना बन दुनिया पर छा जाओ<br />जय हिंद कहो- (4) लहराओ तिरंगा लहराओ <br />नगर नगर और डगर डगर लहराओ तिरंगा लहराओ <span style="font-weight:bold;"></span></span><br /><br />इतना तो तय है कि ये गीत 15 आगस्त 1948 से पहले गाया गया होगा इसकी पहली कड़ी पर ध्यान दें तो आखिरी पंक्ति मे क्या खोया क्या पाया एक बरस मे ही खोने और पाने की बात करने से पता चलता है कि शायर भारत को किस मुकाम पर देखना चाहता है. खैर अब मैं इस गीत के बारे मे ज़्यादा नहीं कहूँगा वरना सुनने का मज़ा कम हो जाएगा मगर इसके साथ ही एक वादा ज़रूर करूँगा के भविष्य मे गीतों की शायराना खूबसूरती को बाहर निकालूँगा, आज़ादी को लेकर फ़िल्मे तो बनती रहीं वहीं प्राइवेट गीत भी कम नहीं गाए गये मगर वो गीत आज श्रोताओं के कुछ ख़ास वर्ग के ही पास हैं और वो उनको आम श्रोताजन को नहीं पहुँचाते हैं इसकी एक ख़ास वजह जो मैं समझता हूँ वो ये हैं कि इन गीतो का मुकाम संगीत प्रेमियों की नज़र मे काफ़ी उँचा होता है और कुछ असामाजिक तत्व जिन्हें संगीत से ख़ास लगाव नहीं होता है इसकी कीमत वसूल करने लग जाते हैं वहीं एक संगीत प्रेमी कभी ये नहीं चाहेगा की इस धरोहर का गलत उपयोग किया जाए.<br /><br />इस गीत के बारे मे ज़्यादा जानकारी मुझे नहीं मिल पर अगर किसी संगीत प्रेमी के पास हो तो बताएँ.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">LAHRAAO TIRANGA LAHRAAO- UNRELEASED RARE SONG BY MD. RAFI</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/OigPlusSundaymorningcoffee/independencedayunreleasedrafi.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/07/moveen-host-of-sunday-morning-coffee.html">मुवीन</a></span><br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-73927356348723376902010-08-08T08:55:00.001+05:302010-08-08T08:55:55.870+05:30रविवार सुबह की कॉफी और एक बेहद दुर्लभ अ-प्रकाशित गीत फिल्म मुग़ल-ए-आज़म से (26)...हुस्न की बारात चलीज़रा गौर कीजिये कि आप किसी काम को दिल से करें उसका पूरा मेहनताना तो मिले लेकिन उसका वो इस्तेमाल न किया जाए जिसके लिए आपने इतनी मेहनत की है. तो आपको कैसा लगेगा. शायद आपका जवाब भी वही होगा जो मेरा है कि बहुत बुरा लगेगा. संगीतकार ने दिन रात एक करके धुन बनाई, गीतकार के शब्दों के भण्डार में डूबकर उसपर बोल लिखे तो वही गायक या गायिका के उस पर मेहनत का न जाने कितने रीटेक के बाद रंग चढ़ाया मगर वो गीत श्रोताओं तक नहीं पहुँच पाया तो इस पर तीनों की ही मेहनत बेकार चली गयी क्योंकि एक फनकार को केवल वाह वाह चाहिए जो उसे नहीं मिली.<br /><br />लेकिन ऐसे गीतों की कीमत कुछ ज्यादा ही हुआ करती है इस बात को संगीत प्रेमी अच्छी तरह से जानते है, अगर ये गीत हमें कहीं से मिल जाए तो हम तो सुनकर आनंद ही उठाते हैं. लेकिन इतना तो ज़रूर है की इन गीतों को सुनने के बाद आप ये अंदाजा लगा सकते हैं की अगर ये गीत फिल्म के साथ प्रदर्शित हो जाता तो शायद फिल्म की कामयाबी में चार चाँद लगा देता.<br /><br />ये गीत कभी भी किसी भी मोड़ पर फिल्म से निकाल दिए जाते है जिसकी बहुत सारी वजह हो सकती हैं कभी फिल्म की लम्बाई तो कभी प्रोडूसर को पसंद न आना वगैरह वगैरह. वहीँ दूसरी तरफ कभी कभी ऐसा भी होता है दोस्तों की किसी गीत को संगीतकार अपने प्राइवेट बना लेते हैं और वो फिल्म में आ जाता है यहाँ तक के फिल्म की कहानी उस गीत के अनुरूप मोड़ दी जाती है, फिल्म इतिहास में ऐसे बहुत से गीत हैं जिन्होंने फिल्म की कहानी को एक नया मोड़ दे दिया. खैर इस बारे में कभी तफसील से चर्चा करूंगा एक पूरा अंक इसी विषय पर लेकर.<br /><br />आप सोच रहे होंगे की ये बातें कब ख़त्म हों और गीत सुनने को मिले तो मैं ज्यादा देर नहीं करूँगा आपको गीत सुनवाने में. ये गीत जो मैं यहाँ लेकर आया हूँ फिल्म मुग़ल ऐ आज़म से है, इस फिल्म के बारे में हर जगह इतनी जानकारी है के मैं कुछ भी कहूँगा तो वो ऐसा लगेगा जैसे मैं बात को दोहरा रहा हूँ. लेकिन फिर भी यहाँ एक बात कहना चाहूँगा जो कुछ कम लोगों को ही पता है की बड़े गुलाम अली साब के इस फिल्म में दो रागों में अपनी आवाज़ दी थी, उस ज़माने में प्लेबैक सिंगिंग आ चुकी थी लेकिन बड़े गुलाम अली साब ने ये दोनों राग ऑनलाइन शूटिंग की दौरान ही गाये थे, बाद में इनकी रेकॉर्डिंग स्टूडियो में हुयी थी. उस ज़माने में बड़े गुलाम अली साब ने इन दो रागों के लिए ६० हज़ार रूपए लिए थे जो उस ज़माने में बहुत ज्यादा थे मगर के. आसिफ तो १ लाख सोचकर गए थे.<br /><img align="right" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiLP2ZlbYtq0lLzli-s3OpmPoP2po4Bc0d8-0QViWm2JuMMnyY0u4XA6IGXoAnTSOCKR63vQxTLZnasKHIx4P27EhbHoH1SND2PjSTEQPBN-MuF5hdpQwpUqbJf330kiZp1l-rjAHknn2k/s320/mughleazam.jpg" /><br />चलिए अब गीत की तरफ आते है इस गीत में आवाज़े हैं शमशाद बेगम, लता मंगेशकर और मुबारक बेगम की.<br />ये गीत फिल्म की कहानी के हिसाब से कहाँ पर फिल्माया जाना था इस का हम तो अंदाजा ही लगा सकते है. मेरे हिसाब से तो इस गीत का फिल्मांकन मधुबाला उर्फ़ अनारकली को दिलीप कुमार उर्फ़ शहजादा सलीम के लिए तैयार करते वक़्त होना चाहिए था. जहाँ अनारकली बनी मधुबाला शहजादा सलीम बने दिलीप कुमार को गुलाब के फूल में बेहोशी के दवा सुंघा देती हैं.<br /> <br />पेश है गीत-<br /><br /><span style="font-weight:bold;">Husn Kii Baarat Chali - Unreleased Song From Mughal-e-Azam</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/oigghazals451-2-460/Sundayrare1.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/07/moveen-host-of-sunday-morning-coffee.html">मुवीन</a></span><br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-19801209588466323832010-08-01T09:47:00.003+05:302010-08-01T10:05:55.267+05:30रविवार सुबह की कॉफी और रफ़ी साहब के अंतिम सफर की दास्ताँ....दिल का सूना साज़३१ जुलाई को सभी रफ़ी के चाहने वाले काले दिवस के रूप मानते आये हैं और मनाते रहेंगे क्यूंकि इस दिन ३१ जुलाई १९८० को रफ़ी साब हम सब को छोड़ कर चले गए थे लेकिन इस पूरे दिन का वाकया बहुत कम लोग जानते हैं आज उस दिन क्या क्या हुआ था आपको उसी दिन कि सुबह के साथ ले चलता हूँ.<br /><img align="right" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjyWLVjp9DF8zwxjjyIpNr624Eg05CzJFuNMDLQ-bLau-mI2YVGdDLPPytywQPK2yf4hX5JeU5PZAjy5yxRKQoc_yAXf5iF6rP_VIPSkM98zfOcMkJCnQ91yQmWOr15JzEgI7pUXQRYIQxI/s400/rafi+43200720626am.jpg" /><br />३१ जुलाई १९८० को रफ़ी साब जल्दी उठ गए और तक़रीबन सुबह ९:०० बजे उन्होंने नाश्ता लिया. उस दिन श्यामल मित्रा के संगीत निर्देशन तले वे कुछ बंगाली गीत रिकॉर्ड करने वाले थे इसलिए नाश्ते के बाद उसी के रियाज़ में लग गए. कुछ देर के बाद श्यामल मित्रा उनके घर आये और उन्हें रियाज़ करवाया. जैसे ही मित्रा गए रफ़ी साब को अपने सीने में दर्द महसूस हुआ. ज़हीर बारी जो उनके सचिव थे उनको दवाई दी वहीँ दूसरी तरफ ये बताता चलूँ के इससे पहले भी रफ़ी साब को दो दिल के दौरे पड़ चुके थे लेकिन रफ़ी साब ने उनको कभी गंभीरता से नहीं लिया. मगर हाँ नियमित रूप से वो एक टीका शुगर के लिए ज़रूर लेते थे और अपने अधिक वज़न से खासे परेशान थे. सुबह ११:०० बजे डॉक्टर की सलाह से उनको अस्पताल ले जाया गया जहाँ एक तरफ रफ़ी साब ने अपनी मर्ज़ी से माहेम नेशनल अस्पताल जाना मंज़ूर किया वहीँ से बदकिस्मती ने उनका दामन थाम लिया क्योंकि उस अस्पताल में कदम से चलने की बजाय सीडी थीं जो एक दिल के मरीज़ के लिए घातक सिद्ध होती हैं और रफ़ी साब को सीढियों से ही जाना पड़ा. शाम ४:०० बजे के आसपास उनको बॉम्बे अस्पताल में दाखिल किया गया लेकिन संगीत की दुनिया की बदकिस्मती यहाँ भी साथ रही और यहाँ भी रफ़ी साब को सीढियों का सहारा ही मिला. अस्पताल में इस मशीन का इंतज़ाम रात ९:०० बजे तक हो पाया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. रात ९:०० बजे के आसपास डॉक्टर के. ऍम. मोदी और डॉक्टर दागा ने उनका मुआयना किया और डॉक्टर के. ऍम. मोदी ने बताया के अब रफ़ी साब के बचने की उम्मीद बहुत कम है.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत : तू कहीं आस पास है दोस्त</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundayrareextra/sunday04.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />और आखिर वो घडी आ ही गयी जो न आती तो अच्छा होता काश के वक़्त थम जाता उस वक़्त को निकालकर आगे निकल जाता :<br /><br />देखकर ये कामयाबी एक दिन मुस्कुरा उठी अज़ल<br />सारे राग फीके पड़ गए हो गया फनकार शल<br />चश्मे फलक से गिर पड़ा फिर एक सितारा टूटकर<br />सब कलेजा थामकर रोने लगे फूट फूटकर<br />लो बुझ गयी समां महफ़िल में अँधेरा हो गया<br />जिंदगी का तार टूटा और और तराना सो गया<br /> <br /><span style="font-weight:bold;">गीत : कोई चल दिया अकेले</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundayrare01/sunday02.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /> <br />मजरूह सुल्तानपुरी ने तकरीबन शाम ८:०० बजे नौशाद अली को टेलीफ़ोन करके बताया कि रफ़ी साब कि तबियत बहुत ख़राब है. नौशाद अली ने इस बात ज्यादा गौर नहीं दिया क्योंकि सुबह ही तो उन्होंने रफ़ी साब से टेलीफ़ोन पर बात की थी. लेकिन रात ११:०० बजे एक पत्रकार ने नौशाद अली को टेलीफ़ोन करके बताया के रफ़ी साब चले गए. नौशाद अली को फिर भी यकीन नहीं आया और उन्होंने रफ़ी साब के घर पर टेलीफ़ोन किया जिसपर इस खबर की पुष्टि उनकी बेटी ने की. नौशाद अली जब अपनी पत्नी के साथ रफ़ी साब के घर गए तो उनका बड़ा बेटा शहीद रफ़ी बेतहाशा रो रहा है.<br /><br />नौशाद अली ने दिलीप कुमार के घर टेलीफ़ोन किया जो उनकी पत्नी सायरा बानो ने उठाया लेकिन दिलीप कुमार की तबियत का ख़याल करते हुए उन्होंने इस बारे में अगली सुबह बताया.<br /> <br /><span style="font-weight:bold;">गीत : जाने कहाँ गए तुम</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundayrare01/sunday01.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br />तकरीबन १०:१० बजे उनके इस दुनिया से कूच करने के वक़्त उनकी बीवी, बेटी और दामाद बिस्तर के पास थे.<br /><br />अस्पताल के नियमानुसार उनके शरीर को उस रात उनको परिवार वालों को नहीं सौंपा गया तथा पूरी रात उनका शरीर अस्पताल के बर्फ गोदाम में रहा.<br /> <br />अगले दिन १ अगस्त १९८० सुबह ९:३० बजे रफ़ी साब का शरीर उनको परिवार को मिल सका उस वक़्त साहेब बिजनोर, जोहनी विस्की और ज़हीर बारी भी मौजूद थे. दोपहर १२:३० बजे तक किसी ट्रक का इंतज़ाम न होने की वजह से कन्धों पर ही उनको बांद्रा जामा मस्जिद तक लाया गया वहां पर जनाज़े की नमाज़ के बाद उनको ट्रक द्वारा शंताक्रूज़ के कब्रिस्तान तक लाया गया. शाम ६:१५ बजे कब्रिस्तान पहुंचकर ६:३० बजे तक वहीँ दफना दिया गया.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">गीत : दिल का सूना साज़</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" height="30" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile=http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundayrare01/sunday03.mp3"><param name="quality" value="high"><param name="menu" value="false"><param name="wmode" value="transparent"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति- <a href="http://podcast.hindyugm.com/2010/07/moveen-host-of-sunday-morning-coffee.html">मुवीन</a></span><br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-47225557465246682222010-07-30T08:21:00.001+05:302010-07-30T08:22:56.446+05:30मिलिए आवाज़ के नए वाहक जो लायेंगें फिर से आपके लिए रविवार सुबह की कॉफी में कुछ दुर्लभ गीतदोस्तों यूँ तो आज शुक्रवार है, यानी किसी ताज़े अपलोड का दिन, पर नए संगीत के इस सफर को जरा विराम देकर आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं आवाज़ के एक नए वाहक से. दोस्तों आपको याद होगा हर रविवार हम आपके लिए लेकर आते थे शृंखला "रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत". जो हमारे नए श्रोता हैं वो पुरानी कड़ियों का आनंद <a href="http://podcast.hindyugm.com/?cx=partner-pub-9993819084412964:kw52fxuglx0&cof=FORID:11&ie=UTF-8&q=%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0+%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A4%B9+%E0%A4%95%E0%A5%80+%E0%A4%95%E0%A5%89%E0%A4%AB%E0%A5%80+&sa=%E0%A4%87%E0%A4%B8+%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%9F+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A5%87%E0%A4%82&siteurl=podcast.hindyugm.com/">यहाँ</a> ले सकते हैं. कुछ दिनों तक इसे सजीव सारथी सँभालते रहे फिर काम बढ़ा तो तलाश हुई किसी ऐसे प्रतिनिधि की जो इस काम को संभाले. क्योंकि इस काम पे लगभग आपको पूरे हफ्ते का समय देना पड़ता था, दुर्लभ गीतों की खोज, फिर आलेख जिसमें विविधता आवश्यक थी. दीपाली दिशा आगे आई और कुछ कदम इस कार्यक्रम को और आगे बढ़ा दिया, उनके बाद किसी उचित प्रतिनिधि के अभाव में हमें ये श्रृखला स्थगित करनी पड़ी. पर कुछ दिनों पहले आवाज़ से जुड़े एक नए श्रोता मुवीन जुड़े और उनसे जब आवाज़ के संपादक सजीव ने इस शृंखला का जिक्र किया तो उन्होंने स्वयं इस कार्यक्रम को फिर से अपने श्रोताओं के लिए शुरू करने की इच्छा जतलाई. तो दोस्तों हम बेहद खुशी के साथ आपको बताना चाहेंगें कि इस रविवार से मुवीन आपके लिए फिर से लेकर आयेंगें रविवार सुबह की कॉफी से संग कुछ बेहद बेहद दुर्लभ और नायाब गीत. जिन्हें आप हमेशा हमेशा सजेह कर रखना चाहेंगें. लेकिन पहले आपका परिचय मुवीन से करवा दें.<br /><br /><hr /><img align="right" src="http://farm5.static.flickr.com/4154/4840973782_e26a2b2b6b_m.jpg" /><br /><b>नाम : मुवीन<br />जन्म स्थान : गाँव दुलखरा, जिला बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश<br />जन्मतिथि : ०६ मार्च, १९८१<br />शिक्षा : स्नातक<br />कार्य क्षेत्र : दिल्ली में प्राइवेट कम्पनी में नौकरी<br /></b><br /> <br /><br />तीसरी कक्षा पास की ही थी कि पिताजी गर्मियों कि छुट्टियों में दिल्ली घुमाने सपरिवार लेकर आये. आए दिल्ली घूमने के लिए और यहीं के होकर रह गए, ये बात १९८८ की है. बचपन से ही गीत सुनने और गुनगुनाने का शौक था. गाँव के स्कूल में कोई कार्यक्रम ऐसा नहीं होता था जिसमें मैंने न गाया हो ये सिलसिला दसवीं कक्षा तक चलता रहा. उसके बाद कुछ पढाई के दबाव के कारण सिलसिला टूट गया और आज तक नहीं जुड़ पाया.<br /><br />मगर सुनने का शौक अब भी बरक़रार रहा. गीतों का संग्रह करने का विचार पहली बार १९९६ में आया और लगभग ५०० से ज्यादा ऑडियो केसेट संग्रह कर जमां कर लीं. कुछ खरीदी तो कुछ में अपनी पसंद के गीत खाली केसेट में रिकॉर्ड करवाए. अभी संग्रह करने की प्यास लगी ही थी कि प्रोधिगिकी ने ऐसी करवट बदली के ऑडियो केसेट की जगह CD ने ले ली. खैर उन गीतों को CD में उतारा. आज जब कंप्यूटर का ज़माना है तो ऑडियो केसेट या CD दोनों को पीछे छोड़ दिया.<br /><br />आज मेरे संग्रह की शुरुआत १९०५ में गाये हुए रागों से होती है जो अब्दुल करीम (११ नवम्बर, १८७२-१९३७) के हैं. इसके अलावा अमीर खान, अनजानीबाई, आज़मबाई, अजमत खान, बड़े गुलाम अली खान, बड़ी मोती बाई, फैय्याज खान, गौहर जाँ आदि का संग्रह है. भारतीय संगीत को सुनना और इसकी जानकारी को उन संगीत प्रेमियों तक पहुचाना अच्छा लगता है जिन तक ये संगीत किसी न किसी वजह से नहीं पहुच सका.<br /><br />मैं किसी विशेष गायक या गायिका, संगीतकार, गीतकार इत्यादि की सीमा में बंधकर नहीं रहा सभी के गीतों को सामान आदर के साथ सुनता हूँ. लेकिन फिर भी मोहम्मद रफ़ी साब की आवाज़, नौशाद अली, शंकर जयकिशन का संगीत और मजरूह सुल्तानपुरी, शैलेन्द्र की शायरी कुछ ज्यादा ही मुझपर असर करती है. <br /><br /><b>संपर्क : -<br />anwarsaifi@gmail.com<br />+91 9971748099</b>नियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-17226989041951166322009-12-20T09:46:00.003+05:302009-12-20T09:51:47.584+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (२३)मखमली आवाज़ के जादूगर तलत महमूद साहब को संगीत प्रेमी अक्सर याद करते है उनकी दर्द भरी गज़लों के लिए. उनके गाये युगल गीत उतने याद नहीं आते है. अगर बात मेरी पसंदीदा गायिका गीता दत्त जी की हो तो उनके हलके-फुल्के गीत पसंद करने वालों की संख्या अधिक है. थोड़े संगीत प्रेमी उनके गाये भजन तथा दर्द भरे गीत भी पसंद करते है. गीताजी के गाये युगल गीतों की बात हो तो, मुहम्मद रफ़ी साहब के साथ उनके गाये हुए सुप्रसिद्ध गीत ही ज्यादा जेहन में आते है. सत्तर और अस्सी के दशक के आम संगीत प्रेमी को तो शायद यह पता भी नहीं था, कि तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी ने मिलकर एक से एक खूबसूरत और सुरीले गीत एक साथ गाये है. सन १९८४ के करीब एक नौजवान एच एम् वी (हिज़ मास्टर्स वोईस ) कंपनी में नियुक्त किया गया. यह नौजवान शुरू में तो शास्त्रीय संगीत के विभाग में काम करता था, मगर उसे पुराने हिंदी फ़िल्मी गीतों में काफी दिलचस्पी थी. गायिका गीता दत्त जी की आवाज़ का यह नौजवान भक्त था. उसीके भागीरथ प्रयत्नोके के बाद एक एल पी (लॉन्ग प्लेयिंग) रिकार्ड प्रसिद्द हुआ "दुएट्स टू रेमेम्बर" (यादगार युगल गीत) : तलत महमूद - गीता दत्त". पहेली बार तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी के गाये हुए सुरीले और मधुर गीत आम संगीत प्रेमी तक पहुंचे. खुद तलत महमूद साहब इस नौजवान से प्रभावित हुए और जाहीर है बहुत प्रसन्न भी हुए. इस नौजवान का नाम है श्री तुषार भाटिया जी.<br /><br />इन्ही की अथक परिश्रमों के के बाद गीता जी के गाये गानों के कई एल पी (लॉन्ग प्लेयिंग) रिकार्ड सिर्फ तीन साल में एच एम् वी (हिज़ मास्टर्स वोईस) कंपनी ने बनाकर संगीत प्रेमियों को इनसे परिचय कराया. आगे चलकर श्री हरमिंदर सिंह हमराज़ जी ने हिंदी फिल्म गीत कोष प्रसिद्द किये, जिनसे यह जानकारी मिली कि तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी ने मिलकर कुल २६ गीत हिंदी फिल्मों के लिए गाये तथा एक एक गैर फ़िल्मी गीत भी गाया. गौर करने वाली बात यह है कि जिन संगीतकारों ने तलत साहब को एक से एक लाजवाब सोलो गीत दिए (नौशाद, अनिल बिस्वास, मदनमोहन) उन्होंने तलत साहब और गीताजी के साथ युगल गीत नहीं बनाए. उसी तरह बर्मनदा, नय्यर साहब, चित्रगुप्त साहब ने भी गीताजी और तलत साहब के लिए युगल गीत नहीं बनाए. इन २६ गीतों के मौसीकार है : हेमंत कुमार, हंसराज बहल, सी रामचंद्र, खेमचंद प्रकाश, विनोद, बसंत प्रकाश , बुलो सी रानी, हुस्नलाल - भगतराम , राम गांगुली , जिम्मी सिंह, सुबीर सेन, दान सिंह , सन्मुख बाबू, हफीज खान, अविनाश व्यास, घंटासला, रोबिन चत्तेर्जी और मदन मोहन. एक बात तो जाहीर है, कि इनमें से ज्यादातर गीत कम बजेट वाली फिल्मों के लिए बनाए गाये थे. मगर इसका यह मतलब नहीं की हम उनका लुत्फ़ नहीं उठा सकते. लीजिये आज प्रस्तुत है इन्ही दो मधुर आवाजों से सजे हुए कुछ दुर्लभ गीत:<br /><br />१) पहली प्रस्तुती है फिल्म मक्खीचूस (१९५६) से, जिसके कलाकार थे महिपाल और श्यामा. संगीतकार है विनोद (एरिक रोबर्ट्स) और गीतकार है पंडित इन्द्र. यह एक हास्यरस से भरी फिल्म है और यह गीत भी हल्का फुल्का रूमानी और रंजक है. अभिनेता महिपाल ज्यादातर पौराणीक फिल्मों के लिए प्रसिद्द थे, मगर इस फिल्म में उनका किरदार ज़रूर अलग है. गीताजी की आवाज़ और श्यामा के जलवे गीत को और भी मजेदार बना देते है. तलत साहब भी इस हास्य-प्रणय गीत में मस्त मौला लग रहे है. इस गीत के रिकार्ड पर एक अंतरा कम है, इसलिए हमने यह गीत फिल्म के ओरिजिनल साउंड ट्रैक से लिया है, जिसमे वह अंतरा ("जेंटल मन समझ कर हमने तुमको दिल दे डाला") भी मौजूद है.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">Makkhee Choos - O Arabpati Ki Chhori - Geeta Dutt & Talat Mahmood</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/geetatalatsundaymorning/geetatalattrack01.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />२) अगला गीत है बिलकुल अलग भावों में, फिल्म संगम (१९५४) से. संगीतकार है राम गांगुली, गीतकार हैं शमशुल हुदा बिहारी साहब. फ़िल्म के कलाकार है शेखर, कामिनी कौशल, शशिकला आदी. यह गीत प्रणय रस में डूबा हुआ है और सादे बोलों को राम गांगुली साहब ने खूबसुरती से स्वर बद्ध किया है. गीत में "संगम" शब्द भी आता है, जिससे यह पता चलता है कि यह फिल्मका शीर्षक गीत हो सकता है. इस फिल्म का वीडियो उपलब्ध ना होने के कारण इस बात का पता नहीं कि यह गीत मुख्य कलाकारों पर फिल्माया गया था या नहीं. चलिए इस सुरीले गीत का आनंद लेते है<br /><br /><span style="font-weight:bold;">Sangam - Raat hain armaan bhari - Geeta Dutt & Talat Mahmood</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/geetatalatsundaymorning/geetatalattrack02.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />३) हंसराज बहल एक और ऐसे संगीतकार है जो अत्यंत प्रतिभाशाली होने के बावजूद आज की पीढी को उनके बारे में ख़ास जानकारी नहीं है. सन १९५५ में एक फिल्म आयी थी "दरबार" जिसके गीत लिखे थे असद भोपाली साहब ने और संगीत था हंसराज बहल साहब का. इस फिल्म के बारे में अन्य कोई भी जानकारी अंतर्जाल पर उपलब्द्ध नहीं है.(इसी शीर्षक की एक फिल्म पाकिस्तान में सन १९५८ में बनी थी, जिसके बारे में कुछ जानकारी अंतर्जाल पर उपलब्द्ध है). प्रस्तुत गीत विरहरस में डूबा हुआ है, और ऐसे गीत को तलत साहब के अलावा और कौन अच्छे से गा सकता है. आप ही इसे सुनिए और सोचिये की हंसराज बहल, असद भोपाली, तलत महमूद और गीता दत्त के प्रयासों से सजे इस गीत को संगीत प्रेमियों ने क्यों भुला दिया ?<br /><br /><span style="font-weight:bold;">Darbaar - Kyaa paaya duniyane - Geeta Dutt & Talat Mahmood</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/geetatalatsundaymorning/geetatalattrack03.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />४) संगीतकार और गायक हेमंत कुमार जितने प्रतिभाशाली कलाकार थे उससे भी ज्यादा महान इंसान थे. खुद गायक होते हुए भी कई अन्य गायाकों से भी उन्होंने गीत गवाए. मुहम्मद रफ़ी, तलत महमूद, सुबीर सेन, किशोर कुमार ऐसे कई नाम इस में शामिल है. लीजिये अब प्रस्तुत हैं फिल्म बहू (१९५५) का गीत जिसके संगीतकार है हेमंत कुमार और गीतकार हैं एक बार फिर से शमशुल हुदा बिहारी साहब. फिल्म बहु के निर्देशक थे शक्ति सामंता साहब और कलाकार थे कारन दीवान, उषा किरण, शशिकला आदी. इस फिल्म में हेमंत कुमार साहब ने तलत महमूद और गीता दत्त से एक नहीं,दो गीत गवाए. दोनों भी सुरीले और मीठे प्रणय गीत है. आज का प्रस्तुत गीत है "देखो देखो जी बलम".<br /><br /><span style="font-weight:bold;">Bahu - Dekho dekho jee balam - Geeta Dutt & Talat Mahmood</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/geetatalatsundaymorning/geetatalattrack04.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />५) अब बारी है फिल्म शबिस्तान (१९५१) की. आज हमने इस फ़िल्म के एक नहीं दो गीत चुने है. पहला गीत है "हम हैं तेरे दीवाने, गर तू बुरा ना माने". इस गीत की खासियत यह है की इसकी पहली दो पंक्तिया संगीतकार सी रामचंद्र (चितलकर) साहब ने खुद गाई है मगर रिकार्ड पर उनका नाम ना जाने क्यों नहीं आया. यह गीत भी प्रणय रस और हास्य रस से भरपूर है. "अरे हम को चला बनाने"..ऐसी पंक्तिया अपने शहद जैसी आवाज़ में गीता जी ही गा सकती है. गीत पूरी तरह छेड़ छाड़ से भरा हुआ है. गीतकार कमर जलालाबादी साहब ने इसे खूब सवाल जवाब के तरीके से लिखा है.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">Shabistan - Hum hain tere diwaane - Geeta Dutt & Talat Mahmood</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/geetatalatsundaymorning/geetatalattrack05.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />६) और अब सुनिए इसी फिल्म का एक और गीत, "कहो एक बार मुझे तुमसे प्यार". गीतकार हैं कमर जलालाबादी साहब और संगीतकार सी रामचंद्र (चितलकर) साहब. गौर करने की बात यह भी है कि इसी फिल्म के कुछ गीत मदन मोहन साहब ने भी स्वरबद्ध किये. उन्होंने भी तलत महमूद और गीता दत्त के आवाजों में एक छेड़ छाड़ भरा प्रणय गीत बनाया था, उसे फिर कभी सुनेंगे. फिल्म के कलाकार थे श्याम और नसीम बानो (अभिनेत्री सायरा बानो की माँ). यह बहुत दुःख की बात है कि इस फिल्म के शूटिंग के दौरान अभिनेता श्याम घोड़े पर से गिरे और उनकी मृत्यु हो गयी.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">Shabistan - Kaho ek baar - Geeta Dutt & Talat Mahmood</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/geetatalatsundaymorning/geetatalattrack06.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />७) आज की अन्तिम प्रस्तुति हैं एक ऐसी फिल्म से जिसका नाम शायद ही किसी को मालूम होगा. सन १९५९ में यह फिल्म आयी थी जिसके संगीतकार थें मनोहर और गीत लिखे थे अख्तर रोमानी ने. फिल्म का नाम है "डॉक्टर जेड" (Doctor Z) और नाम से तो ऐसा लगता है कि यह कम बजट की कोई फिल्म होगी. ऐसी फिल्म में भी तलत महमूद और गीता दत्त के आवाजों में यह अत्यंत मधुर और सुरीला गीत बनाया गया. हमारी खुश किस्मती हैं कि पचास साल के बाद भी हम इस को सुन सकते है और इसका आनंद उठा सकते है. "दिल को लगाके भूल से, दिल का जहां मिटा दिया, हमने भरी बहार में अपना चमन जला दिया"..वाह वाह कितना दर्द भरा और दिल की गहराई को छू लेने वाला गीत है यह.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">Doctor Z - Dilko lagake bhool se - Geeta Dutt & Talat Mahmood</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/geetatalatsundaymorning/geetatalattrack07.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />हमें आशा है कि आप भी इन दुर्लभ गीतों का आनंद उठाएंगे और हमारे साथ श्री तुषार भाटिया जी के आभारी रहेंगे.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति- पराग सांकला</span><br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-48503462088372843282009-11-22T09:07:00.002+05:302009-11-22T09:07:00.170+05:30रविवार सुबह की कॉफ़ी और कुछ दुर्लभ गीत (२२)कुछ फ़िल्में अपने गीत-संगीत के लिए हमेशा याद की जाती है. कुछ फ़िल्में अपनी कहानी को ही बेहद काव्यात्मक रूप से पेश करती है, जैसे उस फिल्म से गुजरना एक अनुभव हो किसी कविता से गुजरने जैसा. कैफ़ी साहब (कैफ़ी आज़मी) और फिल्म "नसीम" में उनकी अदाकारी को भला कौन भूल सकता है, ७० के दशक की एक फिल्म याद आती है -"हँसते ज़ख्म", जिसमें एक अनूठी कहानी को बेहद शायराना /काव्यात्मक अंदाज़ में निर्देशक ने पेश किया था. इत्तेफक्कन यहाँ भी फिल्म के गीतकार कैफ़ी आज़मी थे. ये तो हम नहीं जानते कि फिल्म कामियाब हुई थी या नहीं पर फिल्म अभिनेत्री प्रिया राजवंश की संवाद अदायगी, नवीन निश्चल के बागी तेवर और बलराज सहानी के सशक्त अभिनय के लिए आज भी याद की जाती है, पर फिल्म का एक पक्ष ऐसा था जिसके बारे में निसंदेह कहा जा सकता है कि ये उस दौर में भी सफल था और आज तो इसे एक क्लासिक का दर्जा हासिल हो चुका है, जी हाँ हम बात कर रहे हैं मदन मोहन, कैफ़ी साहब, मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर के रचे उस सुरीले संसार की जिसका एक एक मोती सहेज कर रखने लायक है. चलिए इस रविवार इसी फिल्म के संगीत पर एक चर्चा हो जाए.<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5iZoQ_wQqHEGovcrjZHa_AmtjUO-uFCOcksq-HsEDRXjt8DjIVhan9XaCq5Gq_249uOXUQAFeRv0bndivQKEg5SYnHwE4cAV8i6bt8GKd1XE_uTyoCeJaJszL57twntyRPpt_85oN6uvf/s1600/Hanste-Zakhm-1973-download-free-hindi-songsold-songs.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 162px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5iZoQ_wQqHEGovcrjZHa_AmtjUO-uFCOcksq-HsEDRXjt8DjIVhan9XaCq5Gq_249uOXUQAFeRv0bndivQKEg5SYnHwE4cAV8i6bt8GKd1XE_uTyoCeJaJszL57twntyRPpt_85oN6uvf/s200/Hanste-Zakhm-1973-download-free-hindi-songsold-songs.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5406430092585090226" /></a><br />"तुम जो मिल गए हो, तो लगता है कि जहाँ मिल गया...." कैफ़ी साहब के इन बोलों पर रचा मदन मोहन साहब का संगीत उनके बेहतरीन कामों में से एक है.ये गीत फिल्म की कहानी में एक ख़ास मुकाम पर आता है, जाहिर है इसे भी कुछ ख़ास होना ही था. गीत बहुत ही नाज़ुक अंदाज़ से शुरू होता है, जहाँ पार्श्व वाध्य लगभग न के बराबर हैं, शुरूआती बोल सुनते ही रात की रूमानियत और सब कुछ पा लेने की ख़ुशी को अभिव्यक्त करते प्रेमी की तस्वीर सामने आ जाती है....हल्की हल्की बारिश की ध्वनियाँ और बिजली के कड़कने की आवाज़ मौहोल को और रंगीन बना देती है...जैसे जैसे अंतरे की तरफ हम बढ़ते हैं..."बैठो न दूर हमसे देखो खफा न हो....." श्रोता और भी गीत में डूब जाता है....और खुद को उस प्रेमी के रूप में पाता है, जो शुरुआत में उसकी कल्पना में था....जैसे ही ये रूमानियत और गहरी होने लगती है, मदन मोहन का संगीत संयोजन जैसे करवट बदलता है, जैसे उस पाए हुए जन्नत के परे कहीं ऐसे आसमान में जाकर बस जाना चाहता हो जहाँ से कभी लौटना न हो...फिर एक बार निशब्दता छा जाती है और लता की आवाज़ में भी वही शब्द आते हैं जो नायक के स्वरों में थे अब तक....बस फिर क्या...."एक नयी ज़िन्दगी का निशाँ मिल गया..." वाकई ये एक लाजवाब और अपने आप में एकलौता गीत है, जहाँ वाध्यों के हर बदलते पैंतरों पर श्रोता खुद को एक नयी मंजिल पर पाता है, रफ़ी साहब के क्या कहने.....उनकी अदायगी और गायिकी ने एक गीत श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बना देती है, और ये गीत भी इस बात का अपवाद नहीं नहीं है<br /><br /><span style="font-weight:bold;">tum jo mil gaye ho....(hanste zakhm)<span style="font-style:italic;"></span></span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smchztracks/smchz001.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />लता जी के बारे में यूं तो आवाज़ के सैकड़ों पोस्टों में बहुत कुछ लिखा/कहा जा चुका है, "हँसते ज़ख्म" में उनको दो सोलो हैं, और दोनों ही बेमिसाल हैं, "बेताब दिल की तम्मना यही है" में नायिका अपने समर्पण में प्रेमी की दी हुई तमाम खुशियों को प्यार भरी कृतज्ञता से बयां कर रही है, गीत का पहला ही शब्द "बेताब" जिस अंदाज़ में बोला जाता है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं. "सारा गुलशन दे डाला, कलियाँ और खिलाओ न, हँसते हँसते रो दे हम, इतना भी तो हंसाओ न..." वाह कैफ़ी साहब, प्रेम के इतने रंगों को कैसे समेट लिया आपने एक गीत में, और लता जी की आवाज़ ने कितनी सरलता से, अंधेरों के बीच जगमगाते इन जुगनूओं जैसी खुशियों को स्वर दे दिए....यहाँ दुआ भी है, सब कुछ प्यार पे लुटा देने का समर्पण भी है, खुशियों को अंचल में न समेट पाने का आनंद भी और एक अनचाहा सा डर भी.....भावनाओं का समुन्दर है ये गीत. <br /><br />दूसरा गीत जो मदन साहब ने लता से गवाया इस फिल्म में वो एक ग़ज़ल है, ग़ज़ल किंग से जाने जानेवाले मदन साहब ग़ज़लों को जिस खूबी से पेश करते थे उस का आज तक कोई सानी नहीं है...दर्द की कसक में डूबी इस ग़ज़ल को सुन कर ऑंखें बरबस भी भर आती है...ख़ास कर अंतिम शेर...."दिल की नाज़ुक रगें टूटती है....याद इतना भी कोई न आये..." सुनकर लगता है कि शायद खुद लता जी भी अब चाहें तो इसे दुबारा ऐसा नहीं गा पाएंगीं...इंटरलियूड में भारतीय और पाश्चात्य वाध्यों का अद्भुत मिश्रण नायिका के मन की हालत को बेहद सशक्त रूप में उभार कर सामने रख देती है....तो सुनिए ये दो गीत एक के बाद एक .<br /><br /><span style="font-weight:bold;">betaab dil kii tammanna yahi hai (hanste zakhm)<span style="font-style:italic;"></span></span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smchztracks/smchz002.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">aaj socha to aansun bhar aaye (hanste zakhm)<span style="font-style:italic;"></span></span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smchztracks/smchz003.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />मदन मोहन और कैफ़ी साहब ने इस फिल्म में एक कव्वाली भी रची है. कव्वाली के जो भी पेचो-ख़म संभव हो उसको बखूबी इसमें समेटा गया है, रफ़ी साहब के साथ बलबीर सिंह नामक एक गायक ने मिल कर गाया है इसे, बलबीर सिंह के बारे में अधिक जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं है, पर उनका अंदाज़ कुछ कुछ मन्ना डे साहब से मिलता जुलता है. पंजाबी के एक लोक गायक बलबीर सिंह ने "जागते रहो" में भी रफ़ी साहब के साथ एक युगल गीत गाया था....बहरहाल....सुनिए ये कमाल की कव्वाली...और सलाम करें, मदन साहब, कैफ़ी साहब, रफ़ी साहब और लता जी के हुनर को जिसकी बदौलत हमें मिले ऐसे ऐसे दिलनशीं गीत....."ये माना मेरी जान मोहब्बत सजा है..मज़ा इसमें इतना मगर किसलिए है...." दोस्तों क्या ये वही सवाल नहीं जो आप कई कई बार खुद से पूछ चुके हैं....:)<br /><br /><span style="font-weight:bold;">ye maana meri jaan (hanste zakhm)<span style="font-style:italic;"></span></span> <br /> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smchztracks/smchz004.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति-सजीव सारथी</span> <br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-57175721422660178752009-11-15T09:19:00.002+05:302009-11-15T09:26:07.622+05:30रविवार सुबह की कॉफी और अमिताभ की पसंद के गीत (२१)<span style="font-weight:bold;">अभी हाल ही ही में अमिताभ बच्चन की नयी फिल्म "पा" का ट्रेलर जारी हुआ, और जिसने भी देखा वो दंग रह गया...जानते हैं इस फिल्म में उनका जो मेक अप है उसे पहनने में अमिताभ को चार घंटे का समय लगता था और उतारने में दो घंटे, और प्रतिदिन ४ घंटे का शूट होता था क्योंकि इससे अधिक समय तक उस मेक अप को पहना नहीं जा सकता था. इस उम्र में भी अपने काम के प्रति इतनी तन्मयता अद्भुत ही है. आज से ठीक ४० साल पहले प्रर्दशित "सात हिन्दुस्तानी" जिसमें अमिताभ सबसे पहले परदे पर नज़र आये थे, उसका जिक्र हमने पिछले रविवार को किया था....चलिए अब इसी सफ़र को आगे बढाते हैं एक बार फिर दीपाली जी के साथ, सदी के सबसे बड़े महानायक की पसंद के ३ और गीत और उनके बनने से जुडी उनकी यादों को लेकर.... </span><br /><hr /> <br />दोस्तों हमने आपसे वादा किया था कि अगले अंक में भी हम अपना सफर जारी रखेंगे. तो लीजिये हम हाजिर हैं फिर से अपना यादों का काफिला लेकर जिसके मुखिया अमिताभ बच्चन सफर को यादगार बनाने के लिये कुछ अनोखे पल बयाँ कर रहे हैं. आइये इन यादों में से हम भी अपने लिये कुछ पल चुरा लें.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">नदिया किनारे....(अभिमान)बेलगाम</span><br /><br />यह फ़िल्म मेरे और जया के लिये बहुत खास है क्योंकि हमने इसे प्रोड्यूस किया था. ह्रिशीदा हमारे गाडफादर थे. इस फिल्म में एस.डी. बर्मन ने संगीत दिया और इस संगीत की महफिलों के दौरान हमने जो समय उनके साथ बिताया वो कभी भूलने वाला नहीं है. जिस तरह से वह गाते थे उस तरह का प्रयास हमारी गायिकी में नहीं आ पाता था. मुझे हमेशा लगता थी कि कहीं कुछ कमी है. वो बहुत ही सुन्दरता से गाते थे. यह गाना बेलगाम के पास एक गाँव में फिल्माया गया था. ह्रिशीदा एक ऐसे गाँव का माहौल चाहते थे जिसमें एक छोटा सा मंदिर, नदी और एक छोटा सा तालाब हो जो दो प्रेमियों के लिये प्यार का वातावरण तैयार करे. हमें ऐसा ही तालाब मिला. तब तक मेरी और जया के शादी नहीं हुई थी और यह समय हम दोनों के लियी ही स्पेशल था. उस समय जया के लम्बे बाल थे.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundaymorningcoffeamitabh/sundaymorningcoffeamitabbh04.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">देखा ना हाय रे...(बाम्बे टू गोआ), मद्रास</span><br /><br />मुझे याद है कि इस गाने पर बहुत मेहनत के गयी थी और यह गाना बस के अन्दर फिल्माया गया था. पी. एल. राजमास्टर हमारे कोरियोग्राफर थे और बड़े ही कड़क थे. अगर आप अपने स्टेप्स सही से नही करते तो वह बहुत डाँटते और मारते भी थे. हमें एक बस को मुम्बई से गोआ ले जाना था और गाने को बीच में ही शूट करना था. पर जैसे ही हम अंधेरी पहुँचे बस खराब हो गयी. तब मद्रास में हमने नागी रेड्डी स्टूडियो में सेट लगाया और गाना शूट किया. क्योंकि मैं इन्डस्ट्री में नया था इसलिये महमूद भाईजान के साथ समय बिताता था जो शूटिंग के समय "कमाआन टाईगर, यू कैन डू इट" कहकर बहुत ही ज्यादा प्रोत्साहित करते थे. चालीस मेम्बरों की पूरी स्टार कास्ट बस के बाहर खड़ी रहती और मुझे प्रोत्साहित करती थी. प्रत्येक शाट के बाद महमूद भाई मेरे लिये जूस बनाते और कहते जाओ नाचो.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundaymorningcoffeamitabh/sundaymorningcoffeeamitabh05.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">माई नेम इज एन्थनी....(अमर अकबर एन्थनी), मुम्बई</span><br /><br />मनमोहन देसाई अजब गाने और अजब सिचुएसन सोचते थे. जब वह गाने को बताते थे तब हमारा पहला रियेक्शन उस पर हँसना होता था. वे पहले गाने को सोचते थे फिर उसके चारों और के सीन पर काम करते थे. किसी को भी उन पर विश्वास नहीं था. हम सोचते थे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि एक आदमी सोला टोपी पहने अंडे से निकले और गाये कि "माई नेम इस एन्थनी गान्साल्वेस".यह गाना जुहू के ’होलीडे इन लोबी’ में फिल्माया गया था. इस गाने की रिकार्डिंग के लिये वो चाहते थे कि मैं कुछ "अगड़म बगड़म" जैसे शब्द डाँलू. मैने सोचा कि जब हम पागल हो ही गये हैं तो क्यों ना इसमें कुछ पागलपन डाला जाये. जब मैं रिकार्डिंग में था तो लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल जी ने मुझसे पूछा कि मैं क्या गाने वाला हूँ. मैने कहा कि मुझे याद नहीं है कुछ कर लेंगे. यह गाना फेमस स्टूडियो ’तारादेव’ में रिकार्ड किया गया जहाँ सभी बड़े-बड़े संगीतकार आये थे. जब मैं इन्डस्ट्री में नया था तब मुझे कहा गया था कि यहाँ हर दिन गाने रिकार्ड होते है और मुझे किसी बड़े आदमी से मिलने की कोशिश करनी चाहिये. मैं सड़क पर रफीसाहब, लताजी और दूसरे लोगों का अन्दर जाने के लिये इंतजार करता था लेकिन मेरी कभी भी उन तक पहुँचने की हिम्मत नही हुई. खैर गाना एक ही बार में रिकार्ड हो गया. अगर कोइ भी एक गलती करता तो पूरा गाना दुबारा से गाना पड़ता. मुझे बड़े-बड़े गायकों के बीच में बैठना था मैने किसी तरह गाने को एक टेक में किया और सोचा कि ’बच गये’.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundaymorningcoffeamitabh/sundaymorningcoffeamitabh06.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />उम्मींद है कि आपको इस यादों के सफर में आनंद आया होगा. तो दोस्तों देखा आपने जो दिखता है जरूरी नहीं कि सच्चाई भी वही हो. परदे के पीछे बहुत कुछ अलग होता है. किसी काम को सफल बनाने व पूरा करने में तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन कहते हैं कि ’अंत भला तो सब भला’. हमारा अमिताभ जी के साथ यहीं तक का सफर था. तो चलिए आपसे और अमिताभ जी से अब हम विदा लेते है. अगली मुलाकात तक खुश रहिये, स्वस्थ रहिये और हाँ हिन्दयुग्म पर हमसे मिलते रहिये. <br /><br /><span style="font-weight:bold;">साभार -टाईम्स ऑफ़ इंडिया</span> <br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति-दीपाली तिवारी "दिशा"</span> <br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-8509102383972460502009-11-08T09:02:00.002+05:302009-11-08T16:32:55.497+05:30रविवार सुबह की कॉफी और अमिताभ बच्चन की पसंद के गीत (२०)<span style="font-weight:bold;">आज से ठीक ४० साल पहले एक फिल्म प्रर्दशित हुई थी जिसक नाम था -"सात हिन्दुस्तानी". बेशक ये फिल्म व्यवसायिक मापदंडों पर विफल रही थी, पर इसे आज भी याद किया जाता है और शायद हमेशा याद किया जायेगा सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म के रूप में. अमिताभ ने इस फिल्म में एक मुस्लिम शायर की भूमिका निभाई थी. फिल्म का निर्देशन किया विख्यात ख्वाजा अहमद अब्बास ने (इनके बारे फिर कभी विस्तार से), संगीत जे पी कौशिक का था, जो लीक से हट कर बनने वाली फिल्मों में संगीत देने के लिए जाने जाते हैं. शशि कपूर की जूनून में भी इन्हीं का संगीत था, गीत लिखे कैफी आज़मी ने जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का राष्ट्रीय सम्मान भी हासिल हुआ, गीत था महेंद्र कपूर का गाया "आंधी आये कि तूफ़ान कोई....". अमिताभ ने भी इस फिल्म के के लिए "सर्वश्रेष्ठ युवा (पहली फिल्म) का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि आज भी बच्चन साहब ने (जो अब तक शायद सैकडों सम्मान प्राप्त कर चुके होंगें) इस सम्मान को बेहद सहेज कर रखा होगा....इस फिल्म "सात हिन्दुस्तानी" के बारे में कुछ और बातें करेंगे अगले रविवार... फिलहाल आपके कानों को सुपुर्द करते हैं एक बार फिर दीपाली जी के हाथों में, जो आपको महानायक के 7 पसंदीदा गीतों के सफ़र पर उन्हीं के अनुभवों को आपके साथ बाँट रही हैं. आज सुनिए 4 गीत, बाकी 3 अगले रविवार.... </span><br /><hr /> <br />सदी का महानायक कहें या शहंशाह, एंथानी गोन्सालविस या फिर बिग बी कुछ भी कहिये, लेकिन एक ही चेहरा और एक ही आवाज दिखाई-सुनाई देती है और वो नाम है अमिताभ बच्चन का. कहते है कि कोइ-कोइ विरले ही होते है जो इतना मान तथा सम्मान पाते हैं, अमिताभ बच्चन उन्हीं विरलों में से एक हैं जिन्होंने हिन्दी सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अपना नाम अंकित किया है. प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन के पुत्र अमिताभ ने अपने नाम को सही मायनों में चरित्रार्थ किया है. अमिताभ ने फिल्म जगत में जब कदम रखा था तो कभी सोचा भी न होगा कि उनका ये सफर इतना लम्बा, यादगार तथा कभी खत्म ना होने वाला सफर होगा. आज हम आपके लिये उनके इस यादगार सफर के कुछ जाने-अनजाने पहलू लेकर आये है उम्मींद है आपको ये लम्हे पसंद आयेंगे. तो चलिये हम ले चलते है आपको अमिताभ बच्चन के साथ यादों के सफर पर ...........बकौल अमिताभ <br /><br /><span style="font-weight:bold;">नीला आसमां सो गया-दिल्ली</span><br /><br />यश जी को यह गाना मैने ही सुझाया था.उन्हे फिल्म के लिये एक साफ्ट और मेलोडियस गाना चाहिये था. मैं आपको इस गाने से जुडी बात बताता हूँ. मैने शम्मी कपूर जी के साथ कई फिल्में की इसलिये वो मेरे करीबी हैं. उन्हें संगीत का बहुत शौक है मैं जब भी उनके घर जाता तो वो अक्सर एक पहाडी धुन गुनगुनाते थे. बाद में उस धुन को इस गाने का रूप दिया था. मैने इस गाने को यश जी को बताया तो वो राजी हो गये. हमने इस गाने के लिये शम्मी जी की इजाजत ली. संगीतकार हरिजी व शिवजी को ये गाना पसंद आया. उन्होंने मुझसे गाने को कहा लेकिन मैं कोइ गायक नही था फिर भी मैने इस गीत को गाया. मेरे परिवार तथा दोस्तों ने मुझसे कहा कि मैं फिर कभी दुबारा न गाऊँ. फिल्म की ज्यादातर शूटिंग दिल्ली और कश्मीर में की गयी. यह गाना रात में दिल्ली के एक फार्म हाउस में शूट किया गया.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/AMITABHCHOICESUNDAYMORNING/TRACK01.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">कभी-कभी मेरे दिल में-श्रीनगर</span><br /><br />हम यश जी और पूरी स्टार टीम के साथ एक महीना श्रीनगर में रुके थे. जब मन किया तो शूट किया और जब मन किया तो बोटिंग और पिकनिक की. सभी स्टारकास्ट अपनी फैमिली के साथ आयी थी. हर दिन किसी ना किसी परिवार का सदस्य कोइ ना कोइ खाना बनाता. हमने पूरी फिल्म एक पारिवारिक माहौल में शूट की जो कि फिल्म में भी दिखाई देता है. गाने के बोल शाहिर लुधियानवी जी ने लिखे थे. मुझे और यश जी को शक था कि फिल्म लोगों द्वारा स्वीकार की जायेगी भी या नहीं. उन्हीं दिनों मैंने दीवार.शोले और जंजीर जैसी फिल्मों में एन्ग्रीयंगमैन की भूमिकायें निभायी थी. जनता भी ताज्जुब में थी कि एन्ग्रीयंगमैन ने रोमांटिक किरदार कैसे निभाया. लेकिन यशजी फिल्म में और मारधाड़ नहीं चाहते थे, उन्हें केवल रोमांस चाहिये था. उनका विश्वास सही निकला सभी ने फिल्म को पसंद किया.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/AMITABHCHOICESUNDAYMORNING/TRACK02.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे-रामनगरम.</span><br /><br />फिल्म का ज्यादातर भाग बैंगलौर के निकट रामनगरम में फिल्माया गया है. यह गीत बाइक और साइड कार में फिल्माया गया है. बाइक के साथ साइड कार में यह दृश्य फिल्माना कठिन था.रमेश सिप्पी जी एक सीन में चाहते थे कि धर्मेंद्र मेरे कंधे पर बैठे और साइड कार को अलग करके बाद में दुबारा बाइक से मिलाना था. कैमरा कार में लोड किया गया और उसी के साथ घूमते हुए हमें बाइक चलानी थी. यह भी आइडिया नहीं था कि हम कैसे निश्चित जगह पर एक साथ मिलेगे. हम नहीं जानते थे कि ये कैसे होगा लेकिन हमने ये एक ही टेक में किया.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/AMITABHCHOICESUNDAYMORNING/TRACK03.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">सारा जमाना.....याराना-कोलकाता</span><br /><br />फिल्म के प्रड्यूसर हबीब नाडियावाला को इस गाने का आइडिया मैने दिया. मैने पहले भी कोलकाता में कई फिल्में जैसे- 'दो अन्जाने' की थी. मुझे लगा कि अगर हम कोलकाता में शूट करेंगे तो बहुत लोग शूटिंग देखने आयेंगे. इस तरह नेचुरल भीड़ का इन्तजाम हो जायेगा. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्टेडियम तभी बना था और फिल्म के गाने के लिये वो जगह अच्छी थी. इसी बीच मुझे राबर्ट रेडफोर्ड की फिल्म का पोस्टर देखने को मिला जिसमें वो एक चमकीला आउटफिट पहनकर घोड़े पर राइड कर रहे थे. तब मैने सोचा क्यों ना एक ऐसी ड्रेस पहनी जाये जिसमें बल्ब लगे हों. हमने ये काम मेरे कपड़े सिलने वाले अकबर मियां को बताया और उन्होंने इस गीत के किये यह ड्रेस तैयार की. उन दिनों बैटरी का सिस्टम नही था. टेलर ने कपडो में ही इलेक्ट्रिक वायर फिट करके ड्रेस तैयार की. जब मैने उसे ऐसे ही चलाना शुरु किया तो वायर में कुछ प्राब्लम हो गयी और मुझे करंट लग गया.<br /><br />इसके अलावा दूसरा चेलेंज जनता को कंट्रोल करना था. पुलिस आयी मारपीट हुए जिस वजह से हमें सब कुछ लपेटना पड़ा.हमने बाकी का पार्ट रात में शूट करने का फैसला किया. लोगों को दिखाने के बजाय किसी को रात में १२०००-१३००० मोमबत्ती जलाने को कहा गया. फिर हमने शाम की फ्लाइट पकड़ी और गाने को पूरा किया.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/AMITABHCHOICESUNDAYMORNING/TRACK04.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br /><span style="font-weight:bold;">कहते हैं की परदे के पीछे की कहानी कुछ और ही होती है. अमिताभ जी ने जिन बातों को हमें बताया उससे हमें परदे के पीछे की कई दिलचस्प बातों का पता चलता है. ये बातें एक तरफ हमें नई चीजों से रुबरु कराती हैं वहीं घटनाओं की सच्चाई रोंगटे भी खड़े कर देती है. खैर बातचीत का ये सफर हम अपने अगले अंक में भी जारी रखेंगे. तब तक के लिये दीजिये इजाजत.</span><br /><br /><span style="font-weight:bold;">साभार -टाईम्स ऑफ़ इंडिया</span> <br /><span style="font-weight:bold;">दीपाली तिवारी "दिशा"</span> <br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-82067951511592523552009-11-01T09:00:00.002+05:302009-11-01T09:00:00.147+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (१९) फिल्म गीतकार शृंखला भाग १<span style="font-weight:bold;">जब फ़िल्मी गीतकारों की बात चलती है तो कुछ गिनती के नाम ही जेहन में आते हैं, पर दोस्तों ऐसे अनेकों गीतकार हैं, जिनके नाम समय के गर्द में कहीं खो से गए हैं, जिनके लिखे गीत तो हम आज भी शौक से सुनते हैं पर उनके नाम से अपरिचित हैं, और इसके विपरीत ऐसा भी है कि कुछ बेहद मशहूर गीतकारों के लिखे बेहद अनमोल से गीत भी उनके अन्य लोकप्रिय गीतों की लोकप्रियता में कहीं गुमसुम से खड़े मिलते हैं, फ़िल्मी दुनिया के गीतकारों पर "रविवार सुबह की कॉफी" में हम आज से एक संक्षिप्त चर्चा शुरू कर रहे हैं, इस शृंखला की परिकल्पना भी खुद हमारे नियमित श्रोता पराग सांकला जी ने की है, तो चलिए पराग जी के संग मिलने चलें सुनहरे दौर के कुछ मशहूर/गुमनाम गीतकारों से और सुनें उनके लिखे कुछ बेहद सुरीले/ सुमधुर गीत. हम आपको याद दिला दें कि पराग जी मरहूम गायिका <a href="http://geetadutt.com/">गीत दत्त जी को समर्पित जालस्थल</a> का संचालन करते हैं.</span><br /><hr /> <br /><span style="font-weight:bold;">१) शैलेन्द्र</span><br /><br />महान गीतकार शैलेन्द्र जी का असली नाम था "शंकर दास केसरीलाल शैलेन्द्र". उनका जन्म हुआ था सन् १९२३ में रावलपिन्डी (अब पाकिस्तान में). भारतीय रेलवे में वास मुंबई में सन् १९४७ में काम कर रहे थे. उनकी कविता "जलता है पंजाब " लोकप्रिय हुई और उसी दौरान उनकी मुलाक़ात राज कपूर से हुई. उसीके साथ उनका फ़िल्मी सफ़र शुरू हुआ फिल्म बरसात से ! शंकर जयकिशन की जोड़ी के साथ साथ शैलेंद्र ने सचिन देव बर्मन, सलिल चौधरी और कई संगीतकारों के साथ काम किया. उनके राज कपूर के लिए लिखे गए कई गीत लोकप्रिय है, मगर आज हम उनके एक दुर्लभ गीत के बारे में बात करेंगे. लीजिये उन्ही का लिखा हुआ यह अमर गीत जिसे गाया हैं मखमली आवाज़ के जादूगर तलत महमूद ने फिल्म पतिता (१९५३) के लिए. संगीत शंकर जयकिशन का है और गीत फिल्माया गया हैं देव आनंद पर. सुप्रसिद्ध अंगरेजी कवि पी बी शेल्ली ने लिखा था "<span style="font-weight:bold;">Our sweetest songs are those that tell of saddest thoughts</span>".शैलेन्द्र ने इसी बात को लेकर यह अजरामर गीत लिखा और जैसे कि पी बी शेल्ली के विचारों को एक नए आसमानी बुलंदी पर लेकर चले गए. गीतकार शैलेन्द्र पर विस्तार से भी पढें <a href="http://podcast.hindyugm.com/2008/12/paying-trubite-to-amar-shailendra.html">यहाँ</a>.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smcparaglyricistseries/HaiSabseMadhur.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><a href="http://www.youtube.com/watch?v=3tZyD3y76o4">विडियो देखें</a> <br /><br /><span style="font-weight:bold;">२) इन्दीवर</span><br /><br />बप्पी लाहिरी के साथ इन्दीवर के गाने सुननेवालों को शायद यह नहीं पता होगा की इन्दीवर (श्यामलाल राय) ने अपना पहला लोकप्रिय गीत (बड़े अरमानों से रखा हैं बलम तेरी कसम) लिखा था सन् १९५१ में फिल्म मल्हार के लिए. कहा जाता है की सन् १९४६ से १९५० तक उन्होंने काफी संघर्ष किया, मगर उसके बारे में कोई ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है. रोशन के साथ इन्दीवर को जोड़ी बन गयी, मगर दूसरे लोकप्रिय संगीतकारों के साथ उन्हें गीत लिखने के मौके (खासकर पचास के दशक में) ज्यादा नहीं मिले. बाद में कल्यानजी - आनंद जी के साथ इन्दीवर की जोड़ी बन गयी. समय के साथ इन्दीवर ने समझौता कर लिया और फिर...<br /><br />खैर, आज हम महान गायक मुकेश, संगीतकार रोशन और गीतकार इन्दीवर का एक सुमधुर गीत लेकर आये है जिसे परदे पर अभिनीत किया गया था संजीव कुमार (और साथ में मुकरी और ज़हीदा पर). फिल्म है अनोखी रात जो सन् १९६८ में आयी थी. यह फिल्म रोशन की आखरी फिल्म थी और इस फिल्म के प्रर्दशित होने से पहले ही उनका देहांत हुआ था.<br /><br />इतना दार्शनिक और गहराई से भरपूर गीत शायद ही सुनने मिलता है. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smcparaglyricistseries/OhReTaalMile.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><a href="http://www.youtube.com/watch?v=1BCG04fsVL0">विडियो देखें</a><br /><br /><span style="font-weight:bold;">३) असद भोपाली</span><br /><br />असद भोपाली (असद खान) ऐसे गीतकार हैं जिन्हें लगभग ४० सालके संघर्ष के बाद बहुत बड़ी सफलता मिली. उनका लिखा हुआ एक साधारण सा गीत "कबूतर जा जा जा " जैसे के देश के हर युवक युवती के लिए प्रेमगीत बन गया. यह गीत था फिल्म मैंने प्यार किया (१९८९) का जिसे संगीतबद्ध किया था राम- लक्ष्मण ने.<br /><br />असद भोपाली की पहली फिल्मों में से एक थी बहुत बड़े बजट की फिल्म अफसाना (१९५१) जिसमे थे अशोक कुमार, वीणा, जीवन, प्राण, कुलदीप कौर आदि. संगीत था उस ज़माने के लोकप्रिय हुस्नलाल भगतराम का. इसके गीत (और फिल्म भी) लोकप्रिय रहे मगर असद चोटी के संगीतकारोंके गुट में शामिल ना हो सके. सालों साल तक वो एन दत्ता, हंसराज बहल, रवि, सोनिक ओमी, उषा खन्ना, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि संगीतकारों के साथ करते रहे मगर वह कामयाबी हासिल न कर सके जो उन्हें फिल्म मैंने प्यार किया से मिली.<br /><br />लीजिये फिल्म अफसाना (१९५१) का लता मंगेशकर का गाया हुआ यह गीत सुनिए जिसे असद भोपाली ने दिल की गहराईयों से लिखा है<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smcparaglyricistseries/KahanHainTuMere.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><a href="http://www.youtube.com/watch?v=CVK5RA38_Fo">विडियो देखें</a><br /><br /><span style="font-weight:bold;">४) कमर जलालाबादी</span><br /><br />अमृतसर के पास एक छोटा सा गाँव हैं जिसका नाम है जलालाबाद , जहां पर जन्म हुआ था ओमप्रकाश (कमर जलालाबादी) का. महान फिल्मकार दल्सुखलाल पंचोली ने उन्हें पहला मौका दिया था फिल्म ज़मीनदार (१९४२) के लिए. उन्होंने चालीस और पचास के दशक में सदाबहार और सुरीले गीत लिखे. उन्होंने सचिन देव बर्मन के साथ उनकी पहली फिल्म एट डेज़ (१९४६) में भी काम किया. उस ज़माने के लगभग हर संगीतकार के साथ (नौशाद और शंकर जयकिशन के अलावा) उन्होंने गीत लिखे.<br /><br />उनका लिखा हुआ "खुश हैं ज़माना आज पहली तारीख हैं"(फिल्म पहली तारीख १९५४) का गीत आज भी बिनाका गीतमाला पर महीने की पहली तारीख को बजता है. रिदम किंग ओ पी नय्यर के साथ भी उन्होंने "मेरा नाम चीन चीन चू" जैसे लोकप्रिय गीत लिखे.<br /><br />लीजिये उनका लिखा हुआ रेलवे की तान पर थिरकता हुआ गीत "राही मतवाले" सुनिए. इसे गाया है तलत महमूद और सुरैय्या ने फिल्म वारिस (१९५४) के लिए. मज़े की बात है कि गीत फिल्माया भी गया था इन्ही दो कलाकारों पर.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smcparaglyricistseries/RaahiMatawaale.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><a href="http://www.youtube.com/watch?v=NjcZvJtHCiA">विडियो देखें</a><br /><br /><span style="font-weight:bold;">५) किदार शर्मा</span><br /><br />महान फिल्म निर्माता, निर्देशक और गीतकार किदार शर्मा की जीवनी "The one and lonely Kidar Sharma" हाल ही में प्रर्दशित हुई थी. जिस गीतकार ने सैंकडो सुरीले गीत लिखे उन्हें आज ज़माना भूल चूका है. कुंदन लाल सहगल की फिल्म "देवदास " के अजरामर गीत इन्ही के कलम से लिखे गए है. "बालम आये बसों मोरे मन में" और "दुःख के अब दीन बीतत नाही". उनके लिखे हुए लोकप्रिय गीत है इन फिल्मों मे : नील कमल (१९४७), बावरे नैन (१९५०), सुहाग रात (१९४८). फिल्म जोगन (१९५०) का निर्देशन भी किदार शर्मा का है.<br /><br />आज की तारीख में किदार शर्मा को कोई अगर याद करता हैं तो इस बात के लिए की उन्होंने हिंदी फिल्म जगत को राज कपूर, मधुबाला, गीता बाली जैसे सितारे दिए. मुबारक बेग़म का गाया "कभी तनहाईयों में यूं हामारी याद आयेगी" भी इन्ही किदार शर्मा का लिखा हुआ है. इसे स्वरबद्ध किया स्नेहल भाटकर (बी वासुदेव) ने और फिल्माया गया हैं तनुजा पर. मुबारक बेग़म के अनुसार यह गीत अन्य लोकप्रिय गायिका गानेवाली थी मगर किसी कारणवश वह ना आ सकी और मुबारक बेग़म को इस गीत को गाने का मौका मिला. उन्होंने इस गीत के भावों को अपनी मीठी आवाज़ में पिरोकर इसे एक यादगार गीत बना दिया.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/smcparaglyricistseries/KabheeTanhaayiyonMein.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><a href="http://www.youtube.com/watch?v=9-FuMAFtw9o">विडियो देखें</a><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति -पराग सांकला</span> <br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-77429202712531103682009-10-18T09:01:00.000+05:302009-10-18T09:01:00.174+05:30रविवार सुबह की कॉफी और फीचर्ड एल्बम "जूनून" पर बात, दीपाली दिशा के साथ (१८)कहते हैं कि संगीत एक नशा है, जादू है, जो सर चढ़ के बोलता है. यही नहीं संगीत आत्मा की आवाज है जो इंसान में जोश और जूनून पैदा कर देता है और लोगों तक शान्ति तथा सदभाव पहुँचाने का जरिया भी है. शायद कुछ इसी मकसद से पाकिस्तानी गायकों ने अपने बैंड का नाम ’जूनून’ रखा होगा. खैर उनका मकसद जो भी रहा हो लेकिन उनके संगीत में जूनून नजर आता है जो लोगों में भी एक भाव पैदा कर देता है. ’जूनून’ पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध बैंड है. यूं तो पाकिस्तान के कई बैंड यहाँ हिन्दुस्तान में आये हैं लेकिन ’जूनून’ ने काफी ख्याति पायी है. पिछले दस सालों में जूनून बैंड की पाँच एल्बम आयीं हैं जिनमें से सभी ने धूम मचायी है. यह पाकिस्तान के इतिहास का सबसे प्रसिद्ध बैंड है.<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgt6PzFLOf1aYaT1wHzLTq6zRlS2oZlg9Gu_R9xrti3QHdwCFELdRFjfS2zwgHghn46PyPpQgcgH3721aaguj-LPuS7d1CHzsewjsYCH9XhYLIt0wWrFrjmbGWDJ0gI6hiS3dy5eJVTnk8w/s1600-h/junoon.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 196px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgt6PzFLOf1aYaT1wHzLTq6zRlS2oZlg9Gu_R9xrti3QHdwCFELdRFjfS2zwgHghn46PyPpQgcgH3721aaguj-LPuS7d1CHzsewjsYCH9XhYLIt0wWrFrjmbGWDJ0gI6hiS3dy5eJVTnk8w/s200/junoon.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5393494196811568594" /></a><br />’जूनून’ बैंड के सदस्यों में सलमान अहमद, अली अज़मत और ब्रायन ओ शामिल हैं. ’तलाश’, ’इंकलाब’, आज़ादी, ’परवाज़’ और ’दीवार’ इनकी अब तक की एल्बमें है. जूनून ग्रुप की ’आज़ादी’ एल्बम ने सबसे ज्यादा धूम मचायी थी. इसके प्रसिद्ध होने का मुख्य कारण जूनून बैंड का सूफी के साथ रॉक का संगम होना है. ’आजादी’ का संगीत व गानों को सुनकर लगता है कि जूनून बैंड पूर्वी संगीत से प्रभावित है. इस एल्बम में तबला मुख्य रूप से प्रयुक्त हुआ है. इस एल्बम में जूनून बैंड ने अमेरिका के रिकार्डिंग एवं मिक्सिंग इंजीनियर जोन एली रॊबन्सन की सहायता से स्पेशल इफैक्ट डलवाये. जोन ही इस एल्बम के को-प्रड्यूसर भी हैं.<br /><br />अल्बम के प्रसिद्ध गीतों में से एक "खुदी को कर" इकबाल की शायरी को रॉक स्टायल में पेश किया गया है. सभी शेरों को अच्छे अन्दाज में पिरोया गया है. शेरों को अपने हिसाब से फेर-बदल करने की वजह से उनकी संवेदना घट गयी है.अन्यथा संगीत अच्छा है. दिल में जोशो-जूनून भरने में बेहद असरदार है ये गीत. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/featuredalbumjunoonaazadi/Track01007.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />’मेरी आवाज सुनो’ एक कव्वाली है. इसमें तम्बूरे के साथ गिटार का प्रयोग किया गया है यह गाने को कर्णप्रिय बना देता है. संगीत संयोजन गजब का है, और बोल ख़ास ध्यान आकर्षित करते हैं. "तेरे संग ज़माना सारा, खुदा है मेरे संग जालिम....". बेस गिटार का सुन्दर इस्तेमाल अंत में बेहद प्रभावित करता है. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/featuredalbumjunoonaazadi/Track01008.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />’यार बिना’ भी एक कव्वाली ही है.तबले का जोरदार प्रयोग इस गीत को उत्साही बना देता है. इस गीत को सुनकर मजा आता है. गायकों ने पूरी उर्जा के साथ गीत को निभाया है, कुछ गीत कुछ धुन ऐसी होती है जिनकी प्रतिलिपियाँ आप बरसों से सुनते आ रहे हों, पर फिर भी उनका नशा कभी कम नहीं होता, ये भी कुछ उसी तरह का गीत है. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/featuredalbumjunoonaazadi/Track01011.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />’सैयो नी’ इस एल्बम का सबसे प्रसिद्ध गीत है जो लोगों द्वारा बहुत पसंद किया गया. इस गीत का सूफीयाना अन्दाज बहुत आकर्षित करता है. एक शेर में एक अलग और उंडा बात कही गयी है, सूफी रॉक में ऐसा परफेक्ट संयोग जहाँ शब्द संगीत और गायिका तीनों का उत्कृष्ट मिलन हुआ हो बहुत कम सुना गया है. बेहतरीन गीत. <br /><br /><span style="font-weight:bold;">"क्या बशर की बिसात,<br />आज है कल नहीं..."</span> और<br /><br /><span style="font-weight:bold;">"छोड़ मेरी खता,<br />तू तो पागल नहीं..."<br /></span><br />सुनिए -<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/featuredalbumjunoonaazadi/Track01010.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />’मुक गये’ गीत औसत है. कई जगह संगीत आवाज पर हावी हो जाता है जिससे बोल समझने में मशक्कत करनी पड़ती है. शब्द और गायिकी से विरह की पीडा जो सूफी गीतों का एक अहम् घटक भी है, को उभरने की अच्छी कोशिश की गयी है. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/featuredalbumjunoonaazadi/Track01009.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />अंत में यही कहेंगे के एल्बम सुनने लायक है. बार-बार तो नहीं लेकिन परिवर्तन के लिये अच्छी है. ज्यादातर गीतों का संगीत व लय एक सा लगता है. संगीत कई-कई जगह हावी हो जाता है जिससे गायकों की आवाज दब जाती है. ’सैयो नी’ गीत के लिये इस एल्बम को जरूर सुनना चाहिए. <br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"</span><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-20396540544347010182009-10-04T09:00:00.002+05:302009-10-15T19:14:32.375+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (17)दोस्तों कुछ चीजें ऐसी होती है जो हमारी जिन्दगी में धीरे-धीरे कब शामिल हो जाती है हमें पता ही नहीं चलता. एक तरह से इन चीजों का न होना हमें बेचैन कर देता है. जैसे सुबह एक प्याली चाय हो पर इन चाय की चुसकियों के साथ अखबार न मिले, फिर देखिए हम कितना असहज महसूस करते है. देखिए ना, आपका और हमारा रिश्ता भी तो रविवार सुबह की काँफी के साथ ऐसा ही बन गया है. अगर रविवार की सुबह हो लेकिन हमें हिन्दयुग्म पर काँफी के साथ गीत-संगीत सुनने को न मिले तो पूरा दिन अधूरा सा रहता है पता ही नहीं लगता कि आज रविवार है. यही नहीं काँफी का जिक्र भर ही हमारे दिल के तार हिन्दयुग्म से जोड़ देता है. इसीलिये हम भी अपने पाठकों और श्रोताओं के प्यार में बँधकर खिंचे चले आते हैं कुछ ना कुछ नया लेकर. आज मै आपके साथ अपनी कुछ यादें बाँटती हूँ. मेरी इन यादों में गीत-संगीत के प्रति मेरा लगाव भी छिपा है और गीतों को गुनगुनाने का एक अनोखा तरीका भी. अक्सर मै और मेरी बहनें रात के खाने के बाद छ्त पर टहलते थे. हम कभी पुराने गीतों की टोकरी उड़ेलते तो कभी एक ही शब्द को पकड़कर उससे शुरु होने वाले गानों की झड़ी लगा देते थे. बहुत दिनों बाद आज फिर मेरा मन वही खेल खेलने का कर रहा है इसलिए मै आपके साथ अपनी जिन्दगी के उन पलों को फिर से जीना चाहती हूँ. तो शुरु करें? चलिए अब तो आपकी इजाजत भी मिल गयी है. क्योंकि मैं आपसे अपनी जिन्दगी के पल बाँट रही हूँ तो "जिन्दगी" से बेहतर कोई और शब्द हो ही नहीं सकता. जिन्दगी के ऊपर फिल्मों में बहुत सारे गाने लिखे गये है. इन सभी गानों में जिन्दगी को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया गया है. गीतों के जरिए जिन्दगी के इतने रंगों को बिखेरा गया है कि हर किसी को कोई न कोई रंग अपना सा लगता है. <br /><br />कहीं जिन्दगी प्यार का गीत बन जाती है तो कहीं एक पहेली. किसी के लिये यह एक खेल है, जुआ है तो किसी के लिये एक सुहाना सफर. ऐसे लोगों की भी कमी नही है जो जिन्दगी को एक लतीफे की तरह मानते हैं और कहते है कि सुख-दुख जिन्दगी के ही दो पहलू हैं. देखा आपने, इस एक जिन्दगी के कितने रुप है. हर शायर ने अपने-अपने नजरिये से जिन्दगी को उकेरा है. आइये हम मिलकर जिन्दगी के संगीत को अपनी साँसों में भर लें.<br /><br />चलिए शुरुआत करते हैं एक कव्वाली से जहाँ आदमी और औरत के नज़रिए से जिदगी पर चर्चा हो रही है, बहुत दुर्लभ है ये गीत. इस गीत में जो विचार रखे गए हैं आदमी और औरत की सोच पर, वो शायद आज के दौर में तो किसी को कबूल नहीं होगी, पर शायद कुछ शाश्वत सत्यों पर आधारित मूल्यों पर इसकी बुनियाद रखी गयी होगी...सुनिए -<br /><br /><span style="font-weight:bold;">आदमी की जिंदगी का औरत नशा है ...</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/jindagisundaydeepali/Track01001.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />दोस्तों वैसे तो ये जिंदगी बहुत ही खूबसूरत है, और जो मेरी इस बात से इनकार करें उनके लिए बस इतना ही कहूंगी कि यदि इसमें किसी ख़ास शख्स की अगर कमी है तो उस कमी को दूर कर देखिये....फिर आप भी हेमंत दा की तरह यही गीत गुनगुनायेंगें.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">जिंदगी कितनी खूबसूरत है ....</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/jindagisundaydeepali/Track01002.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />कुछ गम जिंदगी से ऐसे जुड़ जाते हैं, कि वो बस जिंदगी के साथ ही जाते हैं, धीरे धीरे हमें इस गम की कुछ ऐसी आदत हो जाती है, कि ये गम न जीनें देता है न मरने...दोस्तों यही तो इस जिंदगी की खासियत है कि ये हर हाल में जीना सिखा ही देती है, किशोर दा ने अपनी सहमी सहमी आवाज़ में कुछ ऐसे ही उदगार व्यक्त किये थे फिल्म "दो और दो पांच" के इस भुला से दिए गए गीत में, बहुत खूबसूरत है, सुनिए -<br /><br /><span style="font-weight:bold;">मेरी जिंदगी ने मुझपर...</span>.<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/jindagisundaydeepali/Track01003.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />कई गीत ऐसे बने हैं जहाँ फिल्म के अलग अलग किरदार एक ही गीत में अपने अपने विचार रखते हैं, संगम का "हर दिल जो प्यार करेगा..." आपको याद होगा, दिल ने फिर याद किया का शीर्षक गीत भी कुछ ऐसा ही था, फिल्म नसीब ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपने संगीत निर्देशन में एक बार फिर वही करिश्मा किया जो अमर अकबर अन्थोनी में रफी लता किशोर और मुकेश को लेकर उन्होंने किया था, बस इस बार गायक कलाकार सभी ज़रा अलग थे. कमलेश अवस्थी, अनवर, और सुमन कल्यानपुर की आवाजों में जिंदगी के इम्तेहान पर एक लम्बी चर्चा है ये गीत, सुनिए -<br /><br /><span style="font-weight:bold;">जिंदगी इम्तेहान लेती है....</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ExtraJindagisundaydeepali/Track01004.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />और चलते चलते एक ऐसा गीत जिसमें छुपी है जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई, दोस्तों प्यार बिना जिंदगी कुछ भी नहीं, तभी तो कहा गया है, "सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं प्यार के दो चार दिन.....". तो बस प्यार बाँटिये, और प्यार पाईये, मधुर मधुर गीतों को सुनिए और झूमते जाईये -<br /><br /><span style="font-weight:bold;">सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं....</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/jindagisundaydeepali/Track01006.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"</span><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-25169785700392390152009-09-20T08:53:00.002+05:302009-10-04T09:22:22.562+05:30रविवार सुबह की कॉफी और एक फीचर्ड एल्बम पर बात, दीपाली दिशा के साथ (१६)<span style="font-weight:bold;">"क्या लिखूं क्या छोडूं, सवाल कई उठते हैं, उस व्यक्तित्व के आगे मैं स्वयं को बौना पाती हूँ"</span> लताजी का व्यक्तित्व ऐसा है कि उनके बारे में लिखने-कहने से पहले यही लगता है कि क्या लिखें और क्या छोडें. वो शब्द ही नहीं मिलते जो उनके व्यक्तित्व की गरिमा और उनके होने के महत्त्व को जता सकें. 'सुर सम्राज्ञी' कहें, 'भारत कोकिला' कहें या फिर संगीत की आत्मा, सब कम ही लगता है. लेकिन मुझे इस बात पर गर्व है कि लता जी जैसा रत्न भारत में उत्पन्न हुआ है. लता जी को 'भारत रत्न' पुरूस्कार का मिलना इस पुरूस्कार के नाम को सत्य सिद्ध करता है. उनकी प्रतिभा के आगे उम्र ने भी अपने हथियार डाल दिए हैं. लता जी की उम्र का बढ़ना ऐसा लगता है जैसे कि उनके गायन क्षमता की बेल दिन-प्रतिदिन बढती ही जा रही है. और हम सब भी यही चाहते हैं कि यह अमरबेल कभी समाप्त न हो, इसी तरह पीढी दर पीढी बढती ही रहे-चलती ही रहे.<br /><br />वर्षों से लताजी फिल्म संगीत को अपनी मधुर व जादुई आवाज से सजाती आ रही हैं. कोई फिल्म चली हो या न चली हो परन्तु ऐसा कोई गीत न होगा जिसमें लताजी कि आवाज हो और लोगों ने उसे न सराहा हो. लता, एक ऐसा नाम और प्रतिभा है जो बीते ज़माने में भी मशहूर था, आज भी है और आने वाले समय में भी वर्षों तक इस नाम कि धूम मची रहेगी. उनके गाये गीतों को गाकर तथा उन्हीं को अपना आदर्श मानकर न जाने कितने ही लोगों ने गायन क्षेत्र में अपना सिक्का जमाया है और आज भी सैकडों बच्चे बचपन से ही उनके गाये गीतों का रियाज करते हैं तथा अपने कैरियर को एक दिशा प्रदान करने की कोशिश में लगे हैं.<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFuV5AcCDVaCyD94euehr52maFjGaQiYmZY6dk3BsGrCfyEklhC6XSmlA9eAkqWVQPc1dofCYFY4NADgaqTjE03n1OprT0g1WHvCQJSyJP_RnnMmwHppMnKghe_G597BznMVP8-FM9bYgl/s1600-h/saadgi.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFuV5AcCDVaCyD94euehr52maFjGaQiYmZY6dk3BsGrCfyEklhC6XSmlA9eAkqWVQPc1dofCYFY4NADgaqTjE03n1OprT0g1WHvCQJSyJP_RnnMmwHppMnKghe_G597BznMVP8-FM9bYgl/s200/saadgi.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5383033847485078418" /></a><br />लताजी ने अपनी जिंदगी में इतना मान सम्मान पाया है कि उसको तोला नहीं जा सकता. कितनी ही उपाधियाँ और कितने ही पुरुस्कारों से उनकी झोली भरी हुई है. लेकिन अब तो लगता है कोई पुरुस्कार, कोई सम्मान उनकी प्रतिभा का मापन नहीं कर सकता. लता जी इन सब से बहुत आगे हैं. पुरूस्कार देना या उनकी प्रतिभा को आंकना 'सूरज को दिया दिखाने' जैसा है. शोहरत की बुलंदियों पर विराजित होने के बावजूद भी घमंड और अकड़ ने उन्हें छुआ तक नहीं है. कहते हैं की 'फलदार वृक्ष झुक जाता है' यह कहावत लताजी पर एकदम सटीक बैठती है. उन्होंने जितनी सफलता पायी है उतनी ही विनम्रता और शालीनता उनके व्यक्तित्व में झलकती है. वह सादगी की मूरत हैं तथा उनकी आवाज के सादेपन को हमेशा से लोगों ने पसंद किया है.<br /><br />फ़िल्मी गीतों के अलावा लता जी ने बीच बीच में कुछ ग़ज़लों की एल्बम पर भी काम किया है, "सादगी" इस श्रेणी में सबसे ताजा प्रस्तुति है. लताजी का मानना है कि जिंदगी में सरल व सादी चीजें ही सभी के दिल को छूती हैं, और इस एल्बम में उन्हीं लम्हों के बारे में बात कही गयी है, इसीलिए इस एल्बम का नाम 'सादगी' रखा गया है. यह एल्बम 'वर्ल्ड म्यूजिक डे' पर प्रख्यात गायक जगजीत सिंह द्वारा जारी किया गया. पूरे १७ वर्षों बाद लता जी का कोई एल्बम आया है. इस एल्बम के संगीत निर्देशक मयूरेश हैं तथा ज्यादातर ग़ज़लें लिखी हैं जावेद अख्तर, मेराज फैजाबादी, फरहत शहजाद, के साथ चंद्रशेखर सानेकर ने. एल्बम में शास्त्रीय संगीत तथा लाईट म्यूजिक के बीच संतुलन बिठाने की कोशिश की गयी है. इसमें कुल आठ गजलें हैं. 'मुझे खबर थी' और 'वो इतने करीब हैं दिल के' गजल पहली बार सुनने पर ही असर करती हैं. दिल को छूती हुई रचनायें है. बाकी की गजलों का भी अपना एक मजा है लेकिन उन्हें दिल तक पहुंचने में दो तीन बार सुनने तक का समय लगेगा. एल्बम में ज्यादातर परंपरागत संगीत वाद्य यंत्रों का प्रयोग हुआ है तथा सेक्सोफोन, गिटार और पश्चिमी धुन का भी प्रयोग सुनाई पड़ता है.<br /><br />चलते-चलते यही कहेंगे कि लता जी की आवाज में नदी की तरह ठहराव और शांति का भाव समाहित है. एक मधुर और भावपूर्ण संगीतमय तोहफे के लिए हम उनके आभारी है. ईश्वर करे वो आने वाले दशकों तक हमें संगीत की सौगातें देती रहे और हम इस सरिता में यूं ही डुबकी लगाते रहे. <br /><br /><span style="font-weight:bold;">मुझे खबर थी - फरहत शहजाद</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi01www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">इश्क की बातें - जावेद अख्तर</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi02www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">रात है - जावेद अख्तर</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi03www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">चाँद के प्याले से - जावेद अख्तर</span> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi04www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">अंधे ख्वाबों को - मेराज फैजाबादी </span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi05www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">जो इतने करीब हैं - जावेद अख्तर</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi06www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">मैं कहाँ अब जिस्म हूँ - चंद्रशेखर सानेकर </span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi07www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">फिर कहीं दूर से - मेराज फैजाबादी</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi08www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">ये ऑंखें ये नम् ऑंखें - गुलज़ार </span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/dipalisunlatasaadgi/saadgi09www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"</span><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-19988626653931372932009-09-06T08:49:00.001+05:302009-09-06T08:54:00.266+05:30रविवार सुबह की कॉफी और यादें गीतकार गुलशन बावरा की (१५)सच कहा गया है कि कल्पना की उडान को कोई नहीं रोक सकता. कल्पनाएँ इंसान को सारे जहान की सैर करा देती हैं. ये इंसान की कल्पना ही तो है की वो धरती को माँ कहता है, तो कभी चाँद को नारी सोंदर्य का प्रतीक बना देता है. आसमान को खेल का मैदान, तो तारों को खिलाड़ियों की संज्ञा दे देता है. तभी तो कहते है कल्पना और साहित्य का गहरा सम्बन्ध है. जिस व्यक्ति की सोच साहित्यिक हो वो कहीं भी कोई भी काम करे, पर उसकी रचनात्मकता उसे बार-बार साहित्य के क्षेत्र की और मोड़ने की कोशिश करती है. गुलशन बावरा एक ऐसा ही व्यक्तित्व है जो अपनी साहित्यिक सोच के कारण ही फिल्म संगीत से जुड़े. हालांकि पहले वो रेलवे में कार्यरत थे, लेकिन उनकी कल्पना कि उड़ान ने उन्हें फिल्म उद्योग के आसमान पर स्थापित कर दिया, जहाँ उनका योगदान ध्रुव तारे की तरह अटल और अविस्मर्णीय है.<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0MoXzxbpdPTw96KuKsGvTjQxm4Ke2jsd5DRRcaRT62fD-EcvHBusq2uLnkRXYEkomAAVZ701EDRkQwnnavP5UP8uwbHDV-shxFXGwCZ6vr0EfuVQAjDVmzOoda9oHIOBm_QZu_nwTMu0c/s1600-h/post-2547-1249656594.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 135px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0MoXzxbpdPTw96KuKsGvTjQxm4Ke2jsd5DRRcaRT62fD-EcvHBusq2uLnkRXYEkomAAVZ701EDRkQwnnavP5UP8uwbHDV-shxFXGwCZ6vr0EfuVQAjDVmzOoda9oHIOBm_QZu_nwTMu0c/s200/post-2547-1249656594.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5378189329226807826" /></a><br />१२ अप्रैल १९३८ पकिस्तान(अविभाजित भारत के शेखुपुरा) में जन्मे गुलशन बावरा जी का असली नाम गुलशन मेहता है. उनको बावरा उपनाम फिल्म वितरक शांति भाई पटेल ने दिया था. उसके बाद सभी उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे. हिंदी फिल्म उद्योग के ४९ वर्ष के सेवाकाल में बावरा जी ने २५० गीत लिखे. गुलशन बावरा ने अपना पहला गीत १९५९ में फिल्म 'चंद्रसेना' के लिए लिखा था. फिल्म 'सट्टा बाजार' के लिए लिखा गीत 'चांदी'के चंद टुकडे के लिए 'उनका हिट गीत था. उन्होनें 'सनम तेरी कसम', 'अगर तुम न होते', सत्ते पे सत्ता' ,'ये वादा रहा', हाथ की सफाई' और 'रफूचक्कर' आदि फिल्मों को अपने गीतों से सजाया है. फिल्म <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/08/blog-post_17.html">उपकार के गीत 'मेरे देश की धरती सोना उगले'</a> को कौन भूल सकता है. यह गीत भी बावरा जी की ही कलम और कल्पना का अनूठा संगम है. फिल्म 'उपकार' के इस गीत ने उनके कैरियर को नई ऊँचाई दी. अपनी सादी शैली के लिए पहचाने जाने वाले बावरा जी का यह शायद सबसे चर्चित गीत रहा . अगर आज की तारीख में भारतवासी 'जय हो' गीत गाकर अपनी देशभक्ति को अभिव्यक्त करते हैं तो ६० के दशक में ये सम्मान 'मेरे देश की धरती सोना उगले'को प्राप्त था. हम इसे था नहीं कह सकते. देश प्रेम से ओतप्रोत यह गीत आज भी स्वतंत्रता दिवस जैसे आयोजनों पर मुख्य रूप से रेडियो तथा टी.वी. स्टेशनों पर बजाया जाता है. 'मेरे देश की धरती' गीत तथा 'यारी है ईमान मेरा' गीत के लिए उन्हें 'फिल्म फेयर पुरूस्कार' से नवाजा गया था.<br /><br />बावरा ने जीवन के हर रंग के गीतों को अल्फाज दिए. उनके लिखे गीतों में 'दोस्ती, रोमांस, मस्ती, गम' आदि विभिन्न पहलू देखने को मिलते हैं. 'जंजीर' फिल्म का गीत 'यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिन्दगी' दोस्ती की दास्तान बयां करता है, तो 'दुग्गी पे दुग्गी हो या सत्ते पे सत्ता' गीत मस्ती के आलम में डूबा हुआ है. उन्होंने बिंदास प्यार करने वाले जबाँ दिलों के लिए भी 'खुल्ल्म खुल्ला प्यार करेंगे', 'कसमें वादे निभाएंगे हम', आदि गीत लिखे हैं. बावरा के पास हर मौके के लिए गीत था. पाकिस्तान से आकर बसे बावरा ने अपने फ़िल्मी कैरियर की तुलना में यूं तो कम गीत लिखे लेकिन उनके द्वारा लिखे सादे व अर्थपूर्ण गीतों को हमेशा पसंद किया गया. उन्होंने संगीतकार 'कल्याण जी आनंद जी' के संगीत निर्देशन में ६९ गीत लिखे और आर.डी. बर्मन के साथ १५० गीत लिखे. पंचम दा गुलशन बावरा जी के पडोसी थे. पंचम दा के साथ उनकी कई यादें जुडी हुई थीं. इन यादों को गुलशन बावरा जी ने 'अनटोल्ड स्टोरीज' नाम की एक सीडी में संजोया था. इसमें उन्होंने पंचम दा की आवाज रिकार्ड की थी और कुछ गीतों के साथ जुड़े किस्से-कहानियां भी प्रस्तुत किये. <br /><br />गुलशन बावरा दिखने में दुबले -पतले शरीर के थे. उनका व्यक्तित्व हंसमुख था. हांलाकि बचपन में विभाजन के समय, उन्होंने जो त्रासदी झेली थी, वो अविस्मर्णीय है लेकिन उनके व्यक्तित्व में उसकी छाप कहीं दिखाई नहीं देती थी. वो कवि से ज्यादा कॉमेडियन दिखाई देते थे. इस गुण के कारण कई निर्माताओं ने उनसे अपनी फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं भी अभिनीत करवायीं. विभाजन का दर्द उन्होंने कभी जाहिर नहीं होने दिया. राहुल देव बर्मन उनके करीबी मित्र थे. राहुल जी के संगीत कक्ष में प्राय: सभी मित्रों की बैठक होती थी और खूब ठहाके लगाये जाते थे. गुलशन बावरा उस सर्कस के स्थायी 'जोकर' थे. यहीं से उनकी मित्रता किशोर कुमार जी से हुई.फिर क्या था अब तो दोनों लोग मिलकर हास्य की नई-नई स्तिथियाँ गढ़ते थे. गुलशन बावरा को उनके अंतिम दिनों में जब 'किशोर कुमार' सम्मान के लिए चुना गया तो उनके चहरे पर अद्भुद संतोष के भाव उभरते दिखाई दिए. उनके लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण था. एक तरफ यह पुरूस्कार उनके लिए विभाजन की त्रासदी से लेकर जीवन पर्यंत किये गए संघर्ष का इनाम था. दूसरी ओर अपने पुराने मित्र की स्मृति में मिलने वाला पुरुस्कार एक अनमोल तोहफे से कम नहीं था. पिछले सात वर्षों से वह 'बोर्ड ऑफ परफार्मिंग राइट सोसायटी' के निदेशक पद पर कार्यरत थे.<br /><br />विगत ७ अगस्त २००९ को लम्बी बीमारी के चलते गुलशन बावरा जी का देहांत हो गया और गुलशन जी की इच्छानुसार उनके मृतशरीर को जे.जे. अस्पताल को दान कर दिया गया. हिंदी सिनेमा ही नहीं हिंदी साहित्य भी गुलशन बावरा जी के अद्भुद योगदान को कभी नहीं भूल पायेगा. आज गुलशन जी शारीरिक रूप से हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं तो क्या हुआ उनके लिखे अनमोल गीत हमेशा फिजाओं में गूँजकर उनके होने का एहसास कराते रहेंगे. एक गीतकार कभी नहीं मरता उसकी कल्पना उसके विचार धरोहर के रूप में लोगों को आनंदित करने के साथ-साथ एक दिशा भी प्रदान करते रहते हैं. आइये हम सभी एक उत्कृष्ट और उम्दा कल्पना के सृजनकार को श्रद्धांजलि दें. आज रविवार सुबह की कॉफी में सुनते हैं गुलशन बावरा के लिखे और किशोर दा के गाये कुछ मस्ती भरे तो कुछ दर्द भरे गीत -<br /><br />हमें और जीने की चाहत न होती (अगर तुम न होते)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundaymorninggulshan/SundayTrack01.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया (सत्ते पे सत्ता) <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundaymorninggulshan/SundayTrack2.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />दिल में जो मेरे (झूठा कहीं का) <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundaymorninggulshan/SundayTrack3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />तू मइके मत जईयो (पुकार) <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundaymorninggulshan/SundayTrack4.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />लहरों की तरह यादें (निशाँ) <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/sundaymorninggulshan/SundayTrack5.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"</span><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-86003120282768323022009-08-23T09:02:00.001+05:302009-08-23T09:05:41.569+05:30रविवार सुबह की कॉफी और एक फीचर्ड एल्बम पर बात दीपाली "दिशा" के साथसफलता और शोहरत किसी उम्र की मोहताज नहीं होती. अगर हमारी मेहनत और प्रयास सच्चे व सही दिशा में हों तो व्यक्ति किसी भी उम्र में सफलता और शोहरत की बुलंदियों को छू सकता है. सोनू निगम एक ऐसी शख्सियत है जिन्होंने सफलता के कई पायदान पार किये हैं. उन्होंने अपने बहुमुखी व्यक्तित्व को प्रर्दशित किया है. गायन के साथ-साथ सोनू निगम ने अभिनय व माडलिंग भी की है. यद्यपि अभिनय में उन्हें अधिक सफलता नहीं मिली, किन्तु गायन के क्षेत्र में वह शिखर पर विराजित हैं. उन्होंने गायकी छोड़ी नहीं है. वो आज भी संगीतकारों की पहली पसंद हैं. उनकी आवाज में कशिश व गहराई है. वह कई बार गाने के मूड के हिसाब से अपनी आवाज में बदलाव भी लाते हैं जो उनके हरफनमौला गायक होने का परिचय देता है. अपनी पहली एल्बम 'तू' के जरिये वो युवा दिलों के सरताज बन गए थे. उसके बाद उनकी एल्बम 'दीवाना' और 'यादें' आयीं, जिनके गीतों और गायकी की छाप आज भी हमारे जहन में है. अगर सोनू निगम द्वारा गाये गीतों की सूची बनाएं तो पायेंगे कि उन्होंने अपने बेहतरीन अंदाज से सभी गीतों में जान डाल दी है. ऐसा लगता है कि वो गीत सोनू की आवाज के लिए ही बने थे. एक-एक गीत उनकी गायन प्रतिभा को दर्शाता है, और सफलतम गीतों की श्रेणी में अंकित हैं. सोनू की आवाज में 'दर्द, रोमांस, जोश' आदि सभी तत्व मिलते हैं. उनकी आवाज में शास्त्रीय शैली की झलक भी मिलती है. उनकी शास्त्रीय गायन की प्रतिभा को प्रदर्शित करती एक नयी एल्बम आ रही है जिसका नाम है "क्लासिकली माइल्ड" . क्लासिकली माइल्ड रागों पर आधारित एल्बम है. हालांकि सोनू जी का कहना है कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत में कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली है. अगर हम इस बात को ध्यान में रखें तो यह बहुत ही बढ़िया और मधुर एल्बम है जो सोनू की प्रतिभा को बखूबी दर्शाती है. इस एल्बम में आठ गीत है और सभी के बोल बहुत अच्छे हैं. अजय जिन्गारान हैं एल्बम के गीतकार और संगीत तैयार किया है दीपक पंडित ने. <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEieGdGtbqJ7OnXkHgM-PJVzTamNwpUv6zmKhDC1RDKTETI2TXXUakuj-u3Jg3rHb3fbYKNZ46fkC0jSNpDpCvjLyb3DmoZy8FGaYqycwI-4A_lOp9wbixg0krIR19nhIebjbKRQEYJ_zfT3/s1600-h/classically.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 198px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEieGdGtbqJ7OnXkHgM-PJVzTamNwpUv6zmKhDC1RDKTETI2TXXUakuj-u3Jg3rHb3fbYKNZ46fkC0jSNpDpCvjLyb3DmoZy8FGaYqycwI-4A_lOp9wbixg0krIR19nhIebjbKRQEYJ_zfT3/s200/classically.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5372790794705210722" /></a><br /><span style="font-weight:bold;">सोचता हूँ मैं</span> <br />यह एल्बम का पहला गीत है और राग सिंध भैरवी पर आधारित है. इस गाने में फिलोसिफी नजर आती है. बहुत ही सरल शब्दों में गायक ने जीवन से जुड़े प्रश्नों को कहा है 'तन पर उम्र का घेरा क्यों है? सदियों से यह राज छुपा है.' जो सभी को सोचने के लिए विवश करते हैं. ड्रम्स, गिटार तथा पियानो का प्रयोग शास्त्रीय संगीत को आधुनिक ढंग से प्रस्तुत करते है.<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ClassicallyMildSonuNigam/01Track1.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">भीगे भीगे </span><br />यह गाना बहुत ही परम्परागत लगता है. इसमें सोनू निगम ने कई स्थान पर आलाप लिए है जो बहुत ही अच्छे सुनाई देते है. यह एक सुन्दर रोमांटिक गाना है जो राग अहीर भैरव, पुरिया धनश्री और ललित पर आधारित है. पूरे गीत में गिटार और पियानो का प्रयोग है बीच में हारमोनियम का प्रयोग इसे और आकर्षक बना देता है. <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ClassicallyMildSonuNigam/02Track2.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">सूना सूना</span><br />एक बहुत ही भावपूर्ण गीत जो देश से दूर गए व्यक्ति को लौट आने का सन्देश देता है. कहता है की देश की हवाएं, मिटटी सब तुझे बुला रही है तेरे बिना सब कुछ सूना है. पहली बार सुनने में शायद यह गीत किसी को न भाये लेकिन दो या तीन बार में जब भाव समझ आने लगता है तो गीत दिल के करीब लगता है. यह गीत राग देश, जैजैवंती और मिश्र पटदीप के मिश्रित रूप पर आधारित है. इस गीत में ड्रम के साथ मृदंग का प्रयोग भी किया गया है. अपने आप में जिंदगी से भरा हुआ गीत लगता है.<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ClassicallyMildSonuNigam/03Track3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">सुरतिया मतवाली</span> <br />यह गीत राग काफी पर आधारित है. इस गीत में गायकी, संगीत, बोल आदि सभी कुछ बहुत बढ़िया है. यह गाना एक भाव उत्पन्न करता है. सभी वाद्य यंत्रों का बहुत सुन्दरता से प्रयोग किया गया है. पियानो और बांसुरी की जुगलबंदी मधुर सुनाई देती है.<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ClassicallyMildSonuNigam/04Track4.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">छलकी छलकी </span><br />यह एक बहुत ही रोमांटिक गीत है साथ ही एक सुन्दर कल्पना को जन्म देता हुआ प्रतीत होता है. बेमिसाल गायकी का प्रदर्शन है. सोनू निगम ने एक ही लाइन को अलग जगह पर अलग तरह से गाया है जो उनके प्रतिभाशाली होने का सबूत है. गीत के बोल 'छलकी छलकी चांदनी में, गाती है दीवानगी. बीते जो बाँहों में तेरे, वोह पल है जिंदगी' मन के तारों को छेड़ जाते हैं उस पर सोनू की गायकी का अंदाज गीत की कल्पना और रोमांस को और बड़ा देता है. यह गीत राग मिश्र सारंग, मिश्र खमाज और बिहाग पर आधारित है. गीत के बोल परंपरागत होते हुए भी आधुनिक संगीत और संसार से जुड़े दिखते हैं.<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ClassicallyMildSonuNigam/05Track5.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">धन्य धन्य</span><br />यह एक बहुत ही मधुर और भावपूर्ण गीत है. इस गीत द्वारा नारी के विभिन्न रूपों को को तथा उसके त्याग को प्रस्तुत किया गया है. बोल और संगीत दोनों ही बेजोड़ हैं. इस गीत को सुन शायद सभी नारियां भावुक हो जाएँ. यह गीत राग मांड पर आधारित है. गाने की शुरुवात और अंत में शहनाई का प्रयोग बेमिसाल है.<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ClassicallyMildSonuNigam/06Track6.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">लम्हा लम्हा</span> <br />इस गीत को भी हम मधुर और मन को छूने वाले गीतों में शामिल कर सकते हैं. गीत सन्देश पूर्ण है जो जीने की राह दिखाता है. इसके बोल 'आओ यह पल महकाएं और जीवन को जीना सिखलाएँ' उपदेशात्मक से लगते हैं. यह गीत राग बिलावल पर पर आधारित है और इसमें हिन्दुस्तानी तथा कर्नाटक शैली की मिश्रित झलक दिखती है. <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ClassicallyMildSonuNigam/07Track7.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">ऐ दिल मत रो</span><br />इस गीत के बोल से ही पता लगता है की यह एक दुख भरा गीत है. सोनू की आवाज में दर्द साफ झलकता है. यह गीत राग लोग कौंस पर आधारित है और ग़ज़ल का एहसास भी देता है. सोनू की गायकी बढ़िया है.<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/ClassicallyMildSonuNigam/08Track8.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />सोनू निगम की यह खासियत है की वो अपनी आवाज के साथ प्रयोग करते है और सफल भी होते है. हो सकता है 'क्लासिकली माइल्ड' एल्बम उन लोगों को कम समझ आये जिन्हें शास्त्रीय संगीत का ज्ञान नहीं या जिन्होनें सोनू को सिर्फ रोमांटिक और लाइट गीत गाते सुना है. वैसे यह एल्बम पूरी तरह शास्त्रीय संगीत पर आधारित नहीं है. इसमें हम शास्त्रीय और आधुनिक दोनों संगीतों का सुन्दर समायोजन पायेंगे. यह एल्बम पहली बार सुनने में आपको न छू पाए लेकिन दो बार, तीन बार सुनने पर इसका असर शुरू होता है जो गहरा है.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"</span><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-35740572687831907972009-08-16T09:14:00.005+05:302009-08-16T22:36:25.815+05:30रविवार सुबह की कॉफी और आपकी पसंद के गीत (13)"है नाम ही काफी उनका और क्या कहें, कुछ लोग तआर्रुफ के मोहताज नहीं होते" गुलजार उन्ही चंद लोगों में से एक हैं जिन्हें किसी परिचय की जरुरत नहीं है. गुलज़ार एक ऐसा नाम है जो उत्कृष्ट और उम्दा साहित्य का पर्याय बन गया है. आज अगर कही भी गुलज़ार जी का नाम आता है लोगों को विश्वास होता है कि हमें कुछ बेहतरीन ही पढ़ने-सुनने को मिलेगा. आवाज हो या लेखन दोनों ही क्षेत्रों में गुलजार जी का कोई सानी नहीं. गुलजार लफ्जों को इस तरह बुन देते है कि वो आत्मा को छूते हैं. शायद इसीलिए वो बच्चों, युवाओं और बूढों में समान रूप से लोकप्रिय है. गुलज़ार जी का स्पर्श मात्र ही शब्दों में प्राण फूँक देता है और ऐसा लगता है जैसे शब्द किसी कठपुतली की तरह उनके इशारों पर नाचने लगे है. उनकी कल्पना की उडान इतनी अधिक है कि उनसे कुछ भी अछूता नहीं रहा है. वो हर नामुमकिन को हकीकत बना देते हैं. उनके कहने का अंदाज बिलकुल निराला है. वो श्रोता और पाठक को ऐसी दुनिया में ले जाते है जहां लगता ही नहीं कि वो कुछ कह रहे है ऐसा प्रतीत होता है जैसे सब कुछ हमारे आस-पास घटित हो रहा है. कभी-कभी सोचती हूँ, गुलजार जी कोई एक व्यक्ति नहीं वरन उनमें कई गुलज़ार समाये हुए हैं. उनके बारे में कुछ कहने में शब्द कम पड़ जाते है. गुलजार जी के शब्द और आवाज ही उनकी पहचान है. जिसके कान में भी एक बार गुलजार जी के लेखनी से निकले शब्द और आवाज पड़ते है वो उनके बारे में जानने के लिए बेचैन हो उठता है. जब गुलज़ार जी इतने श्रेष्ठ हैं तो जाहिर है उनके चाहने वाले भी ऐसे-वैसे नहीं होंगे. आइये अब में आपको गुलज़ार जी के ऐसे रसिया जी से मिलाती हूँ जिनका परिचय गुलज़ार जी से सबसे पहले उनके शब्दों द्वारा हुआ था. मैं बात कर रही हूँ हमारे साथी विश्व दीपक तनहा जी की, जो गुलज़ार जी द्वारा लिखे शब्दों के वशीभूत होकर ही गुलज़ार जी तक पहुचे थे. चलिए उनकी कहानी उन्हीं ही जुबानी जान लेते है. ....<br /><br />"<span style="font-weight:bold;">गुलजार जी से मेरी पहली पहचान फिजा फिल्म के गीतों से हुई. पहली बार इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उनके लिखे गीत तो मैंने पहले भी सुने थे लेकिन तब मैं उनके नाम से परिचित नहीं था. चूँकि आठवीं कक्षा से हीं मैने लिखना शुरू कर दिया था इसलिए शब्दों की अहमियत जानने लगा था। अच्छे शब्द पसंद आते थे। विविधभारती पर जो भी गाना सुनता, हर बार यही कोशिश रहती कि गाने का अर्थ जानूँ। ऐसा हीं कुछ हुआ जब मैने "फ़िज़ा" फिल्म गाना का "आ धूप मलूँ मैं तेरे हाथों में" सुना, उदित नारायण और अल्का याज्ञिक की आवाज़ों के अलावा जिस चीज ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह था शब्दों का प्रवाह। "चल रोक लें सूरज छिप जाएगा, पानी में गिर के बुझ जाएगा" - गीत के बोलों ने मुझे झकझोर दिया और मैं इसी सोच में रहने लगा की आखिर कोई इस तरह का कैसे सोच सकता है। इस गाने की कशिश मुझे सिनेमा हाल तक खींच ले गयी, इसी फिल्म के एक और गीत "मैं हवा हूँ फ़िज़ा हूँ जमीं की नहीं..... मैंने तिनके उठाए हुए हैं परों पे, आशियाना नहीं है मेरा....फ़िज़ा" ने मुझे अन्दर तक छू लिया. मुझे फिल्म के गीतकार के बारे में जानने की एक धुन लग गयी. फिल्म देखकर लौटने के बाद उसी शाम कैसेट की दुकान पर जाकर कैसेट कवर का मुआयना किया तो पता चला कि इन साहब के कई गाने तो मैंने पहले भी सुने हैं. धीरे-धीरे यादों की गलियों से "छैंया-छैंया", "दिल से" ," ऐ अजनबी", "सतरंगी रे", "चप्पा-चप्पा चरखा चले", "छोड़ आए हम वो गलियाँ" और भी न जाने कितने सारे गाने जो मेरे हमेशा से हीं खास रहे हैं की , मधुर गूँज सुनाई देने लगी । लेकिन तब इनके गीतकार का नाम मुझे नहीं पता था, लेकिन वो अजनबी आज अपना-सा लगने लगा था. फिर तो मैने गुलजार जी के लिखे पुराने गानों की तरफ़ रूख किया। गुलजार जी के प्रति मेरी जानकारी का दायरा तब और बड़ा जब १२वीं के बाद मैं पटना की गलियों में दाखिल हुआ । उस दौरान बंदिनी का "मोरा गोरा रंग लेई ले" सुना तो बड़ा हीं आश्चर्य लगा कि एक पंजाबी शायर( कवि या गीतकार भी कह सकते हैं) ब्रज भाषा के आसपास की किसी भाषा में भी इतना खूबसूरत लिख सकता है, फिर कहीं पढा कि यह गाना उनका पहला गाना है (हाल हीं में अंतर्जाल पर यह पढने को मिला था कि यह उनका पहला गाना नहीं है, लेकिन चूँकि ज्यादातर लोग इस गाने को हीं उनका पहला गाना मानते हैं इसलिए मेरी भी अब तक यही मान्यता है) । गुलज़ार जी के एक अन्य गीत "मेरा कुछ सामना तुम्हारे पास पड़ा है" से मुझे और बारीकियां जानने को मिली फिर क्या था मैं खुद को गुलज़ार जी का प्रशंसक बनने से रोक नहीं पाया। मानो मेरे गुलज़ार-प्रेम को पंख लग गए। इंटरनल लैन(LAN) पर सारे गाने और सारी जानकारियाँ आसानी से उपलब्ध हो जाने लगीं । फिर तो मैने उनके लिखे सारे हीं गानों को खंगाल डाला। (इस प्रेम का एक कारण यह भी था कि उसी दौरान मैने भी प्रेम के कुछ स्वाद चखे थे..... ) उसके आगे का क्या कहूँ, तब से उनके प्रति मेरी दीवानगी चलती हीं आ रही है। अब तो मैने उनको सुनने के साथ-साथ उनको पढना भी शुरू कर दिया है। "रात पश्मीने की", "पुखराज" , "मिर्ज़ा ग़ालिब" ये तीन किताबें अब तक मैने पढ ली हैं और बाकियों को अंतर्जाल पर पढता हीं रहता हूँ। लेकिन कोशिश यही है कि धीरे-धीरे उनकी सारी किताबें मेरे दराज में मौजूद हो जाएँ।<br />मुझे मालूम है कि "गुलज़ार" साहब की झोली में एक से बढकर एक कई सारे गाने हैं लेकिन चूँकि "आ धूप मलूँ मैं तेरे हाथों में..... आजा माहिया" वह गीत है जिसने मुझे गुलज़ार-जगत से रूबरू कराया , इसलिए मैं आज के दिन उसी गाने को सुनना पसंद करूँगा</span>।"<br /><br />देखा दोस्तों गुलज़ार जी की लेखनी का जादू विश्व दीपक जी क्या हम भी उस जादू से बंधे हैं. चलिए अब मैं भी आपकी पसंद पूरी करने वाली छडी घुमाती हूँ और सुनवाती हूँ आपका पसंदीदा गीत...<br /><br /><span style="font-weight:bold;">आ धूप मलूँ मैं तेरे हाथों में</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GulzaarSpecialOnAwaaz/AajaMahiya.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />गुलजार जी की बात जहां हो वो महफिल उनके जिक्रभर से ही चमक उठती है. उनके लिए तो "कायनात में लफ्ज ही नहीं तारीफ ये भी तो कुछ कम ही है" यह बोल निकलते हैं. गुलज़ार जिस तरह से शब्दों से खेलते है वो कोई और नहीं कर सकता इसीलिए हर शख्स उनका मुरीद हो जाता है. गुलज़ार की लेखनी से घायल एक और दीवानी की बात करते हैं. ये हैं हमारी महफिल की साथी रंजना जी. रंजना जी गुलज़ार जी के प्रति कुछ इस तरह से अपने भावों को बयाँ करती है......<br /><br /><span style="font-weight:bold;">"इतने लोगो में ,कह दो आंखो को <br />इतना ऊँचा न ऐसे बोला करे<br />लोग मेरा नाम जान जाते हैं !!<br /><br />अब इतने कम लफ्जों में इस से ज्यादा खूबसूरत बात गुलजार जी के अलावा कौन लिख सकता है. उन्होंने अपनी कही नज्मों में गीतों में ज़िंदगी के हर रंग को छुआ है . कुदरत के दिए हर रंग को इस बारीकी से अपनी कलम द्वारा कागज में उतारा है कि हर शख्स को वह सब अपना कहा और दिल के करीब लगता है. चाहे फिल्मों में हो या फिर साहित्य में, कुदरत से इतना जुडाव बहुत कम रचना कार कर पाये हैं.<br /><br />गुलजार सादगी और अपनी ही भाषा में सरलता से हर बात कह देते हैं कि लगता है कोई अपनी ही बात कर रहा है. उनकी यह लेखन की सादगी जैसे रूह को छू लेती है ..गुलजार जी का सोचा और लिखा आम इंसान का लिखा- उनके द्वारा कही हुई सीधी सी बात भी आँखों में एक सपना बुन देता है ..जिस सहजता व सरलता से वे कहते हैं वो इन पंक्तियों में दिखाई देती है--—<br /><br />‘बहुत बार सोचा यह सिंदूरी रोगन/जहाँ पे खड़ा हूँ/वहीं पे बिछा दूं/यह सूरज के ज़र्रे ज़मीं पर मिले तो/इक और आसमाँ इस ज़मीं पे बिछा दूँ/जहाँ पे मिले, वह जहाँ, जा रहा हूँ/मैं लाने वहीं आसमाँ जा रहा हूँ।’ <br /><br />उनके सभी गीत ज़िन्दगी से गहरे जुड़े हैं और हर गीत जैसे अपने ऊपर ही बात करता हुआ लगता है ...गुलज़ार जी के कहे लिखे गीत इस तरह से जहन में छाए रहते है कि जब कभी भी ज़िन्दगी की किसी मीठी भूली बिसरी बात का ज़िक्र होता है तो वह गीत बरबस याद आ जाता है ...इजाजत फिल्म का "मेरा कुछ समान तुम्हारे पास पड़ा है" का यह गीत यूँ लगता है जैसे ज़िन्दगी से ज़िन्दगी कुछ कहना चाहती है या अपना दिया कुछ उधार वापस चाहती है, जैसे कुछ कहीं फिर से छूट गया है और एक कसक तथा कुछ पाने की एक उम्मीद शब्दों में ढल जाती हैं . मैं इजाजत फिल्म का गीत मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पडा है सुनना चाहती हूँ.</span>"<br /><br />सच ही तो है कि हर किसी का अंदाज-ए-बयां अलग होता है. आइये अब हम सुनते है गुलज़ार जी के एक अलग अंदाज को ...<br /><br /><span style="font-weight:bold;">भीगी मेहँदी की खुशबु वो झूठ मूठ के वादे ...बहुत कुछ कह जाता है यह गीत .."</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GulzaarSpecialOnAwaaz/0meraKuchSamanijaazat.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />गुलज़ार जी ने एक से बढ़कर एक गीत लिखे है और जन-जन के हृदय के तारों को छेड़ दिया है. उन्होंने फिल्मी गंगा को समृद्ध किया है. "खुशबू, आंधी, किनारा, देवता, घर, गोलमाल,ख़ूबसूरत, नमकीन, मासूम, इजाजत और लिबास" आदि फिल्मों में गुलज़ार जी के लेखन कौशल का जलवा देखने को मिलता है. उनका लेखन ही नहीं निर्देशन भी कमाल का है. गुलज़ार जी ने कई प्रसिद्द फिल्मों में पटकथा व संवाद भी लिखे है. उनके लेखन की धारा को बांधा नही जा सकता. वो एक स्वछंद पंछी कि तरह कल्पना के आकाश में उड़ान भरते रहते है. गुलज़ार जी की कल्पना के हजारों शिकार हुए है, इनमें एक नाम है हमारे साथी निखिल आनंद गिरी जी का. निखिल जी अपने आप को गुलज़ार जी के शब्दजाल में फंसा पाते है और लिखते है कि---<br /><br /><span style="font-weight:bold;">गुलजार के कई रूप हैं. कभी वो नीली हंसी, पीली हंसी वाले गुलज़ार हैं तो कभी फूलों को चड्डी पहनाने वाले गुलज़ार...सिर्फ गुलज़ार ही हैं जो कुछ भी कर सकते हैं.....उनके ज़ेहन में शब्दों की कुश्ती चलती है...वो किसी भी शब्द को कहीं भी फिट कर सकते हैं....चांद को छत पर टांग सकते हैं, उसे रोटी भी कह सकते हैं..... यू-ट्यूब पर उनके यूएस के किसी कवि सम्मेलन का जिक्र है.....'छोटी (या नई) बहू को सारी चीज़े क्लीशे(clieshed) लगती हैं....' इतना बेहतर गुलज़ार ही लिख सकते हैं और कोई नहीं....<br />इजाज़त फिल्म की नज़्म " मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है, वो लौटा दो...." तो मेरी साँसों में दोड़ती है. वाह क्या कहने एकदम लाजवाब....."गीला मन शायद बिस्तर के पास पड़ा हो," क्या कहा जाए इस पर... गुलजार जी कुछ कहने लायक ही नहीं छोड़ते है. हर पहलू को छूते हैं गुलज़ार <br /><br />"सरहद पर कल रात सुना है चली थी गोली, सरहद पर कल रात, कुछ ख्वाबों का खून हुआ है.....आह....कितना सुन्दर .<br /><br />वही गुलज़ार जब मस्ती में लिखते हैं तो कोई और लगते हैं.....आसमान को कूटते गुलज़ार......इश्क का नमक लगाते गुलज़ार......क्या-क्या चर्चा की जाए....अजी चर्चा क्या कई बार तो बहस भी हो जाती है गुलजार जी के लिए. साहित्यकार कमलेश्वरजी के नाती अनंत त्यागी मेरे साथ जामिया में थे.....अक्सर चर्चा होती कि गुलज़ार जी बेहतर या जावेद अख्तर.....वो हमेशा जावेद अख्तर जी पर अड़ जाते....बहस में कुछ निकलता तो नहीं मगर गुलज़ार के जी ढेरों गाना ताज़ा हो जाते....<br /><br />गुलज़ार जी की रेंज इतनी ज़्यादा है कि बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को बराबर भाते हैं.....<br />बहरहाल, कौन-कौन से गाने पसंद है इसका गुलज़ारी जवाब यही हो सकता है कि मुझे गुलज़ार की छींक से खर्राटे तक सब कुछ पसंद है....आज मैं अपने दोस्त और मेरी पसंद का "शाम से आंख में नमी सी है..."गीत सुनना चाहता हूँ.</span> <br /><br />गुलज़ार जी के लेखन की बारीकियों को समझने के लिए बहुत ही गहरी सोच चाहिए. और गहन सोच के लिए जरुरी है कि हम गुलज़ार जी के लिखे गीतों को सुन उनकी गहराइयों में उतरें. तो सुनते है निखिल जी और उनके दोस्त की की ये ग़ज़ल -<br /><br /><span style="font-weight:bold;">"शाम से आँख में नमी सी है "</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GulzaarSpecialOnAwaaz/ShaamSeAankhmeinNamiSiHai.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />गुलजार जी के गीतों की फहरिस्त इतनी लम्बी है कि कभी ख़त्म ही न होगी. या यूँ कहें कि हम भी यही चाहते है कि यह सिलसिला इसी तरह चलता रहे. उनके लिखे ख़ास गीतों में से "आने वाला पल जाने वाला है, हजार राहें मुड़कर देखीं, तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूँ मैं, मेरा कुछ सामान तुमारे पास पडा है, यारा सिली-सिली विरहा कि रात का जलना, चल छैयां-छैयां- छैयां-छैयां, साथिया-साथिया तथा सबसे अधिक प्रसिद्द कजरारे-कजरारे तेरे कारे-कारे नैना" है. इन सभी गीतों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरुस्कार मिला है जिसके वो सही मायनो में हकदार भी है. अभी तो गुलजार जी की कल्पना के कई और रंग देखने बांकी हैं. हम इश्वर से प्रार्थना करेंगे की गुलजार जी अपनी लेखनी का जादू इसी तरह बिखेरते रहे. वो चाँद को कुछ भी कहें, और रात को कोई भी नाम दे दें लेकिन उनके सभी चाहने वाले उनकी हर कल्पना में एक सुखद एहसास की अनुभूति करते है और करते रहेंगे.<br /><br />प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"<br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-16797453646231665092009-08-09T08:30:00.004+05:302009-08-16T22:35:52.236+05:30रविवार सुबह की कॉफी और आपकी पसंद के गीत (12)<span style="font-weight:bold;">जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं</span><br /><br />साहित्य, कला और संगीत ऐसे तीन स्तम्भ हैं जो हमारे देश की आन, बान और शान का प्रतीक हैं. इन तीनों ही के योगदान ने देश को सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचाया है. इतिहास गवाह है कि साहित्य और संगीत के द्वारा हमारे साहित्यकारों ने देश के लोगों को जागरूक करने का काम किया है. चाहें गुलामी की जंजीरों से आजाद होने की प्रेरणा हो या फिर टुकडों में बँटे देश को जोड़ने का प्रयास, इन साहित्यकारों ने अपना योगदान बखूबी दिया है. इनकी कलम से निकले शब्दों ने पत्थर हृदयों में भी स्वाभिमान और देशप्रेम का जज़्बा पैदा कर दिया. कहते है कि "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुचे कवि". अर्थात कवियों की कल्पना से कोइ भी अछूता नहीं है. जो काम अन्य लोगों को असंभव दिखा वो कार्य इन कवियों ने अपनी कलम की ताकत के द्वारा कर दिखाया. भारतीय रचनाकार बंकिमचंद्र चटर्जी को कौन नहीं जानता. उनके द्वारा लिखे "वन्दे मातरम" गीत ने करोड़ों भारतीयों के सीने में अपनी जन्मभूमि के प्रति कर्तव्य और प्रेम के भाव को जागृत कर दिया. यही नहीं यह गीत आजादी का नारा बन गया. आज भी इस गीत के स्वर भारतवर्ष की फिजाओं में गूँजते है और देशप्रेमी इस गीत की तान को अपनी आत्मा से अलग नहीं कर पाते. ऐसे में स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर इस गीत का जिक्र और फरमाईश ना हो, मुमकिन ही नहीं. हमारे हिन्दयुग्म के नियमित पाठक व श्रोता पराग सांकला(यू.एस.ए) जी ने "वंदे मातरम" गीत को सुनने की ख्वाहिश के साथ उससे जुड़ी कई बेहतरीन जानकारी भी हमसे बाँटी है.....<br /><br />"<span style="font-weight:bold;">रविवार ७ नवम्बर सन १८७५ में बंकिमचंद्र चटर्जी ने प्रसिद्ध गीत "वन्दे मातरम" लिखा. यूँ तो यह गीत १२५ साल से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन आज भी इसकी लोकप्रियता जस की तस है. कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने "वंदे मातरम" गीत को 'बादों स्क्वायर' में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के १८९६ सम्मेलन में गाया था. उसके बाद यह देशभक्ति की मिसाल बन गया जिसके चलते इस पर ब्रिटिश प्रतिबंध भी लगाया गया.<br /><br />हिन्दी और बांग्ला भाषा में बनी फिल्म आनंदमठ(१९५२) में यह गीत शामिल किया गया इसकी धुन आज भी बहुत प्रसिद्ध और लोकप्रिय है. यह धुन संगीतकार हेमंतकुमार ने राग मालकौंस और भैरवी के मिश्रण से बनाई थी. फिल्म में यह गीत लता जी और हेमंत दा ने गाया था. इससे दो साल पहले इस गीत को गीता दत्त जी ने एम दुर्रानी के साथ गाया था. दुर्भाग्य से इस गैरफिल्मी रिकॉर्ड का ऑडियो उपलब्ध नहीं हैं.</span>"<br /><br />आइये सुनते है पराग जी की पसंद, और फिल्म आनंद मठ का वह दुर्लभ गीत........ जो शुरू होता हैं "नैनों में सावन" बोलों से. फिर गीत के बोल बन जाते हैं "गूँज उठा जब कोटि कोटि कंठों से आजादी का नारा" साथ ही पृष्ठभूमि में "वन्दे मातरम " का उच्चारण होता रहता है. आशा हैं की आप सभी संगीत प्रेमियों को भी यह गीत पसंद आयेगा.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">नैनों में सावन.......वंदे मातरम</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SundayMorningCoffeeDeshPrem/nainon_mein_sawan.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />हम बात कर रहे थे अपने कवियों की. बंकिम चंद्र चटर्जी के अलावा अन्य कवियों ने भी स्वतन्त्रता की लड़ाई में अपनी लेखनी को तलवार की तरह इस्तेमाल किया है.लोगों के सोये स्वाभिमान को जगाने के लिये वह लिखते है...."निज भाषा, निज गौरव, देश पर जिसे अभिमान नही, नर नहीं वह पशु है, जिसको स्वदेश से प्यार नहीं".राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने तो संपूर्ण देश में राष्ट्रीयता की भावना ही भर दी थी. उनकी कलम से निकले यह शब्द आत्मा को छूते है......."जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं". हमारे देश के क्रान्तिकारी भी पीछे नहीं थे. जोश और भावों से पूर्ण उनका हृदय भी कविता बन फूट पड़ता था. क्रान्तिकारी भगतसिंह, बिस्मिल और राजगुरु ने जेल में बिताए हुए दिनों के दौरान अनेक गीतों और शेरों को कहा. इनमें "मेरा रंग दे बसंती चोला"और "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" मुख्य हैं. यह शेर व गीत अंग्रेजों के कान में खौलते तेल की तरह पड़ते थे लेकिन भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत थे और रहेंगे. देशप्रेम का भाव ऐसा होता है कि इसके वशीभूत हो व्यक्ति अपनी सुधबुध खो देता है. हमारे साथी निखिल आनंद गिरि जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. निखिल जी हिन्दयुग्म के साथ अपना अनुभव बाँटते हुए बताते है कि.......<br /><br /><span style="font-weight:bold;">'मेरा रंग दे बसंती चोला' और 'सरफरोशी की तमन्ना' जब भी सुनता हूं, रोएं खड़े हो जाते हैं..<br /><br />"सरफरोशी की तमन्ना" गीत का जो नया वर्ज़न "गुलाल" फिल्म में आया है, ने इस गाने को सर्वकालिक बना दिया है...<br /><br />नोएडा के स्पाइस मॉल में जब ये फिल्म देख रहा था तो बीच हॉल में खड़ा होकर मस्ती में झूमने लगा...लोग मुझे बैठाने लगे...दो-तीन गानों में ऐसा हुआ....मुझे मज़ा आ रहा था...मन में यही विचार आया कि क्या मैं कभी ऐसा लिख पाऊँगा ?<br /><br />अभी कारगिल विजय पर कार्यक्रम बना रहा था...तो कई गाने सुनने को मिले....मज़ा आ गया....</span><br /><br />निखिल जी ने ख्वाहिश की है गीत "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है".......<br /><br /><span style="font-weight:bold;">सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SundayMorningCoffeeDeshPrem/05-SarfaroshiTamanna.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />फिल्म "शहीद" का यह गीत वो जख्म फिर से ताजा कर देता है जो हमारे क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजों से जेल में खाये थे. अगर हम क्रान्तिकारी कवियों की बात करें तो "सियारामसरन गुप्त, श्रीधर पाठक, अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध आदि में भारतेन्दु जी का नाम मुख्य है उन्होंने अपनी कविता में अंग्रेजों की चाटुकारिता करने वाले शासकों को धिक्कारा है.<br /><br />"गले बाँधि इस्टार सब, जटित हीर मनि कोर,<br /><br />धावहु धावहु दौरि के कलकत्ता की ओर । <br />चढ तुरंग बग्गीन पर धावहु पाछे लागि, <br />उडुपति संग उडुगन सरसि नृप सुख सोभा पागि।<br /><br />राजभेट सब ही करो अहो अमीर नवाब, <br />हाजिर ह्वै झुकि झुकि करौ सब सलाम आदाब। <br />राजसिंह छूटे सबै करि निज देस उजार, <br />सेवन हित नृप कुँवर वर धाये बाँधि कतार ।<br /><br />हिमगिरि को दै पीठ किय काश्मीरेस पयान ।<br /><br />धाए नृप एक साथ सब करि सूनौ निज ठौर<br /><br />देखा दोस्तों ये है कलम की धार जो बड़े-छोटे सभी की पोल खोल देती है. इस कलम की ताकत हमें फिल्मों में भी देखने को मिलती है. देशप्रेम और स्वतन्त्रता संग्राम के विषय पर बहुत सी फिल्में बनी है. हमारे एक अन्य श्रोता अनूप मंचाल्वर(पुणे)जी ने देशप्रेम से पूर्ण फिल्मों के बहुत ही भावपूर्ण दृश्य लिखकर भेजे हैं जो सभी को प्रभावित करेंगे..........<br /><br />"<span style="font-weight:bold;">देशभक्ति से पूर्णं कई फिंल्मे बहुत ही अच्छी है. मनोज कुमार, बेन किंग्सले हों या मणि रत्नम, सभी ने फिल्मो में देशभक्ति को बहुत ही सलीखे से दर्शाया है. मुझे दो दृश्य बहुत प्रभावित करते हैं.एक तो "गांधी" फिल्म से है "जब बापू एक नदी पर आते है और एक गरीब महिला को देखकर अपना गमछा पानी में छोड़ देते है ताकि वह महिला अपना तन ढक सके". इस दृश्य में भारत की समकालीन गरीबी और गांधीजी के देश प्रेम को बहुत ही सहजता से दर्शाया है. दूसरा दृश्य "रोजा" फिल्म का है "जब आतंकवादी (पंजक कपूर) तिरंगे को जलाकर फेंकता है तो नायक तिरंगे में लगी आग के ऊपर कूदकर तिरंगे को जलने से बचाता है. यहाँ ए.आर.रहमान द्वारा निर्मित तर्ज (आवाज़ दो हम एक है) माहौल में जोश भर देते है.</span>"<br /><br />इन भावपूर्ण दृश्यो को पढ़ हमारा मन भी रोजा फिल्म का गीत सुनने को मचल उठा है. अनूप मंचाल्वर जी की इच्छा हम जरुर पूरी करेंगे..<br /><br /><span style="font-weight:bold;">भारत हमको जान से प्यारा है</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SundayMorningCoffeeDeshPrem/01-BharatHumKoJaan.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />दोस्तों साहित्यकारों और संगीतकारों की ताकत को नकारा नहीं जा सकता. वो अपने लेखन और संगीत से गहरी छाप छोड़ते हैं. हम उनके लेखन में तात्कालिक देश की हालत के भी दर्शन कर सकते हैं इसका प्रमाण है कवि बद्रीनारायण "प्रेमघन" की ये पंक्तियाँ...<br /><br />कैदी के सम रहत सदा, आधीन और के<br /><br />घूमत लुंडा बने, शाह शतरंज के। "<br /><br />खैर यह तो पुराने समय के कवियों की बात हुई. अगर हम आज की बात करें तब भी पायेंगे कि नए लेखक और कवि भी अपने लेखन में देश के तत्कालिक हालातों और घटनाओं को स्थान दे रहे हैं. उनकी रचनाओं में ताजा हालातों को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है.. कारगिल युद्ध पर कई किताबें लिखी गई हैं व फिल्म भी बनाई गयी है. हमारे नियमित पाठक व श्रोता शरद तेलंग(राजस्थान) कारगिल युद्ध के समय से जुड़ा अनुभव लिखते है कि शहीदों और सैनिकों के प्रति देशवासियों में कितनी इज्जत है....."<span style="font-weight:bold;">कारगिल युद्ध के समय की बात है हमारे संगीत दल ने यह तय किया कि हम लोग शहीदों की याद में एक देशभक्ति गीतों का कार्यक्रम विभिन्न जगहों पर आयोजित करेंगे । इसी योजना के तहत हमने कोटा, बून्दी, बारां तथा झालावाड़ जिलों में कार्यक्रम आयोजित किए । सभी जगह बहुत अच्छा अनुभव रहा, लेकिन झालावाड़ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जिला कलेक्टर तथा आर्मी के कुछ अफ़सरों के सामने हमने कार्यक्रम प्रस्तुत किया. तीन चार गीत सुनाने के बाद जब हमने श्रोताओं से अपील की कि जो भी सज्जन शहीद सैनिकों के परिवार हेतु अपना योगदान देना चाहे वो जिला कलेक्टर को मंच पर आकर दे दें. फिर क्या था एक बार जो सिलसिला शुरू हुआ वो थमा ही नही। लोगों का ध्यान गीतों से ज्यादा सैनिकों के लिये योगदान देने में था. उस दिन पहली बार मैनें लोगों में अपने देश और उसकी रक्षा करने वाले सैनिकों के प्रति गज़ब का उत्साह देखा। सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए मैं "उसने कहा था' फिल्म का गीत 'जाने वाले सिपाही से पूछो वो कहाँ जा रहा है' सुनना चाहूँगा</span>"<br /><br />सही कहा शरद जी ने स्वतन्त्रता दिवस पर इससे अच्छी श्रद्धाजंली तो हो ही नहीं सकती. चलिये सुनते है यह गीत.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">जाने वाले सिपाही से पूछो</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SundayMorningCoffeeDeshPrem/04-JaneWaleSipahiSeFmw11.com.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />दिल्ली से ही तपन शर्मा जी हमें लिखते हैं- <br />"<span style="font-weight:bold;">देश भक्ति गीतों की जब बात आती है तो दो गीत ऐसे हैं जो मुझे सबसे अच्छे लगते हैं। एक गीत से गर्व महसूस होता है और दूसरा गीत जोश दिलाता है। देशभक्ति पर आधारित फ़िल्मों में सबसे पसंदीदा फ़िल्मों में से एक है ’पूरब और पश्चिम’। मनोज कुमार उर्फ़ भारत कुमार ने एक से बढ़कर एक देशभक्ति से ओतप्रोत फ़िल्में बनाईं। उन्हीं में से एक थी पूरब और पश्चिम। और उसी का एक गीत है- "जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने दुनिया को तब गिनती आई"। ये उस गीत के शुरु के बोल हैं। आम लोगों में - "है प्रीत जहाँ की रीत सदा..." ये बोल प्रसिद्ध हैं। इसी गीत के शुरु में जब मनोज कुमार गुनगुनाता है कि- देता न दशमलव भारत तो चाँद पे जाना मुश्किल था..धरती और चाँद की दूरी का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था....। ये बोल मुझे गर्वांवित करते हैं। और मैं ये महसूस करने लगता हूँ कि हाँ, हमारे देश में विश्व शक्ति बनने की काबिलियत है बस थोड़ा हौंसला और जोश चाहिये।<br /><br />और ये जोश मिलता है मेरे अगले पसंदीदा गाने से। फ़िल्म थी "हक़ीकत"। और गाना-"कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों"। आगे के बोल में जब गीतकार ने कहा- "साँसे थमती गईं नब्ज़ जमती गईं..फिर भी बढ़ते कदम को न रूकने दिया.." तब लगता है मानो हम खुद ही बॉर्डर पर हों और दुश्मनों का सामना कर रहे हों। उन शहीदों को बारम्बार नमन करने की इच्छा होती है जिनकी वजह से हम सुरक्षित हैं। रौंगटे खड़ी कर देती हैं अगली पंक्तियाँ- "ज़िन्दा रहने के मौसम बहुत हैं मगर..जान देने की रुत रोज़ आती नहीं.."। मन में बस एक ही बात उठती है..सीमा की सुरक्षा करना कोई हँसी मजाक नहीं। निडरता और हौंसला और देश पर मर मिटने का जज़्बा चाहिये। कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो अंदर तक हिल न जाये इस गीत को देखकर। इतना खूबसूरत ऊर्जा से भरपूर है ये गीत।</span>"<br /><br />चलते चलते सुनते चलें तपन जी की पसंद के ये दो गीत भी <br /><span style="font-weight:bold;">है प्रीत जहाँ की रीत सदा (पूरब और पश्चिम)</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SundayMorningCoffeeDeshPremExtra/01BharatKaRehnewalaHoon.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">कर चले हम फ़िदा (हकीक़त)</span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/SundayMorningCoffeeDeshPremExtra/ABTUMHAREHAWALEWATAN-RAFI.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />देशप्रेम और साहित्यकारों का संबंध तो बहुत पुराना है प्राचीनकाल से लेकर आज तक सहित्यकारों ने बहुत कुछ लिखा है. आज भी उनका यह प्रयास जारी है कि उनकी लेखनी से निकले शब्द किसी एक नागरिक के हृदय मे भी देशप्रेम और स्वाभिमान का बीज बो दें तो काफी है, क्योकि बीज पड़ना जरुरी है अंकुर तो फूटेगा ही. प्रसिद्ध लेखक दुष्यंत जी ने कहा था "महज़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं ये सूरत बदलनी चाहिए, मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में ही सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए". हम भी यही प्रार्थना करते हैं कि लोगों में देश के प्रति लौ लगे. अंत में हम देश के शहीदों और समस्त साहित्यकारों को उनके योगदान के लिये समस्त देशवासियों की ओर से नमन करते है.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">सूचना - अगले रविवार सुबह की कॉफी के साथ हम सुनेंगें गुलज़ार साहब के कुछ बेहद दुर्लभ गीत जिनका चयन किया है पंकज सुबीर जी ने. गुलज़ार साहब के बहुत से गीतों ने आप सब को कहीं न कहीं जीवन के किसी मोड़ पर छुआ होगा. उनके उन्हीं ख़ास गीतों से जुडी अपनी यादें हम सब के साथ बांटिये अपने उन अनुभवों को हमें लिख भेजिए. १८ अगस्त को गुलज़ार साहब का जन्मदिन है. हम कोशिश करेंगें कि आपकी मुबारकबाद उन तक पहुंचाएं, आप अपने अनुभव इसी पोस्ट में टिप्पणियों के रूप में भी लिख सकते हैं.तो जल्दी कीजिये कहीं देर न हो जाए. </span> <br /><br />प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"<br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-35593498211269144302009-08-02T11:34:00.005+05:302009-08-02T18:39:03.599+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (११)<span style="font-weight:bold;">नोट - आज से रविवार सुबह की कॉफी में आपकी होस्ट होंगी - दीपाली तिवारी "दिशा"</span> <br /><br />रविवार सुबह की कॉफी का एक और नया अंक लेकर आज हम उपस्तिथ हुए हैं. वैसे तो मन था कि आपकी पसंद के रक्षा बंधन गीत और उनसे जुडी आपकी यादों को ही आज के अंक में संगृहीत करें पर पिछले सप्ताह हुई एक दुखद घटना ने हमें मजबूर किया कि हम शुरुआत करें उस दिवंगत अभिनेत्री की कुछ बातें आपके साथ बांटकर.<br /><br />फिल्म जगत में अपने अभिनय और सौन्दर्य का जादू बिखेर एक मुकाम बनाने वाली अभिनेत्री लीला नायडू को कौन नहीं जानता. उनका फिल्मी सफर बहुत लम्बा तो नहीं था लेकिन उनके अभिनय की धार को "गागर में सागर" की तरह सराहा गया. लीला नायडू ने सन १९५४ में फेमिना मिस इंडिया का खिताब जीता था और "वोग" मैग्जीन ने उन्हें विश्व की सर्वश्रेष्ठ दस सुन्दरियों में स्थान दिया था.<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKlYmrY9kpW_qzhTwhCOk7_0k6-DUN-js0ymTNUXUxKLo7CF0FbE5ygP6rOYwDm9BpbEAE31nhz29708upt6D1yJgTySrTpnxOlWuAS0lgzKANOQZrUb0_mOL9uYHeZzTWWgC7fLmftB-C/s1600-h/leela.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 192px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgKlYmrY9kpW_qzhTwhCOk7_0k6-DUN-js0ymTNUXUxKLo7CF0FbE5ygP6rOYwDm9BpbEAE31nhz29708upt6D1yJgTySrTpnxOlWuAS0lgzKANOQZrUb0_mOL9uYHeZzTWWgC7fLmftB-C/s200/leela.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5364874701346192818" /></a><br />लीला नायडू ने अपना फिल्मी सफर मशहूर फिल्मकार ह्रशिकेश मुखर्जी की फिल्म "अनुराधा" से शुरु किया. इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता बलराज साहनी की पत्नि की भूमिका निभायी थी. अनुराधा फिल्म के द्वारा लीला नायडू के अभिनय को सराहा गया और फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिये राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला. अपने छोटे से फिल्मी सफर में लीला नायडू ने उम्मींद, ये रास्ते हैं प्यार के, द गुरु, बागी और त्रिकाल जैसी फिल्मों में अभिनय किया. सन १९६३ में प्रदर्शित फिल्म "ये रास्ते हैं प्यार के" ने लीला नायडू को एक अलग पहचान दी. इस फिल्म में अभिनय के बाद वो नारी स्वतंत्रता की प्रतीक बन गयीं. सन १९६३ में ही उन्होंने आइवरी प्रोडक्शन की फिल्म "हाउसहोल्डर" में भी काम किया.<br /><br />उनके व्यक्तिगत जीवन पर नजर डालें तो कहा जाता है कि वह अपने निजी जीवन में भी उन्मुक्त विचारों की थी. उनके पिता रमैया नायडू आन्ध्रप्रदेश के थे और न्यूक्लियर विभाग में फिजिसिस्ट थे. उनकी माँ फ्रांसिसी मूल की थीं. अपने फिल्मी कैरियर के दौरान ही लीला नायडू ने ओबेरॉय होटल के मालिक मोहन सिंह के बेटे विक्की ओबेरॉय से विवाह कर लिया. उनसे उनकी दो बेटियाँ हैं. बाद में विक्की ओबेरॉय से तलाक हो जाने के बाद लीला नायडू ने अंग्रेजी कवि डॉम मॉरेस से विवाह किया और उनके साथ लगभग दस वर्ष फ्रांस में रहीं. जब कोर्ट ने उनकी दोनों बेटियों का जिम्मा उनसे लेकर विक्की ओबेरॉय को दे दिया तो वह भारत चलीं आयीं. यहाँ लीला नायडू की मुलाकात दार्शनिक जे.कृष्णमूर्ति से हुई. उसके बाद वह आजीवन उन्हीं के साथ रहीं.<br /><br />लंबे समय तक फिल्मों से दूर रहने के बाद सन १९८५ में श्याम बेनेगल की फिल्म "त्रिकाल" से उनकी बॉलीवुड में वापिसी हुई थी. इसके बाद सन १९९२ में वह निर्देशक प्रदीप कृष्ण की फिल्म "इलैक्ट्रिक मून" में नजर आयीं थीं. यह उनकी आंखिरी फिल्म थी.<br /><br />कवि बिहारीलाल का एक दोहा है कि "सतसैया कए दोहरे ज्यों नाविक के तीर, देखन में छोटे लगें घाव करं गंभीर" यह दोहा लीला नायडू के छोटे फिल्मी सफर पर भी लागू होता है.लीला नायडू ने छोटे फिल्मी सफर में अपने अभिनय की जो छाप छोडी़ है वो न तो बॉलीवुड भुला सकता है और न ही उनके चाहने वाले. आइये हम सभी सौन्दर्य और अभिनय की देवी को श्रद्धांजंली दें.<br /><br />अब ऐसा कैसे हो सकता है कि हम आपको लीला जी पर फिमाये गए कुछ नायाब और कुछ दुर्लभ गीत ना सुनाएँ, फिल्म "अनुराधा" (इस फिल्म में बेमिसाल संगीत दिया था पंडित रवि शंकर ने ) और "ये राते हैं प्यार के", दो ऐसी फिल्में हैं जिसमें लीला जी पर फिल्माए गीतों को हम कभी नहीं भूल सकते. चलिए सुनते हैं इन्हीं दो फिल्मों से कुछ नायाब गीत -<br /><br />जाने जाँ पास आओ न (सुनील दत्त, आशा भोंसले, ये रास्ते हैं प्यार के )<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LeelaNaidu/22077_jaaneJaPaasAao.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />ये रास्ते हैं प्यार के (आशा भोंसले, शीर्षक) <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LeelaNaidu/22079_yehRaasteyHainPyarKe.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />आज ये मेरी जिन्दगी (आशा भोंसले, ये रास्ते हैं प्यार के)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/Leela1/22075_aajYehMeriZindagi.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />ये खामोशियाँ (रफी- आशा, ये रास्ते हैं प्यार के, एक बेहद खूबसूरत प्रेम गीत) <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LeelaNaidu/yeh_raaste_hain_pyar_ke_1963_1www.songs.pk.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />सांवरे सांवरे (लता, अनुराधा)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LeelaNaidu/SavreSavreMp3hungama.com.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />कैसे दिन बीते (लता, अनुराधा)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LeelaNaidu/KaiseDinBeete-Anuradha1960-Lata.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />और एक ये बेहद दुर्लभ सा गीत भी सुनिए -<br />गुनाहों का दिया हक (ये रास्ते हैं प्यार के)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LeelaNaidu/22076_gunahonKaDiyaThaHaq.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />रक्षा बंधन पर हमने चाहा था कि आप अपने कुछ संस्मरण बांटे पर अधिकतर श्रोता शायद इस परिस्तिथि के लिए तैयार नहीं लगे, स्वप्न जी ने कुछ लिखा तो नहीं पर अपने भाई जो अब इस दुनिया में नहीं हैं उन्हें याद करते हुए उनके सबसे पसंदीदा गीत को सुनवाने की फरमाईश की है. हमें यकीन है कि उनके आज जहाँ कहीं भी होंगे अपनी बहन की श्रद्धाजंली को ज़रूर स्वीकार करेंगें -<br /><br />कोई होता जिसको अपना (किशोर कुमार, मेरे अपने)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LeelaNaidu/KoiHotaJiskoApna.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />हमलोग शुरु से ही संयुक्त परिवार में रहे. परिवार में सगे रिश्तों के अलावा ऐसे रिश्तों की भी भीड़ रही जिनसे हमारा सीधा-सीधा कोई नाता न था. यानी कि हमारा एक भरा-भरा परिवार था. हमारे यहाँ सभी तीज-त्यौहार बहुत ही विधि विधान से मनाये जाते थे. रक्षाबंधन भी इन्हीं में से एक है. मुझे आज भी याद है क मेरे ताऊजी, पापाजी तथा चाचाजी किस तरह सुबह से ही एक लम्बी पूजा में शामिल होते थे और उस दौरान नया जनेऊ पहनना आदि रस्में की जाती थीं. तरह-तरह के पकवान बनते थे. लेकिन हम बच्चे सिर्फ उनकी खुशबू से अपना काम चलाते थे क्योंकि माँ बार-बार यह कहकर टाल देती थी कि अभी पूजा खत्म नही हुई है. पूजा के बाद राखी बाँधकर खाना खाया जायेगा. उस समय तो अपने क्या दूर-दूर के रिश्तेदार भी राखी बँधवाने आते थे. आज बहुत कुछ बदल गया है. अब तो सगे भाई को भी राखी बाँधने का मौका नहीं मिलता है. खैर चलिए चलते चलते सुनते चलें रंजना भाटिया जी की पसंद का ये गीत जो इस रक्षा बंधन पर आप सब की नज़र है-<br /><br />चंदा रे मेरे भैया से कहना (लता, चम्बल की कसम)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LeelaNaidu/ChandaRe-ChambalkiKasamrenewed.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />सभी भाई -बहनों के लिए ये रक्षा बंधन का पर्व मंगलमय हो इसी उम्मीद के साथ मैं दिशा आप सब से लेती हूँ इजाज़त.<br /><br />प्रस्तुति - दीपाली तिवारी "दिशा"<br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-5231987919219552972009-07-19T09:00:00.002+05:302009-07-19T12:02:43.323+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (10)<span style="font-weight:bold;"><a href="http://www.geetadutt.com/">पराग सांकला</a> जी से हमारे सभी नियमित श्रोता परिचित हैं. इन्हें हम आवाज़ पर गीता दत्त विशेषज्ञ कहते हैं, सच कहें तो इनके माध्यम से गीता दत्त जी की गायिकी के ऐसे अनछुवे पहलूओं पर हम सब का ध्यान गया है जिसके बारे में शायाद हम कभी नहीं जान पाते. एक बार पहले भी पराग ने आपको गीता जी के गाये <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/05/sunday-morning-coffee-with-geeta-dutt.html">कुछ मधुर और दुर्लभ प्रेम गीत</a> सुनवाए थे, इसी कड़ी को आज आगे बढाते हुए आज हम सुनते हैं गीता जी के गाये १४ और प्रेम गीत. ये हिंद युग्म परिवार की तरह से भाव भीनी श्रद्धाजंली है गायिका गीता दत्त को जिनकी कल ३७ वीं पुण्यतिथि है. पेश है पराग जी के नायाब संकलन में से कुछ अनमोल मोती इस रविवार सुबह की कॉफी में </span> <br /> <br />गीता रॉय (दत्त) ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत प्रेमगीत गाये हैं मगर जिनके बारे में या तो कम लोगों को जानकारी हैं या संगीत प्रेमियों को इस बात का शायद अहसास नहीं है. इसीलिए आज हम गीता के गाये हुए कुछ मधुर मीठे प्रणय गीतों की खोज करेंगे.<br /> <br />सन १९४८ में पंजाब के जाने माने संगीतकार हंसराज बहल के लिए फिल्म "चुनरिया" के लिए गीता ने गाया था "ओह मोटोरवाले बाबू मिलने आजा रे, तेरी मोटर रहे सलामत बाबू मिलने आजा रे". एक गाँव की अल्हड गोरी की भावनाओं को सरलता और मधुरता से इस गाने में गीता ने अपनी आवाज़ से सजीव बना दिया है.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2Extra/OhMotorwaleBabu_geetaDutt_chunariya_1948_hansrajBehl_160kbps_0254min.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />सन १९५० में फिल्म "हमारी बेटी" के लिए जवान संगीतकार स्नेहल भाटकर (जिनका असली नाम था वासुदेव भाटकर) ने मुकेश और गीता रॉय से गवाया एक मीठा सा युगल गीत "किसने छेड़े तार मेरी दिल की सितार के किसने छेड़े तार". भावों की नाजुकता और प्रेम की परिभाषा का एक सुन्दर उदाहरण हैं यह युगल गीत जिसे लिखा था रणधीर ने. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2/1950_hamariBeti1950__kisNeYehKisNeChhedeTaar_geetaRoyMukesh.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />बावरे नैन फिल्म में संगीतकार रोशन को सबसे पहला सुप्रसिद्ध गीत (ख़यालों में किसी के) देने के बाद अगले साल गीता रॉय ने रोशन के लिए फिल्म बेदर्दी के लिए गाया "दो प्यार की बातें हो जाए, एक तुम कह दो, एक हम कह दे". बूटाराम शर्मा के लिखे इस सीधे से गीत में अपनी आवाज़ की जादू से एक अनोखी अदा बिखेरी हैं गीता रोय ने.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2/1951BedardiDoPyarKiBatenHoJayen128k-GeetaDutt-ButaramSharma-Roshan-0303.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />जिस साल फिल्म "दो भाई" प्रर्दशित हुई उसी साल फिल्मिस्तान की और एक फिल्म आयी थी जिसका नाम था शहनाई. दिग्गज संगीतकार सी रामचन्द्र ने एक फडकता हुआ प्रेमगीत बनाया था "चढ़ती जवानी में झूलो झूलो मेरी रानी, तुम प्रेम का हिंडोला". इसे गाया था खुद सी रामचंद्र, गीता रॉय और बीनापानी मुख़र्जी ने. कहाँ "दो भाई" के दर्द भरे गीत और कहाँ यह प्रेम के हिंडोले!<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2/1947--shehnaai--chadhtiJawaani--plSantoshi--crc--geeta-binapaani-chitalkar-saathi--128kbps--03.10--mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />गीतकार राजेंदर किशन की कलम का जादू हैं इस प्रेमगीत में जिसे संगीतबद्ध किया हैं सचिन देव बर्मन ने. "एक हम और दूसरे तुम, तीसरा कोई नहीं, यूं कहो हम एक हैं और दूसरा कोई नहीं". इसे गाया हैं किशोर कुमार और गीता रॉय ने फिल्म "प्यार" के लिए जो सन १९५० में आई थी. गीत फिल्माया गया था राज कपूर और नर्गिस पर. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttExtra/1950-pyaar-ekHumAurDoosreTum-geetaKishore-rajendra-sdb.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />"हम तुमसे पूंछते हैं सच सच हमें बताना, क्या तुम को आ गया हैं दिल लेके मुस्कुराना?" वाह वाह क्या सवाल किया हैं. यह बोल हैं अंजुम जयपुरी के लिए जिन्हें संगीतबद्ध किया था चित्रगुप्त ने फिल्म हमारी शान के लिए जो १९५१ में प्रर्दशित हुई थी. बहुत कम संगीत प्रेमी जानते हैं की गीता दत्त ने सबसे ज्यादा गीत संगीतकार चित्रगुप्त के लिए गाये हैं. यह गीत गाया हैं मोहम्मद रफी और गीता ने. रफी और गीता दत्त के गानों में भी सबसे ज्यादा गाने चित्रगुप्त ने संगीतबद्ध किये हैं.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2Extra/HumTumSePoochhteHain_geeta_rafi_hamariShaan_1951_chitragupta_0240min_128kbps.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />पाश्चात्य धुन पर थिरकता हुआ एक स्वप्नील प्रेमगीत हैं फिल्म ज़माना (१९५७) से जिसके संगीत निर्देशक हैं सलील चौधरी और बोल हैं "दिल यह चाहे चाँद सितारों को छूले ..दिन बहार के हैं.." उसी साल प्रसिद्द फिल्म बंदी का मीठा सा गीत हैं "गोरा बदन मोरा उमरिया बाली मैं तो गेंद की डाली मोपे तिरछी नजरिया ना डालो मोरे बालमा". हेमंतकुमार का संगीतबद्ध यह गीत सुनने के बाद दिल में छा जाता है.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2/1957-goraBadanMora-bandi-geeta-hemantkumar-rajinderkrishan.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />संगीतकार ओमकार प्रसाद नय्यर (जो की ओ पी नय्यर के नाम से ज्यादा परिचित है) ने कई फिल्मों को फड़कता हुआ संगीत दिया. अभिनेत्री श्यामा की एक फिल्म आई थी श्रीमती ४२० (१९५६) में, जिसके लिए ओ पी ने एक प्रेमगीत गवाया था मोहम्मद रफी और गीता दत्त से. गीत के बोल है "यहाँ हम वहां तुम, मेरा दिल हुआ हैं गुम", जिसे लिखा था जान निसार अख्तर ने. <br /> <br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2Extra/YahanHumWahanTum_mohdRafi_geetaDutt_shrimati420_oPNayyar_jnakhtar_192kbps_0312min.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />आज के युवा संगीत प्रेमी शायद शंकरदास गुप्ता के नाम से अनजान है. फिल्म आहुती (१९५०) के लिए गीता दत्त ने शंकरदास गुप्ता एक युगल गीत गाया था "लहरों से खेले चन्दा, चन्दा से खेले तारे". उसी फिल्म के लिए और एक गीत इन दोनों ने गाया था "दिल के बस में हैं जहां ले जाएगा हम जायेंगे..वक़्त से कह दो के ठहरे बन स्वर के आयेंगे". एक अलग अंदाज़ में यह गीत स्वरबद्ध किया हैं, जैसे की दो प्रेमी बात-चीत कर रहे हैं. गीता अपनी मदभरी आवाज़ में कहती हैं -"चाँद बन कर आयेंगे और चांदनी फैलायेंगे".<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2/1950--aahuti--lehronSeKheleChandaa--tandon--dcDutt--geeta-shankarDasgupta--128kbps--02.57--mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />अगर प्रेमगीत में हास्य रस को शामिल किया जाया तो क्या सुनने मिलेगा? मेरा जवाब हैं "दिल-ऐ-बेकरार कहे बार बार,हमसे थोडा थोडा प्यार भी ज़रूर करो जी". इस को गाया हैं गीता दत्त और गुलाम मुस्तफा दुर्रानी ने फिल्म बगदाद के लिए और संगीतबद्ध किया हैं बुलो सी रानी ने. जिस बुलो सी रानी ने सिर्फ दो साल पहले जोगन में एक से एक बेहतर भजन गीता दत्त से गवाए थे उन्हों ने इस फिल्म में उसी गीता से लाजवाब हलके फुलके गीत भी गवाएं. और जिस राजा मेहंदी अली खान साहब ने फिल्म दो भाई के लिखा था "मेरा सुन्दर सपना बीत गया" , देखिये कितनी मजेदार बाते लिखी हैं इस गाने में:<br /> <br />दुर्रानी : मैं बाज़ आया मोहब्बत से, उठा लो पान दान अपना<br />गीता दत्त : तुम्हारी मेरी उल्फत का हैं दुश्मन खानदान अपना<br />दुर्रानी : तो ऐसे खानदान की नाक में अमचूर करो जी<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2/1952-baghdaad-3.10-dile-e-beqaraKaheBaarBaar-geetaduttgmdurrani-rajamak-buloc.rani.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />सचिन देव बर्मन ने जिस साल गीता रॉय को फिल्म दो भाई के दर्द भरे गीतों से लोकप्रियता की चोटी पर पहुंचाया उसी साल उन्ही की संगीत बद्ध की हुई फिल्म आई थी "दिल की रानी". जवान राज कपूर और मधुबाला ने इस फिल्म में अभिनय किया था. उसी फिल्म का यह मीठा सा प्रेमगीत हैं "आहा मोरे मोहन ने मुझको बुलाया हो". इसी फिल्म में और एक प्यार भरा गीत था "आयेंगे आयेंगे आयेंगे रे मेरे मन के बसैय्या आयेंगे रे".<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2/AahaMoreyMohanNe_geetaDutt_dilKiRani_1947_sdburman_128kbps_0215.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />और अब आज की आखरी पेशकश है संगीतकार बुलो सी रानी का फिल्म दरोगाजी (१९४९) के लिया संगीतबद्ध किया हुआ प्रेमगीत "अपने साजन के मन में समाई रे". बुलो सी रानी ने इस फिल्म के पूरे के पूरे यानी १२ गाने सिर्फ गीता रॉय से ही गवाए हैं. अभिनेत्री नर्गिस पर फिल्माया गया यह मधुर गीत के बोल हैं मनोहर लाल खन्ना (संगीतकार उषा खन्ना के पिताजी) के. गीता की आवाज़ में लचक और नशा का एक अजीब मिश्रण है जो इस गीत को और भी मीठा कर देता हैं.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongsPart2/Darogaji-ApneSaajanKeMannMein.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />जो अदा उनके दर्दभरे गीतों में, भजनों में और नृत्य गीतों में हैं वही अदा, वही खासियत, वही अंदाज़ उनके गाये हुए प्रेम गीतों में है. उम्मीद हैं की आप सभी संगीत प्रेमियों को इन गीतों से वही आनंद और उल्हास मिला हैं जितना हमें मिला.<br /><br /><span style="font-weight:bold;">प्रस्तुति - पराग सांकला</span> <br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-12109042139773601982009-07-12T08:30:00.002+05:302009-07-12T09:07:49.752+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (९)जून २५, २००९ को संगीत दुनिया का एक आफताबी सितारा हमेशा के लिए रुखसत हो गया. माइकल जोसफ जैक्सन जिन्हें लोग प्यार से "जैको" भी कहते थे, आधुनिक संगीत के एक महत्वपूर्ण प्रेरणा स्तम्भ थे, जिन्हें "किंग ऑफ़ पॉप" की उपाधि से भी नवाजा गया. एक संगीतमय परिवार में जन्में जैक्सन ने १९६८ में अपने पूरे परिवार के सम्मिलित प्रयासों से बने एल्बम "जैक्सन ५" से अपना सफ़र शुरू किया. १९८२ में आई उनकी एल्बम "थ्रिलर" विश्व भर में सबसे अधिक बिकने वाली एल्बम का रिकॉर्ड रखती है. "बेड", "डेंजरस" और "हिस्ट्री" जैसी अल्बम्स और उनके हिट गीतों पर उनके अद्भुत और अनूठे नृत्य संयोजन, उच्चतम श्रेणी के संगीत विडियो, संगीत के माध्यम से सामाजिक सरोकारों की तरफ दुनिया का ध्यान खीचना, अपने लाइव कार्यक्रमों के माध्यम से अनूठे प्रयोग कर दर्शकों का अधिकतम मनोरंजन करना आदि जैको की कुछ ऐसी उपलब्धियां हैं, जिन्हें छू पाना अब शायद किसी और के बस की बात न हो. जैको का प्रभाव पूरे विश्व संगीत पर पड़ा तो जाहिर है एशियाई देशों में भी उनका असर देखा गया. उनके नृत्य की नक़ल ढेरों कलाकारों ने की, हिंदी फिल्मों में तो नृत्य संयोजन का नक्शा ही बदल गया. सरोज खान और प्रभु देवा जैसे नृत्य निर्देशकों ने अपने फन पर उनके असर के होने की बात कबूली है. पॉप संगीत की ऐसी आंधी चली कि ढेरों नए कलाकारों ने हिंदी पॉप के इस नए जेनर में कदम रखा और कमियाबी भी पायी. अलीशा चुनोय, सुनीता राव, आदि तो चले ही, सरहद पार पाकिस्तान से आई आवाजों ने भी अपना जादू खूब चलाया भारतीय श्रोताओं पर. <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/06/nazia-hasan-disco-deewane-songs-biddu.html">नाजिया हसन</a> का जिक्र हमें पिछले एक एपिसोड में किया था. आज बात करते हैं है एक और ऐसी ही आवाज़ जो सरहद पार से आई एक "हवा" के झोंके की तरह और सालों तक दोनों मुल्कों के संगीत प्रेमियों पर अपना जादू चला कर फिर किसी खला में में ऐसे खो गयी कि फिर किसी को उनकी कोई खबर न मिल सकी. <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXASs1LL22kk92fZYzhVbBzhBqgkmS8DaS1dk3v6aBJjAmwfHpyG_i2LQgQBva8yGafxv_tUsUK478FqDXXZyOsRxTJeL4nA7d_UKAuGZBjkzvcbyQGEAkbznvahO6LScmY9vdKjxgbbYJ/s1600-h/download_2.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 175px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXASs1LL22kk92fZYzhVbBzhBqgkmS8DaS1dk3v6aBJjAmwfHpyG_i2LQgQBva8yGafxv_tUsUK478FqDXXZyOsRxTJeL4nA7d_UKAuGZBjkzvcbyQGEAkbznvahO6LScmY9vdKjxgbbYJ/s200/download_2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5357054719931500242" /></a><br />"हवा हवा ऐ हवा, खुशबू लुटा दे..." गीत कुछ यूं आया कि उसकी भीनी खुशबू में सब जैसे बह चले. हसन जहाँगीर घर घर में पहचाने जाने लगे. बच्चे बूढे और जवान सब उनके संगीत के दीवाने से होने लगे. पाकिस्तान विभाजन के बाद बंगलादेश से पाकिस्तान आ बसे हसन जहाँगीर ने पाकिस्तान की विश्व विजेता टीम के कप्तान इमरान खान के लिए गीत लिखा "इमरान खान सुपरमैन है" और चर्चा में आये. उनकी एल्बम "हवा हवा" की कई लाखों में प्रतियाँ बिकी. चलिए इस रविवार हम सब भी MJ को श्रद्धाजंली देते हैं हसन जहाँगीर के इसी सुपर डुपर हिट एल्बम को सुनकर क्योंकि ८० के दशक में इस और ऐसी अन्य अल्बम्स की आपार लोकप्रियता का काफी श्रेय विश्व संगीत पर माइकल का प्रभाव भी था. दक्षिण एशिया के इस पहले पॉप सनसनी रहे हसन जहाँगीर ने हवा हवा के बाद भी कुछ अल्बम्स की पर हवा हवा की कामियाबी को फिर दोहरा न सके. हिंदी फिल्मों के लिए भी हसन ने कुछ गीत गाये जिसमें से अनु मालिक के लिया गाया "अपुन का तो दिल है आवारा" लोकप्रिय हुआ था, पर इसके बाद अचानक हसन कहीं पार्श्व में खो गए. धीरे धीरे लोग भी भूलने लगे. हालाँकि हसन ने कभी भी अपने इस मशहूर गीत के अधिकार किसी को नहीं बेचे पर इस गीत के बहुत से फूहड़ संस्करण कई रूपों में बाज़ार में आता रहा, पर उस दौर के संगीत प्रेमी मेरा दावा है आज तक उस जूनून के असर को नहीं भूल पाए होंगें जो उन दिनों हसन की गायिकी ने हर किसी के दिल में पैदा कर दिया था.<br /><br />बरसों तक हसन क्यों खामोश रहे, ये तो हम नहीं जानते पर आज एक बार फिर वो चर्चा में हैं, अभिनेत्री से निर्देशक बनी रेवती ने अब पहली बार उनके उसी हिट गीत को अधिकारिक रूप से अपनी नयी फिल्म "आप के लिए हम" में इस्तेमाल करने की योजना बनायीं है. इसके लिए उन्होंने बाकायदा हसन की इजाज़त ली है और ये भी संभव हो सकता है कि खुद हसन जहाँगीर इस गीत पर अभिनय भी करते हुए दिखें. इसी फिल्म से रवीना टंडन अपनी वापसी कर रही है. बहरहाल हवा हवा गीत के इस नए संस्करण का तो हम इंतज़ार करेंगे, पर फिलहाल इस रविवार सुबह की कॉफी के साथ आनंद लीजिये उस लाजवाब अल्बम के बाकी गीतों का. यकीन मानिये जैसे जैसे आप इन गीतों को सुनते जायेंगें, आपके भी मन में यादों के झरोखे खुलते जायेंगें, आज भी हसन की आवाज़ में वही ताजगी और उनके संगीत में वही सादापन नज़र आता है. यदि आप उस दौर के नहीं हैं तब तो अवश्य ही सुनियेगा, क्योंकि हमें पूरा विश्वास है कि आज भी इन गीतों को सुनकर आपको भी हसन जहाँगीर की उस नशीली आवाज़ से प्यार हो जायेगा. तो पेश है अल्बम "हवा हवा" के ये जोरदार गीत -<br /><br />आजा न दिल है दीवाना ...<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/02DILHAIDIWANA.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />दिल जो तुझपे आया है...<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/03DILJOTUJHPEAAYAHAI.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />जिंदगी है प्यार....<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/04ZINDAGIHAIPYAR.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />मेघा जैसे रोये साथी.....(मेरा सबसे पसंदीदा गीत)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/05MEGHAJAISEROYE.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />ले भी ले दिल तू मेरा ओ जानेमन....<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/06LEBHILEDILTUMERA.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />शावा ये नखरा गोरी का...<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/07SHANAKEHNAKHRA.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />न जाओ ज़रा मेहंदी लगाओ....<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/08NAJAOJARAMEHANDILAGAO.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />ये फैशन के नए रंग है....<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/10YEFASHANJOKENAYERANG.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />जी जी ओ पारा डिस्को...<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/11JEEJEEOPAARADISKO.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />किस नाम से पुकारूं...<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/HasanJahangir/12KISNAAMSEPUKAROON.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /> <br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span>Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-45301976897577971392009-06-21T08:14:00.001+05:302009-06-21T08:17:22.795+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (8)केतन मेहता एक सुलझे हुए निर्देशक हैं. मिर्च मसाला जैसी संवेदनशील फिल्म बनाकर उच्च कोटि के निर्देशकों में अपना नाम दर्ज कराने के बाद १९९३ में केतन लेकर आये -"माया मेमसाब". एक अनूठी फिल्म जो बेहद बोल्ड अंदाज़ में एक औरत के दिल की गहराइयों में उतरने की कोशिश करती है. फिल्म बहुत जटिल है और सही तरीके से समझने के लिए कम से कम दो बार देखने की जरुरत पड़ सकती है एक आम दर्शक को पर यदि फिल्म क्राफ्ट की नज़र से देखें तो इसे एक दुर्लभ रचना कहा जा सकता है. हर किरदार नापा तुला, सच के करीब यहाँ तक कि एक फ़कीर के किरदार, जो कि रघुवीर यादव ने निभाया है के माध्यम से भी सांकेतिक भाषा में बहुत कुछ कहा गया है फिल्म में. माया हिंदी फिल्मों की सामान्य नायिकाओं जैसी नहीं है. वह अपने तन और मन की जरूरतों को खुल कर व्यक्त करती है. वो मन को "बंजारा' कहती है और शरीर की इच्छाओं का दमन भी नहीं करती. वह अपने ही दिल के शहर में रहती है, थोडी सी मासूम है तो थोडा सा स्वार्थ भी है रिश्तों में. माया के इस जटिल किरदार पर परदे पर साकार किया दीपा साही ने जो "तमस" धारावाहिक से पहले ही अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी थी. माया के जीवन में आते हैं तीन मर्द, फारूक शेख (पति), राज बब्बर (प्रेमी), और शाहरुख़ खान (दूसरे प्रेमी). इन सब रिश्तों को माया कभी खुद के स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करती है तो कभी खुद इस्तेमाल की चीज़ बन कर रह जाती है इन रिश्तों की कशमकश में. वह माया बन कर प्रकट होती है और माया की तरह अदृश्य भी हो जाती है एक दिन.<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHLmuJMkBlmBYkR52V-tMQRCscUbtZh0ZOjH_yV09EQ9i-aKfOmrRiw82456LP6pyygCMnL0Kmd7BPk1hDVUgnAYR7LKfhj3F3IciuSRodllo9dd5SxYqM_CqPxEjHH10E9K9ReV0yrFSl/s1600-h/hridaynath.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 168px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHLmuJMkBlmBYkR52V-tMQRCscUbtZh0ZOjH_yV09EQ9i-aKfOmrRiw82456LP6pyygCMnL0Kmd7BPk1hDVUgnAYR7LKfhj3F3IciuSRodllo9dd5SxYqM_CqPxEjHH10E9K9ReV0yrFSl/s200/hridaynath.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5349291863844003938" /></a><br />सही कलाकारों का चुनाव फिल्म का सबसे उज्जवल पक्ष था पर एक बात और जो केतन ने किया और जिसने इस फिल्म को सदा के लिए संगीत प्रेमियों के दिल में बसा दिया, वो था माया की आवाज़ के लिए लता मंगेशकर की आवाज़ और संगीत के लिए पंडित हृदयनाथ मंगेशकर का चुनाव. लता, उषा, मीना और आशा के एकलौते भाई हृदयनाथ के लिए जब भी लता ने गाया कमाल का गाया. लता और आशा फिल्म संगीत दुनिया के शीर्ष नामों में होने के बावजूद हृदयनाथ ने खुद को बहुत हद तक सीमित रखा और वही काम हाथ में लिया जिसमें उन्हें खुद आनंद मिल सके. लता के गाये उनके मीरा भजन उनके संगीत की दिव्यता का परिचायक है. यश चोपडा की मशाल में उनके गीत "मुझे तुम याद रखना", "जिंदगी आ रहा हूँ मैं" और होली गीत बेहद मशहूर हुए, पर शायद फ़िल्मी रस्साकशी उन्हें अधिक रास नहीं आई. उनके नाम फिल्में बेशक कम है पर जितनी भी हैं वो संगीत प्रेमियों के लिए किसी खजाने से कम नहीं है, माया मेमसाब के अलावा भी लेकिन, लाल सलाम और धनवान जैसी फिल्में उनके संगीत की श्रेष्ठता से आबाद हैं. माया मेमसाब का तो एक एक गीत एक अनमोल मोती है, गुलज़ार साहब की अब क्या तारीफ करें, माया के ज़ज्बातों को जैसे शब्द दे दिए हैं उनके गीतों ने. उलझनें भी हैं और ऊंची उडानें भी. गुलज़ार-लता और हृदयनाथ की इस तिकडी के काश और भी गीत बनते तो कितना अच्छा होता. शब्द संगीत और आवाज़ का ऐसा उत्कृष्ट मिलन एक सुरीला अनभव ही तो है. तो क्यों न दोस्तों इस रविवार इन्हीं गीतों का आनंद लिया जाए. इन्हें हम दुर्लभ गीतों की श्रेणी में शायद नहीं रख सकते पर हो सकता है कि आपने इन गीतों को एक अरसे से नहीं सुना हो. यहाँ इस पन्ने को रचने का उद्देश्य यही है कि हम एक बार फिर इन नायाब और सुरीले गीतों को याद करें और जब भी इन्हें सुनने का आपका मन करे, आप इन्हें यहाँ आकर सुन सकें. <br /><br /><span style="font-weight:bold;">एक हसीं निगाह का दिल पे साया है<br />जादू है जनून है कैसी माया है ये माया है....</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/MayaMemsaab/EkHaseenNigahKaFemale.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">इस दिल में बस कर देखो तो,<br />ये शहर बड़ा पुराना है...</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/MaayaMemsaab2/Ye_Shahar_Bada_MayaMemsaab.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">मेरे सिरहाने जलाओ सपने<br />मुझे ज़रा सी तो नींद आये....</span><br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/MayaMemsaab/Maya_Memsaab_-_Mere_Sarhane.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">ओ दिल बंजारे, जा रे...<br />खोल डोरियाँ सब खोल दे.....<br /></span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/MayaMemsaab/Maya_Memsaab_-_O_Dil_Banjare.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">खुद से बातें करते रहना,<br />बातें करते रहना....<br /></span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/MayaMemsaab/02-KhudSeBaatein-LataMangeshkar.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><span style="font-weight:bold;">छाया जागी (ये गीत है खुद हृदयनाथ मंगेशकर की आवाज़ में )<br /></span><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/MayaMemsaab/CHAYYAJAGI.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span> <br /><br /><span class="fullpost">Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-80041352110877071672009-06-14T09:18:00.003+05:302009-06-18T12:51:30.667+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (7)<strong>क्या आपको याद है नाजिया हसन की</strong><br />1980 में जब एकाएक ही एक नाम संगीत में धूमकेतू की तरह उभरा था और पूरा देश गुनगुना रहा था 'आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बात बन जाये '' उस समय ये गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि इसने वर्ष के श्रेष्ठ गीत की दौड़ में फिल्म आशा के गीत "शीशा हो या दिल हो" को पछाड़ कर बिनाका सरताज का खिताब हासिल कर लिया था । उस समय फिल्मी गीतों का सबसे विश्वसनीय काउंट डाउन बिनाका गीत माला में लगातार 14 सप्ताह तक ये गीत नंबर वन रहा । "कुर्बानी" के इस गीत को गाने वाली गायिका थी नाजिया हसन और संगीत दिया था बिद्दू ने । एक बिल्कुल अलग तरह का संगीत जो कि साजों से ज्यादह इलेक्ट्रानिक यंत्रों से निकला था उसको लोगों ने हाथों हाथ लिया । नाजिया की बिल्कुल नए तरह की आवाज का जादू लोगों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा ।<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjve0qbDD0Nd-tXrN32v8omNdrrCNQ8DSbR2OZjIqyB5PIWnsf7EeK-BW0knTyA1v1S_-Hb1e6G2bklHQf4SfFi6f7dlJZG2r_dsVfoKX8nM9KuDM8gLLGtTIpf5Ink-OuO40N1CV0atfdr/s1600-h/nazia.jpeg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 136px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjve0qbDD0Nd-tXrN32v8omNdrrCNQ8DSbR2OZjIqyB5PIWnsf7EeK-BW0knTyA1v1S_-Hb1e6G2bklHQf4SfFi6f7dlJZG2r_dsVfoKX8nM9KuDM8gLLGtTIpf5Ink-OuO40N1CV0atfdr/s200/nazia.jpeg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5347023820716550674" /></a><br />नाजिया का जन्म 3 अप्रैल 1965 को कराची पाकिस्तान में हुआ था । और जब नाजिया ने कुर्बानी फिल्म का ये गीत गाया तो नाजिया की उम्र केवल पन्द्रह साल थी । इस गीत की लोकप्रियता को देखते हुए बिद्दू ने नाजिया को प्राइवेट एल्बम लांच करने का विचार किया और जब ये विचार मूर्त रूप तक आया तो इतिहास बन चुका था । नाजिया तथा उसके भाई जोएब हसन ने मिलकर 1980 में पूरे संगीत जगत को हिला कर रख दिया था । "डिस्को दीवाने" एक ऐसा एलबम था जो कि न जाने कितने रिकार्ड तोड़ता गया । तब ये ब्लैक में बिकता था और लोगों ने इसे खरीदने के 50 रुपये ( तब एल पी रेकार्ड चलते थे जो पचास रुपये के होते थे ) के स्थान पर 100 रुपये 150 रुपये भी दिये । हालंकि दोनों भाई बहन मिलकर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे थे लेकिन नाजिया की आवाज़ का जादू सर चढ़ कर बोला था । आओ ना प्यार करें और डिस्को दीवाने जैसे गानों ने कुर्बानी की सफलता को कायम रखा था ।<br /><br />नाजिया हसन की शिक्षा लंदन में हुई तथा अधिकांश समय भी वहीं बीता । 1995 में नाजिया की शादी मिर्जा इश्तियाक बेग से हुई और फिर एक बेटा अरीज भी हुआ किन्तु वैवाहिक जीवन सफल नहीं रहा तथा 2000 में नाजिया का तलाक हो गया । नाजिया ने अपनी कमाई का काफी बड़ा हिस्सा चैरेटी में लगा दिया था और वे कई संस्थाओं के लिये काम करती रहीं । भारत में भी इनरव्हील के माध्यम से बालिकाओं के लिये काफी काम किया । 13 अगस्त 2000 को 35 साल की उम्र में नाजिया का फेफड़ों के केंसर से निधन हो गया । नाजिया की मृत्यु के बाद पाकिस्तान सरकार ने नाजिया को सर्वोच्च सम्मान 'प्राइड आफ परफार्मेंस' प्रदान किया ।<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUJcgvs8QiyXB9HmuA9XtQ_RkbeNwQ0Y3WikcrgRf_M9oLN0abwgxvgJ_7RSx63cAfhtF4acxaiT7wvw-sXpsya7CXycagOQGiAO90o-vRtG9z_zaFFcBmv9RJ6EHl6MtwjJzQkKSfQBd4/s1600-h/disco+deewane.jpeg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 199px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUJcgvs8QiyXB9HmuA9XtQ_RkbeNwQ0Y3WikcrgRf_M9oLN0abwgxvgJ_7RSx63cAfhtF4acxaiT7wvw-sXpsya7CXycagOQGiAO90o-vRtG9z_zaFFcBmv9RJ6EHl6MtwjJzQkKSfQBd4/s200/disco+deewane.jpeg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5347024034385575506" /></a><br />डिस्को दीवाने पाकिस्तानी भाई बहन का एक ऐसा एल्बम था जो कि उस समय का एशिया में सबसे जियादह बिकने वाला एल्बम बना । न केवल दक्षिण एशिया बल्कि रशिया, ब्राजील, इंडोनेशिया में भी उसकी लोकप्रियता की धूम मची । पूरे विश्व में 14 बिलियन कापियों के साथ ये एल्बम नंबर वन बना और नाजिया सुपर स्टार बन गई । नाजिया के गाने डिस्को दीवाने ने ब्राजील के चार्ट बस्टर में सबसे ऊपर जगह बनाई ।<br /><br />इस एल्बम में कुल मिलाकर 10 ट्रेक थे जिनमें से 7 बिद्दू के संगीतबद्ध किये हुए थे और 3 अरशद मेहमूद के । गीत लिखे थे अनवर खालिद, मीराजी और हसन जोड़ी ने ।<br /><br />कुर्बानी(1980)के बाद दोनों भाई बहनों ने भारत की कुछ फिल्मों जैसे स्टार(बूम बूम)(1982),शीला(1989),दिलवाला(1986),मेरा साया(नयी)(1986),मैं बलवान(1986),साया(1989),इल्जाम (1986)जैसी फिल्मों में गीत गाये लेकिन "आप जैसा कोई" की सफलता को नहीं दोहरा सके, उसमें भी कुमार गौरव की सुपर फ्लाप फिल्म 'स्टार' में तो नाजिया जोहेब के दस गाने थे । वहीं डिस्को दीवाने के बाद दोनों ने मिल कर स्टार (बूम बूम)(1982), यंग तरंग(1984), हाटलाइन(1987),कैमरा'कैमरा(1992),दोस्ती जैसे प्राइवेट एल्बम और भी निकाले लेकिन यहां भी डिस्को दीवाने की कहानी दोहराई नहीं जा सकी । हालंकि ये एल्बम चले लेकिन डिस्को दीवाने तो एक इतिहास था । 1982 में आये एल्बम बूम बूम के सारे गीतों को कुमार गौरव की फिल्म स्टार में लिया गया था जिसमें कुमार गौरव ने एक गायक की ही भुमिका निभाई थी । गाने तो पूर्व से ही लोकप्रिय थे किन्तु फिल्म को उसका लाभ नहीं मिला ।<br /><br />तो आइये इस रविवार सुबह की कॉफी का आनंद लें डिस्को दीवाने के गीतों के संग. <br /><br /><strong>आओ न प्यार करें (नाजिया हसन)<br /></strong><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/AaoNaPyarKaren/AaoNa.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>डिस्को दीवाने (नाजिया हसन)</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/DiscoDeewane/DiscoDeewane.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>लेकिन मेरा दिल (नाजिया हसन)</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/LekinMeraDil/LekinMeraDil.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>मुझे चाहे न चाहे (नाजिया और जोहब)</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/MujheChahe/MujheChaheNa.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>कोमल कोमल (नाजिया हसन)</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/KomalKomal/KomalKomal.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>तेरे कदमों को (नाजिया और जोहेब)</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/TereKadamonKo/TereKadmonKo.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>दिल मेरा ये (नाजिया हसन )</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/DilMeraYe/DilMera.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>धुंधली रात के (नाजिया हसन</strong>)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/DhundaliRatKe/DhundhliRaat.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>गायें मिलकर (नाजिया हसन)</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GayenMilkar/GayenMilkar.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>डिस्को दीवाने (इंस्ट्रूमेंटल)</strong><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/DiscoDeewane2/DiscoDeewane2.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><strong>इस रविवार सुबह की कॉफी के अनमोल गीतों को परोसा है <a href="http://www.subeer.com/">पंकज सुबीर</a> ने.</strong> <br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span> <br /><br /><span class="fullpost">नियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-59567375820359998522009-05-24T08:33:00.002+05:302009-06-18T12:54:18.594+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (6)रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत के नए अंक में आपका स्वागत है. आज जो गीत मैं आपके लिए लेकर आया हूँ वो बहाना है अपने एक पसंदीदा संगीतकार के बारे आपसे कुछ गुफ्तगू करने का. "फिर छिडी रात बात फूलों की..." जी हाँ इस संगीतकार की धुनों में हम सब ने हमेशा ही पायी है ताजे फूलों सी ताजगी और खुशबू भी. <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBUuGNNH4SkRd7W7ON3yMRrhk_7yapISe5avVmH9tuSO9yraOWqIy7GbzzaIRXxcVZHeSbL-WihAyogdOp8yzltZusSpJGE_x9d8xMK1vQRcXUePj_HsX25nz1JMOWq3O1qQnS2phUMZ0W/s1600-h/khayyam.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 200px; height: 170px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgBUuGNNH4SkRd7W7ON3yMRrhk_7yapISe5avVmH9tuSO9yraOWqIy7GbzzaIRXxcVZHeSbL-WihAyogdOp8yzltZusSpJGE_x9d8xMK1vQRcXUePj_HsX25nz1JMOWq3O1qQnS2phUMZ0W/s200/khayyam.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5338899596097231378" /></a><br />१९५२-५३ के आस पास आया एक गीत -"शामे गम की कसम...". इस गीत में तबला और ढोलक आदि वाध्य यंत्रों के स्थान पर स्पेनिश गिटार और इबल बेस से रिदम लेना का पहली बार प्रयास किया गया था. और ये सफल प्रयोग किया था संगीतकार खय्याम ने. खय्याम साहब फिल्म इंडस्ट्री के उन चंद संगीतकारों में से हैं जिन्होंने गीतों में शब्दों को हमेशा अहमियत दी. उन्होंने ऐसे गीतकारों के साथ ही काम किया जिनका साहित्यिक पक्ष अधिक मजबूत रहा हो. आप खय्याम के संगीत कोष में शायद ही कोई ऐसा गीत पायेंगें जो किसी भी मायने में हल्का हो. फिल्म "शोला और शबनम" के दो गीत मुझे विशेष पसंद हैं - "जाने क्या ढूंढती रहती है ये ऑंखें मुझे में..." और "<a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/04/blog-post_03.html">जीत ही लेंगें बाज़ी हम तुम</a>...". राज कपूर और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म "फिर सुबह होगी" के उन यादगार गीतों को भला कौन भूल सकता है -"चीनो अरब हमारा...", "<a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/05/asman-pe-hai-khuda-aur-zamin-pe-hum.html">आसमान पे है खुदा.</a>.." और इस फिल्म का शीर्षक गीत साहिर और खय्याम को जोड़ी के अनमोल मोती हैं. वो रफी साहब का गाया "है कली कली के लब पर..." हो या लता के जादूई स्वरों में वो खनकती सदा "बहारों मेरा जीवन भी संवारों..." खय्याम साहब के संगीत में सचमुच इतनी मधुरता इतना नयापन था कि शायद इन गीतों को लोग आज से सौ सालों बाद भी सुनेंगें तो भी इतना ही मधुर और नया ही पायेंगें. <br /><br />खय्याम का मूल नाम सआदत हुसैन था. उन्होंने संगीत की तालीम पंडित अमरनाथ जी से हासिल की. ७० के दशक में व्यावसायिक रूप से उन्हें एक बड़ी सफलता मिली यश चोपडा की फिल्म "कभी कभी" से. इस फिल्म के गीतकार भी साहिर ही थे. यश जी के अलावा उनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल किया निर्देशक कमाल अमरोही साहब ने. "शंकर हुसैन" नाम की फिल्म के वो यादगार गीत भला कौन भूल सकता है , -"कहीं एक नाज़ुक...", "<a href="http://podcast.hindyugm.com/2008/09/lata-sangeet-utsav-by-pankaj-subeer.html">आप यूँ फासलों से</a>..." और "<a href="http://podcast.hindyugm.com/2008/09/lata-mangeshkar-in-story-shayad-joshi.html">आपने आप रातों में</a>...". क्या लाजवाब गीत हैं ये. नूरी, बाज़ार, त्रिशूल , थोडी सी बेवफाई, और उमराव जान जैसी फिल्मों में उनका संगीत बेमिसाल है. "ये क्या जगह है दोस्तों...." "इन आँखों की मस्ती के..." जैसी ग़ज़लें फिल्म संगीत के खजाने की अनमोल धरोहर हैं. ग़ज़लों के बारे में खुद खय्याम साहब ने एक बार फ़रमाया था -"ग़ज़ल बड़ी हसीं और नाज़ुक चीज़ है. यहाँ भी मैंने ट्रडिशनल ग़ज़ल से हटकर कुछ कहने की कोशिश की. शायर ने क्या कहा है शेर के किस लफ्ज़ पर स्ट्र्स देना है. छोटी छोटी तान मुरकी हो लेकिन शेर खराब न हो आदि ख़ास मुद्दों पर ध्यान दिया.ग़ज़ल जैसी हसीं चीज़ में "क्रूड" ओर्केस्ट्रा का इस्तेमाल ज़रूरी नहीं इसलिए मैंने सितार, सारंगी, बांसुरी, तानपुरा स्वरमंडल के साथ धुनें बांधी.". <br /><br />खय्याम साहब ने बहुत कम फिल्मों में काम किया है पर जितना भी किया गजब का किया. गैर फ़िल्मी संगीत का भी एक बड़ा खजाना है खय्याम के सुर संसार में. इन पर हम <a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/04/chaha-tha-ek-shaks-ko-jaane-kahan-chala.html">महफिले-ग़ज़ल</a> में हम विस्तार से चर्चा करते रहेंगें. आज तो हम आपके लिए कुछ और लेकर आये हैं. उपर दी गयी सूची में यदि आप गौर से देखें तो एक नाम "मिस्सिंग" है. वैसे तो जानकार उमराव जान को उनका सबसे बेहतर काम मानते हैं पर व्यक्तिगत तौर पर मुझे उनके "रजिया सुलतान" के गाने सबसे अधिक पसंद हैं. कोई ख़ास कारण नहीं है, क्योंकि खय्याम साहब के लगभग सभी गीत मेरे प्रियकर हैं, पर पता नहीं क्यों रजिया सुलतान के गीतों में एक अलग सा ही नशा मिलता है, हर बार जब भी इन्हें सुनता हूँ. लता जी की दिव्य आवाज़ के अलावा एक "चमकती हुई तलवार" सी आवाज़ भी है इन गीतों में, जी हाँ आपने सही पहचाना- ये हैं कब्बन मिर्जा साहब.<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOsDkE1dwRqJYD1G5s35fLuSMELtlJQC99ycXV1HWMBsIY1bfNm_fQU1dwg5Kb3vn80BE-v7BhmHPA0oMM_WF3tUL61IulrNRM5UBsmqd3G2wfXk3EOxtOI1-jqWVvOCTrW4nDBJQeTjDx/s1600-h/kabban+mirza.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 150px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOsDkE1dwRqJYD1G5s35fLuSMELtlJQC99ycXV1HWMBsIY1bfNm_fQU1dwg5Kb3vn80BE-v7BhmHPA0oMM_WF3tUL61IulrNRM5UBsmqd3G2wfXk3EOxtOI1-jqWVvOCTrW4nDBJQeTjDx/s200/kabban+mirza.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5338899805618418018" /></a><br />कब्बन मिर्जा साहब मुंबई ऑल इंडिया रेडियो से जुड़े हुए थे, जब कमाल अमरोही साहब ने उन्हें रजिया सुलतान में गायक चुना. पर जाने क्या वजह रही कि कब्बन के बहुत अधिक गीत उसके बाद नहीं सुनने को मिले. बहरहाल रजिया सुलतान में उनके गाये दोनों ही गीत संगीत प्रेमियों के जेहन में हमेशा ताजे रहेंगे. रजिया सुलतान के "ए दिले नादान" और "जलता है बदन" तो आप अक्सर सुनते ही रहते हैं. आज सुनिए कब्बन मिर्जा की आवाज़ में वो दो गीत जो कहीं रेडियो आदि पर भी बहुत कम सुनने को मिलता है. "आई जंजीर की झंकार..." और "तेरा हिज्र मेरा नसीब है...." दो ऐसे गीत हैं, जो कलेजे को चीर कर गुजर जाते हैं. उस पर कब्बन की आवाज़ जैसे दूर सहराओं से कोई दिल निकालकर सदा दे रहा हो. एक और गीत है इसी फिल्म में लता की आवाज़ में "ख्वाब बन कर कोई आएगा तो नीद आयेगी...." वाह...क्या नाज़ुक मिजाज़ है....बिलकुल वैसे ही है इस गीत का संयोजन जैसा कि "कहीं एक नाज़ुक सी लड़की..." का है. कोई भी वाध्य अतिरिक्त नहीं. सब कुछ नापा तुला....और भी दो गीत हैं इस फिल्म में जो यकीनन आपने बहुत दिनों से नहीं सुना होगा. दोनों ही उत्तर भारत के लोक धुनों पर आधारित विवाह के गीत हैं -"हरियाला बन्ना आया रे..." और "ए खुदा शुक्र तेरा...शुक्र तेरा..". <br /><br />तो चलिए दोस्तों इस रविवार सुबह की कॉफी का आनंद खय्याम साहब और कब्बन मिर्जा के साथ लें, फिल्म रजिया सुलतान के इन गीतों को सुनकर -<br /><br />आई ज़ंजीर की झंकार....(कब्बन मिर्जा)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/RaziaSultaanHindYugm/02AayeZanjeerKiJhankar.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />तेरा हिज्र मेरा नसीब है...(कब्बन मिर्जा)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/RaziaSultaanHindYugm/05TeraHijirMeraNaseeb.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />ख्वाब बन कर कोई आएगा... (लता)<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/RaziaSultaanHindYugm/03KhwaabBanKarKoi.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />ए खुदा शुक्र तेरा...<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/RaziaSultaanHindYugm/06AeKhudaShukarTera.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />हरियाला बन्ना आया रे...<br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/RaziaSultaanHindYugm/07HaryalaBanaAayaRe.mp3.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span> <br /><br /><span class="fullpost">Sajeevhttp://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2806191542948835941.post-90796706232846806962009-05-17T09:34:00.004+05:302009-06-18T12:54:56.126+05:30रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (5)<strong>पराग संकला से हमारे श्रोता परिचित हैं, आप गायिका गीता दत्त के बहुत बड़े मुरीद हैं और उन्हीं की याद में <a href="http://www.geetadutt.com/">गीता दत्त डॉट कॉम</a> के नाम से एक वेबसाइट भी चलते हैं. आवाज़ पर गीता दत्त के विविध गीतों पर एक लम्बी चर्चा वो पेश कर चुके हैं अपने आलेख "<a href="http://podcast.hindyugm.com/2009/04/parag-sankala-explore-geeta-dutts.html">असली गीता दत्त की खोज में</a>" के साथ. आज एक बार फिर रविवार सुबह की कॉफी का आनंद लें पराग संकला के साथ गीता दत्त जी के गाये कुछ दुर्लभ "प्रेम गीतों" को सुनकर.</strong> <br /><hr /><br /><strong>गीता दत्त और प्रेम गीतों की भाषा</strong><br /><br />हिंदी चित्रपट संगीत में अलग अलग प्रकार के गीत बनाते हैं. लोरी, भजन, नृत्यगीत, हास्यगीत, कव्वाली, बालगीत और ग़ज़ल. इन सब गानों के बीच में एक मुख्य प्रकार जो हिंदी फिल्मों में हमेशा से अधिक मात्रा में रहता हैं वह हैं प्रणयगीत यानी कि प्रेम की भाषा को व्यक्त करने वाले मधुर गीत! फिल्म चाहे हास्यफिल्म हो, या भावुक या फिर वीररस से भरपूर या फिर सामजिक विषय पर बनी हो, मगर हर फिल्म में प्रेम गीत जरूर होते हैं. कई फिल्मों में तो छः सात प्रेमगीत हुआ करते हैं.<br /> <br />चालीस के दशक में बनी फिल्मों से लेकर आज की फिल्मों तक लगभग हर फिल्म में कोई न कोई प्रणयगीत जरूर होता हैं. संगीत प्रेमियोंका यह मानना है कि चालीस, पचास और साठ के दशक हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णयुग हैं. इन सालों में संगीतकार, गीतकार और गायाकों की प्रतिभा अपनी बुलंदियों पर थी.<br /> <br />गीता रॉय (दत्त) ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत प्रेमगीत गाये हैं मगर जिनके बारे में या तो कम लोगों को जानकारी हैं या संगीत प्रेमियों को इस बात का शायद अहसास नहीं है. इसीलिए आज हम गीता के गाये हुए कुछ मधुर मीठे प्रणय गीतों की खोज करेंगे.<br /><br />सबसे पहले हम सुनेंगे इस मृदु मधुर युगल गीत को जिसे गाया हैं गीता दत्त और किशोर कुमार ने फिल्म मिस माला (१९५४)के लिए, चित्रगुप्त के संगीत निर्देशन में. "नाचती झूमती मुस्कुराती आ गयी प्यार की रात" फिल्माया गया था खुद किशोरकुमार और अभिनेत्री वैजयंती माला पर. रात के समय इसे सुनिए और देखिये गीता की अदाकारी और आवाज़ की मीठास. कुछ संगीत प्रेमियों का यह मानना हैं कि यह गीत उनका किशोरकुमार के साथ सबसे अच्छा गीत हैं. गौर करने की बात यह हैं कि गीता दत्त ने अभिनेत्री वैजयंती माला के लिए बहुत कम गीत गाये हैं.<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongs/1954-missMala-naachtiJhoomtiMuskurat-geetaKishore-anjumJaipuri-chitragupt.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />जब बात हसीन रात की हो रही हैं तो इस सुप्रसिद्ध गाने के बारे में बात क्यों न करे? शायद आज की पीढी को इस गाने के बारे में पता न हो मगर सन १९५५ में फिल्म सरदार का यह गीत बिनाका गीतमाला पर काफी मशहूर था. संगीतकार जगमोहन "सूरसागर" का स्वरबद्ध किया यह गीत हैं "बरखा की रात में हे हो हां..रस बरसे नील गगन से". उद्धव कुमार के लिखे हुए बोल हैं. "भीगे हैं तन फिर भी जलाता हैं मन, जैसे के जल में लगी हो अगन, राम सबको बचाए इस उलझन से". <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongs/BarkhaKiRaatMein_geetaDutt_sardar_1955_jagmohan_96kbps_0302min.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /><br />कुछ साल और पीछे जाते हैं सन १९४८ में. संगीतकार हैं ज्ञान दत्त और गाने के बोल लिखे हैं जाने माने गीतकार दीना नाथ मधोक ने. जी हाँ, फिल्म का नाम हैं "चन्दा की चांदनी" और गीत हैं "उल्फत के दर्द का भी मज़ा लो". १८ साल की जवान गीता रॉय की सुमधुर आवाज़ में यह गाना सुनते ही बनता है. प्यार के दर्द के बारे में वह कहती हैं "यह दर्द सुहाना इस दर्द को पालो, दिल चाहे और हो जरा और हो". लाजवाब!<br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongs/UlfatKeDardKaKabhiMazaLo_geetaDutt_chandaKiChandni_1948_gyanDutt_Dnmadhok_96kbps_0259min.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object> <br /><br />प्रणय भाव के युगल गीतों की बात हो रही हो और फिल्म दिलरुबा का यह गीत हम कैसे भूल सकते हैं? अभिनेत्री रेहाना और देव आनंद पर फिल्माया गया यह गीत है "हमने खाई हैं मुहब्बत में जवानी की कसम, न कभी होंगे जुदा हम". चालीस के दशक के सुप्रसिद्ध गायक गुलाम मुस्तफा दुर्रानी के साथ गीता रॉय ने यह गीत गाया था सन १९५० में. आज भी इस गीत में प्रेमभावना के तरल और मुलायम रंग हैं. दुर्रानी और गीता दत्त के मीठे और रसीले गीतों में इस गाने का स्थान बहुत ऊंचा हैं. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongs/1950-dilruba-10-vcd-252-hamneKhayiHai-geetaduttgmdurrani-shbihari-gyanDutt.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /> <br />गीतकार अज़ीज़ कश्मीरी और संगीतकार विनोद (एरिक रॉबर्ट्स) का "लारा लप्पा" गीत तो बहुत मशहूर हैं जो फिल्म एक थी लड़की में था. उसी फिल्म में विनोद ने गीता रॉय से एक प्रेमविभोर गीत गवाया. गाने के बोल हैं "उनसे कहना के वोह पलभर के लिए आ जाए". एक अद्भुत सी मीठास हैं इस गाने में. जब वाह गाती हैं "फिर मुझे ख्वाब में मिलने के लिए आ जाए, हाय, फिर मुझे ख्वाब में मिलने के लिए आ जाए" तब उस "हाय" पर दिल धड़क उठता हैं. <br /><br /><script language="JavaScript" src="http://www.hindyugm.com/podcast/audio-player.js"></script><object data="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf" id="audioplayer1" type="application/x-shockwave-flash" width="300" height="30"> <param name="movie" value="http://www.hindyugm.com/podcast/player.swf"><param name="FlashVars" value="playerID=2&soundFile= http://www.podtrac.com/pts/redirect.mp3?http://www.archive.org/download/GeetaDuttLoveSongs2/UnseKehnaKeWohPalBharKeLiyeAaJaye_geetaDutt_ekThiLadki_1949_vinod_azizkashmiri_128kbps_0245min.mp3"><paramname="quality" value="high"></paramname="quality"></object><br /> <br />जो अदा उनके दर्दभरे गीतों में, भजनों में और नृत्य गीतों में हैं वही अदा, वही खासियत, वही अंदाज़ उनके गाये हुए प्रेम गीतों में है. उम्मीद हैं कि आप सभी संगीत प्रेमियों को इन गीतों से वही आनंद और उल्लास मिला हैं जितना हमें मिला.<br /> <br />उन्ही के गाये हुए फिल्म दिलरुबा की यह पंक्तियाँ हैं: <br /><em>तुम दिल में चले आते हो<br />सपनों में ढले जाते हो<br />तुम मेरे दिल का तार तार<br />छेड़े चले जाते हो!</em><br />गीता जी, आप की आवाज़ सचमुच संगीत प्रेमियों के दिलों के तार छेड़ देती है. और भी हैं बहुत से गीत, जिन्हें फिर किसी रविवार को आपके लिए लेकर आऊँगा.<br /><br /><strong>प्रस्तुति - पराग संकला</strong> <br /><br /><hr /><br /><span style="font-weight:bold;">"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.</span> <br /><br /><span class="fullpost">नियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.com11