Sunday, May 8, 2011

सुर संगम में आज - मोहन वीणा: एक तंत्र वाद्य की लम्बी यात्रा - भाग २

सुर संगम - 19 - मोहन वीणा: एक तंत्र वाद्य की लम्बी यात्रा

संगीतकार केशवराव भोले ने गायिका शान्ता आप्टे के लिए पाश्चात्य गीतकार लोंगफेलो की कविता "साँग ऑफ़ लाइफ" का चुनाव किया था| गायिका शान्ता आप्टे ने गीत को सटीक यूरोपियन अंदाज़ में गाया है| केशवराव भोले ने गीत की पृष्ठभूमि में हवाइयन गिटार, पियानो तथा वायलिन का प्रयोग किया है|

सुप्रभात! सुर-संगम की एक और मनोहर कड़ी लिए मैं कृष्णमोहन मिश्र उपस्थित हूँ आपके रविवार को संगीतमय बनाने। सुर-संगम के पिछ्ले अंक में हमनें आपको एक अनोखे तंत्र वाद्य 'मोहन वीणा' के बारे में बताया। साथ ही हमने जाना कि किस प्रकार प्राचीन काल से प्रचलित 'विचित्र वीणा' के स्वरूप में समय चक्र के अनुसार बदलाव आते रहे। पाश्चात्य संगीत का "हवाइयन गिटार" वैदिककालीन "विचित्र वीणा" का ही सरलीकृत रूप है| वीणा के तुम्बे से ध्वनि में जो गमक उत्पन्न होती है, पाश्चात्य संगीत में उसका बहुत अधिक प्रयोग नहीं होता| यूरोप और अमेरिका के संगीत विद्वानों ने अपनी संगीत पद्यति के अनुकूल इस वाद्य में परिवर्तन किया| "विचित्र वीणा" में स्वर के तारों पर काँच का एक बट्टा फिरा (Slide) कर स्वर परिवर्तन किया जाता है| तारों पर एक ही आघात से श्रुतियों के साथ स्वर परिवर्तन होने से यह वाद्य गायकी अंग में वादन के लिए उपयोगी होता है| प्राचीन ग्रन्थों में गायन के साथ वीणा की संगति का उल्लेख मिलता है| "हवाइयन गिटार" बन जाने के बाद भी यह गुण बरक़रार रहा, इसीलिए पश्चिमी संगीत के गायक कलाकारों का यह प्रिय वाद्य रहा|

पं. विश्वमोहन भट्ट ने गिटार के इस स्वरुप में परिवर्तन कर इसे भारतीय संगीत वादन के अनुकूल बनाया| उन्होंने एक सामान्य गिटार में 6 तारों के स्थान पर 19 तारों का प्रयोग किया| यह अतिरिक्त तार 'तरब' और 'चिकारी' के हैं जिनका उपयोग स्वरों में अनुगूँज के लिए किया जाता है| श्री भट्ट ने इसके बनावट में भी आंशिक परिवर्तन किया है| "मोहन वीणा" के वर्तमान स्वरुप से भारतीय संगीत के रागों को 'गायकी' और 'तंत्रकारी' दोनों अंगों में बजाया जा सकता है| अपने आकर-प्रकार और वादन शैली के कारण "मोहन वीणा" पूरे विश्व में चर्चित हो चुका है| अमेरिकी गिटार वादक रे कूडर और पं. विश्वमोहन भट्ट ने 1992 में जुगलबन्दी की थी| इस जुगलबन्दी के अल्बम 'मीटिंग बाय दि रीवर" को वर्ष 1993-94 में विश्व संगीत जगत के सर्वोच्च "ग्रेमी अवार्ड" के लिए नामाँकित किया गया और इस अनूठी जुगलबन्दी के लिए दोनों कलाकारों को सर्वोच्च "ग्रेमी पुरस्कार" से नवाज़ा गया| आइए इस पुरस्कृत अल्बम की एक जुगलबन्दी रचना सुनते हैं।

जुगलबन्दी रचना: मोहन वीणा एवं हवाइयन गिटार: वादक - विश्वमोहन भट्ट एवं रे कूडर


हवाइयन गिटार का प्रयोग भारतीय फिल्म संगीत में भी ख़ूब हुआ है| हिन्दी फिल्मों में 'हवाइयन गिटार' का पहली बार प्रयोग सम्भवतः 1937 की फिल्म "दुनिया ना माने" के एक गीत में किया गया था| इस फिल्म के संगीतकार केशवराव भोले ने गायिका शान्ता आप्टे के लिए पाश्चात्य गीतकार लोंगफेलो की कविता "साँग ऑफ़ लाइफ" का चुनाव किया था| गायिका शान्ता आप्टे ने गीत को सटीक यूरोपियन अंदाज़ में गाया है| केशवराव भोले ने गीत की पृष्ठभूमि में हवाइयन गिटार, पियानो तथा वायलिन का प्रयोग किया है| आइए, फिल्म "दुनिया ना माने" का यह गीत सुनते हैं।

गायिका: शान्ता आप्टे, फिल्म: दुनिया ना माने


और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।

सुनिए इस आवाज़ को जो है बीती सदी के एक महानायक की जिन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक कुरीतियों को मिटाने में अतुल्य योगदान दिया था। आपको हमें बताना है इनका नाम।



पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित जी मैदान में एक बार फिर उतर आए हैं, बधाई!

इसी के साथ 'सुर-संगम' के आज के इस अंक को यहीं पर विराम देते हैं| भारतीय संगीत जगत के अनेक विद्वान लुप्तप्राय वाद्यों को सहेजने-सँवारने में संलग्न हैं| 'सुर संगम' के आगामी किसी अंक में हम पुनः ऐसे ही किसी लुप्तप्राय वाद्य की जानकारी लेकर आपके समक्ष उपस्थित होंगे| आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। और हाँ! शाम ६:३० बजे हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के प्यारे साथी सुजॉय चटर्जी के साथ पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!

खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती



आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.

5 comments:

  1. Ravindranath Thakur
    Kshiti Tiwari

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  2. thoda late ho gaya yahan par. Kher ye leejiye poori link
    http://www.youtube.com/watch?v=kvTim1Kg_F8

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  3. This is an excellent post I seen thanks to share it. It is really what I wanted to see hope in future you will continue for sharing such a excellent post.

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