रवीन्द्र जैन के लिखे और संगीतबद्ध किए गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'मेरे सुर में सुर मिला ले' में हमने गीतों के साथ-साथ हम दादु के करीयर से जुड़ी बातें भी जान रहे हैं। अब तक आपने जाना कि दादु का बचपन कैसा था, किस तरह से अलीगढ़ में जन्म के बाद वो गीत-संगीत से रु-ब-रु हुए, फिर कलकत्ता आए और आख़िरकार बम्बई को अपनी कर्मभूमि बनाई। यहाँ आकर ७० के दशक के शुरुआती वर्षों में 'पारस', 'लोरी' और 'कांच और हीरा' जैसी फ़िल्मों से अपनी पारी की शुरुआत की, पर उन्हें पहली कामयाबी मिली फ़िल्म 'सौदागर' में। 'सौदागर' के बाद उनके कामयाब फ़िल्मों का दौर शुरु हो गया। हालाँकि इस शृंखला में हम केवल उन फ़िल्मों के गीत सुनवा रहे हैं जिनमें गीत और संगीत दोनों ही रवीन्द्र जैन ने तैयार किया है। पर बहुत सी फ़िल्में ऐसी भी रहीं जिनमें रवीन्द्र जैन का केवल संगीत था। 'सौदागर' के बाद दादु द्वारा स्वरबद्ध जिन फ़िल्मों के गीत बहुत ज़्यादा चर्चित हुए उनकी फ़ेहरिस्त इस प्रकार है - चोर मचाये शोर, दो जासूस, तपस्या, दीवानगी, चितचोर, फ़कीरा, सफ़ेद हाथी, पहेली, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, कोतवाल साब, अखियों के झरोखों से, पति पत्नी और वो, सुनयना, नैया, सरकारी महमान, मान अभिमान, ख़्वाब, गीत गाता चल, नदिया के पार, अय्याश, राम तेरी गंगा मैली, मरते दम तक, जंगबाज़, ये आग कब बुझेगी, हिना, विवाह, एक विवाह ऐसा भी। ये तो बस वो नाम थे जिन्हें व्यावसायिक सफलता मिली थी, पर इनके अलावा भी बहुत सारी फ़िल्मों में जैन साहब नें संगीत दिया और/अथवा गीत लिखे, पर फ़िल्मों के ना चलने से वो ज़्यादा लोकप्रिय न हो सके। फ़िल्मों के अलावा टेलीविज़न पर रवीन्द्र जैन के संगीत में रामानन्द सागर की महत्वाकांक्षी धारावाहिक 'रामायण' बनी जो रवीन्द्र जैन के करीयर की एक बहुत बड़ी उपलब्धि रही। पुरस्कारों की बात करें तो जैन साहब को १९८५ में 'राम तेरी गंगा मैली' फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार मिला था। सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के नामांकनों में 'चितचोर', 'अखियों के झरोखों से' फ़िल्मों के लिए उन्हें नामांकन मिला; जबकि "अखियों के झरोखों से" और "मैं हूँ ख़ुशरंग हिना" गीतों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का नामांकन मिला था।
आज के अंक में हम आपको सुनवा रहे हैं फिर एक बार 'राजश्री' और 'रवीन्द्र जैन की जोड़ी की एक और ज़बरदस्त हिट फ़िल्म 'नदिया के पार' (१९८२) का गीत जसपाल सिंह की आवाज़ में। बोल हैं "सांची कहे तोरे आवन से हमरे अंगना में आये बहार भौजी"। फ़िल्म का पार्श्व ग्रामीण था, इसलिए फ़िल्म के गीतों में संगीत भी भोजपुरी शैली के थे। पर जब 'राजश्री' ने ९० के दशक में इसी फ़िल्म का शहरी रूपान्तर कर 'हम आपके हैं कौन' के रूप में पेश किया, तब इसी गीत का शहरी रूप बन गया "धिकताना धिकताना धिकताना, भाभी तुम ख़ुशियों का ख़ज़ाना"। आइए आज जाने बातें जसपाल सिंह के जीवन की उन्हीं के द्वारा प्रस्तुत 'जयमाला' कार्यक्रम से। "फ़ौजी भाइयों, मैं ख़ुद ही बचपन से रफ़ी साहब का फ़ैन बोलिये, या मुजीद बोलिये, मैंने कॉलेज, स्कूल, जहाँ भी मैंने गाया है, रफ़ी साहब के गाने ही गाया है, और रफ़ी साहब की आवाज़ मेरे अंदर ऐसे घुसी कि जैसे मेरी आत्मा की आवाज़ है। मैंने जो भी गाने गाये, उन्हीं के गाये, और मेरे अंदर ऐसे बसी है जैसे नस-नस में आदमी के ख़ून बसा होता है न! और मैं यह बताना चाहता हूँ कि उन्हीं से इन्स्पिरेशन लेके मैं समझता हूँ कि मैं गाना गाता था और उन्ही को अपना गुरु मानता रहा हूँ हमेशा। मैं पंजाब में, अमृतसर में पैदा हुआ, बचपन से मैं वहीं पे था, वहीं से मैंने ग्रजुएशन की। तो वहीं पे मैं स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटीज़ में गाता था, अवार्ड्स मिलते थे, 'even I was declared best singer of Punjab University also'. फिर मैं दिल्ली आ गया, लॉ किया मैंने, वहाँ सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस की, मगर मेरे मन में एक सिंगर बनने की बड़ी इच्छा थी और सब मेरे को, आसपास जितने लोग, रिश्तेदार, सब मेरे को बोलते थे कि तुम्हारे पास यह गुण है, इसका फ़ायदा उठाओ। तो मैंने कहा कि गुण तो है लेकिन ऐसा कोई आदमी तो होना चाहिए न कि जो आपको ब्रेक दे, आपको चान्स दे, और इसके लिए बहुत बड़ी स्ट्रगल है, और मैं बहुत सिम्पल सा आदमी हूँ और मैं बहुत सी बातें नहीं कर सकता। मगर कुदरत ने कुछ ऐसा करवाना था कि मेरी बहन की शादी बम्बई में हो गई। और मेरे जीजाजी भी फ़िल्म-लाइन से थोड़े कन्सर्ण्ड थे, तो मैं बम्बई आ गया। बम्बई आ गया तो मेरी बहन ने जो मेरे लिए किया वो तो शायद माँ-बाप भी नहीं करते। मैं अभी क्या उसके बारे में बोलूँ! मेरी बहन नें मेरे लिए बहुत कोशिशें की, मेरे जीजाजी ने मेरे को पहली पिक्चर में गाना गवाया, 'बंदिश' पिक्चर थी, उषा खन्ना जी के संगीत में, वह पिक्चर नहीं चली, लोग मुझे भूल गए। फिर एक गाना महेन्द्र कपूर जी के साथ गवाया। फिर ये रवीन्द्र जैन जी के साथ मेरे ताल्लुक़ात हो गए, आना-जाना, उठना-बैठना, दोस्ती हुई, उनके साथ गाता था मैं, तो यह 'गीत गाता चल' पिक्चर के लिए, ये 'राजश्री' वाले पिक्चर बनाना चाहते थे, उन लोगों को एक नए लड़के की आवाज़ चाहिए थी, तो मैं एक दिन किसी और वजह से अपना टेप रेकॉर्डर पे अपना एक गाना उनको सुनाके आया था, तो किस्मत बोलिए या ईश्वर की कुछ कृपा बोलिए, आप सब लोगों का आशिर्वाद होगा, वह ब्रेक मेरे को मिला, और आप लोगों ने जिस गाने से मुझे पहचाना वह गाना था "गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल, हँसते हँसाते बीते हर घड़ी हर पल"। दोस्तों, 'गीत गाता चल' फ़िल्म का एक गीत तो हम इसी शृंखला में बजा चुके हैं, इसलिए आज पेश है 'नदिया के पार' से "सांची कहे..."।
पहचानें अगला गीत -दादु की सबसे बड़ी हिट फिल्म में ये गीत थे जिसके मुखड़े में शब्द है - "अंतर"
पिछले अंक में
खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें +91-9871123997 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
bahut badhiya post, aise hi Hindyugm aur Awaaz din duguni raat chauguni tarakki karti jaaye, yahi kaamna karta hoon.
ReplyDeleteavinash
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ReplyDeleteHappy Room
राम तेरी गंगा मैली
ReplyDeleteगीत है-एक राधा एक मीरा
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