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इस कथा का टेक्स्ट एक आलसी का चिठ्ठा पर उपलब्ध है।
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"पास बैठो कि मेरी बकबक में नायाब बातें होती हैं। तफसील पूछोगे तो कह दूँगा,मुझे कुछ नहीं पता " ~ गिरिजेश राव हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "यहाँ के लोग सीधे साधे हरगिज नहीं थे। उन्हें मजबूरी की नब्ज़ से खून सोखना बखूबी आता था।" (गिरिजेश राव की कहानी "सुजान साँप" से एक अंश) |
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#130th Story, Sujan Saanp: Girijesh Rao/Hindi Audio Book/2010/47. Voice: Anurag Sharma
आभार भैया!
ReplyDeleteइस कहानी को आप के स्वर में सुनने की बहुत इच्छा थी। प्रस्तुति बहुत अच्छी रही। हर्षदभाई के स्वर को जो आप ने अलग से उपचार दिया है, उत्तम है।
कई बार प्रयत्न करने के बाद भी केवल आधी फाइल ही डाउनलोड हो पाई। सम्भवत
: मेरे नेट कनेक्शन में समस्या हो।
धन्यवाद गिरिजेश। यह कहानी भी बहुत अच्छी रही।
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteबढ़िया
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