Thursday, August 28, 2008

अहमद फ़राज़ साहब के आखिरी ३७ दिन - आवाज़ पर 'एक्सक्लूसिव'



अब के बिछडे तो शायद ख्वाबों में मिले,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले.


और वो शायर हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गया, और अपने पीछे छोड़ गया एक ऐसा खालीपन जिसे भर पाना शायद कभी भी मुमकिन न हो. इस्मत चुगताई ने एक बार मोस्को में, उनसे मुलाकात के बाद कहा था - "अहमद फ़राज़ आम शायरों की तरह नही दिखता है, वह आधुनिक परिधान में रहता है, और उसे पार्टियों में महिलाओं संग नाचने से भी गुरेज नही है."

अहमद फ़राज़ ऐसे शायर थे, जिनका हर शेर आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी को बहुत सरलता से छू जाता था. वह शायर सरहदों से परे था, और मोहब्बत को खुदा का दर्जा देता था. बीते सोमवार को ७७ साल की उम्र में उन्होंने अपने चाहने वालों से हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. उनके अन्तिम ३७ दिनों की यह दास्ताँ आवाज़ पर आप के लिए लाये हैं, जगदीप सिंह. सुनते हैं ये विशेष पॉडकास्ट, और उर्दू अदब के उस खुर्शीद को सलाम करें एक बार फ़िर, जिसकी रोशनायी की रोशनी कभी बुझ नही सकती .




अहमद फ़राज़ साहब को आवाज़ के समस्त टीम की भावभीनी श्रदांजली


हिन्द-युग्म पर प्रेमचंद ने भी उन्हें याद किया। पढ़ें

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5 श्रोताओं का कहना है :

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

जगदीप जी,

आप फ्लो में बोलते तो श्रोता भावों से और अच्छे तरह से जुड़ सकता था। लेकिन आपकी इस भावना को सलाम कि आप फ़राज़ को इस नायाब तरीके से श्रद्धाँजलि दे रहे हैं। हम श्रोता-पाठक को फ़राज़ के अंतिम दिनों की जानकारी मिली।

इसी तरह महान आत्माओं को सलाम करते रहें।

8toeternity का कहना है कि -

वाह जगदीप, तुम्‍हारा अंदाज़ अच्‍छा लगा फ़राज़ को याद करने का।

Anonymous का कहना है कि -

I do not know how to read Hindi. It will be nice if there is a Roman-Hindi version available too. Thanks.

श्रद्धा जैन का कहना है कि -

agar ye itni banawati aawaj nahi hoti to bhaut achha hota
itne achhe matter ko itni ajeeb lahze main sunna bura laga

Anonymous का कहना है कि -

अब के बिछडे तो शायद ख्वाबों में मिले,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले.

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