Saturday, November 1, 2008

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'कौशल'



प्रेमचंद की कहानी 'कौशल' का प्रसारण

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना 'आधार' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की एक और कहानी 'कौशल', जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: आठ मिनट और सत्ताईस सेकंड।


मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं
~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६)

प्रेमचंद की एक नयी कहानी सुनिए हर शनिवार को आवाज़ पर

पण्डित जी ब्राह्मणत्व के गौरव को इतने सस्ते दामों न बेचना चाहते थे। आलस्य छोड़कर धनोपार्जन में दत्तचित्त हो गये। छ: महीने तक उन्होने दिन को दिन और रात को रात नहीं जाना। दोपहर को सोना छोड दिया, रात को भी बहुत देर तक जागते। (प्रेमचंद की 'कौशल' से एक अंश)





नीचे के प्लेयर से सुनें.

(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)

(Broadband कनैक्शन वालों के लिए)


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं, तो यहाँ देखें।

#Eleventh Story, Kaushal: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2008/10. Voice: Anuraag Sharma

Friday, October 31, 2008

तूने ये क्या कर दिया ...ओ साहिबा...



दूसरे सत्र के १८ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज

"जीत के गीत" और "मेरे सरकार" गीत गाकर अपनी आवाज़ का जादू बिखेरने वाले बिस्वजीत आज लौटे हैं एक नए गीत के साथ, और लौटे हैं कोलकत्ता के सुभोजित जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही अपनी प्रतिभा से हर किसी को प्रभावित किया है. सजीव सारथी के लिखे इस नए गीत में प्रेम की पहली छुअन है जिसका बिस्वजीत अपने शब्दों में कुछ इस तरह बखान करते हैं -

"कुछ गाने ऐसे होते है जिनमें खो जाने को मन करता है. "साहिबा" ऐसा एक गाना है. सच बताऊँ तो गाने के समय एक बार भी मुझे लगा नहीं कि मैं गा रहा हूँ. ऐसे लगा जैसे इस कहानी में मैं ही वो लड़का हूँ जिस पर कोई लड़की जादू कर गई है, कुछ पल की मुलाक़ात के बाद और चंद लम्हों में मेरी साहिबा बन चुकी है. तड़प रहा हूँ मैं दूरी से, जो दिल में बस गई है उसके ना होने से. सजीव जी के शब्दों ने मुझे मजबूर कर दिया उस तड़प की गहराइयों को महसूस करने के लिए. सुभोजित का म्यूजिक भी लाजवाब है. आशा कर रहा हूँ ये गाना भी सभी को पसंद आएगा"

आप भी सुनें सुभोजित का स्वरबद्ध और बिस्वजीत का गाया ये नया गीत और अपनी राय देकर इस गीत के रचियेताओं तक अपनी बात पहुंचायें.

गीत को सुनने के लिए नीचे के प्लेयर पर क्लिक करें -






This brand new song "o sahibaa" has a romantic feel in it, based on a situation where the protagonist falls in love with a beautiful hill station girl. Composed by our youngest composer Subhojit and rendered by Biswajit Nanda, penned by Sajeev Sarathie. So enjoy this brand new song and do let us know what you guys feel for it.

To listen please click on the player -



Lyrics - गीत के बोल

खामखाँ तो नही, ये खुमारी सनम,
बेवजह ही नही बेकरारी सनम,
कुछ तो है बात जो छाई है ऐसी बेखुदी,
है होश गुम मगर,जागी हुई सी है जिंदगी,
तुने ये क्या कर दिया ....ओ साहिबा.
ये दर्द कैसा दे दिया ...ओ साहिबा...
ओ साहिबा... ओ साहिबा...
ओ साहिबा...ओ साहिबा...

दिल के जज़्बात भी,अब तो बस में नही,
वक्त ओ हालात का, होश भी कुछ नही,
कब जले दिन यहाँ, कब बुझे रातें,
अपनी ख़बर हो या, यारों की बातें... याद कुछ भी नही...
कुछ है तो बात जो.....

दूर होकर भी तू, हर घड़ी पास है,
फ़िर भी दीदार की आँखों में प्यास है,
खुशबू से तेरी है सांसों में हलचल,
मेरे वजूद पे छाया जो हर पल... तेरा एहसास है....
कुछ तो है बात जो....

SONG # 18, SEASON # 02, "O SAHIBAA" OPENED ON AWAAZ ON 31/10/2008.
Music @ Hind Yugm, Where music is a passion.


देखो, वे आर डी बर्मन के पिताजी जा रहे हैं...



सचिन देव बर्मन साहब की ३३ वीं पुण्यतिथि पर दिलीप कवठेकर का विशेष आलेख -

सचिन देव बर्मन एक ऐसा नाम है, जो हम जैसे सुरमई संगीत के दीवानों के दिल में अंदर तक जा बसा है. मेरा दावा है कि अगर आप और हम से यह पूछा जाये कि आप को सचिन दा के संगीतबद्ध किये गये गानों में किस मूड़ के, या किस Genre के गीत सबसे ज़्यादा पसंद है, तो आप कहेंगे, कि ऐसी को विधा नही होगी, या ऐसी कोई सिने संगीत की जगह नही होगी जिस में सचिन दा के मेलोड़ी भरे गाने नहीं हों.

आप उनकी किसी भी धुन को लें. शास्त्रीय, लोक गीत, पाश्चात्य संगीत की चाशनी में डूबे हुए गाने. ठहरी हुई या तेज़ चलन की बंदिशें. संवेदनशील मन में कुदेरे गये दर्द भरे नग्में, या हास्य की टाईमिंग लिये संवाद करते हुए हल्के फ़ुल्के फ़ुलझडी़यांनुमा गीत. जहां उनके समकालीन गुणी संगीतकारों नें अपने अपने धुनों की एक पहचान बना ली थी, सचिन दा हमेशा हर धुन में कोई ना कोई नवीनता देने के लिये पूरी मेहनत करते थे.

इसीलिये, उनके बारे में सही ही कहा है, देव आनंद नें (जिन्होने अपने लगभग हर फ़िल्म में - बाज़ी से प्रेम पुजारी तक सचिन दा का ही संगीत लिया था)- He was One of the Most Cultured & and Sophisticated Music Director,I have ever encountered !
हालांकि गीतकार जावेद अख्त़र नें उनके साथ काम नहीं किया लेकिन वे भी कायल थे सचिन दा की धुनों के रेंज से - चलती का नाम गाड़ी - सुजाता - गाईड़ - अभिमान.

शायद इसीलिये वे फ़िल्मों के चयन को लेकर बेहद चूज़ी थे. वे सिर्फ़ उन्ही के लिये संगीत देते थे जिन्हे संगीत की समझ थी. अपने १९४६ (शिकारी ) से शुरु हुए और त्याग (१९७७) तक के फ़िल्मी संगीत के सफ़र में ८९ फ़िल्मों के लिये लगभग ६६६ गीतों के संगीत रचना करते हुए देव आनंद, गुरुदत्त, हृषिकेश मुखर्जी, विजय आनंद, शक्ति सामंत आदि सशक्त निर्माताओं के साथ काम किया.

गायक के चुनाव करते हुए भी वे उतने ही चूज़ी होते थे. सुना है, जिस दिन उनकी रेकॊर्डिन्ग होती थी, वे सुबह गायक से फोन से बात करते थे और बातचीत के दौरान पता लगा लेते थे कि उस दिन उस गायक या गायिका के स्वर की क्या गुणवत्ता है.

संगीत के कंपोज़िशन के साथ ही वाद्यों के ओर्केस्ट्राइज़ेशन की भी बारीकीयां उन्हे पता थी.एक दिन किसी कारणवश एक की जगह दो वायोलीन वादक रिकॊर्डिन्ग में बजा रहे थे, तो दादा नें कंट्रोल केबिन से साज़ों के हुजूम में से यह बात पकड़ ली.उन्होने कहा, मैं एक ही वायोलीन का इफ़ेक्ट चाहता हूं.

वे इस बात को मानते थे, और अपने बेटे राहुल को भी उन्होने यह बात बडे़ गंभीरता से समझाई थी कि हमेशा कुछ नया सृजन किया करो, ताकि लोगों में यह आतुरता बनी रहे, कि अब क्या. जब तीसरी मंज़िल फ़िल्म के लिये पंचम ने सभी गीत लगभग वेस्टर्न स्टाईल से दिये तो दादा बेहद खुश हुए. वे धोती कुर्ता ज़रूर पहनते थे मगर मन से बडे आधुनिक या मोडर्न थे.

पंचम से वे बेहद प्यार करते थे. एक दिन जब वे कहीं टहल रहे थे तो बच्चों के किसी समूह में से एक ने कहा- देखो, वे आर डी बर्मन के पिताजी जा रहे हैं. वे उस दिन बडे खुश होकर सब को पान खिलाने लगे (वे जब खुश होते थे तो सब को पान खिलाया करते थे)

किसी कारणवश प्यासा के समय उनकी बातचीत लता से बंद हो गयी थी. तो उन्होने आशा से गाने गवाये, मगर बाद में पंचम की वजह से वह रुठना खत्म हुआ.

सचिन दा से समय तक गीत पहले लिखे जाते थे, बाद में धुन बनाई जाती थी. दादा इतने नैसर्गिक कम्पोज़र थे कि मिनटों में धुन बना लेते थे, और इसीलियी उन्होने यह प्रथा पहली बार डाली कि पहले धुन बनेगी बाद में उसपर बोल बिठाये जायेंगे. साहिर, मजरूह और शैलेंद्र के साथ उनके कई गीत बनें, मगर देव आनंद नें नीरज, हसरत और पं. नरेन्द्र शर्मा से भी कई गीत लिखवाये जो हिन्दी में साहित्यिक वज़न रखते थे. पं. नरेन्द्र शर्मा से तो वे बडे़ खुश रहते थे क्योंकि वे भी मिनटों में कोई भी गीत रच लेते थे, वह भी बहर में, और विषय से बाबस्ता.

प्यासा फ़िल्म में गुरुदत्त नें उनसे एक गीत बिना किसी साज़ के भी बनवाया और रफ़ी से गवाया था. (तंग आ चुके है कश्मकशे जिंदगी से हम- जो बाद में फ़िल्म लाईट हाऊस में एन.दत्ता के निर्देशन में आशा नें भी गाया). साहिर की एक काव्य संग्रह 'परछाईयां' से उन्होने कुछ चुनिंदा रचनायें चुनी और सचिन दा से धुन बनवाई. जैसे जिन्हे -नाज़ है हिन्द पर वो कहां है, जाने वो कैसे लोग थे - फ़िल्म के बाकी गानो में आपको सचिन दा के अंदाज़ के गानें मिले होंगे- सर जो तेरा चकराये, हम आप की आंखों में आदि. मगर आपनें भी सुन ही लिया है, कि दूसरे गीत कितने अलग ढंग से संगीत बद्ध किये दादा नें.

अभी अभी साहिर की भी पुण्यतिथि थी. यह फ़िल्म उनके गुरुदत्त और सचिन दा के जोडी़ का एक काव्यात्मक ऊंचाई प्राप्त करने वाला कमाल ही था, जो प्यासा के बाद दादा और साहिर के मनमुटाव के बाद टूट गया. सचिन दा का बोलबाला तब इतना बढ़ गया था कि गुरुदत्त को कागज़ के फ़ूल फ़िल्म के समय दोनों में से जब एक को चुनना पडा़ तो उन्होने दादा को ही चुना.

किशोर कुमार को एक अलग अंदाज़ में गवाने का श्रेय भी दादा को ही जाता है. उन्होंनें देव आनंद के लिये किशोर कुमार की आवाज़ को जो प्रयोग किया वह इतिहास बन गया. बाद में राजेश खन्ना के लिये भी किशोर की आवाज़ लेकर किशोर को दूसरी इनिंग में नया जीवन दिया, जिसके बाद किशोर नें कभी भी पीछे मुड़ कर नही देखा.

उसके बावजूद, सचिन दा ने देव आनंद के लिये हमेशा ही किशोर से नहीं गवाया, बल्कि रफ़ी साहब से भी गवाया, जैसे जैसे भी गाने की ज़रूरत होती थी. तीन देवियां में - ऐसे तो ना देखो, और अरे यार मेरी तुम भी हो गज़ब, तेरे घर के सामने में तू कहां , ये बता और छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा,गाईड़ में तेरे मेरे सपने और गाता रहे मेरा दिल, आदि.

उनके गीतों में जो लोकगीतों की महक थी वह उत्तर पूर्व भारत के भटियाली, सारी औत धमैल आदि ट्रेडिशन से उपजी थी. उनकी आवाज़ पतली ज़रूर थी मगर दमदार और एक विशिष्ट लहजे की वजह से पृष्ठभूमि में गाये जाने वाले गीतों के लिये बड़ी सराही गयी.

और एक बात अंतिम, सचिन दा के सहायक के रूप में भी जयदेव (वर्मा) जो एक अच्छे सरोद वादक और गिटारिस्ट भी थे, का शास्त्रीय अनुभव भी मिला और पंचम की वजह से गानों में ताल वाद्यों के अलग अलग प्रयोग भी सुनने को मिले, वह एक अलग विषय है.

'बड़ी सूनी सूनी सी है, ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी ' इस गीत के रिकॊर्डिंग के दो दिन बाद ही वे हमें छोड़ कर चले गये और गाने के बोल सार्थक कर गये.

प्रस्तुति - दिलीप कवठेकर

(उपर के चित्र में है दादा अपनी पत्नी मीरा के साथ, मध्य में देव आनंद और आर डी बर्मन के साथ और नीचे है किशोर कुमार के साथ)

सुनते हैं सचिन दा के स्वरबद्ध किए कुछ गीत. हमने कोशिश की है कि इस संकलन में सचिन दा के संगीत खजाने में से हर रंग के कुछ गीत समेटे जायें. काम बेहद मुश्किल था, हम कितने सफल हुए हैं ये आप सुनकर बतायें.




Thursday, October 30, 2008

मुसाफिर...जाएगा कहाँ...यादें एस डी बर्मन की



महान संगीतकार एस. डी. बर्मन की पुण्यतिथि पर सुनिए उन्हीं के गाये 7 अमर गीत

कोलकाता के संगीत प्रेमियों में "सचिन कारता", मुम्बई के संगीतकारों के लिये "बर्मन दा", बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के रेडियो श्रोताओं में "शोचिन देब बोर्मोन", सिने जगत में "एस.डी. बर्मन" और "जींस" फिल्मी फ़ैन वालों में "एस.डी"-उनके गीतों ने हर किसी के दिल में अमिट छाप छोड़ी है। उनके गीतों में विविधता थी। उनके संगीत में लोक गीत की धुन झलकती, वहीं शास्त्रीय संगीत का स्पर्श भी था। उनका अपरंपरागत संगीत जीवंत लगता था।

नौ भाई-बहनों में एक सचिन देव बर्मन का जन्म १ अक्तूबर,१९०६ में त्रिपुरा में हुआ। सचिन देव ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपने पिता व सितार-वादक नबद्वीप चंद्र देव बर्मन से ली। उसके बाद वे उस्ताद बादल खान और भीष्मदेव चट्टोपाध्याय के यहाँ शिक्षित हुए और इसी शिक्षा से उनमें शास्त्रीय संगीत की जड़ें पक्की हुई जो उनके संगीत में बाद में दिखा भी। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात वे घर से निकल गये और असम व त्रिपुरा के जंगलों में घूमें। जहाँ उन्हें बंगाल व आसपास के लोक संगीत के विषय में अपार जानकारी हुई। बाद में वे उस्ताद आफ़्ताबुद्दीन खान के शिष्य, मुरली वादक बने। १९३० के दशक में उन्होंने कोलकाता में "सुर मंदिर" नाम से अपने संगीत विद्यालय की स्थापना करी। वहाँ वे गायक के तौर पर प्रसिद्ध हुए और के.सी. डे की सान्निध्य में काफी कुछ सीखने को मिला। उन्होंने राज कुमार निर्शोने के लिये १९४० में एक बंगाली फिल्म में संगीत भी दिया। १९३८ में उन्होंने गायिका मीरा से विवाह किया व एक वर्ष बाद राहुल देव बर्मन का जन्म हुआ।

१९४४ में फ़िल्मिस्तान के शशाधर मुखर्जी के आग्रह पर वे दो फिल्म, शिकारी व आठ दिन करने के लिये अपनी इच्छा के विरुद्ध मुम्बई चले गये। पर मुम्बई में काम आसान नहीं था। शिकारी और आठ दिन व बाद में ’दो भाई’, ’विद्या’ और ’शबनम’ की सफलता के बाद भी दादा को पहचान बनाने में वक्त लगा। इससे हताश बर्मन ने वापस कोलकाता जाने का निश्चय किया। यही वो समय था जब अशोक कुमार ने उन्हें रोक लिया। "मशाल का संगीत दो और फिर तुम आजाद हो"। दादा ने फिर मोर्चा संभाला। मशाल का संगीत सुपरहिट हुआ। उसी वक्त देव आनंद, जिनकी सिने जगत में अच्छी पहचान थी व रुत्बा था, ने नवकेतन बैनर की शुरुआत की और एस.डी.बर्मन को बाज़ी का संगीत देने को कहा। १९५१ की यह हिट और फिर जाल (१९५२), ’बहार’ और ’लड़की’ के संगीत ने उनकी सफलता की नींव रखी। उसके बाद तो उन्होंने १९७४ तक लगातार संगीत दिया जब उनकी तबियत ने उनका साथ देना छोड़ दिया।

अपने बेटे पंचम और नासिर हुसैन के साथ, दादा बर्मन ने सबसे अधिक हिट गानों में संगीत दिया है। उनका स्वयं में अटूट विश्वास था और वे अपने गीत चुनने के लिये जाने जाते थे। वे हमेशा कहते - "मैं केवल अच्छे गाने निर्देशित करता हूँ"। बर्मन दा को कुछ ही अवार्ड मिले, क्योंकि उन्होंने अधिक मात्रा में संगीत देने की बजाय खुद चुने हुए गीतों में संगीत देते थे और इसी बात के लिये वे जाने भी जाते थे। एक समय था जब गाने के बोल के आधार पर संगीत दिया जाता था। दादा ने इस तरीके को बदला। अब संगीत की धुन पर गीत के बोल लिखे जाने लगे। आज ९ में से १० गाने इसी तरह से बनाये जाते हैं। दादा तुरंत धुने तैयार करने में माहिर थे, और इन धुनों में लोक व शास्त्रीय दोनों प्रकार के संगीत का मिश्रण था। वे अपने संगीत में पाश्चात्य संगीत का भी उचित मिश्रण करते थे। वे व्यवसायीकरण में हिचकते थे पर वे ये भी चाहते थे कि गाने की धुन ऐसी हो कि कोई भी इसे आसानी से गा सके। जहाँ जरूरत पड़ी उन्होंने सुंदर शास्त्रीय संगीत दिया। लेकिन वे कहते थे कि फिल्म संगीत वो माध्यम नहीं है जहाँ आप शास्त्रीय संगीत का कौशल दिखाये।

जब लता मंगेशकर ने उनके साथ रिकार्ड करने के लिये मना किया उसके बाद उन्होंने आशा भोंसले व गीता दत्त के साथ एक के बाद एक कईं हिट दिये। उन्होंने आशा भोंसले, किशोर कुमार और हेमंत कुमार को भी बतौर गायक तैयार किया। उन्होंने रफी से सॉफ्ट गाने गवाये जब अन्य संगीतकार उनसे हाई पिच गीत गाने को कह रहे थे। बर्मन दा की हमेशा कोशिश रहती कि एक बार जो संगीत उन्होंने दिया उसको अगले किसी भी गाने में दोहराया न जाये। इसी वजह से उनके किसी भी गाने में ऐसा कभी नहीं लगा कि पहले भी किसी गाने में दिया गया हो।

दादा को प्रतिष्ठित सम्गीत नाटक अकादमी अवार्ड व पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। उन्हें आराधना(१९६९) के गाने "काहे को रोए" के लिये नैशनल अवार्ड भी दिया गया। इससे पहले १९३४ में कोलकाता में उन्हें अखिल बंगाल शास्त्रीय संगीत समारोह में गोल्ड मैडल दिया गया। इस कार्यक्रम में उस्ताद फ़य्याज़ खान, उस्ताद अलाउद्दीन खान, बिश्वदेव चटर्जी ने भाग लिया था। अगरतला में एक पुल उनकी याद समर्पित किया गया है। एस.डी. बर्मन के नाम से अगरतला में हर साल उभरते हुए कलाकारों को अवार्ड दिये जाते हैं। और मुम्बई की सुर सिंगार अकादमी भी फिल्म संगीतकारों को एस.डी.बर्मन अवार्ड देती है।

दादा को १९७४ में लकवे का आघात लगा जिसके बाद वे अक्तूबर ३१, १९७५ को हमें छोड़ कर चले गये। एक समय था जब त्रिपुरा का शाही परिवार उनके राजसी ठाठ छोड़ संगीत चुनने के खिलाफ था। दादा इससे दुखी हुए और बाद में त्रिपुरा से नाता तोड़ लिया। आज त्रिपुरा का शाही परिवार एस.डी. बर्मन के लिये जाना जाता है!!!

सचिन दा अपनी फिल्मों में यदि सिचुएशन हो तो एक गीत अपनी आवाज़ में अवश्य रखते थे. उनकी आवाज़ में उनके संगीत को सुनना भी अपने आप में एक अनुभव है. तो आईये आज हम आपको सुनवाते हैं सचिन दा के गाये कुछ अनमोल नगमें -



जानकारी सोत्र - इन्टरनेट
संकलन - तपन शर्मा "चिन्तक"


Wednesday, October 29, 2008

गीत में तुमने सजाया रूप मेरा



मिलिए संगीत का नया सितारा 'कुमार आदित्य' से

हिन्द-युग्म ने 'आवाज़' का बीज इंटरनेट रूपी जमीन में पिछले वर्ष इसलिए बोया ताकि इससे उपजने वाले वटवृक्ष की छाया तले नई प्रतिभाएँ सुस्ताएँ, कुछ आराम महसूस करें, इसकी घनी छायातले सुर-साधना कर सकें। २७ अक्टूबर को आवाज़ ने अपनी पहली वर्षगाँठ भी मनाई। और पिछले एक साल में जिस तरह इस वृक्ष को खाद-पानी मिलता रहा उससे यह लगने लगा कि इसकी जड़ें बहुत गहरी जायेंगी और छाया भी घनी से अत्यधिक घनी होती जायेगी।

कुमार आदित्य
आज हम आपको एक और नये कलाकार से मिलवाने जा रहे हैं। इस सत्र में आप हमारे अब तक रीलिज्ज़ १७ गीतों के संगीतकारों के अतिरिक्त ग़ज़ल-नज़्म गायक-संगीतकार रफ़ीक़ शेख़, शिशिर पारखी से मिल चुके हैं। आज सुगम संगीत गायक कुमार आदित्य से आपका परिचय करवाने जा रहे हैं। आदित्य कुमार हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि डॉ॰ महेन्द्र भटनागर के सुपुत्र हैं। संगीत एवं कला की नगरी ग्वालियर के एक सुप्रसिद्ध सुगम संगीत गायक हैं। इनकी ईश्वरीय प्रदत्त मधुर आवाज़ के कारण श्रोताओं और चाहने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अपनी मधुर आवाज़ में गज़ल गायक के रूप में इन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। संगीत के प्रति समर्पित आदित्य जी को नवीन युगीन आर्केस्ट्रा का जन्मदाता और निर्देशक कहा जाता है। स्वाधीनता प्राप्ति के अर्धशताब्दी समारोह में राजमाता विजया राजे सिंधिया जी ने इन्हें इनके विशिष्ट गायन के लिए सम्मानित एवं पुरुस्कृत किया था। ग्वालियर में ख्याति प्राप्त संस्थाओं द्वारा आयोजित संगीत के कार्यक्रमों में गज़ल गायक के रूप में लोकप्रिय रहे हैं। वर्तमान में आपकी मधुर आवाज़ संगीत के ऐतिहासिक नगर ग्वालियर से निकलकर मुम्बई में अपना ज़ादू बिखेर रही है।

आज इन्हीं की आवाज़ और संगीत निर्देशन में कवि डॉ॰ महेन्द्र भटनागर का एक गीत सुनते हैं 'गीत में तुमने सजाया रूप मेरा'



गीत के बोल

गीत में तुमने सजाया रूप मेरा
मैं तुम्हें अनुराग से उर में सजाऊँ

रंग कोमल भावनाओं का भरा
है लहरती देखकर धानी धरा
नेह दो इतना नहीं, सँभलो ज़रा
गीत में तुमने बसाया है मुझे जब
मैं सदा को ध्यान में तुमको बसाऊँ !

बेसहारे प्राण को निज बाँह दी
तप्त तन को वारिदों -सी छाँह दी
और जीने की नयी भर चाह दी
गीत में तुमने जतायी प्रीत अपनी
मैं तुम्हें अपना हृदय गा-गा बताऊँ !


कुमार आदित्य

जन्मतिथि- ४ नवम्बर १९६९
शिक्षा-
परास्तानक ( संगीत/ शास्त्रीय गायन)-इंदिरा कला-संगीत विश्वविद्यालय, खैरगढ़ (म॰प्र॰)
स्नातक (B.Sc.) (गणित)- जिवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म॰ प्र॰)
स्नातक (B.A.) (शास्त्रीय गायन)- जिवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म॰ प्र॰)
संगीत भूषण (तबला)
संगीत विशारद (शास्त्रीय गायन)

कार्य और उपलब्धियाँ-
प्रमाणित गायक (सुगम संगीत/गीत और भजन)- आकाशवाणी केन्द्र, ग्वालियर (१९९४ से)
प्रमाणित संश्लेषक वादक (सिन्थेसाइज़र प्लेयर)- आकाशवाणी केन्द्र, ग्वालियर (१९९८ से)
ग़ज़ल-गायक- ऊषा-किरण पैलेस; ग्वालियर आईटीसी होटेल लिमिटेड और ताज़ होटेल, वेलकम-ग्रुप, ग्वालियर (१९९९ से)
संगीत-निर्देशक- रेडिएण्ट स्कूल, ग्वालियर
संगीत-निर्देशक- न्यू एरा आर्क्रेस्ट्रा, ग्वालियर

संपर्क-
मोबाइल : मुम्बई : 98 198 70192 / 98 928 95148
फोनः ग्वालियर ; 0751-4092908
ईमेल : adityakumar53@gmail.com
विस्तृत परिचय- http://adityakumar53.blogspot.com/


Tuesday, October 28, 2008

दीपावली गली गली बन के खुशी आई रे...



आवाज़ के सभी साथियों और श्रोताओं को दीपावली के पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाये,हमारे नियमित श्रोता गुरु कवि हकीम ने हमें इस अवसर पर अपना संदेश इस कविता के माध्यम से दिया -

दीप जले प्यार का
जीत का ना हार का
हर किसी के साथ का
हर किसी के हाथ का
दीप जले प्यार का
तोड़ दे दीवार कों
बीच में जो है खडी
स्नेह निर्मल की भीत तो
दीवार से भी है बड़ी
ये दीप ना थके कभी
प्रकाश ना रुके कभी
ये दीप ना बुझे कभी
हर किसी के द्वार का
दीप जले प्यार का
जीत का ना हार का .............
सुधि से सबके मन खिले
सिहर सिहर से ना मिले
पलक भीगी ना रहे
अलक झीनी ना रहे
उज्जवल विलास बन के वो
लौ ज्वाला की धार का
दीप जले प्यार का
जीत का ना हार का....

हिंद युग्म के आंगन में आज हमने कविताओं के दीप जलाये हैं. २४ कवियों की इन २४ कविताओं में गजब की विविधता है. अवश्य आनंद लें. बच्चों की आँखों से भी देखें दिवाली की जगमग.

आवाज़ पर हम अपने श्रोताओं के लिए लाये हैं, एक अनूठा गीत. टेलिविज़न पर एक संगीत प्रतियोगिता में चुने गए टॉप १० में से ५ प्रतिभागियों ने मिलकर दीपावली पर अपने श्रोताओं को शुभकामनायें देने के उद्देश्य से इस गीत को रचा. इन उभरते हुए गायक / गायिकाओं के नाम हैं - कविता, विशाल, संदीप, मीनल और अर्पिता. चूँकि आवाज़ का प्रमुख उद्देश्य नए कलाकारों को बढ़ावा देना है, हम उन प्रतिभाशाली कलाकारों का ये शुभकामनाओं से भरा गीत आपके सामने रख रहे हैं,आप भी इनका प्रोत्साहन बढाएं और अपने मित्रों और परिवारजनों के साथ मिलकर खुशी खुशी आज त्यौहार मनायें -




शुभ दीपावली


Monday, October 27, 2008

हम होंगे कामियाब



कभी कभी छोटी छोटी कोशिशें एक बड़ी सोच का रूप धारण कर लेती है. और फ़िर उस सोच का अंकुर पल्लवित होकर एक बड़ा वृक्ष बनने की दिशा में बढ़ने लगता है और उसकी शाखायें आसमान को छूने निकल पड़ती है. आज से ठीक एक साल पहले २७ अक्टूबर २००७ की शाम को हिंद युग्म ने अपना पहला संगीतबद्ध गीत जारी किया था. दिल्ली, हैदराबाद और नागपुर में बैठे एक गीतकार, एक संगीतकार और एक गायक ने ऑनलाइन बैठकों के माध्यम से तैयार किया था एक अनूठा गीत "सुबह की ताजगी". और इसी के साथ नींव पड़ी एक विचार की जो आज आपके सामने "आवाज़" के रूप में फल फूल रहा है. हिंद युग्म ने महसूस किया कि जिस तरह हमने उभरते हुए कवियों,कथाकारों और बाल साहित्य सृजकों को एक मंच दिया क्यों न इन नए गीतकारों,संगीतकारों और गायकों को भी हम एक ऐसा आधार दें जहाँ से ये बिना किसी बड़े निवेश के अपनी कला का नमूना दुनिया के सामने रख सकें.चूँकि इन्टनेट जुडाव का माध्यम था तो दूरियां कोई समस्या ही नही थी. कोई भी कहीं से भी एक दूसरे से जुड़ सकता था बस कड़ी जोड़नी थी हिंद युग्म के साथ. सिलसिला शुरू हुआ तो एक से बढ़कर एक कलाकार सामने आए. मात्र तीन महीने में युग्म ने १० गीत रच डाले, इन्हें १० कविताओं की चाशनी में डूबोकर हमने बनाया इन्टरनेट गठबन्धनों के माध्यम से तैयार पहला सुरीला एल्बम "पहला सुर".


इस एल्बम में युग्म परिवार के १० कवियों की शिरकत थी, तो ४ गीतकारों, ७ संगीतकारों और ९ गायकों ने अपनी प्रतिभा दुनिया के सामने रखी. हिन्दी ब्लॉग्गिंग जगत पहली बार किसी ब्लॉग ने अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले जैसे बड़े मंच पर अपनी प्रस्तुति का विमोचन किया. "पहला सुर" जिसके भी हाथ में गया उसने मुक्त कंठ से इस महाप्रयास की सराहना की. हिंद युग्म ने संगीत और पॉडकास्ट के लिए एक अलग शाखा के तौर पर "आवाज़" की शुरुआत की. आवाज़ ने अपने प्रयास और तेज़ किए, मुश्किल परिस्तिथियों से जूझते हुए भी हिंद युग्म के कर्णधारों ने अभूतपूर्व योजनाओं को अंजाम दिया. वो फ़िर कवियों और पाठकों को पुरस्कृत करने का अद्भुत विचार हो या फ़िर दूरभाष के माध्यम से हिन्दी टंकण की निशुल्क शिक्षा प्रदान करने का काम हो, पहल हमेशा हिंद युग्म ने की और औरों के लिए प्रेरणा बना. आवाज़ पर भी दूसरे संगीत सत्र की शुरुआत हुई जुलाई में, जिसके तहत हर शुक्रवार एक नए गीत को हम दुनिया के सामने रख रहे हैं, अब तक १७ गीत प्रकाशित हो चुके हैं और अब इस संगीत परिवार में ५० से अधिक नए कलाकार जुड़ चुके हैं. पॉडकास्ट कवि सम्मलेन का मासिक आयोजन आवाज़ पर हो रहा है ये भी अपने आप में एक नायाब प्रयास है. साहित्यिक रचनाओं को ऑडियो फॉर्मेट में उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से शुरू हुई योजना "सुनो कहानी" जिसके तहत हर शनिवार एक ताज़ा कहानी का पॉडकास्ट हम लोगों तक पहुंचा रहे हैं. हाल ही हुए ऑनलाइन पुस्तक विमोचन से "आवाज़" ने साबित किया है इन्टरनेट पर उपलब्ध इस ब्लॉग रुपी मंच का बहुयामी उपयोग सम्भव है. फिल्मकारों के लिए भी अब आवाज़ के दरवाज़े खुले हैं, अब तक दो लघु फिल्मों का प्रसारण हम कर चुके हैं. संगीत से जुड़ी तमाम तरह की जानकारियों को हिन्दी में उपलब्ध करवाने की आवाज़ की पहल में आज ब्लॉग्गिंग जगत से जुड़े भाषा और संगीत की सेवा में समर्पित कई बड़े नामी ब्लॉगर अपना अनमोल समय देकर हमारा साथ दे रहे हैं.
मीडिया बहुत कुछ लिख चुका है हिंद युग्म के बारे में, हमारे साथी ब्लोग्गेर्स भी इसे एक "फिनोमिना" मान चुके हैं. पर युग्म की असली ताक़त तो युग्म के जोशीले, कर्मठ, और समर्पित सदस्य हैं, जो दिन रात अपने इस खूबसूरत सपने को सजाने सँवारने की योजनाओं पर काम करते रहते हैं. इतने नाम हैं कि सब का जिक्र बेहद मुश्किल होगा, चूँकि आज हम अपने उस बीज रुपी गीत "सुबह की ताजगी" का ब्लॉग पर जन्मदिवस मना रहे हैं, तो बस संगीत से जुड़े कलाकारों पर बात करेंगे. शुरुआत इस ऑनलाइन पार्टी की होनी चहिये उसी शानदार गीत से. अनुरोध है सुबोध साठे से कि एक बार फ़िर अपनी मधुर आवाज़ में छेड़े "सुबह की ताजगी" का तराना.



सुबोध हमेशा की तरह हंसमुख है आज की पार्टी में, हमने जाना चाहा सुबोध से -
“सुबोध नए सत्र में बहुत से नए कलाकार आए हैं इनमें से अधिकतर आपको रोल मॉडल मानते हैं, आप बताएं इनमें से आपके पसंदीदा गायक और संगीतकार कौन कौन है ?”
सुबोध का जवाब था "सबसे पहले तो हिंद युग्म को बधाई, मुझे गायक के तौर पर कृष्ण कुमार बहुत पसंद आए, उनके गीत का संगीत पक्ष कुछ कमजोर था पर गायकी और आवाज़ बहुत जबरदस्त लगी. संगीतकारों में "संगीत दिलों का उत्सव है..." वाले निखिल बहुत प्रतिभाशाली लगे."सुबोध के आग्रह पर हम अनुरोध कर रहे हैं कृष्ण कुमार से वो सुनाएँ अपना गीत "राहतें सारी.."



वाकई कृष्ण कुमार का भविष्य काफी उज्जवल नज़र आ रहा है....इसी बीच हमने पकड़ा ज़रा से शर्मीले और ज़रा से एकांतप्रिये युग्म के पहले संगीतकार ऋषि एस को, दरअसल जहाँ तक आज हम पहुंचें हैं वह सम्भव नही होता अगर ऋषि एस का हमें साथ नही मिलता, ऋषि युग्म के वार्षिक अंशदाता भी हैं. यानी कि वो युग्म की सोच और योजनाओं से बेहद आत्मीयता से जुड़े हैं. ऋषि से भी हमने वही सवाल किया जो सुबोध से किया था. तो जवाब मिला -
"मेरा अब तक का सबसे पसंदीदा गीत है सुबोध का गाया "खुशमिजाज़ मिटटी". इसका मुखडा कमाल का है और जिस स्केल पर ये गाया गया है वो उसकी आवाज़ के लिए बिल्कुल परफेक्ट है. मुझे सुबोध की आवाज़ हमेशा से ही पसंद रही है और इस गीत में उनकी संगीत रचने की क्षमता भी बखूबी उभर कर सामने आई है. मेरे पहले ३ गीत सुबोध ने ही गाये थे, और उम्मीद करता हूँ कि आगे भी हम साथ काम करेंगे.
मैं हिन्दी साहित्य की बहुत अधिक जानकारी नही रखता तो किसी गीतकार की समीक्षा करना जरा मुश्किल काम है. पर व्यक्तिगत तौर पर मुझे सजीव का लिखा "जीत के गीत" बहुत पसंद है, सजीव शायद दिए हुए धुन पर बेहतर लिखते हैं, मेरे आखिरी दो गीत (जीत और मैं नदी ) के बोलों की बेहद तारीफ हुई है, बनिस्पत मेरे पिछले गीतों से जो पहले लिखे गए और बाद में स्वरबद्ध हुए. मैं सभी ग़ज़लकारों को भी बधाई देना चाहता हूँ, मैं ग़ज़लों का दीवाना हूँ, पर शायद ग़ज़ल को स्वरबद्ध करना अभी is not my cup of tea, i guess."
ऋषि ने बहुत इमानदारी से जो बात कही है वो हम सब जानते हैं. ग़ज़लों को स्वरबद्ध करना और गाना दोनों ही कलायें विलक्षण क्षमता की मांग करती है. युग्म पर अब तक बहुत सी बेमिसाल ग़ज़लें आई हैं और हमारे कलाकारों ने हमेशा ही श्रोताओं के दिलों को जीतने में कामयाबी हासिल की है. दोस्तों, तो क्यों न इन खूबसूरत ग़ज़लों का एक बार फ़िर से आनंद लिया जाए. स्वागत करें महफ़िल में, आभा मिश्रा, रुपेश ऋषि, प्रतिष्ठा, निशांत अक्षर, और रफीक शेख का.

इन दिनों - आभा मिश्रा



ये ज़रूरी नही - रुपेश व् प्रतिष्ठा



चले जाना - रुपेश



तेरे चेहरे पे - निशांत अक्षर



सच बोलता है - रफ़ीक शेख



ग़ज़लों का दौर चला तो हमें झूमती हुई दिखी शिवानी जी, शिवानी का आवाज़ परिवार विशेष आभारी है. इनका सहयोग हर कदम पर हम सब के साथ रहा है. अब तक इनकी ३ ग़ज़लें आवाज़ पर आ चुकी हैं, शिवानी जी जाहिर है अपनी ग़ज़लें आपको प्रिय होंगी, पर उसके अलावा कोई और गीत जो आपको विशेष प्रिय हो बताएं. जवाब शिवानी जी अपनी मधुर आवाज़ में दिया "आवाज़ की पहली सालगिरह पर मैं हिंद युग्म और आवाज़ के सभी श्रोतागण को बधाई देना चाहती हूँ !हिंद युग्म और आवाज़ अपने श्रोताओं और पाठकों के सहयोग से ही अपनी बुलंदियों को छूने जा रहा है !आवाज़ पर आये सभी गीत ,ग़ज़ल और कवितायें भिन्न भिन्न प्रकार के फूलों के रूप में एकत्र हो कर एक महकता गुलदस्ता बन गए हैं !सभी की अपने बोल ,गीत और संगीत से अपनी अलग पहचान है !परन्तु यदि किसी एक को चुनना हो तो मेरे विचार से `मुझे दर्द दे ' मेरा पसंदीदा गीत है ! सजीव जी ने बहुत खूबसूरत गीत लिखा है ,बोल लाजवाब हैं हर कोई सूफी गीत नहीं लिख सकता !गीत में ठहराव है ! संगीत दिल को सुकून देता है !शुरुआत बहुत खूबसूरत है !अमनदीप और सुरेंदर जी की आवाज़ में गहराई और अमन कायम है !गीतकार, गायक और संगीतकार में बहुत अच्छा सामंजस्य है !मेरी नज़र में इन्ही सब खूबियों के कारण ये मेरा पसंदीदा गीत है ! इस गीत की पूरी टीम को एक बार फिर मेरी शुभकामनायें !धन्यवाद !"
अब जब शिवानी जी ने इतनी तारीफ की है तो क्यों न सुन लिया जाए उनका पसंदीदा गीत, स्वागत करें लुधिआना पंजाब के पेरुब और उनके साथ जोगी और अमनदीप का, साथ में आमंत्रित हैं बेहद प्रतिभाशाली कृष्णा पंडित और उनके साथी भी अपनी ताज़ा सूफी रचना के साथ. तो दोस्तों आनंद लें इस सूफी गुलदस्ते का.

मुझे दर्द दे - जोगी व् अमनदीप



डरना झुकना - जोगी व् अमनदीप



सूरज चाँद सितारे - कृष्णा पंडित



पार्टी में लेट लतीफ़ आए हैं परिवार के सबसे छोटे सदस्य मात्र १७ साल के नौजवान कोलकत्ता से सुभोजित. आते ही हमने घेर लिया उन्हें भी और किया वही सवाल. तो मिला बस एक लाइन का जवाब-
"हाँ मुझे पसंद है निखिल का गीत... मेरे ख्याल से “संगीत दिलों का उत्सव है” युग्म का अब तक का सर्वश्रेष्ट गीत है." तभी उनके पास चल कर आए UK से आए हमारे नए सनसनीखेज गायक बिस्वजीत भी, हमने पूछा कि क्या वो सहमत हैं सुभोजित से तो बिस्वजीत का जवाब था,"मुझे मानसी की आवाज़ बहुत पसंद आयी, “मैं नदी” गीत को उन्होंने बहुत खूब गया है, चूँकि संगीत सीखा हुआ होने के कारण वो हरकतें बहुत सहज रूप से ले लेती है और गाने में नई जान फूंक देती है"
अब बिस्वजीत सामने हो तो हम उन्हें ऐसे कैसे छोड़ सकते है. तो पहले सुन लेते हैं उनकी आवाज़, और फ़िर हम पेश करेंगे सुभोजित और बिस्वजीत के पसंदीदा गीत भी. स्वागत करें बिस्वजीत, मानसी, चार्ल्स और मिथिला का.

जीत के गीत - बिस्वजीत



मेरे सरकार - बिस्वजीत



संगीत दिलों का उत्सव है - चार्ल्स व् मिथिला



मैं नदी - मानसी




दोस्तों महफिल शबाब पर है. आईये आवाज़ की अब तक की टीम का एक संक्षिप्त परिचय लिया जाए -
संगीत परिवार -

गीतकार के रूप में - अलोक शंकर, गौरव सोलंकी, मोईन नज़र, सजीव सारथी, विश्व दीपक "तन्हा", शिवानी सिंह, अज़ीम राही, निखिल आनंद गिरी, मोहिंदर कुमार, मनुज मेहता, और संजय द्विवेदी.

गीतकार संगीतकार और गायक के रूप में - सुनीता यादव, और सुदीप यशराज.

संगीतकार के रूप में - ऋषि एस, सुभोजित, चेतन्य भट्ट, अनुरूप, निखिल वर्गीस और पेरुब.

संगीतकार और गायक के रूप में - सुबोध साठे, रुपेश ऋषि, निरन कुमार, जे एम् सोरेन, कृष्ण राज, कृष्णा पंडित, रफ़ीक शेख, आभा मिश्रा और शिशिर पारखी.

गायक के रूप में - जोगी सुरेंदर, अमन दीप कौशल, प्रतिष्ठा, चार्ल्स, मिथिला, निशांत अक्षर, मानसी पिम्पले, जयेश शिम्पी, बिस्वजीत, अभिषेक, और रुद्र प्रताप.

आवाज़ की टीम - सजीव सारथी (संपादक), शैलेश भारतवासी, अनुराग शर्मा, और तपन शर्मा चिन्तक (सह-संपादक),प्रशेन , राहुल पाठक (डिजाईन व् साज सज्जा),संजय पटेल, अशोक पाण्डेय, मृदुल कीर्ति, पंकज सुबीर, युनुस खान, सागर नाहर, मनीष कुमार, सुरेश चिपनकुर, दिलीप कवठेकर, रंजना भाटिया, शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह, अनीता कुमार, अमिताभ मीत, पारुल, विश्व दीपक तन्हा और अन्य साथी सहयोगी.

इससे पहले की हम आवाज़ रुपी इस सोच की शुरुआत के एक वर्ष मुक्कमल होने की खुशी में केक काटें, ईश्वर की स्तुति कर लें, याद करें उस परम पिता को जिसके आदेश के बिना एक पत्ता भी नही हिलता. हमारे संगीत समूह में सबसे अनुभवी शिशिर पारखी जी से अनुरोध है कि वो एक मन को छू लेने वाला भजन सुनाएँ -

भजन (अप्रकाशित) - शिशिर पारखी



चलिए दोस्तों अब पार्टी का आनंद लें -



मौका भी है और दस्तूर भी, कुछ झूम लिया जाए कुछ नाच लिया जाए, पेश है एक बार फ़िर सुबोध, अपने आवारा दिल के साथ -



सोरेन जो अब तक चुप चाप खड़े हैं अब आपको रॉक करने वाले हैं अपने दमदार "ओ मुनिया" गीत के साथ.



और अंत में आईये हम सब मिलकर दोहराएँ वो मूल मन्त्र जिसने हमें एक सूत्र में बांधा है -

हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
हिन्दी मेरी आवाज़ है.
बढे चलो....पेश है जयेश, मानसी और ऋषि की आवाजों में -



आशा है आप सब मेहमानों ने इस ऑनलाइन संगीत महफिल का जम कर आनंद लिया होगा. हिंद युग्म और आवाज़ के साथ आपकी दोस्ती, आपका प्यार और आप सब का सहयोग युहीं बना रहे यही दुआ है. धन्येवाद.

Sunday, October 26, 2008

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - अक्टूबर २००८




Doctor Mridul Kirti - image courtesy: www.mridulkirti.com
डॉक्टर मृदुल कीर्ति

कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन। लीजिये आपके सेवा में प्रस्तुत है अक्टूबर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। अगस्त और सितम्बर २००८ की तरह ही इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने।

इस बार हमें अत्यधिक संख्या में कवितायें प्राप्त हुईं और हम आप सभी के सहयोग और प्रेम के लिए आपके आभारी हैं। हमें आशा है कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाए रखेंगे। हम बहुत सी कविताओं को उनकी उत्कृष्टता के बावजूद इस माह के कार्यक्रम में शामिल नहीं कर सके हैं और इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। कुछ कवितायें समयाभाव के कारण इस कार्यक्रम में स्थान न पा सकीं एवं कुछ रिकॉर्डिंग ठीक न होने की वजह से। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो।

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन भौगौलिक दूरियाँ कम करने का माध्यम है और इसमें विभिन्न देश, आयु-वर्ग, एवं पृष्ठभूमि के कवियों ने भाग लिया है। इस बार के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की शोभा को बढाया है फ़रीदाबाद से शोभा महेन्द्रू, सिनसिनाटी (यू एस) से लावण्या शाह, लन्दन (यू के)  से शन्नो अग्रवाल, हैदराबाद से डॉक्टर रमा द्विवेदी, वाराणसी से शीला सिंह, झांसी से डॉक्टर महेंद्र भटनागर, दिल्ली से मनुज मेहता, ग़ाज़ियाबाद से कमलप्रीत सिंह, अशोकनगर (म॰प्र॰) से प्रदीप मानोरिया, रोहतक से डॉक्टर श्यामसखा "श्याम", दिल्ली से विवेक मिश्र, कोलकाता से अमिताभ "मीत",  कनाडा से नीरा राजपाल, तथा पिट्सबर्ग (यू एस) से अनुराग शर्मा ने। ज्ञातव्य है कि इस कार्यक्रम का संचालन किया है  हैरिसबर्ग  (अमेरिका) से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने।

इस बार के सम्मेलन से हम एक नया खंड शुरू कर रहे हैं जिसमें हम हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवियों की एक रचना को आप तक लाने का प्रयास करेंगे. इसी प्रयास के अंतर्गत इस बार हम सुना रहे हैं जाने-माने कवि एवं गीतकार स्वर्गीय पंडित नरेन्द्र शर्मा की ओजस्वी रचना "रथवान"।

पिछले सम्मेलनों की सफलता के बाद हमने आपकी बढ़ी हुई अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है. हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि इस बार का सम्मलेन आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और आपका सहयोग हमें इसी जोरशोर से मिलता रहेगा।

यदि आप हमारे आने वाले पॉडकास्ट कवि सम्मलेन में भाग लेना चाहते हैं तो अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे। नवम्बर अंक के लिए रिकॉर्डिंग भेजने की अन्तिम तिथि है २३ नवम्बर २००८

नीचे के प्लेयरों से सुनें।

(ब्रॉडबैंड वाले यह प्लेयर चलायें)


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis

हम सभी कवियों से यह अनुरोध करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे।

रिकॉर्डिंग करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। हिन्द-युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने इसी बावत एक पोस्ट लिखी है, उसकी मदद से आप रिकॉर्डिंग कर सकेंगे। अधिक जानकारी के लिए कृपया  यहाँ देखें

# Podcast Kavi Sammelan. Part 4. Month: October 2008.

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