ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 269
बी. आर. चोपड़ा कैम्प के गीत संगीत के मुख्य रूप से कर्णधार हुआ करते थे साहिर लुधियानवी और रवि। लेकिन १९८० में इस कैम्प की एक फ़िल्म आई जिसमें गानें तो लिखे साहिर साहब ने, लेकिन संगीत के लिए चुना गया राहुल देव बर्मन को। शायद एक बहुत ही अलग सबजेक्ट की फ़िल्म और फ़िल्म में नई पीढ़ियों के किरदारों की भरमार होने की वजह से बी. आर. चोपड़ा (निर्माता) और रवि चोपड़ा (निर्देशक) ने यह निर्णय लिया होगा। जिस फ़िल्म की हम बात कर रहे हैं वह है 'दि बर्निंग् ट्रेन'। जब यह फ़िल्म बनी थी तो लोगों में बहुत ज़्यादा कौतुहल था क्योंकि फ़िल्म का शीर्षक ही बता रहा था कि फ़िल्म की कहानी बहुत अलग होगी, और थी भी। एक बहुत बड़ी स्टार कास्ट नज़र आई इस फ़िल्म में। धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी, जीतेन्द्र, नीतू सिंह, परवीन बाबी, विनोद खन्ना और विनोद मेहरा जैसे स्टार्स तो थे ही, साथ में बहुत से बड़े बड़े चरित्र अभिनेता भी इस फ़िल्म के तमाम किरदारों में नज़र आए। फ़िल्म की कहानी बताने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि यह एक ऐसी फ़िल्म है जिसे लगभग सभी ने देखी है और अब भी अक्सर टी.वी. पर दिखाई जाती है। इस फ़िल्म में बच्चों का एक बहुत ही ख़ूबसूरत 'प्रेयर सॊंग्' है जो बहुत ज़्यादा लोकप्रिय हुआ था। उस जलते हुए ट्रेन में स्कूल टीचर बनी सिम्मी गरेवाल भी थीं जो स्कूली बच्चों की पूरे टीम को लेकर सफ़र कर रहीं थीं। ट्रेन में आग लग जाने और ब्रेक फ़ेल हो जाने के बाद जब दूसरे लोग ट्रेन को किसी भी तरीके से रुकवाने की कोशिश में जुटे हैं, वहीं उन बच्चों के साथ उनकी टीचर ईश्वर की प्रार्थना में जुटी हैं और तभी फ़िल्म में आता है यह गीत "तेरी है ज़मीं तेरा आसमाँ तू बड़ा मेहरबान तू बख़शीष कर, सभी का है तू सभी तेरे ख़ुदा मेरे तू बख़शीष कर"। आज सुनिए इसी प्रार्थना को।
इस गीत को गाया था सुषमा श्रेष्ठ, पद्मिनी कोल्हापुरी और साथियों ने। बाल गायिकाओं में सुषमा और पद्मिनी बहुत सक्रीय रहीं हैं। एक ज़माना था जब सुषमा श्रेष्ठ ने बहुत सारे बच्चों वाले गीत गाए थे। किशोर कुमार के साथ 'आ गले लग जा' फ़िल्म में "तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई", लता जी के साथ 'ज़ख़्मी' फ़िल्म में "आओ तुम्हे चाँद पे ले जाएँ", और रफ़ी साहब के साथ 'हम किसी से कम नहीं' फ़िल्म में "क्या हुआ तेरा वादा" और 'अंदाज़' में "है ना बोलो बोलो" जैसे हिट गानें सुषमा ने जब गाए तब उनकी उम्र बहुत कम थी। यह तो आप जानते ही हैं कि आगे चलकर पूर्णिमा के नाम से वो प्लेबैक सिंगर बनीं ताकि बाल-गायिका का टैग हट जाए। लेकिन फिर भी चंद गीतों को छोड़कर उन्हे बहुत ज़्यादा कामयाबी हासिल नहीं हुई। और दूसरी गायिका पद्मिनी कोल्हापुरी, जो आगे चलकर एक हीरोइन बनीं, इन्होने भी कई बच्चों वाले गीत गाए थे। एक तो इसी शृंखला में आप सुन चुके हैं। याद है ना "मास्टर जी की आ गई चिट्ठी"? लता जी के साथ फ़िल्म 'यादों की बारात' में पद्मिनी और उनकी बहन शिवांगी ने ही तो आवाज़ मिलाई थी "यादों की बारात निकली है आज दिल के द्वारे" गीत में, जिसमें पर्दे पर एक बच्चा आमिर ख़ान भी था। ख़ैर, देखिए ना हम कहाँ से किस बात पर आ गए! ज़िक्र हो रहा है "तेरी है ज़मीं" गीत का। एक क्रीश्चन मिशनरी स्कूल के बच्चे जिस तरह का भक्ति गीत गाएँगे, बिल्कुल वैसा ही मिज़ाज बरकरार रखा है साहिर साहब ने। दोस्तों, मै बचपन से रेडियो सुनता आया हूँ, तो शायद ही कोई ऐसा साल रहा होगा जिस बार २५ दिसंबर के दिन इस गीत को क्रिस्मस के विशेष कार्यक्रम में ना बजाया गया हो! पंचम ने जिस तरह का मीटर इस गीत में रखा है, सुन कर बिल्कुल ऐसा लगता है कि जैसे हम कोई 'क्रिस्मस कैरल' सुन रहें हों। तो दोस्तों, आइए आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम ईश्वर की आराधना में लीन हो जाते हैं और सुनते हैं इस पाक़ और मासूम गीत को!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस फिल्म में जिस नन्हें बालक ने प्रमुख भूमिका की थी, वह आगे चलकर एक एक्टर/निर्दशक बना.
२. एक चर्चित अभिनेत्री ने भी इसी फिल्म से बतौर बाल कलाकार शुरुआत की.
३. पार्श्व गायन करने वाली एक नन्ही गायिका ने भी आगे चलकर सेलिना जेठ्ली के लिए पार्श्वगायन किया.
पिछली पहेली का परिणाम -
रोहित जी, आपका जवाब हमने बाद में देखा पर आपके २ अंक सुरक्षित हैं और कल के जवाब को मिला कर आपका स्कोर हुआ ४१. बधाई
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.