सुर संगम - 11 - राजस्थान का माँगणियार लोक-संगीत
लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियाँ गाती हैं, फसलें गाती हैं। उत्सव, मेले और अन्य अवसरों पर मधुर कंठों में लोक समूह लोकगीत गाते हैं। वैदिक ॠचाओं की तरह लोक-संगीत या लोकगीत अत्यंत प्राचीन एवं मानवीय संवेदनाओं के सहजतम स्त्रोत हैं।

सुप्रभात! सुर-संगम की ११वीं कड़ी में आप सबका अभिनंदन! आज से हम सुर-संगम में एक नया स्तंभ जोड़ रहे हैं - वह है 'लोक-संगीत'। इसके अंतर्गत हम आपको भारत के विभिन्न प्रांतों के लोक-संगीत का स्वाद चखवाएँगे। आशा करते हैं कि इस स्तंभ के प्रभाव से सुर-संगम का यह मंच एक 'आनंद-मेला' बन उठे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था,"लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियाँ गाती हैं, फसलें गाती हैं। उत्सव, मेले और अन्य अवसरों पर मधुर कंठों में लोक समूह लोकगीत गाते हैं। वैदिक ॠचाओं की तरह लोक-संगीत या लोकगीत अत्यंत प्राचीन एवं मानवीय संवेदनाओं के सहजतम स्त्रोत हैं।" भारत में लोक-संगीत एक बहुमूल्य धरोहर रहा है। विभिन्न प्रांतों की सांस्कृतिक विविधता असीम लोक कलाओं व लोक संगीतों को जन्म देती हैं। प्रत्येक प्रांत की अपनी अलग शैली, अलग तरीका है अपनी कलात्मक विविधता को व्यक्त करने का। आज हम जिस प्रांत के लोक-संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं, वह प्रांत अपनी इसी कलात्मक विविधता, रचनात्मक शैलियों तथा रंगारग व पारंपरिक लोक-कलाओं के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है - आप समझ ही गए होंगे कि मैं बात कर रहा हूँ सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों से परिपूर्ण - राजस्थान की। एक ऐसा प्रदेश जिसका नाम ज़हन में आते ही आँखों के आगे छा जाते हैं ऐतिहासिक किलों, राजा-महाराजाओं, रंग-बिरंगे कपड़ों, व्यंजनो तथा लोक-कलाओं के मनमोहक चित्र।
राजस्थान की उर्वर लोक-कला व संगीत कई परंपरागत शलियों का मिश्रण है। एक ओर जहाँ घरेलु काम-काज जैसे कुएँ से पानी भर लाने, संबंधों, धार्मिक प्रथाओं, त्योहारों, मेलों, घरेलु व सामाजिक अनुष्ठानों और राजाओं-महाराजाओं को समर्पित लोक-गीत हैं, वहीं ईश्वर को समर्पित मीराबाई और कबीर के गीत भी हैं। राजस्थान के लोग परिश्रम से भरे और रेगिस्तान की कठोर धूप में बीती दिनचर्या के बाद फ़ुरसत मिलते ही स्वयं को प्रसन्न चित्त करने के लिए लोक-संगीतों, नृत्यों व नाट्यों का सहारा लेते हैं। वहाँ के हर समुदाय, हर प्रांत का लोक-संगीत विविध है, यहाँ तक कि इनके द्वारा प्रयोग किये जाने वाले वाद्य भी भिन्न हैं। जहाँ सामुदायिक लोक-संगीत की बात आती है वहाँ पर राजस्थान के लाँघा, माँगणियार, मिरासी, भाट व भांड आदि समुदायों का उल्लेख करना अनिवार्य बन जाता है। माँगणियार और लाँघा मुस्लिम समुदाय हैं जो राजस्थान में भारत-पाकिस्तान सीमा से सटे बाड़मेर और जैसलमेर के रेगिस्तानों में पाए जाते हैं। इनकी एक महत्त्वपूर्ण संख्या पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थापरकर व सांघार ज़िलों में भी आबाद हैं। ये वंशानुगत पेशेवर संगीतकारों का समूह है जिनका संगीत अमीर ज़मींदारों और अभिजातों द्वारा पीढ़ियों से प्रोत्साहित किया जाता रहा है। आइए इस वीडियो द्वारा माँगणियार लोक कलाकारों की इस प्रस्तुति का आनंद लें जो इन्होंने दी थी ' द माँगणियार सिडक्शन' नामक एक कार्यक्रम में जिसे विश्व भर के अनेक देशों में प्रस्तुत किया गया और बेहद सराहा भी गया।
द माँगणियार सिडक्शन

माँड - केसरिया बालम आवो सा, पधारो मारे देस
और अब बारी इस कड़ी की पहेली की जिसका आपको देना होगा जवाब तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। 'सुर-संगम' के ५०-वे अंक तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी तरफ़ से।
सुनिए इस गीत के हिस्से को और पहचानिए कि यह किस राग पर आधारित है।
पिछ्ली पहेली का परिणाम: कृष्णमोहन जी ने न केवल एक बार फ़िर सही उत्तर देकर ५ अंक और अर्जित किए बल्कि माँगणियार लोक-संगीत के बारे में जानकारी भई बाँटी। धन्यवाद एवं बधाई!
तो लीजिए, हम आ पहुँचे हैं 'सुर-संगम' की आज की कड़ी की समाप्ति पर। आशा है आपको यह कड़ी पसन्द आई। सच मानिए तो मुझे भी बहुत आनन्द आया इस कड़ी को लिखने में। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने मित्र सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए, नमस्कार!
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
4 श्रोताओं का कहना है :
यह गाना राग पहाडी पर आधारित है. गाने के बोल हैं: "अरे जा रे हट नटखट ना छेड मेरा घूंघट".
फिल्म का नाम है "नवरंग"
गजब की कशिश है इस मिट्टी के संगीत में
Music was given by "C.Ramchandra". Lyrics: Bharat Vyas
Taal : Dadra
------------------------------
Some Details of Raaga Pahadi
------------------------------
Thaat: Bilawal
Prahar: 5 (6 pm - 9 pm)
Aaroha: 'P-'D-S-R-G-P-D-S'
Avaroha: S'-N-D-P-m-G-R-s-'n-'d-'P-'d-S
Pakad: S-'D-'P-'D-'m-'G-'P-'D-S
Jaati: Audav-Sampoorn
Saptak-pradhaanata: Mandra-Madhya
A really excellent site; I enjoy the way you provide information in an open and entertaining manner; I learned a lot from my blog.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)