दोस्तो,
आज सुबह-सुबह आपने भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित कथा-संग्रह 'डर' का विमोचन किया और इस संग्रह से एक कहानी भी सुनी। अब बारी है लोकप्रिय ब्लॉगर, ग़ज़ल प्रशिक्षक पंकज सुबीर के पहले कहानी-संग्रह 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' के विमोचन की। गौरतलब है कि इस पुस्तक के साथ-साथ १२ अन्य हिन्दी साहित्यिक कृतियों के विमोचन का कार्यक्रम आज ही हिन्दी भवन सभागार, आईटीओ, नई दिल्ली में चल रहा है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता २००६ के भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित कवि कुँवर नारायण कर रहे हैं। सभी पुस्तकों का विमोचन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हाथों होना है।
लेकिन घबराइए नहीं। हम आपको ऑनलाइन और पॉडकास्ट विमोचन का नायाब अवसर दे रहे हैं, जिसके तहत आप इस कहानी-संग्रह का विमोचन अपने हाथों कर सकेंगे, वह भी शीला दीक्षित से पहले। साथ ही साथ हम इस कहानी संग्रह की शीर्षक कहानी भी सुनवायेंगे। तो कर दीजिए लोकार्पण
आपको बताते चलें कि युवा कहानीकार पंकज सुबीर के इस कथासंग्रह में अलग-अलग रंगों की १५ कहानियाँ सम्मिलित हैं। संग्रह में ईस्ट इंडिया कम्पनी के अलावा अन्य कहानियां हैं कुफ्र, अंधेरे का गणित, घेराव, ऑंसरिंग मशीन, हीरामन, घुग्घू, तस्वीर में अवांछित, एक सीप में, ये कहानी नहीं है, रामभरोस हाली का मरना, तमाशा, शायद जोशी, छोटा नटवरलाल, तथा और कहानी मरती है हैं। ये सारी ही कहानियां वर्तमान पर केन्द्रित हैं। शीर्षक कहानी ईस्ट इंडिया कम्पनी उस मानसिकता की कहानी है जिसमें उंगली पकड़ते ही पहुंचा पकड़ने का प्रयास किया जाता है। कुफ्र कहानी में धर्म और भूख के बीच के संघर्ष का चित्रण किया गया है। अंधेर का गणित में समलैंगिकता को कथावस्तु बनाया गया है तो घेराव और रामभरोस हाली का मरना में सांप्रदायिक दंगे होने के पीछे की कहानी का ताना बाना है। आंसरिंग मशीन व्यवस्था द्वारा प्रतिभा को अपनी आंसरिंग मशीन बना लेने की कहानी है। हीरामन ग्रामीण परिवेश में लिखी गई एक बिल्कुल ही अलग विषय पर लिखी कहानी है। घुग्घू कहानी में देह विमर्श कथा के केन्द्र में है जहां गांव से आई एक युवती के सामन कदम-कदम पर दैहिक आमंत्रण हैं। तस्वीर में अवांछित कहानी एक ऐसे पुरुष की कहानी है जो कि अपनी व्यस्तता के चलते अपने ही परिवार में अवांछित होता चला जाता है। एक सीप में तीन लड़कियां रहती थीं मनोवैज्ञानिक कहानी है जिसमें एक ही घर में रहने वाली तीन बहनों की कहानी है जो एक एक करके हालात का शिकार होती हैं। ये कहानी नहीं है साहित्य के क्षेत्र में चल रही गुटबंदी और अन्य गंदगियों पर प्रकाश डालती है। तमाशा एक लड़की के अपने उस पिता के विद्रोह की कथा है जो उसके जन्म के समय उसे छोड़कर चला गया था। शायद जोशी मनोवैज्ञानिक कहानी है। छोटा नटवरलाल में समाचार चैनलों द्वारा समाचारों को लेकर जो घिनौना खेल खेला जाता है उसे उजागर करती है। और कहानी मरती है लेखक की हंस में प्रकाशित हो चुकी वो कहानी है जिसमें कहानी के पात्र कहानी से बाहर निकल निकल कर उससे लड़तें हैं और उसे कटघरे में खड़ा करते हैं। ये पंद्रह कहानियां अलग अलग स्वर में वर्तमान के किसी एक विषय को उठाकर उसकी पड़ताल करती हैं और उसके सभी पहलुओं को पाठकों के सामने लाती हैं।
आने वाले दिनों में आप कहानी-कलश पर इस कहानी-संग्रह की कुछ कहानियाँ पढ़ सकेंगे और साथ उनके पॉडकास्ट भी सुन सकेंगे। फिलहाल सुनिए अनुराग शर्मा की आवाज़ में शीर्षक कहानी 'ईस्ट इंडिया कम्पनी'
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9 श्रोताओं का कहना है :
पंकज जी!
वन्देमातरम.
बहुत बहुत बधाई.
युग्म ने अवसर दिया और मैं विमोचन करने के लिए सबसे पहले हाजिर हूँ. पहले फीता कात्दिया अब आराम से पढूंगा. पुनः बधाई.
आज इस कार्यक्रम के विमोचन के समय मैं हिन्दी भवन में उपस्थित था, लेकिन उस कार्यक्रम में मुझे उतना मज़ा नहीं आया, जितना कि इस ऑनलाइन विमोचन में भाग लेकर आ रहा है।
ईस्ट इंडिया कम्पनी अपने तरह तरह के रूपकों से ट्रैन के एक कम्पार्टमेंट की मदद से पूरी भारत की तस्वीर खींचने की कोशिश करती है। जब मैं कहानी को सुन रहा था तो मेरे दीमाग में बार-बार यह बात आ रही थी कि कहीं आवाज़ की टीम ने गलती से कोई और कहानी तो नहीं चढ़ा दी। लेकिन जब अंत आया तो समझ में आया कि कहानीकार ने कितनी चतुरता से पाठकों और श्रोताओं को अपने दर्शन से जोड़ा है।
मेरा मानना है कि कहानी वाचन में यह अनुराग शर्मा का उत्तम प्रदर्शन है। यह बहुत खुशी की बात है कि अनुराग जी अपनी कहानी वाचन शैली में निरंतर सुधार लाते जा रहे हैं।
आवाज़ का ये रंग मुझे बहुत अच्छा लगा . ऑन लाइन विमोचन कर कितनी खुशी हुई बयां नहीं कर पा रहा हूँ न जाने कहीं विमोचन करूँगा की नहीं .बरहाल अनुराग जी का धन्यवाद जो इतनी मधुर आवाज़ में 'ईस्ट इंडिया कंपनी, को पढाया -सुनाया .पंकज जी ने बीते दिनों को आज से जोड़ ट्रेन कम्परात्मेंट से हमें उम्दा तरीके से जोड़ा है .आवाज़ परिवार को बहुत-बहुत धन्याद.
कहानी तो मैंने पहले ही पढ़ ली थी पर सुनने का आनंद कुछ और ही रहा...अनुराग जी बहतरीन काम किया आपने....और पंकज जी आप को तो बधाई पहले ही दी जा चुकी है :)
पंकज जी को मेरी और से भी बहुत बधाई. उनकी कहानियों को पढ़ना मेरे लिए एक बहुत अच्छा अनुभव रहा है. विदेशों में इस पुस्तक को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
अनुराग जी का कथा वाचन बडा ही सुश्राव्य है, सहज है.
पंकज सुबीर जी को बधाईयां
अनुराग जी द्वारा किये गए कहानी पाठ को सुनकर एक बात तो पता चली कि लेखक और प्रसतुतकर्ता दोनों का अपना महत्व है । एक घटना याद आ गई जब कवि प्रदीप ने अपना गीत ऐ मेरे वतन के लोगों पंडित नेहरू को सुनाया था तो पंडित जी बहुत प्रभावित नहीं हुए थे । किन्तु उसी गीत को जब लता जी ने सुनाया तो पंडित जी रो पड़े थे । अनुराग जी और हिंद युग्म को आभार । देर से टिप्पणी इसलिये दे रहा हूं कि बस आज ही लौटा हूं । शैलेष जी और सजीव जी दोनों को दिल्ली के कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिये भी आभार ।
अनुराग जी ,
श्रव्यता, कहानी को इतना रोचक भी बना सकती है ,कमाल है ,आज आपकी बात सौ फीसदी सही लग रही है की इस व्यस्त दुनिया में पढने की जगह सुनने को ही आगे बढाया जा सकता है ,पंकज जी की पलाश ,और ईस्ट इंडिया कंपनी की इस कहानी के साथ पूरा पूरा न्याय किया है |
pankaj ji bahut bahut badhai ,aapki ki is ist india ke vimochan ke liye .
downloading option is not coming...
plzz arrange it..!!
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