'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के साथ हम हाज़िर हैं। जैसा कि नवरात्री और दुर्गा पूजा की धूम मची हुई है चारों तरफ़, और आज है महानवमी। यानी कि नवरात्री की अंतिम रात्री और दुर्गा पूजा का भी अंतिम दिन। कल विजयादशमी के दिन दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन से यह उत्सव सम्पन्न होता है। तो क्यों ना आज इस अंक में हम माता रानी की आराधना करें।
दोस्तों, हमने महान कवि, दार्शनिक और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह जी से सम्पर्क किया कि वो अपने पिताजी के बारे में हमें कुछ बताएँ जिन्हें हम अपने पाठकों के साथ बाँट सकें। तब लावण्या जी ने ही यह सुझाव दिया कि क्यों ना नवरात्री के पावन उपलक्ष्य पर पंडित जी द्वारा संयोजित देवी माँ के कुछ भजन प्रस्तुत किए जाएँ। लावण्या जी के हम आभारी हैं कि उन्होंने हमारे इस निवेदन को स्वीकारा और ईमेल के माध्यम से हमें माँ दुर्गा के विविध रूपों के बारे में लिख भेजा और साथ ही पंडित जी के भजनों के बारे में बताया। तो आइए अब पढ़ते हैं लावण्या जी का ईमेल।
भारत के हर प्राँत मेँ देवी के विविध स्वरुप की पूजा होती है और भारत के कई शहर देवी के स्वरुप की आराधना के प्रमुख केन्द्र हैँ।
शक्ति पूजा की अधिष्ठात्री दुर्गा देवी पूरे बँगाल की आराध्या काली कलकत्ते वाली "काली" भी हैँ, और गुजरात की अम्बा माँ भी हैँ, पँजाब की जालन्धरी देवी भी वही हैँ तो विन्ध्य गुफा की विन्ध्यवासिनी भी वही माता रानी हैँ जो जम्मू मेँ वैष्णोदेवी कहलातीँ हैँ और त्रिकुट पर्बत पर माँ का डेरा है ॥ आसाम मेँ ताँत्रिक पूजन मेँ कामाख्या मँदिर बेजोड है ॥ तो दक्षिण मेँ वे कामाक्षी के मँदिर मेँ विराजमान हैँ और चामुण्डी परबत पर भी वही हैँ शैलपुत्री के रुप मेँ वे पर्बताधिराज हिमालय की पुत्री पार्बती कहलातीँ हैँ तो भारत के शिखर से पग नखतक आकर, कन्याकुमारी की कन्या के रुप मेँ भी वही पूजी जातीँ हैँ ॥ महाराष्ट्र की गणपति की मैया गौरी भी वही हैँ और गुजरात के गरबे और रास के नृत्य ९ दिवस और ९ रात्रि को माता अम्बिके का आह्वान करते हैँ .. शिवाजी की वीर भवानी रण मेँ युद्ध विजय दिलवाने वाली वही हैँ -- गुजरात में, माँ खोडीयार स्वरूप से माता पूजी जातीं हैं
आइये देवी माँ की भक्ति में डूब जाएँ स्वर साम्राज्ञी सुश्री लता मंगेशकर के गाये ये भजन सुनिए, शब्द संयोजन पण्डित नरेंद्र शर्मा (मेरे पिताजी) का है और संगीत से संवारा है पण्डित ह्रदयनाथ मंगेशकर जी ने ! ऐल्बम का नाम है : महिमा माँ जगदम्बा की !
तो ये था पंडिर नरेन्दर शर्मा जी की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह जी के ईमेल पर आधारित आज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड - ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने'। आप सभी को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए आज आप से आज्ञा ले रहे हैं, नमस्कार!
'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी "तरह तरह के बिच्छू" का पॉडकास्ट उन्ही की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं पाकिस्तानी लेखक अहमद सगीर सिद्दीकी की एक सामयिक कहानी "विभाजित", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।
कहानी "विभाजित" का कुल प्रसारण समय 8 मिनट 25 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।
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हमारे यहाँ की न्याय व्यवस्था किसी काम की नहीं है।
~ पाकिस्तानी लेखक अहमद सगीर सिद्दीकी हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी पुलिस का काम है मरम्मत आपकी।
(अहमद सगीर सिद्दीकी "विभाजित" से एक अंश)
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यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें: VBR MP3 #One hundred Seventh Story, Vibhajit: Ahmed Sagheer Siddiqui/Hindi Audio Book/2010/39. Voice: Anurag Sharma
'एक प्यार का नग़मा है', दोस्तों, सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी यह लघु शृंखला इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं 'आवाज़' के सांध्य-स्तंभ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। एल.पी एक ऐसे संगीतकार जोड़ी हुए जिन्होंने इतने ज़्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया है कि शायद ही कोई ऐसा समकालीन गायक होगा या होंगी जिन्होंने एल.पी के लिए गीत ना गाये होंगे। लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, मन्ना डे और आशा भोसले को सुनने के बाद आज बारी है गायक मुकेश की। उधर गीतकारों की बात करें तो आनंद बक्शी साहब ने लक्ष्मी-प्यारे के लिए सब से ज़्यादा गीत लिखे हैं, इसलिए ज़ाहिर है कि इस शृंखला में बक्शी साहब के लिखे कई गीत शामिल होंगे, लेकिन हमने इस बात को भी ध्यान रखा है कि कुछ दूसरे गीतकारों को भी शामिल करें जिन्होंने कम ही सही लेकिन बहुत उम्दा काम किया है एल.पी के साथ। हमनें दो ऐसे गीतकारों की रचनाएँ आपको सुनवाई हैं - राजेन्द्र कृष्ण और भरत व्यास। आज हम लेकर आये हैं राजा मेहन्दी अली ख़ान का लिखा एक गीत फ़िल्म 'अनीता' से। आपको याद होगा कि इस फ़िल्म का एक गीत हम पहले ही इस स्तंभ में सुनवा चुके हैं "तुम बिन जीवन कैसे बीता पूछो मेरे दिल से"। आज प्रस्तुत है मुकेश की ही आवाज़ में इस फ़िल्म का एक और ख़ूबसूरत गीत "गोरे गोरे चाँद से मुख पर काली काली आँखें हैं, देख के जिनको नींद उड़ जाये वो मतवाली आँखें हैं"। जितने सुंदर बोल, उतना ही मीठा कम्पोज़िशन। दोस्तों, कुछ गानें ऐसे होते हैं जो अपने फ़िल्मांकन की वजह से भी याद रह जाते हैं। अब इस गीत को ही लीजिए, यह ना केवल फ़िल्म का पहला गीत है, बल्कि फ़िल्म का पहला सीन भी है। इसी गीत से फ़िल्म शुरु होती है। साधना अपने कमरे में बैठी होती हैं सज सँवरकर, और बाहर से कोई यह गीत गा उठता है। लेकिन उसे कोई नज़र नहीं आता। फिर धीरे धीरे मनोज कुमार को बगीचे में पेड़ के पीछे से दिखता है कैमरा। इस तरह से गीत के ख़त्म होते होते नायिका का पिता घर से बाहर निकल जाता है तो मनोज कुमार साधना के कमरे में दाख़िल हो जाते हैं।
राज खोसला की इस फ़िल्म की कहानी सस्पेन्स से भरी है जिसमें नायिका अनीता के कई चरित्र नज़र आते रहते हैं और पूरी फ़िल्म एक राज़ बना रहता है आख़िर तक। अब जब राज़ की बात छेड़ ही दी है तो चलिए जिन लोगों ने यह फ़िल्म नहीं देखी है, उनके लिए फ़िल्म की थोड़ी सी भूमिका हम दे दें। अमीर बाप की बेटी अनीता (साधना) और ग़रीब नीरज (मनोज कुमार) एक दूसरे से प्यार करते हैं। जब अनीता अपने पिता से नीरज को मिलवाती है तो उसके पिता नीरज को क़बूल नहीं करते, और अनीता को सख़्त निर्देश देते हैं कि वो अनिल शर्मा नामक एक धनवान युवक से शादी कर ले। उसके बाद जब नीरज ने अनीता से सम्पर्क करने की कोशिश की, अनीता ने ही मना कर दिया और आख़िरकार अनिल से शादी कर ली। टूटा हुआ दिल लेकर नीरज वह शहर ही छोड़ देता है, लेकिन फिर भी वो उसे भुला नहीं पाता और दिल के किसी कोने में अपने प्यार की लौ को जलाये रखता है। एक दिन एक सड़क दुर्घटना में अनीता की मौत हो जाती है। जब नीरज को इस बात का पता चलता है तो उसे ज़रबरदस्त धक्का पहुँचता है। फिर एक दिन उसे पता चलता है कि एक औरत जिसकी शक्ल हू-ब-हू अनीता जैसी है एक बड़े होटल में डान्सर है। जब नीरज उसे ढूंढ़ते हुए होटल में जाता है तो अनीता उसे पहचानने से इन्कार कर देती है। (इसी सिचुएशन पर वह गाना है "क़रीब आ कि नज़र फिर मिले मिले ना मिले")। उधर नीरज एक गेरुआ वस्त्र में लिपटी औरत से भी मिलता है जिसकी शक्ल भी हू-ब-हू अनीता से मिलता है। यह औरत किसी आश्रम में सन्यासिन है और वो भी नीरज को पहचानने से इन्कार कर देती है। नीरज को कुछ समझ नहीं आता कि आख़िर माजरा क्या है! नीरज इस रहस्य के तह तक जाने की कोशिश करता है और इसी कोशिश के दौरन उसे पता चलता है कि उसके साथ धोखा हुआ है, प्यार में धोखा, जो उसे मौत की तरफ़ लिए जा रहा है। फ़िल्म के क्लाइमैक्स में क्या होता है, यह तो आप ख़ुद ही देखिएगा कभी, यह फ़िल्म अक्सर 'सब टीवी' पर आती रहती है। फिलहाल आपको सुनवा रहे हैं राजा मेहन्दी अली ख़ान और एल.पी का अन-युज़ुअल कम्बिनेशन का यह गीत फ़िल्म 'अनीता' से, सुनिए।
क्या आप जानते हैं... कि १९६७ ही वह पहला साल था कि जब लक्ष्मी-प्यारे ने लोकप्रिय गीतों की दौड़ में शंकर जयकिशन को पीछे छोड़ दिया था। एस.जे के 'दीवाना', 'छोटी सी मुलाक़ात', 'गुनाहों का देवता', 'अराउण्ड दि वर्ल्ड', 'हरे कांच की चूड़ियाँ' और 'रात और दिन' जैसी फ़िल्मों के मुक़ाबले एल.पी के 'अनीता', 'फ़र्ज़', 'मिलन', 'शागिर्द', 'नाइट इन लंदन', 'पत्थर के सनम' और 'तक़दीर' के गानें सर चढ़ कर बोले।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०४ /शृंखला ०१ ये धुन उस गीत के प्रिल्यूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र - हिंदुस्तान की सबसे मशहूर पौराणिक गाथा का सुन्दर चित्रण है गीत में
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक सवाल २ - इस फ़िल्म का एक लता-रफ़ी डुएट उस साल बिनाका गीतमाला का चोटी का गीत बना था। फिल्म का नाम बताएं - १ अंक सवाल ३ - इसी फ़िल्म के संगीत के लिए एल.पी को उस साल का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला था। फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री का नाम बताएं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम - वाह श्याम कान्त जी लगता है इस पहली शृंखला में आप शरद जी को अच्छी टक्कर देने वाले हैं, ४ अंक हुए आपके, प्रतिभा जी बहुत दिनों बाद लौटी हैं सही जवाब के साथ, स्वागत. अमित जी के भी १ अंक से खाता खुला है, बिट्टू जी चूक गए. सुकांत आपकी भावनाओं की हम कद्र करते हैं, धन्येवाद जो आपने इतना मान दिया, मगर अगर आप सारे सवालों के जवाब दे देंगें तो बाकी श्रोता फिर कुछ कह नहीं पायेंगें...बस यही दिक्कत है :)
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीतबद्ध गीतों की शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है' की चौथी कड़ी में आज आवाज़ आशा भोसले की। युं तो लक्ष्मी-प्यारे के ज़्यादातर गानें लता जी ने गाए हैं, आशा जी के इनके लिए गीत थोड़े कम हैं। लेकिन जितने भी गानें हैं, उनमें आज जो गीत हम आपको सुनवाने के लिए लाए हैं, वह एक ख़ास मुकाम रखता है। यह है फ़िल्म 'आये दिन बहार के' का गीत "ख़त लिख दे सांवरिया के नाम बाबू, वो जान जाएँगे, पहचान जाएँगे"। दोस्तों, एक ज़माना ऐसा था कि जब फ़िल्मों में चिट्ठी और ख़त पर गानें बना करते हैं। बहुत से गानें हैं इस श्रेणी के। यहाँ तक कि ९० के दशक में भी ख़त लिखने पर कई गीत बनें हैं, मसलन, फ़िल्म 'खेल' का गीत "ख़त लिखना है पर सोचती हूँ", फ़िल्म 'दुलारा' में "ख़त लिखना बाबा ख़त लिखना", फ़िल्म 'बेख़ुदी' में "ख़त मैंने तेरे नाम लिखा, हाल-ए-दिल तमाम लिखा", फ़िल्म 'जीना तेरी गली में' का "जाते हो परदेस पिया, जाते ही ख़त लिखना" आदि। लेकिन २००० के दशक के आते ही ईमेल क्रांति इस समाज पर ऐसे हावी हो गई कि लोग जैसे काग़ज़ पर ख़त लिखना ही भूल बैठे। ज़रा पीछे मुड़कर देखिए और याद कीजिए कि कब आपने काग़ज़ पर अंतिम बार किसी को पत्र लिखा था। मुझे याद है साल २००३ के बाद ना मैंने अपने किसी मित्र को पत्र लिखा और ना ही किसी रेडियो स्टेशन को, जो मैं बचपन से करता आया हूँ। और दोस्तों, क्योंकि हमारी फ़िल्में हमारे समाज का ही आइना होती हैं, इसलिए ख़तों का ज़िक्र फ़िल्मी गीतों से भी लुप्त हो गया। आज किसी फ़िल्म में ख़त लिखने की बात नहीं होती। दूसरे और पहलुओं की तरह यह कोमल और मासूम सा पहलु भी फ़िल्मी गीतों से ग़ायब हो गया। हमें यक़ीन है कि आज के इस गीत को सुनते हुए आपको वह ख़त लिखने का ज़माना ज़रूर याद आ जाएगा। इस गीत का शुरुआती शेर भी बड़ा ख़ूबसूरत है जिसमें गीतकार आनंद बक्शी साहब कहते हैं कि "अब के बरस भी बीत ना जाए ये सावन की रातें, देख ले मेरी ये बेचैनी और लिख दे दो बातें"।
आशा भोसले ने यह गीत पर्दे पर फ़िल्म की नायिका आशा पारेख के लिए गाया था। आशा जी की आवाज़ की जो ख़ास बातें हैं, जो लचक है, जो शोख़ी है, वो इस गीत में साफ़ साफ़ सुनाई देती है। गीत को सुनते हुए जैसे सचमुच ऐसा लगता है कि कोई गाँव की लड़की ही गीत को गा रही है। शायद उनकी इसी खासियत के लिए एल.पी ने यह गीत लता जी के बजाए आशा जी से गवाना बेहतर समझा। वैसे एल.पी आशा जी से थोड़े दूर दूर ही रहे हैं। लीजिए यही बात प्यारेलाल जी के शब्दों में ही जान लीजिए जो वो बता रहे हैं विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में।
कमल शर्मा: प्यारे जी, लता जी की बहन आशा जी, वो भी बहुत वर्सेटाइल, और उन्होंने भी बहुत योगदान दिया है फ़िल्म संगीत को। और उन्होंने भी गानें आपके संगीत निर्देशन में गाए हैं। आशा जी का कैसे मूल्यांकन करते हैं, कैसे उनकी प्रतिभा का?
प्यारेलाल: क्या बात है, दरअसल क्या है, देखिए, ये दो दो अक्षर जो हैं, ये बहुत कम होते हैं, ये लता जी जो हैं, ऐसे ही मैं आशा जी के लिए बात कर रहा हूँ, वैसे ही रफ़ी साहब। लता, दो अक्षर, आशा, दो अक्षर, रफ़ी, दो अक्षर, ऐसे नहीं, और भी हैं, लेकिन आशा जी की क्या बात है! वैसे हमें कम मौका मिला उनके साथ गाना करने का, और उनके गानें हम जो सुनते हैं, हमारे भी सुनते हैं और भी जो उन्होंने गाये हैं, वो भी सुनते हैं, तो उनमें कितनी ख़ूबियाँ हैं, सब गानें अच्छे, बहुत अच्छे गाये हैं। क्या है ना, हम लोग भी थोड़े से वो हैं, कि जो अच्छे गानें हैं लता जी को दे देते हैं, और जो ऐसे गानें हैं, वो हमारी ग़लती है, लेकिन हमारे लिए जैसे लता जी, वैसे आशा जी। आशा जी को मैं उतनी इज़्ज़त देता हूँ जितनी लता जी को देता हूँ, फ़रक इतना है कि हमने उनके साथ काम कम किया है, लेकिन अगर आप दोनों को तोलें तो दोनों १००% गोल्ड हैं। लता जी अगर लता जी हैं तो आशा जी आशा जी हैं। इतना है कि हम आशा जी से थोड़ा डरते हैं, बहुत ग़ुस्सेवाली हैं वो।
कमल शर्मा: प्यारे जी, कोई गाना जो उन्होंने आपके लिए गाया और आपको बहुत पसंद है?
प्यारेलाल: "ख़त लिख दे"।
तो लीजिए दोस्तों, प्यारेलाल जी का फ़ेवरीट आशा नंबर हम सब मिलकर सुनते हैं। फ़िल्म 'आये दिन बहार के' के तमाम डिटेल्स हम पहले ही आपको उस दिन दे चुके हैं जिस दिन इस फ़िल्म का शीर्षक गीत आपको सुनवाया था कड़ी क्रमांक ३७० में। बस इतना बताते चलें कि यह गीत खमाज पर आधारित है।
क्या आप जानते हैं... कि 'आये दिन बहार के' (१९६६) लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत सफ़र की बड़े सितारों वाली पहली महत्वपूर्ण फ़िल्म थी।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०३ /शृंखला ०१ ये धुन उस गीत के पहले इंटरल्यूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र -१९६७ की फिल्म है ये, और गीत है मुकेश की आवाज़ में, और भी कुछ सूत्र हैं जो नीचे के प्रश्नों में छुपे हैं, ढूंढ निकालिए
सवाल १ - गीतकार वो हैं जिन्होंने मदन मोहन साहब के साथ बहुत अधिक काम किया है, नाम बताएं- १ अंक सवाल २ - फिल्म का शीर्षक नायिका के नाम पर ही है, नाम बताएं - १ अंक सवाल ३ - नायक, नायिका के चाँद से चेहरे की तारीफ़ कर रहा है गीत में, किस अभिनेता पर फिल्माया गया है ये गीत - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम - सुकान्त जी आपका महफ़िल में आना बेहद सुखद लगा, आपने पहेली से पहले कुछ जानकारियाँ भी बांटी, जिसकी हमें हर श्रोता से उम्मीद रहती है, बस जरा नियमों को पढ़ने में चूक कर गए. इस बार तो आपको अंक नहीं दे पायेंगें पर उम्मीद करेंगें कि आप आगे भी सही जवाब देकर हम सब का दिल जीत लेंगें, और शरद जी जो अब ६ अंकों पर हैं उन्हें टक्कर दे पायेंगें बिलकुल वैसे ही जैसे इस वक्त श्याम कान्त (२) जी व अन्य प्रतिभागी दे रहे हैं, बधाई
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
'एक प्यार का नग़मा है' - फ़िल्म संगीत जगत की सुप्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के स्वरबद्ध गीतों से सजी इस लघु शृंखला की तीसरी कड़ी में हम आप सब का स्वागत करते हैं। आनंद बक्शी और राजेन्द्र कृष्ण के बाद आज जिस गीतकार के शब्दों को एल.पी अपने धुनों से सजाने वाले हैं, उस महान गीतकार का नाम है भरत व्यास, जो एक गीतकार ही नहीं एक बेहतरीन हिंदी के कवि भी हैं और उनका काव्य फ़िल्मी गीतों में भी साफ़ दिखाई देता है। व्यास जी ने शुद्ध हिंदी का बहुत अच्छा इस्तेमाल फ़िल्मी गीतों में भी किया और इस तरह से बहुत सारे स्तरीय गीत फ़िल्म जगत को दिए। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ जब उनकी बात चलती है तो एक दम से हमारे दिमाग़ में जिस फ़िल्म का नाम आता है, वह है 'सती सावित्री'। इस फ़िल्म के गानें तो भरत व्यास जी के गीतों की कड़ियों में बहुत बाद में दर्ज हुआ; सन् १९४९ में वे मिले संगीतकार खेमचंद प्रकाश से और इन दोनों ने लुभाना शुरु कर दिया अपने श्रोताओं को। 'ज़िद्दी', 'सावन आया रे', 'तमाशा' आदि फ़िल्मों में इन दोनों ने साथ साथ काम किया। ५० के दशक में भरत व्यास के धार्मिक और ऐतिहासिक फ़िल्मी गीत ख़ूब लोकप्रिय हुए जिनमें 'रानी रूपमती' और 'जनम जनम के फेरे' सब से उल्लेखनीय रहे। हिंदी के जटिल शब्दों को बड़े ख़ूबसूरत अंदाज़ में उन्होंने गीतों में ढाला और आम जनता में उन्हें लोकप्रिय कर दिखाया। १९६४ की फ़िल्म 'सती सावित्री' की बात करें तो इस फ़िल्म के गानें शास्त्रीय रंग लिए हुए हैं जिन्हें लक्ष्मी-प्यारे ने बड़े ही सुंदर तरीके से कॊम्पोज़ किए। इस फ़िल्म के तमाम सुमधुर गीतों में एक युगल गीत था लता मंगेशकर और मन्ना डे का गाया हुआ, जो शुद्ध कल्याण रूपक ताल पर आधारित एक बेहद सुंदर, कोमल, और निष्पाप प्रेम के भावनाओं से सराबोर गीत था। "तुम गगन के चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ, तुम प्रणय के देवता हो मैं समर्पित फूल हूँ"। किसी फ़िल्मी गीत में प्रणय की अभिव्यक्ति का इससे सुंदर और काव्यात्मक उदाहरण और क्या हो सकता है भला!
'सती सावित्री' सन् १९६४ की फ़िल्म थी, यानी कि एल.पी के स्वतंत्र संगीतकर बनने के बाद शुरुआती सालों का एक फ़िल्म। शांतिलाल सोनी निर्देशित इस धार्मिक फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे महिपाल, अंजली देवी, जीवन, बी. एम. व्यास, रामायण तिवारी, अरुणा ईरानी, मोहन चोटी, निरंजन शर्मा आदि। युं तो ऐसा अक्सर देखा गया उस ज़माने में कि जिस कलाकार ने भी धर्मिक और ऐतिहासिक फ़िल्मों में काम किया, उस जौनर की मोहर उन पर लग गई और उसके बाद उस जौनर में से निकल पाना बेहद मुश्किल साबित हुआ। कल्याणजी-आनंदजी ने अपने करीयर के शुरु शुरु में ऐसे कई फ़िल्मों को ठुकरा दिया था इसी डर से। लेकिन लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने यह रिस्क लिया और 'सती सावित्री' में संगीत देने के लिए तैयार हो गए यह जानते हुए भी कि इस फ़िल्म का बाकी जो टीम है वह पूरा का पूरा माइथोलोजिकल जौनर का है। लेकिन शायद यह उनकी काबिलियत ही रही होगी कि वो इस जौनर में नहीं फँसे और अपने वर्सएटायलिटी को बरकरार रखा। और लीजिए अब प्यारेलाल जी के शब्दों में सुनिए आज के प्रस्तुत गीत के बनने की कहानी जो उन्होंने विविध भारती के उसी इंटरव्यू में कहे थे कमल शर्मा को। "एक बात कहूँ मैं, यह जो पिक्चर थी 'सती सावित्री', इसमें एक गाना है, एक पिक्चर बन रही थी भगवान मिस्त्री की, 'राम बाण', या कोई और, ठीक से याद नहीं मुझे, राम के उपर बड़ी पिक्चर बन रही थी, कलर पिक्चर, उसमें एक गाना था, उसमें म्युज़िक दे रहे थे वसंतराव देसाई, और भरत (व्यास) जी गाना लिख रहे थे। अब यह गाना जो है, "तुम गगन के चन्द्रमा हो", मैं इसलिए कह रहा हूँ, कि यह गाना जो है उन्होंने उस फ़िल्म के लिए लिखा था, जिसमें राम और सीता गाते हैं। तो वह गाना ना वहाँ पर हुआ, और एक जगह दे रहे थे भरत जी, वहाँ भी नहीं हुआ, उन्होंने हम लोगों से कहा कि 'बेटे, बहुत प्यार करते थे हम लोगों को, कहने लगे कि तुम लोग यह गाना कॊम्पोज़ करो। तो यह गाना हमने बाद में कॊम्पोज़ किया, लेकिन लिखा पहले है, धुन बाद में बनी।"
और दोस्तों, शायद इसी वजह से इस गीत में जान डल गई है। तो लीजिए पहले राम और सीता के किरदारों के लिए लिखा यह गीत, जो बाद में सावित्री सत्यवान के किरदारों पर फ़िल्माया गया, सुनते हैं लता जी और मन्ना दा की आवाज़ों में। इसे सुन कर एक अजीब सी शांति मिलती है मुझे, क्या आपको भी?
क्या आप जानते हैं... कि १९६९ में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को ईरान में बनने वाली एक फ़िल्म में संगीत देने के लिए अनुबंधित किया गया था। यह ना केवल उनकी उपलब्धि थी बल्कि पूरे देश के लिए गौरव की बात थी।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०३ /शृंखला ०१ ये धुन उस गीत के प्रीलियूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र -मुखड़े में "खत" शब्द है और नायिका परदेस में बैठे प्रेमी से वापस आने की गुहार कर रही है
सवाल १ - लोक रंग में रंगे इस गीत के गीतकार कौन हैं - २ अंक सवाल २ - गायिका बताएं - १ अंक सवाल ३ - किस नायिका पर फिल्माया गया था ये गीत - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम - शरद जी सही जवाब, २ अंक और...अवध जी आपका अंदाजा एकदम सही है, बिट्टो जी, आपको भी १ अंक की बहुत बधाई. अमित जी और श्याम कान्त जी....लगे रहिये....शंकर लाल जी मुस्कुरा रहे हैं.....उम्मीद है आज का अतिरिक्त सूत्र आपकी दिक्कतें आसान कर देगा.
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
विश्व दीपक - 'ताज़ा सुर ताल' के सभी श्रोताओं व पाठकों को मेरा नमस्कार और सुजॊय जी, आपको भी!
सुजॊय - नमस्कार! विश्व दीपक जी, आज भी हम पिछले हफ़्ते की तरह दो फ़िल्में लेकर हाज़िर हुए हैं। साल के इन अंतिम महीनो में बहुत सी फ़िल्में प्रदर्शित होती हैं, और इसीलिए बहुत से नए फ़िल्मों के गानें इन दिनों जारी हो रहे हैं। ऐसे में ज़रूरी हो गया है कि जहाँ तक सभव हो हम दो दो फ़िल्मों के गानें इकट्ठे सुनवाएँ। आज के लिए जिन दो फ़िल्मों को हमने चुना है, उनमें एक है ख़ौफ़ और मौत के करीब एक कहानी, और दूसरी है ज़िंदगी से लवरेज़। अच्छा विश्व दीपक जी, क्या आप भूत प्रेत पर यकीन रखते हैं?
विश्व दीपक - देखिए, यह एक ऐसा विषय है कि जिस पर घण्टों तक बहस की जा सकती है। बस इतना कह सकता हूँ कि गीता में यही कहा गया है कि आत्मा अजर और अमर है, वह केवल शरीर बदलता रहता है। वैज्ञानिक दृष्टि से इसका क्या एक्स्प्लेनेशन है, यह तो विज्ञान ही बता सकता है।
सुजॊय - चलिए इतन बताइए कि फ़िल्मी आत्माओं के बारे में आपके क्या विचार हैं?
विश्व दीपक - हाँ, यह एक मज़ेदार सवाल आपने पूछा है। एक पुरानी हवेली, धुंद, पूनम का पूरा चाँद, पेड़ों पर सूखी टहनियाँ, सूखे पत्तों की सरसराहट, एक बूढ़ा चौकीदार जिसकी उम्र का अंदाज़ा लगा पाना किसी के बस की बात नहीं, ये सब हॊरर फ़िल्मों की बेसिक ज़रूरतें हैं। फ़िल्मी आत्माएँ रात के ठीक १२ बजे वाक पर निकलती हैं। वैसे आजकल उन्हें बहुत से टी.वी चैनलों पर रोज़ देखा जा सकता है और उन्हें भरपूर काम मिलने लगा है। फ़िल्मी आत्माओं को अपने बालों को बांधना गवारा नहीं होता, उन्हें खुला छोड़ना ही ज़्यादा पसंद है। एक और ख़ास बात यह कि फ़िल्मी आत्माओं को गीत संगीत में ज़बरदस्त रुचि होती है। बड़े ही सुर में गाती हैं, दिन भर घंटों रियाज़ करने के बाद रात १२ बजे ओपन एयर में अपनी गायकी के जल्वे प्रस्तुत करने निकल पड़ती हैं।
सुजॊय - वाह, क्या सही पहचाना है आपने! मैं भी कुछ जोड़ दूँ इसमें? फ़िल्मी और तेलीविज़न आत्माओं का पसंदीदा रंग होता है सफ़ीद। जॊरजेट उनकी पसंदीदा साड़ी है और एक नहीं बहुत सी होती हैं। तभी तो बरसों बरस भटकने के बावजूद हर रोज़ उनकी साड़ी उतनी ही सफ़ेद दिखाई देती है कि जैसे किसी डिटरजेण्ट का ऐड कर रही हों। मोमबत्ती का बड़ा योगदान है इन आत्माओं के जीवन में। आधुनिक रोशनी के सरंजाम उन्हें पसंद ही नहीं है।
विश्व दीपक - सुजॊय, फ़िल्मी आत्माओं की हमने बहुत खिंचाई कर ली, अब इस मज़ाक को विराम देते हुए सीरियस हो जाते हैं और अपने पाठकों को बता देते हैं कि आज की पहली फ़िल्म है 'अ फ़्लैट'। यह लेटेस्ट हॊरर फ़िल्म है अंजुम रिज़्वी की, जिसे निर्देशित किया है हेमन्त मधुकर ने। जिम्मी शेरगिल, संजय सुरी, हज़ेल, कावेरी झा और सचिन खेड़ेकर। बप्पी लाहिड़ी के सुपुत्र बप्पा लाहिड़ी का संगीत है इस फ़िल्म में, और फ़िल्म में गानें लिखे हैं विराग मिश्र ने। तो आइए पहला गाना सुनते हैं कैलाश खेर और सुज़ेन डी'मेलो की आवाज़ों में।
गीत - मीठा सा इश्क़ लगे, कड़वी जुदाई
सुजॊय - "मीठा सा इश्क़ लगे, कड़वी जुदाई, यार मेरा सच्चा लागे, झूठी ख़ुदाई, चांदनी ने तन पे मेरे चादर बिचाई, ओढ़ा जो तूने मुझको सांस लौट आई", विराग मिश्र के ये बोलों में वाक़ई जान है। विराग मिश्र क नाम सुनते ही मुझे यकायक कवि वीरेन्द्र मिश्र की याद आ गई। कहीं ये उनके सुपुत्र तो नहीं! ख़ैर, इन दिनों राहत फ़तेह अली ख़ान की आवाज़ ही ज़्यादा सुनाई दे रही थी, कैलाश खेर कहीं दूर से हो गए थे। बहुत दिनों के बाद इनकी आवाज़ सुन कर अच्चा लगा। कैलाश की आवाज़ में कुछ ऐसी बात है कि सीधे दिल पर असर करती है।
विश्व दीपक - गीत के ओपेनिंग म्युज़िक में सस्पेन्स झलकता है। यानी कि जिसे हम हौंटिंग नोट कहते हैं। सुज़ेन की आवाज़ भी इस गीत के फ़्युज़न मूड के साथ चलती है, और एक सस्पेन्स और हॊरर का अंदाज़ भी उसमें महसूस किया जा सकता है। इस गीत के दो रीमिक्स वर्ज़न भी है, 'अनप्लग्ड' और 'पार्टीमैप मिक्स'।
सुजॊय - आइए अब फ़िल्म का दूसरा गाना सुना जाए जिसे सोनू निगम, तुल्सी कुमार, राजा हसन और अदिती सिंह शर्मा ने गाया है। बोल हैं "दिल कशी"।
गीत - दिल कशी
विश्व दीपक - सोनू निगम का नाम किसी भी ऐल्बम पर देख कर दिल को चैन मिलता है कि चलो कम से कम एक गाना तो इस ऐल्बम में ज़रूर सुनने लायक होगा। और सोनू हर बार सब की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं। कशिश भरे गीतों को वो बड़ा ख़ूबसूरत अंजाम देते हैं। और आजकल तो वो चुनिंदे गीत ही गा रहे हैं, इसलिए सुनने वालों की उम्मीदें उन पर लगी रहती हैं और इंतज़ार भी रहता है उनके गीतों का। तुलसी कुमार, जिनसे हिमेश रेशम्मिया ने बहुत से गानें गवाये हैं, उन्हें इस गीत में सोनू के साथ गाने का मौका मिला और उनका पोरशन भी कम नहीं है इस गीत में।
सुजॊय - लेकिन राजा हसन और अदिती सिंह शर्मा को गीत के शुरुआत में ही सुना जा सकता है। गीत की बात करें तो यह पूरी तरह से सोनू का गीत है और उनका जो एक स्टाइल है टिपिकल नशीले अंदाज़ में गाने का, इस गीत में भी वही अंदाज़-ए-बयाँ है। सोनू के इस जौनर के गानें अगर आपको पसंद आते हैं तो यह गीत भी ज़रूर पसंद आयेगा।
विश्व दीपक - फ़िल्म का तीसरा गाना है सुनिधि चौहान, राजा हसन, और बप्पा लाहिड़ी की आवाज़ों में, "चल हल्के हल्के"।
गीत - चल हल्के हल्के
सुजॊय - पूर्णत: सुनिधि चौहान का यह गीत है, राजा और बप्पा ने तो बस सहगायकों की भूमिका निभाई है। एक मस्त गाना जो एक जवान चुलबुली लड़की गाती है जो अपने मन के साथ चलती है और बाहरी दुनिया के किसी चीज़ के बारे में नहीं सोचती। ठीक ठाक गाना है, कोई नयी या ख़ास बात नज़र नहीं आई।
विश्व दीपक - अब तक तीन गानें हमने सुनें, लेकिन कोई भी गाना ऐसा नहीं महसूस हुआ जो एक लम्बी रेस का घोड़ा साबित हो सके। सभी गानें अच्छे हैं, लेकिन वह बात नहीं जिसे सुनने वाले कैच कर ले और गाने को कामयाबी की बुलंदी तक पहुँचाए। लेकिन यह याद रखते हुए कि बप्पा ने अभी अपना करीयर शुरु ही किया है, तो चलिए उन्हें यह मौका तो दे ही दिया जा सकता है। फ़िल्म का अंतिम गीत अब सुनने जा रहे हैं श्रेया घोषाल की आवाज़ में।
सुजॊय - "प्यार इतना ना कर" भी एक प्रेडिक्टेबल ट्रैक है। "ज़रा ज़रा बहकता है" जौनर का गाना है और श्रेया तो ऐसे गानें गाती ही रहती हैं, शायद इसीलिए मैंने "प्रेडिक्टेबल" शब्द का इस्तेमाल किया। चलिए आप ख़ुद ही सुनिए और अपनी राय दीजिए।
गीत - प्यार इतना ना कर
विश्व दीपक - एक बात आपने नोटिस की सुजॊय, कि 'अ फ़्लैट' एक हॊरर फ़िल्म है, लेकिन इसमें कोई भी गीत उस तरह का नहीं है। अब तक जितने भी इस तरह की फ़िल्में बनी हैं, सब में कम से कम एक गीत तो ऐसा ज़रूर होता है जो फ़िल्म के शीर्षक के साथ चलता है। ख़ैर, हॊरर, ख़ौफ़, और मौत के चंगुल से बाहर निकलकर आइए अब हम बैठते हैं 'लाइफ़ एक्स्प्रेस' में।
सुजॊय - 'लाइफ़ एक्स्प्रेस' एक कम बजट फ़िल्म है जिसमें संगीत है रूप कुमार राठौड़ का। इसलिए इस ऐल्बम से कुछ सुरीलेपन की उम्मीद ज़रूर की जा सकती है। संजय कलाटे निर्मित इस फ़िल्म के निर्देशक हैं अनूप दास और गीतकार हैं शक़ील आज़्मी। फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं रितुपर्णा सेनगुप्ता, दिव्या दत्ता, किरण जंगियानी, यशपाल शर्मा। फ़िल्म का पहला गाना सुनते हैं उदित नारायण और श्रेया घोषाल की आवाज़ों में।
गीत - फीकी फीकी सी लगे ज़िंदगी
विश्व दीपक - सुंदर कम्पोज़िशन और एक टिपिकल उदित - अल्का डुएट। माफ़ कीजिएगा, अल्का नहीं, बल्कि अब श्रेया आ गई हैं।
सुजॊय - वैसे श्रेया को पूरा सम्मान देते हुए मैं यह कहना चाहूँगा कि इस गीत में उदित जी के साथ अल्का याज्ञ्निक की आवाज़ ज़्यादा मेल खाती, और जैसे ९० का वह ज़माना भी याद आ जाता!
विश्व दीपक - गीत के बारे में यही कह सकता हूँ कि एक आम रोमांटिक डुएट है, स्वीट ऐण्ड सिम्पल, लेकिन इस तरह के गानें पहले भी बहुत बने हैं। कुछ कुछ 'कोई मिल गया' के शीर्षक गीत की तरह प्रतीत होता है।
सुजॊय - फ़िल्म का दूसरा गीत है स्वयं रूप कुमार राठौड़ की आवाज़ में।
गीत - थोड़ी सी कमी रह जाती है
विश्व दीपक - बहुत ही सुंदर कम्पोज़िशन, दर्द भी है, दर्शन भी है, रोमांस भी है, गीत के बोल ज़रूर "थोड़ी सी कमी रह जाती है" है, लेकिन गीत में कोई भी कमी नज़र नहीं आई।
सुजॊय - वाह, क्या बात कही है आपने! सही में मैं भी रूप कुमार राठौड़ से कुछ इसी तरह के एक गीत की उम्मीद कर रहा था इस ऐल्बम में। संगीत के साथ साथ उन्होंने अपनी आवाज़ से इस गीत को पूर्णता को पहुँचाया है। शायद इसीलिए उन्होंने इसे गाया होगा ताक़ि वो जिस तरह से चाहते थे, उसी तरह का अंजाम इस गीत को मिले।
विश्व दीपक - रूप साहब एक अच्छे गायक तो हैं ही, उन्होंने कुछ फ़िल्मों में इससे पहले भी संगीत दे चुके हैं, जिनमें शामिल हैं - 'वो तेरा नाम था' (२००४), 'मधोशी' (२००४), और 'ज़हर' (२००५)। आइए अब आगे बढ़ा जाए और सुनते हैं जगजीत सिंह की आवाज़ में एक प्रार्थना, "फूल खिला दे शाख़ों पर"।
गीत - फूल खिला दे शाख़ों पर
सुजॊय - बहुत ही गहराई और गंभीर सुनाई दी जगजीत साहब की आवाज़, और इस गीत को ऐसी ही आवाज़ की ज़रूरत थी इसमें कोई शक़ नहीं है। इस गीत के लिए जगजीत सिंह को चुनने के लिए रूप कुमार राठौड़ को दाद देनी ही पड़ेगी। कम से कम साज़ों के इस्तेमाल से इस गीत में और ज़्यादा असर पैदा हो गई है। इस गीत में वायलिन पर जो पीस बार बार आता है, उसी धुन का इस्तेमाल पहले किसी गीत में हो चुका है, लेकिन मुझे बिल्कुल याद नहीं आ रहा कि कौन सा गाना है। शायद अल्का याज्ञ्निक का गाया कोई गाना है।
विश्व दीपक - बोल भी बहुत अच्छे लिखे हैं शक़ील साहब ने। "वक़्त बड़ा दुखदायक है, पापी है संसार बहुत, निर्धन को धनवान बना, निर्बल को बल दे मालिक, कोहरा कोहरा सर्दी है काँप रहा है पूरा गाँव, दिन को तपता सूरज दे रात को कम्बल दे मालिक, बैलों को एक गठरी गाँस इंसानों को दो रोटी, खेतों को भर दे गेहूँ से, काँधों को हल दे मालिक, हाथ सभी के काले हैं, नज़रें सब की पीली हैं, सीना ढाम्प दुपट्टे से सर को आँचल दे मालिक"। ज़िंदगी की बेसिक ज़रूरतों की याचना मालिक से किया जा रहा है इस गीत में। बहुत सुंदर!!!
सुजॊय - और अब आज की प्रस्तुति का अंतिम गीत समूह स्वरों में। यह एक लोरी है, लेकिन कुछ अलग क़िस्म का है। आम तौर पर लोरी में कम से कम साज़ों का इस्तेमाल होता है क्योंकि निंदिया रानी को दावत दी जा रही होती है। लेकिन इस समूह लोरी में रीदम का भी इस्तेमाल किया गया है। सुंदर कम्पोज़िशन है।
विश्व दीपक - "झूले झूले पालना, बन्नी झूले पालना, उड़ ना जाए उड़न खटोला, धीरे से उछालना"। सुनते हैं....
गीत - झूले झूले पालना
सुजॊय - 'अ फ़्लैट' और 'लाइफ़ एक्स्प्रेस' के गानें हमने सुनें। 'अ फ़्लैट' की बात करें, तो एक ही गीत जो मुझे अच्छा लगा वह है कैलाश खेर का गाया "मीठा सा इश्क़ लगे"। और जहाँ तक 'लाइफ़ एक्स्प्रेस' की बात है, इस फ़िल्म के सभी गानें जो हमने सुनें, मुझे अच्छे लगे हैं। जैसा कि आपने कहा था पिछले हफ़्ते, हम रेटिंग का सिल्सिला भी समाप्त करते हैं। लेकिन हम अपने सभी श्रोता व पाठकों से निवेदन कर रहे हैं कि इन नये गीतों को भी सुनें और टिप्पणी में अपनी राय लिखें।
विश्व दीपक - सुजॉय जी, मैंने रेटिंग का सिलसिला समाप्त करने की मांग एक खास वज़ह से की थी। अक्सर ऐसा होता है कि अगर किसी एलबम का एक हीं गाना अच्छा हो तो पूरे एलबम की रेटिंग बहुत नीचे चली जाती है और उस स्थिति में पाठक/श्रोता की नज़र में एलबम का मोल बड़ा हीं कम हो जाता है। अब चूँकि हमारी रेटिंग ३ से ४.५ के बीच हीं होती थी तो जिस एलबम को ३ मिले, वह एलबम बाकियों से निस्संदेह कमजोर होगा। और हम तो कई सारे एलबमों को ३ की रेटिंग दिया करते थे, यानि सब के सब कमजोर। अब कमजोर एलबम पर कौन-सा श्रोता अपना समय नष्ट करना चाहेगा। फिर तो हमारी सारी की सारी मेहनत मिट्टी में हीं मिल गई। हम चाहते थे कि श्रोता अपने विचार रखे, लेकिन विचार तो तब हीं आएँगे ना, जब कोई उन गानों को सुनेगा। बस यही सोचकर मैंने आपसे, सजीव जी से और सभी श्रोताओं से रेटिंग हटाने/हटवाने की दरख्वास्त की थी। आप से और सजीव जी से हरी झंडी पाकर मुझे बहुत खुशी हो रही है। जब मैंने सजीव जी से इस बात का ज़िक्र किया तो उन्होंने मेरी मांग पर मुहर लगाने के साथ-साथ एक सलाह भी दी। उनका कहना था कि अगर हम श्रोताओं को इतना बता दें कि कौन-सा गीत सबसे अच्छा है और कौन-सा सबसे कमजोर तो श्रोताओं को एक सिलसिलेवार ढंग से गीत सुनने में सहूलियत होगी। श्रोता सबसे अच्छा गीत सबसे पहले सुनकर अपने दिन की बड़ी हीं खूबसूरत शुरूआत कर सकता है। मुझे उनका ख्याल बड़ा हीं नेक लगा। और इसी कारण से मैं आज के उन दो गीतों को "चुस्त-दुरुस्त गीत" और "लुंज-पुंज गीत" के तमगों से नवाज़ते हुए नीचे पेश कर रहा हूँ। यह निर्णय मैंने बड़ी जल्दी में ले लिया है, इसलिए सुजॉय जी आपसे और सभी श्रोताओं से मेरा यह आग्रह है कि यह जरूर बताएँ कि रेटिंग हटाकर "आवाज़ की राय में" शुरू करने का निर्णय कितना सही है और कितना गलत। चलिए तो इन्हीं बातों के साथ मैं आज़ की समीक्षा के समाप्त होने की विधिवत घोषणा करता हूँ। अगली कड़ी में फिर से मुलाकात होगी।
'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'। कल हमने गीतकार आनंद बख्शी की रचना सुनी थी लता मंगेशकर की आवाज़ में। और बख्शी साहब और लता जी, दोनों ने ही लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ अपना सब से ज़्यादा काम किया है। आज हम जिस गीत को लेकर उपस्थित हुए हैं, उसे लिखा है राजेन्द्र कृष्ण साहब ने। रफ़ी साहब की आवाज़ में फ़िल्म 'इंतक़ाम' का यह गीत है "जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा, तो ऐ दिल मोहब्बत की क़िस्मत बना दे, तड़प और तड़प कर अभी जान दे दे, युं मरते हैं मर जानेवाले, दिखा दे जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा"। इसमें कोई शक़ नहीं कि लक्ष्मी-प्यारे के इस गीत को रफ़ी साहब ने जिस अंदाज़ में गाया है, उससे गीत का भाव बहुत ख़ूबसूरत तरीक़े से उभरकर सामने आया है, लेकिन इस गीत को समझना थोड़ा मुश्किल सा लगता है। गीत के शब्दों को सुनते हुए दिमाग़ पर काफ़ी ज़ोर लगाना पड़ता है इसमें छुपे भावों को समझने के लिए। लेकिन इससे इस गीत की लोकप्रियता पर ज़रा सी भी आँच नहीं आई है और आज भी बहुत से लोगों का यह फ़ेवरीट रफ़ी नंबर है। यहाँ तक कि सुरों की मल्लिका लता मंगेशकर का भी। जी हाँ, अभी हाल ही में रफ़ी साहब की पुण्य तिथि पर जब किसी ने लता जी को ट्विटर पर उनके फ़ेवरीट रफ़ी नंबर के बारे में जानना चाहा, तो उन्होंने इसी गीत का ज़िक्र किया था। ख़ैर, हम बात कर रहे थे इस गीत के बोलों का मतलब ना समझ पाने की। तो साहब, अगर बोलों को समझे बग़ैर भी गीत लोकप्रिय हो जाता है तो इसका श्रेय गीतकार को ही जाना चाहिए। राजेन्द्र कृष्ण एक अण्डर-रेटेड गीतकार रहे हैं। आज भी जब किसी भी कार्यक्रम में गुज़रे ज़माने के गीतकारों के नाम लिए जाते हैं, तब इनका नाम मुश्किल से कोई लेता है, जब कि इन्होंने न जाने कितने सुपर डुपर हिट गीत ५० से ७० के दशकों में लिखे हैं।
"जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा" फ़िल्म के नायक संजय ख़ान पर फ़िल्माया गया गीत है, जो एक 'बार' में शराब के नशे में गा रहे होते हैं। १९६९ में प्रदर्शित 'इंतक़ाम' फ़िल्म का निर्माण शक्तिमान एण्टरप्राइज़ेस के बैनर तले हुई थी और इसका निर्देशन किया था आर. के. नय्यर ने। फ़िल्म के नायक का नाम तो हम बता ही चुके हैं, दूसरे मुख्य किरदारों में थे साधना, अशोक कुमार, और हेलेन। इस फ़िल्म के सभी गानें मक़बूल हुए थे, मसलन "हम तुम्हारे लिए तुम हमारे लिए", "आ जानेजाँ", "गीत तेरे साज़ का तेरी ही आवाज़ हूँ", "कैसे रहूँ चुप के मैंने पी ही क्या है होश अभी तक है बाक़ी" आदि। और आइए अब रुख़ किया जाए प्यारेलाल जी के उसी इंटरव्यू की तरफ़ जिसका एक अंश हमने कल पेश किया था। आज जिस अंश को हम पेश कर रहे हैं उसमें है रफ़ी साहब का ज़िक्र।
कमल शर्मा: रफ़ी साहब से म्युज़िक के अलावा, कभी जैसे किसी गाने की रेकॊर्डिंग् होनेवाली है, कभी जैसे थोड़ी सी फ़ुरसत मिली, बात वात होती थी कि नहीं?
प्यारेलाल: उनको ख़ुश करना हो तो हम दोनों क्या करते थे, कभी कभी आए तो चुप बैठे हैं, तो हमें उनको ख़ुश करना हो तो क्या है कि रफ़ी साहब चाय लेके आते थे, तो उनके लिए चाय जो बनती थी वह किसी को नही देते थे, वो ख़ुद पीते थे। वो थर्मस में आती थी, दो थर्मस। लेकिन वो कैसी चाय बनती थी मैं बताऊँ आपको, दूध को, दो सेर दूध के एक सेर बनाते थे जिसमें बदाम और पिस्ता डालते थे, और उसके बाद में चाय की पत्ती, कोई ख़ास पत्ती थी, वो उनकी बीवी बनाती थीं, और वो चाय लेकर आते थे। और अगर आप थोड़ी देर भी रखेंगे तो मलाई इतनी जम जाती थी। तो हम लोग क्या करते थे कि अगर ख़ुश करना है रफ़ी साहब को तो ख़ुश करने के लिए हम उनको बोलते थे 'थोड़ी चाय मिल जाएगी?' तो ऐसा करते थे कि जैसे कोई छोटा बच्चा है, तो अगर मस्ती कर रहा है कुछ, अरे भाई उसको चॊकलेट दे ना चॊकलेट, तो बोलने का एक स्टाइल होता है ना, तो उनका ज़हीर था उनका साला, 'अरे ज़हीर, चाय देना इनको चाय'। मतलब ये बच्चे लोग हैं ना चाय पिलाओ। बोलने का एक ढंग होता था और चाय पीने के बाद बोलना होता था 'वाह मज़ा आ गया', बस!
दोस्तों, हमने रफ़ी साहब के ख़ास चाय के बारे में जाना, लेकिन आज के गीत का जो आधार है, वह चाय नहीं बल्कि शराब है। रफ़ी साहब कभी शराब को हाथ नहीं लगाते थे, लेकिन जब भी किसी नशे में चूर किरदार के लिए कोई गीत गाते थे तो ऐसा लगता था कि जैसे वो ख़ुद भी शराब पीकर गा रहे हैं। यही तो बात है रफ़ी साहब जैसे महान गायक की। किसी भी मूड के गीत में कैसा रंग भरना है बहुत अच्छी तरह जानते और समझते थे रफ़ी साहब। तभी तो लक्ष्मी-प्यारे ने जब भी कोई ऐसा गीत बनाया जो उन्हें लगा कि सिर्फ़ रफ़ी साहब ही गा सकते हैं, उन्होंने कभी किसी दूसरे गायक से नहीं गवाया, कई बार तो निर्माता निर्देशक से भी बहस करने से नहीं चूके, और अगर रफ़ी साहब विदेश यात्रा पर रहते तो उनके आने का इंतज़ार करते थे कई दिनों तक, लेकिन किसी और से गवाना उन्हें मंज़ूर नहीं होता था। एल.पी की कई ऐसी फ़िल्में हैं जिनमें और बाक़ी गीत दूसरे गायकों ने गाये, लेकिन कोई ख़ास गीत सिर्फ़ और सिर्फ़ रफ़ी साहब से ही गवाया गया। पेश-ए-खिदमत है "जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा"।
क्या आप जानते हैं... कि फ़िल्म 'इंतक़ाम' का लता का गाया "कैसे रहूँ चुप कि मैंने पी ही क्या है" इतना लोकप्रिय हुआ था कि अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत बिनाका गीतमाला का चोटी का गीत बना था। यही नहीं, लगातार चार वर्षों तक लक्ष्मी-प्यारे के गीत बिनाका गीतमाला के चोटी के पायदान पर विराजे जो अपने आप में एक रेकॊर्ड रहा है।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०२ /शृंखला ०१ ये धुन उस गीत के प्रीलियूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र -पहले राम और सीता के किरदारों पर लिखा गया था यह युगल गीत, लेकिन वह फ़िल्म नहीं बनी। बाद में एक अन्य फ़िल्म में इसे शामिल किया गया।
सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक सवाल २ - लता हैं गायिका, गायक बताएं - १ अंक सवाल ३ - इस धार्मिक फिल्म के नायक बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम - दोस्तों, जब भी कोई नया बदलाव होता है, तो कुछ अजीब अवश्य लगता है, पर बदलाव तो नियम है, और केवल बदलाव ही शाश्वत है, हम समझते हैं कि आप में से बहुत से लोग अपने कम्पूटर पर सुन नहीं पाते हैं और अधिकतर हिंदी ब्लॉगर पढकर ही संतुष्ट हो जाते हैं, पर आवाज़ जैसा मंच तो सुनने सुनाने का ही है, तो यही समझिए कि पहेली की रूप रेखा में ये बदलाव सुनने की प्रथा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भी है, तो इंदु जी जल्दी से अपने स्पीकर को ठीक करवा लें, आप पढ़ने के साथ साथ श्रवण और दृश्य माध्यमों से भी जुड़ें, यही हमारे इस मंच की सफलता मानी जायेगी....खैर, हमें जवाब मिले हैं, सही जवाब....तो पहेली के ढांचा ठीक ही प्रतीत हो रहा है, अनाम जी ने लिखा है कि ऐसी कॉम्पटीशन से कोई फायदा नहीं जिसमे हर कोई PARTICIPATE ना कर सके. पर पार्टिसिपेट सभी कर सकते हैं, हाँ अगर आपकी समस्या इंदु जी जैसी कुछ है तो इसका समाधान तो फिलहाल आपको ही निकालना पड़ेगा...आपने दूसरी बात लिखी कि और अगर कोई हर पहेली में अगर ४ अंक वाला आंसर भी दे तो १००वे एपिसोड तक ४०० ही अंक हुए, तो हम माफ़ी चाहेंगें कि ये लिखने में हुई भूल थी, जिससे आप शंकित हो गए, दरअसल पहेली अब ५०१ वें से १००० वें एपिसोड तक खुली है और इसमें जितनी मर्जी बार चाहें आप ५०० का आंकड़ा छू सकते हैं. भूल सुधार ली गयी है. और कोई श्रोता यदि इस विषय में अपनी राय देना चाहें तो जरूर दें. अब बात परिणाम की - शरद जी खाता खोला २ अंकों के साथ. श्याम कान्त जी और पी सिंह जी आप दोनों को भी १-१ अंकों की बधाई. मनु जी आप तनिक लेट हो गए जवाब देते देते, वैसे अंदाजा एकदम सही था. शंकर लाल जी (अल्ताफ रज़ा ?), बिट्टो जी, अमित जी और अंशुमान जी, better luck next time :)
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का फिर एक बार इस सुरीले सफ़र में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के ५०० अंक के पूर्ति पर आपने हमारी ख़ास प्रस्तुति का आनंद लिया होगा, और आज से हम फिर एक बार अपने सुरीले कारवाँ को आगे बढ़ाने के लिए कमर कस कर मैदान में उतर चुके हैं। गुज़रे ज़माने के इन सुरीले मीठे गानों से हमारा दिल कभी नहीं भरेगा, इसलिए यह कारवाँ भी चलता ही रहेगा जब तक उपरवाले को मंज़ूर होगा और जब तक आपका युंही हमें साथ मिलता रहेगा। सरगमी यादों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम जो लघु शृंखला शुरु करने जा रहे हैं, वह केन्द्रित है एक संगीतकार जोड़ी पर। यह वो संगीतकार जोड़ी है दोस्तों जिनके गानें कोई रेडियो चैनल, कोई टीवी चैनल, कोई कैसेट - सीडी की दुकान नहीं होगी जहाँ इस जोड़ी के सैंकड़ों गीत मौजूद ना हों। इनके रचे सुरीले गानें गली गली ना केवल उस ज़माने में गूँजा करते थे, बल्कि आज भी हर रोज़ सुनाई देते हैं कहीं ना कहीं से। वक़्त के ग्रामोफ़ोन पर यह सुरीला एल.पी बरसों बरस घूम रहा है और हमारे तन मन के तारों को झंकारित कर रहा है। जी हाँ, जिस सुरीले एल.पी की हम बात कर रहे हैं वह और कोई नहीं बल्कि एल.पी ही हैं, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के असंख्य लोकप्रिय गीतों में से १० गीतों को छाँटना कितना मुश्किल काम है यह तो आप भी ज़रूर मानेंगे। फिर भी हमने कोशिश की है कि एल.पी के इस सुरीले अथाह समुंदर से दस मोतियों को चुनने की। तो लीजिए प्रस्तुत है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के धुनों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'एक प्यार का नग़मा है'।
दोस्तों, आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सफ़र में निकल पड़े हैं अपनी १०००-वे पड़ाव की ओर। भले ही 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह महफ़िल शाम के वक़्त सजती है भारत में, लेकिन एक तरह से यह एक सुबह ही तो है। यह वह सुबह है कि जब हम अपने इस सुरी्ले कारवाँ को लेकर फिर एक बार चल पड़े हैं इन सुरीली राहों पर। इसीलिए हम इस शृंखला की शुरुआत भी भोर के एक गीत से कर रहे हैं। राज कपूर की फ़िल्म 'सत्यम शिवम सुंदरम' का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत जो कि आधारित है राज साहब के पसंदीदा राग भैरवी पर। लता जी के दैवीय आवाज़ में "भोर भये पनघट पे मोहे नटखट श्याम सताये" जो फ़िल्माया गया है ज़ीनत अमान पर। 'सत्यम शिवम सुंदरम' में तीन गीतकारों ने गीत लिखे हैं - पंडित नरेन्द्र शर्मा, विट्ठल भाई पटेल और आनंद बक्शी। बक्शी जी ने इस गीत को जितनी ख़ूबसूरती से लिखा है, उतना ही आकर्षक और सुमधुर संगीत से सजाया है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने। यहाँ तक कि इस गीत का जो रीदम है, जो ताल है, वह इतना संक्रामक है कि सुननेवालों को अपनी ओर खींचे रखता है। दोस्तों, क्योंकि यह शृंखला है एल.पी के गीतों की है तो ज़ाहिर है कि हम उन्ही से जुड़ी ज़्यादा बातें इसमें करेंगे। कुछ वर्ष पहले विविध भारती ने प्यारेलाल जी को आमंत्रित कर एक लंबा इंटरव्यू रेकॊर्ड किया था, उस लम्बे इंटरव्यू को जिन लोगों ने सुना होगा, उन्हें एल.पी के तमाम पहलुओं के बारे में जानकारी हासिल हुई होगी। इस शृंखला में हम उसी इंटरव्यू की तरफ़ बार बार रुख़ करेंगे। तो ये रहा आज का अंश...
कमल शर्मा: अच्छा प्यारे जी, अगर हम आप के म्युज़िक की बात करें, हर एक के म्युज़िक की ख़ास पहचान होती है, इन्स्ट्रुमेण्ट्स-वाइज़ होती है, रागों के हिसाब से, या कुछ अलग एक स्टाइल होता है। आप अपने म्युज़िक की पहचान क्या कहेंगे? किस तरह से उसको पहचाना जाए कि यह एल.पी का म्युज़िक है? उसकी सब से क्या ख़ास बात है?
प्यारेलाल: मैं बताऊँ आपको, बहुत ईज़ी है, मैं बहुत डायरेक्टली बोल रहा हूँ, हमारी ख़ास बात यह है कि आपको रीदम पैटर्ण से मालूम पड़ेगा कि यह एल.पी है। लेकिन हर एक गाना, हर एक पिक्चर का म्युज़िक आपको अलग मिलेगा। मनोज कुमार हों, सुभाष घई हों, राज कपूर साहब हों, आप समझे ना, कोई भी साउथ के हों, कोई भी एक पिक्चर का म्युज़िक आपको दूसरे पिक्चर में नहीं मिलेगा। अगर 'पारसमणि' की तो मतलब ख़तम कर दिया हमने। फिर जे. ओमप्रकाश जी के लिए काम किया, 'आया सावन झूम के', फिर राज खोसला जी हैं, आप देखिए, तो ज़्यादा कोशिश हम यह करते हैं कि भई जिसका म्युज़िक करें, वो लगे ऐसे कि जैसे आपने शायद ग़ौर किया कि नहीं, हमने एक पिक्चर की थी शक्ति सामंत जी की, 'अनुरोध', "आपके अनुरोध पे मैं यह गीत सुनाता हूँ", बिल्कुल अलग तरह का गाना था यह।
तो दोस्तों, इस इंटरव्यु के चुनिंदे अंश हम आगे भी आप तक पहुँचाते रहेंगे, लीजिए अब सुनिए लता जी की आवाज़ में "भोर भये पनघट पे"।
क्या आप जानते हैं... कि 'सत्यम शिवम सुंदरम' से पहले इस फ़िल्म के लिए राज कपूर ने 'सूरत और सीरत' का शीर्षक चुना था, लेकिन बाद में उन्हें 'सत्यम शिवम सुंदरम' ही बेहतर लगा।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, जी हाँ अब गूगल बाबा आपकी मदद को नहीं आ पायेंगें, अब तो बस आप को खुद ही खोलने पड़ेंगें इस पहेली के उलझे तार, हमें यकीं है कि पहेली का ये नया रूप आपके जेहन की खासी कसरत करवाएगा, और आप इसका भरपूर मज़ा भी ले पायेंगें... ठीक, तो आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. इस बार आपकी मंजिल ५०० अंकों की होगी, और जितनी बार चाहें आप इस आंकडे को छू सकते हैं हमारे १००० वें एपिसोड तक. और हाँ इस बार पुरस्कार नकद राशि होंगीं....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली ०१ ये धुन उस गीत के पहले इंटरल्यूड की है, सुनिए -
अतिरिक्त सूत्र - अभी हाल ही में लता जी ने ट्विट्टर पर लिखा कि ये इस गीत के गायक का गाया उनका सबसे पसंदीदा गीत है-
सवाल १ - गीतकार बताएं - १ अंक सवाल २ - गायक बताएं - २ अंक सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
हिंद-युग्म' ने हिंदी की पहली फ़िल्मी गीत "दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे" को हाल ही में रिवाइव किया है, जिसे आप सब ने पसंद भी किया। अब तक हम यही सोचते थे कि इस गीत की मूल धुन विलुप्त हो चुकी है। लेकिन हमारे एक साथी श्री दुष्यन्त कुमार चतुर्वेदी ने हमारा ध्यान १९८२ में दूरदर्शन द्वारा प्रसारित हरिहरण के गाये इस गीत के एक संस्करण की ओर आकृष्ट करवाया, और यही धुन इस गीत का मूल धुन है। मुखड़े की दूसरी पंक्ति के बोल, जो हमने 'लिस्नर्स बुलेटिन' से प्राप्त की थी, असल में कुछ और है। पूरा मुखड़ा कुछ इस तरह का है - "दे दे ख़ुदा के नाम से प्यारे ताक़त है कुछ देने की, कुछ चाहिए अगर तो माँग ले उससे हिम्मत है गर लेने की"।
हरिहरण के गाये इस गीत को आईये आज आप भी सुनें-
इसी तरह जुबैदा जी जिन्होंने आलम आरा में गीत गाये थे, उन्होंने भी अपने गाये एक गीत की धुन इसी कार्यक्रम के लिए गाकर सुनाई थी, मगर अफ़सोस कि उन्हें भी सिर्फ मुखड़े की धुन ही याद है, लीजिए इसे भी सुनिए, उन्हीं की आवाज़ में
आलम आरा के गीतों का नष्ट हो जाना एक बड़ा नुक्सान है, दूरदर्शन की इसकी सुध १९८१ में आई जब बोलती फिल्मों ने भारत में अपने ५० वर्ष पूरे किये. चूँकि इसी फिल्म से फिल्म संगीत हमारे जीवन में आया था इस कारण इस फिल्म के गीत संगीत की अहमियत और भी बढ़ जाती है. १९८१ से २०१० तक देश कई बड़े परिवर्तनों से गुजर चुका है, ऐसे में आज की पीढ़ी अगर इस एतिहासिक फिल्म के गीत संगीत को भुला चुकी हो तो कोई आश्चर्य नहीं. हिंद युग्म ने एक बड़ी कोशिश की आज के संगीत्कार्मियों के माध्यम से उस पहले गीत को पुनर्जीवित करने की. याद रहे तब हम मूल धुन से अनजान थे. पर हमें गर्व है २२ वर्षीया कृष्ण राज ने जिस प्रकार इस गीत को नया जामा पहनाया है, उससे एक बार फिर उम्मीदें जगी हैं. बहुत से श्रोताओं ने हमारे इस प्रयास को सराहा है, चलिए एक बार फिर सुनते हैं २०१० का ये संस्करण- दे दे खुदा के नाम पर....
"पहला सुर", "काव्यनाद" और "सुनो कहानी" की सफलता से प्रेरित होकर हिंद युग्म का ये आवाज़ मंच आज एक बार फिर एक ख्वाब देखने की गुस्ताखी कर रहा है. आलम आरे फिल्म के सभी ६ गीत इसी तरह पुनर्जीवित करें, और साथ में इन मूल धुनों को भी (जो ऊपर सुनवाई गयी हैं) विस्तरित कर कुल ८ गीतों की एक एल्बम रची जाए. १४ मार्च २०११ को ये एतिहासिक फिल्म अपने प्रदर्शन के ८० वर्ष पूरे कर लेगी, इस अवसर पर हम इसे रीलिस करें, तो संगीत जगत के लिए एक अनमोल तोहफा होगा, ऐसा हमारा मानना है. पर इस महान कार्य को अंजाम तक पहुँचाने में हमें आप सब सुधि श्रोताओं के रचनात्मक और आर्थिक सहयोग की अवश्यकता रहेगी...
आप में से जो भी इस महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट से जुड़ने में रूचि रखें हमसे oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं. आपके निवेश से आपको पर्याप्त आर्थिक और सामाजिक लाभ मिले इसकी भी पूरी कोशिश रहेगी. पूरे प्रकरण में हर तरह की पारदर्शिता रखी जायेगी इस बात का भी हम विश्वास देते हैं. आपके सुझाओं, मार्गदर्शन और सहयोग की हमें प्रतीक्षा रहेगी.
डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम के आशीर्वाद का साथ "बीट ऑफ इंडियन यूथ" आरंभ कर रहा है अपना महा अभियान. इस महत्वकांक्षी अल्बम के माध्यम से सपना है एक नया इतिहास रचने का. थीम सोंग लॉन्च हो चुका है, सुनिए और अपना स्नेह और सहयोग देकर इस झुझारू युवा टीम की हौसला अफजाई कीजिये
इन्टरनेट पर वैश्विक कलाकारों को जोड़ कर नए संगीत को रचने की परंपरा यहाँ आवाज़ पर प्रारंभ हुई थी, करीब ५ दर्जन गीतों को विश्व पटल पर लॉन्च करने के बाद अब युग्म के चार वरिष्ठ कलाकारों ऋषि एस, कुहू गुप्ता, विश्व दीपक और सजीव सारथी ने मिलकर खोला है एक नया संगीत लेबल- _"सोनोरे यूनिसन म्यूजिक", जिसके माध्यम से नए संगीत को विभिन्न आयामों के माध्यम से बाजार में उतारा जायेगा. लेबल के आधिकारिक पृष्ठ पर जाने के लिए नीचे दिए गए लोगो पर क्लिक कीजिए.
हिन्द-युग्म YouTube Channel
आवाज़ पर ताज़ातरीन
संगीत का तीसरा सत्र
हिन्द-युग्म पूरी दुनिया में पहला ऐसा प्रयास है जिसने संगीतबद्ध गीत-निर्माण को योजनाबद्ध तरीके से इंटरनेट के माध्यम से अंजाम दिया। अक्टूबर 2007 में शुरू हुआ यह सिलसिला लगातार चल रहा है। इस प्रक्रिया में हिन्द-युग्म ने सैकड़ों नवप्रतिभाओं को मौका दिया। 2 अप्रैल 2010 से आवाज़ संगीत का तीसरा सीजन शुरू कर रहा है। अब हर शुक्रवार मज़ा लीजिए, एक नये गीत का॰॰॰॰
ओल्ड इज़ गोल्ड
यह आवाज़ का दैनिक स्तम्भ है, जिसके माध्यम से हम पुरानी सुनहरे गीतों की यादें ताज़ी करते हैं। प्रतिदिन शाम 6:30 बजे हमारे होस्ट सुजॉय चटर्जी लेकर आते हैं एक गीत और उससे जुड़ी बातें। इसमें हम श्रोताओं से पहेलियाँ भी पूछते हैं और 25 सही जवाब देने वाले को बनाते हैं 'अतिथि होस्ट'।
महफिल-ए-ग़ज़ल
ग़ज़लों, नग्मों, कव्वालियों और गैर फ़िल्मी गीतों का एक ऐसा विशाल खजाना है जो फ़िल्मी गीतों की चमक दमक में कहीं दबा-दबा सा ही रहता है। "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" शृंखला एक कोशिश है इसी छुपे खजाने से कुछ मोती चुन कर आपकी नज़र करने की। हम हाज़िर होते हैं हर बुधवार एक अनमोल रचना के साथ, और इस महफिल में अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में आपसे मुखातिब होते हैं कवि गीतकार और शायर विश्व दीपक "तन्हा"। साथ ही हिस्सा लीजिये एक अनोखे खेल में और आप भी बन सकते हैं -"शान-ए-महफिल". हम उम्मीद करते हैं कि "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" का ये आयोजन आपको अवश्य भायेगा...
ताजा सुर ताल
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं। "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है। आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रूरत है उन्हें ज़रा खंगालने की। हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं।
सुनो कहानी
इस साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम कोशिश कर रहे हैं हिन्दी की कालजयी कहानियों को आवाज़ देने की है। इस स्तम्भ के संचालक अनुराग शर्मा वरिष्ठ कथावाचक हैं। इन्होंने प्रेमचंद, मंटो, भीष्म साहनी आदि साहित्यकारों की कई कहानियों को तो अपनी आवाज़ दी है। इनका साथ देने वालों में शन्नो अग्रवाल, पारुल, नीलम मिश्रा, अमिताभ मीत का नाम प्रमुख है। हर शनिवार को हम एक कहानी का पॉडकास्ट प्रसारित करते हैं।
पॉडकास्ट कवि सम्मलेन
यह एक मासिक स्तम्भ है, जिसमें तकनीक की मदद से कवियों की कविताओं की रिकॉर्डिंग को पिरोया जाता है और उसे एक कवि सम्मेलन का रूप दिया जाता है। प्रत्येक महीने के आखिरी रविवार को इस विशेष कवि सम्मेलन की संचालिका रश्मि प्रभा बहुत खूबसूरत अंदाज़ में इसे लेकर आती हैं। यदि आप भी इसमें भाग लेना चाहें तो यहाँ देखें।
हमसे जुड़ें
आप चाहें गीतकार हों, संगीतकार हों, गायक हों, संगीत सुनने में रुचि रखते हों, संगीत के बारे में दुनिया को बताना चाहते हों, फिल्मी गानों में रुचि हो या फिर गैर फिल्मी गानों में। कविता पढ़ने का शौक हो, या फिर कहानी सुनने का, लोकगीत गाते हों या फिर कविता सुनना अच्छा लगता है। मतलब आवाज़ का पूरा तज़र्बा। जुड़ें हमसे, अपनी बातें podcast.hindyugm@gmail.com पर शेयर करें।
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रविवार से गुरूवार शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी होती है उस गीत से जुडी कुछ खास बातों की. यहाँ आपके होस्ट होते हैं आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों का लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
"डंडे के ज़ोर पर उसके पिता उसे अपने साथ तीर्थ यात्रा पर भी ले जाते थे और झाड़ू के ज़ोर पर माँ की छठ पूजा की तैयारियाँ भी वही करता था।" (अनुराग शर्मा की "बी. एल. नास्तिक" से एक अंश) सुनिए यहाँ
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