ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 50
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। दोस्तों, यूं तो यह साप्ताहिक विशेषांक है, पर इस बार का यह अंक वाक़ई बहुत बहुत विशेष है। इसके दो कारण हैं - पहला यह कि आज यह स्तंभ अपना स्वर्ण जयंती मना रहा है, और दूसरा यह कि आज हम जिस कलाकार से आपको मिलवाने जा रहे हैं, वो एक अदभुत प्रतिभा की धनी हैं। इससे पहले कि हम आपका परिचय उनसे करवायें, हम चाहते हैं कि आप नीचे दी गई ऑडिओ को सुनें।
मेडली गीत
कभी मोहम्मद रफ़ी, कभी किशोर कुमार, कभी गीता दत्त, कभी शम्शाद बेगम, कभी तलत महमूद और कभी मन्ना डे के गाये हुए इन गीतों की झलकियों को सुन कर शायद आपको लगा हो कि चंद कवर वर्ज़न गायक गायिकाओं के गाये ये संसकरण हैं। अगर ऐसा ही सोच रहे हैं तो ज़रा ठहरिए। हाँ, यह ज़रूर है कि ये सब कवर वर्ज़न गीतों की ही झलकियाँ थीं, लेकिन ख़ास बात यह कि इन्हें गाने "वालीं" एक ही गायिका हैं। जी हाँ, यह सचमुच चौंकाने वाली ही बात है कि इस गायिका को पुरुष और स्त्री कंठों में बख़ूबी गा सकने की अदभुत शक्ति प्राप्त है। अपनी इस अनोखी प्रतिभा के माध्यम से देश-विदेश में प्रसिद्ध होने वालीं इस गायिका का नाम है मिलन सिंह।
पिछले दिनों जब मेरी मिलन जी से फ़ेसबूक पर मुलाक़ात हुई तो मैंने उनसे एक इंटरव्यू की गुज़ारिश कर बैठा। और मिलन जी बिना कोई सवाल पूछे साक्षात्कार के लिए तैयार भी हो गईं, लेकिन उस वक़्त वो बीमार थीं और उनका ऑपरेशन होने वाला था। इसलिए उन्होंने यह वादा किया कि ऑपरेशन के बाद वो ज़रूर मेरे सवालों के जवाब देंगी। मैंने इंतज़ार किया, और उनके ऑपरेशन के कुछ दिन बाद जब मैंने उनके वादे का उन्हें याद दिलाया तो वादे को अंजाम देते हुए उन्होंने मेरे सवालों का जवाब दिया, हालाँकि बातचीत बहुत लम्बी नहीं हो सकी उनकी अस्वस्थता के कारण। तो आइए 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आज आपका परिचय करवाएँ दो आवाज़ों में गाने वाली गायिका मिलन सिंह से।
सुजॉय - मिलन जी, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आपका 'हिंद-युम' के 'आवाज़' मंच पर। हमें ख़ुशी है कि अब आप स्वस्थ हो रही हैं।
मिलन सिंह - बहुत बहुत शुक्रिया आपका।
सुजॉय - मिलन जी, आप कहाँ की रहनेवाली हैं? और आपने गाना कब से शुरु किया था?
मिलन सिंह - मैं यू.पी से हूँ, ईटावा करके एक जगह है, वहाँ की मैं हूँ।
सुजॉय - आप जिस वजह से मशहूर हुईं हैं, वह है नर और नारी, दोनो कंठों में गा पाने की प्रतिभा की वजह से। तो यह बताइए कि किस उम्र में आपनें यह मह्सूस किया था कि आपके गले से दो तरह की आवाज़ें निकलती हैं?
मिलन सिंह - जब मैं ११ साल की थी, तब हालाँकि उम्र के हिसाब से बहुत छोटी थी और आवाज़ उतनी मच्योर नहीं हुई थी, पर कोई भी मेरी दोनो तरह की आवाज़ों में अंतर को स्पष्ट रूप से महसूस कर लेता था।
सुजॉय - आपके गाये गीतों को सुनते हैं तो सचमुच हैरानी होती है कि यह कैसे संभव है। हाल ही में आपके वेबसाइट पर आपके दो आवाज़ों में गाया हुआ लता-रफ़ी डुएट "यूंही तुम मुझसे बात करती हो" सुना और अपनी पत्नी को भी सुनवाया। वो तो मानने के लिए तैयार ही नहीं कि इसे किसी "एक गायिका" नें गाया है। तो बताइए कि किस तरह से आप इस असंभव को संभव करती हैं?
मिलन सिंह - इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है, यह ईश्वर की देन है बस! It is 100% God's gift to me.
सुजॉय - मुझे पता चला कि रफ़ी साहब आपकी पसंदीदा गायक रहे हैं, और आप उनके गीत ही ज़्यादा गाती आईं हैं और वो भी उनके अंदाज़ में। इस बारे में कुछ कहना चाहेंगी? सिर्फ़ रफ़ी साहब ही क्यों, आपनें सहगल, तलत महमूद, किशोर कुमार, हेमन्त कुमार आदि गायकों के स्टाइल को भी अपनाया है इनके गीतों को गाते वक़्त।
मिलन सिंह - इन कालजयी कलाकारों की नकल करने की जुर्रत कोई नहीं कर सकता, तो मैं क्या चीज़ हूँ? बस इतना है कि मैंने इन कलाकारों को गुरु समान माना है; इसलिए जब कभी इनके गीत गाती हूँ तो इन्हें ध्यान में रखते हुए इनके स्टाइल में गाने की कोशिश करती हूँ। मैं फिर से कहूंगी कि यह भी ईश्वर की देन है। ईश्वर मुझ पर काफ़ी महरबान रहे हैं।
सुजॉय - दो आवाज़ों में आपनें बहुत सारे लता जी और रफ़ी साहब के युगल गीतों को गाया है। आपका पसंदीदा लता-रफ़ी डुएट कौन सा है?
मिलन सिंह - लिस्ट इतनी लम्बी है कि उनमें से किसी एक गीत को चुनना बहुत मुश्किल है। फिर भी मैं चुनूंगी "कुहू कुहू बोले कोयलिया", "ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं", "पत्ता पत्ता बूटा बूटा", "वो हैं ज़रा ख़फ़ा ख़फ़ा" को।
सुजॉय - आप कभी लता जी और रफ़ी साहब से मिली हैं?
मिलन सिंह - जी हाँ, रफ़ी साहब से मैं मिली हूँ पर लता जी से मिलने का सौभाग्य अभी तक नहीं हुआ। पर मैं उन्हें लाइव कन्सर्ट में सुन चुकी हूँ।
सुजॉय - यहाँ पर हम अपने श्रोताओं को आपकी आवाज़ में रफ़ी साहब के लिए श्रद्धांजली स्वरूप एक गीत सुनवाना चाहेंगे।
गीत - रफ़ी साहब को मिलन सिंह की श्रद्धांजली
सुजॉय - मुझे याद है ८० के दशक में रेडियो में एक गीत आता था "रात के अंधेरे में, बाहों के घेरे में", और उस गीत के साथ गायिका का नाम मिलन सिंह बताया जाता था। क्या यह आप ही का गाया हुआ गीत है?
मिलन सिंह - जी हाँ, मैंने ही वह गीत गाया था।
सुजॉय - कैसे मिला था यह मौका फ़िल्म के लिए गाने का?
मिलन सिंह - दरअसल उस गीत को किसी और गायिका से गवाया जाना था, एक नामी गायिका जिनका नाम मैं नहीं लूंगी, पर फ़िल्म के निर्माता और उस गायिका के बीच में कुछ अनबन हो गई। तब फ़िल्म के संगीतकार सुरिंदर कोहली जी, जो मुझे पहले सुन चुके थे, उन्होंने मुझे इस गीत को गाने का मौका दिया।
सुजॉय - मिलन जी, 'रात के अंधेरे में' फ़िल्म के इस गीत को बहुत ज़्यादा नहीं सुना गया, इसलिए बहुत से लोगों नें इसे सुना नहीं होगा, तो क्यों न आगे बढ़ने से पहले आपके गाये इस फ़िल्मी गीत को सुन लिया जाए?
मिलन सिंह - जी ज़रूर!
गीत - रात के अंधेरे में (फ़िल्म- रात के अंधेरे में, १९८६)
सुजॉय - मिलन जी, 'रात के अंधेरे में' फ़िल्म का यह गीत तो रेडियो पर ख़ूब बजा था, पर इसके बाद फिर आपकी आवाज़ फ़िल्मी गीतों में सुनाई नहीं दी। इसका क्या कारण था?
मिलन सिंह - उसके बाद मैंने कुछ प्रादेशिक और कम बजट की हिंदी फ़िल्मों के लिए गानें गाए ज़रूर थे, लेकिन मेरे अंदर "कैम्प-कल्चर" का हुनर नहीं था, जिसकी वजह से मुझे कभी बड़ी बजट की फ़िल्मों में गाने का अवसर नहीं मिला। यह मेरी ख़ुशनसीबी थी कि टिप्स म्युज़िक कंपनी नें मेरे गीतों के कई ऐल्बम्स निकाले जो सुपर-हिट हुए और मुझे ख़ूब लोकप्रियता मिली। मेरा जितना नाम हुआ, मुझे जितनी शोहरत और सफलता मिली, वो इन सुपरहिट ऐल्बम की वजह से ही मिली।
सुजॉय - इन दिनों आप क्या कर रही हैं? क्या अब भी स्टेज शोज़ करती हैं?
मिलन सिंह - मैंने स्टेज शोज़ कभी नहीं छोड़ा, हाँ, एक ब्रेक ज़रूर लिया है अस्वस्थता के कारण। अभी अभी मैं संभली हूँ, तो इस साल बहुत कुछ करने का इरादा है, देश में भी और विदेश में भी।
सुजॉय - बहुत बहुत शुक्रिया मिलन जी! अस्वस्थता के बावजूद आपनें हमें समय दिया, बहुत अच्छा लगा। आपको हम सब की तरफ़ से एक उत्तम स्वास्थ्य की शुभकामनाएँ देते हुए आपसे विदा लेता हूँ, नमस्कार!
मिलन सिंह - बहुत बहुत शुक्रिया!
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तो दोस्तों, यह था नर और नारी, दोनों कंठों में गाने वाली प्रसिद्ध गायिका मिलन सिंह से बातचीत। मिलन जी के बारे में विस्तार से जानने के लिए आप उनकी वेबसाइट www.milansingh.com पर पधार सकते हैं।
और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।
तो इसी के साथ अब आज का यह अंक समाप्त करने की अनुमति दीजिये। कल से शुरु होने वाली 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला में आपके साथी होंगे कृष्णमोहन मिश्र, और मैं आपसे फिर मिलूंगा अगले शनिवार के विशेषांक में। अब दीजिये अनुमति, नमस्कार!