नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। इस साप्ताहिक विशेषांक को हम सजाते हैं या तो आप ही के भेजे हुए प्यारे प्यारे ईमेल से 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के रूप में, या किसी कलाकार से आपको मिलवाया जाता है, या फिर कोई विशेषालेख पेश होता है। आज बारी है 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' की। आज एक ऐसा ईमेल पेश हो रहा है जिसे पढ़ कर हम सब थोड़ा सोचने पर भी मजबूर हो जाएँगे, थोड़ी सी उदासी भी छायेगी, और थोड़ा सा आशावादी स्वर भी गूंजेगा। लीजिए पहले ईमेल पढ़िए जिसे लिख भेजा है मेरे प्रिय दोस्त सुमित चक्रवर्ती ने चण्डीगढ़ से। यह उनका भेजा हुआ दूसरा ईमेल है जिसे हम शामिल कर रहे हैं।
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प्रिय सुजॊय दा
'ई-मेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में मेरे पिछ्ले ई-मेल को शामिल करने का शुक्रिया। आज मैं आपको अपने एक अनोखे अनुभव के बारे में बताने जा रहा हूँ।
किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं| एक नन्हे सदस्य के आते ही पूरे घर का माहौल बदल जाता है| उनकी नन्ही-नन्ही किलकारियाँ और नटखट अटखेलियाँ घर-आँगन में गूंजने लगती हैं| वह घर के सभी सदस्यों की आँखों का तारा बन जाता है| बच्चे के अभिभावक तभी से उसके भविष्य के लिए सोचने में जुट जाते हैं| उसे पौष्टिक आहार दिया जाता है, अच्छी शिक्षा दी जाती है ताकि वह बड़ा होने पर अपने पैरों पर खड़ा हो सके और एक ज़िम्मेदार नागरिक बनकर अपने माता-पिता का नाम रौशन करे| हमारे समाज तथा गृह-व्यवस्था की ये छवि कितनी सुखद लगती है| परंतु इसके ठीक विपरीत हमारे समाज की एक सच्चाई ऐसी भी ही है जो हमें सोचने पर विवश कर देता है| मैं उस स्थिति की बात कर रहा हूँ जिसमे एक नन्ही सी जान को पैदा होते ही ठुकरा दिया जाता है केवल इसलिए की उसने एक कन्या के रूप में जन्म लिया, या फिर वह स्थिति जिसमें बच्चों को पूर्ण पोषण नहीं मिलता, भूख व गरिबी के कारण उन्हें बाल-मज़दूरी की ओर धकेल दिया जाता है - उनका शोषण किया जाता है|
आप भी सोच रहे होंगे की मैं अचानक इतनी गहरी व मर्मशील बातें क्यूँ कर रहा हूँ? ऐसा इसलिए कि हाल ही में मैं कुछ ऐसे ही बच्चों से रू-ब-रू हुआ जिन्हें हमारे समाज ने नहीं अपनाया| ये मौका मुझे मिला जब मैं अपने कुछ दोस्तों तथा सहकर्मियों के साथ मदर टेरेसा द्वारा स्थापित संस्था "मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी" गया| चंडीगढ़ में कुछ एन.जी.ओ'ज़ से ज़ुड़े होने के कारण हम कई ऐसी संस्थाओं में जाते रहते हैं| वहाँ बुज़ुर्गों से बातें करते हैं, बच्चों के साथ खेलते हैं और कई बार संगीत व नृत्य का रंगारंग कार्यक्रम आयोजित करते हैं| पिछली बार 'मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी' का अनुभव बेहद अनूठा रहा| अब इसे संयोग ही कहिए की जिस दिन हम वहाँ गये, उस दिन महान गायक मन्ना डे साहब का जन्मदिन था, यानि १ मई| अब मज़े की बात ये थी कि मिशनरीज़ के बच्चों ने भी उस दिन एक संगीत का कार्यक्रम मन्ना दा के सम्मान में प्रस्तुत किया| उनकी जो प्रस्तुति मुझे सबसे अधिक छू गयी वह थी तीन नेत्रहीन बालिकाओं द्वारा गाया वह गीत जिसे फिल्म "प्रहार" में मन्ना दा और कुछ बच्चों ने गाया था| गीत है - "हमारी ही मुठ्ठी में आकाश सारा, जब भी खुलेगी चमकेगा तारा"। सच मानिये उनके इस गीत को सुनकर हम अपने आँसू रोक न सके। उन बच्चों के साथ समय बिता कर जो संतुष्टि हमारे मन को मिली उसे शब्दों में व्यक्त करना शायद मुश्किल होगा। ये बच्चे भी अपने पांव पर खड़ा होना चाहते हैं और उन्हें पूरा हक़ भी है। ज़रूरत है उन्हें तो सिर्फ़ हमारे सहयोग की, थोड़े प्यार की, जिससे वे वंचित रह गये। आशा करता हूं कि हिन्द-युग्म जैसे प्रबल मंच द्वारा मेरा यह लेख शायद जागृति का दिया जला सके ताकि ये बच्चे भी हमारे देश का नाम रौशन करें।
धन्यवाद।
आपक प्रिय अनुज
सुमित
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सचमुच आँखें नम हो गईं। हम अक्सर अनाथ बच्चों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हैं, लेकिन बहुत से बच्चे ऐसे भी हैं जो माता पिता के होते हुए भी अनाथ होने के बराबर हैं। इससे शर्मनाक और दुखदायी बात और क्या हो सकती है। इस मंच के सभी पाठकों से बस यही निवेदन कर सकते हैं कि "आइए हाथ बढ़ाएँ हम भी!!!"
मन्ना डे और बच्चों द्वारा गाये फ़िल्म 'प्रहार' के इस आशावादी रचना को सुनते हैं, जिसे लिखा है मंगेश कुल्कर्णी नें और संगीत है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का। वैसे तो यह एक प्रार्थना के रूप में गाया गया है, लेकिन पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष, केवल आशावादी।
गीत - हमारी ही मुट्ठी में आकाश सारा (प्रहार - मन्ना डे, साथी)
इन्हीं आवाज़ों में सुनते हैं इस गीत का सैड वर्ज़न भी।
गीत - हमारी ही मुट्ठी में आकाश सारा - सैड (प्रहार - मन्ना डे, साथी)
इस गीत को कविता कृष्णमूर्ती और बच्चों ने भी गाया था जिसे बहुत ज़्यादा नहीं सुना गया। आज जब कि हम ख़ास इस गीत की चर्चा कर रहे हैं, तो आइए कविता जी की आवाज़ में भी इस गीत का आनंद लें।
गीत - हमारी ही मुट्ठी में आकाश सारा (प्रहार - कविता कृष्णमूर्ती, साथी)
और अब इस गीत की धुन भी सुनिए माउथ ऒर्गैन पर बजाया हुआ।
गीत - हमारी ही मुट्ठी में आकाश सारा (प्रहार - इन्स्ट्रुमेण्टल)
तो ये था इस सप्ताह का 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष'। आशा है आपको अच्छा लगा होगा। सुमित की तरह आप भी अपने जीवन के यादगार लम्हों को हमारे साथ बाँट सकते हैं हमें oig@hindyugm.com के पते पर ईमेल भेज कर। किसी यादगार घटना या संस्मरण को हमारे साथ बाँटिए 'आवाज़' के उस स्तंभ के ज़रिए जिसका नाम है 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने'। आज बस इतना ही, फिर मुलाक़ात होगी कल सुबह 'सुर संगम' में। नमस्कार, शुभ रात्री।