'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस साप्ताहिक विशेषांक में। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का यह साताफिक स्तंभ पूरा कर रहा है अपना बीसवाँ हफ़्ता। इसी ख़ुशी में आज कुछ बेहद बेहद ख़ास पेश हो रहा है आपकी ख़िदमत में। दोस्तों, आपको मैं बता नहीं सकता कि आज का यह अंक प्रस्तुत करते हुए मैं किस रोमांच से गुज़र रहा हूँ। वो एक आवाज़, जो पिछले ६० सालों से दुनिया की फ़िज़ाओं में अमृत घोल रही है, जिसे इस सदी की आवाज़ होने का गौरव प्राप्त है, जिस आवाज़ में स्वयं माँ सरस्वती निवास करती है, जो आवाज़ इस देश की सुरीली धड़कन है, उस कोकिल-कंठी, स्वर साम्राज्ञी, भारत रत्न, लता मंगेशकर से बातचीत करना किस स्तर के सौभाग्य की बात है, उसका अंदाज़ा आप भली भाँति लगा सकते हैं। जी हाँ, मेरी यह परम ख़ुशनसीबी है कि ट्विटर के माध्यम से मुझे भी लता जी से चंद सवालात करने के मौके नसीब हुए, और उससे भी बड़ी बात यह कि लता जी ने किस सरलता से मेरे उन चंद सवालों के जवाब भी दिए। जितनी मेरी ख़ुशकिस्मती है, उससे कई गुना ज़्यादा बड़प्पन है लता जी का कि इतनी महान कलाकार होते हुए भी वो अपने चाहने वालों के सवालों के जवाब इस सादगी, सरलता और विनम्रता से देती हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि फलदार पेड़ हमेशा झुके हुए ही होते हैं। तो आइए, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में मेरे सवाल और लता जी के जवाब प्रस्तुत करते हैं।
सुजॊय - लता जी, बहुत बहुत नमस्कार, ट्विटर पर आपको देख कर हमें कितनी ख़ुशी हो रही है कि क्या बताऊँ! लता जी, आप ने शांता आप्टे के साथ मिलकर सन् १९४६ की फ़िल्म 'सुभद्रा' में एक गीत गाया था, "मैं खिली खिली फुलवारी"। तो फिर आपका पहला गीत १९४७ की फ़िल्म 'आपकी सेवा में' का "पा लागूँ कर जोरी रे" को क्यों कहा जाता है?
लता जी - नमस्कार! मैंने १९४२ से लेकर १९४६ तक कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया था जिनमें मैंने गानें भी गाये थे, जो मेरे उपर ही पिक्चराइज़ हुए थे। १९४७ में 'आपकी सेवा में' में मैंने पहली बार प्लेबैक किया था।
सुजॊय - लता जी, पहले के ज़माने में लाइव रेकॊर्डिंग् हुआ करती थी और आज ज़माना है ट्रैक रेकॊर्डिंग् का। क्या आपको याद कि वह कौन सा आपका पहला गाना था जिसकी लाइव नहीं बल्कि ट्रैक रेकॊर्डिंग् हुई थी?
लता जी - वह गाना था फ़िल्म 'दुर्गेश नंदिनी' का, "कहाँ ले चले हो बता दो मुसाफ़िर, सितारों से आगे ये कैसा जहाँ है", जिसे मैंने हेमन्त कुमार के लिए गाया था।
सुजॊय - लता जी, "ऐ मेरे वतन के लोगों" गीत से पंडित नेहरु की यादें जुड़ी हुई हैं। क्या आपको कभी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी से भी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है?
लता जी - आदरणीय बापू को मैं मिल ना सकी, लेकिन उन्हें दूर से दर्शन दो बार हुए। आदरणीय पंडित जी और आदरणीया इंदिरा जी को प्रत्यक्ष मिलने का सौभाग्य मुझे कई बार प्राप्त हुआ है।
सुजॊय - लता जी, क्या इनके अलावा किसी विदेशी नेता से भी आप मिली हैं कभी?
लता जी - कई विदेशी लीडर्स से भी मिलना हुआ है जैसे कि प्रेसिडेण्ट क्लिण्टन और क्वीन एलिज़ाबेथ। क्वीन एलिज़ाबेथ ने मुझे चाय पे बुलाया था और मैं बकिंघम पैलेस गई थी उनसे मिलने, श्री गोरे जी के साथ मे, जो उस समय भारत के राजदूत थे।
सुजॊय - लता जी, विदेशी लीडर्स से याद आया कि अगर विदेशी भाषाओं की बात करें तो श्रीलंका के सिंहली भाषा में आपने कम से कम एक गीत गाया है, फ़िल्म 'सदा सुलग' में। कौन सा गाना था वह और क्या आप श्रीलंका गईं थीं इस गीत को रेकॊर्ड करने के लिए?
लता जी - मैंने वह गीत मद्रास (चेन्नई) में रेकॊर्ड किया था और इसके संगीतकार थे श्री दक्षिणामूर्ती। गीत के बोल थे "श्रीलंका त्यागमयी"।
सुजॊय - लता जी, आपने अपनी बहन आशा भोसले और उषा मंगेशकर के साथ तो बहुत सारे युगल गीत गाए हैं। लेकिन मीना जी के साथ बहुत कम गीत हैं। मीना मंगेशकर जी के साथ फ़िल्म 'मदर इण्डिया' फ़िल्म में एक गीत गाया था "दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा"। क्या किसी और हिंदी फ़िल्म में आपने मीना जी के साथ कोई गीत गाया है?
लता जी - मैं और मीना ने 'चांदनी चौक' फ़िल्म में एक गीत गाया था, रोशन साहब का संगीत था, और उषा भी साथ थी।
तो दोस्तों, ये थे चंद सवाल जो मैंने पूछे थे लता जी से, और जिनका लता जी ने बड़े ही प्यार से जवाब दिया था। आगे भी मैं कोशिश करूँगा कि लता जी से कुछ और भी ऐसे सवाल पूछूँ जो आज तक किसी इंटरव्यु में सुनने को नहीं मिला। लेकिन फिलहाल आपको सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'दुर्गेश नंदिनी' का वह प्यारा सा गीत "कहाँ ले चले हो बता दो मुसाफ़िर"। यह लता जी का गाया पहला ट्रैक पे रेकॊर्ड किया हुआ गीत है जैसा कि उपर इन्होंने कहा है। यह १९५६ की फ़िल्म है और इस गीत को लिखा है राजेन्द्र कृष्ण नें।
गीत - कहाँ ले चले हो बता दो मुसाफ़िर (दुर्गेश नंदिनी)
तो ये थी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक बेहद ख़ास प्रस्तुति जब हमने बातें की सुर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर से ट्विटर पर। आज बस इतना ही, रविवार की शाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नियमित कड़ी के साथ फिर हाज़िर होंगे, तब तक के लिए अनुमति दीजिए, नमस्कार!
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7 श्रोताओं का कहना है :
मेरे प्रिय गीतों में से एक है यह गीत, धन्यवाद !
दो वर्ष पूर्व ग्वालियर में उदभव संस्था द्वारा आयोजित संगीत प्रतियोगिता में जहाँ में निर्णायक था एक ११ साल की बच्ची ने जब ये गीत सुनाया तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ उसकी पसन्द पर और उसकी गायकी पर कि आज के समय की उस बालिका ने इतना मधुर और पुराना गीत चुना ।
Beshak Sujoy saalon se internet par Hindi geeton ka aur aakashwani ka prachar/prasaar aur sangrah kar rahe hai.... Lata ji ne Sujoy ke prashno ka jawab de kar maano aashirwad diya hai.
Lage raho Sujoy, aapka kiya kaam ek anmol khazana ban raha hai... jee karta hai saara loot loon (aur loot lunga bhi)
Nagpur se,
Anup
aashchry sujoy !ho aaj ke nvyuvak aur kaam??? bli bli jaye to pe jasumti maiya sun o krisan murari.
बहुत ही अच्छा लगा यह साक्षात्कार पढ़ना.
इसे हम तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद .
दुर्गेश नंदिनी का यह गीत बहुत मधुर है और फिल्म में इसका फिल्मांकन भी बहुत सुन्दर हुआ है.
वाह! क्या बात है सुजय दा! सर्व प्रथम आपको लता दी के साथ इस अन्मोल साक्षात्कार पर बहुत-बहुत बधाई! हमे आप पर गर्व है! आज तक लता दी के कितने साक्षात्कार पढ़े और सुने हैं किंतु इन सब बातों के बारे मैं कोई उल्लेख नही पाया| आपके साथ-साथ हमे भी अपनी प्यारी लता दी के बारे में और जानने का सौभाग्य प्राप्त हो गया| असंख्य धन्यवाद!!!
आपका अनुज,
सुमित
मेरे हिसाब से आजतक किसि ने लता जी से यह सवाल न किया होगा:
आप ने शांता आप्टे के साथ मिलकर सन् १९४६ की फ़िल्म 'सुभद्रा' में एक गीत गाया था, "मैं खिली खिली फुलवारी"। तो फिर आपका पहला गीत १९४७ की फ़िल्म 'आपकी सेवा में' का "पा लागूँ कर जोरी रे" को क्यों कहा जाता है?
और न हीं कभी लता जी ने इतने प्यार से गायक और पार्श्व-गायक के बीच का अंतर बताया होगा।
सुजॉय जी, हमें सचमुच आप पर नाज़ है। हिन्दी फिल्म-संगीत के लिए आपमें जितनी लगन है, उतनी शायद हीं किसी और में होगी।
बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक
वाह वाह... क्या बेहतरीन साक्षात्कार है... अनमोल!
बहुत-बहुत धन्यवाद बांटने के लिए..
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