Saturday, December 26, 2009

सुनो कहानी: पंडित सुदर्शन की कालजयी रचना हार की जीत



'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने हरिशंकर परसाई की कहानी "ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड" का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं पंडित सुदर्शन की कालजयी रचना "हार की जीत", जिसको स्वर दिया है शरद तैलंग ने। हार की जीत का टेक्स्ट यहाँ पढ़ा जा सकता है

कहानी का कुल प्रसारण समय 9 मिनट 3 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।


पंडित सुदर्शन (मूल नाम: पं. बद्रीनाथ भट्ट)
(1895-1967)

सुनो कहानी के २००९ के अंतिम अंक में शरद जी के स्वर में हार की जीत प्रस्तुत करते हुए मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मैंने जम्मू में पांचवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में पहली बार "हार का जीत" पढी थी। तब से ही इसके लेखक के बारे में जानने की उत्सुकता थी। दुःख की बात है कि हार की जीत जैसी कालजयी रचना के लेखक के बारे में जानकारी बहुत कम लोगों को है। गुलज़ार और अमृता प्रीतम पर आपको अंतरजाल पर बहुत कुछ मिल जाएगा मगर यदि आप पंडित सुदर्शन की जन्मतिथि, जन्मस्थान (सिआलकोट) या कर्मभूमि के बारे में ढूँढने निकलें तो निराशा ही होगी। मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह पंडित सुदर्शन हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे हैं। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है। लाहोर की उर्दू पत्रिका हज़ार दास्ताँ में उनकी अनेकों कहानियां छपीं। उनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं। उन्हें गद्य और पद्य दोनों ही में महारत थी। "हार की जीत" पंडित जी की पहली कहानी है और १९२० में सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। मुख्य धारा के साहित्य-सृजन के अतिरिक्त उन्होंने अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे हैं. सोहराब मोदी की सिकंदर (१९४१) सहित अनेक फिल्मों की सफलता का श्रेय उनके पटकथा लेखन को जाता है। सन १९३५ में उन्होंने "कुंवारी या विधवा" फिल्म का निर्देशन भी किया। वे १९५० में बने फिल्म लेखक संघ के प्रथम उपाध्यक्ष थे। वे १९४५ में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी प्रचार सभा वर्धा की साहित्य परिषद् के सम्मानित सदस्यों में थे। उनकी रचनाओं में तीर्थ-यात्रा, पत्थरों का सौदागर, पृथ्वी-वल्लभ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। फिल्म धूप-छाँव (१९३५) के प्रसिद्ध गीत तेरी गठरी में लागा चोर, बाबा मन की आँखें खोल आदि उन्ही के लिखे हुए हैं।
(निवेदक: अनुराग शर्मा)

क्या कहना! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।
(पंडित सुदर्शन की कालजयी रचना "हार की जीत" से एक अंश)


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#Fifty Second Story, Har Ki Jeet: Pt. Sudarshan/Hindi Audio Book/2009/46. Voice: Sharad Tailang

Friday, December 25, 2009

फ़्लैशबैक २००९- नए संगीत कर्मियों का जोर- हिंदी फ़िल्मी/गैरफिल्मी गीत-संगीत पर एक वार्षिक अवलोकन सुजॉय चटटर्जी द्वारा



आप सभी को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार और Merry Christmas! अब बस इस साल में कुछ ही दिन रह गए हैं, और सिर्फ़ इस साल के ही नहीं बल्कि इस पूरे दशक के चंद रोज़ बाक़ी हैं। साल २००९ अगर हमें अलविदा कहने की ज़ोर शोर से तैयारी कर रहा है तो साल २०१० दरवाज़े पर दस्तक भी दे रहा है। हर साल की तरह २००९ भी हिंदी फ़िल्म जगत के लिए मिला जुला साल रहा, बहुत सारी फ़िल्में बनीं, जिनमें से कुछ चले और बहुत सारों के सितारे गरदिश पर ही रहे। जहाँ तक इन फ़िल्मों के संगीत का सवाल है, इस साल कई लोकप्रिय गानें आए जिनमें से कुछ फ़ूट टैपरिंग् नंबर्स थे तो कुछ सूफ़ी रंग में रंगे हुए, कुछ सॊफ़्ट रोमांटिक गानें दिल को छू गए, और बहुत सारे गानें तो कब आए और कब गए पता भी नहीं चला। आइए प्रस्तुत है साल २००९ के फ़िल्म संगीत पर एक लेखा जोखा, हमारी यह विशेष प्रस्तुति 'फ़ैल्शबैक २००९' के अन्तर्गत।

हम इस आलेख को शुरु करना चाहेंगे कुछ ऐसे कलाकारों को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए जो इस साल हमें छोड़ अपनी अनंत यात्रा पर निकल पड़े हैं। आप हैं फ़िल्मकार शक्ति सामंत, फ़िल्मकार प्रकाश मेहरा, गीतकार गुलशन बावरा, और अभी हाल ही मे हमसे बिछड़ी अभिनेत्री बीना राय। 'हिंद युग्म' की तरफ़ से आप सभी को हमारी विनम्र श्रद्धांजली। आज हम दो और कलाकारों को श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहेंगे, एक हैं मोहम्मद रफ़ी साहब जिनका कल, २४ दिसंबर को जन्मदिन था और दूसरे, संगीतकार नौशाद साहब, जिनका आज जन्मदिन है। आइए अब आगे बढ़ा जाए २००९ की फ़िल्म संगीत की समीक्षा पर। शुरुआत हम करना चाहेंगे फ़िल्म जगत की सुरीली महारानी लता मंगेशकर को सेल्युट करते हुए। दोस्तों, यह हैरत में डाल देने वाली ही बात है कि ८० वर्ष की आयु में लता जी फ़िल्म जगत में सक्रीय हैं, भले ही कम मात्रा में। मधुर भंडारकर की फ़िल्म 'जेल' के लिए लता जी ने गाया "दाता सुन ले, मौला सुन ले" और एक बार फिर साबित किया कि वो लता मंगेशकर हैं। इस साल की सर्वश्रेष्ठ गायिका के रूप में उनका नाम मनोनित करने की ग़ुस्ताख़ी मैं नहीं करूँगा क्योंकि आज के दौर के गायिकाओं में उन्हे शामिल करना हमें शोभा नहीं देता। बस ईश्वर से यही दुआ करेंगे कि लता जी ऐसे ही गाती रहें और फ़िज़ाओं में अमृत घोलती रहें।

अगर हम २००९ को संगीतकार प्रीतम का साल कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सब से ज़्यादा हिट गानें उन्होने ही तो दिए हैं इस साल। 'बिल्लु', 'न्युयार्क', 'लव आजकल', 'लाइफ़ पार्टनर', 'लव खिचड़ी', 'दिल बोले हड़िप्पा', 'ऒल दि बेस्ट', 'अजब प्रेम की ग़ज़ब कहानी' और 'तुम मिले' जैसी फ़िल्मों में उन्होने कामयाब संगीत दिया। इन सभी फ़िल्मों के गानें साल भर छाए रहे हर रेडियो व टीवी चैनल पर, और झूठ नहीं बोलूँगा मुझे भी इन फ़िल्मों में से कई गानें पसंद आए जिनका ज़िक्र आगे चलकर बारी बारी से आलेख में आता रहेगा किसी ना किसी संदर्भ में। इन सब फ़िल्मों के अलावा नवोदित संगीतकार गौरव दासगुप्ता के साथ उन्होने शेयर किया फ़िल्म 'आ देखें ज़रा' का संगीत। उधर गौरव ने बप्पी लाहिड़ी के बेटे और उभरते संगीतकार बप्पा लाहिड़ी तथा 'जेल' फ़िल्म के मुख्य संगीतकार शमीर टंडन के साथ 'ऐसिड फ़ैक्टरी' का संगीत भी शेयर किया। नवोदित संगीतकारों की बात जब छिड़ ही गई है तो गौरव दासगुप्ता के अलावा और भी कई उभरते संगीतकार इस साल नज़र आए। अमित त्रिवेदी ने 'देव-डी' में अगर किया आपका "ईमोशनल अत्याचार" तो आर.डी.बी ने बनाया हमारे लिए 'आलू चाट'। अब उस चाट का स्वाद कैसा था वह हम सभी को पता है। और अब आर.डी.बी का पूरा नाम मुझसे मत पूछिएगा! चिरंतन भट्ट का संगीत फ़िल्म 'थ्री - लव लाइज़ ऐंड बिट्रेयल' में उन्हे बिट्रे कर गई लेकिन सोहैल सेन के १३ गानें 'व्हाट्स योर राशी' में कुछ हद तक पसंद किए गए, लेकिन फ़िल्म के पिट जाने की वजह से संगीत का राशीफल भी कुछ अच्छा नहीं रहा। नए संगीतकारों में शरीब साबरी और तोशी साबरी ने शरीब-तोशी की जोड़ी बनाकर फ़िल्म 'राज़-२', 'जश्न', और 'जेल' में अच्छा काम दिखाया। तोशी की ही आवाज़ में 'राज़-२' का गीत "दिल रोए रे इलाही तू आजा मेरे माही" ख़ासा लोकप्रिय हुआ। इस फ़िल्म में राजु सिंह, प्रणय एम. रिजिया और गौरव दासगुप्ता ने भी कुछ गानें कॊम्पोज़ किए। राजु सिंह के संगीत में सोनू निगम और श्रेया घोषाल की आवाज़ों में "ओ सोनियो" ने भी युवाओं को काफ़ी अट्ट्राक्ट किया।

प्रीतम के बाद जो संगीतकार इस साल ज़्यादा सक्रीय रहे वो हैं शंकर अहसान लॊय की तिकड़ी। 'लक बाइ चांस', 'लंदन ड्रीम्स', 'वेक अप सिद', '१३-बी', 'शॊर्ट कट' जैसी फ़िल्मों में उनका संगीत बजा। शंकर ने इनमें से कई फ़िल्मों में अपनी गायकी के जल्वे भी दिखाए। 'लक बाइ चांस' में "बावरे", "सपनों से भरे नैना", "ओ राही रे", 'शॊर्ट कट' में "मरीज़-ए-मोहब्बत" और "पतली गली से निकल भी जा", 'वेक अप सिद' का शीर्षक गीत, 'लंदन ड्रीम्स' में "मन को अति भावे स‍इयाँ" और फ़िल्म 'अलादिन' में भी कुछ गानें उन्होने गाए। शंकर अहसान लॊय ने इस साल कम से कम तीन नए गायकों को अच्छा ब्रेक दिया। इनमें से एक हैं 'इंडियन आइडल' के प्रतिभागी अमित पॉल जिनसे गवाया गया महालक्ष्मी अय्यर के साथ फ़िल्म 'लक बाइ चांस' में एक नर्मोनाज़ुक युगल गीत "प्यार की दस्ताँ"। 'लंदन ड्रीम्स' में एक और रियलिटी शो से उभरे गायक अभिजीत घोषाल को "जश्न है जीत का" गीत में और मोहन को "ख़ाना बदोश" गीत में मौका दिया। 'वेक अप सिद' में अमिताभ भट्टाचार्य से गवाया "गूँजा सा है कोई इकतारा"। 'शॊर्ट कट' फ़िल्म में बहुत दिनों के बाद सोनू निगम और अल्का याज्ञ्निक की युगल आवाज़ें सुनने को मिलीं जावेद अख़्तर साहब के लिखे एक रोमांटिक डुएट "कल नौ बजे तुम चाँद देखना" गीत में। शंकर अहसान लॊय ने 'चांदनी चौक टू चायना' फ़िल्म में कैलाश खेर, कामत ब्रदर्स और बप्पी लाहिड़ी के साथ संगीत शेयर किया। बप्पी दा ने इस फ़िल्म में अपना हिट गीत "बम्बई से आया मेरा दोस्त" को नए रूप में "इंडिया से आया मेरा दोस्त" पेश किया। बप्पी लाहिड़ी और लव जंजुआ 'जय वीरू' फ़िल्म में भी संगीत दिया लेकिन "तैनु लेके जाना" गीत के अलावा किसी भी गीत के तरफ़ लोगों ने ध्यान नहीं दिया।

अब ज़िक्र एक ऐसे संगीतकार का जिनका नाम हर पीढ़ी के श्रोता बड़े सम्मान से लेते हैं। ए. आर. रहमान, जो हर साल एक दो फ़िल्मों में संगीत देकर अपना अमिट छाप छोड़ जाते रहे हैं, इस साल भी उनका यही रवैया जारी रहा। बस दो फ़िल्में - 'दिल्ली-६' और 'ब्लू', लेकिन दोनों का संगीत ही सुपरहिट। 'ब्लू' फ़िल्म भले ही पिट गई लेकिन 'दिल्ली-६' ने लोगों को अपनी ओर खींचा। "मसक्कली", "ससुराल गेंदाफूल", "अर्ज़ियाँ" और "रहना तू" जैसे गानें ख़ूब ख़ूब पसंद किए गए और निस्संदेह इन गीतों को पुरस्कारों के कई विभागों में इस साल नॊमिनेशन मिलेगा ऐसा मेरा ख़याल है। दक्षिण के एक और संगीतकार जिनकी फ़िल्म 'सदमा' के गानें आज भी याद किए जाते हैं, इस साल उनका पुनरागमन हुआ हिंदी फ़िल्म संगीत में। इलय्याराजा ने फ़िल्म 'चल चलें' और 'पा' में संगीत दिया। 'चल चलें' तो बिना कोई शोर मचाए ही चली गई पर अभी अभी प्रदर्शित हुए 'पा' के रेवियूस बेहद अच्छे हैं। फ़िल्म 'पा' के गानें लिखे हैं स्वानंद किरकिरे ने जो ज़्यादा जाने जाते हैं संगीतकार शांतनु मोइत्र के साथ काम करने के लिए। तो भई, इस साल भी इन दोनों की जोड़ी सलामत रही और आज ही रिलीज़ हो रही है स्वानंद-शांतनु की फ़िल्म '३ इडियट्स'। इस फ़िल्म में सोनू निगम और श्रेया घोषाल के गाए "ज़ूबी डूबी" गीत को काफ़ी पसंद भी किया जा रहा है। एक और सीनियर संगीतकार अनु मलिक साहब ने इस साल 'विक्ट्री' और 'कमबख़्त इश्क़' में संगीत दिया, पर इन कमबख़्त फ़िल्मों ने उनका साथ नहीं दिया। अनु मलिक के भाई और कम बजट के फ़िल्मों के संगीतकार डबू मलिक को इस साल मौका मिला कुछ हद तक बड़ी बजट की फ़िल्म 'किसान' में संगीत देने का लेकिन वो इसका फ़ायदा नहीं उठा सके। ज़िक्र जारी है सीनियर संगीतकारों की, नदीम श्रवण इस साल लेकर आए 'डू नॊट डिस्टर्ब'। इस फ़िल्म के संगीत को सुनकर हम बस यही कह सकते हैं कि नदीम श्रवण जी, आपके पुराने तमाम गीतों के चाहनेवालों को आपने बहुत ज़्यादा निराश किया है।

हमेशा किसी ना किसी वजह से चर्चा में रहने वाले हिमेश रेशम्मिया इस साल चर्चा में रहे अपने नए लुक्स और नई आवाज़ के लिए। फ़िल्म थी 'रेडियो - लव ऒन एयर'। हाल ही में फ़िल्म रिलीज़ हुई है, गानें भी अच्छे बनाए हैं उन्होने इस फ़िल्म में। श्रेया घोषाल के साथ उनका गाया युगल गीत "जानेमन" का शुमार तो अच्छे गीतों में ही होना चाहिए। लेकिन 'तेरे नाम' वाली बात फिर भी नहीं बन पाई है। 'तेरे नाम' से याद आया कि सल्लु मियाँ पिछले कुछ सालों से संगीतकार जोड़ी साजिद-वाजिद को संगीत देने के काफ़ी मौके देते आए हैं। इस साल भी 'वान्टेड' और 'मैं और मिसेस खन्ना' जैसी फ़िल्मो में इस जोड़ी का संगीत गूँजा। 'वान्टेड' के गानें तो ज़्यादातर आइटम सॊंग्‍स् ही थे, और 'मैं और मिसेस खन्ना' में सोनू-श्रेया के गाए "डोंट से अल्विदा" में भी 'मुझसे शादी करोगी' की याद आती रही। 'ढ़ूंढते रह जाओगे' में भी साजिद-वाजिद का संगीत रहा लेकिन अगर मैं आप से इस फ़िल्म के गीतों के बारे में पूछूँ तो आप भी शायद ढ़ूंढते ही रह जाओगे!

२००८ में 'रब ने बना दी जोड़ी' से हिट हुए संगीतकार जोड़ी 'सलीम सुलेमान' ने कम से कम तीन ऐसी फ़िल्मों में संगीत दिया कि वो फ़िल्में तो नही चली लेकिन उनके संगीत को ज़रूर नोटिस किया गया। फ़िल्म 'लक' में "लक आज़मा" और 'क़ुर्बान' में "शुक्रान अल्लाह" गीतों ने अच्छा नाम कमाया। '8x10 तस्वीर' में "नज़ारा है" गीत हिट हुआ। वैसे इस फ़िल्म में नीरज श्रीधर और बोहेमिया का भी संगीत था। नीरज श्रीधर भले ही इस फ़िल्म में संगीत दिया हो, लेकिन वो इस साल छाए रहे अपनी आवाज़ की वजह से। एक के बाद एक कई हिट गीतों में उनकी आवाज़ रही। 'बिल्लू' फ़िल्म में "लव मेरा हिट हिट सोनिए", '8x10 तस्वीर' में "आजा माही", 'लव आजकल' में "ट्विस्ट'", "चोर बाज़ारी", "आहुं आहुं", 'अजब प्रेम की ग़ज़ब कहानी' में "प्रेम की नैया", 'तुम मिले' में "तुम मिले तो जीना आ गया" जैसे पॊपुलर गानें उन्होने गाए। नीरज श्रीधर के ज़िक्र से याद आया दोस्तों कि हमने अब तक एक ऐसे गायक का ज़िक्र तो किया ही नहीं जिसने शायद इस साल सब से ज़्यादा बेहतरीन गानें गाए हैं। जी हाँ, मोहित चौहान। चाहे वह 'दिल्ली-६' की "मसकली" हो या 'लव आजकल' की "ये दूरियाँ", '8x10 तस्वीर' का "हाफ़िज़ ख़ुदा", 'न्यु यार्क' का "तूने जो ना कहा", 'तुम मिले' में "इस जहाँ में" और 'कमीने' फ़िल्म का "पहली बार मोहब्बत की है"। वैसे 'कमीने' ज़्यादा चर्चित हुआ सुखविंदर सिंह और विशाल दादलानी के गाए "ढैन ट नैन" गीत की वजह से। गुल्ज़ार साहब के क़लम का जादू चला इस फ़िल्म के गीतों में और विशाल भारद्वाज का संगीत था। वैसे विशाल दादलानी अपनी संगीतकार जोड़ी विशाल-शेखर के संगीत के बाहर भी शुरु से ही गाते आए हैं, इस साल भी उनकी आवाज़ कई गीतों में गूँजी। "नज़ारा है" और "ढैन ट नैन" के अलावा विशाल-शेखर के संगीत में 'अलादिन' फ़िल्म में 'यू मे बी" और "बचके ओ बचके" गीतों में उनकी आवाज़ थी। वैसे विशाल शेखर के लिए यह साल उतना अच्छा नहीं रहा जिस तरह का उनका पहले रह चुका है। नीरज श्रीधर और मोहित चौहान, इन दोनों गायकों को फ़िल्मों में मौका देकर लोकप्रिय बनाने का श्रेय संगीतकार प्रीतम को ही जाता है। और सिर्फ़ ये दो ही नहीं बल्कि कई और गायकों को प्रीतम ने समय समय पर मौका दिया है। २००९ में सोहम ने प्रीतम दा के लिए गाया फ़िल्म 'लाइफ़ पार्टनर' में "तेरी मेरी ये ज़िंदगी" तथा आतिफ़ अस्लम ने 'अजब प्रेम की...' में "तेरा होने लगा हूँ"।

दोस्तों, एक और पार्श्व गायक हैं जो कई हिट गीत गाते रहने के बावजूद भी कुछ अंडर-रेटेड ही रहे हैं। हम यहाँ के.के की बात कर रहे हैं। "है जुनून" (न्युयार्क), "मैं क्या हूँ" (लव आजकल), "मैं जितनी मर्तबा" (ऒल दि बेस्ट), "मैं तेरा धड़कन तेरी" (अजब प्रेम की...), "दिल इबादत कर रहा है धड़कनें मेरी सुन" और "ओ मेरी जान" (तुम मिले) जैसे गीत इस साल के.के. ने गाए हैं, लेकिन उनकी चर्चा ना के बराबर ही हुई। सूफ़ी मिज़ाज के गीतों की अब बात करें तो कैलाश खेर, राहत फ़तेह अली ख़ान और जावेद अली जैसे गायकों ने परंपरा को आगे बढ़ाया। इनमें उल्लेखनीय हैं राहत साहब के गाए "जाऊँ कहाँ" (बिल्लू), "आज दिन चढ़ेया" (लव आजकल), और "रब्बा" (मैं और मिसेस खन्ना)। 'दिल्ली-६' की क़व्वाली "अर्ज़ियाँ" में कैलाश खेर और जावेद अली की आवाज़ें थीं। जहाँ तक पार्श्व गायिकाओं की बात है तो इस साल की फ़िल्मों का रवैया गायिकाओं की तरफ़ उदासीन ही रहा। इस साल गायिकाओं के गाए ऐसे गानें जो आप के दिल को छू ले, उंगलियों में गिने जा सकते हैं। लता जी के गाए 'जेल' फ़िल्म के गीत के अलावा जिन प्रमुख गीतों का उल्लेख किया जा सकता है वो हैं फ़िल्म 'दिल्ली-६' का समूह गीत "ससुराल गेंदाफूल" जिसे रेखा भारद्वाज, श्रद्धा पंडित और सुजाता मजुमदार ने गाया है, इसी फ़िल्म में श्रेया घोषाल का गाया राग गुजरी तोड़ी पर आधारित "भोर भई", फ़िल्म 'न्यु यार्क' में सुनिधि चौहान का गाया "मेरे संग", अल्का याज्ञ्निक का गाया फ़िल्म 'शॊर्ट कट' में "कल नौ बजे", फ़िल्म 'व्हाट्स योर राशी' में बेला शेंदे का गाया "सु छे", 'वेक अप सिद' में कविता सेठ का गाया "इकतारा", शिल्पा राव की आवाज़ में फ़िल्म 'पा' का "उड़ी उड़ी", और अलिशा चिनॊय का गाया फ़िल्म 'अजब प्रेम की गज़ब कहानी' का लोकप्रिय गीत "तेरा होने लगा हूँ"। इस गीत में भले ही आतिफ़ अस्लम वाला हिस्सा "तेरा होने लगा हूँ" इस गीत का कैच लाइन है, लेकिन अलिशा वाला हिस्सा आजकल बहुतों के कॊलर ट्युन में सुना जा सकता है।

और अब आते हैं गीतकारों पर। गुल्ज़ार, जावेद अख़्तर और स्वानंद किरकिरे का अब तक हमने ज़िक्र किया है। इनके अलावा दो और गीतकार जो पिछले कुछ सालों से फ़िल्म जगत में सक्रीय रहे हैं और इस साल भी कई अच्छे गानें हमें दिए हैं, वो हैं प्रसून जोशी और इरशाद कामिल। अगर प्रसून ने 'दिल्ली-६' के गानें लिखे तो इरशाद साहब ने 'लव आजकल' और 'अजब प्रेम की...' के तमाम हिट गानें लिखे। वैसे 'अजब प्रेम...' में आशिष पंडित के भी गानें थे और 'बिल्लु' फ़िल्म का "मरजानी" गीत भी आशिष का ही लिखा हुआ था। इनके अलावा जिन गीतकारों ने इस साल काम किया उनमें शामिल हैं सईद क़ादरी, मयूर पुरी, सय्यद गुलरेज़, शीर्षक आनंद, प्रशांत पाण्डेय, संदीप श्रीवास्तव, जुनैद वारसी, अजय कुमार गर्ग जिन्होने फ़िल्म 'जेल' में "दाता सुन ले" गीत को लिखा था। हिमेश भाई की फ़िल्म 'रेडियो - लव ऒन एयर' में नवोदित गीतकार सुब्रत सिन्हा ने बहुत ही अच्छे काम का प्रदर्शन किया है, और सुनने में आया है कि फ़िल्म ने अपने रिलीज़ से पहले ही पूरा पैसा वसूल कर लिया है, और यकीनन यह इस फ़िल्म के गीतों का ही असर होगा! गुल्ज़ार साहब ने 'कमीने' के अलावा 'बिल्लु' में कुछ गानें लिखे तथा जावेद अख़्तर ने 'शॊर्ट कट' के अलावा अपने बेटे की फ़िल्म 'लक बाइ चांस' के गानें लिखे। कुछ भी कहिए गुलज़ार साहब का कोई सानी आज दूर दूर तक दिखाई नहीं देता। उनके ग़ैर पारम्परिक बोल इस साल भी सुनाई दिए, ख़ास कर फ़िल्म 'कमीने' के गीत "पहली बार मोहब्बत की है" में भी गिलहरी के जूठे मटर खाने का ज़िक्र है जो उनकी इसी ख़ास अदा को बरकरार रखती है। जहाँ कुछ गीतकारों ने अच्छा काम दिखाया, वहीं बहुत से गीतकारों ने महज़ 'वर्ड फ़िटर' की भूमिका निभाई, और यह मैं यह काम आप पर छोड़ता हूँ ऐसे गीतों को अलग कर रद्दी की टोकरी में फेंकने की।

और अब ये हैं इस साल के मेरी पसंद के ५ गानें....

१. दाता सुन ले, मौला सुन ले (जेल)

२. ससुराल गेंदाफूल (दिल्ली-६)

३. कल नौ बजे तुम चांद देखना (शॊर्ट कट)

४. ये दूरियाँ (लव आजकल)

५. दिल इबादत कर रहा है (तुम मिले)


और अब मेरी तरफ़ से इस साल के कुछ सर्वश्रेष्ठ गीत व कलाकार, अलग अलग श्रेणियों में......

BEST SONG - मसकली (दिल्ली-६)
BEST ALBUM- दिल्ली-६
BEST LYRICIST- गुलज़ार (पहली बार मोहब्बत की है, कमीने)
BEST COMPOSER- ए. आर. रहमान (दिल्ली-६)
BEST SINGER (MALE) - मोहित चौहान (मसकली, दिल्ली-६)
BEST SINGER (FEMALE) - रेखा भारद्वाज, श्रद्धा पंडित, सुजाता मजुमदार (ससुराल गेंदाफूल, दिल्ली-६)
BEST NON FILMI SONG - चांदन में (कैलाश खेर)
BEST UPCOMING ARTIST - तोशी (तू आजा मेरे माही, राज़-२)
BEST FILMED (CHOREOGRAPHED) SONG OF THE YEAR. - बावरे (लक बाइ चांस)
ARTIST OF THE YEAR (OVERALL PERFORMANCE WISE) - प्रीतम


और दोस्तों, अब चलने से पहले आपको बताना चाहेंगे कि साल २०१० में आप किन फ़िल्मों से उम्मीदें रख सकते हैं। साल की शुरुआत होगी सीज़न्स ग्रीटिंग्स के साथ। जी हाँ, १ जनवरी को रिलीज़ हो रही है फ़िल्म 'सीज़न्स ग्रीटिंग्स'। इसके अलावा 'पान सिंह तोमर', 'पीटर गया काम से', 'फ़िल्म सिटि', 'माइ नेम इज़ ख़ान', 'कुची कुची होता है', 'तीन पत्ती', 'रण', 'वीर', 'राइट या रॊंग्', और 'दुल्हा मिल गया' जैसी फ़िल्में एक के बाद एक आती जाएँगी। इन सब की क़िस्मत में क्या है वह तो वक्त और जनता ही तय करेगी, फ़िल्हाल आप ईयर एंडिंग् की छुट्टियों का मज़ा लीजिए, और २००९ के फ़िल्म संगीत की यह समीक्षा आपको कैसी लगी, ज़रूर टिप्पणी में लिखिएगा, आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ, अब दीजिए मुझे इजाज़त, नमस्कार!

आलेख - सुजॉय चटर्जी

Thursday, December 24, 2009

जाने वाले सिपाही से पूछो...ओल्ड इस गोल्ड का ३०० एपिसोड सलाम करता है देश के वीर जांबाज़ सिपाहियों को



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 300

र दोस्तों, हमने लगा ही लिया अपना तीसरा शतक। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' आज पूरा कर रहा है अपना ३००-वाँ अंक, और इस मुक़ाम तक पहुँचने में आप सभी के योगदान और प्रोत्साहन की हम सराहना करते हैं कि इस सीरीज़ को यहाँ तक लाने में आप ने हमारा भरपूर साथ दिया। और हर बार की तरह हमें पूरा विश्वास भी है कि आगे भी आपका ऐसा ही साथ बना रहेगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साथ। जैसा कि इन दिनों आप सुन रहे हैं शरद तैलंग जी के पसंद के गानें और आज बारी है पाँचवें गीत की, तो आज के इस ख़ास अंक को शरद जी के पसंद के गीत के ज़रिए हम समर्पित करना चाहेंगे हमारे देश के उन वीर जवानों को जो अपना सर्वस्व न्योछावर कर इस मातृभूमि की रक्षा करते हैं, हमारी हिफ़ाज़त करते हैं, इस देश को दुश्मनों से सुरक्षित रखते हैं। आज हम घर में चैन से बस इसलिए सो सकते हैं कि सरहद पर हमारे फ़ौजी भाई जाग रहे होते हैं। देश के वीर जवानों का ऋण किसी भी तरह से चुकाया तो नहीं जा सकता लेकिन यह हमारी छोटी से कोशिश है उन वीरों को सम्मानित करने की, उन शहीदों के आगे नतमस्तक होने की। और इस कोशिश में शरद जी की भी कोशिश शामिल है क्योंकि उन्ही की पसंद पर आज हम सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'उसने कहा था' का गीत "जानेवाले सिपाही से पूछो वो कहाँ जा रहा है"। मख़्दूम मोहिउद्दिन ने इस गीत को लिखा है, संगीत है सलिल चौधरी का और आवाज़ें हैं मन्ना डे, सविता बैनर्जी (चौधरी)और साथियों की।

'उसने कहा था' १९६० की बिमल रॊय की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था मोनी भट्टाचार्जी ने। सुनिल दत्त, नन्दा, राजेन्द्र नाथ, दुर्गा खोटे अभिनीत इस फ़िल्म के गीत संगीत ने काफ़ी धूम मचाया था। ख़ास कर लता-तलत के गाए "आहा रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिए" को सलिल दा के सब से ज़्यादा लोकप्रिय गीतों की श्रेणी में रखा जाता है। आज का प्रस्तुत गीत फ़ौजियों के ज़िंदगी की कहानी है। कोरस सिंगिंग् का एक बेहतरीन उदाहरण है यह गीत। कोरस के ज़रिए काउंटर मेलडी का प्रयोग हुआ है। हम पहले भी बता चुके हैं कि सलिल दा एक क्रांतिकारी संगीतकार रहे हैं। सामाजिक और राजनैतिक जागरण पर गीत लिखने के जब भी सिचुयशन आए है, उन्होने हर बार बहुत ही प्रभावशाली गानों की रचना की है। इस गीत में भी वही सुर गूंजते सुनाई देते हैं। अपने घर से निकल कर फ़्रंट पर जाते हुए सिपाही के दिल में किस तरह के ख़यालात होते हैं, किस तरह के जज़्बात उभरते हैं, और उसके जाने से पीछे छोड़ आए दुनिया में क्या प्रभाव पड़ता है, उसी की तस्वीरें भरी गई हैं इस गीत में। और मख़्दूम साहब आख़िरी अंतरे में लिखते हैं कि "लाश जलने की बू आ रही है, ज़िंदगी है कि चिल्ला रही है"। तो दोस्तों, आइए एक बार फिर सलाम करें और नमन करें हमारे वीर सिपाहियों को, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का ३००-वाँ एपिसोड समर्पित है देश के उन वीर सपूतों के नाम! और इसी तीसरे शतक के साथ हम कर रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की पहली पारी समाप्ति की घोषणा। अरे अरे घबराइए नहीं, दूसरी पारी के साथ हम बहुत जल्द वापस आएँगे, अभी तो कई और शतकें लगानी हैं हमें। अभी तो बहुत से ऐसे गीतकार, संगीतकार और गायक हैं जिनको हमने अभी शामिल ही नहीं किया है, तो भला हम यह शृंखला समाप्त कैसे कर सकते हैं। तो दोस्तों, एक अल्पविराम के बाद नए साल में हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' लेकर फिर वापस आएँगे। लेकिन 'आवाज़' पर ईयर एंडिंग् के लिए कुछ विशेष आकर्षणों की व्यवस्था की गई है जिन्हे आप कल से सुन और पढ़ पाएँगे। तो अब इजाज़त दीजिए और हर रोज़ बने रहिए 'आवाज़' के साथ, क्योंकि यह हमारी नहीं आपकी भी आवाज़ है! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' टीम की तरफ़ से आप सभी को विश् करते हैं कि ईयर एंडिंग् आप हँसी ख़ुशी मनाएँ और एक नए साल का हँसते हँसते स्वागत करें, नमस्ते!



और अब दोस्तों, तैयार हो जाईये ओल्ड इस गोल्ड पहेली के अब तक के सबसे कड़े मुकाबले के लिए, पेश है १० सवाल आप सबके लिए हर सवाल के होंगें ३ अंक. जो भी जिस सवाल का सबसे पहले सही जवाब दे देगा उस जवाब के अंक उसके खाते में जुड जायेगें. आपके पास इन पहेलियों को सुलझाने के लिए ३ दिन का समय रहेगा यानी २७ तारीख़ शाम ६.३० तक के जवाब ही स्वीकार किये जायेगें. ये पहेली सबके लिए खुली है. विजेता को हमारी तरफ़ से मिलेगा एक बम्पर इनाम, जिसके तहत वो अपनी पसंद के १० गानें 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बजा पाएँगे और हमारे श्रोताओं व पाठकों से उनका परिचय भी करवाया जाएगा एक मुलाक़ात की शक्ल में। तो फिर देर किस बात की? जल्द से जल्द हमें लिख भेजिए इन दस सवालों के सही जवाब और बनिए 'Old is Gold Champ'!

१. "तेरे महल की देख दिवाली, मैंने अपनी दुनिया जला ली, प्रीत की होली मनाई, प्रीत किए पछताई रे"। ये पंक्तियाँ जिस गीत के अंतरे की है उस गीत का मुखड़ा क्या है?

२. एक प्रसिद्ध गायिका की आवाज़ में एक ग़ज़ल है "रहने लगा है दिल में अन्धेरा तेरे बग़ैर"। फ़िल्म और गायिका का नाम बताइए।

३. २० दिसंबर १९८१ को किस संगीतकार का निधन हुआ था?

४. सुरेन्द्र की आवाज़ में एक गीत है - "अब हमको भुला कहते हैं"। बताइए यह गीत किस फ़िल्म का है तथा इसके संगीतकार कौन हैं?

५. इस गीतकार ने क्रिमिनल, घर की लाज, घर संसार, बदला, करो या मरो, बाबूजी, दामन जैसी फ़िल्मों के लिए गानें लिखे। इनका १६ जनवरी १९८३ को मुंबई में निधन हो गया था। बताइए कि हम किस गीतकार की बात कर रहे हैं?

६. लता मंगेशकर के गाए फ़िल्म 'जीवन यात्रा' का गीत "चिड़िया बोले चूँ चूँ चूँ" किस कलाकार पर फ़िल्माया गया था?

७. ११ मार्च १९७४ में लता मंगेशकर ने विदेश में पहली बार, लंदन के अल्बर्ट हॊल में स्टेज पर अपना गायन प्रस्तुत किया। कड़ाके की ठंड के बावजूद कोने कोने से लोग आए उन्हे सुनने के लिए। कुल ६००० सीटों की टिकटें बहुत पहले से ही बिक चुकी थीं। लेकिन लता जी ने कोई पारिश्रमिक नहीं ली। बताइए कि इस शो से प्राप्त पूंजी का कहाँ इस्तेमाल हुआ?

८. फ़िल्म 'इंतज़ार के बाद' के संगीतकार कौन थे?

९. आशा भोसले की आवाज़ में एक गीत है "हर टुकड़ा मेरे दिल का देता है गवाही"। आपको बताना है इस गीत के फ़िल्म का नाम, लेकिन इतना काफ़ी नहीं है। इसके साथ ही एक ऐसा फ़िल्मी गीत भी आपको बताना है जिसकी प्रारंभिक पंक्तियों में उपर्युक्त गीत की फ़िल्म का नाम आया हो।

१०. 'ओल इज़ गोल्ड' में हमने गीतकार आइ. सी. कपूर का लिखा केवल एक ही गीत अब तक सुनवाया है। बताइए वह कौन सा गीत था।


दोस्तों, हम जानते हैं कि ये सवाल थोड़े से मुश्किल क़िस्म के है, लेकिन असंभव नहीं। आप अपना समय लीजिए, जल्द बाज़ी में ग़लत जवाब ना दीजिएगा, ख़ूब खोज बीन कीजिए, हमें पूरी उम्मीद है कि २७ दिसंबर तक आपको सभी जवाब मिल जाएँगे। याद रखिये, जरूरी नहीं कि आपने सभी सवालों का जवाब देना ही है, जैसे जैसे आपको जवाब मिलते जाएँ, यहाँ टिपण्णी के माध्यम से दर्ज करते जाएँ. ठीक एक ही समय पर यदि दो जवाब आते हैं तो दोनों प्रतिभागियों को ३-३ अंक मिल जायेगें.कोई ऋणात्मक मार्किंग नहीं है. आप एक से अधिक बार भी एक सवाल का जवाब दे सकते हैं, बशर्ते सही जवाब पहले ही न आ चुका हो. तो आप सभी को हमारी शुभकामनाएं, विजेता की घोषणा १ जनवरी के अंक में की जाएगी।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

पूरी दुनिया को अपने ताल पर नचाने वाले इन गीतों के साथ मनाईये क्रिसमस और नववर्ष की खुशियाँ



दोस्तों कल है २५ दिसम्बर यानी प्रभु ईसा मसीह का जन्मदिन, जिसे पूरी दुनिया में क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है. दूसरी तरफ वर्ष समाप्ति का भी समय है, नववर्ष के स्वागत का भी उल्लास है, ऐसे में हर कोई रोजमर्रा के ताम झाम से कुछ हद छुटकारा पाकर थोड़ी बहुत मस्ती और एन्जॉय करने के बहाने तलाश रहा है. आवाज़ तो हर हाल में आपका मीत ठहरा, तो हमने सोचा कि इन खुशियों भरी पार्टियों में आपके लिए कुछ ऐसे गीत चुन कर बजाये जाएँ, जो किसी देश, प्रदेश या भाषा की दीवारें लांग कर पूरी दुनिया पर कुछ ऐसे छा गए कि पीढ़ियों पीढयों तक लोग उन धुनों पर थिरकते पाए गए. कहते हैं संगीत की कोई भाषा नहीं होती, हमें यकीं है कि इन गीतों के शब्द आपको समझ आये या न आयें, इन्हें सुनकर आपका भी मन झूमने को कर उठेगा.

भारतीय मूल के अपेचे इंडियन सुदूर दक्षिण अमेरिका के निवासी जरूर हैं पर उनकी रगों में दौड़ता भारतीय संगीत ही आखिरकार उनकी पहचान बना. छोटे बाल, हलकी मूछें, कानों में कुंडल, रेग्गे और भांगड़ा का उपयुक्त मिश्रण और अप्पेचे बन गए अंतर्राष्ट्रीय सितारे, अपने एक गीत "चोक देयर" से, ९० के दशक में आया ये विडियो ARRANGED MARRIAGE के नाम से भी जाना जाता है, और उस दौर के लोगों को याद होगा इनमें भारतीय नृत्य करती एक महिला भी थी थी जो अप्पेचे के साथ थिरकी थीं, वाह क्या धूम मचाई थी इस जबरदस्त गीत ने, चलिए आप भी सुनकर देखें-

CHOK THERE (APPECHHE INDIAN)


डेनमार्क की इस गायिका ने रातों रात शोहरत की बुलंदियों को छु लिया अपने जबरदस्त गीत SATURDAY NIGHT से. इस महिला बैंड की मुखिया थी विग्फील्ड के नाम से मशहूर नान, जो एक सफल मॉडल भी थी. इस गीत का भी विडियो सनसनीखेज था. शायद ही किसी वीकेंड पार्टी में इस गीत को बजाया न जाता हो, तब भी और आज भी....लीजिये आप भी झूमिये.

SATURDAY NIGHT (WHIGHFIELD)


दुनिया भर में २० लाख से भी अधिक बिका ये गीत. पीटर आंद्रे ने इसे बनाया ऑस्ट्रेलिया में बैठकर, और इस गीत के बाद उन्हें दुनिया की बड़ी सेलेब्रिटियों में गिना जाने लगा, जी हाँ आपने सही पहचाना, मैं "मिस्टीरीयस गर्ल" की ही बात कर रहा हूँ, अब इस 'रहस्मयी लड़की' का रहस्य तो मोनोलिसा की मुस्कान की तरह रहस्य ही रहा पर गीत ने पूरी दुनिया में जबरदस्त धूम मचाई, सुनिए -

MYSTERIOUS GIRL (PETER ANDRE)


पार्टी गीतों का जिक्र छिड़े और इनकी चर्चा न हो संभव ही नहीं. होलैंड के इस ग्रुप ने पार्टी के दीवानों को एक से बढ़कर एक हिट गीत दिए. पर जो गीत भारत में सबसे अधिक चला वो है "ब्राज़ील", किसी भी देश के नाम पर बना ये शायद सबसे सफल गीत होगा, कहते हैं इस गीत ने ब्राज़ील के पर्यटन को जबदस्त बूम दिया. वेंगाबोय्स मुझे पता नहीं बोयस का ग्रुप था या इसमें लड़कियां भी थी, पर हाँ इनके गीतों का नशा आज भी सर चढ़ कर बोलता है, इसमें कोई शक नहीं, तो सुनिए और जम कर थिरकिये आज.

BRAZIL (VENGABOYS)


इस फनकार का जन्मदिन आज ही के दिन यानी २४ दिसम्बर १९७१ को हुआ, यानी आज रिकी मार्टिन नाम का ये फोनोमिना मना रहा है अपना जन्मदिन, लातिन अमेरिका में जन्में इस गायक/संगीतकार का गाया फ्रेंच (शायद) गीत. उ दोस थ्रेस...जिसका मतलब शायद एक दो तीन होता है, (याद कीजिये तेज़ाब का सुपर हिट गीत, उसके भी शब्द इसी गिनती से शुरू होते हैं), उसके बाद मार्टिन क्या बोलते हैं, कुछ समझ नहीं आता, पर संगीत ऐसा हो तो समझने की दरकार भी क्या है, वैसे इस गीत का एक अंग्रेजी संस्करण भी बना था जिसे FIFA में एंथम के रूप में इस्तेमाल किया गया था. ग्रेमी अवार्ड से सम्मानित रिकी मार्टिन को जन्मदिन की शुभकामनायें देते हुए आईये सुनें ये मस्त गीत

U DES TRES (RICKY MARTIN)


पेडर पेटरसन ने निर्देशित किया था इस गीत के विडियो को, YOU TUBE पर सबसे अधिक देखे गए विडियो का खिताब हासिल है, "एकुआ" के नाम से मशहूर इस बैंड का रचा ये गीत "बार्बी गर्ल" दुनिया भर में खूब सराहा गया, बच्चों में ये आज भी ख़ासा लोकप्रिय है. बुलाकर देखिये अपने नन्हें मुन्नों को कंप्यूटर के आगे और बजाइए ये गीत, देखिये जरूर खुश हो जायेगें...

BARBIE GIRL (AQUA)


इस्लामिक देश अल्जेरिया में जन्में गायक खालिद ने तमाम मुश्किलातों को दरकिनार कर विश्व संगीत में अपनी ख़ास पहचान बनायीं, नब्बे के दशक में आया इनका गीत "दीदी" भारत में इतना मशहूर हुआ कि जितना उन दिनों का कोई फ़िल्मी गीत भी नहीं हुआ था, जाहिर है बहुत से नकली संस्करण भी बने इस बेमिसाल गीत के, व्यक्तिगत तौर पर भी ये मुझे बहुत प्रिय है, इससे मेरी बचपन की ढेरों यादें जो जुडी हैं, अगर आपने पहले इसे नहीं सुना हो तो जरूर सुनिए, अजब सा सम्मोहन है इस संगीत में, और सेक्सोफोन का नशा कुछ ऐसा कि इंसान डूब सा जाता है-

DIDI (KHALID)


और अब अंत में एक ताज़ा तरीन गीत, जिसने वर्ल्ड वाईड हिट होने का खिताब अपने सर किया, मुझे गर्व है कि उसके रचेता मेरी मिटटी के सपूत जनाब ए आर रहमान साहब हैं, गीत को पहचानने का कोई इनाम नहीं मिलेगा, जी हाँ, गुलज़ार के लिखे जय हो के इस नारे ने दुनिया को हिला कर रख दिया, चलिए अब इस वर्ष के साथ साथ इस दशक को भी अलविदा कहने का समय करीब है, तो मिल कर एक सुर में क्यों न बोलें - जय हो हिंदी की, हिंदुस्तान की और हर हिन्दुस्तानी की...

JAI HO (A R RAHMAN/GULZAAR)


एक आलेख में सभी हिट गीतों को शामिल करना मुमकिन नहीं है, कुछ गीत जो झट से जेहन में आये उन्हें इस प्रस्तुति में शामिल कर लिया, वक़्त ने मौका दिया तो अगले साल इन्हीं समय के दौरान कुछ और ऐसे ही दुनिया भर में धूम मचाने वाले गीतों कि लड़ी बनाकर आपके लिए लायेगें हम....तब तक इस फेस्टिवल समय की खुशियों का आनंद लीजिये, झूमिये और नाचिये....

Wednesday, December 23, 2009

कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया....पंडित रवि शंकर और शैलेन्द्र की जुगलबंदी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 299

'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं शरद तैलंग जी के पसंद के पाँच गानें बिल्कुल बैक टू बैक। आज है उनके चुने हुए चौथे गाने की बारी। फ़िल्म 'अनुराधा' से यह है लता जी का गाया "कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया, पिया जाने ना"। इस फ़िल्म का एक गीत हमने 'दस राग दस रंग' शृंखला के दौरान आपको सुनवाया था। याद है ना आपको राग जनसम्मोहिनी पर आधारित गीत "हाए रे वो दिन क्यों ना आए"? फ़िल्म 'अनुराधा' के संगीतकार थे सुविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर, जिन्होने इस फ़िल्म के सभी गीतों में शास्त्रीय संगीत की वो छटा बिखेरी कि हर गीत लाजवाब है, उत्कृष्ट है। इस फ़िल्म में उन्होने राग मंज खमाज को आधार बनाकर दो गानें बनाए। एक है "जाने कैसे सपनों में खो गई अखियाँ" और दूसरा गीत है "कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया", और यही दूसरा गीत पसंद है शरद जी का। शैलेन्द्र की गीत रचना है और लता जी की सुरीली आवाज़। वैसे हम इस फ़िल्म के बारे में सब कुछ "हाए रे वो दिन..." गीत के वक़्त ही बता चुके हैं। यहाँ तक कि फ़िल्म की कहानी का सारांश भी बताया जा चुका है। तो आज बस इतना ही कहेंगे कि इस राग पर एक और गीत जो लोकप्रिय हुआ है वह है फ़िल्म 'शागिर्द' का भजन "कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार"।

आइए आज जब मौका हाथ लगा है तो आपको पंडित रविशंकर जी के बारे में कुछ बातें बताई जाए। पंडित जी का जन्म ७ अप्रैल १९२० में वारानसी में हुआ था। उस समय उनका नाम रखा गया था रबीन्द्र शंकर चौधरी। उन्होने अपनी जवानी अपने भाई उदय शंकर के डांस ग्रूप के साथ पूरे भारत और यूरोप के टूर करते हुए गुज़ार दी। १८ वर्ष की अयु में, यानी कि १९३८ में उन्होने नृत्य छोड़ दिया और अल्लाउद्दिन ख़ान के पास चले गए सितार सीखने के लिए। १९४४ में पढ़ाई ख़त्म कर वो बन गए एक संगीतकार और सत्यजीत रे की बंगला फ़िल्मों में संगीत देने लगे। इनमें शामिल है कालजयी बंगला फ़िल्म 'अपुर संसार'। १९४९ से लेकर १९५६ तक पंडित जी आकाशवाणी दिल्ली में संगीतकार रहे। १९५६ से उन्होने भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार के लिए अमरीका व यूरोप के टूर शुरु किए। सितार और भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया में लोकप्रिय बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है और इस प्रयास के लिए उन्हे समय समय पर बहुत सारे सम्मानों से सम्मानित भी किया गया है। १९९९ में उन्हे देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से समानित किया गया, जिसके बाद और किसी पुरस्कार का ज़िक्र फीका सा लगेगा। २००० के दशक में वो अपनी बेटी अनूष्का के साथ पर्फ़ॊर्म करते हुए देखे और सुने गए। आज वो ८९ वर्ष के हैं। हम हिंद युग्म की तरफ़ से उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की ईश्वर से कामना करते हैं और उनके द्वारा बनाए इस सुमधुर गीत का आनंद उठाते हैं। आइए सुनें...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. कल होगा हमारा एतिहासिक ३०० वां एपिसोड जो समर्पित होगा हमारे वीर जांबाज़ जवानों के नाम.
२. मन्ना डे हैं गायक.
३. मख़्दूम मोहिउद्दिन के रचे इस गीत के मुखड़े में शब्द है-"पूछो", और हाँ कल ज़रा कमर कस कर आईएगा, क्योंकि कल होगी आपके संगीत ज्ञान की अब तक की सबसे कठिन परीक्षा...

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी, हमें खुशी है कि ३०० तक पहुचते पहुँचते हमें आपके रूप में एक जबरदस्त विजेता मिल गया है, आपने ये दूरी रिकॉर्ड टाइम में पूरी की है, शरद जी तो अपने उदगार व्यक्त कर चुके ही हैं, दो बार विजेता बने शरद जी के मूह से निकले ये शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं, तो ढोल नगाड़े बज रहे हैं और तालियाँ भी खूब जोरों शोरों से बज रही हैं आशा है आप भी सुन पा रही होंगीं, एक बार फिर से बधाई, पाबला जी और अवध जी भी शामिल हैं इस सत्कार में, राज जी, गोदान फिल्म के गीत शैलेन्द्र ने नहीं लिखे थे, पर मैंने और सुजॉय ने आज तक इस फिल्म का कोई गीत नहीं सुना है, यदि आपके पास उपलब्ध हों तो हमें अवश्य भेजने का कष्ट करें, और हाँ कल होगी हमारे सभी अब तक के धुरंधरों की सबसे बड़ी टक्कर, तैयार हैं न आप सब ?

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

ज़िंदगी मेरे घर आना...फ़ाकिर के बोलों पर सुर मिला रहे हैं भूपिन्दर और अनुराधा..संगीत है जयदेव का



महफ़िल-ए-ग़ज़ल #६३

ज की महफ़िल में हम हाज़िर हैं शामिख जी की पसंद की अंतिम नज़्म लेकर। इस नज़्म को जिन दो फ़नकारों ने अपनी आवाज़ से मुकम्मल किया है उनमें से एक के बारे में महफ़िल-ए-गज़ल पर अच्छी खासी सामग्री मौजूद है, इसलिए आज हम उनकी बात नहीं करेंगे। हम ज़िक्र करेंगे उस दूसरे फ़नकार या यूँ कहिए फ़नकारा और इस नज़्म के नगमानिगार का, जिनकी बातें अभी तक कम हीं हुई हैं। यह अलग बात है कि हम आज की महफ़िल इन दोनों के सुपूर्द करने जा रहे हैं, लेकिन पहले फ़नकार का नाम बता देना हमारा फ़र्ज़ और जान लेना आपका अधिकार बनता है। तो हाँ, इस नज़्म में जिसने अपनी आवाज़ की मिश्री घोली है, उस फ़नकार का नाम है "भूपिन्दर सिंह"। "आवाज़" पर इनकी आवाज़ न जाने कितनी बार गूँजी है। अब हम बात करते हैं उस फ़नकारा की, जिसने अपनी गायिकी की शुरूआत फिल्म "अभिमान" से की थी जया बच्चन के लिए एक श्लोक गाकर। आगे चलकर १९७६ में उन्हें फिल्म कालिचरण के लिए गाने का मौका मिला। पहला एकल उन्होंने "लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल" के लिए "आपबीती" में गाया। फिर राजेश रोशन के लिए "देश-परदेश" में, जयदेव के लिए "लैला-मजनूं" और "दूरियाँ"(जिस फिल्म से आज की नज़्म है) में, कल्याण जी-आनंद जी के लिए "कलाकार" और "विधाता" में और उषा खन्ना के लिए "सौतन" और "साजन बिना सुहागन" में गाकर उन्होंने अपनी प्रसिद्धि में इजाफ़ा किया। आगे चलकर जब उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए "हीरो" , "मेरी जंग", "बंटवारा", "नागिन", "राम-लखन" और "तेजाब" में गाने गाए तो मानो उन्हें उनकी सही पहचान मिल गई। उन्हें "लता मंगेशकर" और "आशा भोंसले" के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा और यही उनके लिए घाटे का सौदा साबित हुआ। "मंगेशकर" बहनों के खिलाफ उनकी मुहिम उनके लिए गले का घेघ बन गई। और उसी दौरान गुलशन कुमार से उनकी नजदीकी और उनके पति अरूण पौडवाल(एस डी बर्मन के सहायक) की मौत और फिर आगे चलकर गुलशन कुमार की मौत का उनकी ज़िंदगी और उनकी गायिकी पर गहरा असर पड़ा। सारी घटनाएँ एक के बाद एक ऐसे होती गईं कि उन्हें संभलने का मौका भी न मिला। उनके इस हाल के जिम्मेवार वे खुद भी थीं। उनका यह निर्णय कि वो बस टी-सीरिज के लिए हीं गाएँगी..शुरू-शुरू में सबको रास आता रहा, लेकिन आगे चलकर इसी निर्णय ने उन्हें अच्छे संगीतकारों से दूर कर दिया। उन्होंने चाहे जैसे भी दिन देखे हों लेकिन उनकी बदौलत हिन्दी फिल्म उद्योग को कई सारे नए गायक मिले..जैसे कि सोनू निगम, कुमार शानू, उदित नारायण और अभिजीत। उन्होंने दक्षिण के भी कई सारे गायकों के साथ बेहतरीन गाने गाए हैं जिनमें से एस पी और यशुदास का नाम खासा ऊपर आता है। वह फ़नकार जो कि अनुराधा पौडवाल के नाम से जानी जाती है, भले आज कम सुनी जाती हो लेकिन उनकी आवाज़ की खनक आज भी वादियों में मौजूद है जो कभी-कभार किसी नए गाने में घुलकर हमारे पास पहुँच हीं जाती है।

अनुराधा जी के बारे में इतनी बातें करने के बाद अब वक्त है आज के नगमानिगार से रूबरू होने का। तो आज की नज़्म के रचयिता कोई और नहीं बल्कि जगजीत सिंह जी के खासमखास "सुदर्शन फ़ाकिर" जी हैं। वो क्या थे, यह उनके किसी अपने के लफ़्ज़ों में हीं जानते हैं(प्रस्तुति: वीणा विज): १८ फरवरी ‘०८ की रात के आग़ोश में उन्होंने हमेशा के लिए पनाह ले ली |वो सोच जो ज़िन्दग़ी, इश्क , दर्दो-ग़म को इक अलग नज़रिये से ग़ज़लों के माध्यम से पेश करती थी, वह सोच सदा के लिये सो गई |बेग़म अख़्तर की गाई हुई इनकी यह ग़ज़ल” इश्क में ग़ैरते जज़्बात ने रोने न दिया”–किस के दिल को नहीं छू गई? या फिर “यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो|भले छीनलो मुझसे मेरी जवानी, मग़र मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन वो क़ाग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी” –जन-जन को इस क़लाम ने बचपन की यादों से सरोबार कर दिया |इनके काँलेज के साथी जगजीत सिह ने जब इनकी यह नज्म गाई, तो दोनों ही इससे मशहूर हो गए |सालों से सुनते आ रहे, गणतंत्र दिवस पर एन. सी. सी.के बैंड की धुन” हम सब भारतीय हैं” यह भी फ़ाक़िर की रचना है |इससे पूर्व जवानी में फ़ाकिर आल इंडिया रेडियो जलंधर पर ड्रामा एवम ग़ज़लों के साथ व्यस्त रहे |फिर जब एक बार मुम्बई की ओर रुख़ किया तो ये एच.एम वी के साथ ता उम्र के लिए जुड़ गए |बेग़म अख़्तर ने जब कहा कि अब मैं फ़ाक़िर को ही गाऊंगी,तो होनी को क्या कहें, वे इनकी सिर्फ़ पाँच ग़ज़लों को ही अपनी आवाज़ दे सकीं थीं कि वे इस जहान से चलता कर गईं |हृदय से बेहद जज़्बाती फ़ाकिर अपनी अनख़, अपने आत्म सम्मान को बनाए रखने के कारण कभी किसी से काम माँगने नहीं गए | वैसे उन्होंने फिल्म ‘दूरियाँ, प्रेम अगन और यलग़ार” के संवाद और गीत लिखे थे | ये काफ़ी लोकप्रिय भी हुए थे |हर हिन्दू की पसंद कैसेट’ हे राम’ भी फ़ाक़िर की रचना है |इसने तो इन्हें अमर कर दिया है |संयोग ही कहिए कि जिस शव-यान में इनकी शव-यात्रा हो रही थी , उसमें भी यही ‘हे राम’ की धुन बज रही थी |सादगी से जीवन बिताते हुए वे जाम का सहारा लेकर अपने दर्दो-ग़म को एक नया जामा पहनाते रहे | जलंधर आने पर जब भी हम इकठे बैठते तो वे अपने कलाम को छपवाने की चर्चा करते या फिर मेरी रचनाओं को पढ़कर मुझे गाईड करते थे | रिश्ते में सालेहार थी मैं उनकी ,सो कभी हँसी-मज़ाक भी हो जाता था | तेहत्तर वर्ष कि उम्र में भी वे मस्त थे |लेकिन दुनिया से अलग- थलग, इक ख़ामोशी से चेहरा ढ़ाँके हुए |फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ फ़ाकिर को बहुत बड़ा शायर मानते थे |

अब उनके बारे में कुछ उन्हीं के शब्दों में: खुद के बारे में क्या कहूं? फिरोजपुर के नजदीकी एक गांव में पैदा हुआ। पिताजी एम.बी.बी.एस. डाक्टर थे। जालंधर के दोआबा कालेज से मैंने पॉलिटिकल साइंस में १९६५ में एम.ए. किया। आल इंडिया रेडियो जालंधर में बतौर स्टाफ आर्टिस्ट नौकरी मिल गई। खूब प्रोग्राम तैयार किए। 'गीतों भरी कहानी' का कांसेप्ट मैंने शुरू किया था। लेकिन रेडियो की नौकरी में मन नहीं रमा। सब कुछ बड़ा ऊबाऊ और बोरियत भरा। १९७० में मुंबई भाग गया।' 'मुंबई में मुझे एच.एम.वी. कंपनी के एक बड़े अधिकारी ने बेगम अख्तर से मिलवाया। वे 'सी ग्रीन साउथ' होटल में ठहरी हुई थीं। मशहूर संगीतकार मदनमोहन भी उनके पास बैठे हुए थे। बेगम अख्तर ने बड़े अदब से मुझे कमरे में बिठाया। बोलीं, 'अरे तुम तो बहुत छोटे हो। मुंबई में कैसे रहोगे? यह तो बहुत बुरा शहर है। यहां के लोग राइटर को फुटपाथ पर बैठे देखकर खुश होते है।'' 'जब मैं बेगम अख्तर से मिला तो मेरी उम्र २४ साल थी, लेकिन उन्होंने मेरी हौंसला-अफजाई की। मैंने उनके लिए पहली गजल लिखी, 'कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया' बेगम साहब बेहद खुश हुई। १९७० से १९७४ तक मेरी लिखी कुल छह गजलें एच.एम.वी. कंपनी ने बेगम अख्तर की आवाज में रिकार्ड कीं। मुझे याद है कि उन्होंने मेरी शायरी में कभी कोई तरमीम नहीं की। यह मेरे लिए फक्र की बात थी। एक बात और जो मैं कभी नहीं भूलता। वह कहा करती थीं, फाकिर मेरी आवाज और तुम्हारे शेरों का रिश्ता टूटना नहीं चाहिए।' फाकिर का क्या अर्थ है, पूछने पर उन्होंने कहा 'यह फारसी का लफ्ज है, जिसके मायने हिंदी में चिंतक और अंग्रेजी में थिंकर है।' 'मेरा एक गीत 'जिंदगी, जिंदगी, मेरे घर आना, आना जिंदगी। मेरे घर का इतना सा पता है..' इसे भूपेन्द्र ने गाया था। इस गीत के लिए मुझे 'बेस्ट फिल्म फेयर अवार्ड मिला था।'' कम हीं लोगों को यह मालूम होगा कि प्रख्यात गजल गायक जगजीत सिंह, जाने-माने लेखक, नया ज्ञानोदय के संपादक रवीन्द्र कालिया और सुदर्शन फाकिर छठे दशक में जालन्धर के डीएवी कालेज के छात्र थे। तीनों में घनिष्ठ मित्रता थी और अपने-अपने इदारों में तरक्की के शिखर छूने के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया। आगे चलकर तीनों हीं सेलिब्रिटीज बने। फ़ाकिर के बारे में कहने को और भी बहुत कुछ है..लेकिन वो सब कभी बाद में। अभी तो उनके इस शेर का लुत्फ़ उठाना ज्यादा मुनासिब जान पड़ता है:

इश्क़ का ज़हर पी लिया "फ़ाकिर"
अब मसीहा भी क्या दवा देगा


वाह! क्या बात कही है "फ़ाकिर" ने। इश्क़ को ऐसे हीं नहीं लाईलाज कहते हैं।

इस शेर के बाद अब हम रूख करते हैं फिल्म "दूरियाँ" के इस नज़्म की ओर.....जिसे संगीत से सजाया ने जयदेव ने। यह नज़्म इश्क़ के नाजुक लम्हों को बयां करती है, उन्हें जीती है और हर सुनने वाले के दिल में उस कोमल भावना की घुसपैठ कराती है। यकीन नहीं आता तो आप खुद हीं सुनकर देख लें..फिर नहीं कहिएगा कि "कुछ कुछ" क्यों होता है:

भू: ज़िंदगी ज़िंदगी मेरे घर आना- आना ज़िंदगी
ज़िंदगी मेरे घर आना- आना ज़िंदगी
अ: ज़िंदगी ज़िंदगी मेरे घर आना- आना ज़िंदगी
ज़िंदगी मेरे घर आना- आना ज़िंदगी

भू: मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
ये घर जो है चारों तरफ़ से खुला है
न दस्तक ज़रूरी, ना आवाज़ देना
मेरे घर का दरवाज़ा कोई नहीं है
हैं दीवारें गुम और छत भी नहीं है
बड़ी धूप है दोस्त
खड़ी धूप है दोस्त
तेरे आंचल का साया चुरा के जीना है जीना
जीना ज़िंदगी, ज़िंदगी

अ: मेरे घर का सीधा सा इतना पता है
मेरे घर के आगे मुहब्बत लिखा है
न _____ ज़रूरी, न आवाज़ देना
मैं सांसों की रफ़्तार से जान लूंगी
हवाओं की खुशबू से पहचान लूंगी
तेरा फूल हूँ दोस्त
तेरी भूल हूँ दोस्त
तेरे हाथों में चेहरा छुपा के जीना है जीना
जीना ज़िंदगी, ज़िंदगी

मगर अब जो आना तो धीरे से आना
यहाँ एक शहज़ादी सोई हुई है
ये परियों के सपनों में खोई हुई है
बड़ी ख़ूब है ये, तेरा रूप है ये
तेरे आँगन में तेरे दामन में
तेरी आँखों पे तेरी पलकों पे
तेरे कदमों में इसको बिठाके
जीना है, जीना है
जीना ज़िंदगी, ज़िंदगी




चलिए अब आपकी बारी है महफ़िल में रंग ज़माने की... ऊपर जो गज़ल हमने पेश की है, उसके एक शेर में कोई एक शब्द गायब है। आपको उस गज़ल को सुनकर सही शब्द की शिनाख्त करनी है और साथ ही पेश करना है एक ऐसा शेर जिसके किसी भी एक मिसरे में वही खास शब्द आता हो. सही शब्द वाले शेर ही शामिल किये जायेंगें, तो जेहन पे जोर डालिए और बूझिये ये पहेली!

इरशाद ....

पिछली महफिल के साथी -

पिछली महफिल का सही शब्द था "लगावट" और शेर कुछ यूं था -

कुछ उसके दिल में लगावट जरूर थी वरना
वो मेरा हाथ दबाकर गुजर गया कैसे

इस शब्द की सबसे पहले पहचान की शरद जी ने। आपने यह स्वरचित शेर भी पेश किया:

ये लगावट नहीं तो फिर क्या है
क़त्ल करके मुझे वो रोने लगा।

शरद जी के बाद महफ़िल की शोभा बनीं सीमा जी। पिछली महफ़िल में कहाँ थे आप दोनों? अब आ गए हैं तो जाईयेगा मत। नज़र-ए-करम बरकरार रखिएगा। ये रही आपकी पेशकश:

करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
तेरी तरह कोई तेग़-ए-निगाह को आब तो दे (ग़ालिब)

मस्ती में लगावट से उस आंख का ये कहना
मैख्‍़वार की नीयत हूँ मुमकिन है बदल जाना (फ़िराक़ गोरखपुरी)

शामिख जी..आपकी फरमाईशों को पूरा करना तो हमारा फ़र्ज़ है। आप इतना भी शुक्रगुजार मत हो जाया करें :) आप जो भी शेर ढूँढकर लाते हैं वे कमाल के होते हैं..बस यह मालूम नहीं चलता कि शायरों को कहाँ भूल जाते हैं। हर शायर "अंजान" हीं क्यों होता है? :) ये रहे आपके शेर:

नतीजा लगावट का जाने क्या निकले
मोहब्बत में वो आजमा कर चले (अंजान)

छूटती मैके की सरहद माँ गुजर जाने के बाद
अब नहीं आता संदेसा मान मनुहारों भरा
खत्म रिश्तों की लगावट माँ गुजर जाने के बाद (अंजान)

और अंत में महफ़िल में नज़र आईं मंजु जी। आप एक काम करेंगी? जरा यह मालूम तो करें कि हमारे बाकी साथी कहाँ सोए हुए हैं। तब तक हम आपके स्वरचित शेर का लुत्फ़ उठाते हैं:

उनकी लगावट से साँसे चल रहीं ,
नहीं तो कब के मर गये होते।

चलिए तो इन्हीं बातों के साथ अगली महफिल तक के लिए अलविदा कहते हैं। खुदा हाफ़िज़!

प्रस्तुति - विश्व दीपक तन्हा


ग़ज़लों, नग्मों, कव्वालियों और गैर फ़िल्मी गीतों का एक ऐसा विशाल खजाना है जो फ़िल्मी गीतों की चमक दमक में कहीं दबा दबा सा ही रहता है. "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" श्रृंखला एक कोशिश है इसी छुपे खजाने से कुछ मोती चुन कर आपकी नज़र करने की. हम हाज़िर होंगे हर बुधवार एक अनमोल रचना के साथ, और इस महफिल में अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में आपके मुखातिब होंगे कवि गीतकार और शायर विश्व दीपक "तन्हा". साथ ही हिस्सा लीजिये एक अनोखे खेल में और आप भी बन सकते हैं -"शान-ए-महफिल". हम उम्मीद करते हैं कि "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" का ये आयोजन आपको अवश्य भायेगा.

Tuesday, December 22, 2009

यही वो जगह है, यही वो फिजायें....किसी की यादों में खोयी आशा की दर्द भरी सदा



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 298

रद तैलंग जी के पसंद के ज़रिए आज बहुत दिनों के बाद हम लेकर आए हैं आशा भोसले और ओ. पी. नय्यर साहब की जोड़ी का एक और सदाबहार नग़मा। फ़िल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का यह गीत "यही वो जगह है, ये ही वो फ़िज़ाएँ" इस जोड़ी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण गीत है। बीती पुरानी यादों को उसी जगह पे जा कर फिर से एक बार जी लेने की बातें हैं इस गीत में। एस. एच. बिहारी साहब ने ऐसे जज़्बाती बोल लिखे हैं कि सुन कर दिल भर आता है। इस गीत के साथ हर कोई अपने आप को कनेक्ट कर सकता है। ख़ास कर वो लोग तो ज़रूर महसूस कर पाएँगे जो कभी अपने घर से दूर किसी जगह पर जा कर रहे होंगे और वहाँ पर कई रिश्ते भी बनाएँ होंगे, दोस्त बनाए होंगे, प्यार पाया होगा। और फिर जब उस जगह को छोड़ कर चले जाना पड़ा तो बस यादें ही साथ में वापस गईं। और फिर कई बरस बाद जब उसी जगह पर वापस लौटे तो सब कुछ बदला हुआ सा पाया। अगर कुछ वैसे का वैसा था तो बस दिल में उन बीते दिनों की यादें। "यही पर मेरा हाथ में हाथ लेकर कभी ना बिछड़ने का वादा किया था, सदा के लिए हो गए हम तुम्हारे गले से लगा कर हमें ये कहा था, कभी कम ना होंगी हमारी वफ़ाएँ, यही पर कभी आप हमसे मिले थे"। नय्यर साहब के अनुसार किसी गीत की कामयाबी में ५०% श्रेय गीतकार का होता है, २५% संगीतकार का, और बाकी के २५% में शामिल है गायक और साज़िंदे। इस गीत के बोलों को सुन हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस बात में कितनी सच्चाई है।

दोस्तों, इस गीत में सैक्सोफ़ोन मुख्य साज़ के तौर पर इस्तेमाल किया गया है, और आपको पता है इस साज़ को इस गीत में किन्होने बजाया था? वो हैं जानेमाने सैक्सोफ़ोन वादक मनोहारी सिंह। मनोहारी दा ने तमाम संगीतकारों के साथ काम किया है और बहुत सारे हिट गीतों में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज बात करते है मनोहारी दा और नय्यर साहब के साथ की। प्रस्तुत गीत के अलावा नय्यर साहब के जिस गीत में उन्होने इस साज़ को मुख्य रूप से बजाया था वह गीत है "है दुनिया उसी की ज़माना उसी का", फ़िल्म 'कश्मीर की कली' में। मनोहारी दा का कहना है कि नय्यर साहब का एक यूनिक स्टाइल है और उनका संगीत बड़ा ही जोशीला हुआ करता था। अगर उन्हे लगा कि टेक ओ.के. है तो किसी की क्या मजाल जो एक और टेक लेने की बात करे! फ़िल्म 'एक बार मुस्कुरा दो' में भी "कितने अटल थे तेरे इरादे" गीत में मनोहारी दा ने सैक्सोफ़ोन बजाया था। फ़िल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का यह गीत सैक्सोफ़ोन पर मनोहारी दा ने सन्‍ १९६२ में दिल्ली के उस डिफ़ेन्स शो में बजाया था जिस शो में लता जी ने "ऐ मेरे वतन के लोगों" गाया था, और जिस शो में पंडित नेहरु शामिल थे। मनोहारी दा ने "ऐ मेरे वतन के लोगों" में मेटल फ़्ल्युट बजाया था। इस गीत के बाद वो पीछे बैठे हुए थे। उन्हे नहीं मालूम था कि इस शो में आशा जी 'यही वो जगह है" गाने वाली हैं। तो जब आशा जी इस गीत को गाना शुरु किया तो मनोहारी दा अपने आप को रोक नहीं सके और सैक्सोफ़ोन हाथ में लेकर स्टेज पर चले आए और सही वक्त पर बजाना शुरु किया जैसे कि गीत में बजता है। जनता ख़ुशी से पागल हो गई। वापस लौटने पर जब आशा जी ने यह क़िस्सा नय्यर साहब को बताया, तो नय्यर साहब ने एक १०० रुपय का नोट निकाल कर मनोहारी दा के हाथ में थमा दिया। दोस्तों, यह एक यादगार क़िस्सा था लेकिन मुझे इसमें कुछ संशय है। 'ये रात फिर न आएगी' रिलीज़ हुई थी १९६५ में और वह शो हुआ था १९६२ में। तो फिर यह गीत ३ साल पहले कैसे गाया गया होगा उस शो में? ख़ैर जो भी है, नय्यर साहब ने 'दास्तान-ए-नय्यर' शृंखला में इस गीत के बारे में कहा था यह धुन उन्होने मसूरी में बनाई थी। और आश्चर्य की बात देखिए, इस गीत से भी वही पहाड़ी रंग छलकता है। तो आइए, बीते दिनों की यादों में खो जाते हैं आशा भोसले के गाए हुए इस गीत के साथ।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक बड़े स्तंभ कहे जा सकते हैं ये महान संगीतकार जिन्होंने रचा इस गीत को.
२. शैलेन्द्र है गीतकार.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -"दिन".

पिछली पहेली का परिणाम -
जी बिलकुल आप सही कह रही हैं, शायद आशा जी को सम्मान इस गीत के लिए नहीं मिला था, पर जवाब आपका एकदम सही है, अब बस आप एक कदम दूर हैं मंजिल से, अवध जी ने सही कहा, हमें आपकी पसंद के गीतसुनना बहुत अच्छा लगेगा

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Monday, December 21, 2009

दिल की नज़र से, नज़रों की दिल से....कुछ बातें लता-मुकेश के स्वरों में



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 296

रद तैलंग जी के पसंद पर आज एक बड़ा ही ख़ूबसूरत सा रोमांटिक नग़मा। ५० के दशक में राज कपूर की फ़िल्मों में शंकर जयकिशन के संगीत में लता मंगेशकर और मुकेश ने एक से एक बेहतरीन युगल गीत गाए हैं जो शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी के कलम से निकले थे। यहाँ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर अब तक हमने इस तरह के तीन गानें बजा चुके हैं। ये हैं फ़िल्म 'आह' से "आजा रे अब मेरा दिल पुकारा", फ़िल्म 'बरसात' का "छोड़ गए बालम" और फ़िल्म 'आशिक़' का "महताब तेरा चेहरा"। इसी फ़ेहरिस्त में एक और गीत का इज़ाफ़ा करते हुए आइए आज शरद की पसंद पर हो जाए फ़िल्म 'अनाड़ी' से "दिल की नज़र से, नज़रों की दिल से, ये बात क्या है, ये राज़ क्या है, कोई हमें बता दे"। दोस्तों, दिल और नज़र का रिश्ता बड़ा पुराना है और इस रिश्ते पर हर दौर में गानें लिखे गए हैं। लेकिन फ़िल्म 'अनाड़ी' का यह गीत इस तरह का पहला मशहूर गीत है जिसने कामयाबी की सारी बुलंदियों को पार कर गया। यही नहीं, आज एक नामचीन टीवी चैनल पर रोमांटिक फ़िल्मी गीतों का एक कार्यक्रम आता है जिसका शीर्षक रखा गया है "दिल की नज़र से"। युं तो हसरत जयपुरी साहब को रोमांटिक गीतों का बादशाह कहा जाता है, लेकिन इस गीत को लिखा था शैलेन्द्र जी ने। क्या रूमानीयत है इस गीत में साहब, जब शैलेन्द्र लिखते हैं कि "हम खो चले चाँद है या कोई जादुगर है, या मदभरी ये तुम्हारी नज़र का असर है" या फिर "आकाश में हो रहे हैं ये कैसे इशारे, क्या देख कर आज हैं इतने ख़ुश चाँद तारे"। जितने सुंदर अल्फ़ाज़ लिखे हैं गीतकार ने, उतनी ही दिलकश धुन बनाई है एस.जे ने और रात के नशीले वातावरण के लिए गीत में जो ऐम्बायन्स चाहिए था, बिल्कुल वैसा कर दिखाया है इस संगीतकार जोड़ी ने। और लता-मुकेश की गायकी तो जैसे सोने पे सुहागा। कुल मिलाकर फ़िल्म संगीत का एक सदाबहार नग़मा है यह रोमांटिक डुएट।

'अनाड़ी' १९५९ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण किया था एल. बी. लछमन ने। ऋषीकेश मुखर्जी के निर्देशन में फ़िल्म में अभिनय किया राज कपूर, नूतन, ललिता पवार, मोतीलाल, शुभा खोटे और मुकरी ने। इस फ़िल्म को उस साल फ़िल्मफ़ेयर में कई पुरस्कार मिले, जैसे कि सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (राज कपूर), सर्वश्रेष्ठ गीतकार (शैलेन्द्र - सब कुछ सीखा हमने), सर्वश्रेष्ठ संगीतकार (शकर जयकिशन), सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक (मुकेश - सब कुछ सीखा हमने), सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री (ललिता पवार)। आज भले ही यह फ़िल्म कहीं पर देखने को नहीं मिलती, लेकिन इसके गानें ऐसे चले, ऐसे चले कि साहब आज भी अक्सर किसी ना किसी रेडियो स्टेशन से सुनाई दे ही जाते हैं। इस फ़िल्म का हर एक गीत हिट है, चाहे आज का प्रस्तुत गीत हो या फिर "सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी", "वो चाँद खिला वो तारे हँसे", "जीना इसी का नाम है", "बन के पंछी गाएँ प्यार का तराना", या फिर "तेरा जाना दिल के अरमानों का लुट जाना"। अमीन सायानी द्वारा प्रस्तुत लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम 'बिनाका गीत माला' के १९५९ के वार्षिक कार्यक्रम में प्रसारित साल के १४ सब से लोकप्रिय गीतों में फ़िल्म 'अनाड़ी' के एक नहीं बल्कि दो दो गीतों को स्थान मिला था। इसी से आप इस फ़िल्म के गीतों की कामयाबी का अंदाज़ा लगा सकते हैं। ये दो गानें थे चौथे पायदान पर "वो चाँद खिला वो तारे हँसे" और तीसरे पायदान पर "सब कुछ सीखा हमने"। भले ही आज के प्रस्तुत गीत को कोई पुरस्कार नहीं मिला हो, लेकिन प्यार करनेवाले दिल आज भी इस गीत को सलाम करते हैं, और इससे बड़ा इनाम कोई हो नहीं सकता। आइए सुनते हैं और आप भी याद कीजिए अपने रोमांस के दिनों को!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. इस गीत के लिए भी गायिका ने फिल्म फेयर जीता था.
२. एस एच. बिहारी हैं गीतकार.
३. बीते दिनों की दुहाई देती गायिका मुखड़े में शब्द गाती है -"जगह".

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी, मात्र दो कदम दूर हैं आप इतहास रचने से....हमें ऐसा लगा रहा है जैसे कोई भारतीय बल्लेबाज़ क्रीज़ पर है और हम सब उसके लिए चीयर कर रहे हैं....:)

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Sunday, December 20, 2009

कुहु कुहु बोले कोयलिया... चार रागों में गुंथा एक अनूठा गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 296

ल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है फ़रमाइशी गीतों का कारवाँ। पराग सांकला के बाद दूसरी बार बने पहेली प्रतियोगिता के विजेयता शरद तैलंग जी के पसंद के पाँच गानें आज से आप सुनेंगे बैक टू बैक इस महफ़िल में। शुरुआत हो रही है एक बड़े ही सुरीले गीत के साथ। यह एक बहुत ही ख़ास गीत है फ़िल्म संगीत के इतिहास का। ख़ास इसलिए कि इसके संगीतकार की पहचान ही है यह गीत, और इसलिए भी कि शास्त्रीय संगीत पर आधारित बनने वाले गीतों की श्रेणी में इस गीत को बहुत ऊँचा दर्जा दिया जाता है। हम आज बात कर रहे हैं १९५८ की फ़िल्म 'सुवर्ण सुंदरी' का गीत "कुहु कुहु बोले कोयलिया" की जिसके संगीतकार हैं आदिनारायण राव। लता जी और रफ़ी साहब की जुगलबंदी का शायद यह सब से बेहतरीन उदाहरण है। लता जी और रफ़ी साहब भले ही फ़िल्मी गायक रहे हों, लेकिन शास्त्रीय संगीत में भी उनकी पकड़ उतनी ही मज़बूत थी (है)। प्रस्तुत गीत की खासियत यह है कि यह गीत चार रागों पर आधारित है। गीत सोहनी राग से शुरु होकर बहार और जौनपुरी होते हुए यमन राग पर जाकर पूर्णता को प्राप्त करता है। भरत व्यास ने इस फ़िल्म के गानें लिखे थे। बसंत ऋतु की रंगीन छटा को संगीत के माध्यम से किस तरह से ना केवल कानोँ में बल्कि आँखों के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है, यह भरत व्यास और आदिनारायण राव इस गीत के ज़रिए हमें समझा गए हैं। जिन चार रागों का ज़िक्र हमने किया, आइए अब आपको बताएँ कि गीत का कौन सा हिस्सा किस राग पर आधारित है।

सोहनी - कुहु कुहु बोले कोयलिया......
बहार - काहे घटा में बिजुरी चमके........
जौनपुरी - चन्द्रिका देख छाई........

यमन - सरस रात मन भाए प्रीयतमा........

१९५८ में दक्षिण के जिन संगीतकारों ने हिंदी फ़िल्मों में संगीत दिया था वो हैं जी. रामनाथन (सितमगर), एम. आर. सुदर्शनम (मतवाला), एस. राजेश्वर राव (अलादिन का चिराग़), टी. जी. लिंगप्पा (सुहाग) और आदिनारायण राव (सुवर्ण सुंदरी)। कहने की ज़रूरत नहीं कि इनमें से सुवर्ण सुंदरी का संगीत ही अमर हुआ। आदिनारायण राव का जन्म काकीनाड़ा में १९१५ में हुआ था। उन्हे शास्त्रीय संगीत की तालीम पत्रायणी सिताराम शास्त्री से प्राप्त की। माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद १२ वर्ष की आयु में उन्होने एक संगीतकार और प्ले-राइटर के रूप में काम करना शुरु किया। वरिष्ठ फ़िल्मकार बी. वी. रामानंदन ने उन्हे उनका पहला फ़िल्मी ब्रेक दिया। यह फ़िल्म थी १९४६ की 'वरुधिनी'। १९४९ में आदिनारायण राव ने अक्किनेनी नागेश्वर राव और मेक-अप आर्टिस्ट के. गोपाल राव के साथ मिलकर 'अश्विनी पिक्चर्स' का गठन किया। १९५१ में उन्होने यह बैनर छोड़ दिया और अपनी निजी प्रोडक्शन कंपनी 'अंजली पिक्चर्स' की स्थापना की। उनके संगीत में अनारकली (तमिल, १९५५) और सुवर्ण सुंदरी (१९५८) ने उन्हे बेहद शोहरत दिलाई। सुवर्ण सुंदरी ही वह फ़िल्म है जिसकी वजह से आज भी लोग उन्हे याद करते हैं। इस फ़िल्म की नायिका थी आदिनारायण जी की पत्नी अंजली देवी (जिनके नाम पर उनका बैनर था), और साथ में थे नागेश्वर राव, बी. सरोजा देवी, श्यामा और कुमकुम। इन सब जानकारियों के बाद आइए अब इस मीठे सुरीले गीत का आनंद उठाया जाए। इस गीत को सुन कर आप बिल्कुल फ़्रेश हो जाएँगे ऐसा हमारा अनुमान है, सुनिए!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. राज कपूर अभिनीत फिल्म का है ये युगल गीत.
२. इस फिल्म के शीर्षक गीत के लिए शैलेन्द्र को फिल्म फेयर प्राप्त हुआ था.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"क्यों".

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी इस बार बहुत से क्लू देने पड़े आपको, पर जवाब आपका ही आया, तो बधाई स्वीकार करें

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (२३)



मखमली आवाज़ के जादूगर तलत महमूद साहब को संगीत प्रेमी अक्सर याद करते है उनकी दर्द भरी गज़लों के लिए. उनके गाये युगल गीत उतने याद नहीं आते है. अगर बात मेरी पसंदीदा गायिका गीता दत्त जी की हो तो उनके हलके-फुल्के गीत पसंद करने वालों की संख्या अधिक है. थोड़े संगीत प्रेमी उनके गाये भजन तथा दर्द भरे गीत भी पसंद करते है. गीताजी के गाये युगल गीतों की बात हो तो, मुहम्मद रफ़ी साहब के साथ उनके गाये हुए सुप्रसिद्ध गीत ही ज्यादा जेहन में आते है. सत्तर और अस्सी के दशक के आम संगीत प्रेमी को तो शायद यह पता भी नहीं था, कि तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी ने मिलकर एक से एक खूबसूरत और सुरीले गीत एक साथ गाये है. सन १९८४ के करीब एक नौजवान एच एम् वी (हिज़ मास्टर्स वोईस ) कंपनी में नियुक्त किया गया. यह नौजवान शुरू में तो शास्त्रीय संगीत के विभाग में काम करता था, मगर उसे पुराने हिंदी फ़िल्मी गीतों में काफी दिलचस्पी थी. गायिका गीता दत्त जी की आवाज़ का यह नौजवान भक्त था. उसीके भागीरथ प्रयत्नोके के बाद एक एल पी (लॉन्ग प्लेयिंग) रिकार्ड प्रसिद्द हुआ "दुएट्स टू रेमेम्बर" (यादगार युगल गीत) : तलत महमूद - गीता दत्त". पहेली बार तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी के गाये हुए सुरीले और मधुर गीत आम संगीत प्रेमी तक पहुंचे. खुद तलत महमूद साहब इस नौजवान से प्रभावित हुए और जाहीर है बहुत प्रसन्न भी हुए. इस नौजवान का नाम है श्री तुषार भाटिया जी.

इन्ही की अथक परिश्रमों के के बाद गीता जी के गाये गानों के कई एल पी (लॉन्ग प्लेयिंग) रिकार्ड सिर्फ तीन साल में एच एम् वी (हिज़ मास्टर्स वोईस) कंपनी ने बनाकर संगीत प्रेमियों को इनसे परिचय कराया. आगे चलकर श्री हरमिंदर सिंह हमराज़ जी ने हिंदी फिल्म गीत कोष प्रसिद्द किये, जिनसे यह जानकारी मिली कि तलत महमूद साहब और गीता दत्त जी ने मिलकर कुल २६ गीत हिंदी फिल्मों के लिए गाये तथा एक एक गैर फ़िल्मी गीत भी गाया. गौर करने वाली बात यह है कि जिन संगीतकारों ने तलत साहब को एक से एक लाजवाब सोलो गीत दिए (नौशाद, अनिल बिस्वास, मदनमोहन) उन्होंने तलत साहब और गीताजी के साथ युगल गीत नहीं बनाए. उसी तरह बर्मनदा, नय्यर साहब, चित्रगुप्त साहब ने भी गीताजी और तलत साहब के लिए युगल गीत नहीं बनाए. इन २६ गीतों के मौसीकार है : हेमंत कुमार, हंसराज बहल, सी रामचंद्र, खेमचंद प्रकाश, विनोद, बसंत प्रकाश , बुलो सी रानी, हुस्नलाल - भगतराम , राम गांगुली , जिम्मी सिंह, सुबीर सेन, दान सिंह , सन्मुख बाबू, हफीज खान, अविनाश व्यास, घंटासला, रोबिन चत्तेर्जी और मदन मोहन. एक बात तो जाहीर है, कि इनमें से ज्यादातर गीत कम बजेट वाली फिल्मों के लिए बनाए गाये थे. मगर इसका यह मतलब नहीं की हम उनका लुत्फ़ नहीं उठा सकते. लीजिये आज प्रस्तुत है इन्ही दो मधुर आवाजों से सजे हुए कुछ दुर्लभ गीत:

१) पहली प्रस्तुती है फिल्म मक्खीचूस (१९५६) से, जिसके कलाकार थे महिपाल और श्यामा. संगीतकार है विनोद (एरिक रोबर्ट्स) और गीतकार है पंडित इन्द्र. यह एक हास्यरस से भरी फिल्म है और यह गीत भी हल्का फुल्का रूमानी और रंजक है. अभिनेता महिपाल ज्यादातर पौराणीक फिल्मों के लिए प्रसिद्द थे, मगर इस फिल्म में उनका किरदार ज़रूर अलग है. गीताजी की आवाज़ और श्यामा के जलवे गीत को और भी मजेदार बना देते है. तलत साहब भी इस हास्य-प्रणय गीत में मस्त मौला लग रहे है. इस गीत के रिकार्ड पर एक अंतरा कम है, इसलिए हमने यह गीत फिल्म के ओरिजिनल साउंड ट्रैक से लिया है, जिसमे वह अंतरा ("जेंटल मन समझ कर हमने तुमको दिल दे डाला") भी मौजूद है.

Makkhee Choos - O Arabpati Ki Chhori - Geeta Dutt & Talat Mahmood



२) अगला गीत है बिलकुल अलग भावों में, फिल्म संगम (१९५४) से. संगीतकार है राम गांगुली, गीतकार हैं शमशुल हुदा बिहारी साहब. फ़िल्म के कलाकार है शेखर, कामिनी कौशल, शशिकला आदी. यह गीत प्रणय रस में डूबा हुआ है और सादे बोलों को राम गांगुली साहब ने खूबसुरती से स्वर बद्ध किया है. गीत में "संगम" शब्द भी आता है, जिससे यह पता चलता है कि यह फिल्मका शीर्षक गीत हो सकता है. इस फिल्म का वीडियो उपलब्ध ना होने के कारण इस बात का पता नहीं कि यह गीत मुख्य कलाकारों पर फिल्माया गया था या नहीं. चलिए इस सुरीले गीत का आनंद लेते है

Sangam - Raat hain armaan bhari - Geeta Dutt & Talat Mahmood



३) हंसराज बहल एक और ऐसे संगीतकार है जो अत्यंत प्रतिभाशाली होने के बावजूद आज की पीढी को उनके बारे में ख़ास जानकारी नहीं है. सन १९५५ में एक फिल्म आयी थी "दरबार" जिसके गीत लिखे थे असद भोपाली साहब ने और संगीत था हंसराज बहल साहब का. इस फिल्म के बारे में अन्य कोई भी जानकारी अंतर्जाल पर उपलब्द्ध नहीं है.(इसी शीर्षक की एक फिल्म पाकिस्तान में सन १९५८ में बनी थी, जिसके बारे में कुछ जानकारी अंतर्जाल पर उपलब्द्ध है). प्रस्तुत गीत विरहरस में डूबा हुआ है, और ऐसे गीत को तलत साहब के अलावा और कौन अच्छे से गा सकता है. आप ही इसे सुनिए और सोचिये की हंसराज बहल, असद भोपाली, तलत महमूद और गीता दत्त के प्रयासों से सजे इस गीत को संगीत प्रेमियों ने क्यों भुला दिया ?

Darbaar - Kyaa paaya duniyane - Geeta Dutt & Talat Mahmood



४) संगीतकार और गायक हेमंत कुमार जितने प्रतिभाशाली कलाकार थे उससे भी ज्यादा महान इंसान थे. खुद गायक होते हुए भी कई अन्य गायाकों से भी उन्होंने गीत गवाए. मुहम्मद रफ़ी, तलत महमूद, सुबीर सेन, किशोर कुमार ऐसे कई नाम इस में शामिल है. लीजिये अब प्रस्तुत हैं फिल्म बहू (१९५५) का गीत जिसके संगीतकार है हेमंत कुमार और गीतकार हैं एक बार फिर से शमशुल हुदा बिहारी साहब. फिल्म बहु के निर्देशक थे शक्ति सामंता साहब और कलाकार थे कारन दीवान, उषा किरण, शशिकला आदी. इस फिल्म में हेमंत कुमार साहब ने तलत महमूद और गीता दत्त से एक नहीं,दो गीत गवाए. दोनों भी सुरीले और मीठे प्रणय गीत है. आज का प्रस्तुत गीत है "देखो देखो जी बलम".

Bahu - Dekho dekho jee balam - Geeta Dutt & Talat Mahmood



५) अब बारी है फिल्म शबिस्तान (१९५१) की. आज हमने इस फ़िल्म के एक नहीं दो गीत चुने है. पहला गीत है "हम हैं तेरे दीवाने, गर तू बुरा ना माने". इस गीत की खासियत यह है की इसकी पहली दो पंक्तिया संगीतकार सी रामचंद्र (चितलकर) साहब ने खुद गाई है मगर रिकार्ड पर उनका नाम ना जाने क्यों नहीं आया. यह गीत भी प्रणय रस और हास्य रस से भरपूर है. "अरे हम को चला बनाने"..ऐसी पंक्तिया अपने शहद जैसी आवाज़ में गीता जी ही गा सकती है. गीत पूरी तरह छेड़ छाड़ से भरा हुआ है. गीतकार कमर जलालाबादी साहब ने इसे खूब सवाल जवाब के तरीके से लिखा है.

Shabistan - Hum hain tere diwaane - Geeta Dutt & Talat Mahmood



६) और अब सुनिए इसी फिल्म का एक और गीत, "कहो एक बार मुझे तुमसे प्यार". गीतकार हैं कमर जलालाबादी साहब और संगीतकार सी रामचंद्र (चितलकर) साहब. गौर करने की बात यह भी है कि इसी फिल्म के कुछ गीत मदन मोहन साहब ने भी स्वरबद्ध किये. उन्होंने भी तलत महमूद और गीता दत्त के आवाजों में एक छेड़ छाड़ भरा प्रणय गीत बनाया था, उसे फिर कभी सुनेंगे. फिल्म के कलाकार थे श्याम और नसीम बानो (अभिनेत्री सायरा बानो की माँ). यह बहुत दुःख की बात है कि इस फिल्म के शूटिंग के दौरान अभिनेता श्याम घोड़े पर से गिरे और उनकी मृत्यु हो गयी.

Shabistan - Kaho ek baar - Geeta Dutt & Talat Mahmood



७) आज की अन्तिम प्रस्तुति हैं एक ऐसी फिल्म से जिसका नाम शायद ही किसी को मालूम होगा. सन १९५९ में यह फिल्म आयी थी जिसके संगीतकार थें मनोहर और गीत लिखे थे अख्तर रोमानी ने. फिल्म का नाम है "डॉक्टर जेड" (Doctor Z) और नाम से तो ऐसा लगता है कि यह कम बजट की कोई फिल्म होगी. ऐसी फिल्म में भी तलत महमूद और गीता दत्त के आवाजों में यह अत्यंत मधुर और सुरीला गीत बनाया गया. हमारी खुश किस्मती हैं कि पचास साल के बाद भी हम इस को सुन सकते है और इसका आनंद उठा सकते है. "दिल को लगाके भूल से, दिल का जहां मिटा दिया, हमने भरी बहार में अपना चमन जला दिया"..वाह वाह कितना दर्द भरा और दिल की गहराई को छू लेने वाला गीत है यह.

Doctor Z - Dilko lagake bhool se - Geeta Dutt & Talat Mahmood



हमें आशा है कि आप भी इन दुर्लभ गीतों का आनंद उठाएंगे और हमारे साथ श्री तुषार भाटिया जी के आभारी रहेंगे.

प्रस्तुति- पराग सांकला



"रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.

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