Friday, July 11, 2008

आज के हिंद के युवा का, नया मन्त्र है - " बढ़े चलो ", WORLD WIDE OPENING OF THE SONG # 02 "BADHE CHALO"



जुलाई माह का दूसरा शुक्रवार, और हम लेकर हाज़िर हैं सत्र का दूसरा गीत. पिछले सप्ताह आपने सुना, युग्म के साथ सबसे नए जुड़े संगीतकार निखिल वर्गीस का गीत "संगीत दिलों का उत्सव है", और आज उसके ठीक विपरीत, हम लाये हैं युग्म के सबसे वरिष्ठ संगीतकार ऋषि एस का स्वरबद्ध किया, नया गीत, अब तक ऋषि, युग्म को अपने तीन बेहद खूबसूरत गीतों से नवाज़ चुके हैं, पर उनका यह गीत उन सब गीतों से कई मायनों में अलग है, मूड, रंग और वाद्य-संयोजन के आलावा इसमें, उन्हें पहले से कहीं अधिक लोगों की टीम के साथ काम करना पड़ा, तीन गीतकारों, और दो गायकों के साथ समन्वय बिठाने के साथ साथ उन्होंने इस गीत में बतौर गायक अपनी आवाज़ भी दी है, शायद तभी इस गीत को मुक्कमल होने में लगभग ६ महीने का समय लगा है.
गीत का मूल उद्देश्य, हिंद युग्म की विस्तृत सोच को आज के युवा वर्ग से जोड़ कर उन्हें एक नया मन्त्र देने का है - "बढ़े चलो" के रूप में. गीत के दोनों अंतरे युग्म के स्थायी कवि अलोक शंकर द्वारा लिखी एक कविता, जिसे युग्म का काव्यात्मक परिचय भी माना जाता है , से लिए गए हैं. ”बढ़े चलो” का नारा कवि अवनीश गौतम ने दिया है, और मुखड़े का स्वरुप गीतकार सजीव सारथी ने रचा है, दो नए गायकों को हिंद युग्म इस गीत के माध्यम से एक मंच दे रहा है,दोनों में ही गजब की संभावनाएं नज़र आती हैं, जयेश शिम्पी (पुणे),युग्म पर छपे "गायक बनिए" इश्तेहार के माध्यम से चुन कर आए तो मानसी पिम्पले,को युग्म से जोड़ने का श्रेय जाता है कवियित्री सुनीता यादव को. हिंद युग्म उम्मीद करता है कि पूरी तरह से इंटरनेटिया प्रयास से तैयार, इस प्रेरणात्मक गीत में आपको, आज के हिंद का युवा नज़र आएगा....

Rishi S is not a new name for Hind Yugm listeners, already 3 compositions old this highly talented upcoming composer, here bringing for you, a new song which is completely different from his earlier compositions in many ways.

(Rishi S along with Mansi and Jayesh, the singers)
Almost 6 people are involved in this song and the jamming was completely through the internet, none of them ever meet each other, in person. This song, is actually meant for the sharp thinking, youth of new India, who don’t want to wait for others to make an initiative, they believe in themselves and proudly accept their own bhasha and culture, India is the youngest country in the world (having maximum youth population ) and the new mantra of success for this youthful India is "badhe chalo”. Penned by Alok Shankar, Sajeev Sarathie and Avanish Gautam, and sung by all debutant singers in Jayesh Shimpi, Manasi Pimpley, and Rishi S, this song will surely make you think twice before passing a judgment on today’s young generation. So guys, CHARGED UP, AND CHEER FOR THIS NEW INDIA.

CLICK ON THE PLAYER TO HEAR THE SONG " BADHE CHALO "

गीत के बोल -

मैं आज के हिंद का युवा हूँ,
मुझे आज के हिंद पे नाज़ है,
हिन्दी है मेरे हिंद की धड़कन,
हिन्दी मेरी आवाज़ है..

बदल रहा है हिंद, बदल रहे हैं हम,
बदल रहे हैं हम, बदल रहा है हिंद,
बढे चलो .... बढे चलो.... -2
हम आज फ़लक पर बिछी हुई
काई पिघलाने आए हैं
भारत की बरसों से सोई
आवाज़ जगाने आये हैं


तुम देख तिमिर मत घबराओ
हम दीप जलाने वाले हैं
बस साथ हमारे हो लो, हम
सूरज पिघलाने वाले हैं

मैं युग्म, तुम्हारी भाषा का,
हिन्दी की धूमिल आशा का ;
मैं युग्म , एकता की संभव
हर ताकत की परिभाषा का

मैं युग्म, आदमी की सुन्दर
भावना जगाने आया हूँ
मैं युग्म, हिन्द का मस्तक
कुछ और सजाने आया हूँ ।

हममें है हिम्मत बढ़ने की
तूफ़ान चीरकर चलने की
चट्टानों से टकराने की
गिरने पर फ़िर उठ जाने की

बदल रहा है हिंद, बदल रहे हैं हम,
बदल रहे हैं हम, बदल रहा है हिंद,
बढे चलो .... बढे चलो.... -2



( Team of the Lyricists )

यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)

You can choose any format to download from here -





VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis


SONG #02 , SEASON 2008, " BADHE CHALO " MUSIC @ HINDYUGM, Where Music Is a Passion

Thursday, July 10, 2008

यादों के बदल छाए, उमड़ घुमड़ घिर आए....



दोस्तो,
हमें यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है, की हिंद युग्म के संगीत-सफर के सबसे पहले गायक सुबोध साठे (नागपुर) ने अपनी वेब साईट http://www.subodhsathe.com/ पर अपनी पहली मराठी एल्बम " मेघा दातले " का भव्य विमोचन किया है, जहाँ से आप इनके गीतों को डाउनलोड कर सकते हैं, साथ ही उन्होंने इसी एल्बम के एक गीत "ती जताना" का एक विडियो भी बनाया है जिसे आप यहाँ भी देख सकते हैं -



हमने की इसी बाबत सुबोध से बातचीत की, पेश है कुछ अंश -



Hind Yugm - Hi Subodh, finally a full marathi album, tell us what this "megha datle" is all about, the theme behind the album ?

'पहला सुर' में सुबोध के गीत
सुबह की ताज़गी
वो नर्म सी
झलक
Subodh - Yeah, finally! After starting all my compositions in Hindi, I thought I should do something in Marathi as well and started searching for meaningful poems. I found very tallented people through orkut who penned these songs for me (some of them on demand and some were already written) Lyricists are..Tushar Joshi, Renuka Khatavkar, Arun Nandan, Prasanna Shembekar, Kshipra and Shilpa Deshpande.

"Megh Datle, Aathvaninche..." in hindi, it means "Ghir aaye Badra....yadon ke"............ i think :)


All songs are composed and sung by me and music is arranged by my friend from Pune, Chaitanya Aadkar (who plays Keyboard with Sunidhi Chavan's group)

Hind Yugm - You made a video also, why you choose this perticular song for the video ?

Subodh - I think, this song relates to anyone or atleast it relates to me unknowingly, + lyrics and composition both are very close to my heart. This song is special!

Hind Yugm - How was the response ? What can we expect next, an Hindi album ?

Subodh - Response has been very very good, Thanks to all!! Haven't think about Hindi album (my 1st 3 albums are in Hindi only). But if I find meaningful lyrics will definitely do one Hindi album as well. I am going to launch my 2nd Marathi album in 2009.

Thank you Subodh, all the very best....Hind Yugm is eagly waiting to hear your first self composed song for Awaaz ( for the new season ) " khushmizaaz mitti ".

सुबोध को तलाश है अर्थपूर्ण गीतों की, जो भी गीतकार सुबोध के साथ जुड़ कर अपने गीत रचना चाहें संपर्क करें "subodh sathe" , पर.

हमने इस गीत ( ती जताना ), के गीतकार तुषार जोशी जी, जो कि हिंद युग्म के वरिष्ट कवियों में से एक हैं, उनसे भी पूछे कुछ सवाल, पेश है कुछ अंश -

हिंद युग्म - तुषार जी, सुबोध के साथ आपकी पहली मराठी एल्बम " मेघा दाटले " आ चुकी है, कैसा रहा ये अनुभव आपके लिए ?

तुषार जोशी - बड़ा ही सुखद अनुभव रहा। सुबोध ने गीत बडा़ ही दिल लगाकर गाया है। यूँ गीत में जान आ गई है। इसके पहले भी सुबोध ने मेरे कई हिन्दी और मराठी कविताओं को धुन देकर गाया है मगर इस गीत की बात ही कुछ और है क्योंकि ये गीत और गीतों के साथ अल्बम के रूप में प्रकाशित किया गया है।

हिद युग्म - आपका पहला हिन्दी गीत " भूल गए हो " हिंद युग्म पर आया था सुबोध का बनाया और गाया हुआ, जिसे बहुत अधिक सराहा गया था, आज की इस सफलता पर आप क्या श्रेय देना चाहेंगे हिंद युग्म को ?

तुषार जोशी - हिंद युग्म हमेशा से लोगों को जोडने का माध्यम रहा है। मुझे खुशी है कि हिन्दयुग्म के माध्यम से मेरी कविता और सुबोध ने गाया हुआ गीत लाखों लोगों तक पहुँचा। यूँ हिन्दयुग्म हमारे लिये सारी दुनिया के साथ जोडने वाला दरवाज़ा बन गया है।

हिंद युग्म - तुषार जी, अगला कदम क्या होगा, क्या हम उम्मीद करें की जल्द ही आपकी और सुबोध की जोड़ी एक हिन्दी एल्बम देगी, हिंद युग्म , आवाज़ के श्रोताओं के लिए ?

तुषार जोशी - ये खयाल मुझे पसंद आया। मै कहूँगा जरूर, क्यों नहीं?

हिंद युग्म आवाज़ की पूरी टीम की तरफ़ से सुबोध और तुषार जी को बधाइयाँ और शुभकामनाएं आने वाली समस्त योजनाओं के लिए.

Wednesday, July 9, 2008

कहाँ गए संगीत के सुर! मर गई क्या मेलोडी ? जवाब देंगे मनीष कुमार



Most of the time people Criticized today's music saying that it has nothing worth listening comparing to the music that created by the old masters in their time, while the composer of this generation claimed that they make music for the youth and deliver what they like, but seriously do we need any comparsion like that ? music can ever lost its sweetness or its melody ? Well, who better than our music expert Manish Kumar can answer this question, so guys over to manish and read what he wants to comment on this issue


समय समय पर जब भी आज के संगीत परिदृश्य की बात उठती है, इस तरह के प्रश्न उठते हैं और उठते रहेंगे। पर मेरा इस बात पर अटूट विश्वास है कि भारत जैसे देश में संगीत की लय ना कभी मरी थी ना कभी मरेगी। समय के साथ साथ हमारे फिल्म संगीत में बदलाव जरूर आया है। ५० के दशक के बाद से इसमें कई अच्छे-बुरे उतार-चढ़ाव आये हैं । अक्सर लोग ये कहते हैं कि आज के संगीत में कुछ भी सुनने लायक नहीं है। आज का संगीतकारों में मेलोडी की समझ ही नहीं है। पर मुझे इस तरह के वक्तव्य न्यायोचित नहीं लगते। इससे पहले कि मैं आज के संगीतकारों के बारे में कुछ कहूँ, भारतीय फिल्म संगीत के अतीत पर एक नज़र डालना लाज़िमी होगा ।

इसमें कोई शक नहीं पुरानी फिल्मों के गीत इतने सालों के बाद भी दिल पर वही तासीर छोड़ते हैं ।
एस. डी. बर्मन, सलिल चौधरी, मदनमोहन, हेमंत, नौशाद, शंकर जयकिशन, जैसे कमाल के संगीतकारों,
तलत महमूद,सहगल, सुरैया, गीता दत्त, लता, रफी, मन्ना डे, मुकेश, आशा, किशोर जैसे सुरीले गायकों
और राज कपूर, विमल राय, महबूब खान और गुरूदत जैसे संगीत पारखी निर्माता निर्देशकों ने ५० से ७० के दशक में जो फिल्म संगीत दिया वो अपने आप में अतुलनीय है। इसीलिये इस काल को हिन्दी फिल्म संगीत का स्वर्णिम काल कहा जाता है । ये वो जमाना था जब गीत पहले लिखे जाते थे और उन पर धुनें बाद में बनाई जाती थीं ।

वक्त बदला और ७० के दशक में पंचम दा ने भारतीय संगीत के साथ रॉक संगीत का सफल समावेश पहली बार 'हरे राम हरे कृष्ण' में किया । वहीं ८० के दशक में बप्पी लाहिड़ी ने डिस्को के संगीत को अपनी धुनों का केन्द्र बिन्दु रखा । मेरी समझ से ८० का उत्तरार्ध फिल्म संगीत का पराभव काल था । बिनाका गीत माला में मवाली, हिम्मतवाला सरीखी फिल्मों के गीत भी शुरू की पायदानों पर अपनी जगह बना रहे थे । और शायद यही वजह या एक कारण रहा कि उस समय के हालातों से संगीत प्रेमी विक्षुब्ध जनता का एक बड़ा वर्ग गजल और भजन गायकी की ओर उन्मुख हुआ। जगजीत सिंह, पंकज उधास, अनूप जलोटा, तलत अजीज, पीनाज मसानी जैसे कलाकार इसी काल में उभरे।

९० का उत्तरार्ध हिन्दी फिल्म संगीत के पुनर्जागरण का समय था । पंचम दा तो नहीं रहे पर जाते-जाते १९४२ ए लव स्टोरी (१९९३) का अमूल्य तोहफा अवश्य दे गए । कविता कृष्णामूर्ति के इस काव्यात्मक गीत का रस आपने ना लिया हो तो जरूर लीजिएगा

क्यूँ नये लग रहे हैं ये धरती गगन
मैंने पूछा तो बोली ये पगली पवन
प्यार हुआ चुपके से.. ये क्या हुआ चुपके से

मैंने बादल से कभी, ये कहानी थी सुनी
पर्वतों से इक नदी, मिलने सागर से चली
झूमती, घूमती, नाचती, दौड़ती
खो गयी अपने सागर में जा के नदी
देखने प्यार की ऐसी जादूगरी
चाँद खिला चुपके से..प्यार हुआ चुपके से..


पुरानी फिल्मों से आज के संगीत में फर्क ये है कि रिदम यानि तर्ज पर जोर ज्यादा है। तरह-तरह के वाद्य यंत्रों का प्रयोग होने लगा है। धुनें पहले बनती हैं, गीत बाद में लिखे जाते हैं। नतीजन बोल पीछे हो जाते हैं और सिर्फ बीट्स पर ही गीत चल निकलते हैं।
ऐसे गीत ज्यादा दिन जेहन में नहीं रह पाते। पर ये ढर्रा सब पर लागू नहीं होता ।

१९९५-२००६ तक के हिन्दी फिल्म संगीत के सफर पर चलें तो ऐसे कितने ही संगीतकार हैं जिन पर आपका कथन आज का संगीतकार 'मेलॉडियस' संरचना .................बिलकुल सही नहीं बैठता । कुछ बानगी पेश कर रहा हूँ ताकि ये स्पष्ट हो सके कि मैं ऐसा क्यूँ कह रहा हूँ।

साल था १९९६ और संगीतकार थे यही ओंकारा वाले विशाल भारद्वाज और फिल्म थी माचिस ! आतंकवाद की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म का संगीत कमाल का था ! भला

छोड़ आये हम वो गलियाँ.....
चप्पा चप्पा चरखा चले.. और
तुम गये सब गया, मैं अपनी ही मिट्टी तले दब गया


जैसे गीतों और उनकी धुनों को कौन भूल सकता है ?

इसी साल यानी १९९६ में प्रदर्शित फिल्म इस रात की सुबह नहीं में उभरे एक और उत्कृष्ट संगीतकार एम. एम. करीम साहब ! एस. पी. बालासुब्रमण्यम के गाये इस गीत और वस्तुतः पूरी फिल्म में दिया गया उनका संगीत काबिले तारीफ है

मेरे तेरे नाम नये है
ये दर्द पुराना है,
जीवन क्या है
तेज हवा में दीप जलाना है

दुख की नगरी, कौन सी नगरी
आँसू की क्या जात
सारे तारे दूर के तारे, सबके छोटे हाथ
अपने-अपने गम का सबको साथ निभाना है..
मेरे तेरे नाम नये है.....


१९९९ में आई हम दिल दे चुके सनम और साथ ही हिन्दी फिल्म जगत के क्षितिज पर उभरे इस्माइल दरबार साहब ! शायद ही कोई संगीत प्रेमी हो जो उनकी धुन पर बने इस गीत का प्रशंसक ना हो

तड़प- तड़प के इस दिल से आह निकलती रही....
ऍसा क्या गुनाह किया कि लुट गये,
हां लुट गये हम तेरी मोहब्बत में...



पर हिन्दी फिल्म संगीत को विश्व संगीत से जोड़ने में अगर किसी एक संगीतकार का नाम लिया जाए तो वो ए. आर रहमान का होगा । रहमान एक ऐसे गुणी संगीतकार हैं जिन्हें पश्चिमी संगीत की सारी विधाओं की उतनी ही पकड़ है जितनी हिन्दुस्तानी संगीत की । जहाँ अपनी शुरूआत की फिल्मों में वो फ्यूजन म्यूजिक (रोजा, रंगीला,दौड़ ) पेश करते दिखे तो , जुबैदा और लगान में विशुद्ध भारतीय संगीत से सारे देश को अपने साथ झुमाया। खैर शांत कलेवर लिये हुये मीनाक्षी - ए टेल आफ थ्री सिटीज (२००४) का ये गीत सुनें

कोई सच्चे ख्वाब दिखाकर, आँखों में समा जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है
जब सूरज थकने लगता है
और धूप सिमटने लगती है
कोई अनजानी सी चीज मेरी सांसों से लिपटने लगती है
में दिल के करीब आ जाती हूँ , दिल मेरे करीब आ जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है



२००४ में एक एड्स पर एक फिल्म बनी थी "फिर मिलेंगे" प्रसून जोशी के लिखे गीत और शंकर-एहसान-लॉय का संगीत किसी भी मायने में फिल्म संगीत के स्वर्णिम काल में रचित गीतों से कम नहीं हैं। इन पंक्तियों पर गौर करें

खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे
बूंदों को धरती पर साज एक बजाने दे
हवायें कह रहीं हैं, आ जा झूमें जरा
गगन के गाल को चल जा के छू लें जरा

झील एक आदत है, तुझमें ही तो रहती है
और नदी शरारत है तेरे संग बहती है
उतार गम के मोजे जमीं को गुनगुनाने दे
कंकरों को तलवों में गुदगुदी मचाने दे



और फिर २००५ की सुपरिचित फिल्म परिणिता में आयी एक और जुगल जोड़ी संगीतकार शान्तनु मोइत्रा और गीतकार स्वान्द किरकिरे की !
अंधेरी रात में परिणिता का दर्द क्या इन लफ्जो में उभर कर आता है

रतिया अंधियारी रतिया
रात हमारी तो, चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद, आई वो अकेली है
चुप्पी की बिरहा है, झींगुर का बाजे साथ



गीतों की ये फेरहिस्त तो चलती जाएगी। मैंने तो अपनी पसंद के कुछ गीतों को चुना ये दिखाने के लिये कि ना मेलोडी मरी है ना कुछ हट कर संगीत देने वाले संगीतकार।

हमारे इतने प्रतिभावान संगीतकारों और गीतकारों के रहते हुये आज के संगीत से ये नाउम्मीदी उनके साथ न्याय नहीं है । मैं मानता हूँ कि हिमेश रेशमिया जैसे जीव अपनी गायकी से आपका सिर दर्द करा देते होंगे पर वहीं सोनू निगम और श्रेया घोषाल की सुरीली आवाज भी आपके पास हैं। अगर एक ओर अलताफ रजा हैं तो दूसरी ओर जगजीत सिंह भी हैं । अगर रीमिक्स संगीत पुराने गीतों को रसातल में ले जाता दिखता है तो वहीं कैलाश खेर ने सूफी संगीत के माध्यम से संगीत की नई ऊँचाईयों को छुआ है। आपको MTV का पॉप कल्चर ही आज के युवाओं का कल्चर लगता है तो एक नजर Zee के शो सा-रे-गा-मा पर नजर दौड़ाइये जहाँ युवा प्रतिभाएँ हिन्दी फिल्म संगीत को ऊपर ले जाने को कटिबद्ध दिखती हैं ।

हाँ, ये जरूर है कि आज के इस बाजार शासित संगीत उद्योग में ऍसे गीतों की बहुतायत है जो लफ़्जों से ज्यादा अपनी रिदम की वज़ह से चर्चित होते हैं। आखिर ऐसा क्यूँ है कि एक अच्छे गीत को सुनने के लिए हमें दस बेकार गीतों का शोर सुनना पड़ता है ?

इस समस्या की तह तक जाएँ तो ये पाएँगे कि आज की इस शिक्षा प्रणाली में साहित्य चाहे वो हिंदी हो या उर्दू, पर कोई जोर नहीं है। अच्छे नंबर लाने के लिए दसवीं में लोग हिंदी छोड़ संस्कृत ले लेते हैं। जब ये युवा अपने कैरियर की दिशा चुनने के लिए चिकित्सा, अभियांत्रिकी और प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में जाते हैं तो ये कटाव और गहरा हो जाता है। जब तक हम आरंभ से ही नई पीढ़ी में हिन्दी और उर्दू साहित्य रुझान नहीं पैदा करेंगे तब तक काव्यात्मक गीत संगीत को प्रश्रय देने वाला एक वर्ग तैयार नहीं होगा और ना ही गुलज़ार, जावेद अख्तर, प्रसून जोशी और स्वानंद किरकिरे जैसे गीतकार संगीत जगत पर समय समय पर उभरते रहेंगे ।

पर यह बात भी गौर करने की है कि जैसी विविधता संगीत के क्षेत्र में आज उपलब्ध है वैसी पहले कभी नहीं थी। मैं मानता हूँ कि ८० के दशक की गिरावट के बाद पिछले १५ सालों में एक नया संगीत युवा प्रतिभावान संगीतकारों की मदद से उभरा है । आज संगीत की सीमा देश तक सीमित नहीं, और जो नये प्रयोग हमारे संगीतकार कर रहे हैं उन्हें बिना किसी पूर्वाग्रह के हमें खुले दिल से सुनना चाहिए। ये नहीं कि ये उस स्वर्णिम काल की पुनरावृति कर देंगे पर इनमें कुछ नया करने और देने की ललक और प्रतिभा दोनों है जिसे निरंतर बढ़ावा देने की जरूरत है।
जब तक संगीत को चाहने वाले रहेंगे, सुर और ताल कभी नहीं मरेंगे । जरूरत है तो अच्छे गीतकारों की एक पौध तैयार करने की और एक अच्छे श्रोता के नाते संगीत के सही चुनाव की।

(मूल रूप में ये आलेख मेरे चिट्ठे एक शाम मेरे नाम पर अगस्त २००६ में छपा था । हिन्द-युग्म,आवाज़ के लिए थोड़ी फेर बदल के बाद यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ।)

- मनीष कुमार
आवाज़ के संगीत समीक्षक

Tuesday, July 8, 2008

ए आर रहमान और हरिहरन के दीवाने हैं - निखिल



आवाज़ पर इस हफ्ते के सितारे हैं, निखिल वर्गीस राजन. १७ वर्षीया निखिल मूल रूप से एक संगीतकार और गायक हैं, जिनकी मात्रभाषा मलयालम है. की बोर्ड और तबला इनका प्रिय वाद्य-यन्त्र है, अरूधंती राय की पुस्तकें पढ़ना इन्हें पसंद हैं और क्रिकेट और फुटबाल खेलने का भी शौक रखते हैं, संगीतकारों/गायकों में इन्हें ए आर रहमान और हरिहरन सबसे अधिक भाते हैं, केरल के कोठाराकरा में इनका घर है, मगर आज कल अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं कोयम्बतूर, तमिल नाडू के करुणया महाविद्यालय से, इनका पहला गीत जो इन्होने युग्म के लिए किया वो है " संगीत दिलों का उत्सव है ", जिसमें इनका काम बेहद सराहा गया, जब उनसे हिंद युग्म की टीम ने पूछा कि कैसा रहा, उनका अनुभव हिंद युग्म के लिए इस गीत को बनाने में तो उन्होंने अपनी बात इस तरह रखी, पढ़िए उन्हीं की ज़ुबानी -


hi, namaskaar…..I am Nikhil Varghese Rajan, the composer of this song. I am doing my B-Tech in Karunya Univesity ,Coimbatore.I am very happy that you guys gave a good response for my first song. My whole hearted thanks for this encouragement. I am very proud to say that all those involved in this song are amateurs. First of all I am thanking Sajeev Sarathie(Delhi) for giving an awesome lyrics for my song and for giving me an opportunity to put my music through this blog. Through Charles Finny I met Sajeev bhai through Orkut from a community of lyricists and we asked him to write lyrics for me. He did that and send us a beautiful lyrics which is the main stanza of this song and within one day I composed a tone for this lyrics and send to him. He liked the tone and send us a full fledged lyrics of this song. He gave us an opportunity to submit this song to this blog. I faced a lot of barrier before creating this song in to a full fledged one. I had only a little time to spend for this song due to my University exams, internals and projects and also I have only less support from my parents because they were afraid that whether it will affect in my studies. I faced a difficulty in finding a Female singer who is having a good pronunciation in Hindi in south India. Atlast we met Mithila Kanugo, through our guitarist Vishal. She was enough talented than what I expected and also one drawback was that she got only a little time to practice this song. From this short time practice she made it awesome and still I believe that she could make her part more better if she had got enough time to practice. Her mother Rohini aunty who is also a good singer ,gave a very good guidance during the recording. It took almost five days to complete this song. I got an excellent support from my friends especially from my best friend Mathew Livingston who helped me a lot during recording and who is the sound engineer of this song gave a good guidance in composing the track of this song and Charles made a good role in orchestration of this music, Vishal is the guitarist of this song and he helped for composing guitar chords. The percussion instrument Tabla was handled by me. With the help of these guys I completed my song successfully. I humbly request everybody's support and cooperation for my future contribution to the music. I once again thank u all for giving me a good response for my song. For any further information please may contact through phone or e-mail.

Phone.No- +919790604549 (Tamil Nadu)
+919961571294 (Kerela)

E-Mail : niky2k2004enator@gmail.com
niky2k2004@rediffmail.com

so guys, this was nikhil for you, please listen to his song here and have your comments as well...

सुनिए एक बार फ़िर " संगीत दिलों का उत्सव है " और इस उभरते हुए संगीतकार को अपना प्रोत्साहन दें....

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