लोकगायक छन्नूलाल मिश्रा की आवाज़ में 'होली के रंग टेसू के फूल' एल्बम के सभी गीत
होली त्योहार के साहित्य में होली का सबसे अधिक जिक्र बृजभाषा के साहित्य में मिलता है। मेरे दीमाग में यह बात थी कि इस होली पर श्रोताओं को कुछ ओरिजनल सुनाया जाय। होली की वहीं खुश्बू बिखराई जाये जो बृज गये बिना महसूस कर पाना बहुत मुश्किल है। लेकिन लोकगायक पंडित छन्नूलाल मिश्रा अपनी बेमिसाल गायकी से यह काम आसान कर देते हैं।
पिछले महीने जब मैं पश्चिम बंगाल, झारखण्ड औरे उत्तर प्रदेश की यात्रा पर था तो संयोग से बनारस जाना हुआ। विश्वप्रसिद्द शास्त्रीय गायक छन्नूलाल वहीं निवासते हैं। सोचा कि उनका इंटरव्यू लेता चलूँ और साथ ही साथ उन्हीं की आवाज़ में एक होरी-गीत की जीवंत रिकॉर्डिंग भी कर लूँ। लेकिन फिर सोचा कि पहले अपने श्रोताओं को छन्नूलाल मिश्रा से परिचय तो कराऊँ, साक्षात्कार तो कभी भी ले लूँगा। उसी दिन तय कर लिया था कि छन्नूलाल के प्रसिद्ध एल्बम 'होली के रंग टेसू के फूल' के गीत पहले श्रोताओं को सुनावाउँगा।
दोस्तो, ३ अगस्त १९३६ को उ॰ प्र॰ के आजमगढ़ जनपद के हरिहरपुर गाँव में जन्में छन्नूलाल मिश्रा भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध घराने 'किराना घराना' के विशेष रूप से ख्याल गायन और पूरब-अंग (ठुमरी) के कलाकार के तौर पर जाने जाते हैं। इनके दादा पंडित शांता प्रसाद (गुदाई महाराज) ए चर्चित तबलावादक थे। छन्नूलाल बिहार के तबलावादक अनोखेलाल जी महाराज के दामाद हैं। शुरूआत में इन्होंने अपने पिता पंडित बद्री प्रसाद मिश्रा से ही संगीत की शिक्षा लेनी आरम्भ की, जो कि किराना घराने के उस्ताद अब्दुल ग़नी ख़ान तक ज़ारी रही। बहुत बाद में ये ठाकुर जयदेव सिंह के भी शागिर्द रहे।
आज ये अपनी बनारसी गायकी और पंजाब गायकी के लिये लोगों में पहचाने जाते हैं। (विशेषतौर पर ख्याल, दादरा, ठुमरी, चैती, कजरी, होरी और भजन)।
आज हम इनकी गायकी की उन्हीं विविधरंगों में होरी का रंग लेकर आये हैं। 'होली के रंग टेसू के फूल' एल्बम का गीत 'खेलें मसाने में होरी दिगम्बर' इनका चर्चित होरी गीत है, जिसका लाइव कंसर्ट संस्करण हम आपको सुनवा रहे हैं।
(यह गीत एल्बम के गीत से थोड़ा सा अलग है)
'होली के रंग टेसू के फूल' एल्बम के सारे गीत यहाँ से सुनें और लोकधुनों की बयार में खुद को भुला दें।
जल्द ही छन्नूलाल जी से एक भेंटवार्ता भी सुनवाउँगा।
इससे आगे>>>>'ओल्ड इज गोल्ड' शृंखला के तहत सुजॉय-सजीव की होली विशेष प्रस्तुति सुनना न भूलें
Album: Holi Ke Rang Tesu Ke Phool, Composer & Singer: Pandit Channulal Mishra
Tracks:
01 - Aaye Khelan Hori
02 - Holi Khelat Nandkumar
03 - Rang Darungi Darungi Rang Darungi
04 - Barjori Karo Na Mose Hori Mein
05 - Holi Ke Din Dekho Aayee Re
06 - Kanhaiya Ghar Chalo Guiya
07 - Girdharilal Chhar Mori Bahiyaan
08 - Khalayn Masanay Mayn Hori Digamber
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10 श्रोताओं का कहना है :
यूनुस जी की आज की पोस्ट और "खेलेँ मसाने में होरी" से यहाँ तक आ पहुँचा हूँ - यहाँ तो पूरा की पूरा अलबम उपलब्ध है! धन्यवाद!
एक बात और कि आपकी गायकों की फहरिस्त में भूपेन्द्र जी का संकलन भी हो तो क्या ही अच्छा रहे!
leepika jii ka geet suna par 'khelen masane men holee digambar khul naheen raha hai.
'खेलें मसाने में होरी' सूना. मजा आ गया.शिवजी की होली अजूबा होनी ही चाहिए. पं. छन्नू लाल जी को अनेकशः बधाइयाँ.
छन्नुलालजी लोक गीत भी गाते हैं ,पक्के शास्त्रीय गाने के अलावा इसलिए उन्हें 'लोकगायक' कहना उचित नहीं है ।
वाह जो गीत आपने चुन कर लगाया वो तो कमाल का है...पूरी एल्बम अभी नहीं सुन पाया पर जल्दी ही सुनूंगा...बढ़िया प्रस्तुति
अफलातून जी,
यहाँ 'लोक' एक उपसर्ग की तरह जुड़ा हुआ शब्द है, जिसका मतलब है जो दुनिया में, लोगों में, विश्व में प्रसिद्ध हो या इस सभी के लिए हो। जैसे लोकगीत- लोगों में प्रचलित गीत, लोकतंत्र- लोगों का तंत्र। कोई शास्त्रीय गायक यदि आम लोगों के लिए भी गाता है, सबका दिल बहलाता है तो इसमें बुराई भी नहीं है। पंडित छन्नूलाल ऐसे ही शास्त्रीय गायक हैं जो पब्लिक के लिए भी गाते हैं, इसलिए मैंने उन्हें लोकगायक कहा, यह उनको सम्मान देने के लिए ही कहा है। मैं लोकगायक को शास्त्रीय गायक से कमतर नहीं आँक रहा हूँ।
खैर, आपने अच्छी बात उठाई। छन्नूलाल जी से मिलूँगा तो यही भी एक सवाल होगा उनके लिए।
Bahut achcha, Sun kar maja aa gaya.
कल ही मित्रों के साथ ढोलक बजा कर तालियों की थाप पर चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजरे वाली मुनिया पर झूम कर खूब नाचते समय ये गीत ध्यान में तो आ रहा था किन्तु बोल याद नहीं होने के कारण गा नहीं पा रहा था । आपने ये पूरा एल्बम देकर उपकार किया है । रविवार को रंग पंचमी है हमारे यहां उसी दिन रंग होता है । अब ये सारे गीत उस दिन गाये जायेंगें और इन पर ही जम कर नृत्य होगा ।
बहुत बहुत धन्यवाद इस सुन्दर गीत के लिए. ब्रज की होली तो मशहूर है मगर मसाने की होली पहली बार सुनी, लाजवाब! छन्नूलाल जी का कोई जवाब नहीं है.
आहा ... पंडित छन्नूलाल के स्वर के क्या कहने !!! मजा आ गया | पोस्ट के लिए धन्यवाद |
एक बात पूछना चाहूंगा : आपने अपने साईट पे पंडित जी का एल्बम लोड किया है क्या इसका royalty पंडित जी को जाता है ?
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