Tuesday, November 15, 2011

ज़िन्दगी महक जाती है....जब सुरीली आवाज़ को येसुदास की और हो लोरी का वात्सल्य



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 788/2011/228

मस्कार दोस्तों! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आजकल आप आनन्द ले रहे हैं पुरुष गायकों द्वारा गाई हुई फ़िल्मी लोरियों की, और शृंखला है 'चंदन का पलना, रेशम की डोरी'। किसी भी बच्चे के सर से माँ और बाप में से किसी का भी अगर साया उठ जाये, तो वह बच्चा बड़ा ही अभागा होता है। माँ का प्यार एक तरह का होता है, और पिता का प्यार दूसरी तरह का। दोनों की समान अहमियत होती है बच्चे के विकास में। लेकिन हर बच्चा तो किस्मतवाला नहीं होता न! किसी को माँ नसीब नहीं होता तो किसी को पिता। माँ के अभाव में पिता को पिता और माँ, दोनों की भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। ऐसी सिचुएशन कई बार हमारी फ़िल्मों में भी देखी गई है। आज हम जिस गीत को सुनने जा रहे हैं उसकी कहानी भी इसी तरह की है। गोविंदा पर फ़िल्माई यह लोरी है 'हत्या' फ़िल्म की - "ज़िन्दगी महक जाती है, हर नज़र बहक जाती है, न जाने किस बगिया का फूल है तू मेरे प्यारे, आ रा रो आ रा रो"। गायक हैं येसुदास और साथ में आवाज़ लता जी की है जो उस मातृहीन बच्चे के सपने में उसकी माँ की भूमिका में गाती हैं। दोस्तों, येसुदास और लोरी की जब साथ-साथ बात चलती है तो सबसे पहले जिस लोरी की याद आती है वह है फ़िल्म 'सदमा' की "सुरमई अखियों में नन्हा मुन्ना एक सपना दे जा रे"। लेकिन क्योंकि हम इस लोरी को पहले ही सुनवा चुके हैं, इसलिए हमनें 'हत्या' फ़िल्म की लोरी चुनी। येसुदास की आवाज़ भी इतनी कोमल है कि उनकी आवाज़ में कोई लोरी सुनना एक अदभुत अनुभव होता है। यह हैरत की ही बात है कि उनसे और भी लोरियाँ क्यों नहीं गवाई गई!

'हत्या' १९८८ की फ़िल्म थी जिसका निर्माण व निर्देशन कीर्ति कुमार नें किया था, जो गोविंदा के भाई हैं। गोविंदा, नीलम, राज किरण, अनुपम खेर प्रमुख अभिनीत इस फ़िल्म में संगीत था बप्पी लाहिड़ी का और गीत लिखे इंदीवर नें। फ़िल्म सुपरहिट हुई और इसके गीत भी ख़ूब चले थे। आज की लोरी के अलावा इस फ़िल्म के अन्य चर्चित गीत थे "मैं प्यार का पुजारी मुझे प्यार चाहिए" (मोहम्मद अज़ीज़, सपना मुखर्जी), "आप को अगर ज़रूरत है" (आशा, किशोर), "मैं तो सबका मेरा न कोई" (कीर्ति कुमार), और "प्यार मिलेगा यार मिलेगा" (कीर्ति कुमार)। 'हत्या' एक म्युज़िकल थ्रिलर फ़िल्म थी, इसकी कहानी भी एक बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती है जिसनें अपनी माँ-बाप की हत्या अपनी आँखों से देखी है। राजा एक गूंगा और बधीर बच्चा है जिसनें हत्या होते देख लिया, और उसके बाद उसकी आँखों के सामने उसकी माँ की भी हत्या कर दी गई। राजा वहाँ से किसी तरह भाग निकला पर बेघर, बेसहारा होकर रह गया। किस्मत इतनी ज़रूर अच्छी थी कि उसे सागर (गोविंदा) नामक एक पेण्टर मिल गया। सागर की पत्नी और बच्चे की मौत हो गई थी और वो एक अकेलेपन से भरी ज़िन्दगी जी रहा था। ऐसे में सागर के जीवन का एक ही लक्ष्य रह गया इस गूंगे-बहरे बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा करना। लेकिन वो हत्यारे राजा की तलाश में थे क्योंकि वही एक चश्मदीद गवाह था उनके कूकर्मों का। सागर को भी धीरे धीरे पता चला उस हत्या के बारे में। पर कातिलों नें सागर को ही फँसा दिया और सागर की जेल हो गई। सागर जेल से बाहर आकर मर्डर मिस्ट्री को सॉल्व किया। आइए सुनते हैं यह लोरी जिसमें सागर राजा को सुला रहे हैं और राजा को अपनी माँ की याद आ रही है। माँ की भूमिका में है अंजना मुमताज़, जो बच्चे के सपने में आकर गाती है "ज़मीं पे रहूँ या फ़लक पर तेरे आसपास हूँ मैं, दुआओं का साया बन कर तेरे साथ-साथ हूँ मैं"। सुनते हैं यह सुन्दर लोरी।



पहचानें अगला गीत, इस सूत्र के माध्यम से -
पिता-पुत्री के रिश्ते की कहानी पर बनी इस फ़िल्म को क्रिटिकल अक्लेम मिली थी। पर्दे पर जिन अभिनेता-अभिनेत्री नें बाप-बेटी के रिश्ते को साकार किया, उसी जोड़ी नें एक अन्य फ़िल्म में भी बाप-बेटी का रिश्ता निभाया था जिसमें आमिर ख़ान नायक थे। राजेश रोशन स्वरबद्ध किस लोरी की हम बात कर रहे हैं?

पिछले अंक में


खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी


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