Saturday, May 15, 2010

हास्य गीतों की परंपरा को भी बखूबी निभाया है पीढ़ी दर पीढ़ी संगीतकारों -गीतकारों ने



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २५

ज कल्याणजी-आनंदजी के गीत की बारी। फ़िल्म 'कसौटी' में प्राण साहब पर फ़िल्माया गया था किशोर कुमार का नेपाली अंदाज़ में गाया हुआ एक बेहद लोकप्रिय हास्य गीत "हम बोलेगा तो बोलोगे के बोलता है"। क्योंकि बात हास्य गीत की हो रही है और आप यह भी जानते होंगे कि कल्याणजी भाई का कैसा ज़बरदस्त 'सेन्स ऒफ़ ह्युमर' हुआ करता था। तो चलिए यह गीत सुनने से पहले कल्याणजी के कहे कुछ शब्द हो जाए, जिनसे उनके इस सेन्स ऒफ़ ह्युमर का एक छोटा सा नमूना आपके सामने प्रस्तुत हो जाएगा। कल्याणजी भाई कहते हैं (सौजन्य: विविध भारती): "यह ह्युमर का सबजेक्ट निकल आया है तो मैं कहूँगा कि ह्युमर को मैं बहुत महत्व देता हूँ। क्या है कि जहाँ हम जाएँ लोग हँसते नहीं, तो इसमें सब से ज़्यादा अगर किसी ने मुझे इन्स्पायर किया तो वो हैं आचार्य रजनीश जी, यानी कि ओशो। उन्होने मुझे बोला था कि 'कल्याणजी, आप का जो आर्ट है, उसको आप डेवेलप कीजिए, वह कमाल का आर्ट है। तो उन्होने मुझे बहुत इन्स्पायर किया। जब फ़िल्म बनी थी 'नन्हा फ़रिश्ता', तो वह मद्रास की पहली फ़िल्म थी हमारी। तो वहाँ पे स्टोरी राइटर बहुत सीरियस स्टोरी सुना रहा था कि हमारी स्टोरी में यह है, वह है, उसने लास्ट में बोला कि एक लोरी आती है, पिक्चर में वह बेस्ट, एक लोरी, लोरी, लोरी, अच्छा बनाना, बस एक लोरी बनाना। तो वो इतनी बार लोरी लोरी करने लगा कि मैंने ऐसे ही बोला कि 'हमारे तो ऒर्डिनरी गाने में ही लोग सो जाते हैं, लोरी में तो हम जान लड़ा देंगे। वो मद्रास के थे, वो तो समझे नहीं, बाद में किसी ने उनको समझाया कि ये मज़ाक कर रहे हैं।" दोस्तों, कल्याणजी के ये मज़ेदार किस्से और चुटकुले आगे भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी रहेंगे, अगर आज मैंने ज़्यादा बातें की तो हो सकता है कि आप भी शायद यही बोलोगे के बोलता है। इसलिए हम और 'कु्श' नहीं बोलेगा।

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत -हम बोलेगा तो...
कवर गायन - हेमंत बदया




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


हेमंत बदया
हेमंत एक संगीतमय परिवार से हैं. बैंगलोर के श्री लक्ष्मी केशवा से इन्होने ललित संगीत और पंडित परमेश्वर हेगड़े से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के गुर सीखे. टोरोंटो में रहने वाले हेमंत जी टीवी के अन्ताक्षरी और मस्त मस्त शोस में शान के साथ नज़र आये और कन्नडा संघ आईडल भी बने


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

सुनो कहानी: पंकज सुबीर की कहानी तुम लोग



तुम लोग - पंकज सुबीर

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं रोचक कहानियां, नई और पुरानी। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में हरिशंकर परसाई की दर्दनाक कहानी "बाबू की बदली" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं पंकज सुबीर की कहानी "तुम लोग", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 15 मिनट 58 सेकंड।

प्रस्तुत कहानी का टेक्स्ट सुखनवर पत्रिका के मार्च-अप्रैल अंक में उपलब्ध है।

पंकज सुबीर की कहानियां पलाश और ईस्ट इंडिया कम्पनी आप पहले ही आवाज़ पर सुन चुके हैं।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।



एक एक रंग को खूबसूरती के साथ सजाया है प्रकृति ने इसकी पंखुरियों पर, बीच में ज़र्द पीले रंग का छींटा, फ़िर सिंदूरी और किनारों पर कहीं कहीं चटख़ लाल, संपूर्णता का एहसास लिये।
~ पंकज सुबीर

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी

अरे पंडित! जब मरोगे न, तब यहीं के लोग दौड़ेंगे सबसे पहले।
(पंकज सुबीर की "तुम लोग" से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें।
VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis

#Twenty Eighth Story, Tum Log: Pankaj Subeer/Hindi Audio Book/2010/09. Voice: Anurag Sharma

Friday, May 14, 2010

कुछ गीत इंडस्ट्री में ऐसे भी बने जिनका सम्बन्ध केवल फिल्म और उसके किरदारों तक सीमित नहीं था...



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २४

"चैन से हमको कभी आप ने जीने ना दिया, ज़हर जो चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया"। फ़िल्म 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' का यह दिल को छू लेने वाला गीत आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' की महफ़िल को रोशन कर रहा है। ओ. पी. नय्यर और आशा भोसले ने साथ साथ फ़िल्म संगीत में एक लम्बी पारी खेली है। करीब करीब १५ सालों तक एक के बाद एक सुपर डुपर हिट गानें ये दोनों देते चले आए हैं। कहा जाता है कि प्रोफ़ेशनल से कुछ हद तक उनका रिश्ता पर्सनल भी हो गया था। ७० के दशक के आते आते जब नय्यर साहब का स्थान शिखर से डगमगा रहा था, उन दिनों दोनों के बीच भी मतभेद होने शुरु हो गए थे। दोनों ही अपने अपने उसूलों के पक्के। फलस्वरूप, दोनों ने एक दूसरे से किनारा कर लिया सन् १९७२ में। इसके ठीक कुछ दिन पहले ही इस गीत की रिकार्डिंग् हुई थी। दोनों के बीच चाहे कुछ भी मतभेद चल रहा हो, दोनों ने ही प्रोफ़ेशनलिज़्म का उदाहरण प्रस्तुत किया और गीत में जान डाल दी। फ़िल्म के रिलीज़ होने के पहले ही इस फ़िल्म के गानें चारों तरफ़ छा गए। ख़ास कर यह गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हो गया था कि फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका ने आशा भोसले को उस साल के अवार्ड फ़ंकशन के लिए 'सिंगर ऒफ़ दि ईयर' चुन लिया। लेकिन दुखद बात यह हो गई कि आशा जी नय्यर साहब से कुछ इस क़दर ख़फ़ा हो गए कि वो ना केवल फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड लेने नहीं आईं, बल्कि इस फ़िल्म से यह गाना भी हटवा दिया जब कि गाना रेखा पर फ़िल्माया जा चुका था। फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड फ़ंकशन में नय्यर साहब ने आशा जी का पुरस्कार ग्रहण किया, और ऐसा कहा जाता है कि उस फ़ंकशन से लौटते वक़्त उस अवार्ड को गाड़ी से बाहर फेंक दिया और उसके टूटने की आवाज़ भी सुनी। कहने की आवश्यकता नहीं कि आशा और नय्यर के संगम का यह आख़िरी गाना था। समय का उपहास देखिए, इधर इतना सब कुछ हो गया, और उधर इस गीत में कैसे कैसे बोल थे, "आप ने जो है दिया वो तो किसी ने ना दिया", "काश ना आती आपकी जुदाई मौत ही आ जाती"। ऐसा लगा कि आशा जी नय्यर साहब के लिए ही ये बोल गा रही हैं। बहुत अफ़सोस होता है यह सोचकर कि इस ख़ूबसूरत संगीतमय जोड़ी का इस तरह से दुखद अंत हुआ। ख़ैर, सुनिए यह मास्टरपीस और सल्युट कीजिए ओ. पी. नय्यर की प्रतिभा को!

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत -चैन से हमको कभी...
कवर गायन - कुहू गुप्ता




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


कुहू गुप्ता
कुहू गुप्ता पेशे से पुणे में कार्यरत एक सॉफ्टवेर एन्जिनेअर हैं लेकिन इनका संगीत के साथ लगाव बचपन से ही रहा है. कहा जा सकता है कि इन्हें भगवान ने एक मधुर आवाज़ से नवांजा है और इनकी कोशिश यही है कि अपनी गायकी को हर दिन बेहतर बनाती जाएँ. इन्होने हिन्दुस्तानी शाश्त्रीय संगीत कि शिक्षा ११ साल की उम्र से शुरू की और ४ साल तक सीखा. ज़ी टीवी के मशहूर प्रोग्राम सारेगामापा में ये २ बार अपनी गायकी दिखा चुकी हैं. इन्होने कुछ मूल रचनाएँ भी गई हैं, जिनमे से एक हिंद युग्म के काव्य नाद एल्बम का हिस्सा है और कुछ व्यावसायिक तौर पर इस्तेमाल हुई हैं. इनके गाये हुए हिन्दी फिल्मों के गानों के कवर्स आज कल इन्टरनेट डेक्कन रेडियो पर भी सुनाये जा रहे हैं. इन सब के साथ साथ ये स्टेज शोव्स भी करती हैं.


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

दिल यार यार करता है- संगीत सत्र की सूफी-पेशकश



Season 3 of new Music, Song # 07

हिन्द-युग्म हिन्दी का पहला ऐसा ऑनलाइन मंच हैं जहाँ इंटरनेटीय जुगलबंदी से संगीत-निर्माण की शुरूआत हुई। इन दिनों हिन्द-युग्म संगीतबद्ध गीतों के तीसरे संत्र 'आवाज़ महोत्सव 2010' चला रहा है, जिसके अंतर्गत 4 अप्रैल 2010 से प्रत्येक शुक्रवार हम एक नया गीत रीलिज कर रहे हैं। हिन्द-युग्म के आदिसंगीतकार ऋषि एस हर बार कुछ नया करने में विश्वास रखते हैं। आज जो गीत हम रीलिज कर रहे हैं, उसमें ऋषि के संगीत का बिलकुल नया रूप उभरकर आया है। साथ में हैं हिन्द-युग्म से पहली बार जुड रहे गायक रमेश चेल्लामणि।

गीत के बोल -

तेरी चाहत में जीता है,
तेरी चाहत में मरता है,
तेरी सोहबत को तरसता है
तेरी कुर्बत को तड़पता है,
कैसा दीवाना है....

ये दिल यार यार करता है,
ये दिल यार यार करता है...

लौट के आजा सोहणे सजन,
तुझ बिन सूना, ये मन आँगन,
साँसों के तार टूटे है,
धड़कन की ताल मध्यम है,
कहीं देर न हो जाए,
ये दिल यार यार करता है,
ये दिल यार यार करता है...

आँखों से छलका है ग़म,
सीने में अटका है दम,
सब देखे कर के जतन,
होता ही नहीं दर्द कम,

इतना भी तो न कर सितम
इतना भी न बन बे रहम,
कहीं देर न हो जाए..

तेरे वादों पे जीता है,
तेरे वादों पे मरता है,
तेरी यादों में जलता है,
तेरी राहों को तकता है,
कहीं देर न हो जाए....
ये दिल यार यार करता है,
ये दिल यार यार करता है...



मेकिंग ऑफ़ "दिल यार यार करता है" - गीत की टीम द्वारा

ऋषि एस: 'दिल यार-यार करता है' जैसा सूफी गीत का बनाने का विचार मेरा नहीं था। एक दिन सुबह 11 बजे के करीब सजीव जी का फोन आया था, मैं दफ्तर में था। वे काफी परेशान थे कि उन्हें एक गीत जिस डेडलाइन में पूरा करना था वो कम्पोजर के व्यस्त होने से नहीं हो पा रहा है। वे चाहते थे कि मैं उस गीत को कम्पोज करूँ। सजीव और मेरी दोस्ती 10+ गाने पुरानी है। ऐसी परिस्थिति में मैं उनकी बात टाल नहीं पाया। गाना 10 दिनों के भीतर बन गया और यूएस में रहने वाले गायक रमेश चेल्लामणि को भेज दिया गया। रमेश जी ने ही इस गाने में जान डाल दी, असल में उन्होंने ही अपने एक दोस्त नन्दू से हमारी दोस्ती कराई, इस गाने की वोकल मिक्सिंग नन्दू ने ही की है। सजीव जी के काव्य-कौशल के बारे में बताने की मैं ज़रूरत नहीं समझता।

रमेश चेल्लामणि: जब मैंने इस गीत का पहका अरैंजमेंट सुना तभी से यह मेरे लिए ख़ास गीत बन गया। मुझे सूफी दर्शन और सूफी संगीत बहुत पसंद है। जब ऋषि ने मुझे इस गीत के लिए संपर्क किया तभी मैंने सोचा कि काश मैं इस शानदार संगीत और प्यारे शब्दों को गा पाऊँ। मैंने कोशिश की है। आशा है आप सभी पसंद करेंगे।

सजीव सारथी: ये गीत एक व्यावसायिक उद्देश्य से बना था, और शर्त थी कि शब्द बेहद सरल होने चाहिए, जो मूल गीत लिखा गया था उस पर ऋषि ने कुछ ५ या ६ धुनें बनायीं पर हम दोनों को कुछ मज़ा नहीं आ रहा था, फिर ऋषि को पूरे गाने में से एक पंक्ति "कहीं देर न हो जाए" भा गया और उसी पर उन्हें एक बेहद मधुर धुन बना दी, फिर उसी थीम को ध्यान में रख कर मुझे गीत का पूरा खाका बदलना पड़ा, मुझे ख़ुशी है कि इस गीत के मध्यम से हमें एक नए गायक संगीतकार रमेश भी मिले, गीतकार की नज़र से कहूँ तो इस गीत में कुछ नया तो नहीं कह पाया पर अंतिम परिणाम सुनकर बहुत मज़ा आया.

ऋषि एस॰
ऋषि एस॰ ने हिन्द-युग्म पर इंटरनेट की जुगलबंदी से संगीतबद्ध गीतों के निर्माण की नींव डाली है। पेशे से इंजीनियर ऋषि ने सजीव सारथी के बोलों (सुबह की ताज़गी) को अक्टूबर 2007 में संगीतबद्ध किया जो हिन्द-युग्म का पहला संगीतबद्ध गीत बना। हिन्द-युग्म के पहले एल्बम 'पहला सुर' में ऋषि के 3 गीत संकलित थे। ऋषि ने हिन्द-युग्म के दूसरे संगीतबद्ध सत्र में भी 5 गीतों में संगीत दिया। हिन्द-युग्म के थीम-गीत को भी संगीतबद्ध करने का श्रेय ऋषि एस॰ को जाता है। इसके अतिरिक्त ऋषि ने भारत-रूस मित्रता गीत 'द्रुजबा' को संगीत किया। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में भी एक गीत का निर्माण किया। भारतीय फिल्म संगीत को कुछ नया देने का इरादा रखते हैं।
वर्तमान सत्र में यह इनका तीसरा गीत है। इससे पहले इनके दो गीत ('मन बता' और 'लौट चल') रीलिज हो चुके हैं।


रमेश चेल्लामणि
अपने परिचय के लिए ये इतना काफी मानते हैं कि ये म्यूजिक के दीवाने हैं। कुछ अच्छे गीतकारों और संगीतकारों के साथ कर चुके हैं। फिलहाल अमेरिका में हैं।





सजीव सारथी
हिन्द-युग्म के 'आवाज़' मंच के प्रधान संपादक सजीव सारथी हिन्द-युग्म के वरिष्ठतम गीतकार हैं। हिन्द-युग्म पर इंटरनेटीय जुगलबंदी से संगीतबद्ध गीत निर्माण का बीज सजीव ने ही डाला है, जो इन्हीं के बागवानी में लगातार फल-फूल रहा है। कविहृदयी सजीव की कविताएँ हिन्द-युग्म के बहुचर्चित कविता-संग्रह 'सम्भावना डॉट कॉम' में संकलित है। सजीव के निर्देशन में ही हिन्द-युग्म ने 3 फरवरी 2008 को अपना पहला संगीतमय एल्बम 'पहला सुर' ज़ारी किया जिसमें 6 गीत सजीव सारथी द्वारा लिखित थे। पूरी प्रोफाइल यहाँ देखें।
Song - Dil Yaar Yaar Karta Hai
Voices - Ramesh Chellamani
Music - Rishi S
Vocal Mixing- Nandu
Lyrics - Sajeev Sarathie
Graphics - Samarth Garg


Song # 07, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm

इस गीत का प्लेयर फेसबुक/ऑरकुट/ब्लॉग/वेबसाइट पर लगाइए

Thursday, May 13, 2010

४०० एपिसोडों के लंबे सफर में ओल्ड इस गोल्ड ने याद किये कुछ ऐसे फनकारों को भी जिन्हें समय ने भुला ही दिया था



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २३

४० के दशक की एक प्रमुख गायिका रहीं हैं ज़ोहराबाई अंबालेवाली। भले ही फ़िल्म संगीत का सुनेहरा दौर ५० के दशक से माना जाता है, लेकिन सुनहरे गीतों का यह सिलसिला ४० के दशक के मध्य भाग से ही शुरु हो चुका था, और इसी दौरान ज़ोहराबाई के गाए एक से एक हिट गीत आ रहे थे। नौशाद साहब के संगीत में ज़ोहराबाई ने फ़िल्म 'रतन' में एक गीत गाया था "अखियाँ मिलाके जिया भरमके चले नहीं जाना", जो शायद ज़ोहराबाई का सब से लोकप्रिय गीत साबित हुआ। आज इसी गीत का रिवाइव्ड वर्ज़न प्रस्तुत है। इस फ़िल्म के संगीत से जुड़ी कुछ बड़ी ही दिलचस्प और मज़ेदार बातें नौशाद साहब ने विविध भारती के 'नौशादनामा' शृंखला में कहे थे सन् २००० में, आइए आज उन्ही पर एक नज़र दौड़ाएँ। नौशाद साहब से बातचीत कर रहे हैं कमल शर्मा।

प्र: अच्छा वह क़िस्सा कि जब आप की शादी में बैण्ड वाले आप के ही गानें की धुन बजा रहे थे, उसके बारे में कुछ बताइए।

उ: १९४४ में 'रतन' के गानें बहुत हिट हो गए थे। उससे पहले मैं घर छोड़ कर बम्बई आया था। एक दिन मेरे वालिद ने मुझसे कहा था कि 'तुमने मेरा कहना कभी नहीं माना, आज फ़ैसला होके रहेगा, अगर संगीत चाहिए तो घर छोड़ दो और अगर घर चाहिए तो संगीत को छोड़ना होगा'। मैंने १९३५ में घर छोड़ दिया।

प्र: क्या उम्र रही होगी आपकी उस वक़्त?

उ: १३/१४ या १५। उसके बाद मैं घर नहीं गया, कहाँ कहाँ भटका। फ़ूटपाथ पर सोता था, फ़ूटपाथ के उस साइड ब्रॊडवे थिएटर थी जिसकी रोशनी फ़ूटपाथ पर पड़ती थी। और एक बार उसी थिएटर में मेरी फ़िल्म 'बैजु बावरा' की जुबिली हुई। मैं उस थिएटर की बैल्कोनी से उस फ़ूटपाथ को देख रहा था कि मेरी आंखों में पानी आ गए। विजय भट्ट ने पूछा कि क्या हुआ, आप रो क्यों रहे हैं? मैंने कहा कि उस फ़ूटपाथ को देख कर आंखें भर आई, १६ साल लगे इस फ़ूटपाथ को पार करने में। ख़ैर, माँ का पैगाम आया कि शादी के लिए लड़की तय हो गई है, मैं घर जा जाऊँ। उस वक़्त मैं नौशाद बन चुका था। माँ ने कहा कि लड़की वाले सूफ़ी लोग हैं, इसलिए उन लोगों से यह नहीं कहना कि तुम संगीत का काम करते हो, बल्कि तुम दर्ज़ी का काम करते हो। मैंने सोचा कि संगीतकार से दर्ज़ी की इज़्ज़त ज़्यादा हो गई है। तो शादी में शामियाना लगाया गया, और बैण्ड वाले मेरा ही गाना बजाए जा रहे हैं और मैं दर्ज़ी बना बैठा हूँ। किसी ने फिर कहीं से कहा कि कौन ये सब गानें बजा रहा है? सब को ख़राब कर रहा है। उस समय यही सब गानें चल रहे थे, "सावन के बादलों", "अखियाँ मिलाके", वगैरह।

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत - अखियाँ मिलाके...
कवर गायन - डाक्टर पारसमणी आचार्य




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


डाक्टर पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

Wednesday, May 12, 2010

गुलज़ार के महकते शब्दों पर "पंचम" सुरों की शबनम यानी कुछ ऐसे गीत जो जेहन में ताज़ा मिले, खिले फूलों से



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २२

'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' की २२-वें कड़ी में आप सभी का एक बार फिर हार्दिक स्वागत है। आज पेश है गुलज़ार और पंचम की सदाबहार जोड़ी का एक नायाब नग़मा फ़िल्म 'घर' का। इस फ़िल्म से किशोर कुमार का गाया "फिर वही रात है" आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुन चुके हैं आज इस फ़िल्म से जिस गीत का कवर वर्ज़न हम आप तक पहुँचा रहे हैं, वह है "आपकी आँखों में कुछ महके हुए से राज़ हैं, आप से भी ख़ूबसूरत आप के अंदाज़ हैं"। लता-किशोर का गाया ये युगल गीत आज भी अक्सर रेडियो पर सुनने को मिल जाता है। दोस्तों, पंचम दा के निधन के बाद गुलज़ार साहब ने अपने इस अज़ीज़ दोस्त को याद करते हुए काफ़ी कुछ कहे हैं समय समय पर। यहाँ पे हम उन्ही में से कुछ अंश पेश कर रहे हैं। इन्हे विविध भारती पर प्रसारित किया गया था विशेष कार्यक्रम 'पंचम के बनाए गुलज़ार के मन चाहे गीत' के अन्तर्गत। "याद है बारिशो के वो दिन थे पंचम? पहाड़ियों के नीचे वादियों में धुंध से झाँक कर रेल की पटरियाँ गुज़रती थीं, और हम दोनों रेल की पटरियों पर बैठे, जैसे धुंध में दो पौधें हों पास पास! उस दिन हम पटरी पर बैठे उस मुसाफ़िर का इंतज़ार कर रहे थे, जिसे आना था पिछली शब लेकिन उसकी आमद का वक्त टलता रहा, हम ट्रेन का इंतज़ार करते रहे, पर ना ट्रेन आई और ना वो मुसाफ़िर। तुम युं ही धुंध में पाँव रख कर गुम हो गए। मैं अकेला हूँ धुंध में पचम! वो प्यास नहीं थी जब तुम संगीत उड़ेल देते थे और हम सब उसे अपनी मुंह में लेने की कोशिश किया करते थे। प्यास अब लगी है जब कतरा कतरा जमा कर रहा हूँ तुम्हारी यादों का। क्या तुम्हे पता था पंचम कि तुम चुप हो जाओगे और मैं तुम्हे ढ़ूंढता फिरूँगा? गाना बनाते वक़्त तुम ज़बान से ज़्यादा साउंड पर ध्यान देते थे। किसी शब्द का साउंड अच्छा लग जाए तो झट से ले लेते थे। और उस शब्द का माने? जैसे तुमने पूछा था मुझसे कि ये "नशेमन" कौन सा शहर है यार?"

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत - आपकी आँखों में कुछ...
कवर गायन - हेमंत बदया और रश्मि नायर




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


रश्मि नायर
इन्टरनेट पर बेहद सक्रिय और चर्चित रश्मि मूलत केरल से ताल्लुक रखती हैं पर मुंबई में जन्मी, चेन्नई में पढ़ी, पुणे से कॉलेज करने वाली रश्मि इन दिनों अमेरिका में निवास कर रही हैं और हर तरह के संगीत में रूचि रखती हैं, पर पुराने फ़िल्मी गीतों से विशेष लगाव है. संगीत के अलावा इन्हें छायाकारी, घूमने फिरने और फिल्मों का भी शौक है
हेमंत बदया
हेमंत एक संगीतमय परिवार से हैं. बैंगलोर के श्री लक्ष्मी केशवा से इन्होने ललित संगीत और पंडित परमेश्वर हेगड़े से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के गुर सीखे. टोरोंटो में रहने वाले हेमंत जी टीवी के अन्ताक्षरी और मस्त मस्त शोस में शान के साथ नज़र आये और कन्नडा संघ आईडल भी बने


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

जो खुद को आज़ाद कहे, वो सबसे बड़ा झूठा है... अनीला की आवाज़ में सुनिए क़तील साहब का बेबाकपन



महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८३

स महफ़िल में बस गज़ल की बातें होनी चाहिए, हम यह बात मानते हैं, लेकिन आज हालात कुछ ऐसे हैं कि हमसे रहा नहीं जा रहा। भारतीय क्रिकेट टीम ट्वेंटी-ट्वेंटी के विश्व कप से बाहर हो गई... बाहर होना तो एक बात है, यहाँ तो इस टीम ने पूरी तरह से घुटने टेक दिए। तीनों के तीनों मैच रेत की तरह मुट्ठी से गंवा दिए। सीरिज से पहले तो हज़ार तरह के वादे किए गए थे लेकिन आखिरकार हुआ क्या.. पिछली साल की तरह हीं बेरंग लौट आई यह टीम। एक ऐसे देश में जहाँ क्रिकेट को धर्म माना जाता है, वहाँ धर्म की इस तरह क्षति हो तो एक आस्तिक क्या करे.... उसके दिल को ठेस तो लगेगी हीं। लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं। कुछ दिनों तक इस हार को याद रखेंगे फिर उसी जोश उसी खरोश के साथ भारतीय टीम के अगले मैच को देखने के लिए तैयार हो जाएँगे। हम हैं हीं ऐसे... लेकिन इन्हीं कुछ दिनों के दरम्यान जितने भी पल, जितने भी घंटे हैं, हमारे लिए वो तो ग़मगीन हीं गुजरेंगे ना। और फिर इसी दौरान आपको अगर ग़ज़ल की महफ़िल सजानी हो तो माशा-अल्लाह.... आपका तो भगवान हीं मालिक है। हमारी आज की मन:स्थिति सौ फ़ीसदी ऐसी हीं है। समझ नहीं आ रहा कि हार का ग़म व्यक्त करें या फिर आज की गज़ल में छुपे भाव। कहाँ से शुरू करें.... इसका कुछ अता-पता हीं नहीं है। लेकिन बात यह है कि हमारी महफ़िल हमारे जीवन का एक अंग है, इसलिए इसे नज़र-अंदाज़ करने का तो सवाल हीं नहीं उठता। यानि कि महफ़िल सजेगी ज़रूर.. भले हीं आज जोश कुछ कम हो, लेकिन जज्बा कम न होगा। तो चलिए हम इस महफ़िल की विधिवत शुरुआत करते हैं।

आज की महफ़िल जिस नज़्म, जिस नगमा के नाम है, उसे हमने "बियोन्ड लव" एलबम से लिया है। इस एलबम की सारी नज़्मों और गज़लों में संगीत सतीश शर्मा का है। उस्ताद बिलायत खान के सुपुत्र सुप्रसिद्ध सितार-वादक सुजात खान ने इस एलबम में अपनी आवाज़ और सितार का कमाल दिखाया है। इतना होने के बावजूद कुछ ऐसा है, जो इस एलबम को दूसरे एलबमों से अलग करता है। किसी भी कविता-प्रेमी के लिए अजीब और अनूठी बात होती है - एक कवि/कवयित्री की आवाज़ में दूसरे किसी शायर की नज़्मों की रिकार्डिंग। जी हाँ, इस एलबम में ऐसी कई सारी नज़्में हैं, जिसे अमेरिका में रहने वाली पाकिस्तानी लेखिका और कवयित्री अनीला अरशद ने अपनी आवाज़ दी है। आज की नज़्म उन्हीं कई सारी नज़्मों में से एक है। इस नज़्म की बात करने से पहले हम आपको इस एलबम की सारी गज़लों/नज़्मों का ब्योरा देना चाहेंगे।

१) कोई पूछे है - सुजात खान
२) प्यार के काफ़िले - सुजात खान
३) ये तारों भरी रात - सुजात खान, अनीला अरशद
४) पिंजरा कब टूटा है - अनीला अरशद
५) मेरे मचले हुए ख्वाबों का महकता है चमन - सुजात खान
६) ऐ मेरे प्यार की खुशबू - अनीला अरशद
७) जवानी के नगमे - सुजात खान, अनीला अरशद

"एक कवयित्री की आवाज़ में किसी दूसरे शायर की नज़्मे" - यह कहने पर आप समझ हीं गए होंगे कि ये सारी गज़लें/नज़्में अनीला की नहीं हैं.. तो फिर कौन है इस रचनाओं का रचयिता। हमने अब तक इस शायर की लिखी तीन-चार गज़लें महफ़िल में पेश की हैं। ये गज़लें कौन-कौन-सी हैं, यह पता करना आपका काम है। इस बहाने आपका रिवीजन भी हो जाएगा। अहा! कहाँ चले? ढूँढने? अरे भाई.... पहले उस शायर का नाम तो जान लीजिए.. क्या कहा? जानते हैं। सही है.. आप तो हमसे भी आगे निकले। हम्म्म..... इतना खुश मत होईये.. हम जानते हैं कि आपको उस शायर का नाम कहाँ से मालूम हुआ है। हमने हीं तो उनका नाम इस आलेख के शीर्षक में डाला है.. जी हाँ, हम "क़तील शिफ़ाई" की हीं बात कर रहे हैं। "बियोन्ड लव" में सारी की सारी गज़लें/नज़्में इन्हीं की लिखी हुई हैं। अब चूँकि क़तील साहब के बारे में ढेर सारी बातें पहले हीं हो चुकी हैं, इसलिए उन्हें दुहराने से कोई फ़ायदा नहीं। लेकिन हाँ, हम उनका लिखा यह शेर तो देख हीं सकते हैं:

मैनें पूछा पहला पत्थर मुझ पर कौन उठायेगा
आई इक आवाज़ कि तू जिसका मोहसिन कहलायेगा


क़तील साहब की बातें न होंगी, यह माना, लेकिन अनीला? ये कौन हैं..कहाँ से हैं.... क्या करती हैं....यह तो जाना हीं जा सकता है। आगे की पंक्तियों में हम अनीला के बारे में विस्तार से चर्चा करने जा रहे हैं। हमने इन पंक्तियों का अनुवाद हिन्दी में करने की कोशिश की, लेकिन हमें ऐसे ढेर सारे शब्द मिलें जिनका हिन्दी में भाषांतरण आसान न था। इसलिए अंतत: हमने यह निर्णय लिया कि क्यों न इसे अंग्रेजी में हीं आपके सामने रख दिया जाए। वैसे भी एक वाक्य अपनी मूल भाषा में हीं ज्यादा सटीक होता है।

Aneela Arshad is a Certified Hypnotherapist, Reiki Master, Teacher and Healer. She owns and operates a Holistic Medical facility in New York where she has, by the grace of God, successfully healed many people suffering from stress, depression, sleep disorders and other related emotional illnesses. She is also an Author, Poet, Playwright and a Screenplay Writer aspiring to spread peace through her writings. Currently, the president of The Arch, a New York based Non-Profit, Cultural Organization; she hopes to reach out to the world through Art and Theatre, thereby bridging the gaps of diversity.

Her first book, The Bounty of Allah was published in 1999 by the Crossroads publishing company. She has written three screenplays, two of which, Where Spirits Soar and The Right and the Wrong, were bought by Nivelli International films. Nightmare at Uch Sharif is in the pre-production phase. She has also produced two plays, Mogul E Azam The Great Mogul and Amir Khusro in 2001 and 2003. She was nominated by the Sub-Continent Peace foundation to receive a proclamation and a Key to the City of Jersey City for her literary endeavors and the passion to address the crimes against women, particularly Muslim women.

THE SILENT LAMEN, her latest work, an anthology of which many poems have been published in various magazines, is a collection of poems based on the true stories of women whose voices have been stifled in a world where being a woman is a curse unto itself. This anthology lays bare the warped reality of women trapped beneath the rubble of a crumbling civilization. It voices the misery of tormented spirits crying out for help.

हमने "बियोन्ड लव" के बारे में जान लिया, अनीला की बातें हो गईं... इस दौरान सुजात खान भी चर्चा का विषय बने.... और तो और हमने क़तील साहब की कातिलाना शायरी भी याद कर ली..... तो फिर आज की नज़्म सुनने-सुनाने में देर करने का कोई कारण नहीं बनता। तो लीजिए पेश-ए-खिदमत है अनीला की झनकार भरी आवाज़ में वह नज़्म, जो क़तील साहब की बेबाकी का बेजोर उदाहरण है:

पिंजरा कब टूटा है,
कैदी कब छूटा है,
जो खुद को आज़ाद कहे,
वो सबसे बड़ा झूठा है।

जहन किसी का उलझा हुआ है,
माज़ी की ज़ंज़ीरों में,
घिरा हुआ है कोई हाल के
रंगारंग जजीरों में,
किसी को मुस्तकबिल के कुछ
सैयादों ने लूटा है।

इन्सानों की मजबूरी
हालात से जब टकराती है,
बहुत बड़ा एक कैदखाना
ये दुनिया बन जाती है,
इस दुनिया के बाग में
शूली जैसा हर ___ है।




चलिए अब आपकी बारी है महफ़िल में रंग ज़माने की... ऊपर जो गज़ल हमने पेश की है, उसके एक शेर में कोई एक शब्द गायब है। आपको उस गज़ल को सुनकर सही शब्द की शिनाख्त करनी है और साथ ही पेश करना है एक ऐसा शेर जिसके किसी भी एक मिसरे में वही खास शब्द आता हो. सही शब्द वाले शेर ही शामिल किये जायेंगें, तो जेहन पे जोर डालिए और बूझिये ये पहेली!

इरशाद ....

पिछली महफिल के साथी -

पिछली महफिल का सही शब्द था "उफ़क/उफ़ुक" और शेर कुछ यूँ था-

दूर् उफ़क पर् चमकती हुई क़तरा क़तरा
गिर रही है तेरी दिलदार नज़र की शबनम

इस शब्द के साथ सबसे पहले महफ़िल में हाज़िर हुए "शरद जी"। यह रहा आपका स्वरचित शेर:

उफ़क का ज़िक्र ज़माने में जब भी होता है
ज़मीं को देख देख आसमान रोता है ।

शरद जी के बाद महफ़िल की शोभा बनीं शन्नो जी। आपने यह शेर पेश किया:

उफ़ुक के पार एक और जहाँ होता है
जहाँ न कोई जमी न आसमां होता है. (यह शेर शरद जी से थोड़ा-थोड़ा प्रेरित-सा लग रहा है.. है ना? :) )

मंजु जी, उफ़ुक पर जमीं और आसमान के मिलने के सच को आपने इस शेर में बखूबी दर्शाया है:

जमाना वरदान कहे या शाप ,
उफ़ुक-सा हम दोनों का साथ .

नीरज जी, महफ़िल में आने, महफ़िल को पसंद करने और हमें एक गलती से अवगत कराने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। उम्मीद करता हूँ कि आप आगे भी इसी तरह हमारा साथ देते रहेंगे। हाँ, गुमशुदा शब्द पर शेर कहना मत भूलिएगा। :)

सीमा जी, शायद आपको ध्यान में रखकर हीं किसी गीतकार ने यह कहा था -"देर से आई, दूर से आई... वादा तो निभाया।" वादा निभाने का शुक्रिया। ये रहे आपके शेर:

उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की (क़तील शिफ़ाई)

हद-ए-उफ़क़ पे शाम थी ख़ेमे में मुंतज़र
आँसू का इक पहाड़-सा हाइल नज़र में था (वज़ीर आग़ा)

अवनींद्र जी, महफ़िल से कितना भी दूर जाईये, महफ़िल आपको खींच हीं लाएगी :) और आने पर यह शेर..कमाल है!!

तराश ले अपनी रूह को उफक की मानिंद
अँधेरा जहाँ है सवेरा भी वहीँ है !!

अवध जी, गुलज़ार साहब की यह नज़्म याद दिलाने के लिए आपका तह-ए-दिल से आभार। कुछ पंक्तियाँ पेश-ए-खिदमत हैं:

मौत तू एक कविता है.
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको.
ज़र्द सा चेहरा लिए जब चाँद उफक तक पहुंचे.
दिन अभी पानी में हो और रात किनारे के करीब.

चलिए तो इन्हीं बातों के साथ अगली महफिल तक के लिए अलविदा कहते हैं। खुदा हाफ़िज़!

प्रस्तुति - विश्व दीपक


ग़ज़लों, नग्मों, कव्वालियों और गैर फ़िल्मी गीतों का एक ऐसा विशाल खजाना है जो फ़िल्मी गीतों की चमक दमक में कहीं दबा दबा सा ही रहता है. "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" श्रृंखला एक कोशिश है इसी छुपे खजाने से कुछ मोती चुन कर आपकी नज़र करने की. हम हाज़िर होंगे हर बुधवार एक अनमोल रचना के साथ, और इस महफिल में अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में आपके मुखातिब होंगे कवि गीतकार और शायर विश्व दीपक "तन्हा". साथ ही हिस्सा लीजिये एक अनोखे खेल में और आप भी बन सकते हैं -"शान-ए-महफिल". हम उम्मीद करते हैं कि "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" का ये आयोजन आपको अवश्य भायेगा.

Tuesday, May 11, 2010

असरदार शब्द और वजनदार संगीत, लाजवाब गायन जाने कितने जाने अनजाने संगीत कर्मियों ने मिलकर संवारा है फिल्म संगीत का ये संसार



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २१

मुकेश की आवाज़ में राज कपूर और माला सिन्हा अभिनीत फ़िल्म परवरिश में हसरत जयपुरी का ही लिखा और दत्ताराम का स्वरबद्ध किया हुआ यह गीत है "आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें, कोई उनसे कह दे हमें भूल जाए"। संगीतकार दत्ताराम शंकर जयकिशन के सहायक हुआ करते थे। कहा जाता है कि शंकर से जयकिशन को पहली बार मिलवाने में दत्तारामजी का ही हाथ था। १९४९ से लेकर १९५७ तक इस अज़ीम संगीतकार जोड़ी के साथ काम करने के बाद सन १९५७ में दत्ताराम बने स्वतंत्र संगीतकार, फ़िल्म थी 'अब दिल्ली दूर नहीं'। पहली फ़िल्म के संगीत में ही इन्होने चौका मार दिया और इसके अगले साल १९५८ में अपनी दूसरी फ़िल्म 'परवरिश' में सीधा छक्का। ख़ासकर राग कल्याण पर आधारित मुकेश का गाया हुआ यह गाना तो सीधे लोगों के ज़ुबां पर चढ़ गया। मुकेश नाम दर्द भरी आवाज़ का पर्याय है। अनिल बिश्वास के संगीत निर्देशन में अपने पहले गाने से ही मुकेश दर्दीले गीतों के राजा बन गये थे। यह गीत था फ़िल्म 'पहली नज़र' से "दिल जलता है तो जलने दे, आँसू ना बहा फ़रयाद ना कर"। इस गीत को उन्होने अपने गुरु सहगल साहब के अंदाज़ में कुछ इस तरह से गाया था कि ख़ुद सहगल साहब ने टिप्पणी की थी कि "मैने यह गीत कब गाया था?" उस समय फ़िल्मी दुनिया में नये नये क़दम रखनेवाले मुकेश के लिए सहगल साहब के ये चंद शब्द किसी अनमोल पुरस्कार से कम नहीं थे। फ़िल्म परवरिश के प्रस्तुत गीत में भी मुकेश के उसी अन्दाज़-ए-बयां को महसूस किया जा सकता है। एक अंतरे में हसरत साहब कहते हैं - "बरबादियों की अजब दास्तान हूँ, शबनम भी रोये मैं वो आसमान हूँ, उन्हें घर मुबारक़ हमें अपनी आहें, कोई उनसे कहदे हमें भूल जायें", कितने सीधे सरल लेकिन असरदार शब्दों में किसी के दिल के दर्द का बयान किया गया है इस गीत में! उस पर दताराम के संगीत संयोजन ने बोलों को और भी ज़्यादा पुर-असर बना दिया है। केवल सारंगी, सितार और तबले के ख़ूबसूरत प्रयोग से गाना बेहद सुरीला बन पड़ा है।

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत - आंसू भरी हैं...
कवर गायन - शरद तैलंग




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


शरद तैलंग
शरद तैलंग सुगम संगीत के आकाशवाणी कलाकार, कवि, रंगकर्मी और राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के कार्यकारिणी सदस्य हैं। वे भारत विकास परिषद के अंतर्राष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय सम्मेलन के सांस्कृतिक सचिव भी रह चुके हैं। आप अनेक साहित्यिक व संगीत संस्थाओँ के सदस्य अथवा पदाधिकारी रह चुके है, अनेकों संगीत एवं नाट्य प्रतियोगिताओँ में निर्णायक रह चुके हैं तथा देश के केरल, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र प्रदेशों के अनेक शहरों में अपनी संगीत प्रस्तुतियाँ दे चुके हैं। आपकी रचनाएँ देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओँ जैसे धर्मयुग, हंस, मरु गुलशन, मरु चक्र, सौगात, राजस्थान पत्रिका, राष्ट्रदूत, माधुरी, दैनिक भास्कर आदि में प्रकाशित हो चुकी हैं। ऑल इण्डिया आर्टिस्ट एसोसिएशन शिमला, जिला प्रशासन कोटा आई. एल. क्लब तथा अनेक संस्थानों द्वारा उन्हें सम्मानित किया जा चुका हैं। आप आवाज़ पर बहुचर्चित स्तम्भ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अतिथि-होस्ट रह चुके हैं।


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

प्रीतम लाए हैं बदमाश कम्पनी वाली अय्याशी तो शंकर एहसान लॊय के साथ है धन्नो की हाउसफुल महफ़िल



ताज़ा सुर ताल १८/२०१०

सुजॊय - विश्व दीपक जी, साल २०१० के चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि वह एक गीत अभी तक नहीं आ सका है जिसे इस साल का 'सॊंग ऒफ़ दि ईयर' कहा जा सकता हो। मेरे हिसाब से तो इस साल का संगीत कुछ ठंडा ठंडा सा चल रहा है। आपके क्या विचार हैं?

विश्व दीपक - सुजॊय जी, मैं आपकी बात से एक हद तक सहमत हूँ। फिर भी मुझे न जाने क्यों "रावण" के "रांझा-रांझा" से ढेर सारी उम्मीदें हैं। अभी तक जितने भी गाने इस साल आए हैं, यह गाना मुझे सबसे ज्यादा पसंद है। आगे क्या होगा, यह कहा तो नहीं जा सकता, लेकिन बस चार महीने में 'सॊंग ऒफ़ दि ईयर' का निर्णय कर देना तो जल्दीबाजी हीं होगी। इसलिए धैर्य रखिए.... मुझे पूरा विश्वास है कि बाकी के आठ महीनों में कुछ न कुछ कमाल तो ज़रूर हीं होगा, नहीं तो रावण है हीं। खैर ये बताईये कि आज हम किस फिल्म या फिर किन फ़िल्मों के गानों की चर्चा करने जा रहे हैं।

सुजॊय - आज हमने इस स्तंभ के लिए दो ऐसी फ़िल्मों के तीन-तीन गीत चुने हैं जो फ़िल्में हाल ही में प्रदर्शित हो चुकी हैं। ये दो फ़िल्में हैं 'बदमाश कंपनी' और 'हाउसफ़ुल'। हमने जब रावण के संगीत की समीक्षा की थी, तब हीं इन दो फिल्मों का ज़िक्र आया था, लेकिन ’रहमान’ के नाम के कारण रावण को तवज्जो देनी पड़ी। आज दो हफ़्तों के बाद हमें फिर से इन पर नज़र दौराने का मौका मिला है। तो हम इस समीक्षा की शुरूआत 'बदमाश कंपनी' के गीतों से करते हैं। इस फिल्म के रिव्यूज तो कुछ अच्छे नहीं सुनाई दे रहे। कहानी में भी ज़्यादा दम नहीं है, वही चार दोस्तों की शॊर्ट-कट वाले रस्ते में चलकर अमीर बनने की कहानी।

विश्व दीपक - शाहिद कपूर, अनुश्का, वीर दास और मेयांग चैंग इस फ़िल्म के चार मुख्य किरदार हैं। ध्यान देने वाली बात है कि मेयांग चैंग, जो कि पिछले साल 'इंडियन आइडल' के अच्छे गायकों में से एक रहे हैं, इस फ़िल्म में उनकी आवाज़ में कोई भी गीत नहीं है। मुझे यह बात थोड़ी खली ज़रूर। लेकिन क्या कर सकते हैं। निर्णय तो संगीतकार और निर्देशक का हीं होता है। वैसे आपको बता दें कि फ़िल्म में संगीत प्रीतम का है और शाहिद कपूर के साथ उनके गानें ख़ूब कामयाब रहे हैं जैसे कि 'जब वी मेट', 'किस्मत कनेक्शन', 'दिल बोले हड़िप्पा' आदि।

सुजॊय - शाहिद कपूर को अगर इस दौर का जम्पिंग जैक जीतेन्द्र कहा जाए तो गलत न होगा। और प्रीतम के थिरकन भरे गानों को वो अपनी दमदार डान्स से सार्थक बनाते भी हैं। 'बदमाश कंपनी' में भी तेज़ रीदम के कई गीत हैं। जैसे कि पहला गीत जो हम सुनवाने जा रहे हैं "चस्का चस्का लगा है"। सुनते हैं कृष्णा और साथियों की आवाज़ में यह गीत। इस गीत के बारे में यही कह सकते हैं कि विशाल भारद्वाज ने 'कमीने' के "ढैन ट नैन" में जिस तरह के जीवन शैली जीने वाले युवाओं को दर्शाया है, "चस्का" में वही कोशिश सुनाई देती है लेकिन यह गीत ख़ास असर नहीं करती, और एक बहुत ही एवरेज गीत है मेरे ख़याल में।

विश्व दीपक - गीत के अरैंजमेण्ट में ज़्यादा ध्यान दिया गया है और तेज़ रीदम के बीच कृष्णा की आवाज़ बैकग्राउंड में जैसे सुनाई देती है और ड्रम बीट्स ही फ़ोरग्राउंड पर पूरे गीत में छाए हुए हैं। फ़िल्म की गीतकारा अन्विता दत्त गुप्तन ने कोशिश तो अच्छी की है गुलज़ार साहब की तरह वही "ढैन ट नैन" वाला अंदाज़ लाने की, लेकिन वो उसमें कितनी सफल हुईं हैं, यह आप ख़ुद ही गीत को सुन कर निर्णय लीजिए। वैसे अगर आप मुझसे पूछें तो मुझे "ताजी/भाजी करारी है, भून के उतारी है, किस्मत गरमा-गरम" जैसे प्रयोग बेहद पसंद आते हैं। और इस लिहाज से मुझे इस गाने के बोल जबरदस्त तो नहीं कहूँगा लेकिन हाँ अच्छे जरूर लगे। चलिए तो सुनते हैं "चस्का"।

गीत: चस्का चस्का


सुजॊय - जब फ़िल्म की कहानी ही ऐसी है कि चार युवा जो ग़लत राह इख़्तियार कर अमीर बनने की कोशिश में लगे हैं एक आलीशान ज़िंदगी पाने की चाहत में, तो ऐसे में अगर फ़िल्म के किसी गीत का मुखड़ा हो "सर चढ़ी है ये अय्याशी", तो इसमें गीतकार को दोष देना ग़लत होगा। जी हाँ, इस फ़िल्म के एल्बम का पहला गीत ही है "अय्याशी"। के. के और साथियों का गाया हुआ गीत है। के. के ने अपनी रॊक शैली वाले अंदाज़ में इस गीत को बखूबी निभाया है। पहले भी मैंने कहा था, आज दोहरा रहा हूँ कि के.के एक ऐसे गायक हैं जिनकी चर्चा बहुत कम होती है, लेकिन वो अपने हर गीत में अपना १००% देते हैं। आजकल वैसे उनकी आवाज़ में 'काइट्स' का गीत "ज़िंदगी दो पल की" गली गली गूँज रहा है।

विश्व दीपक - जहाँ तक "अय्याशी" का सवाल है, प्रीतम की टेक्नो ईलेक्ट्रॊनिक धुनें गीत के बोलों पर हावी होते सुनाई देती हैं। हिप हॊप और 'डेथ रॊक मेटल' का मिला जुला संगम है इस गीत का संगीत। इस गीत का भाव फ़िल्म के कहानी के साथ जाता है और प्रोमोज़ भी इसी गीत के ज़रिए किया गया है कई दिनों तक। बहुत ज़्यादा इम्प्रेसिव तो नहीं कहेंगे, लेकिन कहानी के हिसाब से ठीक ठाक है।

गीत: अय्याशी


विश्व दीपक - और अब सूफ़ी रंग। आज के दौर का यह चलन बन चुका है कि हर फ़िल्मकार अपनी फ़िल्म में कम से कम एक सूफ़ियाना अंदाज़ का गीत डालने की कोशिश कर रहा है। 'बदमाश कंपनी' में भी प्रीतम ने राहत फ़तेह अली ख़ान से एक ऐसा ही गीत गवाया है, लेकिन पाश्चात्य संगीत के साथ सूफ़ी का ऐसा फ़्युज़न किया है कि गीत कुछ अलग ही शक्ल में सामने आता है। "फ़कीरा" को हम एक 'सूफ़ी-रॊक' गीत कह सकते हैं।

सुजॊय - इससे पहले प्रीतम के संगीत में फ़िल्म 'दे दना दन' में "रिश्ते नाते हंस के तोड़ दूँ" गीत गाया था राहत साहब ने, जिसमें एक सुकून एक मिठास थी। लेकिन इस गीत पर इतना ज़्यादा रॊक का रंग चढ़ा दिया गया है कि गीत की आत्मा कहीं खो सी गई है। यह भी मेरे ख़याल से एक ऐवरेज गीत है और राहत साहब जैसे गायक के होते हुए भी गाना दिल को ज़्यादा छू नहीं पाया। आगे आप सुनिए और बताइए कि आपको इस गीत के बारे में क्या कहना है।

गीत: फ़कीरा


विश्व दीपक - और अब आज की दूसरी फ़िल्म 'हाउसफ़ुल' के तीन गीतों की बारी। अक्षय कुमार, अर्जुन रामपाल, रितेश देशमुख, दीपिका पादुकोन, लारा दत्ता, जिया ख़ान, चंकी पाण्डेय जैसे मल्टी स्टार कास्ट वाली यह हास्य फ़िल्म लोगों को पसंद आ रही है ऐसा सुनने में आया है। फ़िल्म में संगीत शंकर अहसान लॊय का है।

सुजॊय - यह फ़िल्म भले ही अपनी कॊमेडी की वजह से लोगों को आकर्षित कर रही है, लेकिन गीत संगीत में उतना दम नहीं है। यह इसलिए भी हो सकता है क्योंकि इस फिल्म में ऐसे गानों की हीं ज़रूरत है जो लोगों को थिरकाएँ। लोग इन गानों को भविष्य में याद रखते हैं या नहीं, यह एक अलग मुद्दा है। आपको याद होगा कि "हे बेबी" में भी इस तिकड़ी ने ऐसे हीं गाने दिए थे। तो इन गानों में से पहला गीत जो हम सुनने जा रहे हैं वह है "ओ गर्ल, यू आर माइन"। तरुण सागर, अलीसा मेनडॊन्सा और लॊय ने इस गीत को गाया है। गाने का रीदम कैची है, शुरुआती संगीत में जो हारमोनिका सुनाई देता है, वह भी पहली बार सुनने वाले को आकर्षित करता है। आजकल यही गीत हर टीवी चैनल और रेडियो चैनल पर सुनाई दे रहा है। और चलिए यहाँ भी इस गीत को सुना जाए शुरु से लेकर आख़िर तक।

विश्व दीपक - सुजॊय जी, गाना तो हम सुन हीं लेंगे लेकिन क्या आपने ध्यान दिया कि "तरूण सागर" का नाम बेहद अनजाना तो कुछ-कुछ जाना-पहचाना-सा है। दर-असल तरूण पिछली साल के "सारेगामापा" में एक प्रतिभागी थे, विजयी तो नहीं हुए, लेकिन शंकर महादेवन की नज़रों में आ गए और फिर देखिए किस्मत उन्हें कहाँ से कहाँ ले गई। पहली हीं फिल्म में शंकर के लिए गाना कोई छोटी बात नहीं है। "ओ गर्ल" के बाद हम जो गाना सुनेंगे, उसमें भी एक नई गायिका हैं "रीतु पाठक"। तरूण जहाँ सारेगामापा के प्रतिभागी थे तो रीतु "इंडियन आईडल" की। शंकर-एहसान-लॊय ने इन दोनों गलाकारों को एक बहुत हीं मज़बूत मंच दिया है। मैं तो यही दुआ करता हूँ कि ये दोनों संगीत की दुनिया में बहुत आगे जाएँ और ऐसे हीं एक से बढकर एक गाने गाते रहें। हाँ तो अब सुनते हैं वो गीत:

गीत: ओ गर्ल यू आर माइन


सुजॊय - आजकल फ़िल्मी गीतों में बोलों के लिहाज़ से भी उतने ही प्रयोग हो रहे हैं जितने की संगीत में हो रहे हैं। आज से दस साल पहले तक शायद हीं किसी ने यह सोचा होगा कि "पप्पु काण्ट डान्स साला" जैसे मुखड़े भी कभी आ सकते हैं तो फिर अगर 'हाउसफ़ुल' में गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य लिखते हैं कि "वॊल्युम कम कर पप्पा जग जाएगा" तो इसमें बहुत ज़्यादा हैरान होनेवाली बात नहीं है।

विश्व दीपक - इस गीत को गाया है रीतु पाठक(जिनका ज़िक्र हमने पहले हीं कर दिया है), नीरज श्रीधर और अलीसा मेन्डोन्सा(लॊय की सुपुत्री) ने। पिछले गीत की तरह यह भी एक पेप्पी नंबर है। हल्के फुल्के गीत शैली में ये दोनों गानें ही कैची हैं। 'बदमाश कंपनी' के गानों ने पेप्पी होते हुए भी जो असर नहीं किया था, शायद 'हाउसफ़ुल' के गीत उस मापदंड पर कुछ हद तक खरे उतर जाएँ।

सुजॊय - मुझे भी ऐसा लगा कि ये दोनों गीतों ने अपनी रीदम के बल पे कुछ हद तक आज के युवाओं को वश में किया है। आइए यह गीत भी सुन लेते हैं।

गीत: वॊल्युम कम कर पप्पा जाग जाएगा


विश्व दीपक - ’हाउसफ़ुल' एल्बम का मुख्य आकर्षण है अमिताभ बच्चन की 'लावारिस' फ़िल्म के मशहूर गीत "अपनी तो जैसे तैसे" का रिमिक्स वर्ज़न। गीत का शीर्षक रखा गया है "आपका क्या होगा (धन्नो रिमिक्स)"। लगता है अब यह नया स्टाइल भी चल पड़ेगा कि हर फ़िल्म में किसी पुराने गीत का रिमिक्स डाल दिया जाएगा। आपका क्या ख़याल है सुजॊय?

सुजॊय - हो सकता है। पिछले कुछ समय से रिमिक्स गानें बनाने की होड़ कुछ ख़त्म सी हो गई थी, अब हो सकता है कि इसके बाद फिर से एक बार रिमिक्स बनाने का सिलसिला शुरु हो जाए। इस विवाद पर न जाते हुए आपको यह बता दें कि किशोर दा के इस ऒरिजनल गीत को आवाज़ दी है मिका ने और साथ में हैं सुनिधि चौहान और साजिद ख़ान।

विश्व दीपक - विवाद का आपने ज़िक्र किया तो मैं कम से कम इतना बता दूँ कि विवाद वैसे भी शुरु हो गया है इस गीत को लेकर, ऐसा कहा जा रहा है कि निर्माता ने ऒरिजिनल गीत के कॊपीराइट्स उचित तरीके से हासिल नहीं किए हैं।

सुजॊय - "अपनी तो जैसे तैसे" गीत को लिखा था अंजान साहब ने। और अब इस गीत का रिकिक्स्ड वर्ज़न को लिखा है उन्ही के सुपुत्र गीतकर समीर ने। एक तरह से अपने पिता को श्रद्धांजलि ही हुई उनकी तरफ़ से। आइए सुनते हैं यह गीत और आज के 'ताज़ा सुर ताल' की चर्चा यहीं संपन्न करते हैं।

गीत: आपका क्या होगा (धन्नो)


"बदमाश कंपनी" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***
बदमाश कंपनी से प्रीतम और अन्विता दत्त गुप्तन पहली बार एक साथ आए हैं। प्रीतम के साथ इरशाद कामिल की जो जोड़ी है, वह कमाल करती है और हमें इस फिल्म में उसी जोड़ी की कमी खल गई। वैसे कोई बात नही, अगली फिल्म "राजनीति" में यह जोड़ी वापस आ रही है।

"हाउसफुल" के संगीत को आवाज़ रेटिंग ***१/२
इस फिल्म के हमने तीन हीं गाने चुने हैं लेकिन हम यहाँ पर एक और गाने का ज़िक्र करना चाहेंगे। गाने के बोल हैं "आई डोंट नो व्हाट टू डू".. बोल कुछ अजीब से लगते हैं, लेकिन इस गाने में सुनिधि चौहान और शब्बीर कुमार (हाँ आपने सही सुना, ८० के दशक के सुपरहिट शब्बीर कुमार की आवाज़ है इस गाने में) ने सेन्सुअस और छेड़-छाड़ वाले गानों को एक नया अर्थ दिया है। इस गाने के कारण हीं हम इस एलबम को एक्स्ट्रा आधी रेटिंग दे रहे हैं। हमें खेद है कि हम ये गाना आपको सुनवा नहीं पाए, लेकिन आप इसे किसी भी तरह से सुनिएगा ज़रूर।

और अब आज के ३ सवाल

TST ट्रिविया # ५२- जिस साल मेयांग चैंग 'ईंडियन आइडल' में भाग लिया था, उस साल इंडियन आइडल का ख़िताब किसने जीता था?

TST ट्रिविया # ५३- गीतकार अंजान ने फ़िल्म 'लावारिस' के लिए लिखा था "अपनी तो जैसे तैसे"। बताइए कि इस फ़िल्म में उनके अलावा और किन गीतकार ने गीत लिखे थे।

TST ट्रिविया # ५४- आज के 'ताज़ा सुर ताल' में में रितेश देशमुख, प्रीतम और मिका का अलग अलग ज़िक्र आया है। क्या आप कोई ऐसा गीत बता सकते हैं जिसमें इन तीनों का योगदान रहा हो?


TST ट्रिविया में अब तक -
पिछले हफ़्ते के सवालों के जवाब:

१. 'फ़िल्मफ़ेयर आर.डी. बर्मन अवार्ड' तथा सर्वश्रेष्ठ पार्श्व संगीत (बेस्ट बैकग्राउंड म्युज़िक) - ये दोनों पुरस्कार फ़िल्म 'देव-डी' के लिए।
२. फ़िल्म 'रंग दे बसंती' में "लुका छुपी बहुत हुई सामने आ जाना"।
३. फ़िल्म 'वेक अप सिड' और गायिका कविता सेठ।

सीमा जी, आपके तीनों जवाब सहीं हैं। बधाई स्वीकारें!

Monday, May 10, 2010

बेहतर तालमेल के चलते इंडस्ट्री में बनी गीतकार -संगीतकारों की ढेरों सफल जोडियाँ, और इन जोड़ियों ने खेली लंबी पारियाँ



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २०

'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आज रिवाइवल उमा देवी की गाई उस शानदार यादगार गाने की जिसे आपने इसी महफ़िल में कमचर्चित गायिकाओं पर केन्द्रित शृंखला 'हमारी याद आएगी' में कड़ी नं ३३२ में सुना था। उत्तर प्रदेश के एक खत्री परिवार में जन्मीं उमा देवी को अभिनय से ज़्यादा गायकी का शौक था। लेकिन एक रूढ़ीवादी पंजाबी परिवार में होने की वजह से उनको अपने परिवार से कोई बढ़ावा ना मिल सका। उन्होने अपनी मेहनत से हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी में शिक्षा प्राप्त की और महज़ १३ वर्ष की उम्र में ही बम्बई आ पहुँचीं। सन् १९४७ में उमा देवी को अपना पहला एकल गीत गाने का मौका मिला जिसके लिए उन्हे २०० रुपय का मेहनताना मिला। उन्हे नौशाद साहब का संगीत इतना पसंद था कि उनके बार बार अनुरोध करने पर आख़िरकार नौशाद साहब ऒडिशन के लिए तैयार हो ही गए। और उनकी गायन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। और फ़िल्म 'दर्द' में पहली बार उमा देवी ने गानें गाए और पहला गीत ही सुपर डुपर हिट। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इसी गीत की बारी। नौशाद साहब उन दिनों जिन जिन फ़िल्मों में संगीत दे रहे थे, उन सब में उन्होने उमा देवी को कम से कम एक गीत गाने का मौका ज़रूर दिया। पर यह सिलसिला बहुत ज़्यादा दिनों तक नहीं चला. धीरे धीरे उन्हे गानें मिलने बंद हो गए। इसका एक कारण था दूसरी गायिकाओं का और ज़्यादा प्रतिभाशाली होना जो ऊँची आवाज़ में गा सकते थे। उमा देवी को अपनी सीमाओं का पूरा अहसास था। दूसरे, उनका मोटापा भी उन्हे चुभ रहा था जो उनकी गायकी पर असर डाल रहा था। ऐसे में उनके राखी भाई नौशाद साहब ने उन्हे फ़िल्मों में हास्य चरित्रों के रूप में काम करने का सुझाव दिया, और इस प्रकार आरंभ हुई उमा देवी की दूसरी पारी, जिन्हे हम टुनटुन के नाम से जानते हैं। उनकी यह दूसरी पारी सब को इतना पसंद आया कि उमा देवी सब के दिल में आज तक टुनटुन के नाम से ही बसी हुईं हैं और हमेशा रहेंगी। दोस्तों, आज उमा जी को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए हमने उनका गाया सब से हिट गीत चुना है, १९४७ की फ़िल्म 'दर्द' का - "अफ़साना लिख रही हूँ दिल-ए-बेक़रार का, आँखो में रंग भर के तेरे इंतज़ार का"। दोस्तों, फ़िल्म 'दर्द' का यह गीत एक और दृष्टि से भी बेहद ख़ास है कि इस गीत से ही शुरु हुआ था गीतकार शक़ील बदायूनी और संगीतकार नौशाद का साथ, जिस जोड़ी ने इतिहास कायम किया सदाबहार नग़मों की दुनिया में। शक़ील बदायूनी पर केन्द्रित विविध भारती के एक कार्यक्रम में यूनुस ख़ास कहते हैं कि "दिलचस्प बात यह है कि शायरी की दुनिया से आने के बावजूद शक़ील ने फ़िल्मी गीतों के व्याकरण को फ़ौरन समझ लिया था। उनकी पहली ही फ़िल्म के गाने एक तरफ़ सरल और सीधे सादे हैं तो दूसरी तरफ़ उनमें शायरी की ऊँचाई भी है। इसी गाने में शक़ील साहब ने लिखा है कि "आजा के अब तो आँख में आँसू भी आ गए, सागर छलक उठा है मेरे सब्र-ओ-क़रार का, अफ़साना लिख रही हूँ दिल-ए-बेक़रार का"। किसी के इंतज़ार को जितने शिद्दत भरे अलफ़ाज़ शक़ील ने दिए, शायद किसी और गीतकार ने नहीं दिए।"

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत - अफसाना लिख रही हूँ...
कवर गायन - डाक्टर पारसमणी आचार्य




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


डाक्टर पारसमणी आचार्य
मैं पारसमणी राजकोट गुजरात से हूँ, पापा पुलिस में थे और बहुत से वाध्य बजा लेते थे, उनमें से सितार मेरा पसंदीदा था. माँ भी HMV और AIR के लिए क्षेत्रीय भाषा में पार्श्वगायन करती थी, रेडियो पर मेरा गायन काफी छोटी उम्र से शुरू हो गया था. मैं खुशकिस्मत हूँ कि उस्ताद सुलतान खान साहब, बेगम अख्तर, रफ़ी साहब और पंडित रवि शंकर जी जैसे दिग्गजों को मैंने करीब से देखा और उनका आशीर्वाद पाया. गायन मेरा शौक तब भी था और अब भी है, रफ़ी साहब, लता मंगेशकर, सहगल साहब, बड़े गुलाम अली खान साहब और आशा भोसले मेरी सबसे पसंदीदा हैं


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

Sunday, May 9, 2010

फ़िल्मी गीतों के सुन्दर फिल्मांकन में उनकी लोकेशन की भी अहम भूमिका रही है फिर चाहे वो देसी हो या विदेशी



ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # १९

१९६४ शक्ति सामंत के फ़िल्मी सफ़र का एक महत्वपूर्ण साल रहा क्युंकि इसी साल आयी थी फ़िल्म 'कश्मीर की कली'। शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर अभिनीत इस फ़िल्म ने उनके पहले की सभी फ़िल्मों को पीछे छोड़ दिया था कामयाबी की दृष्टि से। इस फ़िल्म में शक्तिदा ने पहली बार शर्मिला टैगोर को हिंदी फ़िल्मों में ले आये थे। हुआ यह था कि शक्तिदा एक बार किसी बंगला पत्रिका में शर्मिला की तस्वीर देख ली थी और वो उन्हे पसंद आ गयी। शक्तिदा ने उनके पिताजी को फोन किया और उनके पिताजी ने यह भी कहा कि अगर कहानी अच्छी है तो उनकी बेटी ज़रूर काम करेगी। बस फिर क्या था, तीन फ़िल्म वितरकों को साथ में लेकर शक्तिदा शर्मिला से मिलने उनके घर जा पहुँचे। उन फ़िल्म वितरकों को शर्मिला कुछ ख़ास नहीं लगी, लेकिन शक्तिदा को अपनी पसंद पर पूरा विश्वास था और उन्हे अपने फ़िल्म के लिए चुन लिया। फ़िल्म की शूटिंग शुरु हुई और पहले ही दिन शर्मिला का शम्मी कपूर और शक्तिदा से अच्छी दोस्ती हो गई। फ़िल्म की पूरी युनिट कश्मीर पहुंची और उनका डल झील के ७ या ८ 'हाउस बोट्स' में ठहरने का इंतज़ाम हुआ। युनिट के बाक़ी लोगों के लिए शहर के होटलों में व्यवस्था की गई। लेकिन लगातार बारिश होने की वजह से पहले १५ दिनों तक कोई शूटिंग नहीं हो पायी। शक्तिदा के अनुसार उन १५ दिनों में वे लोग डल झील में मछलियाँ पकड़ा करते थे। है ना मज़ेदार बात इस फ़िल्म से जुड़ी हुई! इस फ़िल्म के गीतों के बारे में कुछ कहने की शायद ज़रूरत ही नहीं है, बस इतना कहूँगा कि 'हावड़ा ब्रिज' के बाद ओ.पी. नय्यर एक बार फिर लौटे शक्तिदा के फ़िल्म में और ज़बरदस्त तरीके से लौटे। तो आइए आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में रिवाइव करें इसी फ़िल्म के एक बड़े ही ख़ूबसूरत को। फ़िल्म के लिए इसे आशा जी ने गाया था और गीतकार थे एस.एच. बिहारी।

ओल्ड इस गोल्ड एक ऐसी शृंखला जिसने अंतरजाल पर ४०० शानदार एपिसोड पूरे कर एक नया रिकॉर्ड बनाया. हिंदी फिल्मों के ये सदाबहार ओल्ड गोल्ड नगमें जब भी रेडियो/ टेलीविज़न या फिर ओल्ड इस गोल्ड जैसे मंचों से आपके कानों तक पहुँचते हैं तो इनका जादू आपके दिलो जेहन पर चढ कर बोलने लगता है. आपका भी मन कर उठता है न कुछ गुनगुनाने को ?, कुछ लोग बाथरूम तक सीमित रह जाते हैं तो कुछ माईक उठा कर गाने की हिम्मत जुटा लेते हैं, गुजरे दिनों के उन महान फनकारों की कलात्मक ऊर्जा को स्वरांजली दे रहे हैं, आज के युग के कुछ अमेच्युर तो कुछ सधे हुए कलाकार. तो सुनिए आज का कवर संस्करण

गीत - बलमा खुली हवा में...
कवर गायन - कुहू गुप्ता




ये कवर संस्करण आपको कैसा लगा ? अपनी राय टिप्पणियों के माध्यम से हम तक और इस युवा कलाकार तक अवश्य पहुंचाएं


कुहू गुप्ता
कुहू गुप्ता पेशे से पुणे में कार्यरत एक सॉफ्टवेर इंजिनियर हैं लेकिन इनका संगीत के साथ लगाव बचपन से ही रहा है. कहा जा सकता है कि इन्हें भगवान ने एक मधुर आवाज़ से नवांजा है और इनकी कोशिश यही है कि अपनी गायकी को हर दिन बेहतर बनाती जाएँ. इन्होने हिन्दुस्तानी शाश्त्रीय संगीत कि शिक्षा ११ साल की उम्र से शुरू की और ४ साल तक सीखा. ज़ी टीवी के मशहूर प्रोग्राम सारेगामापा में ये २ बार अपनी गायकी दिखा चुकी हैं. इन्होने कुछ मूल रचनाएँ भी गई हैं, जिनमे से एक हिंद युग्म के काव्य नाद एल्बम का हिस्सा है और कुछ व्यावसायिक तौर पर इस्तेमाल हुई हैं. इनके गाये हुए हिन्दी फिल्मों के गानों के कवर्स आज कल इन्टरनेट डेक्कन रेडियो पर भी सुनाये जा रहे हैं. इन सब के साथ साथ ये स्टेज शोव्स भी करती हैं.


विशेष सूचना -'ओल्ड इज़ गोल्ड' शृंखला के बारे में आप अपने विचार, अपने सुझाव, अपनी फ़रमाइशें, अपनी शिकायतें, टिप्पणी के अलावा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नए ई-मेल पते oig@hindyugm.com पर ज़रूर लिख भेजें।

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड के ४०० शानदार एपिसोड आप सब के सहयोग और निरंतर मिलती प्रेरणा से संभव हुए. इस लंबे सफर में कुछ साथी व्यस्तता के चलते कभी साथ नहीं चल पाए तो कुछ हमसे जुड़े बहुत आगे चलकर. इन दिनों हम इन्हीं बीते ४०० एपिसोडों के कुछ चर्चित अंश आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं इस रीवायिवल सीरीस में, ताकि आप सब जो किन्हीं कारणों वश इस आयोजन के कुछ अंश मिस कर गए वो इस मिनी केप्सूल में उनका आनंद उठा सकें. नयी कड़ियों के साथ हम जल्द ही वापस लौटेंगें

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन