होली है!!! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और आप सभी को रंगीन पर्व होली पर हमारी ढेर सारी शुभकामनाएँ। तो कैसा रहा होली से पहले का दिन? ख़ूब मस्ती की न? हमनें भी की। और 'आवाज़' की हमारी टोली दिन भर रंग उड़ेलते हुए, मौज मस्ती करते हुए, लोगों को शुभकामनाएँ देते हुए, अब दिन ढलने पर आ पहुँचे हैं एक मशहूर शायर व गीतकार के बेटे के दर पर। ये उस अज़ीम शायर के बेटे हैं, जिस शायर नें अदबी शायरी के साथ साथ फ़िल्म-संगीत में भी अपना अमूल्य योगदान दिया। हम आये हैं शक़ील बदायूनी के साहबज़ादे जावेद बदायूनी के पास उनके पिता के बारे में थोड़ा और क़रीब से जानने के लिए और साथ ही शक़ील साहब के लिखे कुछ बेमिसाल होली गीत भी आपको सुनवायेंगे।
सुजॊय - जावेद बदायूनी साहब, नमस्कार, और 'हिंद-युग्म' परिवार की तरफ़ से आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जावेद बदायूनी - शुक्रिया बहुत बहुत, और आपको भी होली की शुभकामनाएँ!
सुजॊय - आज का दिन बड़ा ही रंगीन है, और हमें बेहद ख़ुशी है कि आज के दिन आप हमारे पाठकों से रु-ब-रु हो रहे हैं।
जावेद बदायूनी - मुझे भी बेहद ख़ुशी है अपने पिता के बारे में बताने का मौका पाकर।
सुजॊय - जावेद साहब, इससे पहले कि मैं आप से शक़ील साहब के बारे में कुछ पूछूँ, मैं यह बताना चाहूँगा कि उन्होंने कुछ शानदार होली गीत लिखे हैं, जिनका शुमार सर्वश्रेष्ठ होली गीतों में होता है। ऐसा ही एक होली गीत है फ़िल्म 'मदर इण्डिया' का, "होली आई रे कन्हाई, रंग छलके, सुना दे ज़रा बांसुरी"। शम्शाद बेगम की आवाज़ में इस गीत को आइए पहले सुनते हैं, फिर बातचीत आगे बढ़ाते हैं।
जावेद बदायूनी - ज़रूर साहब, सुनवाइए!
गीत - होली आई रे कन्हाई (मदर इण्डिया)
सुजॊय - जावेद साहब, यह बताइए कि जब आप छोटे थे, तब पिता के रूप में शक़ील साहब का बरताव कैसा हुआ करता था? घर परिवार का माहौल कैसा था?
जावेद बदायूनी - एक पिता के रूप में उनका व्यवहार दोस्ताना हुआ करता था, और सिर्फ़ मेरे साथ ही नहीं, अपने सभी बच्चों को बहुत प्यार करते थे और सब से हँस खेल कर बातें करते थे। यानी कि घर का माहौल बड़ा ही ख़ुशनुमा हुआ करता था।
सुजॊय - अच्छा जावेद जी, क्या घर पर शायरों का आना जाना लगा रहता था?
जावेद बदायूनी - जी हाँ जी हाँ, शक़ील साहब के दोस्त लोगों का आना जाना लगा ही रहता था जिनमें बहुत से शायर भी होते थे। घर पर ही शेर-ओ-शायरी की बैठकें हुआ करती थीं।
सुजॊय - जावेद साहब, शक़ील साहब के अपने एक पुराने इंटरव्यु में ऐसा कहा था कि उनके करीयर को चार पड़ावों में विभाजित किया जा सकता है। पहले भाग में १९१६ से १९३६ का समय जब वे बदायूँ में रहा करते थे। फिर १९३६ से १९४२ का समय अलीगढ़ का; १९४२ से १९४६ का दिल्ली का उनका समय, और १९४६ के बाद बम्बई का सफ़र। हमें उनकी फ़िल्मी करीयर, यानी कि बम्बई के जीवन के बारे में तो फिर भी पता है, क्या आप पहले तीन के बारे में कुछ बता सकते हैं?
जावेद बदायूनी - बदायूँ में जन्म और बचपन की दहलीज़ पार करने के बाद शक़ील साहब नें अलीगढ़ से अपनी ग्रैजुएशन पूरी की और दिल्ली चले गये, और वहाँ पर एक सरकारी नौकरी कर ली। साथ ही साथ अपने अंदर शेर-ओ-शायरी के जस्बे को क़ायम रखा और मुशायरों में भाग लेते रहे। ऐसे ही किसी एक मुशायरे में नौशाद साहब और ए. आर. कारदार साहब भी गये हुए थे और इन्होंने शक़ील साहब को नज़्म पढ़ते हुए सुना। उन पर शक़ील साहब की शायरी का इतना असर हुआ कि उसी वक़्त उन्हें फ़िल्म 'दर्द' के सभी गानें लिखने का ऒफ़र दे दिया।
सुजॊय - 'दर्द' का कौन सा गीत सब से पहले उन्होंने लिखा होगा, इसके बारे में कुछ बता सकते हैं?
जावेद बदायूनी - "हम दर्द का फ़साना" उनका लिखा पहला गीत था, और दूसरा गाना था "अफ़साना लिख रही हूँ", उमा देवी का गाया हुआ।
सुजॊय - इस दूसरे गीत को हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर सुनवा चुके हैं। क्योंकि आज होली है, आइए यहाँ पर शक़ील साहब का लिखा हुआ एक और शानदार होली गीत सुनते हैं। फ़िल्म 'कोहिनूर' से "तन रंग लो जी आज मन रंग लो"। संगीत नौशाद साहब का।
जावेद बदायूनी - ज़रूर सुनवाइए।
गीत - तन रंग लो जी आज मन रंग लो (कोहिनूर)
सुजॊय - जावेद साहब, क्या शक़ील साहब कभी आप भाई बहनों को प्रोत्साहित किया करते थे लिखने के लिये?
जावेद बदायूनी - जी हाँ, वो प्रोत्साहित भी करते थे और जब हम कुछ लिख कर उन्हें दिखाते तो वो ग़लतियों को सुधार भी दिया करते थे।
सुजॊय - शक़ील बदायूनी और नौशाद अली, जैसे एक ही सिक्के के दो पहलू। ये दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त भी थे। क्या शक़ील साहब आप सब को नौशाद साहब और उस दोस्ती के बारे में बताया करते थे? या फिर इन दोनों से जुड़ी कोई यादगार घटना या वाकया ?
जावेद बदायूनी - शक़ील साहब और नौशाद साहब वर ग्रेटेस्ट फ़्रेण्ड्स! यह हक़ीक़त है कि शक़ील साहब नौशाद साहब के साथ अपने परिवार से भी ज़्यादा वक़्त बिताया करते थे। दोनों के आपस की ट्युनिंग् ग़ज़ब की थी और यह ट्युनिंग् इनके गीतों से साफ़ छलकती है। शक़ील साहब के गुज़र जाने के बाद भी नौशाद साहब हमारे घर आते रहते थे और हमारा हौसला अफ़ज़ाई करते थे। यहाँ तक कि नौशाद साहब हमें बताते थे कि ग़ज़ल और नज़्म किस तरह से पढ़ी जाती है और मैं जो कुछ भी लिखता था, वो उन्हें सुधार दिया करते थे।
सुजॊय - यानी कि शक़ील साहब एक पिता के रूप में जिस तरह से आपको गाइड करते थे, उनके जाने के बाद वही किरदार नौशाद साहब ने निभाया और आपको पिता समान स्नेह दिया।
जावेद बदायूनी - इसमें कोई शक़ नहीं!
सुजॊय - जावेद साहब, बचपन की कई यादें ऐसी होती हैं जो हमारे मन-मस्तिष्क में अमिट छाप छोड़ जाती हैं। शक़ील साहब से जुड़ी आप के मन में भी कई स्मृतियाँ होंगी। उन स्मृतियों में से कुछ आप हमारे साथ बाँटना चाहेंगे?
जावेद बदायूनी - शक़ील साहब के साथ हम सब रेकॊर्डिंग् पर जाया करते थे और कभी कभी तो वो हमें शूटिंग् पर भी ले जाते। फ़िल्म 'राम और श्याम' के लिए वो हमें मद्रास ले गये थे। 'दो बदन', 'नूरजहाँ' और कुछ और फ़िल्मों की शूटिंग् पर सब गये थे। वो सब यादें अब भी हमारे मन में ताज़े हैं जो बहुत याद आते हैं।
सुजॊय - अब मैं आप से जानना चाहूँगा कि शक़ील साहब के लिखे कौन कौन से गीत आपको व्यक्तिगत तौर पे सब से ज़्यादा पसंद हैं?
जावेद बदायूनी - उनके लिखे सभी गीत अपने आप में मास्टरपीस हैं, चाहे किसी भी संगीतकार के लिये लिखे गये हों।
सुजॊय - निसंदेह!
जावेद बदायूनी - यह बताना नामुमकिन है कि कौन सा गीत सर्वोत्तम है। मैं कुछ फ़िल्मों के नाम ज़रूर ले सकता हूँ, जैसे कि 'मदर इण्डिया', 'गंगा जमुना', 'बैजु बावरा', 'चौदहवीं का चांद', 'साहब बीवी और ग़ुलाम', और 'मुग़ल-ए-आज़म'।
सुजॊय - वाह! आप ने 'मुग़ल-ए-आज़म' का ज़िक्र किया, और आज हम आप से शक़ील साहब के बारे में बातचीत करते हुए उनके लिखे कुछ होली गीत सुन रहे हैं, तो मुझे एकदम से याद आया कि इस फ़िल्म में भी एक ऐसा गीत है जिसे हम पूर्णत: होली गीत तो नहीं कह सकते, लेकिन क्योंकि उसमें राधा और कृष्ण के छेड़-छाड़ का वर्णन है, इसलिए इसे यहाँ पर बजाया जा सकता है।
जावेद बदायूनी - "मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे"।
सुजॊय - जी हाँ, आइए इस गीत को सुनते हैं, संगीत एक बार फिर नौशाद साहब का।
गीत - मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे (मुग़ल-ए-आज़म)
सुजॊय - अच्छा जावेद साहब, आप से अगला सवाल पूछने से पहले हम अपने श्रोता-पाठकों के लिए एक सवाल पूछना चाहेंगे। अभी जो हमनें गीत सुना "मोहे पनघट पे", इसी गीत का एक अन्य संस्करण भी हमारे हाथ लगा है। इस वर्ज़न को हम यहाँ पर सुनवा रहे हैं और हमारे श्रोताओं को हमें लिख भेजना है कि यह किनकी आवाज़ में है।
गीत - मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे - अन्य संस्करण (मुग़ल-ए-आज़म)
सुजॊय - जावेद साहब, हम शक़ील साहब के लिखे गीतों को हर रोज़ ही कहीं न कहीं से सुनते हैं, लेकिन उनके लिखे ग़ैर-फ़िल्मी नज़्मों और ग़ज़लों को कम ही सुना जाता है। इसलिए मैं आप से उनकी लिखी अदबी शायरी और प्रकाशनों के बारे में जानना चाहूँगा।
जावेद बदायूनी - मैं आपको बताऊँ कि भले ही वो फ़िल्मी गीतकार के रूप में ज़्यादा जाने जाते हैं, लेकिन हक़ीक़त में पहले वो एक लिटररी फ़िगर थे और बाद में फ़िल्मी गीतकार। फ़िल्मों में गीत लेखन वो अपने परिवार को चलाने के लिये किया करते थे। जहाँ तक ग़ैर फ़िल्मी रचनाओं का सवाल है, उन्होंने ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों के पाँच दीवान लिखे हैं, जिनका अब 'कुल्यात-ए-शक़ील' के नाम से संकलन प्रकाशित हुआ है। उन्होंने अपने जीवन काल में ५०० से ज़्यादा ग़ज़लें और नज़्में लिखे होंगे जिन्हें आज भारत, पाक़िस्तान और दुनिया भर के देशों के गायक गाते हैं।
सुजॊय - आपनें आंकड़ा बताया तो मुझे याद आया कि हमनें आप से शक़ील साहब के लिखे फ़िल्मी गीतों की संख्या नहीं पूछी। कोई अंदाज़ा आपको कि शक़ील साहब ने कुल कितने फ़िल्मी गीत लिखे होंगे?
जावेद बदायूनी - उन्होंने १०८ फ़िल्मों में लगभग ८०० गीत लिखे हैं, और इनमें ५ फ़िल्में अनरिलीज़्ड भी हैं।
सुजॊय - वाह! जावेद साहब, यहाँ पर हम शक़ील साहब का लिखा एक और बेहतरीन होली गीत सुनना और सुनवाना चाहेंगे। नौशाद साहब के अलावा जिन संगीतकारों के साथ उन्होंने काम किया, उनमें एक महत्वपूर्ण नाम है रवि साहब का। अभी कुछ देर पहले आपने 'दो बदन' और 'चौदहवीं का चाँद' फ़िल्मों का नाम लिया जिनमें रवि का संगीत था। तो रवि साहब के ही संगीत में शक़ील साहब नें फ़िल्म 'फूल और पत्थर' के भी गीत लिखे जिनमें एक होली गीत था "लायी है हज़ारों रंग होली, कोई तन के लिये, कोई मन के लिये"। सुनते हैं इस गीत को।
गीत - लायी है हज़ारों रंग होली (फूल और पत्थर)
सुजॊय - दोस्तों, आपने ग़ौर किया कि इस गीत में और 'कोहिनूर' के होली गीत में, दोनों में ही "तन" और "मन" शब्दों का शक़ील साहब ने इस्तमाल किया है। अच्छा जावेद साहब, अब एक आख़िरी सवाल आप से। शक़ील साहब नें जो मशाल जलाई है, क्या उस मशाल को आप या कोई और रिश्तेदार उसे आगे बढ़ाने में इच्छुक हैं?
जावेद बदायूनी - मेरी बड़ी बहन रज़ीज़ शक़ील को शक़ील साहब के गुण मिले हैं और वो बहुत ख़ूबसूरत शायरी लिखती हैं।
सुजॊय - आप किस क्षेत्र में कार्यरत है?
जावेद बदायूनी - मैं ३२ साल से SOTC Tour Operators के साथ था, और अब HDFC Standard Life में हूँ, मुंबई में स्थित हूँ।
सुजॊय - बहुत बहुत शुक्रिया जावेद साहब। होली के इस रंगीन पर्व को आप ने शक़ील साहब की यादों से और भी रंगीन किया, और साथ ही उनके लिखे होली गीतों को सुन कर मन ख़ुश हो गया। भविष्य में हम आप से शक़ील साहब की शख्सियत के कुछ अनछुये पहलुयों पर चर्चा करना चाहेंगे। आपको एक बार फिर होली की हार्दिक शुभकामना देते हुए अब विदा लेते हैं, नमस्कार!
जावेद बदायूनी - बहुत बहुत शुक्रिया आपका!
तो दोस्तों, होली पर ये थी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ख़ास प्रस्तुति जिसमें हमनें शक़ील बदायूनी के लिखे होली गीत सुनने के साथ साथ थोड़ी बहुत बातचीत की उन्हीं के बेटे जावेद बदायूनी से। आशा है आपको यह प्रस्तुति अच्छी लगी होगी। ज़रूर लिख भेजिएगा अपने विचार oig@hindyugm.com के पते पर। अब आज के लिए हमें इजाज़त दीजिए, 'आवाज़' पर 'सुर-संगम' लेकर सुमित हाज़िर होंगे कल सुबह ९ बजे, पधारिएगा ज़रूर। आप सभी को एक बार फिर होली की हार्दिक शुभकामनाएँ, नमस्कार!