Saturday, April 23, 2011

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - एक मुलाक़ात शब्बीर कुमार से



ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 38

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज शनिवार की इस विशेष प्रस्तुति के लिए हम लेकर आये हैं फ़िल्म जगत के जाने-माने पार्श्वगायक शब्बीर कुमार से एक छोटी सी मुलाक़ात। छोटी इसलिए क्योंकि शब्बीर साहब का हाल ही में विविध भारती ने भी एक साक्षात्कार लिया था, जिसमें बहुत ही विस्तार से शब्बीर साहब नें अपने जीवन के बारे में और अपने संगीत करीयर के बारे में बताया था। बचपन की बातें, किस तरह से संगीत में उनकी दिलचस्पी हुई, रफ़ी साहब के वे कैसे फ़ैन बने, रफ़ी साहब से उनकी पहली मुलाक़ात कब और किस तरह से हुई, रफ़ी साहब के अंतिम सफ़र में वो किस तरीके से शरीक हुए, वो ख़ुद एक पार्श्वगायक कैसे बने, ये सब कुछ विविध भारती के उस साक्षात्कार में आ चुका है। आप में से जो श्रोता-पाठक उस कार्यक्रम को सुनने से चूक गये थे, उनके लिए इस साक्षात्कार का लिखित रूप हमनें 'विविध भारती लिस्नर्स क्लब' में पोस्ट किया था। ये रहे उसके लिंक्स:

'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-१'

'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-२'

'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२-१'

'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२-२'

दोस्तों, युं तो उपर्युक्त साक्षात्कार में शब्बीर कुमार से सभी अहम विषयों पर बातचीत हो चुकी थी, लेकिन पिछले दिनों जब शब्बीर साहब को मैंने अपने फ़ेसबूक में ऐड किया और उन्होंने उसकी मंज़ूरी दी, तो मेरे मन में दो चार सवाल जगे जो मैं उनसे जानना चाहता था, और मेरे ख़याल से जो सवाल विविध भारती के उस साक्षात्कार में शामिल नहीं हुए थे। मैंने शब्बीर साहब से मेरे सवाल भेजने की अनुमति माँगी जिसकी उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी। तो ये रहे मेरे सवाल और शब्बीर कुमार के जवाब।

सुजॉय - शब्बीर जी, सबसे पहले आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे फ़ेसबूक में ऐड किया। मैंने विविध भारती पर आप्का इंटरव्यु सुना है और बहुत ही विस्तार से आपनें उसमें अपने बारे में बताया है। फिर भी मेरे मन में कुछ सवाल है जो मैं आपको पूछना चाहता हूँ अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो?

शब्बीर जी - ज़रूर पूछिये!

सुजॉय - शुक्रिया! शब्बीर जी, आपनें हाल ही में फ़िल्म 'हाउसफ़ुल' में एक गीत गाया है सुनिधि चौहान के साथ। यह बताइए कि इतने साल आप कहाँ थे? मुझे जितना याद है मैंने पिछली बार आपकी आवाज़ कपूर परिवार की फ़िल्म 'आ अब लौट चलें' में सुना था और गीत था "ओ यारों माफ़ करना"।

शब्बीर जी - वैसे मैं कभी भी इस इंडस्ट्री से बाहर नहीं हुआ था। ईश्वर की कृपा से मैं नियमित रूप से गा भी रहा था। 'आ अब लौट चलें' के बाद भी मैंने कई फ़िल्मों में गीत गाया है जैसे कि 'आवारा पागल दीवाना', 'आन', 'दिल ढूंढता है' वगेरह। और मैं प्रादेशिक फ़िल्मों में भी लगातार गाता रहा हूँ। लेकिन ये सभी गानें लोगों की नज़र में ज़्यादा नहीं आ सके।

सुजॉय - अच्छा, 'हाउसफ़ुल' में गाने का ऒफ़र आपको कैसे मिला?

शब्बीर जी - 'हाउसफ़ुल' साजिद ख़ान की फ़िल्म थी और साजिद मेरा बहुत बड़ा फ़ैन है। मुझे उनका ही कॉल आया था 'हाउसफ़ुल' में गाने के लिए।

सुजॉय - शब्बीर जी, आपनें जब गाना शुरु किया था, उस समय से लेकर आज तक, पूरा का पूरा युग बीत गया है, फ़िल्म संगीत का भी चेहरा पूरी तरह बदल चुका है। इस परिवर्तन को आप किस रूप में देखते हैं? मेरा मतलब है कि लता जी, आशा जी, अनुराधा जी, इन सब के साथ लाइव रेकॉडिंग् करने के बाद आज ट्रैक पर गाना कैसा लगता है?

शब्बीर जी - ८० के दशक तक मैंने ६०-पीस ऒर्केस्ट्रा के साथ और म्युज़िक ऐरेंजर्स के साथ रेकॉर्ड किया है। लेकिन अब तकनीक इतना आगे बढ़ चुका है कि एक एक शब्द को अलग से डब किया जा सकता है। कोई भी ग़लती को सुधारा जा सकता है। इससे गायक के लिए काम बहुत आसान हो गया है, जो अच्छी बात है। लेकिन मैं समझता हूँ कि आज के दौर में गीत की आत्मा चली गई है। उस ज़माने में गायक जो मेहनत या ईफ़ोर्ट लगाता था, वह अब ज़रा सी कहीं पे कम हो गई है।

सुजॉय - क्या आपको याद है कि वह कौन सा गीत था जिसे आपने पहली बार ट्रैक पे गाया था?

शब्बीर जी - जी नहीं, यह तो मुझे अब याद नहीं कि मेरा पहला ट्रैक पे गाया हुआ गीत कौन सा था, लेकिन मैं यह ज़रूर बताना चाहूँगा कि किसी रेकॉर्डिंग् स्टुडियो में रेकॉर्ड किया गया मेरा पहला गीत फ़िल्म 'तजुर्बा' में था।

सुजॉय - लता जी के साथ पहली बार गाने का अनुभव कैसा था? नर्वस थे आप?

शब्बीर जी - लता जी के साथ डुएट गाना मेरे सपने से परे था। लेकिन यह आशातीत स्वप्न सच साबित हुई फ़िल्म 'बेताब' में, जिसके लिए मैं पंचम दा को शत शत धन्यवाद देता हूँ। और मेरा पहला गीत लता जी के साथ "बादल युं गरजता है" रेकॉर्ड हुआ। और रही बात नर्वसनेस की, वह तो मैं यकीनन था ही।

सुजॉय - हा हा हा, कितने गीत गाये होंगे लता जी के साथ अब तक?

शब्बीर जी - अब तक मैंने लता दीदी के साथ ४८ गीत गा चुका हूँ, जो मैं समझता हूँ मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है।

सुजॉय - बहुत सही बात है! कौन नहीं चाहता लता जी के साथ गाना या काम करना! अच्छा शब्बीर जी, आपके गाये गीतों की बात करें तो वह एक कौन सा गीत है जो आपका सब से पसंदीदा गीत रहा है, जो सब से ज़्यादा आपके दिल के क़रीब है? या कि वह गीत अभी आना बाक़ी है?

शब्बीर जी - मैंने अब तक ४५०० से ज़्यादा गीत गाया है, और इनमें से बहुत से गीत हैं जो मेरे दिल के बहुत ही करीब है। लेकिन एक गीत जो मेरे दिल के सब से ज़्यादा करीब है, वह है "ज़ीहाल-ए-मुस्क़ीन", फ़िल्म 'ग़ुलामी' का।

सुजॉय - वाह! यह गीत मुझे भी बेहद पसंद है और मुझे याद है बचपन में जब मैं इस गीत को सुनता था तो इसके बोल समझ में नहीं आते थे, लेकिन फिर भी गीत बहुत भाता था। शब्बीर जी, अब एक आख़िरी सवाल और यह सवाल है रफ़ी साहब से जुड़ा हुआ। रफ़ी साहब की मृत्यु के बाद कई गायक आये जिनकी आवाज़ में रफ़ी साहब जैसी आवाज़ की छाया थी। इनमें आप शामिल तो हैं ही, आपके अलावा मोहम्मद अज़ीज़, अनवर, देबाशीष दासगुप्ता, और यहाँ तक कि सोनू निगम भी रफ़ी साहब को अपना गुरु माना। मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि इनमें आपकी आवाज़ सब से ज़्यादा रफ़ी साहब की आवाज़ के क़रीब है। इस पर आपका क्या कहना है?

शब्बीर जी - इस ख़ूबसूरत कॉम्प्लिमेण्ट के लिए मुझे आपका शुक्रिया अदा करना चाहिए :-) वैसे विविध भारती के उस इंटरव्यु में मैं यह बता चुका हूँ कि अगर लोग यह कहते हैं कि मेरी आवाज़ रफ़ी साहब से मिलती है तो यह उनकी हसीन ग़लतफ़हमी है और कुछ नहीं।

सुजॉय - बहुत बहुत शुक्रिया शब्बीर जी, आपनें अपनी व्यस्तता के बावजूद हमारे सवालों के जवाब देने के लिए वक़्त निकाला। चलते चलते आपका पसंदीदा गीत फ़िल्म 'ग़ुलामी' का, हम अपने श्रोता-पाठकों को सुनवा रहे हैं।

शब्बीर जी - गॉड ब्लेस यू!

सुजॉय - सुनते हैं गुलज़ार के बोल, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत, लता मंगेशकर और शब्बीर कुमार की आवाज़ें। फ़िल्म 'ग़ुलामी' का यह गीत फ़िल्माया गया था अनीता राज और मिथुन चक्रवर्ती पर।

गीत - ज़ीहाल-ए-मुस्क़ीन (ग़ुलामी)


तो ये था आज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष'। आशा है आपको अच्छा लगा होगा। आप से अनुरोध है कि 'ईमेल के बहाने यादों के बहाने' के लिए हमें oig@hindyugm.com पर ईमेल लिखें, जिसमें आप अपने जीवन की कोई यादगार घटना या संस्मरण लिख सकते हैं। अगले हफ़्ते एक और ख़ास प्रस्तुति के साथ हाज़िर होंगे। लेकिन 'ओल्ड इज़ गोल्ड' नियमीत अंक लेकर हम कल शाम ६:३० बजे फिर उपस्थित होंगे, तब तक के लिए मुझे अनुमति दीजिये, और आप सुमित के साथ कल सुबह 'सुर-संगम' में ज़रूर तशरीफ़ लाइएगा, नमस्कार!

Friday, April 22, 2011

हर घर के कोने में एक पोस्ट बॉक्स होता है... रितुपर्णा घोष लाये हैं संगीत की एक अजीब दावत "मेमोरीस इन मार्च" में



Taaza Sur Taal (TST) - 09/2011 - Memories In March

'ताज़ा सुर ताल' के आज के अंक में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का स्वागत करता हूँ। दोस्तों, जिस तरह से समाज का नज़रिया बद्लता रहा है, उसी तरह से हमारी फ़िल्मों की कहानियों में, किरदारों में भी बदलाव आते रहे हैं। "फ़िल्म समाज का आइना है" वाक़ई सही बात है। एक विषय जो हमेशा से ही समाजिक विरोध और घृणा का पात्र रहा है, वह है समलैंगिक्ता। भले ही सुप्रीम कोर्ट नें समलैंगिक संबंध को स्वीकृति दे दी है, लेकिन देखना यह है कि हमारा समाज कब इसे खुले दिल से स्वीकार करता है। फ़िल्मों की बात करें तो पिछ्ले कई सालों से समलैंगिक चरित्र फ़िल्मों में दिखाये जाते रहे हैं, लेकिन उन पर हास्य-व्यंग के तीर ही चलाये गये हैं। जब अंग्रेज़ी फ़िल्म 'ब्रोकबैक माउण्टेन' नें समलैंगिक संबंध को रुचिकर रूप में प्रस्तुत किया तो हमारे यहाँ भी फ़िल्मकारों ने साहस किया, और सब से पहले निर्देशक ओनिर 'माइ ब्रदर निखिल' में इस राह पर चलकर दिखाया। अभी हाल ही में 'डोन्नो व्हाई न जाने क्यों' में भी समलैंगिक संबंध को दर्शाया गया लेकिन फ़िल्म के नायक के परिवार वालों नें हक़ीक़त में ही उसे परिवार से अलग कर दिया। सबसे अफ़सोस की बात यह है कि जब समलैंगिक्ता को हास्य-व्यंग के रूप में प्रस्तुत किया गया, लोगों नें हाथों हाथ लिया, पर जब जब संवेदनशील तरीके से किसी ने इसे प्रस्तुत करने का प्रयास किया, इस समाज ने उसे हतोत्साहित ही किया। एक और फ़िल्मकार जिन्होंने इस विषय को रुचिकर तरीके से प्रस्तुत किया, वो हैं ऋतुपर्ण घोष। उनकी बांग्ला फ़िल्म 'आर एकटी प्रेमेर गौल्पो' (और एक प्रेम कहानी) में एक समलैंगिक निर्देशक का फ़िल्म के नायक से साथ प्रेम-संबंध का चित्रण लोगों नें बहुत पसंद किया। और अब आ रही है उनकी अगली फ़िल्म 'मेमोरीज़ इन मार्च'।

'मेमोरीज़ इन मार्च' मूलत: एक अंग्रेज़ी फ़िल्म है, जिसमें हिंदी और बांग्ला का भी प्रयोग हुआ है। यह केवल दो समलैंगिक प्रेमियों की कहानी ही नहीं, बल्कि यह कहानी है उस दर्द और पीड़ा की जो एक माँ झेलती है जब उसका बेटा एक सड़क हादसे में गुज़र जाता है। इस हादसे के बहुत दिनों बाद जब उसे यह पता चलता है कि उसके बेटे का एक पुरुष प्रेमी भी था, उसे एक और झटका लगता है। और अचानक वह अपने बेटे की ज़िंदगी के एक अनछुया पहलु से रु-ब-रु होती है। 'मेमोरीज़ इन मार्च' कहानी है एक माँ की और उसके स्वर्गवासी बेटे के प्रेमी की, और किस तरह से दोनों अपने अपने दुख बांटते हुए एक दूसरे के करीब आ जाते हैं। सुनने में आया है कि निर्देशक संजय नाग नें बहुत ही सुंदरता से पूरे विषय को प्रस्तुत किया है, और क्यों न हो जब ऋतु दा जैसे अनुभवी और १३-बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजयी निर्देशक फ़िल्म से जुड़े हो। ऋतु दा नें इस फ़िल्म में स्वर्गवासी बेटे के प्रेमी की भूमिका निभाई है, जब कि माँ की भूमिका में हैं दीप्ती नवल। फ़िल्म का तीसरा चरित्र है राइमा सेन का जो उस स्वरगवासी लड़के की दोस्त थी।

और अब आते हैं मुद्दे की बात पर, यानी कि गीत-संगीत पर। 'मेमोरीज़ इन मार्च' के संगीतकार हैं देबोज्योति मिश्र और इसके सभी गीतों को लिखा है स्वयं ऋतुपर्ण घोष नें। ऐल्बम का पहला गीत है शुभोमिता बैनर्जी की आवाज़ में "सखी हम" और शायद यही इस ऐल्बम का सर्वोत्तम गीत है। दोस्तों, इस गीत के बारे में आपके 'सुर-संगम' के हमसफ़र सुमित चक्रवर्ती के शब्दों में - "यह गीत सुनने वाले के अंतर मन में जल की तरह उतरता जाता है। गायिका शुभोमिता बैनर्जी ने दिल को छू लेने वाले अन्दाज़ में इस गीत को गाया है। ऋतुपर्णो घोष ने इस गीत को बंगला एवं मैथिली में लिखकर एक अनोखा प्रयास किया है तथा इसमें चार चाँद लगाया है संगीतकार देबज्योति मिश्र ने इसे पियानो पर एक नर्म तर्ज़ पर रचकर। गीत का असर सुनने वाले के दिलो-दिमाग़ पर देर तक रहता है। मैं ख़ुद भी इसे कई बार लगातार सुनता रहा और देर तक गुनगुनाता भी रहा।" और दोस्तों, छोटी मुंह बड़ी बात होगी, शुभोमिता के गायन अंदाज़ को सुनते हुए मुझे पता नहीं क्यों लता जी की याद आ गई। मैं आवाज़ की नहीं, केवल अंदाज़ की बात कर रहा हूँ। अगर मुझसे कोई ग़लती हो गई हो तो क्षमा कीजिएगा। शुभोमिता और सखियों की आवाज़ों में एक और गीत है "मेरे लाला आज न जैयो जमुनार पार", लेकिन इस गीत में वह बात नहीं महसूस हुई जो "सखी हम" में हुई थी।

अगला गीत है शैल हाडा की आवाज़ में "अजीब दावत"। शैल, जिन्होंने अपनी पहली फ़िल्म 'सांवरिया' के शीर्षक गीत में ही अपना करिश्मा दिखा दिया था, और अभी हाल में 'गुज़ारिश' में भी अपने आप को सिद्ध किया था, इस गीत में भी साबित किया कि भले ही उनकी आवाज़ कम सुनाई दे, लेकिन जब भी सुनाई देती है एक अलग ही असर छोड़ती है। इसी गीत का एक और संस्करण है शिल्पा राव की आवाज़ में। शिल्पा के गाये पहले के गीतों की ही तरह यह गीत भी है, कोई नई बात महसूस नहीं हुई।

तीसरा गीत रेखा भारद्वाज की आवाज़ में है "काहा संग खेलूँ होरी"। 'वीर' फ़िल्म में "कान्हा" गाने के बाद एक बार फिर से उन्हें कान्हा, होरी, वृंदावन विषयों पर गाने का मौका मिला। कम से कम साज़ों से सजी इस गीत का भी अपना अलग चार्म है। इसी गीत का एक और संस्करण है कैलाश खेर की आवाज़ में। लेकिन "काहा संग खेलूँ होरी" इसमें बदल कर बन गया "कान्हा संग खेले होरी"। मेरी राय पूछें तो कैलाश की आवाज़ में यह गीत जैसे खिल सा उठा है। रेखा जी की आवाज़ को पूर्ण सम्मान देते हुए यह कहता हूँ कि कैलाश साहब नें जिस तरह का आधायत्मिक रंग इस गीत पर चढ़ाया है, वह बात रेखा जी के संस्करण में नज़र नहीं आई। कैलाश खेर का फ़ोर्टे है इस तरह के गीत, कमाल तो वो करेंगे ही! बेहद ख़ूबसूरत, दैवीय अनुभव होता है इस गीत को सुनते हुए।

'मेमोरीज़ इन मार्च' का अगला गीत है मोहन का गाया हुआ। "हर घर के कोने में एक पोस्ट बॉक्स होता है, कभी खाली, कभी सूनी, कभी खतों से भरी, अनसूनी, लहू जैसा लाल रंग का पोस्ट बॉक्स होता है", ऋतु दा की कलम से ऐसे ग़ैर-पारम्परिक बोल निकले हैं, इस तरह के बोल इन दिनों बांग्ला बैण्ड के गीतों में नज़र आता है। मोहन की गम्भीर और कशिश भरी आवाज़ में इस गीत में एक हल्की सी रॉक शैली भी सुनाई देती है। इस गीत में जो दर्शन छुपा है, मुझे जितना समझ में आया या फिर मैंने इसे जैसे ग्रहण किया, वह यह है कि हर इंसान (घर) के भीतर (कोने में) एक हृदय (पोस्ट बॉक्स) है, जो कभी एकाकी होता है तो कभी ख़ुशियों से भर जाता है, कभी उसकी बोली को कोई सुन नहीं पाता। वैसे इसका सटीक विश्लेषण तो फ़िल्म को देखते हुए ही किया जा सकता है।

'मेमोरीज़ इन मार्च' का जो ऐल्बम है वह है क्लास ऒडिएन्स के लिए। अच्छा संगीत पसंद करने वालों के लिए है यह ऐल्बम। हमारी तरफ़ से इस ऐल्बम को १० में से ९ की रेटिंग। और मुझे जो दो गीत सब से ज़्यादा पसंद आये वो हैं शुभोमिता का "सखी हम" और कैलाश खेर "कान्हा संग खेले होरी"। अगर आप नये गीतों के सी.डी खरीदते हैं, तो मैं आपको इस ऐल्बम की सी.डी खरीदने की सलाह भी देता हूँ। और इसी के साथ आज के 'ताज़ा सुर ताल' को समेटने की आज्ञा चाहता हूँ। इस फ़िल्म के गीतों को सुनिएगा ज़रूर और सुन कर नीचे टिप्पणी में अपनी राय अवश्य लिखिएगा, नमस्कार!

एक और बात: इस एलबम के सारे गाने आप यहाँ पर सुन सकते हैं।



अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं। "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है। आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रूरत है उन्हें ज़रा खंगालने की। हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं।

Thursday, April 21, 2011

माथे पे लगाइके बिंदिया, अखियन उड़ाइके निंदिया....हास्य अभिनेता देवन वर्मा ने भी पार्श्व गायन में अपनी आवाज़ आजमाई



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 640/2010/340

दोस्तों नमस्कार! इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' रोशन है फ़िल्मी सितारों के गाये नग़मों से। पिछली नौ कड़ियों में हमनें नौ सितारों के गाये गीत सुनवाये और कई सितारों के नाम लिये जिनकी आवाज़ फ़िल्मी गीतों में सुनाई दी हैं। फ़िल्मी सितारों द्वारा गाये गीतों की परम्परा ४० के दशक में शुरु हुई थी, जो अब तक जारी है। आइए कुछ और नाम लें। अनिल कपूर नें गाया था फ़िल्म 'चमेली की शादी' का शीर्षक गीत। कल्याणजी-आनंदजी के ही निर्देशन में राजकुमार साहब नें सलमा आग़ा के साथ फ़िल्म 'महावीरा' के एक गीत में संवाद बोले। ९० के दशक के शुरुआत में श्रीदेवी नें 'चांदनी' का शीर्षक गीत गा कर काफ़ी लोकप्रियता हासिल की थी। माधुरी दीक्षित की भी आवाज़ गूंजी कविता कृष्णामूर्ती और पंडित बिरजु महाराज के साथ 'देवदास' फ़िल्म के "काहे छेड़े मोहे" गीत में। शाहरुख़ ख़ान नें 'जोश' में "अपुन बोला", आमिर ख़ान नें 'ग़ुलाम' में "आती क्या खण्डाला", सलमान ख़ान नें 'हेल्लो ब्रदर' में "सोने की डाल पर चांदी का मोर", संजय दत्त नें 'ख़ूबसूरत' में "ए शिवानी", अभिषेक बच्चन नें 'ब्लफ़ मास्टर' में "कम टू मी भूल जायें सारा जहाँ", और हॄथिक रोशन नें 'काइट्स' में "काइट्स सोरिंग् हाइ" जैसे गीत गाये हैं। ऐसा नहीं कि केवल नायक नायिकाओं नें ही फ़िल्मों में गीत गाये हैं, हास्य अभिनेता भी इस राह पर कई कई बार चले हैं। आइ. एस. जोहर साहब नें रफ़ी साहब के साथ 'शागिर्द' के "बड़े मियाँ दीवाने ऐसे न बनो" गीत में "यही तो मालूम नहीं है" कहे थे। महमूद जी नें एक नहीं बल्कि कई कई गीत गाये हैं, उदाहरण के तौर पर फ़िल्म 'शाबाश डैडी' में उनका गाया एक एकल गीत था, 'पड़ोसन' में किशोर कुमार और मन्ना डे के साथ, 'एक बाप छे बेटे' में सुलक्षणा पंडित और विजेयता पंडित के साथ, 'कुंवारा बाप' में एक बार फिर किशोर कुमार के साथ, और 'काश' में मोहम्मद अज़ीज़ और सोनाली मुखर्जी के साथ महमूद नें गीत गाये। एक बार फिर कल्याणजी-आनंदजी नें फ़िल्म 'वरदान' के किसी गीत में महमूद साहब की आवाज़ ली। अमरीश पुरी नें अल्का याज्ञ्निक के साथ 'आज का अर्जुन' में "माशूका माशूका" गीत में दो लाइनें गाये, शक्ति कपूर की आवाज़ सुनाई दी शैलेन्द्र सिंह के साथ फ़िल्म 'पसंद अपनी अपनी' के एक गीत में, जॊनी लीवर नें भी अपना रंग जमाया 'इश्क़' और 'इण्टरनैशनल खिलाड़ी' जैसी फ़िल्मों के गीतों में, तो अनुपम खेर साहब गाये उषा कृष्णादास के साथ 'एक अलग मौसम' फ़िल्म का गीत और यश चोपड़ा की पत्नी व गायिका पामेला चोपड़ा के साथ 'विजय' फ़िल्म का एक गीत।

दोस्तों, पामेला चोपड़ा के नाम से याद आया कि यश जी की ही १९७७ की फ़िल्म 'दूसरा आदमी' में एक बड़ा ही अनोखा गाना था जिसमें पामेला जी की आवाज़ थी, और पता है उस गीत में मुख्य गायक कौन थे? देवेन वर्मा। जी हाँ, वही फ़िल्म व टीवी हास्य व चरित्र अभिनेता देवेन वर्मा, जिनके अभिनय का लोहा हर कोई मानता है। देवेन वर्मा और पामेला चोपड़ा के गाये इस गीत पर हम अभी आते हैं, उससे पहले आपको यह बता दें कि देवेन जी नें कम से कम दो और गीत गाये हैं और ये हैं 'आदमी सड़क का' फ़िल्म में अनुराधा पौडवाल के साथ गाया हुआ "बुरा न मानो यार दोस्ती यारी में" तथा 'जोश' फ़िल्म में अमजद ख़ान के साथ गाया हुआ "खाट पे खटमल चलेगा जब दिन में सूरज ढलेगा"। देखिए अभिनेता अमजद साहब का भी नाम आ गया 'सितारों की सरगम' में! हाँ तो दोस्तों, 'दूसरा आदमी' का गीत जिसे हम आज सुनवाने जा रहे हैं उसके बोल हैं "माथे पे लगाइके बिंदिया, अखियन उड़ाइके निंदिया, खड़ी रे निहारे गोरी, आयेंगे सांवरिया, अंगना आयेंगे सांवरिया"। फ़िल्म के नायक नायिका थे ॠषी कपूर और नीतू सिंह। गीत का सिचुएशन कुछ ऐसा है कि नीतू सिंह अपने मामा जी के घर एक जनमदिन की पार्टी में गई हुई हैं और ॠषी कपूर को दफ़्तर से सीधे वहीं पार्टी में आना है। लेकिन वो आने में देर कर रहे हैं और नीतू सिंह उदास हो रही है और बार बार दरवाज़े की तरफ़ देख रही है। ऐसे में देवेन वर्मा साहब हारमोनियम और पूरी संगीतमय टोली के साथ ज़मीन पर बैठे गीत छेड़ते हैं "माथे पे लगाइके बिंदिया..."। पूर्णत: लोक शैली में रंगा यह गीत देवेन वर्मा साहब की आवाज़ पाकर जैसे जी उठा हो! इस गीत को अगर किसी सामान्य गायक से गवाया गया होता, तो शायद ही वह बात आ पाती जो बात देवेन साहब की आवाज़ से आयी है। हमें पूरा यकीन है दोस्तों कि इस गीत को आज सुनकर आपको भी मज़ा आयेगा और अगर एक अरसे से आपनें इस गीत को नहीं सुना होगा तो सुनने का मज़ा दुगुना हो जाएगा। तो आप सुनिए इस गीत को और मुझे अनुमति दीजिए 'सितारों की सरगम' शृंखला को समाप्त करने की। हम आशा करते हैं कि इस शृंखला का आपनें आनंद लिया होगा। अपने विचार और सुझाव oig@hindyugm.com के पते पर अवश्य लिख भेजें। साथ ही शनिवार विशेषांक के अंतर्गत 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के लिए अपने जीवन की कुछ यादगार लम्हों को समेटते हुए एक ईमेल हमें ज़रूर लिख भेजें। तो आज बस इतना ही, शनिवार की शाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' के साथ फिर मुलाक़ात होगी, नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि देवेन वर्मा को तीन बार फ़िल्मफ़ेयर के सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का पुरस्कार मिला है, और ये तीन फ़िल्में हैं 'चोरी मेरा काम', 'चोर के घर चोर' और 'अंगूर'।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 01/शृंखला 15
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - अमिताभ बच्चन की फिल्म है ये.

सवाल १ - किस अद्भुत गायक की आवाज़ है इसमें - ३ अंक
सवाल २ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी बात पुरुष युगल गीत की हुई है, और अनजाना जी आदमी सड़क का में आवाज़ अनुराधा की थी, जाहिर हैं इस बार आप दोनों को ही अंक नहीं मिल पायेंगें. सही जवाब है "जोश" और अमजद खान. शरद जी को जरूर अंक मिलेंगें. इसी के साथ हमारी १४ वीं श्रृंखला भी समाप्त हुई. एक बार फिर अनजाना जी विजियी हुए हैं. पर यकीन मानिये आप सब के फिल्म संगीत ज्ञान ने हम सभी को हैरान कर रखा है. दिल जीत रखा है, हम चाहेंगें कि शरद जी और प्रतीक जी भी अगली श्रृंखला में जरा फुर्ती दिखाएँ और इन दो महारथियों को जरा और आजमायें, फिलहाल के लिए अनजाना जी को बहुत बहुत बधाई दिए देते हैं

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, April 20, 2011

कायदा कायदा आखिर फायदा.....कभी कभी कायदों को हटाकर भी जीने का मज़ा है समझा रहीं हैं रेखा



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 639/2010/339

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! 'सितारों की सरगम' शृंखला में कल आपनें शत्रुघ्न सिंहा का गाया गीत सुना था ॠषीकेश मुखर्जी निर्देशित फ़िल्म 'नरम गरम' से, राहुल देव बर्मन का स्वरबद्ध किया और गुलज़ार साहब का लिखा। आज की कड़ी में भी जो गीत आप सुनने जा रहे हैं, उसे इसी टीम, यानी कि ॠषी दा, पंचम दा और गुलज़ार साहब, नें बनाया है। यह है १९८० की बेहद कामयाब फ़िल्म 'ख़ूबसूरत' से अभिनेत्री रेखा का गाया गीत "कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा", जिसमें सपन चक्रवर्ती नें उनका साथ दिया है। युं तो गुलज़ार साहब बच्चों वाले गीत लिखने में और उनमें अजीब-ओ-गरीब उपमाएँ व रूपक देने में माहिर हैं, लेकिन इस गीत में तो उन्हें ऐसी खुली छूट व आज़ादी मिली कि वो तो अपनी कल्पना को पता नहीं किस हद तक लेके गये हैं। 'ख़ूबसूरत' के मुख्य कलाकार थे रेखा, दीना पाठक, अशोक कुमार, राकेश रोशन, शशिकला प्रमुख। कहानी तो आपको पता ही है, अगर आप में से किसी नें इस फ़िल्म को अब तक नहीं देखा है, तो हमारा सुझाव है कि आज ही इसे देखें। वाक़ई एक लाजवाब फ़िल्म है 'ख़ूबसूरत' और मुझे तो लगता है कि रेखा के श्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक है। और मज़ेदार बात यह है कि इस फ़िल्म में एक चुलबुली बबली लड़की का अभिनय करने के बाद अगले ही साल १९८१ में रेखा नें उमरावजान जैसा संजीदा किरदार निभाया था।

दोस्तों मुझे अब भी याद है, बचपन में दूरदर्शन में इस फ़िल्म को मैंने देखा था, फ़िल्म तो अच्छी लगी ही थी, लेकिन ख़ास कर इस गीत नें मेरे बाल मन में बड़ा असर किया था। यह बच्चों को एक स्वप्नलोक में ले जाने वाला गीत है, जिसे हम एक फ़ैण्टसी सॊंग् कह सकते हैं। यह गीत मेरे ख़याल से हर बच्चे के सपनों को साकार करता है। बर्फ़ से ढके पहाड़, जहाँ से आप चम्मच के ज़रिये एक स्कूप आइसक्रीम निकाल कर अपने मुंह में डाल सकते हैं। या फिर मान लीजिए कि पेड़ों पर फल फूल के बदले चाकलेट और टॊफ़ियाँ लटक रही हैं और आप अपना हाथ उपर करके या थोड़ा सा कूद कर और उन्हें तोड़ कर फट से मुंह में डाल सकते हैं! और अगर पानी के नलों से कोल्ड-ड्रिंक्स और कॊफ़ी निकले तो कैसा हो? कितना अच्छा होता न कि अगर जो जैसा है वो वैसा न होता। सारे नियम उलट जाते, सब कुछ नया नया हो जाता! बस यही है इस गीत का मकसद। "सारे नियम तोड़ दो, नियम से चलना छोड़ दो, इंनकिलाब ज़िंदाबाद"। अरे अरे अरे, यह मैं कौन से गीत का मुखड़ा लिख बैठा! दरअसल आज के प्रस्तुत गीत में और इस गीत में, जिसे आशा भोसले, उषा मंगेशकर और कल्याणी मित्रा नें गाया है, मुझे हमेशा से ही कन्फ़्युज़न होती रहा है। दोनों का विषय वस्तु एक जो है! तो आइए दोस्तों, सुनते हैं रेखा और सपन चक्रवर्ती की आवाज़ों में "कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा"। और आप भी हमें सुझाइए कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की प्रस्तुति में हम किस तरह के बदलाव ला सकते हैं जिससे कि इसमें कुछ नयापन आये, क्योंकि फिर वही बात कि कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा? आइए सुना जाये और मुस्कुराया जाये और एक बार फिर से एक बच्चा बना जाये!



क्या आप जानते हैं...
कि रेखा नें गायक शैलेन्द्र सिंह के साथ आवाज़ मिलाई थीं 'अगर तुम न होते' फ़िल्म के एक हास्य गीत में, जिसके बोल थे "कल तो सण्डे की छुट्टी है"।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 10/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - रीयल लाईफ के पति पत्नी हैं इस फिल्म के नायक नायिका.

सवाल १ - किस हास्य अभिनेता की आवाज़ में है ये गीत - १ अंक
सवाल २ - इन्होने एक पुरुष युगल गीत भी गाया था एक अन्य फिल्म में, कौन सी थी ये फिल्म - २ अंक
सवाल ३ - सवाल २ में पूछे गए युगल गीत में इनका साथ निभाया था विलेन और चरित्र भूमिकाओं में नज़र आने वाले एक और कलाकार ने, कौन हैं ये बूझिये ज़रा - ३ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह अनजाना जी एक आगे निकल आये हैं, ये एक अंक निर्णायक हो सकता है. प्रतीक जी सही जवाब आपका भी

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, April 19, 2011

एक बात सुनी है चाचा जी बतलाने वाली है....और सुनिए कि चाचा शत्रुघ्न ने इस बार "खामोश" नहीं कहा



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 638/2010/338

फ़िल्मी सितारों की आवाज़ें इन दिनों गूंज रही है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में, और शृंखला है 'सितारों की सरगम'। आज जिस आवाज़ की बारी है, उस आवाज़ की हम किसी गीत में कल्पना भी नहीं कर सकते, क्यों यह बुलंद आवाज़ तो लोगों को "ख़ामोश" करवाती आई है। इसलिए इस शख़्स द्वारा गाये गीत की कल्पना करना ज़रा मुश्किल हो जाता है। शत्रुघ्न सिंहा। जी हाँ, ॠषीकेश मुखर्जी निर्देशित १९८१ की फ़िल्म 'नरम गरम' में शत्रु साहब नें सुषमा श्रेष्ठ के साथ मिलकर एक युगल गीत गाया था, जो काफ़ी मशहूर भी हुआ। चाचा और भतीजी द्वारा गाया गया यह एक बड़ा ही मज़ेदार गीत है जिसके बोल हैं "एक बात सुनी है चाचा जी बतलाने वाली है, घर में एक अनोखी चीज़ आने वाली है"। चाचा बनें हैं शत्रु साहब और भतीजी हैं किरण वैरले। ये वही किरण हैं जिन्होंने 'नमकीन' फ़िल्म में छोटी बहन की भूमिका अदा की थी। भतीजी के उपर लिखे सवाल का चाचा जी यह कहते हुए जवाब देते हैं कि "हाँ रे भइया नें फिर कोई लड़की देखी है, तेरी चाची बुलडोज़र आने वाली है"। याद है न इसमें भइया कौन थे? उत्पल दत्त साहब, जो हर छोटे से छोटा काम भी ग्रह-नक्षत्रों के स्थान-काल देख कर किया करते थे। 'नरम-गरम' फ़िल्म के मुख्य नायक-नायिका थे अमोल पालेकर और स्वरूप सम्पत। अमोल पालेकर और उत्पल दत्त अभिनीत एक और यादगार फ़िल्म 'गोलमाल' के साथ 'नरम गरम' की समानता इस बात में भी है कि दोनों ही फ़िल्मों में उत्पल दत्त द्वारा निभाये गये चरित्र का नाम भवानी शंकर था, तथा अमोल पालेकर द्वारा अभिनीत चरित्र का नाम था राम ('गोलमाल' में रामप्रसाद शर्मा और 'नरम-गरम' में राम ईश्वर प्रसाद)। 'नरम-गरम' में शत्रुघ्न सिंहा के किरदार का नाम था काली शंकर और उनकी भतीजी बनी किरण का नाम था सुमी।

'नरम-गरम' फ़िल्म के प्रोड्युसर थे सुभाष गुप्ता और उदय नारायण सिंह। स्क्रिप्ट लिखे डी. एन. मुखर्जी नें और संवाद थे डॊ. राही मासूम रज़ा साहब के। फ़िल्म के गीत लिखे गुलज़ार साहब नें और संगीत था राहुल देव बर्मन का। गुलज़ार साहब संजीदे शायरी के महारथी तो हैं ही, बच्चों वाले गीत और कविताओं में भी उनके स्तर के बहुत कम ही गीतकार होंगे। अब इसी गीत में देखिए किस ख़ूबसूरत तरीक़े से राइम शैली में गीत की शुरुआत की है। भतीजी कहती है कि "ना ना ना ना पप्पी की हड़ताल है चाचाजी, आज आप से मेरा एक सवाल है चाचाजी"। गाड़ियों में दिलचस्पी रखने वाले और शादी से दूर भागने वाले चाचाजी कहते हैं, "अरे मॊडेल मर्सीडीज़ से प्यारी मेरी सुम्मी, जो माँगोगी वही मिलेगा अगर मिलेगी चुम्मी"। भतीजी - "तो वादा करो कि नये नये कपड़े सिलवाऊँगा"; चाचाजी - "कपड़े सिलवाऊँगा"; भतीजी - "वादा करो कि उन कपड़ों में इतर लगाऊँगा"; चाचाजी - "इतर लगाऊँगा"; भतीजी - "वादा करो कि जीप नहीं घोड़े पे जाऊँगा"; चाचाजी - "घोड़े पे जाऊँगा??? क्यों क्या बात है???" और तब जाकर मुखड़ा शुरु होता है "एक बात सुनी है चाचाजी...."। शत्रुघ्न सिंहा के गाये गीतों की अगर हम बात करें तो इस गीत के अलावा उन्होंने किसी और गीत को "गाया" तो नहीं है, लेकिन उनकी संवाद अदायगी की ख़ास शैली को कुछ गीतों में जगह ज़रूर मिली है। उदाहरण के तौर पे फ़िल्म 'शिवशक्ति' में अल्का याज्ञ्निक के साथ उन्होंने आवाज़ मिलाई और हर अंतरे से पहले वो एक लाइन कहे, जैसे कि "पटने का हूँ मगर पटने वाला नहीं" आदि। ऐसे ही लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी के गाये फ़िल्म 'दोस्त' के मशहूर गीत "कैसे जीते हैं भला हमसे सीखो ये अदा" में उनके सशक्त संवाद सुनाई देते हैं। तो आइए शत्रुघ्न सिंहा और सुषमा श्रेष्ठ की आवाज़ों में सुनें फ़िल्म 'नरम-गरम' का गीत।



क्या आप जानते हैं...
कि शत्रुघ्न सिंहा को फ़िल्मों में पहला मौका दिया था देव आनंद नें अपनी फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' में। लेकिन इस फ़िल्म के विलंब हो जाने से शत्रुघ्न सिंहा की पहली प्रदर्शित फ़िल्म बनीं 'साजन' (१९६९) जिसमें उन्होंने पुलिस इन्स्पेक्टर का छोटा सा रोल किया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 9/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान है.

सवाल १ - कौन है ये खूबसूरत अभिनेत्री गायिका - १ अंक
सवाल २ - साथ में किस गायक ने आवाज़ मिलायी है - २ अंक
सवाल ३ - इस अभिनेत्री ने गायक शैलन्द्र के साथ एक युगल गीत को गाया था, क्या बता सकते है कौन सा था वो गीत और किस फिल्म से - ३ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह अनजाना जी एक आगे निकल आये हैं, ये एक अंक निर्णायक हो सकता है. प्रतीक जी सही जवाब आपका भी

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Monday, April 18, 2011

पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए.....किशोर दा के साथ खूब रंग जमाया गायिका हेमा मालिनी ने इस गीत में



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 637/2010/337

'सितारों की सरगम' लघु शृंखला में कल संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में आप नें सुना था अमिताभ बच्चन का गाया फ़िल्म 'लावारिस' का गीत। कल के ही अंक में आप नें जाना कि कल्याणजी-आनंदजी नें कई फ़िल्मी कलाकारों से गीत गवाये हैं। अशोक कुमार और अमिताभ बच्चन के गाये गीतों का ज़िक्र हमनें किया। फ़िल्म 'जब जब फूल खिले' के "एक था गुल और एक थी बुलबुल" में इन्होंने नंदा से संवाद बुलवाये। इसी तरह शंकर जयकिशन नें भी 'संगम' के गीत "बोल राधा बोल" में वैयजंतीमाला, 'मेरा नाम जोकर' के गीत "तीतर के दो आगे तीतर" में सिमी गरेवाल और 'ऐन ईवनिंग् इन पैरिस' के गीत "आसमान से आया फ़रिश्ता" में शर्मीला टैगोर की आवाज़ ली। आइए आज कल्याणजी-आनंदजी के संगीत में आपको सुनवाते हैं ड्रीम-गर्ल की आवाज़। जी हाँ, ड्रीम-गर्ल यानी हेमा मालिनी। हेमा जी नें बेशुमार फ़िल्मों में यादगार अभिनय तो किया ही, लेकिन आज हम उन्हें याद कर रहे हैं एक गायिका के रूप में। हेमा मालिनी के गाये गीतों की अगर बात करें तो कम से कम जो दो गीत एकदम से याद आते हैं, वो हैं गुलज़ार की फ़िल्म 'किनारा' का "एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैंने"। वैसे इस गीत को मुख्यत: भूपेन्द्र नें गाया है, हेमा मालिनी नें इसमें बस थोड़ा बहुत गुनगुनाया है और संवाद बोले हैं। और जो दूसरा गीत है, वह है 'हाथ की सफ़ाई' फ़िल्म का किशोर कुमार के साथ गाया हुआ "पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए"। १९७४ के इस फ़िल्म में रणधीर कपूर - हेमा मालिनी तथा विनोद खन्ना - सिमि गरेवाल की जोड़ियाँ थीं। फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत रहा लता-रफ़ी का गाया "वादा कर ले साजना"।

रणधीर कपूर और हेमा मालिनी पर फ़िल्माया आज का प्रस्तुत गीत एक स्टेज सॊंग् है जिसमें रणधीर देवदास के किरदार में और हेमा मालिनी को चंद्रमुखी के किरदार में दिखाया जा रहा है। लेकिन सीन कुछ ऐसा है कि रणधीर कपूर को शराब में डूबे देवदास का किरदार निभाना है, लेकिन किसी कारण से वो सचमुच ही शराब पी कर आउट-ऒफ़ कंट्रोल हो जाते हैं और स्टेज पर जो होता है वह होता है एक लाफ़-रायट। उधर चंद्रमुखी का किरदार निभा रहीं हेमा मालिनी के लिए उन्हें सम्भालना मुश्किल हो जाता है और इस गीत के द्वारा इस हास्य दृश्य को साकार किया गया है। बड़ा ही अनोखा और मज़ेदार गीत है, जिसके लिए बड़ा श्रेय गीतकार गुलशन बावरा को जाता है। वैसे दोस्तों, संगीत और शब्दों के लिहाज़ से इस गीत को उत्कृष्ट गीत तो नहीं कह सकते, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि फ़िल्म के इस सिचुएशन के लिए इससे बेहतर गीत लिख पाना भी आसान काम नहीं था। उस पर किशोर दा का ख़ास हास्य अंदाज़ सोने पे सुहागा। इस "टपोरी" गीत में नारीकंठ के लिए हेमा मालिनी की आवाज़ को चुनना भी एक अनोखा प्रयोग था। जैसा कि कल की कड़ी से आप जान चुके हैं आनंदजी के ही शब्दों में कि कुछ गीत ऐसे होते हैं जिन्हें बड़े से बड़ा गायक वह अंजाम नहीं दे पाता जो अंजाम अभिनेता या संगीतकार दे जाता है। शायद इसमें भी वही बात थी। हेमा जी के सुर तो हिले हुए सुनाई देते हैं, लेकिन यही अनोखापन गीत की खासियत बन गया, और यह गीत एक यादगार गीत बन गया। तो आइए आज भी कल ही की तरह आपको गुदगुदायें इस गीत को सुनवाकर।



क्या आप जानते हैं...
कि हेमा मालिनी का पूरा नाम है हेमा मालिनी आर. चक्रवर्ती। उनकी माँ जया चक्रवर्ती दक्षिण की फ़िल्म निर्मात्री थीं।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 8/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - दमदार आवाज़ के मालिक हैं इस गीत के अभिनेता गायक और ये फिल्म है ऋषि दा की.

सवाल १ - इस गीत में गायक -गायिका एक दूसरे को एक रिश्ते से संबोधित कर रहे हैं, कौन सा है ये रिश्ता - २ अंक
सवाल २ - परदे पर अभिनेता के साथ कौन अभिनेत्री दिखाई देती हैं इस गीत में - ३ अंक
सवाल ३ - सह गायिका कौन है - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
फिर बराबरी पर है अनजाना और अमित जी, बताते चले कि इस बार प्रतीक जी भी १० अंकों का आंकड़ा छू लिया है बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Sunday, April 17, 2011

मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है....अरे नहीं साहब ये तो गाने के बोल हैं, हमारे अंगने में तो आपका ही काम है...आईये



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 636/2010/336

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! आज हम एक नए सप्ताह में क़दम रख रहे हैं और इन दिनों जारी है लघु शृंखला 'सितारों की सरगम', जिसके अंतर्गत हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिन्हें आवाज़ दी है फ़िल्म अभिनेता और अभिनेत्रियों नें। शृंखला के पहले हिस्से में जिन पाँच सितारों की सरगमी आवाज़ से आपका परिचय हुआ वो थे राज कपूर, दिलीप कुमार, मीना कुमारी, नूतन और अशोक कुमार। आइए आज से शुरु हो रही इस शृंखला के दूसरे हिस्से में बात करें अगली पीढ़ी के सितारों की। ऐसे में शुरुआत 'मेगास्टार ऒफ़ दि मिलेनियम' के अलावा और किनसे हो सकती है भला! जी हाँ, बिग बी अमिताभ बच्चन। साहब उनकी आवाज़ के बारे में क्या कहें, यह तो बस सुनने की चीज़ है। और मज़े की बात यह है कि फ़िल्मों में आने से पहले जब उन्होंने समाचार वाचक की नौकरी के लिए वॊयस टेस्ट दिया था, तो उसमें वो फ़ेल हो गये थे और उन्हें बताया गया था कि उनकी आवाज़ वाचन के लिए सही नहीं है। और क़िस्मत ने क्या खेल खेला कि उनकी वही आवाज़ आज उनकी पहचान है। बच्चन साहब नें जो सफलता और शोहरत कमाई है अपने लम्बे करीयर में और जो सिलसिला आज भी जारी है, इस ऊँचाई तक बहुत कम लोग पहुँच पाते हैं। हमारे बौने हाथ उनकी उपलब्धि को छू भी नहीं सकते। बहुत साल पहले विविध भारती के एक मुलाक़ात में बच्चन साहब से पूछा गया था कि "अमित जी, आप जिस मुकाम पर आ गये हैं वहाँ संघर्ष आपको छू भी नहीं सकता, पर जब पहली बार आपको सफलता मिली थी, उस वक़्त आपको कैसा महसूस हुआ था?"; इसके जवाब में अमित जी का कहना था, "पहली बात तो यह है कि संघर्ष कभी ख़त्म नहीं होती, आज भी मुझे उतना ही संघर्ष करना पड़ता है जितना उस ज़माने में करना पड़ता था। मेरे बाबूजी कहते हैं कि जब तक जीवन है संघर्ष है। और जहाँ तक सफलता का सवाल है, ख़ुशी तो हुई थी, पर उसके लिए कोई ख़ास तरीक़े से मनाया नहीं गया था।"

दोस्तों, अमिताभ बच्चन साहब के अभिनय का लोहा तो हर किसी ने माना ही है, उनकी गायन क्षमता की भी जितनी दाद दी जाये कम है। उन्होंने कई फ़िल्मों में गीत गाया है और कई बार संवाद भी ऐसे निराले तरीक़े से कहे हैं गीतों में कि उस वजह से गीत एक अलग ही मुकाम तक पहुँच गया है। ऐसा ही एक गीत है फ़िल्म 'सिलसिला' का "ये कहाँ आ गये हम युंही साथ साथ चलते"। फ़िल्म 'ख़ुदा गवाह' में भी उनका बोला हुआ संवाद "सर ज़मीन-ए-हिंदुस्तान' को सॊंग् साउण्डट्रैक में शामिल किया गया था। 'नसीब' के "चल चल मेरे भाई" और 'अमर अक्बर ऐंथनी' में "माइ नेम इज़ ऐंथनी गोल्ज़ल्वेज़" में भी उनके हुए संवाद यादगार हैं। अमिताभ बच्चन के गायन से समृद्ध फ़िल्मों में जो नाम सब से पहले ज़हन में आते हैं, वो हैं - 'सिलसिला', 'मिस्टर नटवरलाल', 'लावारिस', 'पुकार', 'जादूगर', 'महान', 'तूफ़ान', 'बागबान'। 'सिलसिला' में दो गीत उन्होंने गाये थे, "नीला आसमाँ सो गया" और "रंग बरसे भीगे चुनरवाली"। यह होली गीत तो शायद सब से लोकप्रिय होली गीत होगा फ़िल्म जगत का! 'मिस्टर नटवरलाल' में "मेरे पास आओ मेरे दोस्तों", 'पुकार' में "तू मयके मत जैयो, मत जैयो मेरी जान", 'जादूगर' में "पड़ोसी अपनी मुरगी को रखना सम्भाल मेरा मुर्गा हुआ है दीवाना", 'महान' में "समुंदर में नहाके और भी नमकीन हो गई है", 'तूफ़ान' में "बाहर है प्रॊब्लेम अंदर है प्रॊब्लेम", और 'बागबान' में "होली खेले रघुवीरा", "चली चली देखो चली चली" और "मैं यहाँ तू वहाँ, ज़िंदगी है कहाँ" जैसे गीत ख़ूब लोकप्रिय हुए। लेकिन जो एक गीत जिसके उल्लेख के बग़ैर बच्चन साहब के गीतों की चर्चा अधूरी है, वह है फ़िल्म 'लावारिस' का "मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है"। अमिताभ बच्चन और अल्का याज्ञ्निक द्वारा अलग अलग गाये यह डबल वर्ज़न गीत लोक शैली में रचा हुआ एक हास्य गीत है जिसमें पत्नी की अलग अलग शारीरिक रूप को हास्य व्यंग के द्वारा दर्शाया गया है। अमिताभ बच्चन वाले वर्ज़न में अमित जी ख़ुद ही महिला का भेस धारण कर इन अलग अलग शारीरिक रूपों को दर्शाते हैं जिससे इस गीत को सुनने के साथ साथ देखना भी अत्यावश्यक हो जाता है। 'लावारिस' के संगीतकार थे कल्याणजी-आनंदजी, जिन्होंने कई अभिनेताओं से गीत गवाये हैं। जब उनसे इसके बरे में पूछा गया था 'विविध भारती' के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में, तब उन्होंने कहा था, "इत्तेफ़ाक़ देखिये, शुरु शुरु में पहले ऐक्टर्स ही गाया करते थे। एक ज़माना वो था जो गा सकता था वो ही हीरो बन सकता था। तो वो एक ट्रेण्ड सी चलाने की कोशिश की जब जब होता था, जैसे राइटर जितना अच्छा गा सकता है, अपने वर्ड्स को इम्पॊर्टैन्स दे सकता है, म्युज़िक डिरेक्टर नहीं दे सकता, जितना म्युज़िक डिरेक्टर दे सकता है कई बार सिंगर नहीं दे सकता, एक्स्प्रेशन-वाइज़, सब कुछ गायेंगे, अच्छा करेंगे, लेकिन ऐसा होता है कि वो सैटिस्फ़ैक्शन कभी कभी नहीं मिलता है कि जो हम चाहते थे वो नहीं हुआ। तो ये हमने कोशिश की, जैसे कि बहुत से सिंगरों ने गाया भी, कुछ कुछ लाइनें भी गाये, बहुत से कॊमेडी कलाकारों नें भी गाये, लेकिन बेसिकली जो पूरे गाने गाये, वो अमिताभ बच्चन जी थे, मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है"। तो आइए सुना जाये इस अनोखे सदाबहार गीत को जिसे लिखा है अंजान साहब नें।



क्या आप जानते हैं...
कि अमिताभ बच्चन को चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार और १४ बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। वो भारतीय संसद के निर्वाचित सदस्य भी रहे १९८४ से १९८७ के बीच।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 7/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - इस युगल गीत में किशोर दा की भी आवाज़ है.

सवाल १ - किस बड़ी अभिनेत्री ने अपने लिए पार्श्वगायन किया है यहाँ - १ अंक
सवाल २ - परदे पर इस अभिनेत्री के साथ कौन दिखते है अभिनय करते - २ अंक
सवाल ३ - गीतकार कौन हैं - ३ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
दरअसल अमित जी का पहला उत्तर गलत था, गुड्डी में धर्मेन्द्र की भूमिका अतिथि की थी, समित ने अमिताभ वाला रोल उनसे छिना था, खैर किसी और ने इसका सही जवाब नहीं दिया और खुद अमित जी ने ही अंततः समित का नाम लिया तो ३ अंक के हकदार वो ही हुए, हिन्दुस्तानी जी और शरद जी भी सही निकले. अनजाना जी कहाँ गायब रहे.

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

सुर संगम में आज - सात सुरों को जसरंगी किया पंडित जसराज ने



सुर संगम - 16 - पंडित जसराज
१४ वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे।

मस्कार! सुर-संगम के इस साप्ताहिक स्तंभ में मैं, सुमित चक्रवर्ती आपका स्वागत करता हूँ। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस कला को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। आज हम सुर-संगम में ऐसे हि एक विशिष्ट शास्त्रीय गायक के बारे में जानेंगे जिनकी आवाज़ मानो सुनने वालों को सीधा उस परमेश्वर से जाकर जोड़ती है। एक ऐसी आवाज़ जिन्होंने मात्र ३ वर्ष की अल्पायु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत पिता से विरासत के रूप में मिले केवल सात स्वरों के साथ कदम रखा, आज वही सात स्वर उनकी प्रतिभा का इन्द्रधनुष बन विश्व-जगत में उन्हें विख्यात कर चले हैं। जी हाँ! मैं बात कर रहा हूँ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत शैली के समकालीन दिग्गज, संगीत मार्तांड पंडित जसराज जी की। आईये पंडित जसराज के बारे में और जानने से पहले सुनें उनकी आवाज़ में यह गणेश वंदना।

गणेश वन्दना - पं० जसराज


पंडित जसराज क जन्म २८ जनवरी १९३० को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे ४ पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। जैसा कि आपने पहले पढ़ा कि पं० जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र ३ वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अलि खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं० जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं० जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा। मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा १४ वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा आगरा के स्वामि वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। बचपन से ही आदर्शों के पक्के पंडित जसराज के पक्के सुरों की चर्चा आगे बढ़ाने से पहले लीजिये सुनें उनके द्वारा प्रस्तुत राग गुर्जरी तोड़ी।

राग गुर्जरी तोड़ी - पं० जसराज


पं० जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की 'ख़याल' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामि महाराज के सानिध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया है। तो क्यों न जुगलबन्दी के इस रूप को भी सुना जाए पंडित जी के ही दो शागिर्दों विदुषी डॉ० अश्विनि भिड़े-देशपाण्डे और पं० संजीव अभ्यंकर की आवाज़ों में? डॉ० देशपाण्डे इस जुगलबन्दी में राग ललित गा रही हैं जबकि पं० अभ्यंकर गा रहे हैं राग पुर्ये-धनश्री।

जसरंगी जुगलबन्दी - डॉ० अश्विनि भिड़े-देशपाण्डे एवं पं० संजीव अभ्यंकर


और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।

सुनिए और पहचानिए कि यह कौन सा भारतीय वाद्‍य यंत्र है? इसपर आधारित होगा हमारा आगामी अंक।



पिछ्ली पहेली का परिणाम: इस बार एक नयी श्रोता व पाठिका श्रीमति क्षिति तिवारी जी बाज़ी ले गईं हैं। आपको मिलते हैं ५ अंक, हार्दिक बधाई!

लीजिए हम आ पहुँचे हैं आज के सुर-संगम के इस अंक की समप्ति पर, आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने साथी सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए| और हाँ! शाम ६:३० बजे हमारे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के प्यारे साथी सुजॉय चटर्जी के साथ पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!

खोज व आलेख- सुमित चक्रवर्ती



आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.

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