Saturday, November 13, 2010

ई मेल के बहाने यादों के खजाने - जब खान साहब ने की हमारी हौंसला अफजाई



नमस्कार दोस्तों! स्वागत है एक बार फिर आप सभी का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साप्ताहिक विशेषांक 'ईमेल के बहाने, यादों के ख़ज़ाने' में। यह एक ऐसा स्तंभ है जिसमें हम वही छापते हैं जो आप हमें ईमेल के माध्यम से लिख भेजते हैं। आप में से कुछ अपने फ़रमाइशी नग़में हमें लिख भेजते हैं तो कुछ किसी गीत से जुड़ी अपनी यादें। कुछ हमरे दोस्त ऐसे भी हैं जो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' और 'आवाज़' की प्रस्तुतियों से इतने प्रभावित हैं कि 'हिंदयुग्म' के इस प्रयास को बढ़ावा देने हेतु अंशदान भी करने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं। हम आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैं। जिस किसी तरह से भी आप हमारा हौसला अफ़ज़ाई करते हैं, हम उसे अपना सौभाग्य समाझते हैं। आप में से कुछ दोस्त हमारी लघु शृंखलाओं की भी समय समय पर तारीफ़ करते हैं, जिससे यकीन मानिए, हमें और अच्छे और अनूठे शृंखलाओं को प्रस्तुत करने की उर्जा मिलती रहती है। ऐसे ही एक हमारे नियमित पाठक व श्रोता हैं ख़ानसाब ख़ान। ख़ान साहब अक्सर हमें ईमेल के द्वारा इन शृंखलाओं के बारे में अपने विचार लिख भेजते हैं। पिछले दिनों ख़ान साहब ने लता जी के गाए दुर्लभ गीतों की शृंखला पर अपने विचार प्रस्तुत किए एक ईमेल के बहाने, आइए आज उन्हीं का वह ईमेल पेश किया जाए, और उसके बाद हम लता जी का गाया एक और दुर्लभ गीत आपको सुनवाएँगे। ये रहा ख़ान साहब का ईमेल...


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आदाब,
लता जी के दुर्लभ दस गीतों में बहुत जान थी, भले ही वक़्त ने इनमें साँसें सलामत ना रखी हो। लता जी के इन शुरुआती नग़मों से हम बिल्कुल ही अंजान थे। मगर आपके साथ इन गीतों को हमने केवल सुना और पढ़ा ही नहीं, बल्कि इन गीतों को और उस दौर को हमने जीया भी है। आप अपनी प्रस्तुति इस तरह देते हैं कि हमको ऐसा लगता है कि मानो हम उस दौर में चले गये हैं और उन लम्हों को जाने जी रहे हैं। गीतों के साथ जुड़ी जानकारियाँ पढ़कर ही गीत सुनने का मज़ा चार गुणा बढ़ जाता है। आपके इस प्रयासों का हम जितना भी शुक्रिया अदा करें, हमारा दिल नहीं भरता है। क्योंकि हमें लगता है कि आपके लिए 'थैंक्स' लफ़्ज़ बहुत ही छोटा है।

और साथ में श्री अजय देशपाण्डे जी का भी बहुत बहुत धन्यवाद जिनके सहयोग से यह सफ़र शुरु होकर अपने मुकाम तक पहुँचा। और आपने बिल्कुल सही कहा था कि लता जी की तारीफ़ में अब और कुछ कहना वक़्त की बरबादी ही होगी, क्योंकि लता जी वक़्त से बहुत बहुत आगे निकल गईं हैं। वाक़ई मैं उस दौर के बेहतरीन नग़मों की वजह से ही हिंदुस्तानी संगीत की नीव इतनी मज़बूत हो गई है। आज भी जो लोग हिंदुस्तानी संगीत को पसंद करते हैं और इसको सुनते हैं, उनमें से ज़्यादातर उस बीते दौर के ही संगीत को सुनना पसंद करते हैं, क्योंकि उस संगीत में एक सुकून है, दिल का आराम है, रातों का चैन है, दिन का क़रार है, हज़ारों जज़्बात हैं, लाखों अहसास हैं, और सबसे बड़ी बात तो यह है कि उस दौर का हर गीत आज भी हर एक आम आदमी को ख़ुद से जुड़ा हुआ महसूस होता है।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
ख़ुदा हाफ़िज़!

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ख़ान साहब, आपके इस ईमेल के जवाब में हम भी अगर 'शुक्रिया' कहेंगे तो वह बहुत ही छोटा सुनाई देगा। आपने पुराने दौर के गीत-संगीत की शान में जो कुछ भी लिखा है, उसका एक एक शब्द सही है। क्योंकि आपके ईमेल में 'लता के दुर्लभ दस' शृंखला का ज़िक्र है, तो क्यों ना आज यहाँ पर लता जी का ही एक और दुर्लभ गीत सुना और सुनवाया जाए। १९४८ में अनिल बिस्वास के संगीत से सजी एक फ़िल्म आई थी 'अनोखा प्यार'। दिलीप कुमार, नरगिस और नलिनी जयवंत फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे। अनिल दा ने मुकेश की आवाज़ चुनी दिलीप साहब के लिए, जब कि नरगिस के लिए मीना कपूर और नलिनी जयवंत के लिए लता मंगेशकर को चुना। जैसा कि आप जानते हैं कि उस ज़माने में गीत दो बार रेकॊर्ड होते थे, एक बार फ़िल्म के लिए और दूसरी बार ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड के लिए, तो इस फ़िल्म के साथ हुआ युं तो फ़िल्म के पर्दे पर तो नरगिस के लिए मीना कपूर की ही आवाज़ सुनाई दी, लेकिन ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड पर सारे गानें लता जी की आवाज़ में उतारे गये। ऐसा कहा जाता है कि मीना कपूर बीमार हो गईं थीं जब ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड के लिए गानें रेकॊर्ड होने थे, इसलिए अनिल दा ने लता जी से गवा लिया। इस फ़िल्म में एक फ़ीमेल डुएट था जिसे पर्दे पर लता और मीना कपूर ने गाया था। लेकिन जैसा कि हमने कहा, मीना कपूर के बीमार हो जाने की वजह से, ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड के लिए यह गीत लता जी के साथ ईरा नागरथ से गवा लिया गया। गीत के बोल हैं "ऐ दिल मेरी वफ़ा में कोई असर नहीं है, मैं मर रही हूँ जिन पर उनको ख़बर नहीं है"।

दोस्तों, ये वहीं ईरा नागरथ हैं जो पहले गायिका ईरा मोइत्र थीं। संगीतकार रोशन से शादी के बाद ये ईरा नागरथ बन गईं। यानी कि राकेश और राजेश रोशन की माँ, और ॠतिक रोशन की दादी हैं गायिका ईरा नागरथ। तो आइए इस दुर्लभ फ़ीमेल डुएट को सुना जाए जिसे लिखा है शम्स अज़ीमाबादी ने।
पहले फ़िल्म वाला वर्ज़न सुनिए लता और मीना कपूर से....

गीत - ऐ दिल मेरी वफ़ा में कोई असर नहीं है (लता, मीना कपूर - फ़िल्म वर्ज़न)



और अब सुनिए इस गीत का ग्रामोफ़ोन रेकॊर्ड वर्ज़न लता और ईरा नागरथ की आवाज़ों में...

गीत - ऐ दिल मेरी वफ़ा में कोई असर नहीं है (लता, ईरा नागरथ - ग्रामोफ़ोन वर्ज़न)



दोस्तों, हमें आशा है कि इस भूले बिसरे गीत को बहुत अरसे के बाद सुन कर आपको अच्छा लगा होगा। लता जी की आवाज़ के साथ साथ मीना कपूर और ईरा नागरथ जैसी कमचर्चित गायिकाओं की आवाज़ों को सुन कर एक अलग ही अनुभव हुआ होगा। तो आज के लिए बस इतना ही, रविवार की शाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नियमीत कड़ी में आप सभी से फिर मुलाक़ात होगी, तब तक के लिए आज्ञा दीजिए, नमस्कार!

सुजॉय चट्टर्जी

सुनो कहानी: अनुराग शर्मा लिखित गन्जा



'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने प्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोड़ा की कहानी "एक कवि पत्नी का संलाप: सत्ता संवाद" का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी "गन्जा", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।कहानी "गन्जा" का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 53 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।
इस कथा का टेक्स्ट गर्भनाल, अंक 48, पृष्ठ 61 पर उपलब्ध है।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।

पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।।
~ अनुराग शर्मा

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी
सर तो आदमी तभी घुटाता है जब जूँ पड़ जाएँ या तब जब बाप मर जाये।
(अनुराग शर्मा की "गन्जा" से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)

यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
VBR MP3
#111 Story, Ganja: Anurag Sharma/Hindi Audio Book/2010/43. Voice: Anurag Sharma

Thursday, November 11, 2010

फूलों के रंग से दिल की कलम से....जब भी लिखा नीरज ने, खालिस कविताओं और फ़िल्मी गीतों का जैसे फर्क मिट गया



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 525/2010/225

"फूलों के रंग से, दिल की कलम से,
तुझको लिखी रोज़ पाती,
कैसे बताऊँ किस किस तरह से,
पल पल मुझे तू सताती,
तेरे ही सपने लेकर के सोया,
तेरी ही यादों में जागा,
तेरे ख़यालों में उलझा रहा युं,
जैसे कि माला में धागा,
बादल बिजली, चंदन पानी जैसा अपना प्यार,
लेना होगा जनम हमें कई कई बार,
इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा मेरा प्यार,
लेना होगा जनम हमें कई कई बार"।

दोस्तों, जहाँ पर कविता और फ़िल्मी गीत का मुखड़ा एकाकार हो जाए, उस अनोखे और अनूठे संगम का नाम है गोपालदास नीरज। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और एक बार फिर स्वागत है लघु शृंखला 'दिल की कलम से' की आज की कड़ी में। जी हाँ, आज हमने चुना है प्रेम कवि गोपाल दास नीरज को, जिन्हें साहित्य और फ़िल्मी दुनिया नीरज के नाम से पहचानती है। फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' के गीत का मुखड़ा जो उपर हमने लिखा, उसे पढ़ते हुए आपको यह ज़रूर लगा होगा कि आप कोई शृंगार रस की कविता पढ़ रहे हैं। साहित्य जगत के चमकीले सितारे कवि गोपालदास नीरज पहले साहित्य गीतकार हैं, फिर फ़िल्मी गीतकार। उनकी लिखी कविताएँ और साहित्य जितनी प्रभावशाली हैं, उतने ही लोकप्रिय हैं उनके रचे फ़िल्मी गीत। फ़िल्मों में गानें लिखते हुए किसी गीतकार को कई बार बेड़ियों में बाँध दिया जाता है, उनसे सारे अस्त्र-शस्त्र छीन लिए जाते हैं, और कहा जाता है कि गीत लिखो। पर नीरज ने किसी भी सिचुएशन के गाने को बड़े ही सुंदर शब्दों से ऐसे व्यक्त किया है कि आम जनता से लेकर शेर-ओ-शायरी व काव्य में रुचि रखने वाले श्रोताओं को उन्होंने एक ही समय संतुष्ट कर दिया है। साथ ही दुनिया को यह भी दिखा है कि चाहे कितनी भी बंदिशें हों गीतकार के सामने, प्रतिभावान गीतकार हर बार अच्छा गीत लिखकर निकल सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि गीतकार भाषा और विषय में पारदर्शी हो, जो कि नीरज जी थे। उन्होंने फ़िल्मी गीतों में भी ऐसा लालित्य प्रदान किया है कि यह सचमुच एक आश्चर्य की बात है।

नीरज ने युं तो कई संगीतकारों के साथ काम किया है, लेकिन सचिन देव बर्मन के साथ उनकी ट्युनिंग कुछ और ही जमी। 'शर्मिली', 'प्रेम पुजारी', 'कन्यादान', 'गैम्ब्लर', 'तेरे मेरे सपने', 'छुपा रुस्तम' जैसी फ़िल्मों में बर्मन दादा और नीरज ने साथ साथ काम किया और एक से बढ़कर एक गीत हमें उपहार स्वरूप दिए। शैलेन्द्र के गुज़र जाने के बाद शंकर जयकिशन हसरत साहब के अलावा और भी कई गीतकारों से गानें लिखवाने लगे थे, जिनमें एक नीरज भी थे। आज हम १९७० की फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' का वही गीत सुनने जा रहे हैं किशोर कुमार की आवाज़ में। इसमें किसी तरह के कोई शक़ की गुंजाइश ही नहीं है कि इस गीत की लोकप्रियता और कालजयिता का मुख्य कारण है इसके असाधारण अद्भुत बोल, जिनके लिए श्रेय जाता है नीरज जी को। आइए आपको नीरज जी के बारे में कुछ बातें बतायी जाएँ। उनका जन्म ४ जनवरी १९२४ को उत्तर प्रदेश के ईटावा के पूरावली में हुआ था। उनकी लेखनी की विशेषता यह है कि उनके लिखे साहित्य और कविताओं के अर्थ आसानी से समझ में आ जाते हैं, लेकिन स्तरीय हिंदी का ही वो प्रयोग अपनी रचनाओं में किया करते थे। साहित्य जगत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें सन् २००७ में पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। लिखने के अलावा वो पेशे के लिहाज़ से कॊलेज में अध्यापक रह चुके हैं, और हिंदी साहित्य के एक विख्यात प्रोफ़ेसर भी रहे हैं अलिगढ़ विश्वविद्यालय में। उनकी लिखी कविताओं को ही नहीं फ़िल्मी गीत का जामा पहनाया गया, बल्कि उनके लिखे नज़्मों को भी फ़िल्मी दुनिया ने सरमाथे पर बिठाया। फ़िल्म 'नई उमर की नई फ़सल' में "कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे" उनके लिखे फ़िल्मी नज़्मों में सब से उपर आता है। तो आइए नीरज जी की प्रतिभा को समर्पित आज के इस अंक का गीत सुना जाए। शृंगार रस की एक अद्भुत रचना है यह किशोर दा की आवाज़ में।



क्या आप जानते हैं...
कि सचिन दा के संगीत में नीरज जी का लिखा पहला गीत था फ़िल्म 'प्रेम पुजारी' का - "रंगीला रे"। इस गीत में "शराब" के लिए "जल" का उपमान प्रस्तुत कर नीरज ने सचिन दा को चमत्कृत कर दिया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०६ /शृंखला ०३
ये है गीत का पहला इंटर ल्यूड -


अतिरिक्त सूत्र - मुखड़े में शब्द है -"सुराही"

सवाल १ - साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वो पहली महिला हैं इस कवियित्री का नाम बताएं - २ अंक
सवाल २ - १९७६ में आई इस फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - शबाना आज़मी अभिनीत इस फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी २ अंक, और श्याम कान्त जी और अमित जी को १-१ अंक की बधाई, जी अवध ये गीत हमने शृंखला के बीचों बीच इस्तेमाल कर लिए, यूहीं एक बदलाव स्वरुप :). भारतीय नागरिक जी, कभी अपना नाम तो बताईये

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, November 10, 2010

नफ़रत की एक ही ठोकर ने यह क्या से क्या कर डाला...बालकवि बैरागी का रचा, जयदेव का स्वरबद्ध ये अमर गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 524/2010/224

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस महफ़िल में। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' महक रहा है हिंदी साहित्यकारों की फ़िल्मी रचनाओं से। लघु शृंखला 'दिल की कलम से' की चौथी कड़ी में आज बातें बालकवि बैरागी की। कविता पाठ के रसिक बैरागी जी को अपने ओजपूर्ण स्वरों मे मंच पर कविता पाठ करते सुना होगा। उनके साहित्य में भारतीय ग्राम्य संस्कृति की सोंधी सोंधी महक मिलती है। और यही महक फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' के लिए उनके लिखे इस गीत में मिलती है - "तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं शाख रे"। इसी फ़िल्म में उद्धव कुमार का लिखा "एक मीठी सी चुभन" गीत भी उल्लेखनीय है। दोस्तों, ये दोनों ही गानें हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर बजा चुके हैं क्रम से २२८ और ३१३ वीं कड़ियों में। तो फिर कौन सा गाना आपको सुनवाएँ? 'रेशमा और शेरा' में ही बालकवि बैरागी जी ने एक और गीत लिखा था, जिसे मन्ना डे ने गाया था। इस गीत को बहुत कम सुना गया। याद है आपको इस गीत के बोल? यह गीत है "नफ़रत की एक ही ठोकर ने यह क्या से क्या कर डाला"। चलिए आज इसी कमसुने गीत को सुना जाए। इस फ़िल्म के संगीतकर थे जयदेव, फ़िल्म की तमाम जानकारी आप उपर लिखे कड़ियों के आलेखों से प्राप्त कर सकते हैं। आज बातें बालकवि बैरागी जी की करते हैं। 'रेशमा और शेरा' के अलावा उपलब्ध जानकारी के अनुसार बैरागी जी ने फ़िल्म 'जादू टोना' में गीत लिखे थे जिसके संगीतकार थे आशा भोसले के सुपुत्र हेमन्त भोसले। इसके अलावा वसंत देसाई के संगीत में फ़िल्म 'रानी और लालपरी' में भी दिलराज कौर का गाया एक बच्चों वाला गीत लिखा था "अम्मी को चुम्मी पप्पा को प्यार"। गायिका शारदा ने कुछ फ़िल्मों में संगीत भी दिया था। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'क्षितिज' और इस फ़िल्म में भी बैरागी जी ने कुछ गीत लिखे थे। कुछ और फ़िल्मों के नाम हैं 'दो बूंद पानी', 'गोगोला', 'वीर छत्रसाल', 'अच्छा बुरा'। १९८४ में एक फ़िल्म आई थी 'अनकही' जिसमें तीन गानें थे। एक गीत तुल्सीदास का लिखा हुआ तो दूसरा गीत कबीरदास का। और तीसरा गीत पता है किन्होने लिखा था? जी हाँ, बैरागी जी ने। आशा भोसले की आवाज़ में यह सुंदर गीत था "मुझको भी राधा बना ले नंदलाल"। इसमें भी संगीत जयदेव का ही था।

बालकवि बैरागी किस स्तर के कवि थे, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके नाम पर 'बालकवि बैरागी कॊलेज ऒफ़ एडुकेशन' की स्थापना हुई है नीमुच के कनावती में। आइए आज हम बालकवि बैरागी जी का ही लिखा हुआ एक लेख यहाँ प्रस्तुत करते हैं "जब मैंने पहली कविता लिखी"।

"यह घटना उस समय की है जब मैं कक्षा चौथी का विद्यार्थी था। उम्र मेरी नौ वर्ष थी। आजादी नहीं मिली थी। दूसरा विश्वयुद्ध चल रहा था। मैं मूलत: मनासा नगर का निवासी हूँ, जो उस समय पुरानी होलकर रियासत का एक चहल-पहल भरा कस्बाई गाँव था। गरोठ हमारा जिला मुख्यालय था और इंदौर राजधानी थी। मनासा में सिर्फ सातवीं तक पढ़ाई होती थी। सातवीं की परीक्षा देने हमें 280 किलोमीटर दूर इंदौर जाना पड़ता था।

स्कूलों में तब प्रार्थना, ड्रिल, खेलकूद और बागवानी के पीरियड अनिवार्य होते थे। लेकिन साथ ही हमारे स्कूल में हर माह एक भाषण प्रतियोगिता भी होती थी। यह बात सन 1940 की है। मेरे कक्षा अध्यापक श्री भैरवलाल चतुर्वेदी थे। उनका स्वभाव तीखा और मनोबल मजबूत था। रंग साँवला, वेश धोती-कुर्ता और स्कूल आते तो ललाट पर कुमकुम का टीका लगा होता था। हल्की नुकीली मूँछें और सफाचट दाढ़ी उनका विशेष श्रृंगार था।

मूलत: मेवाड़ (राजस्थान) निवासी होने के कारण वे हिन्दी, मालवी, निमाड़ी और संस्कृत का उपयोग धड़ल्ले से करते थे। कोई भी हेडमास्टर हो, सही बात पर भिड़ने से नहीं डरते थे।

एक बार भाषण प्रतियोगिता का विषय आया 'व्यायाम'। चौथी कक्षा की तरफ से चतुर्वेदी जी ने मुझे प्रतियोगी बना दिया। साथ ही इस विषय के बारे में काफी समझाइश भी दी। यूँ मेरा जन्म नाम नंदरामदास बैरागी है। ईश्वर और माता-पिता का दिया सुर बचपन से मेरे पास है। पिताजी के साथ उनके चिकारे (छोटी सारंगी) पर गाता रहता था। मुझे 'व्यायाम' की तुक 'नंदराम' से जुड़ती नजर आई। मैं गुनगुनाया 'भाई सभी करो व्यायाम'। इसी तरह की कुछ पंक्तियाँ बनाई और अंत में अपने नाम की छाप वाली पंक्ति जोड़ी - 'कसरत ऐसा अनुपम गुण है/कहता है नंदराम/ भाई करो सभी व्यायाम'। इन पंक्तियों को गा-गाकर याद कर लिया और जब हिन्दी अध्यापक पं. श्री रामनाथ उपाध्याय पं. श्री रामनाथ उपाध्याय को सुनाया तो वे भाव-विभोर हो गए। उन्होंने प्रमाण पत्र दिया - 'यह कविता है। खूब जियो और ऐसा करते रहो।'

अब प्रतियोगिता का दिन आया। हेडमास्टर श्री साकुरिकर महोदय अध्यक्षता कर रहे थे। प्रत्येक प्रतियोगी का नाम चिट निकालकर पुकारा जाता था। चार-पाँच प्रतियोगियों के बाद मेरा नाम आया। मैंने अच्छे सुर में अपनी छंदबद्ध कविता 'भाई सभी करो व्यायाम' सुनाना शुरू कर दिया। हर पंक्ति पर सभागार हर्षित होकर तालियाँ बजाता रहा और मैं अपनी ही धुन में गाता रहा। मैं अपना स्थान ग्रहण करता तब तक सभागार हर्ष, उल्लास और रोमांच से भर चुका था। चतुर्वेदी जी ने मुझे उठाकर हवा में उछाला और कंधों तक उठा लिया।

जब प्रतियोगिता पूरी हुई तो निर्णायकों ने अपना निर्णय अध्यक्ष महोदय को सौंप दिया। सन्नाटे के बीच निर्णय घोषित हुआ। हमारी कक्षा हार चुकी थी। कक्षा छठी जीत गई थी। इधर चतुर्वेदी जी साक्षात परशुराम बनकर निर्णायकों के सामने अड़ गए। वे भयंकर क्रोध में थे और उनका एक मत था कि उनकी कक्षा ही विजेता है।

कुछ शांति होने पर बताया गया कि यह भाषण प्रतियोगिता थी, जबकि चौथी कक्षा के प्रतियोगी नंदराम ने कविता पढ़ी है, भाषण नहीं दिया है। कुछ तनाव कम हुआ। इधर अध्यक्षजी खड़े हुए और घोषणा की - 'कक्षा चौथी को विशेष प्रतिभा पुरस्कार मैं स्कूल की तरफ से देता हूँ।' सभागार फिर तालियों से गूँज उठा। चतुर्वेदी जी पुलकित थे और रामनाथजी आँखें पोंछ रहे थे। मेरे लिए यह पहला मौका था जब मुझे माँ सरस्वती का आशीर्वाद मिला और फिर कविता के कारण ही आपका अपना यह नंदराम बालकवि हो गया।"

और अब आज का गीत सुनिए मन्ना डे की आवाज़ में, फ़िल्म 'रेशमा और शेरा' से।



क्या आप जानते हैं...
कि मूलत: पंजाबी, जयदेव का जन्म अफ़्रीका के नाइरोबी में ३ अगस्त १९१८ को हुआ था।।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०५ /शृंखला ०३
ये है गीत का पहला इंटर ल्यूड -


अतिरिक्त सूत्र - एक एवर ग्रीन नायक पर फिल्माया गया है ये कवितामय गीत.

सवाल १ - गीतकार कवि का नाम बताएं - २ अंक
सवाल २ - संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
बहुत अच्छे श्याम कान्त जी, पहली बार शरद जी को कोई असली टक्कर मिल रही है. रोमेंद्र जी भी सही जवाब लाये हैं. "भारतीय नागरिक" जी और रोमेंद्र जी हौंसला अफजाई के लिए आभार. एक पुस्तक के रूप में इन्हें संजोना हम भी चाह रहे हैं. जिसके लिए इन दिनों आर्थिक मदद जुटाई जा रही है

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, November 9, 2010

दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई...सुर्रैया की आवाज़ और कवि गीतकार गोपाल सिंह नेपाली के शब्द



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 523/2010/223

पंडित नरेन्द्र शर्मा और वीरेन्द्र मिश्र के बाद 'दिल की कलम से' शृंखला की तीसरी कड़ी में आज जिस हिंदी साहित्यकार व कवि की चर्चा हम करने जा रहे हैं वो प्रकृति के चितेरे तो थे ही, देश भक्ति का जज्बा भी उनमें कूट कूट कर समाया हुआ था। जी हाँ, हम आज बात कर रहे हैं गोपाल सिंह नेपाली की, जिन्हें हम गीतकार जी. एस. नेपाली के नाम से भी जानते हैं। उनका जन्म बिहार के चम्पारन ज़िले में बेदिया नामक स्थान पर ११ अगस्त १९११ को हुआ था। बालावस्था से ही वे घण्टों एकान्त में बैठकर प्रकृति की सुषमा का आनंद लेते और बाद में इसी प्रकृति से जुड़े कविताएँ लिखने लगे। १९३१ में कलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में शामिल होने को वे प्रेरीत हुए, जहाँ पे जाकर साहित्य के कई महान विभुतियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। १९३२ में काशी में आचार्य महावीर प्रसाद द्वारा आयोजित एक बहुत बड़े कवि सम्मेलन में कुल ११५ कवि शामिल हुए जिनमें से केवल १५ कवियों को कविता पाठ करने का मौका मिला। और इनमें से एक गोपाल सिंह नेपाली भी थे। उस सम्मेलन में उनकी लिखी कविताओं के रंग ख़ूब जमे। सुधा पत्रिका के सम्पादक दुरारेलाल जी ने उन्हें लखनऊ आकर उनकी पत्रिका में काम करने का निमंत्रण दिया जहाँ पर वे सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के सहायक बनें। १९३४ में वे दिल्ली चले गए और एक सिने पत्रिका 'चित्रपट' में संयुक्त सम्पादक की नौकरी कर ली। फिर दो साल तक वे रतलाम में 'रतलाम टाइम्स' से जुड़े रहे। १९३९ में वे पटना चले गए। १९४४ का साल गोपाल सिंह नेपाली के जीवन का एक महत्वपूर्ण साल था जब पी. एल. संतोषी, पटेल और रामानन्द ने उन्हें आमन्त्रित किया उनकी फ़िल्मों में गीत लिखने के लिए। और इस तरह से जी. एस. नेपाली के नाम से उनका पदार्पण हुआ फ़िल्म जगत में।

जी. एस. नेपाली एक तरफ़ जहाँ कोमल भावनाओं वाली, प्रकृति प्रेम से ओत-प्रोत कविताएँ लिखते रहे, वहीं दूसरी तरफ़ देश भक्ति की झंझनाती रचनाएँ भी क्या ख़ूब लिखे। उनकी लिखी हुई 'दिल्ली चलो' कविता पर फ़िल्मिस्तान ने 'समाधि' नामक फ़िल्म का निर्माण भी किया। लेकिन आज हम जो गीत चुन लाए हैं वह है एक बड़ा ही कोमल प्रेम गीत, जिसमें एक अंग दर्द का भी छुपा हुआ है। फ़िल्म 'गजरे' का गीत "दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई, मेरी तुम्हारी मुलाक़ात बाक़ी रह गई"। सुरैय्या की आवाज़ और अनिल बिस्वास का संगीत। साल १९४८ में अनिल बिस्वास के संगीत निर्देशन में कुल तीन फ़िल्में आई थीं - अनोखा प्यार, गजरे, और वीणा, जिनमें से पहले दो फ़िल्मों के गानें ख़ासा लोकप्रिय हुए थे। 'गजरे' के मुख्य भूमिकाओं में थे सुरैय्या और मोतीलाल। १९४६ में फ़िल्मिस्तान के 'सफ़र' में सफल गीत लिखने के बाद नेपाली जी ने 'गजरे' के गीतों को भी महकाया। उन्होंने यह सिद्ध किया कि बिना उर्दू शब्दों के इस्तेमाल किए शुद्ध हिंदी में भी लोकप्रिय गीत लिखे जा सकते हैं। अनिल दा हमेशा इस बात का ख़याल रखते थे कि जिस तरह के शब्द गीत में हों, उसी तरह से एक्स्प्रेशन भी आने चाहिए। तभी तो इस गीत के पहले शब्द "दूर" को लम्बा खींच कर सुरैय्या से गवाया ताकि वाक़ई यह लगे कि दूर कहीं से पपीहा बोल रहा है। इसी फ़िल्म में कुछ और सुरैय्या के गाए एकल गीत थे जैसे कि "रह रह के तेरा ध्यान रुलाता है क्या करूँ, हर दिल में मुझको तू नज़र आता है क्या करूँ" और "जलने के सिवा और क्या है यहाँ, चाहे दिल हो किसी का या हो दीया"। लेकिन लोकप्रियता के पयमाने पर आज का प्रस्तुत गीत ही सर्वोपरी रहा। तो आइए अब इस सुमधुर गीत का आनंद लेते हैं सुरैय्या की सुरीली आवाज़ में।



क्या आप जानते हैं...
कि नेपाल के राणा के साथ मिलकर गोपाल सिंह नेपाली ने 'हिमालय फ़िल्म्स' की स्थापना की और इस बैनर तले तीन फ़िल्मों का निर्माण किया - 'नज़राना', 'संस्कारी', और 'ख़ुशबू'।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०४ /शृंखला ०३
ये है गीत का आरंभिक शेर -


अतिरिक्त सूत्र - आवाज़ है मन्ना दा की.

सवाल १ - किस कवि का जिक्र होगा कल - २ अंक
सवाल २ - इस सफल फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम कान्त जी बढ़त ले चुके हैं मगर अमित जी और शरद जी भी पीछे नहीं हैं. बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

"दस तोला" सोना लेकर आये गुलज़ार, सन्देश के साथ तो प्रीतम ने धमाल किया "गोलमाल" के साथ



ताज़ा सुर ताल ४३/२०१०


सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' के सभी चाहनेवालों को हमारा नमस्कार! सजीव जी, विश्व दीपक जी तो दीपावली की छुट्टियों में घर गए हुए हैं, और आशा है उन्होंने यह त्योहार बहुत अच्छी तरह से मनाया होगा।

सजीव - सभी को मेरा भी नमस्कार, दीवाली अच्छी रही। और बॊलीवूड की यह रवायत रही है कि दीवाली में कोई ना कोई बड़ी बजट की फ़िल्म रिलीज़ होती आई है। इस परम्परा को बरकरार रखते हुए इस बार दीवाली की शान बनी है दो फ़िल्में - 'ऐक्शन रिप्ले' और 'गोलमाल-३'।

सुजॊय - 'ऐक्शन रिप्ले' के गानें हमने पिछले हफ़्ते सुने थे, आज बारी 'गोलमाल-३' की। और साथ ही हम 'दस तोला' फ़िल्म के गीत भी सुनेंगे। शुरु करते हैं 'गोलमाल-३-' से। रोहित शेट्टी निर्देशित इस मल्टि-स्टारर फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं मिथुन चक्रवर्ती, अजय देवगन, करीना कपूर, अरशद वारसी, तुषार कपूर, श्रेयास तलपडे, कुणाल खेमू, रत्ना पाठक, जॊनी लीवर, संजय मिश्रा, व्रजेश हिरजी, अशिनी कल्सेकर, मुरली शर्मा और मुकेश तिवारी। फ़िल्म में गीत संगीत का ज़िम्मा उठाया है कुमार और प्रीतम ने। इस ऐल्बम के पहले गीत की शुरुआत उसी जाने पहचाने "गोलमाल गोलमाल" लाइन से होती है। लीजिए पहले गीत सुनिए, फिर बात आगे बढ़ाते हैं।

गीत - गोलमाल गोलमाल


सजीव - के.के., अनूष्का मनचन्दा और मोनाली ठाकुर की आवाज़ों में इस हाइ-एनर्जी गीत में यकीनन वही "गोलमाल" का ठप्पा है। विशाल-शेखर के जगह पर अब प्रीतम आ गए हैं। 'गोलमाल' की कहानी और चरित्रों को ध्यान में रखते हुए थिरकन भरे इस गीत में गायकों द्वारा जिस तरह की अदायगी की ज़रूरत थी, वो सब कुछ मौजूद है। यह ऐसा गीत है जो लोगों की ज़ुबान पर तो नहीं चढ़ सकते, क्योंकि यह पूरी तरह से सिचुएशनल गीत है जिसका महत्व केवल फ़िल्म के पर्दे पर ही रहेगा।

सुजॊय - ऒरिजिनल 'गोलमाल' के शीर्षक गीत "गोलमाल गोलमाल एवरीथिंग् गॊन्ना बी गोलमाल" में जो बात थी, वह बात इस गीत में नज़र नहीं आई। और शायद यही बत फ़िल्म के निर्माता निर्देशक ने भी महसूस की होगी, तभी तो उस गीत का टैग लाइन इस गीत में डाल दिया गया। ख़ैर, आइए दूसरा गीत सुनते हैं, जिसे गाया है शान और अनूष्खा मनचन्दा ने। "अपना हर दिन ऐसे जीयो जैसे कि आख़िरी हो" एक आशावादी और जीवन से भरपूर गीत है जिसे सुनकर एक पॊज़िटिव फ़ील होने लगेगी। आइए सुन लेते हैं....

गीत - अपना हर दिन


सजीव - "ये ज़िंदगी रफ़्तार से चल पड़ी, जाते हुए राहों में हमसे अभी कहके गई, हमारा ये वक़्त हमारा, जो एक बार गया तो आये ना दुबारा, समझ लो ज़रा ये हवाओं का इशारा....", इस भाव पर पहले भी कई गीत बन चुके हैं, जैसे कि "कल क्या होगा किसको पता, अभी ज़िंदगी का ले लो मज़ा"। इस गीत का भी मूड बिल्कुल ऐसा ही है और कम्पोज़िशन में भी कुछ कुछ उस ७० के दशक का फ़ील है। कुमार के फ़िलोसोफ़िक शब्दों को प्रीतम ने अच्छी धुन दी है।

सुजॊय - अगर इस गीत के रीदम और संगीत संयोजन को आप ध्यान से सुनें तो इसमें आपको कुछ कुछ 'भागमभाग' फ़िल्म के "सिगनल" गीत की झलक मिलेगी। और 'दे दना दन' के "बामुलाइज़ा" से भी कुछ कुछ मिलता जुलता है। कुल मिलाकर यह ख़ुशनुमा, ज़िंदगी से लचरेज़ गीत।

सजीव - तीसरा गीत है नीरज श्रीधर और अंतरा मोइत्रा की आवाज़ों में, "आले, अब जो भी हो, हो जाने दो"। एक क्लब मूड भड़का देने वाला यह गीत है, सुनते हैं....

गीत - आले


सुजॊय - प्रीतम के संगीत की खासियत ही यह है कि जिस तरह की कहानी और फ़िल्म का पार्श्व हो, उसके साथ पूरा पूरा न्यय करते हुए गाने कम्पोज़ करते हैं। हर तरह के गानें बड़ी सहजता से बना लेते हैं। 'गोलमाल-३' एक मस्ती, मज़ाक और हास्य रस की फ़िल्म है, इसलिए इस फ़िल्म के गीतों से बहुत ज़्यादा क्लास की उम्मीद रखना उचित नहीं है। जिस तरह की फ़िल्म है, उसी तरह का संगीत है, और इसे हल्के फुल्के अंदाज़ में ही हमें गले लगानी चाहिए।

सजीव - यह जो "आले" शब्द है, वह 'यूरोपॊप' जौनर का है, जिसे यूरोपीयन क्लब पॊप म्युज़िक में ख़ूब सुनाई देता है।

सुजॊय - और यूरोपीयन फ़ूटबॊल कार्निवल में भी उतना ही सुनाई पड़ता है। यूरोपीयन पॊप संगीत में रुचि रखने वाले लोगों को यह गीत ख़ास पसंद आयेगा, जिन्हें "ऐकुआ" और "पेट शॊप बॊय्ज़" ग्रूप्स के गीत पसंद हैं।

सजीव - और फिर इस गीत में 'तुम मिले' फ़िल्म के शीर्षक गीत के धुन की भी छाया मिलती है, "तुम मिले तो मिल गया ये जहाँ...."

सुजॊय - बिल्कुल! चलिए आगे बढ़ा जाए और सुनें फ़िल्म का चौथा गीत "देसी कली", सुनिधि चौहान और नीरज श्रीधर की आवाज़ों में।

गीत - देसी कली


सजीव - प्रियंका चोपड़ा के "देसी गर्ल" के बाद अब करीना कपूर बनी है "देसी कली"। "देसी गर्ल" की तरह "देसी कली" में भी वह बात है जो इसे दूर तक ले जाएगी। इस ऐल्बम में अब तक जितने भी गानें हमने सुनें हैं, शायद यही सब से उपर है। बाकी तीन गीतों की तरह यह भी सिचुएशनल सॊंग् है, लेकिन अलग सुनते हुए भी अच्छा लगता है। वैसे ये गीत फिल्म से नदारद है.

सुजॊय - इस ऐल्बम में बप्पी लाहिड़ी की 'डिस्को डान्सर' फ़िल्म के दो गीतों का रिवाइव्ड वर्ज़न भी मौजूद हैं। क्योंकि इस फ़िल्म में मिथुन चक्रवर्ती ने एक मुख्य भूमिका निभाई है, इसलिए यह बहुत ज़्यादा ताज्जुब की बात नही कि इस ऐल्बम में 'ये दो गीत शामिल किए गए हैं। एक तो है बप्पी दा की ही आवाज़ में "आइ ऐम ए डिस्को डान्सर", और दूसरा गीत है "याद आ रहा है तेरा प्यार", जिसे इस ऐल्बम के लिए सूदेश भोसले ने गाया है। इन गीतों के ऒरिजिनल वर्ज़नों को सुनने के बाद अब ऐसे वर्ज़नों की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसलिए इन गीतों को हम यहाँ शामिल नहीं कर रहे हैं। सजीव जी, 'गोलमाल-३' फ़िल्म तो मैंने नहीं देखी, लेकिन क्योंकि आपने यह फ़िल्म दीवाली पर देखी है, तो आप ही बताइए कि आपके क्या विचार हैं फ़िल्म के बारे में भी, और इस साउण्डट्रैक के बारे में भी?

सजीव - हाँ सुजॉय मैंने ये फिल्म सपरिवार देखी. फिल्म के लिए पहले से ही मूड सेट था कि सिर्फ हँसना हँसाना और कुछ नहीं. अगर आप भी फिल्म की तकनिकी बारीकियों को दरकिनार रख सिर्फ मस्ती के उद्देश्य से इसे देखेंगें तो भरपूर आनंद उठा पायेंगें. यूँ भी इस फिल्म के पहले दो संस्करण काफी अच्छे रहे हैं, और ये तीसरा अंक भी कुछ कम नहीं है. फिल्म पैसा वसूल है टाईम पास है.

सुजॊय - चलिए अब बढ़ते हैं आज की दूसरी फ़िल्म 'दस तोला' की तरफ़। गीतकार गुलज़ार और संगीतकार संदेश शांडिल्य का अनोखा कम्बिनेशन में इस फ़िल्म के गानें भी भीड़ से थोड़े अलग सुनाई देते हैं। २२ अक्टुबर को यह फ़िल्म रिलीज़ हो चुकी है 'आर्यन ब्रदर्स एण्टरटेण्मेण्ट' के बैनर तले। अजय निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं मनोज बाजपयी, आरति छाबड़िया, दिलीप प्रभावलकर, सिद्धार्थ मक्कर, गोविंद नामदेव, असरानी, निनाद कामत, भरती आचरेकर आदि। तो चलिए फ़िल्म का पहला गाना सुना जाए मोहित चौहान की आवाज़ में।

गीत - ऐसा होता था


सजीव - इस गीत की ख़ास बात मुझे यह लगी कि मोहित चौहान और संदेश शांडिल्य, दोनों ही थोड़े से ठहराव भरे गीतों के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में यह गीत तेज़ रफ़्तार वाला है। वैसे रिदम कैची है और सुनने में अच्छा लग रहा है। लोक धुनों की थापें और साथ में परक्युशन, अच्छा समन्वय, और जहाँ पर गुलज़ार साहब की कलम चलती हैं, वहाँ कुछ और कहने की गुंजाइश ख़त्म हो जाती है। चलिए अब दूसरे गीत की तरफ़ बढ़ा जाए।

सुजॊय - दूसरा गाना है सुखविंदर सिंह की आवाज़ में। इस गीत के बोलों में गुलज़ार साहब का ख़ास पसंदीदा अंदाज़ सुनाई देता है। मेरा इशारा चिनार के पत्तों की तरफ़ है। गुलज़ार साहब इस गीत में लिखते हैं, "लाल लाल लाल हुआ पत्ता चिनार का, माटी कुम्हार की, सोना सुन्हार का, गिन गिन गिन दिन इंतज़ार का..."। धुन और रिदम कुछ कुछ सुना सुना सा ज़रूर लग रहा है, लेकिन एक बार फिर वही बात, कि जहाँ गुलज़ार साहब की लेखनी हो, वहाँ हर कमी पूरी हो जाती है। सुनते हैं यह गीत...

गीत - लाल लाल लाल हुआ पत्ता चिनार का


सजीव - सही में, इस गीत में 'माचिस' के संगीत की ख़ुशबू जैसे कहीं आ कर चली गई। "चप्पा चप्पा चरखा चले" की भी याद आ ही गई। अगले गीत में आवाज़ है सोनू निगम की। इस बार यह एक स्लो नंबर है, "तुम बोलो ना बोलो", एक नर्मो-नाज़ुक गीत और ऐसे गीतों के साथ सोनू की कशिश भरी आवाज़ बहुत न्याय करती है।

सुजॊय - सोनू के साथ कोरस का इस्तेमाल भी ख़ूबसूरती के साथ किया गया है। गुलज़ार साहब के बोलों को थोड़ा लिखने का मन कर रहा है यहाँ, "मेरी आदत में नहीं है कोई रिश्ता तोड़ देना, मेरे शायर ने कहा था मोड़ देकर छोड़ देना, अजनबी फिर अजनबी है, गहने बहुत पहनोगी, याद का ज़ेवर नया है, दर्द जो घुलते नहीं है, रंग वो धुलते नहीं है, सारे गिले बाक़ी रहे, मगर याद है, तुम बोलो ना बोलो..."। इसमें देखिए "मोड़ देकर छोड़ देने" की जो बात गुलज़ार साहब ने शायर के माध्यम से कहा है, आपको याद होगा कि महेन्दर कपूर के गाये साहिर साहब के लिखे "चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों" गीत में उन्होंने लिखा था "वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन, उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा"। तो आइए सुनते है सोनू निगम की आवाज़ में यह गीत...

गीत - तुम बोलो ना बोलो


सजीव - और अब फ़िल्म का अंतिम गीत। इस गीत के दो वर्ज़न हैं, एक सुखविंदर सिंह की आवाज़ में और दूसरा सुनिधि चौहान का गाया हुआ। और क्योंकि हमने सुखविंदर सिंह की आवाज़ अभी अभी सुनी है, तो क्यों ना सुनिधि की आवाज़ इस गीत में सुन ली जाए! गीत है "जी ना जल‍इयो"। सुनिधि की अपनी ख़ास गायकी इसमें झलकती है। लोक और शास्त्रीय संगीत के पुट लेकर यह गीत शुरु होती है, लेकिन रिदम पाश्चात्य है। इस तरह से एक फ़्युज़न वाला गाना है यह।

सुजॊय - सजीव जी, मैंने इस गीत का प्रोमो 'चित्रलोक' कार्यक्रम में कई दिनों तक सुना है, पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लगता है कि अगर इसमें फ़्युज़न के बजाय शास्त्रीय और लोक संगीत के शुद्ध रूप को रखा जाता तो गाना ज़्यादा दिल को छूता। पाश्चात्य रिदम की वजह से जैसे गीत में फ़ील कम हो गया है। वैसे यह मेरा व्यक्तिगत राय ही है। चलिए हमारे सुनने वालों को भी इसे सुनने का मौका देते हैं और देखते हैं कि उनके क्या विचार हैं।

गीत - जी ना जल‍इयो रे


सुजॊय - 'दस तोला' कम बजट की फ़िल्म हो सकती है, लेकिन इसका संगीत उदासीन नहीं है। मेरा पसंदीदा गीत "लाल लाल लाल हुआ पत्ता चिनार का" है। और अब सजीव जी, आप अपनी राय बताएँ और आज की प्रस्तुति को सम्पन्न करें।

सजीव - बिलकुल सुजॉय, वैसे तो फिल्म के चारों गीत खासकर लाल लाल लाल हुआ और तुम बोलो न बोलो मुझे बहुत अच्छे लगे, पर उनके अच्छे लगने की वजह गुलज़ार साहब का खास अंदाज़ ही है. दरअसल उनके शब्दों को सुरों से पिरोना बेहद कठिन काम है. आर डी और अब विशाल इसे भली भांति समझते हैं. सन्देश ने बहुत अच्छी कोशिश की है, मगर गीतों में लोकप्रियता का पुट धुनों में जरा कम झलकता है. फिर भी औसत से ऊपर तो हैं ही फिल्म के गीत.

Monday, November 8, 2010

जूडे में गजरा मत बाँधो मेरा गीत महक जायेगा....जब पंडित वीरेंद्र मिश्रा की सुन्दर कल्पना को सुर मिले



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 522/2010/222

'दिल की कलम से', 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कल से हमने शुरु की है यह लघु शृंखला जिसके अन्तर्गत हम कुछ ऐसी फ़िल्मी रचनाएँ सुनवा रहे हैं जिनके रचनाकार हैं हिंदी साहित्य और काव्य जगत के कुछ नामचीन साहित्यकार व कवि। ये वो प्रतिभाएँ हैं जिन्होंने हिंदी साहित्य और काव्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर उन्हें समृद्ध किया है, और जब फ़िल्मी गीत लेखन की बात आई तो यहाँ भी, कम ही सही, लेकिन कुछ ऐसे स्तरीय और अर्थपूर्ण गीत लिखे कि फ़िल्म संगीत जगत धन्य हो गया। पंडित नरेन्द्र शर्मा के बाद आज हम जिस साहित्यकार की बात कर रहे हैं वो हैं वीरेन्द्र मिश्र। कवि वीरेन्द्र मिश्र और पंडित नरेन्द्र शर्मा को जो एक बात आपस में जोड़े रखती है, वह यह कि ये दोनों ही भारत के सब से लोकप्रिय रेडियो चैनल विविध भारती से जुड़े रहे। अगर शर्मा जी विविध भारती के जन्मदाता थे तो मिश्र जी भी इसके एक मानक प्रस्तुतकर्ता, यानी कि 'प्रोड्युसर एमेरिटस' रहे हैं। वीरेन्द्र मिश्र का जन्म मध्यप्रदेश के मोरैना में हुआ था। साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें देव पुरस्कार और निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साहित्यिक कृतियों के अलावा वीरेन्द्र जी ने फ़िल्मों के लिए भी कुछ गीत लिखे हैं। जितने भी लिखे हैं, वो हमारे लिए किसी अनमोल धरोहर से कम नहीं हैं। वो आज हमारे बीच तो नहीं हैं, पर उनके कोमल भावपूर्ण गीत और कविताएँ हमेशा हमारे साथ रहेंगे और याद दिलाते रहेंगे उनकी अद्भुत प्रतिभा की। वीरेन्द्र मिश्र के लिखे फ़िल्मी रचनाओं में उल्लेखनीय है फ़िल्म 'धूप छाँव' का गीत "जूड़े में गजरा मत बांधो, मेरा गीत महक जाएगा, तेरी प्रीत सुलग जाएगी, मेरा प्यार छलक जाएगा"। शास्त्रीय संगीत पर आधारित शृंगार रस का यह गीत एक बेशकीमती नगीना है फ़िल्म संगीत की धरोहर का। आज के इस अंक के लिए हमने चुना है मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में फ़िल्म 'धूप छाँव' का यही काव्यात्मक गीत ।

'धूप छाँव' साल १९७७ की फ़िल्म थी जिसके संगीतकार थे शंकर जयकिशन। उस समय जयकिशन जीवित तो नहीं थे, लेकिन शंकर ने कभी जयकिशन का नाम अपने से जुदा होने नहीं दिया। वैसे शंकर के सहायक के रूप में दत्ताराम ने सहायक संगीतकार की भूमिका निभाई, जो ख़ुद भी एक स्वतंत्र संगीतकार बन चुके थे। रफ़ी साहब के अलावा तीनों मंगेशकर बहनों (लता, आशा और उषा) ने इस फ़िल्म में गीत गाए। वीरेन्द्र मिश्र के लिखे इस गीत के अलवा इस फ़िल्म में विश्वेश्वर शर्मा, विट्ठलभाई पटेल और कैफ़ी आज़्मी ने भी गीत लिखे हैं। प्रह्लाद शर्मा निर्देशित इस फ़िल्म को लिखा भी प्रह्लाद जी ने ही था। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे संजीव कुमार, हेमा मालिनी, योगिता बाली, ओम शिवपुरी, नज़ीर हुसैन प्रमुख। ऐसे मंझे हुए कलाकारों के होते हुए भी यह फ़िल्म बॊक्स ऒफ़िस पर मुंह के बल गिरी। आज अगर इस फ़िल्म को लोग याद करते हैं तो बस वीरेन्द्र मिश्र के लिखे प्रस्तुत गीत की वजह से। तो आइए निर्माता एस. एन. जैन द्वारा निर्मित 'धूप छाँव' फ़िल्म का यह गीत सुना जाए जो सराबोर है शृंगार रस के रंग से। क्योंकि यह गीत शास्त्रीय नृत्य पर आधारित है, इसलिए यहाँ पर यह बताना ज़रूरी है कि इस फ़िल्म के नृत्य निर्देशक थे गोपी कृष्ण, सत्यनारायण, ऒस्कर, और विजय। हम पूरी यकीन के साथ तो नहीं कह सकते लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इस गीत का नृत्य गोपी कृष्ण जी ने ही तैयार किया होगा। आपको यह भी बताते चलें कि इस फ़िल्म में सरोज ख़ान सहायक नृत्य निर्देशिका थीं।



क्या आप जानते हैं...
कि 'धूप छाँव' शीर्षक से १९३५ में एक फ़िल्म बनी थी जिसमें के. सी. डे के गाये "मन की आँखें खोल बाबा" और "तेरी गठरी में लागा चोर" जैसे गीत हिंदी सिनेमा के पहले पहले 'प्री-रेकॊर्डेड' गीत माने जाते हैं।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०३ /शृंखला ०३
ये है गीत का प्रिल्यूड -


अतिरिक्त सूत्र - मुखड़े में शब्द है "पपीहा".

सवाल १ - इस गीत के कवि गीतकार का नाम बताएं - २ अंक
सवाल २ - १९४८ में आई इस फिल्म के संगीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - प्रमुख नायिका ने जो कि एक मशहूर गायिका भी है, अपने लिए पार्श्वगायन किया था इस गीत में, नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह श्याम कान्त जी ने दमदार वापसी की है दो अंकों के जवाब के साथ. शरद जी ने भी १ अंक चुरा लिया है. दूसरी शृंखला के विजेता अमित जी ने भी खाता खोल लिया है, बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Sunday, November 7, 2010

तुम्हे बांधने के लिए मेरे पास और क्या है मेरा प्रेम है....पंडित नरेद्र शर्मा की साहित्यिक उपलब्धियों से कुछ कम नहीं उनका फ़िल्मी योगदान भी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 521/2010/221

मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस नये सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। हिंदी साहित्य की अगर हम बात करें तो हमारे देश ने एक से एक महान साहित्यकारों को जन्म दिया है। ये वो साहित्यकार हैं जिनकी कलम ने समूचे जगत को बेशकीमती साहित्य प्रदान किया हैं। इन साहित्यकारों में से कई साहित्यकार ऐसे हैं जिन्होंने ना केवल अपने कलम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि अपने कलम के जादू से हिंदी फ़िल्म संगीत जगत को कुछ ऐसे नायाब गीत भी दिए हैं कि जिन्हें पा कर यह फ़िल्मी जगत धन्य हो गया है। ऐसे स्तरीय प्रतिभावान साहित्यकारों के लिखे गीतों ने फ़िल्म संगीत को कम ही सही, लेकिन एक बहुत ऊँचे स्तर तक पहुँचाया है। आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं कुछ ऐसे ही हिंदी भाषा के साहित्यकारों के फ़िल्मों के लिए लिखे हुए गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'दिल की कलम से'। इस शृंखला में हम ना केवल इन साहित्यकारों के लिखे गीत आपको सुनवाएँगे, बल्कि इन महान प्रतिभाओं के जीवन से जुड़ी कुछ बातें भी बताएँगे जिन्हें फ़िल्मी गीतकार के रूप में पाना हमारा सौभाग्य रहा है। "ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है", इस परम सत्य को उजागर करने वाले पंडित नरेन्द्र शर्मा से हम इस शृंखला की शुरुआत कर रहे हैं। पंडित जी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन सच तो यह है कि वो कहीं गये ही नहीं हैं, बल्कि बिखर गये हैं। उनके गीतों, कविताओं, और साहित्य से जब चाहे उन्हें पाया जा सकता है। पंडित नरेन्द्र शर्मा एक व्यक्ति नहीं, एक साथ कई व्यक्ति थे - श्रेष्ठ कवि, महान साहित्यकार, फ़िल्मी और ग़ैर फ़िल्मी गीतकार, दार्शनिक, आयुर्वेद के ज्ञाता, हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी के विद्वान, और उससे भी उपर एक महामनव। हमारे बौने हाथ उनकी उपलब्धियों को छू भी नहीं सकते।

पंडित नरेन्द्र शर्मा के लिखे फ़िल्मी गीतों में से हमने जिस गीत को आज चुना है, वह है फ़िल्म 'रत्नघर' का। संगीतकार सुधीर फड़के के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर की सुमधुर आवाज़ में यह गीत है "तुम्हे बांधने के लिए मेरे पास और क्या है मेरा प्रेम है"। बहुत ही मीठा गीत है। लेकिन इस मीठे गीत को सुनवाने से पहले आइए आपको पंडित नरेन्द्र शर्मा से जुड़ी कुछ और बातें बतायी जाए। सन् १९८९ की ११ फ़रवरी को पंडित जी का निधन हो गया था। एक आत्मा अपने पार्थिव देह को त्याग कर आकाश में विलीन हो गई जिसने यह देह ७६ साल पहले उत्तर प्रदेश के जहांगीरपुर में धारण किया था। वह दिन था २८ फ़रवरी १९१३। चार वर्ष की बालावस्था में ही अपने पिता की उंगली उनके हाथों से छूट गई और वो अपने परिवार में और भी लाडले हो गए। बचपन से ही कविताएँ उनकी साथी बने रहे और शिक्षा पूरी कर होते होते कवि के रूप में उन्हें ख्याति मिलने लगी। १९४३ में भगवती चरण वर्मा के साथ वे बम्बई आ गए और यहाँ आकर जुड़ गए फ़िल्म जगत से। उन्होंने पहली बार बॊम्बे टॊकीज़ की फ़िल्म 'हमारी बात' में गीत लिखे जिनके संगीतकार थे अनिल बिस्वास और अभिनेत्री थीं देविका रानी। पारुल घोष की आवाज़ इस फ़िल्म का "मैं उनकी बन जाऊँ रे" गीत बहुत लोकप्रिय हुआ था। बतौर गीतकार पंडित जी को प्रसिद्धी मिली बॊम्बे टॊकीज़ की ही फ़िल्म 'ज्वार भाटा' से जिसमें भी अनिल दा ही संगीतकार थे। इस फ़िल्म को अभिनय सम्राट दिलीप कुमार की पहली फ़िल्म होने का भी गौरव प्राप्त है। अरुण कुमार और साथियों के गाए "सांझ की बेला पंछी अकेला" गीत ने कवि और साहित्यकार पंडित नरेन्द्र शर्मा को एक फ़िल्मी गीतकार के रूप में स्थापित कर दिया। फिर उसके बाद उन्होंने कई फ़िल्मों में गीत लिखे, जिनमें उल्लेखनीय हैं - उद्धार, आंधियाँ, अफ़सर, भाभी की चूड़ियाँ, रत्नघर, सत्यम शिवम सुंदरम, सुबह, प्रेम रोग। तो आइए 'दिल की कलम से' शृंखला की पहली कड़ी में सुनते हैं पंडित नरेन्द्र शर्मा के लिखे फ़िल्म 'रत्नघर' के इस सुंदर गीत को। मैंने इस गीत को इसलिए चुना है क्योंकि पंडित जी के लिखे तमाम गीतों में यह मेरा सब से पसंदीदा गीत है।



क्या आप जानते हैं...
कि 'विविध भारती' को यह नाम देने वाले और कोई नहीं बल्कि पंडित नरेन्द्र शर्मा ही थे।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली ०२ /शृंखला ०३
ये है गीत का प्रिल्यूड -


अतिरिक्त सूत्र - आवाज़ है रफ़ी साहब की इस गीत में.

सवाल १ - बताएं किस साहित्यकार का लिखा हुआ है ये गीत- २ अंक
सवाल २ - प्रहलाद शर्मा निर्देशित इस फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
तीसरी शृंखला की शुरूआत फीकी रही. केवल अवध जी ही एक अंक कमा पाए. आप सबकी दिवाली बहुत बढ़िया से मनी होगी. अब नए संग्राम के लिए कमर कस लीजिए :)

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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