'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! 'शनिवार विशेषांक' के साथ मैं एक बार फिर हाज़िर हूँ। आज के अंक के लिए मैं ढूंढ़ लाया हूँ कुछ ऐसे गीत जो हैं अलग अलग दौर के, अलग अलग फ़िल्मों के, अलग अलग शब्दों से सजे हुए, पर उन सब में जो समानता है, वह है उनकी धुनें। ये सभी के सभी गीत एक ही मूल धुन पर आधारित है।
गीतकार साहिर लुधियानवी का पहला कामयाब गीत था फ़िल्म 'नौजवान' में "ठण्डी हवायें लहरा के आयें, रुत है जवाँ, तुमको यहाँ, कैसे बुलायें"। दादा सचिन देब बर्मन की यह धुन थी और लता जी की कमसिन आवाज़। गीत बेहद कामयाब हुआ और आज भी इन तीनों कलाकारों के यादगार गीतों में शामिल किया जाता है। सुनते हैं इस गीत को, और फिर उसके बाद देखें कि और कौन से ऐसे छह गीत बने हैं इसी धुन से मिलती-जुलती धुन पर। वैसे आपको बता दें कि यह धुन दादा बर्मन की भी ऑरिजिनल धुन नहीं है, बल्कि एक करीबीयन बैण्ड की धुन का भारतीय संसकरण है।
गीत - ठण्डी हवायें लहरा के आयें (नौजवान)
'नौजवान' फ़िल्म के इस गीत की रेकॉर्डिंग् के समय दादा बर्मन के साहबज़ादे, यानी कि राहुल देब बर्मन भी वहाँ पर मौजूद थे। विविध भारती के 'संगीत सरिता' कार्यक्रम में आशा भोसले और गुलज़ार से बातें करते हुए उन्होंने इस गीत के बारे में कहा था - "अच्छा मुझे एक बात याद आ गई है, कि एक दफ़ा, जैसे कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि जब मैं पहली बार लता बाई से मिला तो "ठण्डी हवायें" करके एक गाना था, उस गाने की रेकॉर्डिंग् में मिला था। उसके कुछ, कुछ, कम से कम २५ साल बाद, एक ऐसी पार्टी हुई कि रोशन जी हमारे घर में आये, और वो भी पिताजी को बहुत प्यार करते थे। तो उन्होंने कहा कि 'दादा, आपका एक गाना मैंने चुराया है'। तो इन लोगों की ऐसी बातें हुआ करती थीं, मैं सुना करता था। तो उन्होंने कहा कि 'भई, कौन सा गाना?' तो बोले कि "ठण्डी हवायें"। तो देखिये रोशन भी कैसे मीटर को लेके अलग गाना बनाते थे। आप "ठण्डी हवायें" अगर गाना सुनें, जो मेरे पिताजी ने बनाया था, उसका मीटर, और रोशन जी नें 'ममता' करके एक पिक्चर किया था, जिसमें "रहें न रहें हम", उसका मीटर सेम है। आप ख़ुद ही गाके देखिये कि किस तरह से वो मीटर लेके यह गाना बनाया। क्यों न हम यह गाना सुनें?"
गीत - रहें न रहें हम (ममता)
इसी तरह से संगीतकार मदन मोहन नें भी इसी धुन और मीटर का इस्तेमाल करते हुए फ़िल्म 'आपकी परछाइयाँ' में गीत कम्पोज़ किया "यही है तमन्ना तेरे घर के सामने, मेरी जान जाए, मेरी जान जाए"। रफ़ी साहब की आवाज़ और राजा मेहन्दी अली ख़ान के बोल। वैसे मदन मोहन नें यह काम रोशन से पहले ही कर चुके थे क्योंकि 'ममता' बनी थी १९६६ में जबकि 'आपकी परछाइयाँ' प्रदर्शित हुई थी १९६२ में। धर्मेन्द्र और उनकी नायिका सुप्रिया चौधरी पर फ़िल्माया यह गीत एक पेप्पी नंबर है जिसमें धर्मेन्द्र की ख़ास "नृत्य शैली" देखी जा सकती है। सुनते हैं इस गीत को भी।
गीत - यही है तमन्ना (आपकी परछाइयाँ)
दोस्तों, पंचम नें तो यह कह दिया कि रोशन नें उनके पिताजी की धुन का इस्तेमाल किया। पर इसी धुन का पंचम नें भी एक बार नहीं बल्कि दो दो बार इस्तेमाल किया। पहली बार १९८१ की फ़िल्म 'नरम गरम' में, जिसमें आशा भोसले का गाया गीत "हमें रास्तों की ज़रूरत नहीं है, हमें तेरे पाँव के निशां मिल गए हैं"। गीतकार थे गुलज़ार। दोस्तों, अब ज़रा इन्हीं बोलों को आप "हमें और जीने की चाहत न होती" गीत की धुन पर गाने की कोशिश करके देखिए ज़रा। गा सके न? जी हाँ, 'अगर तुम न होते' फ़िल्म का शीर्षक गीत भी कुछ कुछ इसी मीटर पे है। इस बार गीतकार हैं गुलशन बावरा। लीजिए दोनों गीत सुनिए एक के बाद एक...
गीत - हमें रास्तों की ज़रूरत नहीं है (नरम गरम)
गीत - हमें और जीने की चाहत न होती (अगर तुम न होते)
"ठण्डी हवायें" का 'नरम गरम' के अलावा पंचम नें 'सागर' फ़िल्म के शीर्षक गीत में भी १९८५ में फिर एक बार इस्तेमाल किया। लता-किशोर का गाया यह डुएट ८० के दशक के सब से हिट डुएट्स में से एक है। गीतकार जावेद अख़्तर। जब पंचम नें ही उस मुलाकात में बताया कि "बाप का माल बहुत चुराया मैंने", तो आशा जी नें कहा कि "आजकल लोग चुराते हैं, बाप का माल ही चुरायें तो अच्छा है"। यह सुन कर तीनों (पंचम, आशा और गुलज़ार) ज़ोर से हँस पड़े।
गीत - सागर किनारे दिल ये पुकारे (सागर)
अरे हाँ दोस्तों, एक और पंचं नंबर याद आ रही है मुझे। १९७६ में एक फ़ैन्टसी फ़िल्म आई थी 'बंडलबाज़' के नाम से जिसमें राजेश खन्ना और सुलक्षणा पण्डित थे और शम्मी कपूर नें तो बोतल में बन्द एक जीन की भूमिका निभाई थी। इस फ़िल्म में लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी से एक बड़ा ख़ूबसूरत गीत गवाया गया था "नग़मा हमारा गायेजा ज़माना"। मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा यह गीत था। आख़िर इस गीत के मुखड़े की शुरुआती धुन भी तो "सागर किनारे" जैसे ही लगती है!
गीत - नग़मा हमारा गायेगा ज़माना (बंडलबाज़)
यहीं पे आके इस धुन की प्रेरणा ख़त्म नहीं हो जाती। अगली पीढ़ी के संगीतकार राम लक्ष्मण नें भी इस धुन का सहारा लेकर अपनी फ़िल्म 'प्यार का तराना' का शीर्षक गीत रच डाला "कहा था जो तुमने क्यों मैंने माना, कि ज़िन्दगी है प्यार का तराना"। लता मंगेशकर और उदित नारायण की आवाज़ों में यह गीत था सन् १९९३ की इस फ़िल्म का। आइए सुनते हैं इस गीत को।
गीत - कहा था जो तुमने क्यों मैंने माना (प्यार का तराना)
तो देखा दोस्तों, किस तरह से एक मूल धुन में फेर बदल कर संगीतकारों नें कितने कामयाब गीत रच डाले हैं। आशा है आपको आज का यह अंक पसन्द आया होगा, आगे भी इस तरह का "स्वर-छाया" आप तक पहुँचाते रहेंगे। अब आज की इस प्रस्तुति को समाप्त करने की अपने दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार!