Saturday, February 14, 2009

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'ठाकुर का कुआँ''



उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'ठाकुर का कुआँ'

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ''पुत्र-प्रेम'' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "ठाकुर का कुआँ", जिसको स्वर दिया है डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 7 मिनट 42 सेकंड।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।



मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं
~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६)

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी

‘हाथ-पांव तुड़वा आएगी और कुछ न होगा। बैठ चुपके से। ब्राह्मण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेगें, साहूजी एक पांच लेंगे। गरीब का दर्द कौन समझता हैं? हम तो मर भी जाते है, तो कोई दुआर पर झाँकने नहीं आता, कंधा देना तो बड़ी बात है। ऐसे लोग कुएँ से पानी भरने देंगे?’(प्रेमचंद की "ठाकुर का कुआँ" से एक अंश)


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#Twenty Fifth Story, Maa: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2009/06. Voice: Dr. Mridul Kirti

Friday, February 13, 2009

खुदाया खैर...एक बार फ़िर शाहरुख़ की आवाज़ बने अभिजीत




"बड़ी मुश्किल है, खोया मेरा दिल है..." शाहरुख़ खान के उपर फिल्माए गए इस गीत में आवाज़ थी अभिजीत भट्टाचार्य की. जब ये गीत आया तो श्रोताओं को लगा कि यही वो आवाज़ है जो शाहरुख़ के ऑन स्क्रीन व्यक्तित्व को सहज रूप से उभरता है. पर शायद वो ज़माने लद चुके थे जब नायक अपनी फिल्मों के लिए किसी ख़ास आवाज़ की फरमाईश करता था. जहाँ शाहरुख़ के शुरूआती दिनों में कुमार सानु ने उनके गीतों को आवाज़ दी (कोई न कोई चाहिए..., और काली काली ऑंखें...), वहीँ बाद में उनकी रोमांटिक हीरो की छवि पर उदित नारायण की आवाज़ कुछ ऐसे जमी की सुनने वाले बस वाह वाह कर उठे, "डर" और "दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगें" के गीत आज तक सुने और याद किए जाते हैं.

फ़िर हीरो की छवि बदली, पहले जिस नायक का लक्ष्य नायिका को पाना मात्र होता था, वह अब अपने कैरिअर के प्रति भी सजग हो चुका था. वो चाँद तारे तोड़ने के ख्वाब सजाने लगा और ऐसे नायक को परदे पर साकार किया शाहरुख़ ने एक बार फ़िर अपनी फ़िल्म "येस् बॉस" में और यहाँ फ़िर से मिला उन्हें अभिजीत की आवाज़ का साथ और इस फ़िल्म के गीतों ने इस नायक-गायक की जोड़ी को एक नई पहचान दी. पर ये वो दौर था जब समय चक्र तेज़ी से बदल रहा था, और शाहरुख़ खान रुपी नायक ने भी बदलते किरदारों को जीते हुए अलग अलग आवाजों में ख़ुद को आजमाना शुरू किया.

"दिल से" में ऐ आर रहमान ने शाहरुख़ पर फिल्माए गए ४ गीतों में चार अलग अलग आवाजों का इस्तेमाल किया, जिसमें सुखविंदर (छैयां छैयां), उदित नारायण (ऐ अजनबी), सोनू निगम (सतरंगी रे) और ख़ुद ऐ आर आर ने आवाज़ दी फ़िल्म के शीर्षक गीत को. दरअसल अब संगीतकार गायक का चुनाव करते समय गीत के मूड को सर्वोपरि रखने लगे थे, बाकि उस आवाज़ को अपनी आवाज़ से मिलाने का काम नायक का होने लगा. उर्जा से भरे शाहरुख़ खान को अब अपने जोशीले गानों के लिए सुखविंदर जैसी दमदार आवाज़ मिल गई थी वहीँ भावनात्मक गीतों के लिए वो कभी सोनू निगम, कभी उदित तो कभी रूप कुमार राठोड की आवाजों में ख़ुद को ढालने लगे, और इन सब के बीच अभिजीत कहीं पीछे छूट गए.

"चलते चलते" में वो फ़िर से शाहरुख़ की आवाज़ बने, फ़िर बहुचर्चित "मैं हूँ न" में उनका सामना सीधे तौर पर सोनू निगम से हुआ, जब फ़िल्म का शीर्षक गीत जो दो संस्करण में था, एक को आवाज़ दी सोनू ने तो इसी गीत का दर्द संस्करण गाया अभिजीत ने. रजत पटल पर शाहरुख़ ने एक लंबा सफर तय किया है और बेशक अभिजीत ने उनके लिए कुछ बेहद यादगार गीतों को गाकर उनके इस सफर में एक अहम् भूमिका अदा की है. "तुम आए तो..." "अयाम दा बेस्ट.." (फ़िर भी दिल है हिन्दुस्तानी), "तौबा तुम्हारे ये इशारे...", "सुनो न..." "चलते चलते..." (चलते चलते), "चाँद तारे...", "मैं कोई ऐसा..." (येस् बॉस), "रोशनी से...", "रात का नशा..." (अशोक), और "धूम ताना...."( ओम् शान्ति ओम्), जैसे गीत शाहरुख़ के लिए गाने के आलावा अभीजीत ने कुछ और भी बेहतरीन गीत गाये जो अन्य नायकों पर फिल्माए गए जैसे, - "तुम दिल की धड़कन में...", "आँखों में बसे हो तुम..."(टक्कर), "एक चंचल शोख हसीना...","चांदनी रात है..."(बागी), "ये तेरी ऑंखें झुकी झुकी..."(फरेब) और "लम्हा लम्हा दूरी..."(गैंगस्टर).

कानपूर में जन्में अभिजीत ने अपने "ख्वाबों" का पीछे करते हुए १९८१ में अपने परिवार की इच्छाओं को ठुकराकर मुंबई को अपना घर बना लिया और चार्टेड एकाउंटेंट की पढ़ाई को छोड़कर, पार्श्वगायन को अपना लक्ष्य. देव आनंद की फ़िल्म 'आनंद और आनंद" से उन्होंने शुरुआत की, इस फ़िल्म में उनका गाया "मैं आवारा ही सही..." सुनकर एक बार किशोर दा उनसे कहा- "तुम बहुत सुर में गाते हो..". अभिजीत आज भी मानते हैं कि किशोर दा की ये टिपण्णी उनके लिए दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार है. अपनी एल्बम "तेरे बिना" जो कि बहुत मकबूल भी हुई से अभिजीत ने संगीत निर्देशन के क्षेत्र में भी ख़ुद को उतार दिया है. आजकल वो एक टेलेंट शो में बतौर निर्णायक भी खासी चर्चा बटोर रहे हैं.

शाहरुख़ की सबसे ताज़ा फ़िल्म में भी एक नर्मो नाज़ुक अंदाज़ का गीत उनके हिस्से आया है, अभिजीत को गायिकी की एक और सुरीली पारी की शुभकामनायें देते हुए आईये सुनें फ़िल्म "बिल्लू" (जो कि पहले बिल्लू बार्बर थी) का ये गीत जिसे लिखा है गुलज़ार ने और सुरों में पिरोया है प्रीतम ने -






Thursday, February 12, 2009

मिलिए उभरती हुई पार्श्व गायिका तरन्नुम मालिक से




लगभग एक महीने पहले आवाज़ पर हमने एक नए गीत "एक धक्का दो..." का विश्वव्यापी उदघाटन किया था, जिसे जबरदस्त सराहना मिली थी. उभरते हुए निर्देशक/गीतकार अभिषेक भोला (जिनकी आने वाली फ़िल्म "कॉफी" को हिंद युग्म मीडिया सहयोग प्रदान करने जा रहा है) ने इस गीत के बोल लिखे थे, धुन और आवाज़ थी, फ़िल्म इंडस्ट्री में तेज़ी से कमियाबी की सीढियां चढ़ती गायिका तरन्नुम मालिक की. इस गीत का विडियो भी बेहद चर्चित हुआ था जिसे ख़ुद अभिषेक ने निर्देशित किया था. आज हम आपकी मुलाकात इस गीत की गायिका तरन्नुम मालिक से करवा रहे हैं. मात्र २१ वर्षीया इस युवा गायिका ने बहुत कम समय में ही इंडस्ट्री के बड़े नामों को अपनी प्रतिभा से प्रभावित किया है. इससे पहले कि हम बातचीत शुरू करें, संगीतकार शंकर एहसान और लॉय के निर्देशन में उनका गाया फ़िल्म "जोंनी गद्दार" का ये दमदार गीत सुनिए -



दिल्ली में जन्मी तरन्नुम को संगीत विरासत में मिला, उनके पिता रमेश मालिक ने बचपन से ही उनके हुनर को पहचाना और उनके दिशा निर्देश में में तरन्नुम ने पार्श्व गायन को अपना कैरिअर चुना. निरंतर रियाज़ और स्टेज कार्यक्रमों ने उन्हें इस काबिल बना दिया कि अनु मालिक (शादी न.०१), मोंटी शर्मा (अपने), आनंद राज आनंद (चाहत एक नशा और नहले पे देहला), जतिन पंडित, और शंकर एहसान लॉय (जोंनी गद्दार और हाई स्कूल म्युझिकल २) जैसे बड़े संगीतकार ने न सिर्फ़ उन्हें ब्रेक दिया, बल्कि देश विदेश में हुए अपने संगीत आयोजनों में शिरकत का मौका भी दिया. कविता कृष्णमूर्ती, अनुराधा पौडवाल, नरेंदर चंचल, और स्वर्गीय महेन्दर कपूर जैसे गायकों का आशीर्वाद उन्हें मिला है. आई मिलें तरन्नुम से -

हिंद युग्म - तरन्नुम स्वागत है आपका हिंद युग्म आवाज़ पर, आपका गाना "एक धक्का दो..." ने लोगों को नींद से जगाने का काम किया है, जिसने भी सुना है पसंद किया है....कैसा लग रहा है आपको ?

तरन्नुम- मैं और मेरे टीम के साथी बहुत खुश है जो आप लोगो ने इस गाने को इतना पसंद किया सराहा और मैं ये कहना चाहूँगीं हम सब की मेहनत आख़िर रंग लायी. अभी तक जहाँ जहाँ गाना प्रसारित हुआ है वहाँ कुछ इंसान भी अगर दिन में एक बार राष्ट्र के लिए सोच लें तो हमारा गीत बनाने का उद्देश्य पूरा हो जायेगा.... और किसी प्रयास की सराहना मिलने पर खुशी तो होती ही है...

हिंद युग्म - इस गाने की मेकिंग के बारे में कुछ बताईये ?

तरन्नुम - गाने की मेकिंग के बारे में तो आप जानते ही हैं... अभिषेक ने एक एस एम् एस किया मैंने उसको धुन में गाकर सुना दिया... फ़िर एक एक करके सब लोग जुड़ते गए... ब्रिन्जी ने प्रोग्रम्मिंग का जिम्मा लिया और जुबीन ने अपने स्टूडियो में रिकॉर्ड करने की अनुमति... फ़िर संगीतकार ललित सेन जी ने मिक्सिंग और री-रिकॉर्डिंग की... फ़िर ऍफ़ एम् में लोगों से मिले तो उनको गाना प्रसारित करने के लिए इस पर किसी कम्पनी की मुहर चाहिए थी... एक कंपनी में गये तो उनको वीडियो चाहिए था... इसलिए और मित्र जुड़े और विडियो भी बन गया...

हिंद युग्म - बहुत बड़ी टीम है इस गाने में किसने और कैसे इतना सब manage हो पाया ?

तरन्नुम- यह सब केवल इसलिए सम्भव हो पाया क्योंकि देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सबमें रोष है... और सब चाहते थे की कुछ किया जाए... और इस गीत के माध्यम से सबने अपने अपने तरीके से अपनी भावनाएं व्यक्त की...

हिंद युग्म - आप अपने अब तक के संगीत सफर के बारे में कुछ बताईये ?

तरन्नुम - जब छोटी थी तो शौक के तौर पर गाती थी... मेरे पिता जी की पृष्ठभूमि ग्वालियर घराना की रही है इसलिए उनको लगा कि मैं इस क्षेत्र में कुछ कर सकती हूँ.. उन्होंने मुझे सिखाना शुरू किया फ़िर सिंह बंधू मेरे गुरु रहे और तब कई बड़ी हस्तियों के साथ गाने का अवसर मिला... जब गुरु जी और मेरे पिता को लगा की गायन में कुछ परिपक्वता आ गई है.. तो हम दिल्ली से मुंबई आ गए... यहाँ भी मैं सुरेश वाडेकर जी से सीखती रही... और पहली बार मुझे आनंद राज आनंद जी के साथ हिन्दी फ़िल्म "चाहत एक नशा" फ़िल्म में गाने का अवसर प्राप्त हुआ... फ़िर रविंदर जैन जी से भी सीखना जारी रहा और साथ साथ रिकॉर्डिंग भी... उसके बाद... धीरे धीरे मुझे कुछ बड़ी फिल्में भी मिलने लगी.. जिनमें से "अपने", "जोनी गद्दार", "हाई स्कूल म्युझिकल २", "धूम धडाका" और "नहले पे दहला" प्रमुख हैं... फिलहाल और ज्यादा सीखने और, और अच्छा गाने में प्रयास रत हूँ...

हिंद युग्म - फ़िल्म जगत में किसे आप अपना रोल मॉडल मानती हैं ?

तरन्नुम - मैं उन सभी लोगों को अपना रोल मॉडल मानती हूँ जिस जिस ने संगीत की साधना की है चाहे हो मेरे कलीग हों या फिर नामी संगीतकार.

हिंद युग्म - हिंद युग्म और आवाज़ से जुड़ कर आपको कैसा लगा ?

तरन्नुम - मुझे हिन्दयुग्म से जुड़े कुछ समय ही हुआ है लेकिन जिस उद्देश्य से इसकी स्थापना हुयी है और जिस तरह से उनकी पूर्ति के प्रयास किए जा रहे है इसका एक हिस्सा बनकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है...

हिंद युग्म - ARR को गोल्डन ग्लोब मिला है आने वाले समय में आप भारतीय संगीत किस उंचाईयों पर देख रही हैं ?

तरन्नुम- मैं मानती हूँ कि आजकल हम भारतीय विदेशी अवार्ड जैसे ऑस्कर, ग्रेम्मी, गोल्डन ग्लोब पर ज्यादा ही केंद्रित होते जा रहे हैं... जबकि भारतीय संगीत अवार्ड श्रेणी से कहीं ज्यादा उपर है... कलाकार के लिए अवार्ड एक कोम्प्लिमेंट होता है... और यह अच्छी बात है की रहमान जी को विश्व स्तर पर मिला... इस से पहले भारतीय मूल की नोरा जॉन्स और आशा जी को भी इस स्तर पर सराहना मिल चुकी है...

हिंद युग्म - हमने अपनी साईट के माध्यम से बहुत से नए फनकारों को एक मंच दिया है क्या आपने किसी को सुना हैं इनमें से ?

तरन्नुम - मुझे हिन्दयुग्म से जुड़े थोड़ा समय ही हुआ है इसलिए मैं सभी गीत तो नहीं सुन सकी लेकिन अब जब भी ऑनलाइन होती हूँ तो जरूर सुनती हूँ... कुछ गाने हर लिहाज से बहुत ही अच्छे हैं और सुनने लायक तो सभी हैं...

हिंद युग्म - चलिए संगीत से इतर कुछ अपनी व्यक्तिगत पसंद /नापसंद बताईये ?

तरन्नुम - संगीत के अलावा मुझे सामान्य नृत्य, पालतू जीव पसंद हैं और नापसंद तो मुझे कुछ भी नहीं....

हिंद युग्म - किन संगीत कारों के साथ काम करना सपना है तरन्नुम का. ?

तरन्नुम- मेरा सपना हमेशा से ही रहमानजी के साथ कम करने का है जो मैं आशा करती हूँ जल्द पूरा होगा...

हिंद युग्म - ईश्वर करे आपका हर सपना सच हो, आपको एक उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें और जाते जाते हमारे श्रोताओं के लिए क्या कहना चाहेंगी आप ?

तरन्नुम - आपका बहुत बहुत धन्यवाद मैं श्रेताओ को यही कहूँगी कि सीखना बनने से अधिक महत्व रखता है और कला के किसी भी क्षेत्र में सीखने का अंत नहीं है... इसलिए जहाँ से जो भी सार्थक सीखने को मिले हमें सीख लेना चाहिए...

चलते चलते देखते जाईये लाइव परफोर्म करती तरन्नुम की ये झलक. -




Wednesday, February 11, 2009

मेरी प्यास हो न हो जग को...मैं प्यासा निर्झर हूँ...- कवि गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा जी की याद में



महान कवि और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रही है सुपुत्री लावण्य शाह -

काव्य सँग्रह "प्यासा ~ निर्झर" की शीर्ष कविता मेँ कवि नरेँद्र कहते हैँ-

"मेरे सिवा और भी कुछ है,
जिस पर मैँ निर्भर हूँ
मेरी प्यास हो ना हो जग को,
मैँ,प्यासा निर्झर हूँ"


हमारे परिवार के "ज्योति -कलश" मेरे पापा और फिल्म "भाभी की चूडीयाँ " फिल्म के गीत मेँ,"ज्योति कलश छलके" शब्द भी उन्हीँ के लिखे हुए हैँ जिसे स्वर साम्राज्ञी लता दीदी ने भूपाली राग मेँ गा कर फिल्मोँ के सँगीत मेँ साहित्य का,सुवर्ण सा चमकता पृष्ठ जोड दिया !"यही हैँ मेरे लिये पापा"!

हमारे परिवार के सूर्य !
जिनसे हमेँ ज्ञान, भारतीय वाँग्मय, साहित्य,कला,संगीत,कविता तथा शिष्टाचार के साथ इन्सानियत का बोध पाठ भी सहजता से मिला- ये उन के व्यक्तित्त्व का सूर्य ही था जिसका प्रभामँडल "ज्योति कलश" की भाँति, उर्जा स्त्रोत बना हमेँ सीँचता रहा -


मेरे पापा उत्तर भारत, खुर्जा ,जिल्ला बुलँद शहर के जहाँगीरपुर गाँव के पटवारी घराने मेँ जन्मे थे.प्राँरभिक शिक्षा खुर्जा मेँ हुई -इलाहबाद विश्वविद्यालय से अँग्रेजी साहित्य मेँ M/A करनेके बाद, वे विविध प्रकार की साहित्यिक गतिविधियोँ से जुडे रहे
जैसा यहाँ सुप्रसिद्ध लेखक मेरे चाचा जी अमृत लाल नागर जी लिखते हैँ -"अपने छात्र जीवन मेँ ही कुछ पैसे कमाने के लिये नरेन्द्र जी कुछ दिनोँ तक "भारत" के सँपादीय विभाग मेँ काम करते थे. शायद "अभ्युदय" के सँपादीकय विभाग मेँ भी उन्होने काम किया था. M.A पास कर चुकने के बाद वह अकेले भारतीय काँग्रेस कमिटी के दफ्तर मेँ भी हिन्दी अधिकारी के रुप मेँ काम करने लगे. उस समय जनता राज मेँ राज्यपाल रह चुकनेवाले श्री सादिक अली(पढेँ यह आलेख सादिक अली जी द्वारा लिखा हुआ )और भारत के दूसरे या तीसरे सूचना मँत्री के रुप मेँ काम कर चुकनेवाले स्व. बालकृष्ण केसकर भी उनके साथ काम करते थे.एक बार मैँने उन दिनोँ का एक फोटोग्राफ भी बँधु के यहाँ देखा था. उसी समय कुछ दिनोँ के लिये वह कोँग्रेस के अध्यक्ष पँडित जवाहरलाल नेहरु के कार्यालय के सचिव भी रहे थे. इतने प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्होँने कभी, किसी से किसी प्रकार की मदद नहीं माँगी.फिल्मोँ मेँ उन्होँने सफल गीतकार के रुप मेँ अच्छी ख्याति अर्जित की. उससे भी अधिक ज्योतीषी के रुप मेँ भी उन्होँने वहाँ खूब प्रतिष्ठा पायी."

जैसा यहाँ नागर जी चाचा जी ने लिखा है, पापा कुछ वर्ष आनँद भवन मेँ अखिल भारतीय कोँग्रेस कमिटि के हिँदी विभाग से जुडे और वहीँ से २ साल के लिये,नज़रबंद किये गए -देवली जेल मेँ भूख हडताल से (१४ दिनो तक) ....जब बीमार हाल मेँ रिहा किए गए तब गाँव, मेरी दादीजी गँगादेवी से मिलने गये - ---जहाँ बँदनवारोँ को सजा कर देशभक्त कवि नरेन्द्र का हर्षोल्ल्लास सहित स्वागत किया गया - वहीँ से श्री भगवती चरण वर्मा जी ("चित्रलेखा" के प्रसिद्ध लेखक)के आग्रह से बम्बई आ बसे -वहीँ गुजराती कन्या सुशीला से पँतजी के आग्रह से व आशीर्वाद से पाणि ग्रहण सँस्कार संपन्न हुए. बारात मेँ हिँदी साहित्य जगत और फिल्म जगत की महत्त्व पूर्ण हस्तियाँ हाजिर थीँ --

श्री अमृतलाल नागर - संस्मरण : ~~~~
"खुर्जा कुरु जाँगल का ही बिगडा हुआ नाम है.उनके पिता पँडित पूरनलाल जी गौड जहाँगीरपुर ग्राम के पटवारी थे बडे कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, सात्विक विचारोँ के ब्राह्मण !अल्पायु मेँ ही उनका देहावसन हो गया था. उनके ताऊजी ने ही उनकी देखरेख की और पालन पोषण उनकी गँगा स्वरुपा माता स्व. गँगादेवी ने ही किया. आर्यसमाज और राष्ट्रीय आँदोलन के दिन थे, इसलिये नरेन्द्र जी पर बचपन से ही सामाजिक सुधारोँ का प्रभाव पडा, साथ ही राष्ट्रीय चेतना का भी विकास हुआ. नरेन्द्रजी अक्सर मौज मेँ आकर अपने बचपन मेँ याद किया हुआ एक आर्यसमाजी गीत भी गाया करते थे, मुझे जिसकी पँक्ति अब तक याद है -
- "वादवलिया ऋषियातेरे आवन की लोड"

लेकिन माताजी बडी सँस्कारवाली ब्राह्मणी थीँ उनका प्रभाव बँधु पर अधिक पडा. जहाँ तक याद पडता है उनके ताऊजी ने उन्हेँ गाँव मेँ अँग्रेजी पढाना शुरु किया था बाद मेँ वे खुर्जा के एक स्कूल मेँ भर्ती कराये गये. उनके हेडमास्टर स्वर्गीय जगदीशचँद्र माथुर के पिता श्री लक्ष्मीनारायण जी माथुर थे. लक्ष्मीनारायण जी को तेज छात्र बहुत प्रिय थे. स्कूल मे होनेवाली डिबेटोँ मेँ वे अक्सर भाग लिया करते थे. बोलने मेँ तेज ! इन वाद विवाद प्रतियोगिताओं मेँ वे अक्सर फर्स्ट या सेकँड आया करते थे.

जगदीशचँद्र जी माथुर नरेन्द्र जी से आयु मे चार या पाँच साल छोटे थे. बाद मेँ तत्कालीक सूचना मँत्री बालकृष्ण केसकर ने उन्हेँ आकाशवाणी के डायरेक्टर जनरल के पद पर नियुक्त किया. जगदीशचँद्र जी सुलेखक एवँ नाटककार भी थे तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे पढते समय भी उनका श्रद्धेय सुमित्रा नँदन पँत और नरेन्द्र जी से बहुत सँपर्क रहा. वह बँधुको सदा "नरेन्द्र भाई" ही कहा करते थे --अवकाश प्राप्त करने के बाद,एक बार,मेरी उनसे दिल्ली मेँ लँबी और आत्मीय बातेँ हुईँ थी उन्होँने ही मुझे बताया था कि उनके स्वर्गीय पिताजी ने ही उन्हेँ (बँधु को) सदा "नरेन्द्र भाई" कहकर ही सँबोधित करने का आदेश दिया था. नरेन्द्र जी इलाहाबाद मेँ रहते हुए ही कविवर बच्चन, शमशेर बहादुर सिँह, केदार नाथ अग्रवाल और श्री वीरेश्वर से जो बाद मेँ "माया" के सँपादक हुए ,उनका घनिष्ट मैत्री सँबध स्थापित हो गया था. ये सब लोग श्रद्धेय पँतजी के परम भक्त थे. और पँतजी का भी बँधु के प्रति एक अनोखा वात्सल्य भाव था, वह मैँने पँतजी के बम्बई आने और बँधु के साथ रहने पर अपनी आँखोँ से देखा था.

नरेन्द्र जी के खिलँदडेपन और हँसी - मजाक भरे स्वभाव के कारण दोनोँ मेँ खूब छेड छाड भी होती थी. किन्तु, यह सब होने के बावजूद दोनोँ ने एक दूसरे को अपने ढँग से खूब प्रभावित किया था. नरेन्द्र जी की षष्ठिपूर्ति के अवसर पर, बँबईवालोँ ने एक स्मरणीय अभिनँदन समारोह का आयोजन किया था. तब तक सुपर स्टार चि. अमिताभ के पिता की हैसियत से आदरणीय बच्चन भाई भी बम्बई के निवासी हो चुके थे. उन्होँने एक बडा ही मार्मिक और स्नेह पूर्ण भाषण दिया था, जो नरेन्द्र के अभिनँदन ग्रँथ "ज्योति ~ कलश" मेँ छपा भी है.

उक्त अभिनँदन समारोह मेँ किसी विद्वान ने नरेन्द्र जी को प्रेमानुभूतियोँ का कवि कहा था !इस बात को स्वीकार करते हुए भी बच्चन भाई ने बडे खुले दिल से यह कहा था कि अपनी प्रेमाभिव्यक्तियोँ मेँ भी नरेन्द्र जी ने जिन गहराइयोँ को छुआ है और सहज ढँग से व्यक्त किया वैसा छायावाद का अन्य कोई कवि नहीँ कर पाया !(पूरा पढ़ें..)

भारत कोकिला श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी जी की एक फिल्म् "मीरा" हिन्दी मेँ डब कर रहा था और इस निमित्त से वह और उनके पति श्रीमान् सदाशिवम् जी बँबई ही रह रहे थे। बँधुवर नरेन्द्रजी ने उक्त फिल्म के कुछ तमिल गीतोँ को हिन्दी मे इस तरह रुपान्तरित कर दिया कि वे मेरी डबिँग मेँ जुड सकेँ। सदाशिवं जी और उनकी स्वनामधन्य पत्नी तथा तथा बेटी राधा हम लोगोँ के साथ व्यावसायिक नहीँ किन्तु पारिवारिक प्रेम व्यवहार करने लगे थे. सदाशिवं जी ने बँबई मेँ ही एक नयी शेवरलेट गाडी खरीदी थी.वह जोश मेँ आकर बोले,"इस गाडी मेँ पहले हमारा यह वर ही यात्रा करेगा !"

गाडी फूलोँ से खूब सजाई गई उसमेँ वर के साथ माननीय सुब्बुलक्ष्मी जी व प्रतिभा बैठीँ । समधी का कार्य श्रद्धेय सुमित्रनँदन पँत ने किया। बडी शानदार बारात थी !बँबई के सभी नामी फिल्मस्टार और नृत्य - सम्राट उदयशँकर जी उस वर यात्रा मेँ सम्मिलित हुए थे.बडी धूमधाम से विवाह हुआ.मेरी माता बंधु से बहुत प्रसन्न् थी और पँत जी को ,जो उन दिनोँ बँबई मेँ ही नरेन्द्र जी के साथ रहा करते थे, वह देवता के समान पूज्य मानती थी ।मुझसे बोली,"नरेन्द्र और बहु का स्वागत हमारे घर पर होगा !"

दक्षिण भारत कोकिला : सुब्बुलक्षमीजी, सुरैयाजी, दीलिप कुमार, अशोक कुमार, अमृतलाल नागर व श्रीमती प्रतिभा नागरजी, भगवती बाब्य्, सपत्नीक, अनिल बिश्वासजी, गुरु दत्तजी, चेतनानँदजी, देवानँदजी इत्यादी सभी इस विलक्षण विवाह मेँ सम्मिलित हुए थे और नई दुल्हन को कुमकुम के थाल पर पग धरवा कर गृह प्रवेश करवाया गया उस समय सुरैया जी तथा सुब्बुलक्ष्मी जी मे मँगल गीत गाये थे और जैसी बारात थी उसी प्रकार बम्बई के उपनगर खार मेँ, १९ वे रास्ते पर स्थित उनका आवास भी बस गया - न्यू योर्क भारतीय भवन के सँचालक श्रीमान डा.जयरामनजी के शब्दोँ मेँ कहूँ तो "हिँदी साहित्य का तीर्थ - स्थान" बम्बई जेसे महानगर मेँ एक शीतल सुखद धाम मेँ परिवर्तित हो गया --

मेरी अम्मा स्व. श्रीमती सुशीला नरेन्द्र शर्मा का एक सँस्मरण है ~~
जब मुझसे बडी बहन वासवी का जन्म हो गया था तब पापा जी और अम्मा सुशीला माटुँगा तैकलवाडी के घर पर रहते थे इसी २ कमरे वाले फ्लैट मेँ कवि श्रेष्ठ श्री सुमित्रा नँदन पँत जी भी पापा जी के साथ कुछ वर्ष रह चुके थे -एक दिन पापाजी और अम्मा बाज़ार से सौदा लिये किराये की घोडागाडी से घर लौट रहे थे -अम्मा ने बडे चाव से एक बहुत महँगा छाता भी खरीदा था -जो नन्ही वासवी (मेरी बडी बहन ) और साग सब्जी उतारने मेँ अम्मा वहीँ भूल गईँ -जैसे ही घोडागाडी ओझल हुई कि वह छाता याद आ गया !पापा जी बोले, "सुशीला, तुम वासवी को लेकर घर जाओ, वह दूर नहीँ गया होगा मैँ अभी तुम्हारा छाता लेकर आता हूँ !"

अम्मा ने बात मान ली और कुछ समय बाद पापा जी छाता लिये आ पहुँचे !कई बरसोँ बाद अम्मा को यह रहस्य जानने को मिला कि पापा जी दादर के उसी छातेवाले की दुकान से हुबहु वैसा ही एक और नया छाता खरीद कर ले आये थे ताकि अम्मा को दुख ना हो !इतने सँवेदनाशील और दूसरोँ की भावनाओँ का आदर करनेवाले,उन्हेँ समझनेवाले भावुक कवि ह्र्दय के इन्सान थे मेरे पापा जी !


आज याद करूँ तब ये क्षण भी स्मृति मेँ कौँध - कौँध जाते हैँ .
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(अ) हम बच्चे दोपहरी मेँ जब सारे बडे सो रहे थे,पडोस के माणिक दादा के घर से कच्चे पक्के आम तोड कर किलकारियां भर रहे थे कि,अचानक पापाजी वहाँ आ पहुँचे ----
गरज कर कहा,
"अरे ! यह आम पूछे बिना क्योँ तोडे ?
जाओ, जाकर माफी माँगो और फल लौटा दो"
एक तो चोरी करते पकडे गए और उपर से माफी माँगनी पडी !!!
- पर अपने और पराये का भेद आज तक भूल नही पाए
-- यही उनकी शिक्षा थी --

( ब ) मेरी उम्र होगी कोई ८ या ९ साल की
- पापाजी ने, कवि शिरोमणि कवि कालिदास की कृति "मेघदूत" से पढनेको कहा --
सँस्कृत कठिन थी परँतु, जहाँ कहीँ , मैँ लडखडाती,
वे मेरा उच्चारण शुध्ध कर देते --
आज, पूजा करते समय , हर श्लोक के साथ ये पल याद आते हैँ --

( क ) मेरी पुत्रा सिँदूर के जन्म के बाद जब भी रात को उठती,
पापा , मेरे पास सहारा देते , मिल जाते
-- मुझसे कहते, " बेटा, मैँ हूँ , यहाँ " ,..................
आज मेरी बिटिया की प्रसूती के बाद,
यही वात्सल्य उँडेलते समय,
पापाजी की निस्छल, प्रेम मय वाणी और
स्पर्श का अनुभव हो जाता है ..
जीवन अत्तेत के गर्भ से उदित होकर,
भविष्य को सँजोता आगे बढ रहा है -


कुछ और यादेँ हैँ जिन्हेँ आप के साथ साझा कर रही हूँ -

*काव्यमय वाणी*
मैँ जब छोटी बच्ची थी तब,अम्मा व पापा जी का कहना है कि,अक्सर काव्यमय वाणी मेँ ही अपने विचार प्रकट किया करती थी !

अम्मा कभी कभी कहती कि,

"सुना था कि मयुर पक्षी के अँडे, रँगोँ के मोहताज नहीँ होते !
उसी तरह मेरे बच्चे पिता की काव्य सम्पत्ति की विरासत मेँ साथ लेकर आये हैँ !"

यह एक माँ का गर्व था जो छिपा न रह पाया होगा. या,उनकी ममता का अधिकार उन्हेँ मुखर कर गया था शायद !

कौन जाने ?

परँतु आज जो मेरी अम्मा ने मुझे बतलाया था

उसे आप के साथ बाँट रही हूँ -

तो सुनिये,
एक बार मैँ, मेरी बचपन की सहेली लता,बडी दीदी वासवी, - हम तीनोँ खेल रहे थे.वसँत ऋतु का आगमन हो चुका था
और होली के उत्सव की तैयारी बँबई शहर के गली मोहोल्लोँ मेँ ,जोर शोरोँ से चल रही थीँ -खेल खेल मेँ लता ने ,मुझ पर एक गिलास पानी फेँक कर मुझे भीगो दीया !मैँ भागे भागे अम्मा पापाजी के पास दौड कर पहुँची और अपनी गीली फ्रोक को शरीर से दूर खेँचते हुए बोली,

"पापाजी, अम्मा ! देखिये ना !
मुझे लताने ऐसे गीला कर दिया है
जैसे मछली पानी मेँ होती है !"

इतना सुनते ही,अम्मा ने मुझे वैसे,गीले कपडोँ समेत खीँचकर. प्यार से गले लगा लिया !

बच्चोँ की तोतली भाषा, सदैव बडोँ का मन मोह लेती है.

माता,पिता को अपने शिशुओँ के प्रति ऐसी उत्कट ममता रहती है कि, उन्हेँ हर छोटी सी बात ,विद्वत्तापूर्ण और अचरजभरी लगती है मानोँ सिर्फ उन्ही के सँतान इस तरह बोलते हैँ - चलते हैँ, दौडते हैँ -

पापा भी प्रेमवश, मुस्कुरा कर पूछने लगे,

"अच्छा तो बेटा,
मछली ऐसे ही गीली रहती है पानी मेँ?
तुम्हेँ ये पता है ?"

"हाँ पापा, एक्वेरीयम (मछलीघर)मेँ देखा था ना हमने !"
मेरा जवाब था --
हम बच्चे,सब से बडी वासवी, मैँ मँझली लावण्या, छोटी बाँधवी व भाई परितोष अम्मा पापा की सुखी, गृहस्थी के छोटे, छोटे स्तँभ थे !
उनकी प्रेम से सीँची फुलवारी के हम महकते हुए फूल थे!

आज जब ये याद कर रही हूँ तब प्रिय वासवी और वे दोनोँ ,हमारे साथ स -शरीर नहीँ हैँ !

उनकी अनमोल स्मृतियोँ की महक
फिर भी जीवन बगिया को महकाये हुए है.

हमारे अपने शिशु बडे हो गये हैँ -
- पुत्री सौ. सिँदुर का पुत्र नोआ ३ साल का हो गया है !
फुलवारी मेँ आज भी,फूल महक रहे हैँ !

यह मेरा परम सौभाग्य है और मैँ,लावण्या,सौभाग्यशाली हूँ
कि मैँ पुण्यशाली , सँत प्रकृति कवि ह्रदय के लहू से सिँचित,
उनके जीवन उपवन का एक फूल हूँ --

उन्हीँके आचरणसे मिली शिक्षा व सौरभ सँस्कार,
मनोबलको, हर अनुकूल या विपरित जीवन पडाव पर
मजबूत किये हुए,जी रही हूँ !

उनसे ही ईश्वर तत्व क्या है उसकी झाँकी हुई है -
- और,मेरी कविता ने प्रणाम किया है --

"जिस क्षणसे देखा उजियारा,
टूट गे रे तिमिर जाल !
तार तार अभिलाषा तूटी,
विस्मृत घन तिमिर अँधकार !
निर्गुण बने सगुण वे उस क्षण ,
शब्दोँ के बने सुगँधित हार !
सुमन ~ हार, अर्पित चरणोँ पर,
समर्पित, जीवन का तार ~ तार !!


(गीत रचना ~ लावण्या )

प्रथम कविता ~ सँग्रह, "फिर गा उठा प्रवासी" बडे ताऊजीकी बेटी श्रीमती गायत्री, शिवशँकर शर्मा " राकेश" जी के सौजन्यसे, तैयार है --
--"प्रवासी के गीत" पापाजी की सुप्रसिद्ध पुस्तक और खास उनके गीत "आज के बिछुडे न जाने कब मिलेँगे ?" जैसी अमर कृति से हिँदी साहित्य जगत से सँबँध रखनेवाले हर मनीषी को यह बत्ताते अपार हर्ष है कि,यह मेरा विनम्र प्रयास, मेरे सुप्रतिष्ठित कविर्मनीष पिताके प्रति मेरी निष्ठा के श्रद्धा सुमन स्वर स्वरुप हैँ --शायद मेरे लहू मेँ दौडते उन्ही के आशिष ,फिर हिलोर लेकर, माँ सरस्वती की पावन गँगाको, पुन:प्लावित कर रहे होँ क्या पता ?

डा. राही मासूम रज़ा सा'ब ने यह भावभीनी कविता लिखी है -

जिसे सुनिये चूँकि आज,रज़ा सा'ब भी हमारे बीच अब स- शरीर नहीँ रहे ! :-(

"वह पान भरी मुस्कान"

वह पान भरी मुस्कान न जाने कहाँ गई ?

जो दफ्तर मेँ ,इक लाल गदेली कुर्सी पर,
धोती बाँधे,इक सभ्य सिल्क के कुर्ते पर,
मर्यादा की बँडी पहने,आराम से बैठा करती थी,
वह पान भरी मुस्कान तो उठकर चली गई !
पर दफ्तर मेँ,वो लाल गदेली कुर्सी अब तक रक्खी है,

जिस पर हर दिन,अब कोई न कोई, आकर बैठ जाता है


खुद मैँ भी अक्सर बैठा हूँ

कुछ मुझ से बडे भी बैठे हैँ,
मुझसे छोटे भी बैठे हैँ,
पर मुझको ऐसा लगता है
वह कुरसी लगभग एक बरस से खाली है !


**************************************************************

अमीन सयानी द्वारा लिया गया पंडित जी का एक लंबा इंटरव्यू हमारे पास उपलब्ध है. आज उनकी पुण्य तिथि पर आईये हम सब भी लावण्या जी के साथ उन्हें याद करें इस इंटरव्यू को सुन -

भाग १.


भाग २.


भाग ३.


चित्र में - पँडित नरेन्द्र शर्मा, श्रीमती सुशीला शर्मा तथा २ बहनेँ वासवी (गोद मेँ है शौनक छोटा सा और पुत्र मौलिक) बाँधवी (बच्चे- कुँजम, दीपम ) लावण्या (बच्चे -सिँदुर व सोपान) और भाई परितोष घर के बारामदे में.

प्रस्तुति - लावण्या शाह





Tuesday, February 10, 2009

रहमान के बाद अब बाज़ी मारी उस्ताद जाकिर हुसैन ने भी...




भारतीय संगीत की थाप विश्व पटल पर सुनाई दे रही है, लॉस एन्जेलेंस और लन्दन में भारत के दो संगीत महारथियों ने अपने अन्य प्रतियोगियों पर विजय पाते हुए शीर्ष पुरस्कारों पर कब्जा जमाया. जहाँ चार अन्य प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए रहमान ने एक बार फ़िर "स्लम डोग मिलिनिअर" के लिए बाफ्टा (ब्रिटिश एकेडमी ऑफ़ फ़िल्म एंड टेलिविज़न आर्ट) जीता तो वहीँ तबला उस्ताद जाकिर हुसैन ने दूसरी बार ग्रैमी पुरस्कार जिसे संगीत का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है, पर अपनी विजयी मोहर लगायी.जाकिर ने अपनी एल्बम "ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट" के लिए कंटेम्पररी वर्ल्ड म्यूजिक अल्बम श्रेणी में ये पुरस्कार जीता. गोल्डन ड्रम प्रोजेक्ट में हुसैन ने रॉक बैंड "ग्रेटफुल डेड" के मिकी हार्ट के साथ जुगलबंदी की है और उनका साथ दिया नईजीरियन पर्काशानिस्ट सिकिरू एडेपोजू और जैज़ पर्काशानिस्ट प्युरेटो रिकोन ने. ये इस समूह का और ख़ुद हुसैन का दूसरा ग्रैमी है. पहली बार भी १९९१ में उन्होंने मिकी हार्ट ही के साथ टीम अप कर "प्लेनट ड्रम" नाम का एल्बम किया था जिसे १९९२ में ग्रैमी सम्मान हासिल हुआ था.

दूसरी तरफ़ लन्दन में हुए बाफ्टा समारोह में भी गोल्डन ग्लोब की तर्ज पर एक बार फ़िर स्लम डोग पूरी तरह से छाई रही. फ़िल्म को कुल ७ बाफ्टा अवार्ड मिले जिसमें रहमान के आलावा एक भारतीय और भी है. जी हाँ, केरल निवासी और फ़िल्म के साउंड निर्देशक रसूल पुकुट्टी ने भी अपने फन से भारतीय संगीत प्रेमियों का सर गर्व से ऊंचा किया. पहली बार बाफ्टा में भारतीय नाम आए हैं, पुरस्कार पाने वालों में. हालाँकि बाफ्टा ने फिल्मों में उनके योगदान के लिए निर्देशक यश चोपडा का सम्मान किया था सन २००६ में. इसके आलावा संजय लीला बंसाली की "देवदास" को विदेशी फिल्मों की श्रेणी में नामांकन मिला था २००२ में, पर स्पेनिश फ़िल्म "टॉल्क टू हर" ने बाज़ी मार ली थी.

बाफ्टा ने बेशक भारतीय कलाकारों को देर में पहचाना पर ग्रैमी पुरस्कारों में भारतीय पहले भी अपना जलवा दिखा चुके हैं. उस्ताद जाकिर हुसैन के आलावा पंडित रवि शंकर और मोहन वीणा वादक विश्व मोहन भट्ट की कला को भी ग्रैमी ने सम्मानित किया है बारम्बार. पंडित रवि शंकर ने तो ३ बार ये सम्मान जीता है. दरअसल पंडित जी पहले ग्रैमी सम्मान पाने वाले भारतीय कलाकार बने थे जब १९६७ में मशहूर वोइलानिस्ट येहुदी मेनुहिन के साथ वेस्ट मीट ईस्ट कंसर्ट के लिए उन्हें बेस्ट चेंबर म्यूजिक पर्फोर्मांस श्रेणी में पुरस्कृत किया गया था.

खुशी की बात ये भी है की इस बार ग्रैमी की दौड़ में और भी ४ श्रेणियों में ३ अन्य भारतीय भी शामिल रहे. लुईस बैंक को जैज़ एल्बम श्रेणी में दो नामांकन मिले (एल्बम माइल्स फ्रॉम इंडिया, और फ्लोटिंग पॉइंट), कोलकत्ता के संगीतकार को उनकी एल्बम "कोलकत्ता क्रोनिकल" के लिए तो मशहूर शास्त्रीय गायक लक्ष्मी शंकर को "डांसिंग इन दा लाइट" के लिए नामांकन मिला. गोल्डन ग्लोब, बाफ्टा और ग्रैमी के बाद अब सबकी नज़रें २२ तारीख को होने वाले ऑस्कर पर टिकी हैं. उम्मीद है यहाँ भी तिरंगा लहराएगा पूरे आन बान और शान के साथ. अभी के लिए तो उस्ताद जाकिर हुसैन, रहमान, और रसूल पुकुट्टी को हम सब की ढेरो बधाईयाँ. आईये सुनते हैं उस्ताद का तबला वादन १९९९ में आई उनकी जैज़ फुयूज़न एल्बम "दा बिलीवर" से ये ट्रैक "फईन्डिंग दा वे...". साथ में हैं जॉन मेक्लिंग, यू श्रीनिवास, और वी सेल्वागणेश.



धीमे कनेक्शन वाले यहाँ से सुनें-







Monday, February 9, 2009

मेरी आवाज ही पहचान है : पंचम दा पर विशेष, (दूसरा भाग)




सत्तर के दशक के बारे में कहते हैं, लोग चार लोगों के दीवाने थे : सुनील गावस्कर,अमिताभ बच्चन, किशोर कुमार और आर डी बर्मन | गावस्कर का खेल के मैदान में जाना, अमिताभ का परदे पर आना और किशोर कुमार का गाना सबके लिए उतना ही मायने रखता था जितना आर डी का संगीत | भारत में लोग संगीत के साथ जीते हैं,आखिरी दम तक संगीत किसी न किसी तरह से हमसे जुड़ा होता है और इस लिहाज से आर डी बर्मन ने हमारे जीवन को कभी न कभी, किसी न किसी तरह छुआ जरुर है | यह अपने आप में आर डी के संगीत की सादगी और श्रेष्ठता दोनों का परिचायक है |
किशोर, आर डी और अमिताभ ने क्या खूब रंग जमाया था फ़िल्म "सत्ते पे सत्ता" के सदाबहार गाने में, सुनिए और याद कीजिये -


उनके गाने अब तक कितनी बार रिमिक्स,'इंस्पिरेशन' आदि आदि के नाम पर बने हैं, इसके आंकड़े भी मिलना मुश्किल है |आख़िर उनका संगीत पुराना होकर भी उतना ही नया कैसे लगता है, इस बात पर भी गौर करना जरुरी है |आर डी ने कभी भी प्रयोग करने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई |वह हमेशा नौजवानों को दिमाग में रख कर धुनें तैयार करते थे, और एक एक धुन पर काफ़ी कड़ी मेहनत करते थे| जब भी उचित लगा, उन्होंने शास्त्रीय संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत को मिश्रित करने में संकोच नहीं किया | मसलन,'कतरा कतरा मिलती है' में ट्विन ट्रैक, 'चुरा लिया है तुमने' में ग्लास की आवाज (जिसका जिक्र पहले भी कर चुका हूँ ), किताब के गाने 'मास्टर जी की चिठ्ठी' में स्कूल की बेंच को ला कर उसको वाद्य यंत्र के रूप में इस्तेमाल करना, बांस की सीटी में गुब्बारा बाँध कर उसकी आवाज (अब्दुल्ला ), खूशबू के गाने 'ओ मांझी रे' में बोतलों में पानी भरकर उनकी आवाज, जैसे अद्भुत और सफल प्रयोग पंचम के संगीत को नई ऊंचाई देते थे |आर डी ने भारतीय संगीत में इलेक्ट्रानिक उपकरणों का इस्तेमाल बहुत अच्छी तरह से किया | धुन तैयार करते समय हमेशा पंचम के दिमाग में हीरो की शक्ल होती थी, कलाकारों पर उनकी धुनें इतनी फिट कैसे बैठती थीं इसका शायद यह भी कारण था | कभी कभी कार में ही धुनें तैयार कर लेते, और अगर किसी धुन के बारे में विशेष रूप से उत्साहित होते,तो खुशी से चीख पड़ते| इस से जाहिर होता है कि इन जादुई धुनों के पीछे कड़ी मेहनत और श्रेष्ठ रचनात्मकता का कितना बड़ा हाथ था |
आगे बढ़ने से पहले, बचपन की मस्ती में शरारत के रंग भरता फ़िल्म "किताब" का ये नटखट सा गीत सुनते चलें-



पंचम दा के गानों में संगीत के साथ साथ एक और खास बात थी, वह थी गीत के बोलों में छुपे भावों को सफलता से प्रकट करना | किसी भी संगीतकार के लिए यह एक चुनौती होती है कि वह कहानी और गीतकार दोनों के भाव सुनने वाले के जेहन में उत्पन्न कर दे | अगर आप पंचम दा के गानों को महसूस कर पाते हैं, तो स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि वे कितने सफल थे | पंचम ने कई गीतकारों के साथ काम किया लेकिन गुलज़ार, गुलशन आदि से काफ़ी करीब थे | गुलजार चुटकी लेते हुए कहते हैं : "मेरे गीतों से उसे काफ़ी परेशानी हुआ करती थी,एक तो बेचारे कि हिन्दी कमजोर थी,और ऊपर से मेरी पोएट्री | जब मैंने उसे 'मेरा कुछ सामान' गाना लिखकर दिया तो उसने कागज़ फेंक दिया, और कहा 'अगले दिन आप मुझे टाईम्स ऑफ़ इंडिया का मुखपृष्ठ देकर कहोगे कि इसपर धुन बनाओ'!"
पर जब वो गीत बना तो क्या बना ये तो सभी जानते हैं, इस गीत के लिए आशा और गुलज़ार दोनों को राष्ट्रीय सम्मान मिला, पर हक़दार तो पंचम दा भी थे, नही मानते तो गीत सुनिए, मान जायेंगें -


पंचम बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उन्होंने एकाध बार ऐक्टिंग में भी हाथ आजमाए | महमूद की फ़िल्म "भूत बंगला" में उन्होंने पहली बार अदाकारी की और बाद में फ़िल्म "प्यार का मौसम" में पोपट लाल के चरित्र में भी सबको लुभाया | कई गानों में उन्होंने ख़ुद माउथ ओरगन बजाया,और एकाध बार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल (याद कीजिये दोस्ती के गीत) और कल्यानजी -आनंदजी के लिए भी बजाया | और गायक के रूप में तो हम उनको उतना ही प्यार करते हैं जितना कि संगीतकार के रूप में |फ़िल्म शोले का गीत 'महबूबा महबूबा' हो या फ़िर 'पिया तू अब तो आजा';पंचम दा के सारे गाये गीत अनूठे हैं |मजरूह सुलतानपुरी के अनुसार "आर डी बर्मन एक युग था, अपने आप में एक स्कूल था,जो उसने ख़ुद शुरू किया,और उसने इसे जिस स्तर पर रखा, वह स्तर अपने साथ ही लेकर गया, और वह स्तर मेरे ख्याल में दुबारा आना आसान नहीं है" |
पंचम की आवाज़ में सुनिए और डूब जाईये -"धन्नो की आँखों में..."-

पंचम पर और बातें, अगली बार....

प्रस्तुति - अलोक शंकर



Sunday, February 8, 2009

सुनिए "इमोशनल अत्याचार" की ये कहानी



सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (11)
शास्त्रीय संगीत का किसी अन्य संगीत विधा से कोई मुकाबला नही है - पंडित शिव कुमार शर्मा
"येहुदी मेनुहिन कितने महान फनकार थे पर मेडोना या माइकल जेक्सन को हमेशा मीडिया ने अधिक तरजीह दी. ये ट्रेंड पूरी दुनिया का है अकेले भारत का नही. भारतीय शास्त्रीय संगीत को पॉप संस्कृति या फ़िल्म संगीत से भिड़ने की आवश्यकता नही है."- ये कथन थे ५४ वर्षों से भारतीय शास्त्रीय संगीत का परचम अपने संतूर वादन से दुनिया भर में फहराने वाले पंडित शिव कुमार शर्मा जी के. दिल्ली के पुराना किला में अपनी एक और लाइव प्रस्तुति देने आए पंडित जी ने संगीतकार ऐ आर रहमान को बधाई देते हुए कहा कि वो रहमान ही थे जिन्होंने फिल्मों में इलेक्ट्रॉनिक संगीत का ट्रेंड शुरू किया. उनसे पहले के संगीतकार धुन और prelude बनाते थे और बाकी कामों के लिए उन्हें साजिंदों पर निर्भर रहना पड़ता था. यश राज की बहुत सी सफल फिल्मों में साथी पंडित हरी प्रसाद चौरसिया के साथ जोड़ी बनाकर संगीत देने वाले पंडित शिव कुमार शर्मा ने ये पूछने पर कि वो फ़िर से कब फिल्मों में संगीत देंगे, पंडित जी का जवाब था - "फिल्मों में संगीत देने के लिए बहुत समय की जरुरत पड़ती है और कुछ आकर्षक विषय भी मिलने चाहिए..."



मैं ख़ुद को ऑस्कर में देख रहा हूँ - गुलज़ार

रहमान यदि ऑस्कर जीतेंगे तो मुझे सबसे अधिक खुशी होगी - जयपुर साहित्यिक समारोह में गुलज़ार साहब ने खुले दिल से इस युवा संगीतकार की जम कर तारीफ की. ७२ वर्षीया गुलज़ार साहब ने कहा कि मानसिक रूप से मैं अभी से ख़ुद को ऑस्कर में देख रहा हूँ. आवाज़ की पूरी टीम ऐ आर और गुलज़ार साहब के साथ साउंड मास्टर रसूल पूकुट्टी के भी ऑस्कर में विजयी होने की कामना करता है...आप सब भी दुआ करें.


कुमार सानु का मानवीय पक्ष

गायक कुमार सानु ने अपनी नई फ़िल्म "ये सन्डे क्यों आता है" के लिए चार बूट पोलिश करने वाले बच्चों को न सिर्फ़ अभिनय सिखाने के लिए अभिनय स्कूल में डाला बल्कि वो वापस अपने पुराने जीवन चर्या की तरफ़ न मुडें इस उद्देश्य से उनके लिए दो खोलियां (छोटे घर) भी खरीद दिए और उन्हें नियमित स्कूलों में दाखिल भी करवा दिया. बहुत नेक काम किया आपने सानु साहब हमें आपकी इस फ़िल्म का भी इंतज़ार रहेगा.


इमोशनल अत्याचार

देव डी, बड़ा ही अजीब लगता था ये नाम, पर निर्देशक अनुराग कश्यप ने इसके माने साफ़ कर दिए जब एलान किया कि ये आज के दौर के देवदास की कहानी है, तो देवदास ही हैं जो अब देव डी के नाम से जाने जा रहे हैं. "नो स्मोकिंग " जैसी उत्कृष्ट और तमाम लीकों से हटकर फ़िल्म देने वाले अनुराग से उम्मीदें हैं कि उनकी ये फ़िल्म कुछ अलग और नया देखने की चाह रखने वाले दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरेगी. इस हफ्ते का हमारा "सप्ताह का गीत" भी इसी फ़िल्म से है जो इन दिनों हर किसी की जुबां पर चढा हुआ है. अमिताभ वर्मा के लिखे इस "इमोशनल अत्याचार" को स्वरबद्ध किया है अमित त्रिवेदी ने जिनका अंदाज़ हमेशा की तरह एकदम नया और ताज़ा है, आवाज़ है बोनी चक्रवर्ती की. सुनिए और आनंद लीजिये -









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25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

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