Saturday, January 1, 2011

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (23), फिर एक बार साल की शुरूआत हो रही है मन्ना दा की स्वर साधना से



नमस्कार! पूरे 'आवाज़' और 'हिंद-युग्म' परिवार की तरफ़ से आप सभी को नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। २०११ का यह नया साल आप सब के जीवन में ढेरों ख़ुशियाँ व सफलताएँ लेकर आए, यह हमारी शुभेच्छा है आप सब के लिए। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार की विशेष प्रस्तुति 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। इस साप्ताहिक स्तंभ के ज़रिए आप अपनी खट्टी मीठी यादों को पूरी दुनिया के साथ बाँट सकते हैं, या फिर कोई ख़ास गीत अगर आप सुनवाना चाहें, या 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए अपनी राय और सुझाव भेजना चाहें, उनकी भी व्यवस्था है इस साप्ताहिक पेशकश में। किसी दायरे में हमने इस विशेषांक को नहीं बांधा है, इसलिए आप अपने तरीके से कुछ भी इसमें भेज सकते हैं जो आपको लगे कि सब से साथ बांटा जा सकता है। आज हम हमारे जिन दोस्त का ईमेल शामिल कर रहे हैं, वो हैं कृष्णमोहन मिश्र, जिनके मनपसंद गायक हैं मन्ना डे। तो चलिए आज का यह अंक कृष्णमोहन जी और मन्ना दा के नाम करते हैं।

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प्रिय सजीव सारथी एवं सुजॉय चटर्जी,

आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ; इसलिए कि आप फिल्म संगीत के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह शृंखला भावी शोधार्थियों के लिए तो उपयोगी है ही, नई पीढ़ी के लिए धरोहर भी है।

मैं, कृष्णमोहन मिश्र, लखनऊ-वासी, ६३ वर्षीय संगीत-प्रेमी हूँ। विगत ३८ वर्षों से संगीत की मंच-प्रस्तुतियों की समीक्षा-कार्य करता रहा हूँ। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का अभी कुछ मास पूर्व ही सदस्य बना हूँ। 'फ्लेशबैक एपिसोड' (सफ़र अब तक) पढ़ने के बाद लगा कि आपने फिल्म-संगीत के खजाने को टटोलने का प्रयास किया तो है, किन्तु अभी बहुतेरे कोण टटोलने शेष हैं।

फिल्म एवं सुगम संगीत क्षेत्र में आदरणीय मन्ना डे का योगदान अविस्मरणीय है। एक शृंखला तो उनके जन्मदिवस या किसी अन्य अवसर पर प्रस्तुत की जा सकती है। मैं इस हेतु आपका सहयोग कर सकता हूँ। मैंने शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय रागों पर आधारित पुराने फिल्मी गीतों को सूचीबद्ध किया है। आपने राग आधारित १० गीतों की शृंखला प्रस्तुत किया ही है, मेरी इस सूची से कुछ और श्रृंखलाएँ भी बन सकती हैं। कृपया इस दिशा में मेरा मार्गदर्शन कर मेरे अल्पज्ञान का उपयोग करें।

कृष्णमोहन मिश्र

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कृष्णमोहन जी, सब से पहले तो बहुत बहुत धन्यवाद आपके इस ईमेल के लिए। बहुत अच्छा लगा आपके बारे में जानकर। आपने जिन शब्दों में 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की तारीफ़ की है, हमारा हौसला बढ़ाया है, उसके लिए हम आपके आभारी हैं। इसमें कोई शक़ या दोराय नहीं कि मन्ना डे का संगीत जगत में अद्वितीय योगदान रहा है। वो एक सुर-गंधर्व हैं जिन्होंने फ़िल्म संगीत को शास्त्रीयता से समृद्ध करने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। १ मई को मन्ना दा का जन्मदिवस है, उस समय हम उन पर १० अंकों की एक लघु शृंखला अवश्य प्रस्तुत करेंगे, ऐसा हम आपसे वादा करते हैं। आप ने शास्त्रीय रागों को सूचीबद्ध करने की जो बात लिखी है, आप बेशक़ हमें इसे भेज सकते हैं हमारे oig@hindyugm.com के पते पर। वैसे आपको यह बता दें कि कल, यानी २ जनवरी से हर रविवार सुबह हम शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक नया स्तंभ शुरु कर रहे हैं, जिसमें भी आपके इस सूची में से गानें चुनने की गुंजाइश रहेगी। ज़रूर भेजिएगा अपनी सूची।

आइए अब आज के गीत पर आते हैं। क्योंकि ज़िक्र मन्ना डे का आया है इस अंक में, तो क्यों ना उनका गाया एक दुर्लभ गीत सुना जाए। दुर्लभ इसलिए कहा क्योंकि इस गीत में मन्ना दा के साथ और भी दो गायकों की आवाज़ें शामिल हैं - किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी। १९८१ में किशोर कुमार की एक फ़िल्म आयी थी 'चलती का नाम ज़िंदगी' जिसमें उन्होंने अभिनय और गायन तो किया ही था, फ़िल्म को निर्देशित भी किया था। अशोक कुमार, अनूप कुमार और अमित कुमार ने भी अभिनय किया था इस फ़िल्म में। इस फ़िल्म में किशोर दा ने एक ऐसा गीत बनाया जिसे उन्होंने मन्ना दा और रफ़ी साहब के साथ मिलकर गाया, जिसके बोल थे "बंद मुट्ठी लाख की"। आपको शायद याद हो 'चलती का नाम गाड़ी' में "बाबू समझो इशारे" गीत में "बंद मुट्ठी लाख की" का इस्तेमाल हुआ था। शायद वहीं से आज के इस प्रस्तुत गीत का आइडिया आया होगा। और दोस्तों, इत्तेफ़ाक़ देखिए, पिछले साल, इसी दिन, यानी १ जनवरी २०१० को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर मन्ना डे साहब का ही गाया गीत बजा था फ़िल्म 'जुर्माना' का - "ए सखी राधिके बावरी हो गई"। याद है न? और इस साल के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की शुरुआत भी इस सुर-गंधर्व की आवाज़ के साथ हो रही है। एक नहीं, बल्कि तीन तीन सुरसाधकों की आवाज़ों से। तो लीजिए नये साल के जश्न को और भी शानदार और जानदार बनाते हुए सुनते हैं मन्ना डे, किशोर कुमार और मोहम्मद रफ़ी का गाया 'चलती का नाम ज़िंदगी' फ़िल्म का यह गीत।



सुजॉय चट्टर्जी

Friday, December 31, 2010

आपने जिसे चुना उन गीतों को हमने सुना मशहूर फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज जी के साथ - वर्ष २०१० के टॉप गीत



दोस्तों पूरे साल "ताज़ा सुर ताल" के माध्यम से हम आपका परिचय नए फिल्म संगीत से करवाते रहे. आज साल का अंतिम दिन है. ये जानने के लिए कि इन नए गीतों में से कौन से हैं जिन्होंने हमारे श्रोताओं पर जादू चलाया, हमने आवाज़ पर एक पोल लगाया इस बार. जिसके परिणाम का खुलासा हम टी एस टी के इस वर्ष के इस सबसे अंतिम एपिसोड में आज करने जा रहे हैं. इस अवसर को खास बनाने के लिए आज हमारे बीच मौजूद हैं, हिंदी सिनेमा के जाने माने समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज जी, आईये उनसे करें कुछ बातचीत और हटाएँ इस वर्ष के आपके वोटों द्वारा चुने हुए श्रेष्ट गीतों के नामों से पर्दा.

सजीव - अजय जी, हिंदी चिट्टाजगत के आप स्टार फ़िल्मी समीक्षक हैं, आज आवाज़ के इस मंच पर आपका स्वागत करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है. स्वागत है

अजय ब्रह्मात्मज – मेरे लिए सौभाग्‍य की बात है कि इस बातचीत के जरिए मैं अधिकतम पाठकों तक पहुंच पाऊंगा। आपलोग बहुत अच्‍छा काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि आप सभी नियमित और स्‍तरीय हैं।

सजीव - आवाज़ पर हमने जो पोल लगाया था उसके परिणाम मेरे पास हैं, जिनका खुलासा हम अभी इसी बातचीत में करेंगें. पर इससे पहले कि हम फिल्म संगीत की दिशा में बढ़ें, पहले बात फिल्मों की कर ली जाए....और आपसे बेहतर कैन बता सकता है हमें कि साल २०१० में बॉक्स ऑफिस का हाल कैसा रहा...

अजय ब्रह्मात्मज – हर साल लगभग पांच प्रतिशत फिल्‍में ही संतोषजनक कारोबार कर पाती हैं। 2010 में भी हमने देखा कि लगभग आधा दर्जन फिल्‍मों ने ही अच्‍छा कारोबार किया। हम कहते और लिखते हैं कि हिंदी में हर साल 400 से अधिक फिल्‍में बनती हैं। सच्‍चाई यह है कि मल्‍टीप्‍लेक्‍स विस्‍फोट के बावजूद पिछले पांच सालों में फिल्‍मों की संख्‍या 200 भी नहीं पहुंच पाई है। इधर यह देखा जा रहा है कि फिल्‍मों का बिजनेस लगातार ज्‍यादा से ज्‍यादा होता जा रहा है। पहले ‘3 इडिएट’ और फिर ‘दबंग’ इसके उदाहरण हैं। यकीन मानिए इस साल कोई न कोई फिल्‍म 500 करोड़ का आंकड़ा पार करेगी। इस बढ़ते बिजनेस को आप फिल्‍म की क्‍वालिटी से कतई न जोडि़ए।

सजीव - अजय जी, क्या परल्लेल फिल्मों का दौर खत्म हो चुका है या फिर आजकल मैन स्ट्रीम सिनेमा में उसका समावेश हो चुका है ?

अजय ब्रह्मात्मज - पैरेलल सिनेमा निजी कारणों से पहले ही दम तोड़ चुका है। आप देखें कि पैरेलल सिनेमा के पायोनियर श्‍याम बेनेगल और फॉलोअर प्रकाश झा मेनस्‍ट्रीम सिनेमा में सफल काम कर रहे हैं। फिल्‍मों का कथ्‍य और ग्रामर बदल चुका है। इधर कुछ नए हस्‍ताक्षर उभरे हैं। 2010 में सुभाष कपूर, विक्रमादित्‍य मोटवानी, अभिषेक शर्मा, अभिषेक दूबे, अनुषा रिजवी के रूप में हमें संभावनाशील निर्देशक मिले हैं। बिजनेस के लिहाज से तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन 2011 में किरण राव, अलंकृता श्रीवास्‍तव, सचिन करांदे, अनुराग कश्‍यप और डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्‍मों से हम कुछ नई उम्‍मीद रख सकते हैं।

सजीव - एक समीक्षक के नाते अजय ब्रह्मात्मज इस वर्ष हिंदी सिनेमा की उपलब्धियों और खामियों को किस तरह आंकेंगें. ?

अजय ब्रह्मात्मज – मुझे लगता है कि महानगरों की क‍हानियां इस साल ज्‍यादा सफल नहीं रही। हिंदी फिल्‍मों की कथाभूमि उत्तर भारत की तरफ जाती दिख रही है। निश्चित रूप से दृश्‍य माध्‍यमों में उत्तर भारत की जरूरी मौजूदगी बढ़ी है। मल्‍टीप्‍लेक्‍स संस्‍कृति ने हिंदी सिनेमा के पारंपरिक दर्शकों को सिनेमाघरों से विस्‍थापित कर दिया था। 2010 में उन दर्शकों के पुनर्स्‍थापन की प्रक्रिया आरंभ हो गई है।

सजीव - हमारी फ़िल्में बिना गीत संगीत के मुक्कमल नहीं होती, और देखा जाए तो संगीत प्रेमियों के लिए भी फिल्म संगीत के अलावा कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है....ऐसे में संगीत के लिहाज से इस साल की किस फिल्म के संगीत ने या अल्बम ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है ?

अजय ब्रह्मात्मज – मुझे व्‍यक्तिगत रूप से ‘इश्किया’, ‘दबंग’, ‘खेलें हम जी जान से’ और ‘स्‍ट्राइकर’ का संगीत पसंद आया।

सजीव - हमारे श्रोताओं ने जिस अल्बम को चुना है वो भी आपकी पसंद में से एक है...जी हमारे श्रोताओं की राय में इस साल की सर्वश्रेष्ठ अल्बम है -"दबंग". सुनते हैं इस फिल्म का शीर्षक गीत. वैसे इस गीत को खास फिल्म में डाला गया था ताकि लोग "दबंग" शब्द के मायने समझ पायें. विडम्बना देखिये कि अंग्रेजी शीर्षकों से भरे इस दौर में एक हिंदी शब्द के मायने समझाने के लिए निर्देशक को ये सब करना पड़ता है

गीत - हुड़ हुड़ दबंग


सजीव - आईटम गीत की बात करें तो इस साल इनकी भरमार रही है. मुन्नी और शीला में से आप किसी चुनेंगें :)

अजय ब्रह्मात्मज – मैं मुन्‍नी को चुनूंगा।

सजीव - जी अजय जी और हमारे श्रोताओं ने भी इसे ही चुना है. "शीला" को फिल्म के प्रदर्शन के बाद कुछ अधिक वोट मिले, पर फिर भी वो मुन्नी की स्थापित सत्ता को नहीं हिला पायी, आई सुनें साल का सबसे चर्चित आईटम गीत.

गीत - मुन्नी बदनाम


सजीव - इस साल का कोई रोमांटिक गीत जो आपको बहुत पसंद आया हो ?

अजय ब्रह्मात्मज – ‘दिल तो बच्‍चा है जी’

सजीव - हमारे श्रोताओं ने जिस रोमांटिक युगल गीत को चुना है वो है एक बार फिर "दबंग" से 'चोरी किया रे जिया' इस गीत को ५२ प्रतिशत वोट मिले. भाव प्रधान गीतों की श्रेणी में विजेता रहा "अंजना अंजानी" में विशाल शेखर का रचा गीत "तुझे भुला दिया". आईये सुनें -

गीत - चोरी किया रे जिया


गीत - तुझे भुला दिया फिर


सजीव - रियालिटी कार्यक्रमों के चलते इन दिनों नए गायक/गायिकाओं की एक पूरी फ़ौज जमा हो चुकी है. इस नए ट्रेंड के बारे में आपकी क्या राय है ?

अजय ब्रह्मात्मज - इस फौज की कोई पहचान नहीं है। मैं लगातार इस तथ्‍य को रेखांकित कर रहा हूं कि श्रेया घोषाल और सुनिधि चौहान के बाद किसी महिला स्‍वर ने अपनी पहचान नहीं बनाई। गायकों में केवल मोहित चौहान ही पहचान में आ रहे हैं। संगीत निर्देशन में तकनीक के हावी होने से साधारण आवाज किसी एक गाने में अच्‍छी लग जाती है। किंतु निजी पहचान के लिए आवश्‍यक मौके नए गायकों को नहीं मिल पा रहे हैं।

सजीव - सही है अजय जी, हम आपको बता दें कि हमें इस पोल में भारत से ही नहीं बल्कि अमेरिका, स्वीडन, कनाडा और पोलेंड से भी वोट मिले. जिनके आधार पर सर्वश्रेष्ठ गायक चुने जा रहे हैं, रहत फ़तेह अली खान साहब और गायिका हैं सुनिधि चौहान. राहत साहब और के के के बीच जबरदस्त मुकाबला हुआ, के के को ३८ प्रतिशत वोट मिले तो रहत साहब को बाज़ी मार गए ४२ प्रतिशत वोट लेकर. सुनिधि को ३५ प्रतिशत वोट मिले. सुनते हैं इन दों फनकारों को बैक टू बैक

गीत: दिल तो बच्चा है जी


सजीव - वैसे सुनिधि "उडी" के लिए नामांकित हुई थी, पर वो जरा बाद में, फिलहाल उनकी आवाज़ में ये चर्चित गीत भी सुन लीजिए

शीला की जवानी... Sunidhi Chauhan


सजीव - निर्देशक संजय लीला बंसाली संगीतकार बन कर आये इस साल, तो वहीं विशाल भारद्वाज जिनकी शुरूआत एक संगीतकार के रूप में हुई थी, आज के एक कामियाब निर्देशक हैं, आपके हिसाब से ऐसा क्या है जो एक फिल्मकार को संगीतकार बनने पर मजबूर कर देता है, वो भी तब जबकि ढेरों सफल संगीतकार इंडस्ट्री में मौजूद हों ?

अजय ब्रह्मात्मज – विशाल भारद्वाज ने एक इंटरव्यू में मुझे कहा था कि फिल्‍म इंडस्‍ट्री से जुड़े हर व्‍यक्ति की ख्‍वाहिश निर्देशक बनने की होती है। रही बात संजय के संगीतकार बनने की तो मैं बता दूं कि संजय संगीत की गहरी जानकारी रखते हैं और उनकी पिछली फिल्‍मों का संगीत भी उनकी सोच से प्रभावित रहा है।

सजीव - जी लेकिन हमारे श्रोताओं ने बंसाली के पहले प्रयास को २९ प्रतिशत वोट दिया मगर वो ए आर रहमान जिन्हें ३३ प्रतिशत वोट मिले उनसे पीछे रहे. तो आवाज़ के श्रोताओं की राय है कि वर्ष २०१० के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का खिताब है ए आर रहमान के नाम, सुनिए फिल्म "रावण" का ये गीत.

गीत: रांझा रांझा


सजीव - आप खुद हिंदी भाषा के एक बड़े पहरूवा हैं, शब्दों की गुणवत्ता के लिहाज से कोई ऐसा गीत जो आपको खूब भाया हो इस साल ?

अजय ब्रह्मात्मज - भाषा की बानगी गीतों में खत्‍म होती जा रही है। फिर भी गुलजार, प्रसून जोशी, जावेद अख्‍तर और स्‍वानं‍द किरकिरे शब्‍दों के खेल से चमत्‍कृत करते रहते हैं। मैं स्‍वानंद किरकिरे को एक बड़ी और ठोस संभावना के रूप में देखता हूं।

सजीव - जी, स्वनद का कोई गीत इस वर्ष मैदान में नहीं था, लिहाजा यहाँ हमारे श्रोताओं ने भारी मत से चुना गुलज़ार साहब को, जी हाँ गुलज़ार साहब को सबसे अधिक ८२ प्रतिशत वोट मिले हैं, यानी सर्वश्रेष्ठ गीतकार का ताज है एक बार फिर गुलज़ार साहब के सर, बधाई हो गुलज़ार साहब. अब चूँकि हम "दिल तो बच्चा है जी" पहले हीं सुन चुके हैं, इसलिए गुलज़ार साहब के लिए हम उनका लिखा "वीर" फिल्म से "कान्हा" सुन लेते हैं।

गीत - कान्हा बैरन हुई बांसुरी.. Gulzar


सजीव - फिल्म निर्माण में गीतों का फिल्मांकन एक मुश्किल प्रक्रिया होती है, पर यही फिल्मांकन प्रदर्शन से पहले फिल्म को लोकप्रिय बनने में बेहद सहायक भी होता है. आपके हिसाब से ऐसा कौन से गीत आया है इस साल जिसका फिल्मांकन शानदार हुआ हो ?

अजय ब्रह्मात्मज – ‘गुजारिश’ का ‘उड़ी उड़ी...’ गीत। यह किरदार के भावनाओं को बहुत सुंदर तरीके से अभिव्‍यक्‍त करता है।

सजीव - बिल्कुल अजय जी यहाँ आपकी पसंद हमारे श्रोताओं से शत प्रतिशत मिल गयी है, ४२ प्रतिशत वोटों से गुज़ारिश का "उडी" गीत है साल का सर्वश्रेष्ट फिल्मांकित गीत. सुनिए-

गीत - उड़ी


सजीव - आने वाले साल में किन फिल्मों से आपको उम्मीदें हैं, आपकी खुद की क्या योजनाएं हैं और फेसबुक अपने प्रशंसकों से मिलना आपको कैसा लग रहा है ?

अजय ब्रह्मात्मज – मुझे अनुराग कश्‍यप, अनुराग बसु, इम्तियाज अली, अनुभव सिन्‍हा की फिल्‍मों से उम्‍मीदें हैं। इस साल मैं अपने ब्‍लॉग चवन्‍नीचैप को बेबसाइट का रूप देने की कोशिश करूंगा। कुछ पुस्‍तकों की योजनाएं हैं, जो प्रकाशकों की तलाश में हैं। फेसबुक अत्‍यंत कारगर माध्‍यम है। मैं इसके अधिकतम उपयोग की कोशिश करता हूं। पाठक बताएं कि और किन पहलुओं से इसका इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

सजीव - अजय जी अब अंत में हम आपसे जानेंगें कि कि निम्न गीतों में से जिन्हें हमारी टीम ने नामांकित किया है, अजय ब्रह्मात्मज किस गीत को श्रेष्ठ मानते हैं, उसके बाद हम आपको बतायेंगें और सुन्वायेंगें वो गीत जिसे हमारे श्रोताओं से सर्वश्रेष्ठ माना है, देखते हैं आपकी राय क्या हमारे श्रोताओं की राय से मिलती है या नहीं : )

तेरे मस्त मस्त दो नैन (दबंग)
महंगाई डायन (पीपली लाइव)
बस इतनी सी तुमसे गुज़ारिश है (गुज़रिश)
सजदा (माई नेम इस खान)
नैना लागे तोसे (माधोलाल कीप वाकिंग)
रांझा रांझा (रावण)

अजय ब्रह्मात्मज - नैना लागे तोसे (माधोलाल कीप वाकिंग)

सजीव - अजय जी मैं आपको बता दूँ, विदेशों से आये वोटों में सजदा काफी पसंद किया गया है, महगाई डायन दूसरे स्थान पर रही, मगर सबसे अधिक ३३ प्रतिशत वोटों से हमारे श्रोताओं से जिसे गीत को सर्वश्रेष्ठ चुना है वो ये है -

गीत - तेरे मस्त मस्त दो नैन


सजीव - अजय जी इस बातचीत में हमारे साथ जुड़ने के लिए बहुत बहुत आभार, नयी फिल्मों की समीक्षा के लिए हमारे श्रोता अजय जी कि वेब साईट "चवन्नी चैप" में अवश्य जाएँ, चलते चलते इन तस्वीरों में देखिये कि हमारे अजय जी किन किन से मिले साल २०१० में....आप सब को नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ. आवाज़ पर आपका ये साथी, सजीव सारथी, अपने सहयोगी सुजॉय चट्टर्जी और विश्व दीपक के साथ आपको दे रहा है इस वर्ष का अंतिम सलाम. मिलते हैं फिर अगले साल में.


Thursday, December 30, 2010

तू मेरा जानूँ है तू मेरा हीरो है.....८० के दशक का एक और सुमधुर युगल गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 560/2010/260

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! देखिए, गुज़रे ज़माने के सुमधुर गीतों को सुनते और गुनगुनाते हुए हम आ पहुँचे हैं इस साल २०१० के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की अंतिम कड़ी पर। आज ३० दिसंबर, यानी इस साल का आख़िरी 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। जैसा कि इन दिनों आप इस स्तंभ में सुन और पढ़ रहे हैं फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की कुछ सदाबहार युगल गीतों से सजी लघु शृंखला 'एक मैं और एक तू', आज ८० के दशक के ही एक और लैण्डमार्क डुएट के साथ हम समापन कर रहे हैं इस शृंखला का। यह वह गीत है दोस्तों जिसने लता और आशा के बाद की पीढ़ी के पार्श्वगायिकाओं का द्वार खोल दिया था। इस नयी पीढ़ी से हमारा मतलब है अनुराधा पौड़वाल, अल्का याज्ञ्निक, साधना सरगम और कविता कृष्णमूर्ती। आज हम चुन लाये हैं अनुराधा और मनहर उधास की आवाज़ों में १९८३ की फ़िल्म 'हीरो' का गीत "तू मेरा जानू है... मेरी प्रेम कहानी का तू हीरो है"। युं तो इस गीत से पहले भी अनुराधा ने कुछ गीत गाये थे, लेकिन इस गीत ने उन्हें पहली बार अपार सफलता दी जिसके बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी। 'एक दूजे के लिए' ही की तरह 'हीरो' भी एक कामयाब युवा फ़िल्म है, और इस फ़िल्म के ज़रिए जैकी श्रॊफ़ और मीनाक्षी शेषाद्री ने फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखा था। 'हीरो' के गीतों की अपार कामयाबी ने एक बार फिर साबित किया कि ८० के दशक में भी एल.पी का संगीत उतना ही पुरअसर है जितना पिछले दो दशकों में था "निंदिया से जागी बहार" की शास्त्रीयता से भरी सुमधुर धुन, रेशमा की आवाज़ में कलेजे को चीर कर रख देने वाली "लम्बी जुदाई", लता-मनहर का गाया "प्यार करने वाले कभी डरते नहीं", तथा अनुराधा-मनहर के गाये दो गीत - "तू मेरा जानू है" और "डिंग डॊंग" जैसे गीतों के लिए एल. पी को बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

दोस्तों, आज पहली बार 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर अनुराधा और मनहर की आवाज़ें गूंज रही है। ऐसे में आइए आज अनुराधा पौडवाल द्वारा प्रस्तुत 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम का एक अंश पढ़ते हैं जिसमें वो बता रही हैं कि फ़िल्म जगत में उनका पदार्पण किस तरह से हुआ था। विविध भारती के सौजन्य से यह रहा वह अंश - "फ़ौजी भाइयों को मेरा संगीतमय नमस्कर! आज यह अवसर आप से बातें करने का, अपने गानें सुनाने का मिला है उसे मैं शिव जी का प्रसाद कहूँ तो सही होगा। जैसा कि बहुत से सुनने वाले शायद जानते हैं कि मेरे शोहर, श्री अरुण पौडवाल एक ज़माने में एस. डी. बर्मन के ऐसिस्टैण्ट भी रहे। बात युं हुई कि 'अभिमान' फ़िल्म का 'बैकग्राउण्ड म्युज़िक' रेकॊर्ड किया जा रहा था। सोच विचार हो रहा था कि एक 'पर्टिकुलर सिचुएशन' में कौन सा श्लोक रखा जाए। दादा ने अरुण से कहा कि तुम महाराष्ट्रियन हो और तुम्हारे घरों में बड़े बुज़ुर्ग बहुत अच्छे अच्छे श्लोक रिसाइट करते हैं। तो कल कोई श्लोक घर से लेके आना। मेरी क़िस्मत को मंज़ूर था और ईश्वर की कृपा मुझ पर होनी थी कि अरुण जी के मन में यह ख़याल आया कि क्यों ना यह श्लोक अनुराधा से, यानी मुझसे अपने टेप रेकोर्डर पे घर से ही रेकोर्ड करके ले जाऊँ! दादा ने श्लोक सुना और मेरे लिये प्लेबैक की दुनिया के दरवाजे खुल गये। उन्होंने श्लोक सुनते ही पूछा, 'कौन है ये?' दादा ने कहा कि शायद मैंने ऐसी ही आवाज़ में ऐसा ही श्लोक सोचा था जो बरबस तुम मेरे सामने ले आये। अरुण जी से कहा, अभी बुलाओ इस आवाज़ को। जब अरुण ने कहा कि यह आवाज़ अनुराधा की है, मेरी वाइफ़ की है, तो दादा और भी ख़ुश हुए। और शिव जी का प्रसाद मुझे ऐसा मिला कि दिन-ओ-दिन आप लोगों का प्यार और सुनने वालों की चाहत आज मुझे यहाँ तक ले आई है।" हाँ तो दोस्तों, ये थी अनुराधा जी के शब्द जो रेकॊर्ड हुए थे १९८७ में विविध भारती के स्टुडिओ में। और अब फ़िल्म 'हीरो' का वही हिट गीत जिसे शायद आपने कुछ दिनों से नहीं सुना होगा, लीजिए ८० के दशक की यादें फिर एक बार ताज़ा कर लीजिए इस गीत के माध्यम से। और इसी के साथ 'एक मैं और एक तू' शृंखला सम्पन्न होती है। हमें उम्मीद है कि ३० के दशक से लेकर ८० के दशक के ये १० युगल गीत आपको पसंद आये होंगे। आप अपने विचार और सुझाव हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर अवश्य लिख भेजिएगा। हमें इंतज़ार रहेगा। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की अगली कड़ी अब अगले साल ही पेश होगी। अरे अरे घबराइए नहीं, अगले साल, यानी कि इसी रविवार, २ जनवरी की शाम को। नये साल की ढेरों हार्दिक शुभकामनाओं के साथ अब हमें इजाज़त दीजिए, नमस्कार!



क्या आप जानते हैं...
कि अनुराधा पौडवाल ने अपना पहला फ़िल्मी एकल गीत गाया था संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में, हेमा मालिनी - शशि कपूर अभिनीत फ़िल्म 'आप बीती' में।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 01/शृंखला 07
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - खुद संगीतकार है इस युगल गीत में गायक.

सवाल १ - किस संगीतकार की बात है यहाँ - १ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी को बधाई हमारी ७ वीं शृंखला में वो विजेता हुए हैं. अमित जी कल तो आपका अंदाजा गलत हो गया..खैर कोई बात नहीं, नयी शृंखला के लिए सभी को शुभकामनाएँ

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, December 29, 2010

हम बने तुम बनें एक दूजे के लिए....और एक दूजे के लिए ही तो हैं आवाज़ और उसके संगीत प्रेमी श्रोता



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 559/2010/259

फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के चुने हुए युगल गीतों को सुनते हुए आज हम क़दम रख रहे हैं ८० के दशक में। कल के गीत से ही आप ने अंदाज़ा लगाया होगा कि ७० के दशक के मध्य भाग के आते आते युगल गीतों का मिज़ाज किस तरह से बदलने लगा था। उससे पहले फ़िल्म के नायक नायिका की उम्र थोड़ी ज़्यादा दिखाई जाती थी, लेकिन धीरे धीरे फ़िल्मी कहानियाँ स्कूल-कालेजों में भी समाने लगी और इस तरह से कॊलेज स्टुडेण्ट्स के चरित्रों के लिए गीत लिखना ज़रूरी हो गया। नतीजा, वज़नदार शायराना अंदाज़ को छोड़ कर फ़िल्मी गीतकार ज़्यादा से ज़्यादा हल्के फुल्के और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करने लगे। कुछ लोगों ने इस पर फ़िल्मी गीतों के स्तर के गिरने का आरोप भी लगाया, लेकिन क्या किया जाए, जैसा समाज, जैसा दौर, फ़िल्म और फ़िल्म संगीत भी उसी मिज़ाज के बनेंगे। ख़ैर, आज हम बात करते हैं ८० के दशक की। इस दशक के शुरुआती दो तीन सालों तक तो अच्छे गानें बनते रहे और लता और आशा सक्रीय रहीं। ८० के इस शुरुआती दौर में जो सब से चर्चित प्रेम कहानी पर बनी फ़िल्म आई, वह थी 'एक दूजे के लिए'। यह फ़िल्म तो जैसे एक ट्रेण्डसेटर सिद्ध हुई। सब कुछ नया नया सा था इस फ़िल्म में। नई अभिनेत्री रति अग्निहोत्री रातों रात छा गईं और दक्षिण के कमल हासन ने बम्बई में अपना सिक्का जमा लिया। और साथ ही गायक एस. पी. बालसुब्रह्मण्यम ने भी तो अपना जादू चलाया था इस फ़िल्म में। आनंद बक्शी के लिखे गीत, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सुपरडुपर हिट संगीत ने ऐसी धूम मचाई जिसकी गूँज आज तक सुनाई देती है। वैसे एल.पी को इस फ़िल्म के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार तो नहीं मिला था, लेकिन सब से बड़ा पुरस्कार इनके लिए तो यही है कि आज भी आये दिन इस फ़िल्म के गीत कहीं ना कहीं से सुनाई दे जाते हैं। चाहे "तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन हो" या "हम तुम दोनों जब मिल जाएँगे", "मेरे जीवन साथी प्यार किए जा" हो या "सोलह बरस की बाली उमर को सलाम", या फिर फ़िल्म का सब से लोकप्रिय शीर्षक गीत "हम बने तुम बने एक दूजे के लिए"। तो आइए दोस्तों, ८० के दशक को सलाम करते हुए आज इसी गीत को सुना जाए लता और एस.पी की युगल आवाज़ों में।

यह गीत अपने आप में एक रोमांटिक कॊमेडी है, एक बड़ा ही अनूठा और एकमात्र गीत है कि जिसमें नायक और नायिका दो अलग अलग प्रदेशों से होने की वजह से एक दूसरे की भाषा समझ नहीं पाते हैं, जिसकी वजह से गीत में हास्य रस समा जाता है। हिंदी तो है ही, अंग्रेज़ी और तमिल के शब्दों का भी इस्तेमाल है इस गीत में। यहाँ तक की बक्शी साहब ग़ालिब के नाम को भी ले आये हैं जब वो लिखते हैं कि "इश्क़ पर ज़ोर नहीं ग़ालिब ने कहा है इसीलिए..."। और सोने पे सुहागा इस गीत को तब लगती है जब आख़िर में लता जी हँसती हुई सुनाई देती है। सचमुच, लता जी की गाती हुई आवाज़ जितनी मधुर है, शायद उससे भी मीठी है उनकी हँसी। बहुत से गीतों में उनकी इस तरह की हँसी और मुस्कुराहट का संगीतकारों ने समय समय पर इस्तेमाल किया है, मसलन, "भँवरे ने खिलाया फूल", "सुन बाल ब्रह्मचारी मैं हूँ कन्याकुमारी", "थोड़ी सी ज़मीन थोड़ा आसमाँ", आदि। आप भी कुछ और गीतों की याद दिलाइए ना! ख़ैर, वापस आते हैं 'एक दूजे के लिए' पर, यह १९८१ की फ़िल्म थी। १९७८ से १९८१ तक एल.पी ने लगातार चार बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता था, और इस कड़ी को ख़य्याम साहब ने तोड़ा 'उमरावजान' के ज़रिए। पंकज राग के शब्दों में "व्यावसायिक्ता और लोकप्रियता के पायदान पर नम्बर एक पर स्थापित लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को ख़य्याम के अतिरिक्त आर. डी. बर्मन की 'कुदरत', 'याराना', 'साथी', और 'लवस्टोरी', शिव-हरि की 'सिलसिला', वार्षिक बिनाका गीतमाला में चोटी के गीत "मेरे अंगने में" वाले कल्याणजी-आनंदजी की 'लावारिस' और बप्पी लाहिड़ी की 'अरमान' ने कड़ी चुनौती दी और मिश्र शिवरंजनी में "तेरे मेरे बीच में", अहीर भरवी में "सोलह बरस की" और "हम बने तुम बने" जैसे गीतों के साथ 'एक दूजे के लिए' ही उनका उत्तर बनी।" तो आइए दोस्तों, ८० के दशक के इस महत्वपूर्ण फ़िल्म का यह सदाबहार युगल गीत सुनते हैं।



क्या आप जानते हैं...
कि एस. पी. बालसुब्रहमण्यम को 'एक दूजे के लिए' फ़िल्म के गायन के लिए १९८२ का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 10/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - ८० के दशक का एक और हिट गीत.

सवाल १ - पुरुष गायक बताएं - २ अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
श्याम जी कुछ दिनों से गायब हैं, वैसे शरद जी ने इस शृंखला में अजय बढ़त बना ली है, इंदु जी एक दम सही कहा आपने और देखिये आज के गीत का शीर्षक भी यही है. अमित जी ओल्ड इस गोल्ड लेकर हम भारतीय समानुसार शाम 6.30 पर हाज़िर होते हैं. अगर आप ठीक समय पर आ सकें तो, हमारे दिग्गजों को टक्कर दे सकते हैं

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, December 28, 2010

एक मैं और एक तू, दोनों मिले इस तरह....ये था प्यार का नटखट अंदाज़ सत्तर के दशक का



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 558/2010/258

'एक मैं और एक तू' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की आठवीं कड़ी में आज एक और ७० के दशक का गीत पेश-ए-ख़िदमत है। दोस्तों, फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की गायक-गायिका जोड़ियों में जिन चार जोड़ियों का नाम लोकप्रियता के पयमाने पर सब से उपर आते हैं, वो हैं लता-किशोर, लता-रफ़ी, आशा-किशोर और आशा-रफ़ी। ७० के दशक में इन चार जोड़ियों ने एक से एक हिट डुएट हमें दिए हैं। कल के लता-रफ़ी के गाये गीत के बाद आज आइए आशा-किशोर की जोड़ी के नाम किया जाये यह अंक। और ऐसे में फ़िल्म 'खेल खेल में' के उस गीत से बेहतर गीत और कौन सा हो सकता है, जिसके मुखड़े के बोलों से ही इस शृंखला का नाम है! "एक मैं और एक तू, दोनों मिले इस तरह, और जो तन मन में हो रहा है, ये तो होना ही था"। नये अंदाज़ में बने इस गीत ने इस क़दर लोकप्रियता हासिल की कि जवाँ दिलों की धड़कन बन गया था यह गीत और आज भी बना हुआ है। उस समय ऋषी कपूर और नीतू सिंह की कामयाब जोड़ी बनी थी और एक के बाद एक कई फ़िल्में इस जोड़ी के बने। 'खेल खेल में' १९७५ में बनी थी जिसका निर्देशन किया था रवि टंडन ने। वैसे तो इस फ़िल्म की कहानी कॊलेज में पढ़ने वाले युवाओं के हँसी मज़ाक से शुरु होती है, लेकिन कहानी तब सीरियस हो जाती है जब वे एक ख़तरनाक मुजरिम से भिड़ जाते हैं, और एक रोमांटिक फ़िल्म थ्रिलर में बदलकर रह जाती है। इस फ़िल्म में राकेश रोशन, अरुणा ईरानी और इफ़्तेखार ने भी अहम भूमिकाएँ अदा की थी। वैसे आपको यह भी बता दें कि इस फ़िल्म की कहानी मूल अंग्रेज़ी उपन्यास 'गूड चिल्ड्रेन डोण्ट किल' से ली गई है जिसके लेखक थे लूई थॊमस, जो नेत्रहीन थे, और यह उपन्यास सन् १९६७ में प्रकाशित हुआ था।

'खेल खेल में' फ़िल्म में संगीत था राहुल देव बर्मन का और गीत लिखे गुल्शन बावरा ने। दोस्तों, एक ज़माने में गुल्शन बावरा ने पंचम के लिए काफ़ी सारे फ़िल्मों में गीत लिखे थे। आज ये दोनों ही इस संसार में मौजूद नहीं हैं, लेकिन कुछ साल पहले 'यूनिवर्सल म्युज़िक' ने पंचम के जयंती पर एक ऐल्बम जारी किआ जिसका शीर्षक था - 'Untold Stories about Pancham - Rare Sessions of Gulshan Bawra'। तो आइए आज इसी ऐल्बम से चुनकर गुल्शन बावरा के कुछ शब्द पढ़ें जो उन्होंने अपने इस मनपसंद संगीतकार के लिए रेकॊर्ड करवाये थे। "संगीत उसकी ज़िंदगी थी, और वो ज़िंदगी का भरपूर मज़ा ले ही रहा था कि मौत के ख़तरनाक हाथों ने उसे अपने शिकंजे में ले लिया। आर. डी. बर्मन, यानी कि पंचम, उसके चाहनेवालों को, उसकी हमनवा, हमप्याला, गुल्शन बावरा का नमस्कार! दोस्तों, यह मेरा सौभाग्य है कि मैं यूनिवर्सल म्युज़िक के सौजन्य से अपने जिगरी दोस्त पंचम की बर्थ ऐनिवर्सरी पे उसको अपनी खट्टी मीठी यादों का गुल्दस्ता पेश कर रहा हूँ, इस आशा के साथ कि स्वग लोक में पंचम को इसकी भीनी भीनी ख़ुशबू आ रही होगी। पंचम देवी सरस्वती का पुजारी था। हर साल अपने घर में सरस्वती पूजा बड़ी धूम धाम से मनाता था। उस दिन अमिताभ बच्चन, जया, जीतेन्द्र, धर्मेन्द्र, ऋषी कपूर, रणधीर कपूर, डिरेक्टर्स में नासिर हुसैन, शक्ति सामंत, प्रमोद चक्रवर्ती, गीतकारों मे आनंद बक्शी, मजरूह सुल्तानपुरी साहब, गुलज़ार और मैं, हम सब इकट्ठा होते। पहले पूजा होती, और उसके बाद लंच होता। लंच बड़ा ही लज़ीज़ होता था और एस्पेशियली बैंगन के जो पकोड़े बनते थे, उनका तो मज़ा ही अलग था। और सोने पे सुहागा, आशा जी बड़े प्यार से सबको सर्व करती थीं। जितने भी पंचम के म्युज़िशियन्स थे, उस दिन ख़ूब एन्जॊय करते थे।" दोस्तों, आगे और भी बहुत बातें बावरा साहब ने कही है जिन्हें हम हौले हौले आप तक पहुँचाते रहेंगे। फिलहाल जवाँ दिलों की धड़कन बना यह गीत आपकी नज़र कर रहे हैं, "एक मैं और एक तू"। बड़ा ही पेपी नंबर है, एक हल्का फुल्का रोमांटिक डुएट, जिसमें किशोर दा की मीठी शरारती अंदाज़ भी है और आशा जी की शोख़ी भी। सुनते हैं...



क्या आप जानते हैं...
कि फ़िल्म 'खेल खेल में' में मिथुन चक्रवर्ती ने एक 'एक्स्ट्रा' के तौर पे अभिनय किया था।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 9/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - पुरुष गायक बताएं - २ अंक
सवाल २ - इस सफल फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री का नाम बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार शरद जी ने बढ़त बना ली है, अमित तिवारी जी, सिर्फ एक सवाल का जवाब देना है सभी का नहीं, अंतः अंक शून्य

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Monday, December 27, 2010

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है....मीर ने दी चिंगारी तो मजरूह साहब ने बात कर दी आम इश्क वाली



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 557/2010/257

'एक मैं और एक तू' - फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के सदाबहार युगल गीतों से सजी इस लघु शृंखला में आज बारी ७० के दशक की। आज का यह अंक हम समर्पित कर रहे हैं १८-वीं शताब्दी के मशहूर शायर मीर तक़ी मीर के नाम। जी हाँ, उनकी लिखी हुई एक मशहूर ग़ज़ल से प्रेरीत होकर मजरूह सुल्तानपुरी ने यह गीत लिखा था - "पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है"। यह पूरा मुखड़ा मीर के उस ग़ज़ल का पहला शेर है। आगे गीत के तीन अंतरे मजरूह साहब ने ख़ुद लिखे हैं। इन्हे आप गीत को सुनते हुए जान ही लेंगे, लेकिन क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि मीर के उस ग़ज़ल के बाक़ी शेर कौन कौन से थे? लीजिए हम यहाँ पेश कर रहे हैं उस पुराने ग़ज़ल के कुल ७ शेर।

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है,
जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है।

आगे उस मुतकब्बर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं,
कब मौजूद ख़ुदा को वो मग़रूर ख़ुद-आरा जाने है।

आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में,
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है।

चारा गरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं,
वरना दिलबर-ए-नादाँ भी इस दर्द का चारा जाने है।

मेहर-ओ-वफ़ा-ओ-लुतफ़-ओ-इनायत एक से वाक़ीफ़ इन में नहीं,
और तो सब कुछ तन्ज़-ओ-कनया रम्ज़-ओ-इशारा जाने है।

आशिक़ तो मुर्दा है हमेशा जी उठता है देखे उसे,
यार के आ जाने को यकायक उम्र दोबारा जाने है।

तश्ना-ए-ख़ून भी अपना कितना मीर भी नादाँ तल्ख़ीकश,
दमदार आब-ए-तेग़ को उसके आब-ए-गवारा जाने है।


लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ों में यह फ़िल्म 'एक नज़र' का गीत है। गीतकार का नाम तो हम बता ही चुके हैं, संगीतकार हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल। 'एक नज़र' शीर्षक से दो फ़िल्में बनीं हैं। एक १९५७ में, जिसमें रवि का संगीत था और जिसमें तलत महमूद के गाए कुछ अच्छे गानें भी थे। आज का गीत १९७२ की 'एक नज़र' का है जिसमें मुख्य कलाकार थे अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी। यह फ़िल्म उन दोनों के करीयर के साथ साथ काम किया हुआ सब से बड़ी फ़्लॊप फ़िल्म साबित हुई। इसी समय इन दोनों ने 'बंसी बिरजु' फ़िल्म में भी काम किया था और वह भी असफल रही। आज 'एक नज़र' फ़िल्म को अगर कोई याद करता है तो बस इस दिलकश गीत की वजह से। दोस्तों, प्यार भरे युगल गीतों की इस शृंखला में आइए आज सुनते हैं स्वर कोकिला लता जी और गायकी के शहंशाह रफ़ी साहब की आवाज़ें! लेकिन गीत सुनने से पहले एक अंतरा और पढ़ लीजिए इस गीत का जिसे मैंने लिखने की गुस्ताख़ कोशिश की है...

"तूने ही तो कहा था, मरना हमें गवारा नहीं,
हमको तो ज़िंदा रहके, करनी है दुनिया में रोशनी,
कितनी सच्ची कही है, कितनी अच्छी कही है,
दिल को बहुत ही भाये है, पत्ता पत्ता...."।



क्या आप जानते हैं...
कि लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने साथ में कुल ४४० युगल गीत गाए हैं।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 8/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - गीतकार बताएं - २ अंक
सवाल २ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी ये आपने क्या किया...अंक नहीं मिल पायेंगें, शरद जी का तुक्का एकदम सही है

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Sunday, December 26, 2010

तुझे प्यार करते हैं करते रहेंगें.... जब प्यार में कसमें वादों का दौर चला



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 556/2010/256

रोमांटिक फ़िल्मी गीतों में जितना ज़्यादा प्रयोग "दिल" शब्द का होता आया है, शायद ही किसी और शब्द का हुआ होगा! और क्यों ना हो, प्यार का आख़िर दिल से ही तो नाता है। हमारे फ़िल्मी गीतकारों को जब भी इस तरह के हल्के फुल्के प्यार भरे युगल गीत लिखने के मौके मिले हैं, तो उन्होनें "दिल", "धड़कन", "दीवाना" जैसे शब्दों को जीने मरने के क़सम-ए-वादों के साथ मिला कर इसी तरह के गानें तैयार करते आए हैं। आज हमने जो गीत चुना है, वह भी कुछ इसी अंदाज़ का है। गीत है तो बहुत ही सीधा और हल्का फुल्का, लेकिन बड़ा ही सुरीला और प्यारा। हसरत जयपुरी साहब रोमांटिक गीतों के जादूगर माने जाते रहे हैं, जिनकी कलम से न जाने कितने कितने हिट युगल गीत निकले हैं, जिन्हे ज़्यादातर लता-रफ़ी ने गाए हैं। लेकिन आज हम उनका लिखा हुआ जो गीत आप तक पहुँचा रहे हैं उसे रफ़ी साहब ने लता जी के साथ नहीं, बल्कि सुमन कल्याणपुर के साथ मिलकर गाया है फ़िल्म 'अप्रैल फ़ूल' के लिए। शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में यह गीत है "तुझे प्यार करते हैं करते हैं करते रहेंगे, के दिल बनके दिल में धड़कते रहेंगे"। 'अप्रैल फ़ूल' १९६४ की फ़िल्म थी जिसके मुख्य कलाकार थे बिस्वजीत और सायरा बानो। सुबोध मुखर्जी निर्मित व निर्देशित इस फ़िल्म का शीर्षक गीत आज भी बेहद लोकप्रिय है जिसे हम हर साल पहली अप्रैल के दिन याद करते हैं।

जैसा कि अभी हमने आपको बताया कि 'अप्रैल फ़ूल' १९६४ की फ़िल्म थी। और यही वो समय था जब लता जी और रफ़ी साहब ने रायल्टी के विवाद की वजह से एक दूसरे के साथ गीत गाना बंद कर दिया था। १९६३ से लेकर अगले तीन-चार सालों तक इन दोनों ने साथ में कोई भी युगल गीत नहीं गाया, और १९६७ में सचिन देव बर्मन के मध्यस्थता के बाद 'ज्वेल थीफ़' में "दिल पुकारे आ रे आ रे आ रे" गा कर इस झगड़े को ख़त्म किया। हमने इस बात का ज़िक्र यहाँ पर इसलिए किया क्योंकि बात रफ़ी साहब और सुमन कल्याणपुर के गाने की चल रही है। जी हाँ, लता जी के रफ़ी साहब के साथ ना गाने की वजह से फ़िल्म निर्माता और संगीतकार सुमन जी की आवाज़ की ओर आकृष्ट हुए क्योंकि एक सुमन जी ही थीं जिनकी आवाज़ लता जी से बहुत मिलती जुलती थी। ज़रा ग़ौर कीजिए दोस्तों कि संगीतकारों ने लता जी के बदले आशा जी को लेना गवारा नहीं किया, बल्कि सुमन जी की आवाज़ ली। इसी से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि लता जी जैसी आवाज़ की क्या डिमाण्ड रही होगी उस ज़माने में। ख़ैर, इस विवाद की वजह से अगर किसी को फ़ायदा हुआ तो वो थीं सुमन जी। इन तीन सालों में सुमन जी को रफ़ी साहब के साथ कई कई हिट गीत गाने के सुयोग मिले और आज का प्रस्तुत गीत भी उन्ही में से एक है। कुछ मशहूर रफ़ी - सुमन डुएट्स की याद दिलाएँ आपको जो इन तीन सालों के भीतर बनीं थीं?

दिल एक मंदिर (१९६३) - "दिल एक मंदिर है"
जहाँ-आरा (१९६४) - "बाद मुद्दत के ये घड़ी आई"
कैसे कहूँ (१९६४) - "मनमोहन मन में हो तुम्ही"
जी चाहता है (१९६४) - "ऐ जाने तमन्ना ऐ जाने बहारा"
बेटी-बेटे (१९६४) - "अगर तेरा जल्वा नुमाई ना होती, ख़ुदा की क़सम ये ख़ुदाई ना होती"
राजकुमार (१९६४) - "तुमने पुकारा और हम चले आए"
सांझ और सवेरा (१९६४) - "अजहूँ ना आए साजना सावन बीता जाए"
शगुन (१९६४) - "पर्बतों के पेड़ों पे शाम का बसेरा है"
आधी रात के बाद (१९६५) - "बहुत हसीं हैं तुम्हारी आँखें"
मोहब्बत इसको कहते हैं (१९६५) - "ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा"
भीगी रात (१९६५) - "ऐसे तो ना देखो के बहक जाएँ"
जब जब फूल खिले (१९६५) - "ना ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे"
दिल ने फिर याद किया (१९६६) - "दिल ने फिर याद किया बर्फ़ सी लहराई है"
सूरज (१९६६) - "इतना है तुमसे प्यार मुझे मेरे राज़दार"
साज़ और आवाज़ (१९६६) - "किसने मुझे पुकारा, किसने मुझे सदा दी"
ममता (१९६६) - "रहें ना रहें हम महका करेंगे"
ग़ज़ल (१९६६) - "मुझे ये फूल ना दे तुझे दिलबरी की क़सम"
छोटी सी मुलाक़ात (१९६७) - "तुझे देखा, तुझे चाहा, तुझे पूजा मैंने"
चांद और सूरज (१९६५) - "तुम्हे दिल से चाहा तुम्हे दिल दिया है"
फ़र्ज़ (१९६७) - "तुमसे ओ हसीना कभी मोहब्बत ना मैंने करनी थी"
पाल्की (१९६७) - "दिल-ए-बेताब को सीने से लगाना होगा"
ब्रह्मचारी (१९६८) - "आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़बान पर"

तो दोस्तों, देखा आपने कि कैसे कैसे हिट गीत इन तीन चार सालों में सुमन जी को रफ़ी साहब के साथ गाने को मिले थे। वैसे इनके अलावा भी, इन चंद सालों के बाहर भी इन दोनों ने और भी बहुत से हिट युगल गीत गाए, लेकिन जो कामयाबी उन्हे इन गीतों में मिली, वह शायद इससे पहले या इसके बाद नहीं मिली होगी। ख़ैर, आइए अब सुना जाए आज का गीत फ़िल्म 'अप्रैल फ़ूल' से।



क्या आप जानते हैं...
कि सुमन कल्याणपुर ने सन् १९५४ में संगीतकार मोहम्मद शफ़ी के निर्देशन में फ़िल्म 'मंगू' में पहली बार गीत गाया था और उस गीत के बोल थे "कोई पुकारे धीरे से तुझे"।

दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)

पहेली 7/शृंखला 06
गीत का ये हिस्सा सुनें-


अतिरिक्त सूत्र - किसी अन्य सूत्र की दरकार नहीं.

सवाल १ - किस मशहूर शायर की है मूल रचना - २ अंक
सवाल २ - किस गीतकार ने इस ग़ज़ल को आगे बढ़ाया है फिल्म के लिए - १ अंक
सवाल ३ - संगीतकार बताएं - १ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
गलत जवाब है श्याम कान्त जी.....आपने २ अंक गँवा दिए....इंदु जी और रोमेंद्र जी एक एक अंक जरूर कमाए

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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