Saturday, April 4, 2009

सुनो कहानी: मंटो की एक लघुकथा



मंटो की एक लघुकथा

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'बड़े घर की बेटी' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं मंटो की एक लघुकथा, जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 2 मिनट।

संचिका पर इस कहानी का टेक्स्ट उपलब्ध कराने के लिए हम लवली कुमारी जी के आभारी हैं

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।



पागलख़ाने में एक पागल ऐसा भी था जो ख़ुद को ख़ुदा कहता था.
~ सआदत हसन मंटो (१९१२-१९५५)

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी

लोग लुटा हुआ माल डर के मारे अँधेरे में बाहर फेंकने लगे. कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने मौका पाकर अपना माल भी अपने से अलग कर दिया ताकि कानूनी गिरफ्त से बचे रहें.
(मंटो की लघुकथा से एक अंश)


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यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
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#Fifteenth Story, Laghukatha: Sa'adat Hasan Manto/Hindi Audio Book/2009/10. Voice: Anurag Sharma

कर ले प्यार कर ले के दिन हैं यही...आशा का जबरदस्त वोईस कंट्रोल



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 42

हेलेन का अंदाज़ और आशा भोंसले की आवाज़. ऐसा लगता है जैसे आशाजी की आवाज़ हेलेन के अंदाज़ों की ही ज़ुबान है. इसमें कोई शक़ नहीं कि अपनी आवाज़ से अभिनय करनेवाली आशा भोंसले ने हेलेन के जलवों को पर्दे पर और भी ज़्यादा प्रभावशाली बनाया है. चाहे ओ पी नय्यर हो या एस डी बर्मन, या फिर कल्याणजी आनांदजी, हर संगीतकार ने समय समय पर इस आशा और हेलेन की जोडी को अपने दिलकश धुनों से बार बार सजीव किया है हमारे सामने. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में आशा भोंसले, हेलेन और एस डी बर्मन मचा रहे हैं धूम फिल्म "तलाश" के एक 'क्लब सॉंग' के ज़रिए. ऐसे गीतों के लिए उस ज़माने में आशा भोंसले के अलावा किसी और गायिका की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन आशाजी के लिए बर्मन दादा का यह गीत इस अंदाज़ का पहला गीत नहीं है. क्या आप को पता है कि आशाजी ने बर्मन दादा के लिए ही पहली बार एक 'कैबरे सॉंग' गाया था फिल्म टॅक्सी ड्राइवर (1953) में? इतना ही नहीं, आशाजी का गाया हुआ बर्मन दादा के लिए यह पहला गाना भी था. याद है ना आपको वो गीत? चलिए हम याद दिला देते हैं, वो गीत था टॅक्सी ड्राइवर फिल्म का जिसके बोल थे "जीने दो और जियो...मारना तो सब को है जीके भी देख ले, चाहत का एक जाम पी के भी देख ले". इसके बाद जुवेल थीफ में "रात अकेली है" गीत बेहद मशहूर हुआ था. और फिर उसके बाद फिल्म तलाश का यह मचलता नग्मा.

दोस्तों, फिल्म तलाश के बारे में हमने कुछ दिन पहले भी ज़िक्र किया था जब हमने आपको बर्मन दादा का गाया "मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में" सुनवाया था. इसलिए आज हम इस फिल्म की बात यहाँ नहीं करेंगे. बल्कि आज आपको हम यह बताएँगे की बर्मन दादा ने आशा भोंसले के बारे में अमीन सयानी के कार्यक्रम संगीत के सितारों की महफ़िल में क्या कहा था. साल था 1972, मौका आशा भोंसले के फिल्मी गायन के 25 साल पूरा हो जाने का जश्न. उस जश्न में एस डी बर्मन ने कहा था: "मैने जब भी कोई धुन बनाकर आशा को सुनाया, उन्हे बहुत जल्दी याद हो गया. 'सिंगर' में यह बहुत बडा गुण है. आशा बहुत महान कलाकार है, हर तरह का गीत गाने की योग्यता है उनमें, 'दर्द भरे सॉंग, हैप्पी सॉंग, कैबरे सॉंग, रोमांटिक सॉंग', सब कुछ गा सकना आशा के 'वर्सटाइल' होने का 'प्रूफ' है. 'वोईस कंट्रोल' ऐसा है कि गीत के एक ही 'लाइन' में 'हस्की वोईस' में गा सकती है और उसी में ज़ोर से चिल्ला भी सकती है. मेरा एक गाना है जिसमें यह ज़बरदस्त 'वौइस् कंट्रोल' का 'उदाहरण' मैं आपको सुनाता हूँ...". जी हाँ दोस्तों, और ये कहकर बर्मन दा ने यही गीत सबको सुनवाया था. आप भी सुनिए...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. संगीतकार रोशन की बेहद यादगार सदाबहार कव्वाली.
२. फिल्म का नाम "दिल" शब्द से शुरू होता है.
३. इसी फिल्म में मन्ना डे साहब ने एक गीत गाया था जिसके नाम पर रानी मुखर्जी की एक फिल्म भी बनी थी.

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
जब इतने मशहूर गानों पर हमारे धुरंधर चूक जाते हैं तब दुःख होता है. अभिषेक जी जब भी समस्या आये पृष्ठ को रिफ्रेश कर दिया कीजिये. राज सिंह जी आपने बहुत अच्छा याद दिलाया. फिल्म की नायिका तरला के बारे में अधिक कुछ जानकारी उपलब्ध नहीं है. राज भाटिया जी हमें यकीन था ये गीत आपको अवश्य अच्छा लगेगा. मनु जी क्लब सोंग्स की फेहरिस्त बहुत लम्बी है. सुनने शुरू कर दीजिये. इनमें बहुत विविधतता है. अब आज का ही गीत लें. आज भी कोई इस गीत में आशा को टक्कर नहीं दे सकेगा.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.




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Friday, April 3, 2009

जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम....खेल अधूरा छूटे न...



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 41

हते हैं कि "ज़िंदगी हर क़दम एक नयी जंग है, जीत जाएँगे हम तू अगर संग है". हमसफ़र का अगर साथ हो तो ज़िंदगी की कोई भी बाज़ी आसानी से जीती जा सकती है, ज़िंदगी का सफ़र बडे ही सुहाने ढंग से तय किया जा सकता है. चाहे दुनिया कितनी भी रुकावटें खडी करें, चाहे कितनी भी परेशानियाँ दीवार बनकर सामने आए, अगर कोई सच्चा साथी साथ में हो तो ज़िंदगी के हर खेल को पूरा खेला जा सकता है. कुछ इसी तरह की बात कही गयी है आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' में शामिल गीत में. मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर की आवाज़ों में "शोला और शबनम" फिल्म से आज हम लेकर आए हैं "जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम". शोला और शबनम रमेश सहगल की फिल्म थी जिसे उन्होने 1961 में बनाया था. अभी भट्टाचार्य और विजयलक्ष्मी अभिनीत इस फिल्म में ज़बरदस्त 'स्टारकास्ट' तो नहीं थी, लेकिन अच्छी कहानी, अच्छा अभिनय, बेहतरीन निर्देशन और मधुर गीत संगीत की वजह से इस फिल्म को लोगों ने सराहा और आज भी इस फिल्म के गाने बडे चाव से सुने जाते हैं, ख़ास कर ये गीत.

फिल्म शोला और शबनम के संगीतकार थे ख़य्याम. 1949 में शर्मा जी के नाम से उन्होने पहली बार फिल्म "परदा" में संगीत दिया था. इसी नाम से उन्होने 1950 की फिल्म "बीवी" में भी एक गीत को स्वरबद्ध किया था. उस वक़्त के सांप्रदायिक तनाव के चलते उन्होने अपना नाम बदलकर शर्मा जी रख लिया था. लेकिन 1953 में जिया सरहदी की फिल्म "फुटपाथ" में ख़य्याम के नाम से संगीत देकर वो फिल्म संगीत संसार में छा गये. इसके बाद कुछ सालों तक वो फिल्मों में संगीत तो देते रहे लेकिन कुछ बात नहीं बनी. 1958 में फिल्म "फिर सुबह होगी" उनके फिल्मी सफ़र में एक बार फिर से सुबह लेकर आई और उसके बाद उन्हे अपार शोहरत हासिल हुई. शोला और शबनम भी उनके सफ़र का एक महत्वपूर्ण पडाव था. ख़य्याम के संगीत की ख़ासीयत थी कि वो कम साज़ों का इस्तेमाल करते और उनके संगीत में एक ग़ज़ब का ठहराव होता था जो मन को एक अजीब सुकून से भर देता था. इस गीत में भले बहुत ज़्यादा ठहराव ना हो, लेकिन जहाँ तक सुकून का सवाल है, तो यह गीत भी उसी श्रेणी में शामिल होता है. गीत के शुरू में 'पियानो' का सुंदर प्रयोग हुआ है. तो लीजिए पेश है 'ओल्ड इस गोल्ड' में "जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम". गीतकार हैं कैफ़ी आज़मी.



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. हेलन के लिए आशा का गाया एक और क्लब सोंग.
२. बर्मन दा सीनियर का संगीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"पगले"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
पारुल ने तो रंग ही जमा दिया इस बार, मनु जी आप हर बार पीछे छूट जाते हैं...:), शोभा जी आते रहिये, महफिल आप से ही रोशन है.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.




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रामराज्य बापू का सपना, इस धरती पर लाओ राम



रामनवमी पर सुनिए अमीर खुसरो, कबीर, तुलसी और राकू को

वैष्णव हिन्दू हर वर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अपने भगवान श्रीराम के जन्मदिवस का त्योहार मनाते हैं। वर्ष २००९ में यह तिथि ३ अप्रैल को आयी है, इस दिवस पर रामनवमी नाम का त्यौहार मनाया जाता है। पुराण-कथाओं के अनुसार श्री राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता हैं। मान्यता है कि तीनों लोकों में धर्म की स्थापना के लिए ब्रह्म, विष्णु और महेश (शिव) नामक तीन तंत्र हैं और इनके काउँटरपार्टों की भी संकल्पना की गई है।

रामनवमी का त्योहार इस बात की याद दिलाता है कि मनुष्य को धर्म में आस्था कभी नहीं छोड़नी चाहिए। अधर्म कितना भी अपना अंधकार फैला ले, भगवान देर ही सही अभय प्रकाश लेकर ज़रूर अवतरित होते हैं। रामायण की कथा में महर्षि वाल्मिकी लिखते हैं कि अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्‍नियाँ होने के बावज़ूद उन्हें कोई पुत्र नहीं था। दशरथ को अपने राजवंश के खत्म होने का डर था। शंका से ग्रस्त राजा दशरथ को वशिष्ठ ऋषि ने आशा का छोर न छोड़ने की सलाह दी और पुत्र-प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का रास्ता दिखलाया। पुत्र-कामेष्टि यज्ञ के अनुष्ठान के फलस्वरूप दशरथ को ४ पुत्रों का प्रसाद मिला था, जिसमें सबसे पहले भगवान विष्णु ने राम के रूप में कौशल्या के गर्भ में अवतार लिया था।
प्रतीक रूप में इस त्योहार को मनाने का एक उद्देश्य यह भी है कि मनुष्य को अधर्म के खिलाफ जंग ज़ारी रखनी चाहिए, क्योंकि ईश्वर के यहाँ देर है, अंधेर नहीं है।

सुन लो मेरी मेरे रघुराई
लगादो पार नैइया मेरे रघुराई
भव-सागर को पार करा दो
सुन लो मेरी दुहाई
लगादो...............................
जन्म मरन का बंधन टूटे
छुट जाए आवा जाई
लगादो ............................
तेरे दरस को नैना तरसे
तुझसे लौ जो लगाई
लगादो ............................
आँख पड़ा है लोभ का परदा
देता कुछ न दिखाई
लगादो ..........................
वचन की खातिर वन को चल गए
रघुकुल रीत निभाई
लगादो पार....................

-रचना श्रीवास्तव
महाकाव्य रामायण के तुलसी-संस्करण 'राम चरित मानस' के राम भारत के जन-जन में बसे हैं। राम भारत का इतना प्रभावशाली व्यक्तित्व है कि इसने भारत के भूत और वर्तमान दोनों को बराबर रूप में प्रभावित किया है। राम चरित मानस के बराबर साहित्य की कोई और कृति दुनिया में कहीं भी इस तरह से लोगों की रूह में नहीं समा सकी।

शोखी-ए-हिन्दू ब बीं, कुदिन बबुर्द अज खास ओ आम,
राम-ए-मन हरगिज़ न शुद हर चंद गुफ्तम राम राम।
-------अमीर खुसरो,
(हर आम और खास जान ले कि राम हिंद के शोख, शानदार शख्सियत हैं। राम मेरे मन में हैं और हरगिज़ न अलग होंगे, जब भी बोलूँगा राम राम बोलूँगा।)

क्रांतिकारी कवि कबीर ने भी राम को तरह-तरह के प्रतीकों में इस्तमाल किया। एक दोहा देखें

राम मिले निर्भय भय ,रही न दूजी आस
जाई सामना शब्द में राम नाम विस्वास
..........संत कबीर दास

तुलसीदास ने कहा-

नीलाम्बुजं श्यामलकोमलांगम्, सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौमहासायकचारुचापम्, नमामिरामम् रघुवंशनाथम्।।


नमामि रामम्
लेकिन हम बात करने जा रहे हैं एक ख़ास गीत की जिसमें महात्मा गाँधी का रामराज्य के सपने को याद किया गया है। इस गीत के संकल्पनाकर्ता राजकुमार सिंह 'राकू' अपने श्रीराम से कृपा करने की गुहार लगा रहे हैं। कह रहे हैं कि 'रामराज्य बापू का सपना, इस धरती पर लाओ राम'। सुनें-


(हमेशा सुनने के लिए डाऊनलोड करें)
इस गीत में शुरू में अमीर खुसरों के बोल हैं। उसके बाद कबीरदास के, फिर तुलसीदास के और शेष गीत राकू ने खुद लिखा है।

राकू
राकू ने इस गीत को 'नाममि रामम्' नाम दिया है। राकू कहते हैं-
" 'नमामि रामम्' एक विनम्र आदरांजलि है हमारी अमर धरोहर श्री राम कों जो वस्तुतः किसी भी धर्म, भाषा, क्षेत्र से परे हैं। अमीर खुसरो, कबीर और संत तुलसीदास जैसे महान कवियों ने हमारी इस सांस्कृतिक पहचान के प्रति अगाध श्रद्धा, प्रेम और सम्मान व्यक्त किया है।'नमामि रामम्'संगीत के माध्यम से उसी मान,निष्ठा और श्रद्धा को समर्पित अभिव्यक्ति है।"

इस गीत के एल्बम का लोकार्पण गांधी निर्वाण के दिन (३० जनवरी २००८ को) बापू के साबरमती आश्रम में, आश्रम के मुख्य ट्रस्टी ललित भाई मोदी के हाथों संपन्न हुआ था। जिसमें देश-विदेश से आये बहुत सारे महानुभाओं ने हिस्सा लिया और प्रार्थना सभा के बाद चर्चा भी की।

मुख्य बात जो कही गयी कि इस गीत में ' रामराज्य' लाने की कही गयी है और वह 'रामराज्य' बापू के ही रामराज्य की परिकल्पना है।

बापू के 'रामराज्य' की परिकल्पना
राष्ट्रपिता बापू के संघर्ष का लक्ष्य था 'रामराज्य', जिसकी शुरूआत 'अन्त्योदय' से होनी थी यानी समाज के सबसे पिछडे की सेवा सर्वप्रथम, का वादा था। इसी क्रम से सम्पूर्ण समाज के सम्पूर्ण उदय का दर्शन था ' सर्वोदय'।

गीत की टीम
प्रार्थना- अमीर खुसरो, संत कबीर और संत तुलसी दास
निवेदन और गीत- राजकुमार सिंह 'राकू'
संगीत- विवेक अस्थाना एवं राकू

गायक- राजा हसन तथा सुमेधा [२००७ के सा रा गा मा के अंतिम चरण के विजेता]
प्रोग्रामिंग तथा डिजाइन- न्रिपंशु शेखर
रिकॉर्डिस्ट- साहिल खान
वाद्य:
सितार-
उमाशंकर शुक्ल, बांसुरी- विजय ताम्बे, हारमोनियम- फिरोज़ खान
रिदम- मकबूल खान व ताल वाद्य- शेखर
कोरस(साथी गायक)- नीलेश ब्रह्मभट्ट, संगम उपाध्याय, हिमांशु भट्ट, शोभा सामंत, सुगन्धा लाड, संजय कुमार
रिकॉर्डिंग- आर्यन्स स्टूडियो (मुंबई)

अमीर खुसरो (१२५३-१३२५)- एक संक्षिप्त परिचय
कवी, संगीतज्ञ, इतिहासकार, बहुभाषा शास्त्री और इन सब से बढ़ एक सूफी संगीत वाहक, जिसने शांति, सद्‍भाव, भाईचारा और सर्वधर्म समभाव को बताया और जिया। फारसी, तुर्की, अरबी और संस्कृत के विद्वान जिसने हिंदी-उर्दू (जिसे वे 'हिंदवी' कहते थे) में ही रचनाएँ नहीं की बल्कि हिंदी की बोलियों ब्रज और अवधी वगैरह में भी गीत लिखे। फारसी में लिखा उनका विशाल भंडार भी है। ' हिंदवी' के पहले कवी जिन्होंने न इस भाषा को गढ़ा बल्कि हजारों गीतों, दोहों, पहेलियों, कह्मुकर्नियों आदि हर विधा में लिखा और गाया भी। उसमें समाई मानवीय करुणा से सबका मन जीता और अस्सीम सम्मान और प्यार पाया।
बहुत ही आला संगीत प्रेमी जिन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रतिमान गढ़े, जो आज तक निरंतर बने हुए हैं। उन्होंने पखावज से तबले का इज़ाद किया और वीणा को सितार का रूप दिया। महान सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया के प्रिय शिष्य रहे। जिन्होंने उनके भीतर समग्र मानवता के लिए एक गहरी सोच, करुणा, स्नेह और प्रेम भर दिया। यही 'खुसरो' को उस उच्चता पर प्रतिष्ठित करता है जिसकी अगली कड़ियाँ कबीर, सूर, तुलसी, नानक, मीरा, नामदेव, रैदास आदि उच्च संतों में प्रतिध्वनित होती हैं। यही भारत के इस महानतम पुत्र की उच्चता का पड़ाव है। ' खुसरो' खुद को 'तुतिये हिंद' यानी हिंद का तोता कहते थे, जो मीठा बोलता है.............. ' राम-राम' बोलता है। महान कवि ग़ालिब ने ये पूछे जाने पर की उनकी शायरी में इतनी मिठास कैसे? लिखा...........

" ग़ालिब मेरे कलाम में क्यूं कर मजह न हो,
पीता हूँ धो के खुसरावो शीरीं सुखन के पाँव।"



Thursday, April 2, 2009

है इसी में प्यार की आबरू....लता की आवाज़ में कसक दर्द की



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 40

हते हैं कि प्यार अंधा होता है. दिमाग़ कहता है कि वो बेवफा है, लेकिन दिल है कि उनसे वफ़ा पे वफ़ा किये जा रहा है. शायद इसलिए कि दिल यह नहीं चाहता कि उसका प्यार बदनाम हो, बे-आबरू हो. "वो मेरे यादों से जाते नहीं हैं, नींद भी अब एक पल को आती नहीं है, गम की बातों में बस डूबा है दिल, बात कोई और दिल को भाती नहीं है". दर्द में कोई मौसम प्यारा नहीं होता, दिल हो प्यासा तो पानी से गुज़ारा नहीं होता, कोई देखे तो हमारी बेबसी, हम सभी के हो जाते हैं, पर कोई हमारा नहीं होता. मुझे गम भी उनका अज़ीज़ है, यह उन्ही की दी हुई चीज़ है. दिल तो वफ़ा पे वफ़ा किये जा रहा है लेकिन वो वफ़ा भी अगर रिश्ते को बचा ना सके तो फिर दिल क्या करे! कुछ ऐसी ही बात कही गयी है हमारे आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' के गीत में. और इतनी खूबसूरत अंदाज़ में कहा गया है कि गीत एक सदाबहार नग्मा बनकर रह गया है. रजा मेहंदी अली खान, मदन मोहन, लता मंगेशकर, और एक फिल्मी ग़ज़ल, और क्या चाहिए दोस्तों, कमाल तो होना ही था!

1962 की फिल्म "अनपढ़" में ऐसे ही दो ग़ज़लें लताजी की थी जिन्हे पर्दे पर माला सिन्हा ने गाया था. "आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे" और "है इसी में प्यार की आबरू, वो जफ़ा करे मैं वफ़ा करूँ". इससे पहले कि आप ग़ज़ल सुने, ज़रा पढिये तो सही कि नौशाद साहब ने विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में इन दो ग़ज़लों के बारे में क्या कहा था - "मैने एक बार 'रेडियो' सुन रहा था, उसमें बहुत ही दिलकश ग़ज़ल आ रही थी, फिल्म थी अनपढ़, ग़ज़ल के बोल थे "है इसी में प्यार की आबरू". मैने 'म्यूज़िक डाइरेक्टर' का नाम पता किया, मरहूम मदन मोहन साहब. मैने उनसे 'अपायंटमेंट' लिया और उनके घर पहुँच गया. मैने उनसे कहा कि मैं यह कहने आया हूँ कि आपकी अनपढ़ फिल्म की यह दो ग़ज़लें मुझे बहुत पसंद आयी, आपकी यह दो ग़ज़लें एक तरफ और मेरे सारे गाने एक तरफ. यह सुनकर मदन मोहन मेरे गले लगकर रोने लगे, कहा कि आप मुझसे काफ़ी 'सीनियर' हैं, मैं तो आपका 'जूनियर' हूँ. मैने कहा कि 'नहीं, जो सच है वो सच है, और मैं यह सबके सामने भी कहूँगा'. कुछ दिनों बाद एक 'ग्रामोफोन कंपनी' के जलसे में 'प्रेस' और पूरी 'पब्लिक' के सामने मैने यही बात कही." देखा दोस्तों आपने कि उस ज़माने में एक फनकार दूसरे फनकार की किस तरह से क़द्र किया करते थे! यही तो है सच्चे फनकार की निशानी. तो अब सुनिए "है इसी में प्यार की आबरू".



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. खय्याम साहब ने इस फिल्म में शर्मा जी के नाम से संगीत दिया था.
२. रफी लता का क्लासिक दोगाना, गीतकार हैं कैफी आज़मी.
३. मुखड़े में शब्द है - "खेल"

पिछली पहेली का परिणाम -
हमें लगा नौशाद साहब का नाम आने से सुविधा हो जायेगी. पर सब अंदाजे ही लगाते रहे. फिर भी नीरज जी ने दूसरी कोशिश में कैच लपक ही लिया. बहुत बढ़िया. दिलीप जी जानकारी को आगे बढ़ाने के लिए धन्येवाद. आपकी आवाज़ में अगर इस गीत की कोई रिकॉर्डिंग उपलब्ध हों तो भेजें.

कुछ याद आया...?



खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

अखियाँ नु चैन न आवें....नुसरत बाबा का रूहानी अंदाज़ महफ़िल-ए-ग़ज़ल में



महफ़िल-ए-ग़ज़ल # ०१

ब तो आ जा कि आँखें उदास बैठी हैं,
भूलकर होश-औ-गुमां बदहवास बैठी हैं।


इश्क की कशिश हीं ऎसी है कि साजन सामने हो तो भी कुछ न सूझे और दूर जाए तब भी कुछ न सूझे। इश्क की तड़प हीं ऎसी है कि साजन आँखों में हो तो दिल को सुकूं न मिले और दिल में हो तो आँखों में कुछ चुभता-सा लगे। रूह तब तक मोहब्बत के रंग में नहीं रंगता जब तक पोर-पोर में साजन की आमद न हो। लेकिन अगर दिल की रहबर "आँखें" हीं साजन के दरश को प्यासी हों तो बिन मौसम सावन न बरसे तो और क्या हो। यकीं मानिए सावन बारहा मज़े नहीं देता :

आँखों से अम्ल बरसे जो दफ़-अतन कभी,
छिल जाए गीली धरती,खुशियाँ जलें सभी।


बाबा नुसरत ने कुछ ऎसे हीं भावों को अपने मखमली आवाज़ से सराबोर किया है। "बैंडिट क्वीन" से यह पंजाबी गीत आप सबके सामने पेशे खिदमत है।



शाइर वो क्या जो न झांके खुद के अंदर में,
क्या रखा है खल्क-खुल्द, माह-औ-मेहर में?


साहिर ने प्यासा में कहा है: "ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है" । इस सुखन के हरेक हर्फ़ से कई मायने निकलते हैं,जो ज़िंदगी को सच्चाई का आईना दिखाते हैं । एक मायना यह भी निकलता है कि "अगर बशर(इंसान) को अपनी खुदी पर यकीं न हो , अपनी हस्ती का दंभ न हो, तो चाहे उसे सारी दुनिया हीं यों न मिल जाए , इस उपलब्धि का कोई फायदा नहीं।" जब तक इंसान अपने अंदर न झांके ले और अपनी ताकत का गुमां न पाल ले, तवारीख़ गवाह है कि उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। जो इंसान अपने दिल की सुनता है और खुद के बनाए रास्तों पर चलता है उसे सारी दुनिया एक तमाशे जैसी लगती है और सारी दुनिया को वह कम-अक्ल से ज़्यादा कुछ नहीं। फिर सारी दुनिया उसे नसीहतें
देनी शुरू कर देती है। सच हीं है:

मेरी खु़दी से रश्क जो मेरा खु़दा करे,
नासेह न बने वो तो और क्या करे।


मिर्जा असदुल्लाह खां "गालिब" ने कहा है कि -
"मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।"

ग़ालिब की इस गज़ल को कई सारे गुलूकारों ने अपनी आवाज़ से सजाया है। आईये आज हम इस गज़ल को "मोहम्मद रफ़ी" की आवाज़ में सुनते हैं और महसूस करते हैं कि इस गज़ल के एक-एक शेर में कितनी कहानियाँ छिपी हुई हैं।



चलिए अब आपकी बारी है महफ़िल में रंग ज़माने की. एक शेर हम आपकी नज़र रखेंगे. उस शेर में कोई एक ख़ास शब्द होगा जो मोटे अक्षर में छपा होगा. वही शब्द आपका सूत्र है. आपने याद करके बताना है हमें वो सभी शेर जो आपको याद आते हैं जिसके दो मिसरों में कहीं न कहीं वही शब्द आता हो. आप अपना खुद का लिखा हुआ कोई शेर भी पेश कर सकते हैं जिसमें आपने उस ख़ास शब्द का प्रयोग क्या हो. तो खंगालिए अपने जेहन को और अपने संग्रह में रखी शायरी की किताबों को. आज के लिए आपका शेर है - गौर से पढिये -

बदला न अपने आपको जो थे वही रहे,
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे.

उदहारण के लिए उपरोक्त शे'र में जो बोल्ड शब्द है वो है "अजनबी" अब एक और शे'र जिसमें "अजनबी" शब्द आता है वो ये हो सकता है -
हम कुछ यूँ अपनी जिंदगी से मिले,
अजनबी जैसे अजनबी से मिले...

चलिए अब कुछ आप अर्ज करें...

प्रस्तुति - विश्व दीपक तन्हा



ग़ज़लों, नग्मों, कव्वालियों और गैर फ़िल्मी गीतों का एक ऐसा विशाल खजाना है जो फ़िल्मी गीतों की चमक दमक में कहीं दबा दबा सा ही रहता है. "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" श्रृंखला एक कोशिश है इसी छुपे खजाने से कुछ मोती चुन कर आपकी नज़र करने की. हम हाज़िर होंगे हर सोमवार और गुरूवार दो अनमोल रचनाओं के साथ, और इस महफिल में अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में आपके मुखातिब होंगे कवि गीतकार और शायर विश्व दीपक "तन्हा". साथ ही हिस्सा लीजिये एक अनोखे खेल में और आप भी बन सकते हैं -'शान-ए-महफिल". हम उम्मीद करते हैं कि "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" का ये आयोजन आपको अवश्य भायेगा.

Wednesday, April 1, 2009

एक चतुर नार करके शृंगार - ऐसी मस्ती क्या कहने...



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 39

ज तो 'ओल्ड इस गोल्ड' की महफ़िल में होने जा रहा है एक ज़बरदस्त हंगामा, क्योंकि आज हमने जो गीत चुना है उसमें होनेवाला है एक ज़बरदस्त मुक़ाबला. यह गीत ना केवल हंगामाखेज है बल्कि अपनी तरह का एकमात्र गीत है. इस गीत के बनने के बाद आज 40 साल गुज़र चुके हैं, लेकिन इस गीत को टक्कर दे सके, ऐसा कोई गीत अब तक ना बन पाया है और लगता नहीं भविष्य में भी कभी बन पाएगा. ज़्यादा भूमिका ना बढाते हुए आपको बता दें कि यह वही गीत है फिल्म "पड़ोसन" का जिसे आप कई कई बार सुन चुके होंगे, लेकिन जितनी बार भी आप सुने यह नया सा ही लगता है और दिल थाम कर गाना पूरा सुने बगैर रहा नहीं जाता. जी हाँ, आज का गीत है "एक चतुर नार करके शृंगार". 1968 में फिल्म पड़ोसन बनी थी जिसमें किशोर कुमार, सुनील दत्त, सायरा बानो और महमूद ने अभिनय किया था. अभिनय क्या किया था, इन कलाकारों ने तो जैसे कोई हास्य आंदोलन यानी कि 'लाफ रोइट्स' ही छेड दिया था. 'सिचुयेशन' यह थी कि सुनील दत्त अपनी पडोसन सायरा बानो पर मार मिटे थे लेकिन सायरा बानो उन्हे भाव भी नहीं दे रही थी. तो जब संगीत मास्टर के रूप में महमूद सायरा बानो को गाना सिखाने आते हैं तो सुनील दत्त अपने दोस्तों के साथ मिलकर उन्हे परेशान करते हैं. और इन दोस्तों में शामिल थे कोई और नहीं बल्कि हमारे किशोर-दा. ऐसे असाधारण 'सिचुयेशन' पर एक कामयाब गीत लिखना और उससे लोगों के दिलों तक पहुँचाना कोई आसान काम नहीं था. लेकिन पड़ोसन की पूरी 'टीम' ने जो कमाल इस गाने में कर दिखाया है उसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. इसका सिर्फ़ और सिर्फ़ सुनकर ही आनंद उठाया जा सकता है.

कहा जाता है कि भले ही राजेंदर कृष्ण ने यह गीत लिखा है और आर डी बर्मन ने संगीतबद्ध किया है, लेकिन इस गीत में किशोर कुमार ने भी कई चीज़ें अपनी ओर से डाली थी और इस गाने का जो अलग अंदाज़ नज़र आता है वो उन्ही की बदौलत है. इस गीत में मन्ना डे को महमूद के लिए 'प्लेबॅक' करना था. क्योंकि महमूद फिल्म में एक शास्त्रिया गायक के चरित्र में थे और उन दिनों मन्ना डे उनके लिए पार्श्वगायन किया करते थे, इसलिए जब महमूद और उस पर शास्त्रिया संगीत की बात आई तो मन्ना डे के अलावा किसी और के बारे में सोचा तक नहीं गया. लेकिन मन्ना डे को एक बात खटक रही थी की उस गीत में जो मुक़ाबला होता है उसमें महमूद हार जाते हैं. उन्हे यह बात ज़रा पसंद नहीं आई की एक अच्छा शास्त्रिया गायक होने के बावजूद उन्हे एक ऐसे गायक किशोर से हारना होगा जिसे शास्त्रिया संगीत नहीं आती. लेकिन वो आखिर मान गये और हमें मिला हास्य गीतों का यह सरताज गाना. एक बात और आपको यहाँ बता दें कि किशोर कुमार का जो चरित्र इस फिल्म में था वो प्रेरित था शास्त्रीय गायक धनंजय बेनर्जी से जो कि उन्ही के रिश्तेदार थे. लेकिन ऐसा भी पढ्ने सुनने में आता है कि किशोर ने अपनी आँखों की मुद्राएँ खेमचंद प्रकाश से नकल की, जो एक अच्छे नर्तक भी थे. और चलने का अंदाज़ उन्होने नकल किया बर्मन दादा, यानी कि एस डी बर्मन का. दोस्तों, आप शायद बेक़रार हो रहे होंगे इस गीत को सुनने के लिए, तो मैं और ज़्यादा आपका वक़्त ना लेते हुए पेश करता हूँ आज का 'ओल्ड इस गोल्ड', सुनिए...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. ये वो ग़ज़ल है जिस पर नौशाद साहब मर मिटे थे.
२. लता - मदन मोहन की बेमिसाल टीम.
३. कुछ और कहने की जरुरत है क्या ? :)

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
एक बार फिर पारुल ने सबको मात दी, पारुल के साथ साथ नीरज जी, मनु जी को भी सही गीत पहचानने की बधाई.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.





नयी शृंखलाओं से आबाद होगा "आवाज़" अब



आवाज़ पर संगीत के दो कामियाब सत्र पूरे हो चुके हैं. तीसरे सत्र को हम एक विशाल आयोजन बनाना चाहते हैं. अतः कुछ रुक कर ही इसे शुरू करने का इरादा है. जैसा की हम बता चुके हैं कि दूसरे सत्र के विजेताओं को फरवरी 2010 में पुरस्कृत किया जायेगा और तभी हिंद युग्म अपना दूसरा संगीत एल्बम भी जारी करेगा. आवाज़ प्रतिदिन कम से कम 2 संगीतभरी/आवाज़भरी प्रस्तुतियाँ प्रसारित करता है। आवाज़ पर मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार से तथा निम्नलिखित प्रकार के आयोजन होते हैं।

संगीतबद्ध गीत- हिन्द-युग्म आवाज़ के माध्यम से इंटरनेट पर ही संगीत तैयार करता आया है। इसके अंतर्गत आवाज़ के नियंत्रक व संपादक सजीव सारथी गीतकार, संगीतकार और गायकों को जोड़ते रहे हैं। इस परम्परा की शुरूआत सर्वप्रथम हिन्द-युग्म के सजीव सारथी ने ही की। जब सजीव ने इस माध्यम से बना अपना पहला गीत 'सुबह की ताज़गी' को इंटरनेट पर रीलिज किया। इस गीत में हैदराबाद के इंजीनियर संगीतकार ऋषि एस॰ ने संगीत दिया था और गीत को गाया था नागपुर के सुंदर गायक सुबोध साठे ने। जल्द ही हिन्द-युग्म इस माध्यम से बना अपना पहला एल्बम 'पहला सुर' को विश्व पुस्तक मेला 2008 में रीलिज किया। इस एल्बम में 10 संगीतबद्ध गीतों के साथ-साथ 10 कविताओं को भी संकलित किया गया। पूरा एल्बम यहाँ सुनें

संगीतबद्ध गीतों के रीलिज करने के दूसरे सत्र की शुरूआत 4 जुलाई 2008 से हुई। तब से लेकर 31 दिसम्बर 2008 तक हिन्द-युग्म ने प्रत्येक शुक्रवार को एक नया संगीतबद्ध गीत ज़ारी किया। इस सत्र में कुल 27 गीतों को ज़ारी किया। जिसमें से 5 निर्णायकों के सहयोग से बेहतर 10 गीत चुनने का काम किया गया। सरताज़ गीत का चयन हुआ। श्रोताओं की पसंद से भी एक गीत का चुनाव हुआ। पूरा परिणाम यहाँ देखें।
सभी 27 संगीतबद्ध गीतों की सूची यहाँ है।

संगीतबद्ध गीतों की यह शृंखला यही नहीं खत्म होती। इसके अतिरिक्त आवाज़ समय-समय पर नये-नये संगीतकारों-कलाकारों को लॉन्च करता रहा है। इस कड़ी में कुछ और गीत यहाँ सुने जा सकते हैं-

अभी सिलसिला ज़ारी है।

ओल्ड इज़ गोल्ड- सुजोय चटर्जी द्वारा संचालित "ओल्ड इस गोल्ड" आवज़ का बहुत ही लोकप्रिय स्तम्भ है। प्रतिदिन शाम ६.३० पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम में हम रोज एक पुराने सदाबहार गीत को सुनते हैं और उसपर कुछ चर्चा भी करते हैं। गीत से जुड़ी दुर्लभ जानकारियाँ लेकर आते हैं सुजोय। इसकी शुरूआत 20 फरवरी 2009 को 'आपको प्यार छुपाने की बुरी आदत है' गीत की चर्चा से हुई। इस शृंखला में अब तक 60 गीतों की चर्चा हो चुकी है। पूरी सूची यहाँ देखें।

महफ़िल-ए-ग़ज़ल- ग़ज़लों, नग्मों, कव्वालियों और गैर फ़िल्मी गीतों का एक ऐसा विशाल खजाना है जो फ़िल्मी गीतों की चमक दमक में कहीं दबा दबा सा ही रहता है. "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" श्रृंखला एक कोशिश है इसी छुपे खजाने से कुछ मोती चुन कर आपकी नज़र करने की. हम हाज़िर होंगे हर सोमवार और गुरूवार दो अनमोल रचनाओं के साथ, और इस महफिल में अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में आपके मुखातिब होंगे कवि गीतकार और शायर विश्व दीपक "तन्हा". साथ ही हिस्सा लीजिये एक अनोखे खेल में और आप भी बन सकते हैं -'शान-ए-महफिल". हम उम्मीद करते हैं कि "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" का ये आयोजन आपको अवश्य भायेगा.

बात एक एल्बम की - "बात एक एल्बम की" एक साप्ताहिक श्रृंखला है जहाँ हम पूरे महीने बात करेंगे किसी एक ख़ास एल्बम की, एक एक कर सुनेंगे उस एल्बम के सभी गीत और जिक्र करेंगे उस एल्बम से जुड़े फनकार/फनकारों की. इस स्तम्भ को आप तक ला रहे हैं युवा स्तंभकार उज्जवल कुमार, तो हर मंगलवार इस आयोजन का हिस्सा अवश्य बनें.

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत- "रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत" एक शृंखला है कुछ बेहद दुर्लभ गीतों के संकलन की. कुछ ऐसे गीत जो अमूमन कहीं सुनने को नहीं मिलते, या फिर ऐसे गीत जिन्हें पर्याप्त प्रचार नहीं मिल पाया और अच्छे होने के बावजूद एक बड़े श्रोता वर्ग तक वो नहीं पहुँच पाया. ये गीत नए भी हो सकते हैं और पुराने भी. आवाज़ के बहुत से ऐसे नियमित श्रोता हैं जो न सिर्फ संगीत प्रेमी हैं बल्कि उनके पास अपने पसंदीदा संगीत का एक विशाल खजाना भी उपलब्ध है. इस स्तम्भ के माध्यम से हम उनका परिचय आप सब से करवाते रहेंगें. और सुनवाते रहेंगें उनके संकलन के वो अनूठे गीत. यदि आपके पास भी हैं कुछ ऐसे अनमोल गीत और उन्हें आप अपने जैसे अन्य संगीत प्रेमियों के साथ बाँटना चाहते हैं, तो हमें लिखिए. यदि कोई ख़ास गीत ऐसा है जिसे आप ढूंढ रहे हैं तो उनकी फरमाईश भी यहाँ रख सकते हैं. हो सकता है किसी रसिक के पास वो गीत हो जिसे आप खोज रहे हों.

इन नयी श्रृंखलाओं के अलावा अनुराग शर्मा द्वारा संचालित "सुनो कहानी" का प्रसारण हर शनिवार और माह के अंतिम रविवार को मृदुल कीर्ति द्वारा संचालित होने वाले "पॉडकास्ट कवि सम्मलेन" का प्रसारण तथावत जारी रहेगा. हम उम्मीद करेंगे कि श्रोताओं को आवाज़ का ये नया रूप पसंद आएगा. अपने विचारों से हमें अवगत कराते रहें.



Tuesday, March 31, 2009

आजा रे प्यार पुकारे, नैना तो रो रो हारे...



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 38

"दिल ने फिर याद किया", 1966 की एक बेहद कामयाब फिल्म. इसी फिल्म से रातों रात मशहूर हुई थी संगीतकार जोडी सोनिक ओमी. सोनिक और ओमी रिश्ते में चाचा भतीजा हैं. सोनिक सन् 1952 में ममता, 1952 में ही ईश्वर भक्ति, और 1959 में एक पंजाबी फिल्म में संगीत दे चुके थे. सोनिक, जो ढाई साल की उम्र में अपनी ऑंखें खो चुके थे, उन्होने लाहौर और लखनऊ से पढाई पूरी की और फिर दिल्ली के आकाशवाणी से जुड गये और इस तरह से एक सुरीले सिलसिले की भूमिका बनती चली गयी. सोनिक और ओमी कई बार मुंबई आए लेकिन कोई ख़ास बात नहीं बन पाई. लेकिन वो अपने अपने तरीके से कोशिश करते रहे. इसी बीच सोनिक बने संगीतकार मदन मोहन के सहायक और ओमी रोशन के. इस तरह से फिल्म संगीत जगत में इन दोनो की पहचान बनी, नतीजा यह हुआ कि उन्हे "दिल ने फिर याद किया" जैसी फिल्म मिल गयी और दोनो ने पहली बार अपनी जोडी बनाई. और कहने की ज़रूरत नहीं, पहली फिल्म में ही इन दोनो ने कमाल कर दिया. दिल ने फिर याद किया के सभी गीत बेहद मक़बूल हुए, उन्हे बहुत बहुत सहारना मिली. इस फिल्म को बनाया था सी एल रावल ने, वही फिल्म के निर्देशक भी थे और गीतकार भी. धर्मेन्द्र, नूतन और रहमान के अभिनय से सुसज्जित यह फिल्म लोकप्रियता की कसौटी पर खरी उतरी, जिसका मुख्य श्रेय फिल्म के संगीत को जाता है.

दोस्तों, हम बड़ी दुविधा में पड गये थे इस बात को लेकर कि इस फिल्म का कौन सा गीत आपको सुनवाएँ 'ओल्ड इस गोल्ड' में, क्योंकि जैसा कि हमने कहा इस फिल्म का हर एक गीत अपने आप में लोकप्रियता की मिसाल है. आखिरकार हमने जो गीत चुना वो है "आजा रे प्यार पुकारे" जिसे लता मंगेशकर ने बडे ही दर्दीले अंदाज़ में गाया है. अब आप पूछेंगें कि हमने इस गीत को ही क्यूँ चुना. वो इसलिए कि एक 'इंटरव्यू' में जब ओमी-जी से यह पुछा गया था कि इस फिल्म का कौन सा गीत उन्हे सबसे ज़्यादा पसंद है, तो उन्होने इसी गीत का ज़िक्र किया था. और क्यूँ ना हो, यह गीत है ही दिल को छू जाने वाला. उसी 'इंटरव्यू' में ओमी-जी ने इस गीत से जुडा एक मज़ेदार किस्सा भी बताया था. हुया यूँ कि इस गाने में नायिका अपने प्रेमी का इंतज़ार करती है और अपने प्यार की दुहाई देकर वापस लौट्ने के लिए आवाज़ लगाती है. तो जब लता-जी गाने की 'रेकॉर्डिंग' के बाद 'रेकॉर्डिंग रूम' से बाहर आईं, तो सी एल रावल साहब ने सोनिक ओमी से कहा, "ओमी, यह गाना सुनने के बाद भी अगर 'हीरो' वापस ना आए तो भाड में जाए". यह सुनकर वहाँ मौजूद सभी ज़ोर से हंस पडे. आप भी सुनिए और सुनकर अपनी राय 'पोस्ट' करना मत भूलिएगा.



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. इस गीत में दो गायकों ने जम कर एक दूजे का मुकाबला किया है, एक हैं मन्ना डे...
२. राजेंदर कृष्ण ने बोल लिखे हैं इस बेमिसाल गीत के जिसका वाकई कोई सानी नहीं है.
३. मुखड़े में दूसरे गायक ने जिसका नाम हमने आपको नहीं बताया जो पंक्तियाँ गाते हैं उसमें शब्द है -"जाल"

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम-
नीरज जी, मनु जी और सलिल जी सही जवाब, हाँ सही है ये ग़ज़ल नहीं गीत है, अंतिम अंतरा भी बहुत सुना हुआ है सही है, पर रिकॉर्ड में जो हमारे पास उपलब्ध था उसमें नहीं मिला. यदि इस गीत का पूरा संस्करण किसी श्रोता के पास मौजूद हो तो हमें उपलब्ध करवायें. संगीता जी आपका भी आभार. शरद जी देर से आये लेकिन दुरुस्त आये


खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.




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कहाँ हाथ से कुछ छूट गया याद नहीं - मीना कुमारी की याद में




मीना कुमारी ने 'हिन्दी सिनेमा' जगत में जिस मुकाम को हासिल किया वो आज भी अस्पर्शनीय है ।वे जितनी उच्चकोटि की अदाकारा थीं उतनी ही उच्चकोटि की शायरा भी । अपने दिली जज्बात को उन्होंने जिस तरह कलमबंद किया उन्हें पढ़ कर ऐसा लगता है कि मानो कोई नसों में चुपके -चुपके हजारों सुईयाँ चुभो रहा हो. गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी, वह बहुत कम कलमकारों के बूते की बात होती है. गम का ये दामन शायद 'अल्लाह ताला' की वदीयत थी जैसे। तभी तो कहा उन्होंने -

कहाँ अब मैं इस गम से घबरा के जाऊँ
कि यह ग़म तुम्हारी वदीयत है मुझको

पैदा होते ही अब्बा अली बख्श ने रुपये के तंगी और पहले से दो बेटियों के बोझ से घबरा कर इन्हे एक मुस्लिम अनाथ आश्रम में छोड़ आए. अम्मी के काफी रोने -धोने पर वे इन्हे वापस ले आए ।परिवार हो या वैवाहिक जीवन मीना जो को तन्हाईयाँ हीं मिली

चाँद तन्हा है,आस्मां तन्हा
दिल मिला है कहाँ -कहाँ तन्हां

बुझ गई आस, छुप गया तारा
थात्थारता रहा धुआं तन्हां

जिंदगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हां है और जां तन्हां

हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहे यहाँ तन्हां

जलती -बुझती -सी रौशनी के परे
सिमटा -सिमटा -सा एक मकां तन्हां

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जायेंगे ये मकां तन्हा

और जाते जाते सचमुच सरे जहाँ को तन्हां कर गयीं ।जब जिन्दा रहीं सरापा दिल की तरह जिन्दा रहीं ।दर्द चुनते रहीं संजोती रहीं और कहती रहीं -

टुकडे -टुकडे दिन बिता, धज्जी -धज्जी रात मिली
जितना -जितना आँचल था, उतनी हीं सौगात मिली

जब चाह दिल को समझे, हंसने की आवाज़ सुनी
जैसा कोई कहता हो, ले फ़िर तुझको मात मिली

होंठों तक आते -आते, जाने कितने रूप भरे
जलती -बुझती आंखों में, सदा-सी जो बात मिली

वह कोई साधारण अभिनेत्री नहीं थी, उनके जीवन की त्रासदी, पीडा, और वो रहस्य जो उनकी शायरी में अक्सर झाँका करता था, वो उन सभी किरदारों में जो उन्होंने निभाया बाखूबी झलकता रहा. फिल्म "साहब बीबी और गुलाम" में छोटी बहु के किरदार को भला कौन भूल सकता है. "न जाओ सैया छुडाके बैयाँ..." गाती उस नायिका की छवि कभी जेहन से उतरती ही नहीं. १९६२ में मीना कुमारी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए तीन नामांकन मिले एक साथ. "साहब बीबी और गुलाम", मैं चुप रहूंगी" और "आरती". यानी कि मीना कुमारी का मुकाबला सिर्फ मीना कुमारी ही कर सकी. सुंदर चाँद सा नूरानी चेहरा और उस पर आवाज़ में ऐसा मादक दर्द, सचमुच एक दुर्लभ उपलब्धि का नाम था मीना कुमारी. इन्हें ट्रेजेडी क्वीन यानी दर्द की देवी जैसे खिताब दिए गए. पर यदि उनके सपूर्ण अभिनय संसार की पड़ताल करें तो इस तरह की "छवि बंदी" उनके सिनेमाई व्यक्तित्व के साथ नाइंसाफी ही होगी.

एक बार गुलज़ार साहब ने उनको एक नज़्म दिया था. लिखा था :

शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना
बुनती है रेशम के धागे
लम्हा -लम्हा खोल रही है
पत्ता -पत्ता बीन रही है
एक एक सांस बजाकर सुनती है सौदायन
एक -एक सांस को खोल कर आपने तन पर लिपटाती जाती है
अपने ही तागों की कैदी
रेशम की यह शायरा एक दिन
अपने ही तागों में घुट कर मर जायेगी

पढ़ कर मीना जी हंस पड़ी । कहने लगी -"जानते हो न, वे तागे क्या हैं ?उन्हें प्यार कहते हैं । मुझे तो प्यार से प्यार है । प्यार के एहसास से प्यार है, प्यार के नाम से प्यार है । इतना प्यार कि कोई अपने तन से लिपट कर मर सके तो और क्या चाहिए?" महजबीं से मीना कुमारी बनने तक (निर्देशक विजय भट्ट ने उन्हें ये नाम दिया), और मीना कुमारी से मंजू (ये नामकरण कमाल अमरोही ने उनसे निकाह के बाद किया ) तक उनका व्यक्तिगत जीवन भी हजारों रंग समेटे एक ग़ज़ल की मानिंद ही रहा. "बैजू बावरा","परिणीता", "एक ही रास्ता", 'शारदा". "मिस मेरी", "चार दिल चार राहें", "दिल अपना और प्रीत पराई", "आरती", "भाभी की चूडियाँ", "मैं चुप रहूंगी", "साहब बीबी और गुलाम", "दिल एक मंदिर", "चित्रलेखा", "काजल", "फूल और पत्थर", "मँझली दीदी", 'मेरे अपने", "पाकीजा" जैसी फिल्में उनकी "लम्बी दर्द भरी कविता" सरीखे जीवन का एक विस्तार भर है जिसका एक सिरा उनकी कविताओं पर आके रुकता है -

थका थका सा बदन,
आह! रूह बोझिल बोझिल,
कहाँ पे हाथ से,
कुछ छूट गया याद नहीं....

३१ मार्च १९७२ को उनका निधन हुआ. आज उनकी ३७ वीं पुण्यतिथि पर उन्हें 'आवाज़' का सलाम. सुनते हैं उन्ही की आवाज़ में उन्हीं का कलाम. जिसे खय्याम साहब ने स्वरबद्ध किया है -

चाँद तन्हा...


मेरा माज़ी


ये नूर किसका है...


प्रस्तुति - उज्जवल कुमार

Monday, March 30, 2009

आंसू समझ के क्यों मुझे आँख से तुमने गिरा दिया...



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 37

कुछ गीत ऐसे होते हैं कि जिनके लिए संगीतकार के दिमाग़ में बस एक ही गायक होता है. जैसे कि वो गीत उसी गायक के लिए बनाया गया हो. या फिर हम ऐसे भी कह सकते हैं कि हर गायक की अपनी एक खूबी होती है, कुछ विशेष तरह के गीत उनकी आवाज़ में खूब खिलते हैं. ऐसे ही एक गायक थे तलत महमूद जिनकी मखमली आवाज़ में दर्द भरी, ठहराव वाली गज़लें ऐसे पुरस्सर होते थे कि जिनका कोई सानी नहीं. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में तलत साहब की मखमली आवाज़ का जादू छा रहा है दोस्तों. सलिल चौधरी की धुन पर राजेंदर कृष्ण के बोल, फिल्म "छाया" से. 1961 में बनी हृषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में सुनील दत्त और आशा पारेख ने मुख्य भूमिकाएँ निभायी. यूँ तो इस फिल्म में एक से एक 'हिट' गीत मौजूद हैं जैसे कि "मुझसे तू इतना ना प्यार बढा", और "आँखों में मस्ती शराब की". लेकिन तलत साहब का गाया जो गीत हम आज शामिल कर रहे हैं वो थोडा सा कमचर्चित है.

"आँसू समझ के क्यूँ मुझे आँख से तुमने गिरा दिया, मोती किसी के प्यार का मिट्टी में क्यूँ मिला दिया" तलत महमूद के गाए फिल्मी गज़लों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. सलिल चौधुरी के गीतों में पाश्चात्य संगीत का बहुत ही सुंदर इस्तेमाल हुया करता था.पाश्चात्य 'हार्मोनी' के वो दीवाने थे. जिस तरह से मदन मोहन फिल्मी ग़ज़लों के बादशाह माने जाते हैं, सलिल-दा द्वारा स्वरबद्ध इस ग़ज़ल को सुनकर आपको यह अंदाज़ा हो जाएगा कि सलिल-दा भी कुछ कम नहीं थे इस मामले में. किसी ग़ज़ल में 'वेस्टर्न हार्मोनी' का ऐसा सुंदर प्रयोग शायद ही किसी और ने किया हो! और राजेंदर कृष्ण साहब के भी क्या कहने! "मेरी खता माफ़ मैं भूले से आ गया यहाँ, वरना मुझे भी है खबर मेरा नहीं है यह जहाँ". इस गीत की एक और ख़ास बात यह है कि फिल्म में इस गीत के तीन अंतरे हैं, लेकिन 'ग्रामोफोन रेकॉर्ड' पर इस गीत के केवल दो ही अँतरे हैं. इस तरह से 'रेकॉर्ड' पर 3 मिनिट 14 सेकेंड्स का यह गीत फिल्म में 4 मिनिट 52 सेकेंड्स अवधि का है. दोस्तों, हम तो आपको 'रेकॉर्ड' वाला 'वर्ज़न' ही सुनवा सकते हैं, लेकिन फिल्म में शामिल वो तीसरा अंतरा जो 'रेकॉर्ड' पर नहीं है, वो कुछ इस तरह से है - "नग्मा हूँ कब मगर मुझे अपने पे कोई नाज़ था, गाया गया हूँ जिस पे मैं टूटा हुआ वो साज़ था, जिस ने सुना वो हंस दिया हंस के मुझे रुला दिया, आँसू समझ के..."



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. प्रेमी को पुकारती लता की आवाज़.
२. सोनिक ओमी का संगीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"नैना".

कुछ याद आया...?



खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.





ये रहे सरताज गीत, लोकप्रिय गीत और शीर्ष 10 गीत



आज दिन है आवाज़ पर बहुप्रतीक्षित परिणामों का. आवाज़ पर नए संगीत का दूसरा सत्र जुलाई 2008 के प्रथम शुक्रवार से आरंभ हुआ था जो दिसम्बर के अंतिम शुक्रवार को संपन्न हुआ। इस दौरान कुल 27 नए गाने प्रसारित किये गए। संगीत के इस महाकुम्भ में कुल 47 नए संगीत कर्मियों ने अपने फन का जौहर दुनिया के सामने रखा, जिसमें 15 संगीतकार, 13 गीतकार, 24 गायक/गायिकाएँ, 2 संगीत सहायक शामिल हैं। इससे पहले अपने पहले सत्र के 10 गीतों को लेकर युग्म ने अपना प्रथम संगीत एल्बम "पहला सुर" फरवरी 2008 में जारी किया गया था। पर दूसरा सत्र हर लिहाज से बेहतर रहा; अपने पहले सत्र की तुलना में. पहले से अधिक संगीत कर्मी, पहले से अधिक रचनाएँ और तकनीकी स्तर पर भी लगभग हर गीत की गुणवत्ता इस सत्र के गीतों में बहुत बेहतर रही, इन सभी गीतों को श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला, इन गीतों को हमने 5 संगीत विशेषज्ञों ने भी सुना, परखा, और दो चरण में सपन्न हुए इस प्रक्रिया में इन गीतों को अंक दिए गए, जिनके आधार पर निर्धारित किया गया कि एक सरताज गीत चुना जायेगा, और श्रेष्ठ 10 चुने हुए गीतों को हिंद युग्म अपने दूसरे संगीत एल्बम का हिस्सा बनाएगा। श्रोताओं की राय जानने के लिए एक पोल भी आयोजित हुआ, जिसमें कुल श्रोताओं ने अपनी राय रखी। श्रोताओं ने जिस गीत को सबसे अधिक पसंद किया उसे सत्र का सबसे लोकप्रिय गीत माना जायेगा. आज इन्हीं परिणामों की घोषणा करते हुए आवाज़ का संचालन दल बेहद गर्व और ख़ुशी अनुभव कर रहा है।

समीक्षक क्या कहते हैं?

हालांकि हमने अपने सभी समीक्षकों के नाम गुप्त रखे थे पर अंतिम समीक्षक जो कि देश के सबसे अनुभवी संगीत समीक्षकों में जाने जाते हैं, उनके कुछ विचार आप तक पहुँचाना जरूरी है, अजात शत्रु एक ऐसा नाम है जिससे संगीत से जुड़े सभी लोग अच्छी तरह से वाकिफ हैं, अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच भी उन्होंने हिंद युग्म के लिए इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया, चूँकि वो इन्टरनेट से दूर हैं उन्होंने खुद इन पक्तियों के लेखक को फ़ोन कर बधाई दी और सत्र के गीतों कि मुक्तकंठ से प्रशंसा की। उन्होंने कहा -"इस संकलन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, कविता-शायरी. "आवाज़ के पंखों पर...", "खुशमिजाज़ मिटटी पहले उदास थी...", तथा "ओ मुनिया मेरी गुड़िया संभल के चल..." जैसे गीत तो बेसाख्ता "वाह" कहा ले जाते हैं, मेलोडी के हिसाब से "ओ मुनिया" संकलन का सर्वोत्तम गीत है, यही वो धुन और संगीत्तना है जिस पर मेरी दो साल पूरी करती नातिन, एक अबोध बच्ची, थिरक उठी थी. गायक भी बेबाक है और खुलकर गाता है...". अजात शत्रु जी गायकों से अधिक संतुष्ट नज़र नहीं आये. उन्होंने कहा -" संकलन में एक दो गायकों की आवाज़ में बेस है, पर संवेदनशील गायन किसी का नहीं है, और न ही उनके गायन में कोई चौंकाने वाला तत्व है, 'अचानक' भी गायक से कुछ हो जाता है जो रिहर्सल के वक़्त नहीं था मगर रिकॉर्डिंग में पैदा हो जाता है. 'अचानक' का ये तत्व सभी में गायब है। फिर भी अपनी सीमा में उन्होंने प्रशंसनीय काम किया है"। हालाँकि उन्होंने यहाँ भी 'ओ मुनिया' के गायक की तारीफ की -"ओ मुनिया गीत का गायक ही इस आयोजन का पहला और अंतिम गायक है जिस पर किसी गायन, परंपरा या ज़माने का असर नहीं है वह सिर्फ अपने तौर पर गाता है..."। संगीतकारों को उन्होंने गायकों का चुनाव करने सम्बंधित ये सुझाव दिया -"सबसे पहले धुन पर ध्यान दें, फिर गायक का चुनाव करें, अच्छी शायरी भी मधुर धुन के बिना असर नहीं छोड़ती, अधिक से अधिक वह पढ़ने की चीज़ है. पर गाना प्रथमतः सिर्फ सुने जाने के लिए होता है। धुन की मेलोडी पर बहुत मेहनत करनी चाहिए, कहिये कि धुन ही सब कुछ है, जिस गीत पर बच्चा, पागल और गंवार थिरक उठे, वही अल्लाह का संगीत है"। अजात शत्रु जी ने और भी बहुत सी बातें कही, पर एक बात जो उन्होंने कही वो परिणामों की घोषणा करने से पहले हम भी कहना चाहेंगे- "कोई भी फैसला अंतिम या सम्पूर्ण नहीं होता। जो आज असफल वो कल संभवतः हीरो होंगे, हमारी नज़र में तो इस आयोजन में शामिल सभी कलाकार विजेता हैं। तो एक बार फिर सभी प्रतिभागियों को तहे दिल से ढेरों शुभकामनायें देते हुए सबसे पहले हम घोषणा कर रहे हैं सरताज गीत की।

सरताज़ गीत

सरताज गीत के रूप में टाई हुआ है दो गीतों को 40.5 अंक मिले हैं जो अधिकतम है। इस कारण हम इन दो गीतों को सामूहिक रूप से सरताज गीत घोषित करते हैं। मज़े की बात ये है कि इन दोनों गीतों या कहें गज़लों के गायक/संगीतकार एक ही हैं, जी हाँ आपने सही पहचाना- दूसरे सत्र की नायाब खोज - रफीक शेख. और ग़ज़लें हैं "जो शजर" और "सच बोलता है" जिनके शायर हैं क्रमशः दौर सैफी और अज़ीम नवाज़ राही। इसके अलावा इनकी टीम में एक संगीत संयोजक भी हैं- अविनाश। सभी 4 लोगों को बहुत बहुत बधाई। सरताज गीत को हिंद युग्म की तरफ से 6000 रुपए का नकद पुरस्कार दिया जायेगा. समीक्षकों के अंतिम अंक तालिका के अनुसार टॉप १० गीत जो चुने गए वो इस प्रकार हैं-

टॉप 10 गीत

1. जो शजर 40.5/50
2. सच बोलता है 40.5/50
3. चाँद का आंगन 40/50
4. वन अर्थ- हमारी एक सभ्यता 39.5/50
5. आखिरी बार बस 39/50
6. जीत के गीत 38/50
7. हुस्न 38/50
8. मुझे वक़्त दे 38/50
9. संगीत दिलों का उत्सव है 37.5/50
10. खुशमिजाज़ मिटटी 37.5/50
11. आवारदिल 37.5/50

चूँकि अंतिम 3 गीतों के अंक बराबर हैं इस कारण 10 के स्थान पर 11 गीतों को एल्बम में शामिल किया जायेगा. अन्य गीतों के कुछ इस प्रकार अंक मिले हैं -

12. चले जाना 36.5/50
13. जिस्म कमाने निकल गया है 35.5/50
14. चाँद नहीं विश्वास चाहिए 35/50
15. तेरे चेहरे पे 34/50
16. ओ साहिबा 34/50
17. सूरज चाँद और सितारे 33/50
18. तू रूबरू 33/50
19. मैं नदी 32/50
20. बढ़े चलो 31/50
21. बे इंतेहा 31/50
22. उड़ता परिंदा 31/50
23. ओ मुनिया 30/50
24. डरना झुकना 30/50
25. माहिया 28/50
26. राहतें सारी 27.5/50
27. मेरे सरकार 24/50

लोकप्रिय गीत

हिन्द-युग्म ने 2 मार्च से 28 मार्च 2009 के मध्य एक पोल का भी आयोजन किया, जिसके माध्यम से लोकप्रिय गीत (श्रोताओं की पसंद) जानने की कोशिश की गई। इस पिल पृष्ठ को अब तक 3165 बार देखा गया जो किसी भी हिन्द) वेबसाइट के किसी एक पेज इतनी बार इतने समय अंतराल में कभी नहीं देखा गया। कुल 1067 मत मिले जिसमें से 233 मत फॉल्स हैं। चूँकि 25 मार्च को संध्या 7 से 9 बजे के बीच हमारे पास मात्र 57 श्रोता आये और 'चाँद नहीं विश्वास चाहिए' को इतने ही समय में 290 मत मिल गये, जो कि सम्भव नहीं है, क्योंकि हम एक सिस्टम से एक मत मान रहे थे। हम 57 मत चाँद नहीं विश्वास चाहिए को दे रहे हैं।

'संगीत दिलों का उत्सव है' और 'मेरे सरकार' के बीच जबरदस्त टक्कर रही। जहाँ 'संगीत दिलों का उत्सव है' को 223 वोट मिले, वहीं 'मेरे सरकार' को 221 । 'चाँद नहीं विश्वास चाहिए' को अधिकतम 57 देने के बाद 177। इस तरह 'संगीत दिलों का उत्सव है' को हम लोकप्रिय गीत चुन रहे हैं। इस गीत के टीम को रु 4000 का नग़द इनाम दिया जायेगा। सुनिए लोकप्रिय गीत-



हिन्द-युग्म सरताज गीत, लोकप्रिय गीत और शीर्ष 10 गीतों का एल्बम भी निकालने की योजना बना चुका है। यह एल्बम जल्द ही किसी सार्वजनिक महोत्सव में ज़ारी किया जायेगा।

स्पॉनसर करें (प्रायोजक बनें)

हिन्द-युग्म अपने कलाकारों के साथ मिलकर बहुत से सांगैतिक कार्यक्रमों को आयोजित करने की योजना बना है, जिसके लिए हम स्पॉन्सर (Sponsorer) की तलाश कर रहे हैं। स्पान्सर को निम्नलिखित लाभ होगा-

1. हिन्द-युग्म डॉट कॉम नेटवर्क के सभी वेबसाइट की लाखों की ट्रैफिक।
2. छः महीने तक सभी नेटवर्क पर बैनर फ्लैश करने का अवसर
3. कार्यक्रमों (जैसे सिंगिंग शो, ग़ज़ल कंसर्ट इत्यादि) के माध्यम से जन समुदाय तक अपना बॉन्ड पहुँचाने का मौका।

अधिक जानकारी के लिए hindyugm@gmail.com पर ईमेल करें या 9873734046, 9871123997 पर फोन करें।

Sunday, March 29, 2009

पॉडकास्ट कवि सम्मलेन मार्च २००९



Doctor Mridul Kirti - image courtesy: www.mridulkirti.com
डॉक्टर मृदुल कीर्ति
मैं नीर भरी दुःख की बदली
कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन। आवाज़ के तत्त्वावधान में इस बार हम लेकर आए हैं नवम् ऑनलाइन कवि सम्मेलन का पॉडकास्ट।

मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली

(महादेवी वर्मा की कविता "नीर भरी दुख की बदली" से)

कवि सम्मलेन के सभी श्रोताओं को हिंद युग्म की टीम की ओर से नव संवत्सर २०६६ की शुभ कामनाएं। देश भर में यह समय प्राचीन काल से ही उत्सवों का समय रहा है। राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में नाम चाहे भिन्न हों परन्तु गुडी पडवो, युगादि, चैत्रादि, चेती-चाँद, नव-रात्रि, राम नवमी, बोहाग बिहू के साथ ही उल्लास और आनंद की एक नयी लहर हर ओर दिखाई पड़ रही है। इस शुभ अवसर पर हम आपके समक्ष एक नया कवि सम्मेलन लेकर उपस्थित हैं। इस बार के कवि सम्मलेन के माध्यम से हम महान कवयित्री महादेवी वर्मा को नमन कर रहे हैं जिनका जन्मदिन २५ मार्च को है।
छायावाद की इस महान कवयित्री को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए इस अंक में हमारे साथ उपस्थित हैं आचार्य संजीव सलिल महादेवी वर्मा के साथ अपनी व्यक्तिगत यादों को हमारे साथ साझा करने के लिए।
तो आईये इस बार के कवि सम्मलेन के माध्यम से आनंद लेते हैं एक नए युग की शुरुआत का। डॉक्टर मृदुल कीर्ति के मंझे हुए संचालन में चुनी हुई सुमधुर रचनाओं का आनंद उठाईये।

पिछले सम्मेलनों की सफलता के बाद हमने आपकी बढ़ी हुई अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है। हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि इस बार का सम्मलेन आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और आपका सहयोग हमें इसी जोरशोर से मिलता रहेगा। यदि आप हमारे आने वाले पॉडकास्ट कवि सम्मलेन में भाग लेना चाहते हैं तो अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन के अगले अंक का प्रसारण २५ अप्रैल २००९ को किया जायेगा और इसमें भाग लेने के लिए रिकॉर्डिंग भेजने की अन्तिम तिथि है १९ अप्रैल २००९

नीचे के प्लेयर से सुनें:


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis

हम सभी कवियों से यह अनुरोध करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे।

रिकॉर्डिंग करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। हिन्द-युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने इसी बावत एक पोस्ट लिखी है, उसकी मदद से आप सहज ही रिकॉर्डिंग कर सकेंगे।

अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।

# Podcast Kavi Sammelan. Part 9. Month: March 2009.
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