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सुनिए उनके शुरूआती दौर की फ़िल्म "भूत बंगला" के ये मस्ती भरा गीत -
संगीत में किसी की सफ़लता का एक पैमाना यह भी होता है कि आप अपने समकालीन कलाकारों से कितनी इज्जत पाते हैं और आपका काम कितना लोकप्रिय होता है । लेकिन आर डी वर्मन की बात करें तो उनके लिये तात्कालिक सफ़लता से ज्यादा यह बात मायने रखती थी कि आपके गाने कितने दिनों तक याद किये जायेंगें,शायद यही कारण भी है कि उनके गाने आज भी हमारे काफ़ीं करीब हैं । मिसाल के तौर पर फ़िल्म परिचय से 'बीती ना बिताई रैना' ,या फ़िर आँधी फ़िल्म मे 'इस मोड़ से जाते हैं,कुछ सुस्त कदम रस्ते' जैसे गीत आज भी काफ़ी पसंद किये जाते हैं और पंचम दा की श्रेष्ठता के परिचायक हैं ।
एक ऐसा ही राग आधारित गीत है फ़िल्म किनारा का "मीठे बोल बोले...", सुनिए -
विशेषज्ञों के अनुसार,आर डी अपने समकालीन निर्देशकों से सालों आगे थे और संगीत की उनकी समझ अन्य की तुलना में कहीं बेहतर थी । वे भारतीय तथा पाश्चात्य संगीत के मिश्रित प्रयोग से संगीत में जादू भर देते । संगीत फ़िल्म की सिचुएशन मे सही हो इसके लिये वह काफ़ी मेहनत करते थे, और कई बार तो धुन बनाते समय फ़िल्म के हीरो का चेहरा दिमाग में रखते थे ताकि धुन बिलकुल सही बैठे । संगीत कभी भी गायक की आवाज पर भारी नहीं पड़ना चाहिये, ऐसा पंचम दा का मानना था, और शायद इसी कारण उनके गाने जादू भरे होते थे, क्योंकि उनमें बेहतरीन सगीत और गीत के साथ सादगी भी होती थी । भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ पाश्चात्य संगीत का मिश्रण कब और कैसे करना है, यह पंचम दा को खूब आता था ; फ़िल्म अमर प्रेम के गाने 'कुछ तो लोग कहेंगें' को ही ले लें जिसमें राग खमाज और राग कलावती के साथ पाश्चात्य संगीत का अद्भुत मिश्रण है । यही नहीं, इनकी रचनात्मकता सिर्फ़ गाने बनाने तक सीमित नहीं थी । नई तकनीकि का इस्तेमाल, रेकार्डिग, बिना तबले के गाने की रेकार्डिग, और विशेष प्रभाव के लिये नये वाद्यों का ईजाद आर डी की विविधता के परिचायक हैं । यहां तक कि सुपरहिट गीत 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को' में ग्लास पर चम्मच टकराने की आवाज का इस्तेमाल भी पचम दा ने किया था ।
"चुरा लिया है..." आशा की जादूभरी आवाज़ में -
कई सफ़ल नामों,मसलन गुलजार,आशा भोंसले,किशोर कुमार आदि के सफ़र में पंचम दा की अहम भूमिका रही है । गुलजार साहब,जो कि पंचम दा के बहुत करीब के लोगों में से एक थे,पंचम दा के बारे में कहते हैं "संगीत के तो सिर्फ़ सात ही सुर हैं,पर पंचम की शख्सियत में बेपनाह सुर थे"। आशा जी की आवाज को जिस तरह आर डी वर्मन साहब ने इस्तेमाल किया,वैसा शायद किसी ने नही (ओ पी नैयर अपवाद हैं) किया । इस महान शख्सियत के कुछ पहलुओं को आज हमने छुआ,अगली बार और कई बातों के साथ मिलेंगें आज बस इतना ही । चलते चलते आपको वह गीत सुनवाते हैं जिसने लता जी और भूपेन्द्र जी दोनों को श्रेष्ठ गायक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार दिलाया ।
"बीते न बितायी रैना..." फ़िल्म परिचय से -
प्रस्तुति - आलोक शंकर
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4 श्रोताओं का कहना है :
अलोक जी गुलज़ार के आलावा गुलशन बावरा भी आर डी के करीबी दोस्तों में से थे कुछ उस के बारे में भी लिखे और आर डी का एक गायक के रूप में जो योगदान है, इन सब विषयों पर भी आने वाले अंकों में कुछ नया जानने को मिलेगा ऐसी आशा है....फिलहाल बधाई स्वीकारें एक अच्छे आलेख के लिए.
अच्छा आलेख!
बहुत सुंदर लेख, ओर सुंदर गीत, बहुत अच्छा लगा. सभी गीत एक से बढ कर एक.
धन्यवाद
बहुत अच्छा आलेख ....निश्चय ही इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं !
आपने गीत प्रस्तुत किया "आओ ट्विस्ट करें ..." ( फ़िल्म भूत बंगला ) ...बहुत ही बढ़िया और जोशीला गीत है ...मन्ना डे ने शायद ही ऐसा कोई और जोशीला गीत गया हो , लेकिन जहाँ तक मेरी जान कारी है , फ़िल्म भूत बंगला पंचम दा की पहली फ़िल्म नहीं थी ! उन्हें पहली बार महमूद भाई ने अपनी एक फ़िल्म "छोटे नवाब" में संगीत देने का मौका दिया था , जिसका पहला ही गीत " घर आ जा घिर आई बदरा सांवरिया ..." आज तक याद किया जाता है ! इस तथ्य को ज़रा जांच लें ....!
शुभकामना !
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