ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 221
सब से पुराने संगीत की अगर हम बात करें तो वो है हमारा शास्त्रीय संगीत, जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। चार वेदों में सामवेद में संगीत का व्यापक वर्णन मिलता है। सामवेद ऋग्वेद से निकला है और उसके जो श्लोक हैं उन्हे सामगान के रूप में गाया जाता था। फिर उससे 'जाती' बनी और फिर आगे चलकर 'राग' बनें। ऐसी मान्यता है कि ये अलग अलग राग हमारे अलग अलग 'चक्र' (उर्जाबिंदू) को प्रभावित करते हैं। ये अलग अलग राग आधार बनें शास्त्रीय संगीत का और युगों युगों से इस देश के सुरसाधक इस परम्परा को निरंतर आगे बढ़ाते चले जा रहे हैं, हमारी संस्कृति को सहेजते हुए बढ़े जा रहे हैं। शास्त्रीय संगीत के असर से हमारे फ़िल्म संगीतकार भी बच नहीं पाए हैं और इतिहास गवाह है कि जब भी संगीतकारों ने राग प्रधान गीतों की रचना की है, वे गानें कालजयी बन गए हैं। और ऐसी ही कुछ कालजयी राग प्रधान फ़िल्मी रचनाओं को संजोकर हम आप के लिए आज से अगले दस दिनों तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में ले आए हैं एक ख़ास शृंखला 'दस राग दस रंग'। जैसा कि शीर्षक से ही प्रतीत हो रहा है कि ये दस गीत दस अलग अलग रागों पर आधारित होंगे। गीतों को सुनवाने के साथ साथ संबंधित रागों के बारे में हम थोड़ी बहुत जानकारी भी देंगे। क्योंकि हमें रागों की विशेषज्ञता हासिल नहीं है, इसलिए हम रागों के तक़नीकी पक्ष में नहीं झाँकेंगे। हाँ लेकिन अगर आप में से कोई शास्त्रीय संगीत और रागों की जानकारी रखते हों तो आप टिप्पणी में उसकी चर्चा ज़रूर कर सकते हैं, हमें बेहद ख़ुशी होगी। तो दोस्तों, आइए शुरु किया जाए यह राग-रंग, आज का राग है अहिरभैरव। यह एक मिश्रित राग है, यानी कि भैरव और अहिरि के मिश्रण से यह बना है। अहिरि (जिसे अभिरि भी कहा जाता है) प्राचीनतम रागों में से है। कुछ संगीतज्ञ अहिरभैरव को भैरव और काफ़ी का मिश्रण भी कहते हैं। कर्नाटक शैली में इस राग को चक्रवाकम कहते हैं। अहिरभैरव एक उत्तरांग राग है और जिसे प्रात: काल में गाया जाता है। इसे सुबह के दूसरे प्रहर, यानी कि ६ बजे से ९ बजे के बीच गाया जाता है। अहिरभैरव पर आधारित फ़िल्मों के लिए बेशुमार गीत बनें हैं, और वो भी एक से एक सुपरहिट। हमने जिस गीत को चुना है वह है मन्ना डे की आवाज़ में फ़िल्म 'मेरी सूरत तेरी आँखें' से - "पूछो ना कैसे मैने रैन बिताई"। शैलेन्द्र के बोल, सचिन देव बर्मन का संगीत।
हाल ही में हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान दादा साहब फाल्के से पुरस्कृत न्ना डे एक ऐसे गायक रहे हैं जिन्होने फ़िल्मों में सब से ज़्यादा इस तरह की रचनाएँ गायी हैं। या फिर युं कहिए कि इस तरह की शास्त्रीय रचनाओं के लिए उनसे बेहतर नाम कोई नहीं था उस ज़माने में और ना आज है। यह ज़रूर अफ़सोस की बात रही है कि मन्ना दा को नायकों के लिए बहुत ज़्यादा पार्श्वगायन का मौका नहीं मिला, लेकिन जब भी शास्त्रीय रंग में ढला कोई "मुश्किल" गीत गाने की बारी आती थी तो हर संगीतकार को सब से पहले इन्ही की याद आती थी। शास्त्रीय संगीत पर उनकी मज़बूत पकड़ और उनकी सुर साधना को सभी स्वीकारते हैं और फ़िल्म संगीत जगत में उनका नाम आज भी बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। जहाँ तक प्रस्तुत गीत के संगीत की बात है तो बर्मन दादा अपने इस गीत को अपनी सर्वोत्तम रचना मानते हैं, और उन्होने यह भी कहा है कि "इसमें एक सुर मेरा अपना है और बाक़ी सारे अहिरि भैरव पर आधारित है"। फ़िल्म 'मेरी सूरत तेरी आँखें' का यह गीत फ़िल्माया गया था दादामुनि अशोक कुमार पर। १९६८ में रिकार्ड किए हुए दादामुनि द्वारा प्रस्तुत विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में उन्होने कहा था कि इस फ़िल्म में उन्होने एक बदसूरत गायक की भूमिका अदा की थी और इस गीत पर अभिनय करते समय उनकी आँखों में सचमुच के आँसू आ गए थे। दोस्तों, यही तो बात है इस मिट्टी के संगीत में, यहाँ के कलाकारों में। लीजिए प्रस्तुत है राग अहिरभैरव पर आधारित बर्मन दादा की सर्वश्रेष्ठ गीत रचना।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा तीसरा (पहले दो गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी और स्वप्न मंजूषा जी)"गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राग यमन कल्याण पर आधारित है ये युगल गीत.
२. रोशन हैं संगीतकार और हेमंत दा का हैं पुरुष स्वर.
३. एक अंतरे की पहली दो पंक्तियों में ये शब्द है -"पाप".
पिछली पहेली का परिणाम -
पूर्वी जी लगातार अच्छा प्रदर्शन करते हुए आप पहुँच गयी हैं ४२ अंकों के स्कोर पर...बधाई...पराग जी क्षमा चाहते हैं जो आपको असुविधा हुई. रोहित जी वाकई ये सब लता जी के दुर्लभतम गीतों में से थे, और हम में से बहुतों से इन्हें कभी नहीं सुना होगा, अजय देशपांडे जी के चुनाव और सुजॉय की मेहनत ने इस प्रयास को सफल बनाया. अभी कल जब मेरी अजय जी से इस बारे में बात हुई तो उन्होंने खुलासा किया कि कल का गीत "अल्लाह भी है मल्लाह भी...." एक ज़माने में बन रही फिल्म अनारकली का क्लाइमेक्स गीत होना था, वो फिल्म कभी नहीं बनी, पर इस गीत को बाद में इस फिल्म "मान" में शामिल कर लिया गया और एक भिखारिन का किरदार निभा रही कलाकार पर इसे फिल्माया गया...हैं न मजेदार बात, शरद कोकास जी और अरविन्द जी ओल्ड इस गोल्ड पर निरंतर आते रहिये और दिलीप जी, मंजू जी जरा समय से आकर जवाब देकर मुकाबले को दिलचस्प बनाईये.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.