11 दिसंबर को इनकी 10वीं पुण्यतिथि पर विशेष।
प्रदीप के कुछ मशहूर गीत
आज हिमालय की चोटी (क़िस्मत)
ऐ मेरे वतन के लोगो
आओ बच्चे तुम्हें दिखाएँ (जागृति)
हम लाये हैं तूफान से(जागृति)
साबरमती के संत तूने (जागृति)
ऊपर गगन विशाल (मशाल)
कितना बदल गया इंसान (नास्तिक)
छोटी सी उम्र में लिखने का शौक प्रदीप को ऐसा चढ़ा कि उनका गीत "हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो दुनिया वालो ये हिंदोस्तान हमारा है"। फिल्म 'किस्मत' में शुमार कर लिया गया। इस गाने के बाद मानो प्रदीप की किस्मत जाग उठी। बाद में ये गीत आजादी की लड़ाई में देशभक्तों में जोश भरने वाला टॉनिक बन गया। अंग्रेज़ों की तिलमिलाहट तब स्पष्ट झलकी जब इस गीत पर प्रदीप के खिलाफ अंग्रेज़ों ने गिरफ्तारी वॉरंट जारी कर दिया।
इस कवि की लेखनी में जो कशिश थी, उसी ने पंडित नेहरू की आँखें उस समय छलका दीं जब प्रदीप का गाना "ऐ मेरे वतन के लोगो, तू खूब लगा लो नारा" नेहरू ने सुना। इस गीत को सुनकर आज भी देश भाव विभोर हो उठता है और यह गीत आज भी उतना ही सटीक है, जितना लिखे जाने के समय था, इसी को लेखक की जीवंतता कहा जा सकता। बड़े–बड़े नामी लेखक और बड़ी-बड़ी रचनाएं आईं मगर इस गीत के आगे सभी देशभकित गीत फीके नज़र आते हैं। प्रदीप की लेखनी में एक ख़ासियत ये थी कि उनकी रचनाएं किसी वर्ग विशेष या फिर किसी रजतनीतिक विचारधारा से ओत–प्रोत नहीं थी। यही कारण था कि प्रदीप की रचनाएं छोटे-छोटे फेरबदल के साथ पाकिस्तान ने भी प्रयोग की। उनके कुछ उदाहरण देखिए :-
‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल’ ये गीत पाकिस्तान को इतना भाया कि पाकिस्तान की फिल्मों में ये ऐसे आया, ‘यूं दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ए कायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान’। इसी प्रकार ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दोस्तान की’, गीत को पाकिस्तान में कुछ ऐसे गाया गया:- ‘ आओ बच्चो सैर कराएं तुमको पाकिस्तान की’।
दाल, चावल और सादा जीवन व्यतीत करने वाले कवि प्रदीप ने यह लिखकर दिया कि ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत से मिलने वाली रॉयलटी की राशि शहीद सैनिकों की विधवा पत्नियों को दी जाए, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रदीप कवि के साथ एक उदार और सच्ची देशभक्त लेखक भी थे।
लेखक निदा फाज़ली उन्हें एक अच्छा लेखक होने के साथ एक बेहतर गीतकार भी मानते हैं। शायद निदा फाज़ली साहब का यह विचार है भी सचमुच पुष्ट, इसीलिये प्रदीप को ‘दादा साहेब फालके’ पुरस्कार से भी अलंकृत किया गया। यह प्रदीप की सशक्त लेखनी ही है कि पाकिस्तान ने प्रभावित होकर हिन्दी फिल्म ‘जागृति’ का रीमेक ‘ बेदारी’ बना डाला जो वहां पर आज भी लोकप्रिय है।
राम किशोर द्विवेदी से कवि प्रदीप तक का यह सफ़र आज 11 दिसंवर 2008 को उनकी 10वीं पुण्यतिथि पर जहां उनकी याद दिलाता है, वहीं नम आंखों से पूरा देश उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है----
नियति को कौन टाल पाया है लेकिन प्रदीप के नग़्में उन्हें जन्म-जन्म तक ज़ीवित रखेंगे।
प्रस्तुति- प्रकाश बादल
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
6 श्रोताओं का कहना है :
प्रदीप जी को सुनवाने का आभार।
पंडित प्रदीप के बारे में जानकारी पढ़कर और उनके गीत सुनकर बहुत अच्छा लगा.
प्रदीप जी का तो एक एक गीत हर दिल अजीज नगीना है, बहुत दिनों बाद उनके इतने सारे गाने एक साथ सुनने को मिले तो बचपन याद आ गया, प्रदीप जी को मेरे भी श्रद्धासुमन अर्पित करती हूँ। इन गीतों को सुनवाने के लिए आवाज की शुक्रगुजार हूँ।
जन-मन पर अंकित हुए' कवि प्रदीप के गीत.
बच्चे-बच्चे को लगे, इसीलिये वे मीत.
जाग्रति उनका लक्ष्य थी, किस्मत उनका शस्त्र.
श्रम से की थी मित्रता, कोशिश का ले अस्त्र.
थे प्रदीप वे कर गए, उजियारा चहुँ ओर.
उनके गीतों में मिले. उजली निखरी भोर.
आशा का छोड़ा नहीं दामन, बन इतिहास.
फैलाया है शब्द से, चारों ओर उजास.
श्रध्धेय प्रदीप जी को मेरे शत शत नमन !
उनके गीत भारत की आगामी पीढीयाँ भी गुनगुनायेँगी ..
और सदा श्रध्धा से याद करेँगीँ .
- लावण्या
prdeepji ke bare me jankari dene ke liye bhuthut dhnywad.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)