ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 20
होली विशेषांक
आवाज़ के आप सभी पाठकों और श्रोताओं को रंगों के इस त्यौहार होली पर हमारी ओर से बहुत बहुत शुभकामनाएँ. होली का यह त्यौहार आपके जीवन को और रंगीन बनाए, आपके सभी सात रंगोंवाले सपने पूरे हों, ऐसी हम कामना करते हैं. दोस्तों, हिन्दी फिल्मों में जब भी कभी होली की 'सिचुयेशन' आयी है, तो फिल्मकारों ने उन उन मौकों पर अच्छे अच्छे से होली गीत बनाने की कोशिश की है और उनका फ़िल्मांकन भी बडे रंगीन तरीके से किया है. या यूँ कहिए की हिन्दी फिल्मी गीतों में होली पर बेहद खूबसूरत खूबसूरत गाने बने हैं जिन्हे होली के दिन सुने बिना यह त्यौहार अधूरा सा लगता है. और आज होली के दिन 'ओल्ड इस गोल्ड' में अगर हम कोई होली गीत ना सुनवाएँ तो शायद आप में से कई श्रोताओं को हमारा यह अंदाज़ अच्छा ना लगे. इसलिए आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में पेश है होली की हुडदंग. यूँ तो होली पर बने फिल्मी गीतों की कोई कमी नहीं है, एक से एक 'हिट' होली गीत हमारे पास हैं, लेकिन 'ओल्ड इस गोल्ड' की यह रवायत है की हम उसमें ऐसे गीत शामिल करते हैं जो कुछ अलग "हट्के" हो, थोडे अनोखे हो, कोई अलग बात हो. इसलिए हमने जो होली गीत चुना है वो ना तो फिल्म "शोले" का है और ना ही फिल्म "पराया धन" का, ना वो "मदर इंडिया" का है, और ना ही "मशाल" का. यह गीत है 1976 में बनी फिल्म "बालिका वधु" का. इससे पहले की इस गीत से संबंधित कुछ बातें आपको बताएँ, क्यूँ ना थोड़ी देर के लिए हिन्दी फिल्मों में होली गीतों के इतिहास में झाँक लिया जाए! 30 के दशक में फिल्मी होली गीतों के बारे में तो मैं कुछ ढूँढ नहीं पाया, लेकिन क्योंकि उस वक़्त ठुमरी का काफ़ी चलन था फिल्म संगीत में और ठुमरी का अर्थ ही है कृष्ण से संबंधित गीत, तो ज़ाहिर है की ठुमरी के रूप में ज़रूर होली गीत भी रहे होंगे. जो सबसे पुराना होली गीत मुझे प्राप्त हुआ वो है 1940 की फिल्म "होली" में ए आर ओझा और सितारा का गाया "फागुन की रुत आई रे", जिसके संगीतकार थे खेमचंद प्रकाश. और फिर लता मंगेशकर का पहला गाना "पा लागूँ कर ज़ोरी रे, श्याम मोसे ना खेलो होरी" भी तो एक होली गीत था, फिल्म "आप की सेवा में", जो आई थी 1947 में. 1950 की फिल्म "जोगन" में गीता रॉय ने बहुत सारे मीरा भजन गाये, साथ ही साथ पंडित इंद्रा के लिखे दो होरी गीत भी गाये जिनके बोल थे “चंदा खेले आँख मिचोली बदली से नदी किनारे, दुल्हन खेले फागुन होली पिया करो ना हमसे ठिठोली” और “डारो रे रंग डारो रे रसिया फागुन के दिन आए रे”. गीता रॉय की ही आवाज़ में 1953 की फिल्म "लाडली" में एक होली गीत था “बाट चलत नयी चुनरी रंग डारी, हे तोहे बेदर्दी बनवारी”. और फिर 1957 में "मदर इंडिया" में शक़ील बदयुनीं ने लिखा “होली आई रे कन्हाई रंग छलके सुना दे ज़रा बाँसुरी”. यह गीत बेहद मशहूर हो गया और इसके बाद तो जैसे फिल्मों में होली गीतों का तांता लग गया.
तो इतनी जानकारी के बाद अब हम वापस आते हैं बालिका वधु फिल्म के होली गीत पर. शक्ति सामंता ने इस फिल्म का निर्माण किया था इसी नाम से लिखी गयी शरतचंद्रा चट्टोपाध्याय की प्रसिद्ध बांग्ला उपन्यास के आधार पर. तरु मजूमदार निर्देशित इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे सचिन और रजनी शर्मा. गाने लिखे आनंद बक्शी ने और संगीतकार थे राहुल देव बर्मन. इस फिल्म में आशा भोंसले, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार,अमित कुमार और चंद्राणी मुखेर्जी ने तो गीत गाए ही थे, ख़ास बात यह है कि इस फिल्म में आनंद बक्शी,राहुल देव बर्मन और उनके सहायक सपन चक्रवर्ती ने भी गाने गाए, और वो भी अलग अलग एकल गीत. प्रस्तुत होली गीत सपन चक्रवर्ती और साथियों की आवाज़ों में है. राहुल देव बर्मन अगर चाहते तो किसी भी नामी गायक से इस गीत को गवा सकते थे. लेकिन उन्हे लगा कि गाँव की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म के होली गीत के गायक की आवाज़ कुछ ऐसी अलग होनी चाहिए, एक ऐसी आवाज़ जो धरती के बहुत करीब लगे, लोक संगीत और ख़ास कर होली पर गाए जानेवाले लोकसंगीत के गायक की तरह लगे. बस, पंचम दा ने अपने सहायक और गायक सपन चक्रवर्ती से यह गीत गवा लिया और सचमुच उन्होने जैसा सोचा था, सपन चक्रवर्ती की आवाज़ ने बिल्कुल वैसा ही जादू कर डाला इस गीत में. आज भले ही यह गीत दूसरे होली गीतों की तुलना में बहुत ज़्यादा सुनाई ना दे, लेकिन होली पर बना यह एक अनूठा फिल्मी गीत है, और हमें पूरा यकीन है कि हमारी यह पसंद आपकी भी पसंद होगी. तो सुनिए "आओ रे आओ खेलो होली बिरज में".
गीत सुनकर मस्ती छा गयी होगी...है न...भाई अब होली हो और कोई छेड़खानी या मस्ती न हो तो क्या है मज़ा. "ओल्ड इस गोल्ड" के तेंदुलकर की उपाधि से सम्मानित हमारे प्रिय मनु "बे-तक्ख्ल्लुस" जी लाये हैं कुछ कार्टूनों के गुलाल और गुब्बारे. चलिए तैयार हो जाईये भाई....होली है....
पहला गुब्बारा आपके लिए है "तन्हा" जी
नीलम जी आप कहाँ जा रही हैं बच के
अरे भाई इन्होने तो मुझे भी नहीं छोडा
सुजॉय आप कहाँ छुपे बैठे हैं रंग जाईये आज आप भी इस रंग में
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. दिलीप कुमार और नलनी जयवंत पर फिल्मांकित है ये गीत.
२. टीम है शैलेन्द्र, शंकर जयकिशन, लता और तलत की.
३. गीत में शब्द युगल है - "फूल खिले".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
उज्जवल जी, आचार्य जी और मनु जी...गलत जवाब....दूसरा सूत्र देखिये...कटी पतंग नाम का कोई धरावाहिक नहीं आता :). चलिए होली में सब माफ़ है.ये होली गीत कैसा लगा अवश्य बताईयेगा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
8 श्रोताओं का कहना है :
आज क्या बात है आवाज़ पर गाने बज नहीं रहे हैं । ना ये बजा और ना ही छन्नूलाल जी वाला ।
क्या कोई तकनीकी समस्या है ।
सभी को होली मुबारक,,,,,,,,,,,,,
कमाल है ,,,,एक ही सूत्र से सदा गीत याद आ जाता था,,,
आज तीनो से हल्का हल्का आ रहा है,,,,मगर फिर भी याद नहीं अ रहा,,,
लेकिन ये होली गीत बड़ा ही मस्त लगा,,,,
hamaara to sahi baja yunus bhaai,,
dekhiye to kahin aapke PC ne bhaang vaang to nahi,,,:::)))
tanhaaji,
battaiye na,,,kaun saa geet hai,,,
tention ho rahi hai,,,
जब जब फूल खिले ,,,
अगर ऐसा कोई गीत है तो यही हो सकता है,,,,,पर काफी कनफूजन लग रहा है,,,के ऐसा कोई गीत है भी या के मेरे ख्यालो की खिचडी में पका है,,उलझी उलझी सी धुन भी आ रही है पर साफ़ कुछ नहीं...दूर से आती तलत की खोयी आवाज भी कभी हाँ कभी ना कह रही है,,,,
हार गया जी,
अगर सही है,,,तो एक तुका है,,,
hi, nice to go through your blog...
by the way which typing tool are you using for typing in Hindi...? is it user friendly...?
recently i was searching for the same and found..."quillpad". heard that it is user friendly... and it has an option for rich text too. and also it provides 9 Indian Languages... will you check it and let me know your opinion about it...
www.quillpad.in
keep writing...
अनाम (Anounymouse) जी,
हिन्दी-यूनिकोड टाइपिंग के लिए बहुत से टाइपिंग टूल मुफ्त में इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। सभी अपनी-अपनी सुविधानुसार अलग-अलग टूल चुनते हैं। क्योलपैड भी एक उपयोगी टूल है। यदि आइ इस विधा के लिए नये हैं और इस बारे में अधिक जानकारी पाने के इच्छुक हैं तो हमारे मुफ्त यूनिप्रशिक्षण का लाभ लें।
Shikast (1953)--Jab Jab Phool Khile Tujhe Yaad Kiyaa.
सजीव जी,
बहुत बढ़िया गीत सुनवाया होली का। आभार।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)