मिट्टी के गीत में- कजली गीत
मिर्जापुर उत्तर प्रदेश में एक लोक कथा चलती है, कजली की कथा. ये कथा विस्थापन के दर्द की है. रोजगार की तलाश में शहर गए पति की याद में जल रही है कजली. सावन आया और विरह की पीडा असहनीय होती चली गयी. काले बादल उमड़ घुमड़ छाए. कजली के नैना भी बरसे. बिजली चमक चमक जाए तो जैसे कलेजे पर छुरी सी चले. जब सखी सहेलियां सवान में झूम झूम पिया संग झूले, कजली दूर परदेश में बसे अपने साजन को याद कर तड़प तड़प रह जाए. आह ने गीत का रूप लिया. काजमल माई के चरणों में सर रख जो गीत उसने बुने, उन्ही पीडा के तारों से बने कजरी के लोकप्रिय लोक गीत. सावन में गाये जाने वाले ये लोकगीत अमूमन औरतों द्वारा झुंड बना कर गाये जाते हैं (धुनमुनिया कजरी). कजरी गीत गावों देहातों में इतने लोकप्रिय हैं की हर बार सावन के दौरान क्षेत्रीय कलाकारों द्वारा गाये इन गीतों की cd बाज़ार में आती है और बेहद सुनी और सराही जाती है.

बदरा घुमरी घुमरी घन गरजे... स्वर - रश्मि दत्त व् साथी
सोमा घोष कजरी की विख्यात गायिका हैं...उनकी आवाज़ में ये कजरी सुनें. जरूरी नही की सभी कजरी गीत विरहा के हों जैसे ये गीत,लौट आए पिया से की जानी वाली फरमाईशों का है - "पिया मेहंदी लियादा न मोती झील से जाके सायिकील से न...." यहाँ "सैकील" की घंटी का इस्तेमाल संगीतकार ने बहुत खूबी से किया है, सुनिए -
और अंत में सुनिए ये भोजपुरी कजरी भी "झुलाए गए झुलवा..."
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3 श्रोताओं का कहना है :
'पिया मेहंदी लियादा न मोती झील से' गीत से हमारे क्षेत्र का बच्चा-बच्चा परिचित है। मैंने इसे अन्य मधुर आवाज़ों में भी सुना है। नाम नहीं याद आ रहा, लेकिन इसे बहुत सी गायिकाओं ने गाया है। कभी रिकॉर्डिंग हाथ लगी तो सुनवाऊँगा। वैसे सराहनीय प्रस्तुतिकरण।
बहुत ही सउंदर लगा यह गीत, इसे लोक गीत कहना ज्यादा अच्छा है
धन्यवाद
बहुत-बहुत धन्यवाद, इस भोजपुरी प्रस्तुति के लिए ... आनन्द आ गया।
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