ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 55
हीर-रांझा पंजाब के चार प्रसिद्ध दुखद प्रेम कहानियों में से एक है। बाक़ी के तीन हैं मिर्ज़ा साहिबा, सस्सि पुन्नू और सोहनी महिवाल। युँ तो हीर-रांझा को कई काव्य रूपों में प्रस्तुत किया गया है लेकिन १७६६ में वारिस शाह का लिखा हीर-रांझा सब से ज़्यादा चर्चित हुआ। हीर एक बेहद ख़ूबसूरत अमीर परिवार की लड़की है, और रांझा अपने चार भाइयों में सब से छोटा होने की वजह से अपने पिता का चहेता। वह बहुत अच्छी बांसुरी बजाता है। अपने लालची भाइयों और भाभियों से तंग आकर रांझा घर छोड़ देता है और भटकते हुए हीर के गाँव आ पहुँचता है। दोनों की मुलाक़ात होती है और एक दूसरे से प्यार हो जाता है। रांझा को हीर के घर मवेशियों की देख-रेख करने की नौकरी भी मिल जाती है। हीर उसके बांसुरी की मधुर तानों से सम्मोहित सी हो जाती है और उससे बेहद प्यार करने लगती है। जब उनके प्यार की भनक हीर के लालची चाचा को लगती है तो वह जबरदस्ती हीर की शादी किसी और से करवा देते हैं। रांझा का दिल टूट कर रह जाता है और वह एक जोगी बन जाता है। घूमते घामते एक रोज़ रांझा उसी गाँव आ पहुँचता हैं जहाँ पर हीर रहती है। दोनो एक बार फिर से मिल जाते हैं और वापस हीर के गाँव चले आते हैं। हीर के माता-पिता उनकी शादी को रज़ामन्दी दे देते हैं। लेकिन उनके शादी के दिन हीर का वही लालची चाचा हीर को ज़हर भरा लड्डू दे देता है, जिसे खा कर हीर मर जती है। इस सदमे को रांझा बरदाश्त नहीं कर पाता और ख़ुद भी वही लड्डू खा कर हीर के बगल में दम तोड़ देता है। और इस तरह से हीर और रांझा मर तो जाते हैं लेकिन उनकी प्रेम-कहानी अमर हो जाती है। हीर और रांझा पंजाब के झंग नामक शहर में दफ़्न हैं, जो अब पाकिस्तान में पड़ता है।
दोस्तों, हीर और रांझा की कहानी हमने आज आपको इसलिए सुनाई क्युंकि इसी मशहूर प्रेम-कहानी पर बनी १९७० की फ़िल्म हीर रांझा का एक गीत आज हम आप को सुनवा रहे हैं। चेतन आनन्द निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राज कुमार और प्रिया राजवंश। शायद हिन्दी फ़िल्मों के इतिहास की यह एकमात्र फ़िल्म है जिसका पूरा संवाद काव्य पर आधारित है। यानी पूरी फ़िल्म को एक कविता की तरह पेश किया गया है और इसके सारे संवाद काव्य और तुकबंदी में लिखा गया है। सेलुलायड पर लिखी हुई इस कविता के लिये श्रेय जाता है इस फ़िल्म के संवाद लेखक और गीतकार कैफ़ी आज़मी को। संगीतकार मदन मोहन के संगीत का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है इस फ़िल्म की सफलता के पीछे। सुनिये इस फ़िल्म से लताजी का गाया यह गाना और उपर सुनाई गयी हीर रांझा की कहानी को पढ़ कर ख़ुद अन्दाज़ा लगाइये कि इस गीत को फ़िल्म में किस 'सिचुयशन' में रखा गया होगा! पेश है "दो दिल टूटे दो दिल हारे"। महसूस कीजिये लताजी की दर्दभरी आवाज़ में हीर के टूटे दिल की पुकार को!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाईये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. महेंद्र कपूर और आशा के स्वर.
२. रवि का संगीत था यश चोपडा निर्देशित इस बेहद कामियाब फिल्म में.
३. मुखड़े में शब्द है -"ख्वाब".
पिछली पहेली का परिणाम -
मनु जी वाह क्या सही जवाब दिया है आपने..बधाई...नीलम जी आपकी फरमाईश दर्ज हो गयी है जल्द ही पूरी करने का प्रयास रहेगा...बने रहिये ओल्ड इस गोल्ड पर.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवायेंगे, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.