Saturday, December 6, 2008

सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'शादी की वजह'



उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की व्यंग्य रचना 'शादी की वजह'

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना 'सौत' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की व्यंग्य रचना "शादी की वजह", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। व्यंग्य का कुल प्रसारण समय है: 7 मिनट और 11 सेकंड।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।




मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं
~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६)

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी

दूसरे साहब को अपनी खूबसूरती पर बड़ा नाज है। उनका ख्याल है कि उनकी शादी उनके सुन्दर रूप की बदौलत हुई। (प्रेमचंद की "शादी की वजह" से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
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यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)
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#Sixteenth Story, Shadi Ki Vajah: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2008/15. Voice: Anurag Sharma

Friday, December 5, 2008

एक गीत उन सब के नाम जो आतंक के ख़िलाफ़ खड़े होने की हिम्मत रखते हैं...



दूसरे सत्र के २३ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज

पिछले ७-८ दिनों में हमने क्या क्या नही देखा. देश की व्यवसायिक राजधानी पर आतंकी हमला, बंधक बने देशी-विदेशी नागरिक, खौफ का नया चेहरा लेकर सर उठाता आतंकवाद, स्तब्ध और सहमा हुआ आम आदमी, एक तरफ़ बेसुराग अंधेरों में स्वार्थ की रोटियां सेकते हमारे कर्णधार तो दूसरी तरफ़ अपनी जान पर खेल कर आतंकियों से लोहा लेते हमारे जांबाज़ देशभक्तों की फौज. इन सब अव्यवस्थाओं के बीच भी कुछ ऐसा हुआ जिसने बुझती उम्मीदों को एक नई रोशनी दे दी. इस राष्ट्रीय आपदा में जैसे पूरा देश, जिसे चंद स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने टुकड़े टुकड़े करने में कोई कसर नही छोडी थी, फ़िर से एक जुट हो गया. जातवाद, प्रांतवाद, धरम और भाषा के नाम पर देश को बांटने वाले देश के अंदरूनी दुश्मनों को पार्श्व में धकेलते हुए पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण, हिंदू मुस्लिम, अमीर गरीब, सब की संवेदनायें जैसे एक मत हो गई. एक बेहद अनचाही परिस्थिति से गुजरकर ही सही पर ये क्या कम है की एक सोये हुए देश की अवाम फ़िर से जागृत हो गई. ये हमला सिर्फ़ मुंबई या हिंदुस्तान पर नही है, समस्त इंसानियत के दामन पर है. मानवता के दुश्मन आतंकवाद को पैदा करने वाले और हवा देने वाले मुल्क भी अब इसकी चपेट में हैं और मुक्ति के लिए छटपटा रहे हैं. अब उपाय सिर्फ़ और सिर्फ़ यही है कि हम सब भेद भाव भूल कर, एक हो कर इस महादानव का मुकाबला करें.


दोस्तों, अब ये मशाल बुझने न पाये, हम प्रण करें कि अब हम किसी भी अंदरूनी या बाहरी ताक़त को अपनी एकता में खलल नही डालने देंगें. हम एक थे, एक हैं और एक होकर हर मुश्किल से मुश्किल हालत का सामना करेंगें. हम अपने शहीदों की कुर्बानियों को नही भूलेंगे और प्रेम और अमन की ताक़त से दुनिया को जीतेंगें. मित्रों आज जो गीत हम आपके लिए लेकर आए हैं, उसे किसने लिखा है, किसने स्वरबद्ध किया है और किसने गाया है ये महत्वपूर्ण नही है. महत्वपूर्ण है वो संदेश जो इस गीत के माध्यम से हम देश और दुनिया के तमाम लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं, वो संदेश जो हिंद युग्म परिवार का है, आप सब श्रोताओं से अनुरोध है कि इस गीत के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुचायें.

सुनिए ONE WORLD - हमारी एक सभ्यता.





The brutal Mumbai terrorist attacks sought to divide us...The attacks were aimed at our people, our prosperity and our peace. But their top target was something else : our unity. If this attacks cause us to turn on each other in hatred and conflict, the terrorists will have won. Let's deny them that victory. Let the massage will be laud and clear to the world, that these tactics aren't working, that we're more united than ever, united in our love and support to each other, and determined to work together to stop violent extremism. (Message from Soha Ali Khan, actress and Sr.advicer, awaaz)


This friday we podcast a brand new song dedicated to the real life heroes of our country. Please listen and share it with all your friends so that the massage of unity, love and peace may reach to all.
Lyrics - Sajeev Sarathie,
Music - Rishi S
Vocals - Biswajith Nanda, and Ramya.

("रम्या" हिंद युग्म की नयी खोज है, इनका विस्तृत परिचय हम आपको देंगे अगले सप्ताह)

Song - One World - "hamaari ek sabhyata"





उपर्युक्त फ्लैश प्लेयर न चल रहा हो तो नीचे से मीडिया प्लेयर से सुनें-


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Lyrics - गीत के बोल

तोड़ दायरे तोड़ सब हदें,
आज न रहे कोई सरहदें,
दरमियाँ तेरे मेरे दिल के अब,
एक आसमाँ एक अपना रब,
एक रंग है जब लहू का तो,
रंग भेद ये जात पात क्यों,
एक से हैं सब आंसू और हँसी,
फर्क तुझमें और मुझमें कुछ नही,
सजदों में कहीं कोई सर झुके,
या दुआओं में हाथ हों उठे,
ओढ़ मजहबें क्यों फिरे बशर,
पाक दिल तेरा है खुदा का घर,
इन दीवारों को तोड़ दें चलो,
इन लकीरों को मोड़ दें चलो,
बांटना हो तो बाँट लें चलो,
एक दूजे के दर्दो-गम चलो..

एक दूजे के दर्दो-गम चलो....

भूख पेट की सब को नोचती,
जिस्म की तड़प भी है एक सी,
चाह भी वही, आह भी वही,
मंजिलें वही, राह भी वही,
लाख नामों में हम बंधे तो क्या,
लाख चेहरों में हम छुपें तो क्या,
गौर से अगर देखो तुम कभी,
फर्क तुझमें और मुझमें कुछ नही,
एक सी है हैं तन्हाईयाँ भी तो,
दोस्तों कभी तुम भी सोचो तो,
नफरतों में क्यों खोये जिंदगी,
फासलों में क्यों कम हो हर खुशी,
दूरियों को अब छोड़ दें चलो,
दुश्मनी से मुंह मोड़ लें चलो,
बांटना हो तो बाँट लें चलो,
एक दूजे के दर्दो-गम चलो...

एक दूजे के दर्दो-गम चलो....

हमने इस गीत का निर्माण दुनिया भर के उन सभी लोगों के लिए किया है जो लोग आतंकवाद को मानव सभ्यता के लिए खतरा मानते हैं। हमारी गुजारिश है कि आप इस संदेश को जन-जन तक पहुँचायें। अपने ब्लॉग/वेबसाइट/ऑरकुट स्क्रैपबुक/माईस्पैस/फेसबुक में 'One Earth-हमारी एक सभ्यता' का पोस्टर लगाने के लिए पसंदीदा पोस्टर का कोड कॉपी करें।



SONG # 23, SEASON # 02, ONE WORLD - HAMARI EK SABHYATA, OPENED ON AWAAZ, HIND YUGM.
Music @ Hind Yugm, Where music is a passion.


Thursday, December 4, 2008

सुनिए सलिल दा के अन्तिम संगीत रचनायों में से एक, फ़िल्म "स्वामी विवेकानंद" के गीत



पिछले दिनों सलिल दा पे लिखी हमारी पोस्ट के जवाब में हमारे एक नियमित श्रोता ने हमसे गुजारिश की सलिल दा के अन्तिम दिनों में की गई फिल्मों में से एक "स्वामी विवेकानंद" के गीतों को उपलब्ध करवाने की. सलिल दा के अन्तिम दिनों में किए गए कामों की बहुत कम चर्चा हुई है. स्वामी के जीवन पर आधारित इस फ़िल्म में सलिल दा ने ८ गीत स्वरबद्ध किए. ख़ुद स्वामी के लिखे कुछ गीत हैं इसमें तो कबीर, जयदेव और सूरदास के बोलों को भी स्वरों का जामा पहनाया है सलिल दा ने.दो गीत गुलज़ार साहब ने लिखे हैं जिसमें के जे येसुदास का गाया बेहद खूबसूरत "चलो मन" भी शामिल है. गुलज़ार के ही लिखे एक और गीत "जाना है जाना है..." को अंतरा चौधरी ने अपनी आवाज़ दी है. अंतरा की आवाज़ में बहुत कम हिन्दी गीत सुनने को मिले हैं, इस वजह से भी ये गीत हमें बेहद दुर्लभ लगा. एक और विशेष बात इस फ़िल्म के बारे में ये है कि सलिल दा अपनी हर फ़िल्म का जिसमें भी वो संगीत देते थे, पार्श्व संगीत भी वो ख़ुद ही रचते थे. पर इस फ़िल्म के मुक्कमल होने से पहले ही दा हम सब को छोड़ कर चले गए. विजय भास्कर राव ने इस फ़िल्म का पार्श्व संगीत दिया. जानकारी के लिए बता दें कि "स्वामी विवेकानंद" के आलावा मात्र एक बांग्ला फ़िल्म है (रात्रि भोर) जिसमें सलिल दा गीतों को स्वरबद्ध करने के साथ साथ फ़िल्म के पार्श्व संगीत में अपना योगदान नही दिया. पार्श्व संगीत में उनका दखल भी इसी बात की तरफ़ इशारा करता है कि वो मुक्कमल "शो मैन" संगीतकार थे, जो दृश्य और श्रवण की बेमिसाल सिम्फनी रचते थे. इससे पहले कि हम आपको १९९४ में आई फ़िल्म "स्वामी विवेकानंद" के गीत सुनवायें आपको उनके द्वारा रचित एक "बेले" का संगीत सुनवाते हैं.


बेले का थीम है "बोटमेन ऑफ़ ईस्ट बंगाल", सचिन शंकर बेले यूनिट द्वारा १९७१ में रचित इस बेले में सलिल दा ने एक दुर्लभ गीत बनाया "दयानी करिबो अल्लाह रे" जिसे पंकज मित्रा ने अपनी महकती आवाज़ से सजाया. सलिल दा ने इस मधुर धुन को अपनी ही एक हिन्दी फ़िल्म लालबत्ती (१९५७) के गीत "क्या से क्या हो गए अल्लाह रे' से लिया था जिसे सलिल दा के बहुत गहरे मित्र और मशहूर लोक गायक निर्मालेंद्रू चौधरी ने गाया था. पर इस बेले के लिए उनका रचा ये गीत तो किसी और ही दुनिया का लगता है. सुनते हैं सलिल दा की सिम्फनी "दयानी करिबो अल्लाह रे..."




और अब सुनिए फ़िल्म "स्वामी विवेकानंद" से सलिल दे कुछ लाजवाब गीत -




प्रस्तुति सहयोग सलिल दा डॉट कॉम, सलिल दा के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहाँ अवश्य जाएँ.


Wednesday, December 3, 2008

सांझ ढले गगन तले हम कितने एकाकी...- सुरेश वाडकर



१९५४ में जन्में सुरेश वाडकर ने संगीत सीखना शुरू किया जब वो मात्र १० वर्ष के थे. पंडित जयलाल वसंत थे उनके गुरु. कहते हैं उनके पिता ने उनका नाम सुरेश (सुर+इश) इसलिए रखा क्योंकि वो अपने इस पुत्र को बहुत बड़ा गायक देखना चाहते थे. २० वर्ष की आयु में उन्होंने एक संगीत प्रतियोगिता "सुर श्रृंगार" में भाग लिया जहाँ बतौर निर्णायक मौजूद थे संगीतकार जयदेव और हमारे दादू रविन्द्र जैन साहब. सुरेश की आवाज़ से निर्णायक इतने प्रभावित हुए कि उन्हें फिल्मों में प्ले बैक का पक्का आश्वासन मिला दोनों ही महान संगीतकारों से, जयदेव जी ने उनसे फ़िल्म "गमन" का "सीने में जलन" गीत गवाया तो दादू ने उनसे "विष्टि पड़े टापुर टुपुर" गवाया फ़िल्म "पहेली" में. "पहेली" का गीत पहले आया और फ़िर "गमन" के गीत ने सब को मजबूर कर दिया कि यह मानने पर कि इंडस्ट्री में एक बेहद प्रतिभशाली गायक का आगमन हो चुका है.


उनकी आवाज़ और प्रतिभा से प्रभावित लता जी ने उन्हें बड़े संगीतकारों से मिलवाया. लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने दिया उन्हें वो "बड़ा' ब्रेक, जब उन्होंने लता दी के साथ गाया फ़िल्म "क्रोधी" का वो दो गाना "चल चमेली बाग़ में" और फ़िर आया "मेघा रे मेघा रे" जैसा सुपरहिट गीत (एक बार फ़िर लता जी के साथ), जिसके बाद सुरेश वाडकर घर घर में पहचाने जाने लगे. कैरियर ने उठान ली फ़िल्म "प्रेम रोग" के जबरदस्त गीतों से. राज कपूर की इस बड़ी फ़िल्म के सभी गीत सुरेश ने गाये. संगीत था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का. फ़िल्म के हीरो ऋषि कपूर पर सुरेश की आवाज़ कुछ ऐसे जमी कि उसके बाद ऋषि की हर फ़िल्म के लिए उन्हीं को तलब किया जाने लगा. लक्ष्मी प्यारे के आलावा सुरेश ने अपने ज़माने के लगभग सभी बड़े संगीतकारों के निर्देशन में गीत गाये. "हाथों की चाँद लकीरों का"(कल्यानजी आनंदजी), "हुजूर इस कदर भी न"(आर डी बर्मन), "गोरों की न कालों की"(बप्पी लाहिरी), "ऐ जिंदगी गले लगा ले"(इल्लायाराजा) और "लगी आज सावन की'(शिव हरी), जैसे बहुत से गीत हैं जिन्हें सुरेश ने अपनी आवाज़ में कुछ ऐसे गाया है कि आज भी हम इन गीतों में किसी और गायक की कल्पना नही कर पाते.

प्रतिभा के धनी सुरेश की क्षमता का फ़िल्म जगत ने बहुत नाप तोल कर ही इस्तेमाल किया. उनके गीत कम सही पर अधिकतर ऐसे हैं जिन्हें संगीत प्रेमी कभी भूल नही सकेंगे. आर डी बर्मन और गुलज़ार साहब के साथ मिलकर उन्होंने कुछ गैर फिल्मी गीतों की अल्बम्स भी की,जो व्यवसयिक दृष्टि से शायद बहुत कामियाब नही हुईं पर सच्चे संगीत प्रेमियों ने उन्हें हमेशा अपने संकलन में शीर्ष स्थान दिया है. गुलज़ार साहब भी लता दी की तरह सुरेश से बहुत अधिक प्रभावित थे, तो जब उन्होंने लंबे अन्तराल के बाद फ़िल्म "माचिस' का निर्देशन संभाला तो विशाल भारद्वाज के निर्देशन में उनसे "छोड़ आए हम" और "चप्पा चप्पा" जैसे गीत गवाए. विशाल भारद्वाज के साथ सुरेश ने फ़िल्म "सत्या" और "ओमकारा" में कुछ बेहद अनूठे गीत गाये. उनके गीतों की विविधता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि एक तरफ़ "सुरमई शाम" जैसा राग आधारित गीत है तो दूसरी तरफ़ "तुमसे मिलके" जैसा रोमांस. एक तरफ़ "साँझ ढले" जैसे गम में डुबो देने वाला गीत है तो दूसरी तरफ़ "सपने में मिलती है" का अल्हड़पन. उनके गाये हिन्दी और मराठी भजनों की अल्बम्स जब भी बाज़ार में आती है हाथों हाथ बिक जाती है. बहुत कम समय में ही सुरेश वाडकर हिन्दी फ़िल्म और गैर फ़िल्म संगीत में अपनी गहरी छाप छोड़ने में कामियाब हुए हैं. संगीत के चाहने वालों को उनसे आगे भी ढेरों उम्मीदें रहेंगी.

आईये सुनते हैं सुरेश की आवाज़ में कुछ यादगार नगमें -






Tuesday, December 2, 2008

शुद्ध भारतीय संगीत को फिल्मी परदे पर साकार रूप दिया दादू यानी रविन्द्र जैन ने



अब तक आपने पढ़ा


वर्ष था १९८२ का. कवियित्री दिव्या जैन से विवाह बंधन में बंध चुके हमारे दादू यानी रविन्द्र जैन साहब के संगीत जीवन का चरम उत्कर्ष का भी यही वर्ष था जब "ब्रिजभूमि" और "नदिया के पार" के संगीत ने सफलता की सभी सीमाओं को तोड़कर दादू के संगीत का डंका बजा दिया था. और यही वो वर्ष था जब दादू की मुलाकात राज कपूर साहब से एक विवाह समारोह में हुई थी. हुआ यूँ कि महफ़िल जमी थी और दादू से गाने के लिए कहा गया. दादू ने अपनी मधुर आवाज़ में तान उठायी- "एक राधा, एक मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा, अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो, एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी...".राज साहब इसी मुखड़े को बार बार सुनते रहे और फ़िर दादू से आकर पुछा -"ये गीत किसी को दिया तो नही". दादू बोले- "दे दिया", चौंक कर राज साहब ने पुछा "किसे", दादू ने मुस्कुरा कर कहा "राजकपूर जी को".सुनकर राज साहब ने जेब में हाथ डाला पर सवा रूपया निकला टी पी झुनझुनवाला साहब की जेब से (टी पी साहब दादू के संगी और मार्गदर्शक रहे हैं कोलकत्ता से मुंबई तक). और यहीं से शुरू हुआ दादू से सफर का वो उत्कृष्ट दौर. फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली की भी एक दिलचस्प कहानी है. राज साहब की उलझन थी की उन्होंने ही फ़िल्म "जिस देश में गंगा बहती है" बनाई थी, अब वही कैसे कहे "राम तेरी गंगा मैली". गंगा दर्शन को गए दादू और राज साहब जब गंगा किनारे बैठ इसी बात पर विचार कर रहे थे, दादू पर अचानक माँ सरस्वती की कृपा हुई, बाजा हाथ में था तो गाने लगे- "गंगा हमारी कहे बात ये रोते रोते...राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते धोते..". सुनकर राज साहब कुछ ऐसे प्रसन्न हुए जैसे किसी बालक को खेलने के लिए चन्द्र खिलौना मिल जाए, आनंदातिरेक में कहने लगे "बात बन गयी...अब फ़िल्म भी बन जायेगी". और ये हम सब जानते हैं की ये फ़िल्म कितनी बड़ी हिट थी, आगे बढ़ने से पहले लता जी की दिव्य आवाज़ में इस फ़िल्म का शीर्षक गीत अवश्य सुनेंगें.



इस फ़िल्म के दौरान ही अगली फ़िल्म "हिना" पर भी चर्चा शुरू हो चुकी थी हालाँकि राज साहब ये फ़िल्म ख़ुद पूरी नही कर पाये पर इस फ़िल्म का लाजवाब संगीत उन्हीं की निगरानी में रिकॉर्ड हुआ था. इसके बाद दादू ने कुछ और भी कामियाब फिल्में की जैसे "मरते दम तक", "जंगबाज़", "प्रतिघात" आदि पर उनकी अगली बड़ी कामियाबियाँ छोटे परदे से आई.महा धारावाहिक "रामायण" में उनका काम अलौकिक था. हर धारावाहिक में उन्होंने थीम के अनुसार यादगार संगीत दिया, फ़िर चाहे वो हेमा मालिनी कृत नृत्य आधारित नुपुर हो, या अद्भुत कथाओं की अलिफ़ लैला या फ़िर साईं बाबा का न भूलने वाला संगीत. जितने अच्छे संगीतकार हैं दादू उतने ही या कहें उससे कहीं बड़े गीतकार, कवि और शायर भी हैं वो, अपने अधिकतर गीत उन्होंने ख़ुद लिखे पर कभी कभी अन्य संगीतकारों के लिए भी गीतकारी की. कल्याण जी आनंद जी के साथ "जा रे जा ओ हरजाई..."(कालीचरण), उषा खन्ना के लिए "गड्डी जांदी है छलांगा मार दी" (दादा) आदि उन्हीं के लिखे गीत हैं. सुनते चलें दादू के दो और शानदार गीत -

पहला गीत दादू की अपनी ही आवाज़ में फ़िल्म "अखियों के झरोखों से".



दूसरा गीत सुनिए महेंद्र कपूर के स्वर में फ़िल्म "फकीरा" से.



एक और बड़ा श्रेय दादू को जाता है, इंडस्ट्री को गायकों और गायिकाओं से नवाजने का. आरती मुख़र्जी को उन्होंने कोलकत्ता से बुलाया फ़िल्म गीत गाता चल के "श्याम तेरी बंसी पुकारे.." के लिए तो इसी फ़िल्म जसपाल सिंह के रूप में उन्होंने एक नया गायक भी दिया. हेमलता, येसुदास और सुरेश वाडेकर ने भी उन्हीं की छात्र छाया में ही ढेरों कमाल के गीत गाये. गायक सुरेश वाडेकर मानते हैं कि आज वो जो भी हैं उसका पूरा श्रेय दादू को है. एक संगीत प्रतियोगिता के विजेता थे सुरेश और दादू निर्णायक. सुरेश की आवाज़ से प्रभावित दादू ने उन्हें फ़िल्म में मौका देने का वादा किया जो उन्होंने निभाया भी, सुरेश से फ़िल्म "पहेली" में गवा कर. दादू की और बातें करेंगे फ़िर कभी पर कल हम आपको मिलवायेंगे इस बेहद जबरदस्त गायक सुरेश वाडेकर से, फिलहाल हम छोड़ते हैं आपको सुरेश के गाये उस पहले गीत पर. फ़िल्म "पहेली" का ये गीत सुनिए और दादू के संगीत की मधुर मिठास का आनंद लीजिये.
"विष्टि पड़े टापुर टुपुर..."



रविन्द्र जैन पर हमारी इस श्रृंखला में सुनवाये गए सभी गीत और कुछ अन्य गीत भी आप इस प्लेयर पर सुन सकते हैं बिना रुके.



Monday, December 1, 2008

एक चित का चोर जो गायक भी है, गीतकार भी और संगीतकार भी....- रविन्द्र जैन




हमने आपको सुनवाया था येसुदास का गाया रविन्द्र जैन का स्वरबद्ध किया एक अनमोल गीत. चलिए अब बात करते हैं एक बेहद अदभुत संगीत निर्देशक, गीतकार और गायक रंविन्द्र जैन की, जिन्हें फ़िल्म जगत प्यार से दादू के नाम से जानता है. स्वर्गीय के सी डे के बाद वो पहले संगीत सर्जक हैं जिन्होंने चक्षु बाधा पर विजय प्राप्त कर अपनी प्रतिभा को दक्षिण एशिया ही नही, वरन संसार भर में फैले समस्त भारतीय परिवारों तक बेहद सफलता के साथ पहुंचाया. दादू के संगीत में अलीगढ की सामासिक संस्कृति, बंगाल के माधुर्य और हिंदू जैन परम्परा का अदभुत मिश्रण है. २८ फरवरी १९४४ में जन्में रविन्द्र जैन की फिल्मी सफर शुरू हुआ १४ जनवरी १९७२ के दिन जब कोलकत्ता से मुंबई पहुंचे दादू ने फ़िल्म सेण्टर स्टूडियो में अपना पहला गाना रिकॉर्ड किया, गायक थे मोहम्मद रफी साहब. रफी साहब को जब ज्ञात हुआ की दादू अलीगढ से हैं तो उनसे ग़ज़ल सुनाने का आग्रह किया तो दादू ने पेश किया ये कलाम-
गम भी हैं न मुक्कमल, खुशियाँ भी हैं अधूरी,
आंसू भी आ रहे हैं, हंसना भी है जरूरी,
ग़ज़ल का मत्तला सुनते ही रफी साहब ने कहा की देखिये मास्टर जी, देखिये मेरे बाल खड़े हो गए...तब से दादू की हर रिकॉर्डिंग के बाद रफी साहब उसी ग़ज़ल को सुनाने की फरमाईश करते.
आगे बढ़ने से पहले क्यों न रफी साहब का गाया और दादू का स्वरबद्ध किया फ़िल्म "कांच और हीरा" का ये लाजवाब गीत -
"नज़र आती नही मंजिल...."



जिस फ़िल्म के लिए रफी साहब का गाया हुआ पहला गीत रिकॉर्ड किया, वह एक शायर की आत्मकथा थी, बाद में शायर की जगह चोर ने ले ली, और फ़िल्म का नाम हो गया "चोर मचाये शोर". चोर ने कुछ यूँ शोर मचाया की बेचारा शायर यह कहकर खामोश हो गया कि घुंघुरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं. गीत चूँकि सबको बहुत पसंद था तो फ़िल्म में उसकी सिचुएशन न होने पर भी उसे शामिल कर लिया गया. यह किशोर दा का पहला गाना था दादू के निर्देशन में. किशोर दा बड़े बड़े संगीतकारों को दाव दे जाते थे फ़िर रविन्द्र जैन तो एक नए नाम थे. सिप्पी साहब ने बंगाल की दुहाई देते हुए किशोर दा को फ़ोन किया "किशोरदा एक बार गाना सुन तो लो फ़िर निर्णय तुम्हारा है". जिस दिन स्टूडियो बुक था रिकॉर्डिंग के लिए उस दिन दादू का किशोर दा से संपर्क नही हो पा रहा था, तभी अचानक वहां किशोर दा अवतरित हो गए और बिना किसी औपचारिकता के सीधी आज्ञा दी कि "आगे गान सुनाओ". दादू अभी स्टूडियो पहुंचे ही थे, साजिंदों को आना था, गीत को संगीत से सजाना था. पर जैसे तैसे दादू ने किशोर दा को गीत सुनना शुरू किया पहली ही पंक्ति से किशोर दा उसे दोहराने लगे. दादू ने कहा "अभी तो समय लगेगा संगीत की ट्यूनिंग में." तब किशोर दा ने दादू की पीठ ठोंकी और कहा "तुम इत्मीनान से काम करो, मुझे कोई जल्दी नही है" शायद उन्हें भी कुछ ऐसा मिल गया था जिसे गाकर उन्हें बेहद आत्मसंतोष मिलने वाला था. तभी तो उन्होंने फ़ोन कर किसी अन्य संगीतकार की रिकॉर्डिंग कैंसल कर गाया फ़िल्म "चोर मचाये शोर" का वो अमर गीत. सुनते हैं -



किशोर दा ने उनके संगीत निर्देशन में एक और गजब का गीत गाया फ़िल्म "तपस्या" के लिए -"जो राह चुनी तूने, उसी राह पे राही चलते जाना रे". मन्ना डे का भी साथ मिला दादू को जब उन्होंने फ़िल्म सौदागर के लिए "दूर है किनारा" गीत गाया. राजश्री फ़िल्म के साथ उनका गठ बंधन बेहद कामियाब रहा. फ़िल्म सौदागर में लता जी ने गाया "तेरा मेरा साथ रहे..." तो वहीँ इसी फ़िल्म का एक और गीत था जिसे आशा ने बहुत खूबसूरत अंदाज़ में गाया. गीत अपनी आलंकारिक भाषा के लिए प्रसिद्ध हुआ- जिसमें एक शब्द के दो अर्थ थे- "सजना है मुझे सजना के लिए...". क्या हम कल्पना कर सकते हैं किसी और के स्वर में इस गीत की...सुनिए -



फ़िल्म "चोर मचाये शोर", "सौदागर" और "दो जासूस" के बाद दादू का सिक्का संगीत जगत में चल निकला. "चितचोर" के मधुर गीतों ने सब के चित चुरा लिए तो "फकीरा" और "दुल्हन वही जो पिया मन भाये" जैसी फिल्मों के संगीत ने उन्हें खासी ख्याति दी.

फिर दादू को साथ मिला राजकपूर का जिसका जिक्र पढ़िए-सुनिए अगले अंक में।

"मैं उस दिन गाऊंगा जिस दिन आप धारा प्रवाह हिन्दी बोल कर दिखायेंगे..."- प्रसून जोशी



सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (५)

साहित्य और संगीत एक एल्बम में

हिंद युग्म का पहला एल्बम "पहला सुर" कई मायनों में अनोखा था. इसमें पहली बार साहित्य और संगीत को एक धागे में पिरोकर प्रस्तुत किया गया था. बेशक ये बहुत बड़े पैमाने पर नही था पर सोच अपने समय से आगे की थी. इस बात की पुष्टि करता है टाईम्स म्यूजिक का नया एल्बम "द म्यूजिक ऑफ़ सुपरस्टार इंडिया". जो कि शोभा डे की लिखी पुस्तक "सुपरस्टार इंडिया" से प्रेरित है.संगीत का मोर्चा संभाला है मिति अधिकारी और नील अधिकारी ने जो मिलकर बनते हैं MANA. बंगाल के बाउल और राजस्थान के लंगास के मन लुभावने संगीत के बीचों बीच आप सुन सकते हैं शोभा की आवाज़ में पुस्तक के अंश भी. इन पारंपरिक गीतों को MANA ने बहुत आधुनिक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है, यहाँ लाउंज भी है, रेग्गे भी, ट्रांस भी और क्लब भी, जो शायद हर पीढी को संगीत का आनंद भरपूर दे पायेगी. दुर्लभ संगीत अल्बम्स के संकलन के शौकीन संगीत प्रेमी इसे अवश्य खरीदें.


"सॉरी भाई" ये मेरा गाना है...

संगीत की चोरी का मामला एक बार फ़िर प्रकाश में हैं, आपको याद होगा किस प्रकार संगीतकार राम सम्पंथ ने निर्देशक राकेश रोशन को अदालत का दरवाज़ा दिखलाया था जब संगीतकार राजेश रोशन ने राम सम्पथ की धुन चुरा कर फ़िल्म "क्रेजी ४" में इस्तेमाल किया था. पॉप और सूफी गायक रब्बी ने आरोप लगाया है फ़िल्म 'सॉरी भाई' के एक गाने की धुन उनकी रचना की हुबहू नक़ल है. फ़िल्म के संगीतकार हैं गौरव दयाल. अदालत ने फ़िल्म के प्रदर्शन पर से तो रोक हटा ली है पर निर्माता वाशु भगनानी से जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया है. वाशु का कहना है कि उन्हें इस बाबत जानकारी नही थी. उन्हें गौरव ने धुन अपनी कह कर सुनवाई थी, पर वो रब्बी को जरूरी मुहवाजा देने को तैयार हैं, यदि उनकी बात सही पायी गई तो. आए दिन आने वाली चोरी की इन खबरों से संगीत जगत स्तब्ध है.


प्रसून एक गायक भी

गीतकार प्रसून के लिखे गीतों से हम सब वाकिफ हैं, पर बहुत कम लोग जानते है कि वो उन्होंने उस्ताद हफीज अहमद खान से शास्त्रीय संगीत की दीक्षा भी ले रखी है.उनके उस्ताद उन्हें ठुमरी गायक बनाना चाहते थे. उन दिनों को याद कर प्रसून बताते हैं कि उनके पास रियाज़ का समय नही होता था, तो बाईक पर घर लौटते समय गाते हुए आते थे और उनका हेलमेट उनके लिए "अकॉस्टिक" का काम करता था. प्रसून संगीत को अपना उपार्जन नही बना पाये. उनके पिता उन्हें प्रशासन अधिकारी बनाना चाहते थे पर ये उनका मिजाज़ नही था, तो MBA करने के बाद आखिरकार विज्ञापन की दुनिया में आकर उनकी रचनात्मकता को जमीन मिली. बचपन से उन्हें हिन्दी और उर्दू भाषा साहित्य में रूचि थी. उनके शहर रामपुर के एक पुस्तकालय में उर्दू शायरों का जबरदस्त संकलन मौजूद था. मात्र १७ साल की उम्र में उनका पहला काव्य संकलन आया. कविता अभी भी उनका पहला प्रेम है. प्रसून मानते हैं कि यदि संगीत के किसी एक घटक की बात की जाए जो आमो ख़ास सब तक पहुँचता हो और जहाँ हमने विश्व स्तर की निरंतरता बनाये रखी हो तो वो गीतकारी का घटक है. ५० के दशक से आज तक फ़िल्म जगत के गीतकारों ने गजब का काम किया है. "हम तुम", "फ़ना" और "तारे जमीन पर" जैसी फिल्मों के गीत लिख कर फ़िल्म फेयर पाने वाले प्रसून तारे ज़मीन पर के अपने सभी गीतों को अपनी बेटी ऐश्निया को समर्पित करते हैं, और बताते हैं कि किस तरह एक ८० साल के बूढे आदमी ने उनके लिखे "माँ" गीत की तारीफ करते हुए उनसे कहा था कि वो अपनी माँ को बचपन में ही खो चुके थे, गाने के बोल सुनकर उन्हें उनका बचपन याद आ गया. ऐ आर रहमान के साथ गजिनी में काम कर रहे प्रसून से जब रहमान गीत को आवाज़ देने की "गुजारिश" की तो प्रसून ने बड़ी आत्मीयता से कहा कि जिस दिन आप धाराप्रवाह हिन्दी बोलने लगेंगे उस दिन मैं आपके लिए अवश्य गाऊंगा.देखते हैं वो दिन कब आता है.


मैं ऐक्टर तो नही....मगर...

लीजिये एक और गायक /संगीतकार का काम अब एक्टिंग की दुनिया से जुड़ने वाला है. विश्वास कीजिये हमारे बप्पी दा यानी कि मशहूर संगीतकार और गायक बप्पी लहरी अब फिल्मों में अभिनय करते नज़र आयेंगे. "इट्स रोक्किंग दर्द ऐ डिस्को" नाम से बन रही इस फ़िल्म में बप्पी दा प्रमुख किरदार निभा रहे हैं साथ ही गायन और संगीत भी उन्हीं का है. इसके अलावा वो सलमान और करीना की आने वाली फ़िल्म "मैं और मिसेस खन्ना" में भी एक प्रमुख रोल में नज़र आयेंगे. चौकिये मत अभी ये सूची और लम्बी होने वाली है. इंडियन आइडल अभिजीत सावंत नज़र आयेंगें आने वाली फ़िल्म "लूटेरे" में, तो आनंद राज आनंद और सुखविंदर के भी बारे में भी ख़बर आई है कि वो भी जल्द ही फिल्मों अपना अभिनय कौशल दिखलायेंगे. लगता है हमारे संगीत सितारों को "हिमेशिया सरूर" हो गया है

Sunday, November 30, 2008

अनकथ तेरी शहादत को, किस पैमाने पर तोल, लिखूँ ?



दो बोल लिखूँ!
शब्दकोष खाली मेरे, क्या कुछ मैं अनमोल लिखूँ!

आक्रोश उतारुँ पन्नों पर,
या रोष उतारूँ पन्नों पर,
उनकी मदहोशी को परखूँ,
तेरा जोश उतारूँ पन्नों पर?

इस कर्मठता को अक्षर दूँ,
निस्सीम पर सीमा जड़ दूँ?
तू जिंदादिल जिंदा हममें,
तुझको क्या तुझसे बढकर दूँ?
अनकथ तेरी शहादत को, किस पैमाने पर तोल, लिखूँ?


मैं मुंबई का दर्द लिखूँ,
सौ-सौ आँखें सर्द लिखूँ,
दहशत की चहारदिवारी में
बदन सुकूँ का ज़र्द लिखूँ?

मैं आतंक की मिसाल लिखूँ,
आशा की मंद मशाल लिखूँ,
सत्ता-विपक्ष-मध्य उलझे,
इस देश के नौनिहाल लिखूँ?
या "राज"नेताओं के आँसू का, कच्चा-चिट्ठा खोल,लिखूँ?

फिर "मुंबई मेरी जान" कहूँ,
सब भूल, वही गुणगान कहूँ,
डालूँ कायरता के चिथड़े,
निज संयम को महान कहूँ?

सच लिखूँ तो यही बात लिखूँ,
संघर्ष भरे हालात लिखूँ,
हर आमजन में जोश दिखे,
जियालों-से जज़्बात लिखूँ।
शत-कोटि हाथ मिले जो, तो कदमों में भूगोल लिखूँ!
हैं शब्दकोष खाली मेरे, क्या कुछ मैं अनमोल लिखूँ?


हिंद युग्म के कवि विश्व दीपक "तन्हा" की ये कविता बहुत कुछ कह जाती है दोस्तों. आवाज़ के कुछ मित्रों ने इन ताज़ा घटनाओं पर हम तक अपने विचार पहुंचाएं. दिल्ली के आनंद का कहना है -

मित्रो,मुंबई की घटना ने हमे ये सोचने पर मजबूर कर दिया है की कब तक ..........
कब तक हमे ऐसे माहौल में जहाँ चारो तरफ एक डर और अविश्वास का वातावरण है इसमें रहना पड़ेगा ,
कब तक इन लफ्फाज नेताओं की लफ्फाजी और आश्वाशनो की घुट्टी पीनी पड़ेगी
आखिर कब तक .............
दोस्तों आज हम युवाओं को आगे आकर जिम्मेदारी उठानी होगी ,चुप्पी तोड़नी होगी
याद करो दोस्तों भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत. क्या ऐसे ही भारत का सपना उनकी आँखों में था, नहीं दोस्तों, उस वक़्त वो आगे आये आज तुम्हारी नैतिक जिम्मेदारी है तुम आगे आओ, चुप्पी तोड़ो ...............
हमे नाज है अपने उन जांबाज सुरक्षाकर्मीओं पर जिन्होंने देश की अस्मिता पर आये इस भयानक संकट को मिटाने के लिए अपने आप को मिटा दिया हम सलाम करते है उनकी बहादुरी को ..........
और धिक्कारते है इन लफ्फाज और बेशर्म नेताओं को जिनके राजनीति की वजह से हजारों -लाखों निर्दोष लोग काल के गाल में समां जाते है,
ये हमारे रोल मॉडल कतई नहीं हो सकते हमारे हीरो तो हेमंत करकरे,विजय सालसकर,संदीप उन्नीकृष्णन जैसे जांबाज है जो वक़्त आने पर देश पर अपनी जान भी देना जानते है.


ग्वालियर पुलिस में कार्यरत हमारे साथी अरविन्द शर्मा इस मंच के माध्यम से आप सब से एक अनुरोध कर रहे हैं -

प्रिये साथियो,
देश मे फिर आंतकवाद ने कितने घरों के चिराग बुझा दिए. यह आप हम नहीं जानते ऐसा कर उन को क्या मिला पर दोस्तों, साथियो उन माँओं से पूछो जो अपने बच्चो को खोने का दर्द सहती है या उन बहनों से पूछो जो सारी उम्र टक टकी लगाए इंतजार करती रहती है ...माँ, बहनें, जीवन संगनी, बच्चे, कितने रिश्ते खत्म हो जाते है एक पल में. कितना अकेला पन होता इन रिश्तों के बिखर जाने के बाद ...कोई उनको समझाए ...कि उनके भी रिश्ते ऐसा ही उनके जाने के बाद दर्द पैदा करते है वो भी रिश्तो की डोर से बंधे होंगे. हम शर्मिंदा है आज ...उन रिश्तो के आगे जो इस पीडा के शिकार बने ..उन देश भक्तों को नमन जो शहीद हुवे ..आज हम सब भाई, दोस्त,साथी, उन सब के लिए भगवान् से प्रार्थना करें कि उनको अपने चरणों मे स्थान दें शान्ति दें व उनके परिवार, रिश्तो को हिम्मत दे !
हम सब का फ़र्ज़ बनता है की हम उनके आत्मा के लिए एक दिया जला उनको समर्पित करे व् दुआ करे. यह मेरी आप सब दोस्तों साथियो से हाथ जोड़ प्रार्थना है ..एक दिया - एक प्रार्थना ...


वीर सिपाहियों के साथ साथ मीडिया की भी तारीफ करनी पड़ेगी विशेषकर NDTV की, जिसने इस पूरी घटना को बेहद संवेदनात्मक रूप से आम जनता तक पहुंचाया. शहीदों को श्रद्धा सुमन प्रस्तुत करते समय उन्होंने जिस गीत का पार्श्व में उपयोग किया वो फ़िल्म "आमिर" का है. अमिताभ वर्मा के लिखे इस गीत की धुन बनाई है अमित त्रिवेदी ने और गाया है शिल्पा राव ने. दोस्तों, इस गीत को आज आवाज़ पर पूरा सुनें और याद करें एक बार फ़िर देश पर शहीद हुए उन अमर सपूतों की शौर्य गाथा.



आप भी अपने विचार टिप्पणियों के माध्यम से या मेल द्वारा हम तक पहुँचायें. इस मुश्किल समय में एक मजबूत देश की एकजुटता आज दुनिया देखे.



पॉडकास्ट कवि सम्मेलन - नवम्बर २००८




Doctor Mridul Kirti - image courtesy: www.mridulkirti.com
डॉक्टर मृदुल कीर्ति
कविता प्रेमी श्रोताओं के लिए प्रत्येक मास के अन्तिम रविवार का अर्थ है पॉडकास्ट कवि सम्मेलन। लीजिये आपके सेवा में प्रस्तुत है नवम्बर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मलेन। अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर २००८ की तरह ही इस बार भी इस ऑनलाइन आयोजन का संयोजन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने। आवाज़ की ओर से हर महीने प्रस्तुत किए जा रहे इस प्रयास में गहरी दिलचस्पी और सहयोग के लिए धन्यवाद! आप सभी के प्रेम के लिए हम आपके आभारी हैं। इस बार भी हमें अत्यधिक संख्या में कवितायें प्राप्त हुईं और हमें आशा है कि आप अपना सहयोग इसी प्रकार बनाए रखेंगे। हम बहुत सी कविताओं को उनकी उत्कृष्टता के बावजूद इस माह के कार्यक्रम में शामिल नहीं कर सके हैं और इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। कुछ कवितायें समयाभाव के कारण इस कार्यक्रम में स्थान न पा सकीं एवं कुछ रिकॉर्डिंग ठीक न होने की वजह से। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। ऑडियो फाइल के साथ अपना पूरा नाम, नगर और संक्षिप्त परिचय भी भेजना न भूलें ।

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन भौगौलिक दूरियाँ कम करने का माध्यम है और इसमें विभिन्न देश, आयु-वर्ग, एवं पृष्ठभूमि के कवियों ने भाग लिया है। इस बार के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन की शोभा को बढाया है शेफाली, बोकारो से पारुल, फ़रीदाबाद से श्रीमती शोभा महेन्द्रू, सिनसिनाटी (यू एस) से श्रीमती लावण्या शाह, लन्दन (यू के) से श्रीमती शन्नो अग्रवाल, हैदराबाद से डॉक्टर रमा द्विवेदी, वाराणसी से डॉक्टर शीला सिंह, उदयपुर से डॉक्टर श्रीमती अजित गुप्ता, गाजियाबाद से कमलप्रीत सिंह, कोलकाता से अमिताभ " मीत", तथा पिट्सबर्ग (यू एस) से अनुराग शर्मा ने। ज्ञातव्य है कि इस कार्यक्रम का संचालन किया है हैरिसबर्ग (अमेरिका) से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने।

पिछली बार के सम्मेलन से हमने एक नया खंड शुरू किया है जिसमें हम हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य कवियों का संक्षिप्त परिचय और उनकी एक रचना को आप तक लाने का प्रयास करते हैं। इसी प्रयास के अंतर्गत इस बार हम सुना रहे हैं अमर-गीत "वंदे मातरम" और उसके रचयिता जाने-माने कथाकार, उपन्यासकार, चित्रकार, चिन्तक, कवि एवं गीतकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का परिचय। "वंदे मातरम्" का सस्वर उद्घोष हमारे कवियों एवं आवाज़ की और से मुम्बई के ताज़ा आतंकी हमले में अपना जीवन देश पर न्योछावर करने वाले वीरों के प्रति एक श्रद्धांजलि भी है।

पिछले सम्मेलनों की सफलता के बाद हमने आपकी बढ़ी हुई अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है। हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि इस बार का सम्मलेन आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और आपका सहयोग हमें इसी जोरशोर से मिलता रहेगा। यदि आप हमारे आने वाले पॉडकास्ट कवि सम्मलेन में भाग लेना चाहते हैं तो अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन के दिसम्बर अंक का प्रसारण २८ दिसम्बर २००८ को किया जायेगा और इसमें भाग लेने के लिए रिकॉर्डिंग भेजने की अन्तिम तिथि है २१ दिसम्बर २००८

नीचे के प्लेयर से सुनें:


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हम सभी कवियों से यह अनुरोध करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे।

रिकॉर्डिंग करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। हिन्द-युग्म के नियंत्रक शैलेश भारतवासी ने इसी बावत एक पोस्ट लिखी है, उसकी मदद से आप रिकॉर्डिंग कर सकेंगे।

अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।

# Podcast Kavi Sammelan. Part 5. Month: November 2008.


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