'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के गानें रेकॉर्ड/ कैसेट्स/ सीडी'ज़ के ज़रिये अनंतकाल तक सुरक्षित रहेंगे, इसमें कोई शक़ नहीं है, और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि सुनहरे दौर के फ़नकार भी अमर रहेंगे। लेकिन जब हम इन अमर फ़नकारों के बारे में आज जानना चाहते हैं तो कुछ किताबों, पत्र-पत्रिकाओं और विविध भारती के संग्रहालय में उपलब्ध कुछ साक्षात्कारों के अलावा कोई और ज़रिया नहीं है। इन कलाकारों के परिवार वालों से भी जानकारी मिल सकती है लेकिन उन तक पहुँचना हमेशा संभव नहीं होता। ऐसे में अगर हमें कोई मिल जाये जिन्होंने उस ज़माने के कलाकार को या उनके परिवार को करीब से देखा है, जाना है, तो उनसे बातचीत करनें में भी एक अलग ही रोमांच हो आता है। यह हमारा सौभाग्य है कि 'हिंद-युग्म आवाज़' परिवार के श्रोता-पाठकों में भी कई मित्र ऐसे हैं जिन्होंने न केवल उस ज़माने से ताल्लुख़ रखते हैं बल्कि स्वर्णिम युग के कुछ कलाकारों के संस्पर्श में भी आने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ऐसी ही एक शख़्स हैं हमारी गुड्डो दादी।
अभी हाल ही में जब मुझे सजीव जी से पता चला कि गुड्डो दादी बहुत साल पहले पंडित हुस्नलाल के घर गई थीं, मुझे रोमांच हो आया, और मैंने दादी से गुज़ारिश की अपनी यादों के उजालों को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बिखेरने की। बड़े ही उत्साह के साथ दादी नें न केवल उस अनुभव के बारे में हमें लिख भेजा, बल्कि अमरीका से ख़ुद मुझे टेलीफ़ोन भी किया। ७२ वर्ष की उम्र में भी टेलीफ़ोन पर उनकी आवाज़ में जिस तरह का उत्साह मुझे मेहसूस हुआ, उससे हम नौजवान बहुत कुछ सीख सकते हैं। बहुत साल पहले की बात होने की वजह से दादी को बहुत ज़्यादा तो याद नहीं, लेकिन जितना भी याद है, वो हमारे लिये कुछ कम नहीं है। तो आइए रोशन करते हैं आज की यह महफ़िल गुड्डो दादी की सुनहरी यादों के उजाले से।
सुजॉय - गुड्डो दादी, एक बार फिर स्वागत है आपका 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। यकीन मानिए, आप जैसी वरिष्ठ मित्रों के संस्पर्श में आकर हमें बहुत अच्छा लगता है, और एक रोमांच भी हो आता है यह जानकर कि आप सहगल साहब, पं. हुस्नलाल-भगतराम, और सुरिंदर कौर जैसी कलाकारों से मिली हैं, या उन्हें सामने से देखा है। आज हम आपसे जानना चाहेंगे पं. हुसनाल-भगतराम के बारे में। मैंने सुना है कि आपके परिवार का संबंध है उनके परिवार के साथ?
गुड्डो दादी - जी हाँ! पंडित बागा राम जी के साथ हमारा पारिवारिक सम्बन्ध है। मेरे पैदा होने से भी पहले हमारे परिवार का काफी आना जाना था।
सुजॉय - ये पंडित बागा राम जी कौन हैं?
गुड्डो दादी - पं. बागा राम जी हुस्नलाल जी के ससुर थे। और वो ख़ुद भी संगीतकार थे। मेरे ख़याल में उन्होंने कुछ फ़िल्मों में भी संगीत दिया है। और हुस्नलाल भगतराम को भी बहुत कुछ सिखाया है। पंडित बागा राम जी बहुत सीधे सादे किस्म के इंसान थे, बढ़ी सफ़ेद दाढ़ी, खुली कंधे पर लाल कपडे का अंगोछा डाले रखते थे।
सुजॉय - अच्छा!! क्या आप बता सकती हैं कि बागा राम जी नें किन फ़िल्मों में संगीत दिया था?
गुड्डो दादी - पंडित बागा राम जी ने कौन सी फिल्म में संगीत दिया या लिखा मुझे जानकारी नहीं हैं, क्योंकि उन दिनों हमें दूर ही रखा जाता था गीत आदि से, और दूर संचार के साधन भी कम थे। रेडियो तो १९४७ तक किसी किसी के घर में ही होता था।
सुजॉय - मैंने इंटरनेट पर काफ़ी ढूंढा पर बागा राम जी के बारे मे कोई जानकारी प्राप्त नहीं कर सका, और न ही उनके किसी फ़िल्म या गीत की। ऐसे में आप से उनके बारे में सुन कर बहुत ही अच्छा लग रहा है। दादी, मैंने सुना है कि आप हुस्नलाल जी के घर गई थीं। कहाँ पे था उनका घर?
गुड्डो दादी - मुझे जितना याद है या पता है, वह बागा राम जी का घर था। हुस्नलाल जी का वहाँ ख़ूब आना जाना था। उनका घर था दिल्ली के पहाड़गंज में इम्पीरियल सिनेमा के पीछे। एक पारिवारिक वातावरण था, सबसे मिलते थे आदर के साथ, हंस मुख भी थे। हुस्नलाल-भगतराम जी नया गीत अपने मित्र मंडली के साथ तैयार करते थे, जिसमे पंडित बागा राम जी बहुत सहायता करते थे। बहुत से गीत और धुनें दुसरे संगीतकारों ने चोरी कर अपनी फिल्मो में शामिल कर लिया, नाम तो नहीं लिखूँगी। हम भी दिल्ली में रहते थे। बेटी और पति के साथ बहुत बार गई उनके घर। वहाँ एक कमरा वाद्यों से सुज्जित रहता था जिसमें सितार, हारमोनियम, घड़ा, तबला शामिल थे। मसंद गोल तकिये, उन पर सफ़ेद कवर, ज़मीन पर कालीन और कालीन पर सफ़ेद चादर भी बिछी होती थी। उनके घर हमनें खाना भी खाया, बहिन के हाथों बना चाय भी पी, बड़ी बहिन ने खाने पर आमन्त्रण दिया था। बहिन, यानी हुसनाल जी की पत्नी, जिनको मैं बड़ी बहन बोलती हूँ सम्मान के साथ, उन्होंने भी फ़िल्म में गीत गाया है। मुझे जितना याद है फ़िल्म 'चाकलेट' में उन्होंने गीत गाया था।
सुजॉय - अच्छा! हुस्नलाल जी की पत्नी, यानी कि बागा राम जी की बेटी! यह जो फ़िल्म 'चाकलेट' की बात बतायी आपने, इस फ़िल्म में संगीत था मोहन शर्मा का और गीतकार थे सी. एम. कश्यप। यह १९५० की फ़िल्म थी। अच्छा दादी, गायिकाओं की बात करें तो सुरैया जी के साथ हुस्नलाल-भगतराम के सब से ज़्यादा लोकप्रिय गीत हुए। इस बारे में कुछ कहना चाहेंगी?
गुड्डो दादी - गायिका सुरैया की बहुत इज्ज़त करते थे दोनों। एक दूसरी मशहूर गायिका नें जब अपनी गीतों की 'श्रद्धांजली' सी.डी. बनायी तो उन्होंने हुस्न लाल जी के गीत एक भी नहीं शामिल किये। और आप यकीन नहीं करेंगे कई गायक गायिकाओं नें भी उनकी धुनें चुराकर दूसरे संगीतकारों को दी। गायक महेंदर कपूर जी ने भी गायन की शिक्षा हुसनलाल जी से ली थी।
सुजॉय - अच्छा दादी, आप तो उनके परिवार के करीब थीं, आप बता सकती हैं कि हुस्नलाल जी के निकट के मित्रों में कौन कौन से कलाकार हुआ करते थे?
गुड्डो दादी - गीतकार पंडित सुदर्शन जी, अभिनेता सोहराब मोदी, जयराज सहगल जी, जिल्लो बाई, जुबैदा, बोराल जी, डी एन मधोक, वाई बी चोहान, कारदार साहब, हरबंस, डायरेक्टर मुकंद लाल और बहुत से फिल्म के लोग थे उनकी मित्र मंडली में। एक साल पहले तलत अज़ीज़ से फोन पर बात हुई थी हुस्नलाल जी के विषय में, उनके मुख से यही निकला कि चित्रमय संसार में हम उन्हें बहुत याद करते हैं, और बहुत नाम है उनका | कभी कहते भी थे आपके बनाये हुए गीत फलाना फिल्म में बज रहे है, तो उनके मुख से यही निकलता था बजने दो मेरे मन को बहुत शान्ति मिलती है, यहीं सभी कुछ छोड़ जाना है, सभी कुछ!
सुजॉय - हुस्नलाल जी के अंतिम दिनों के बारे में आप कुछ बता सकती हैं?
गुड्डो दादी - उनके अंतिम दिन बहुत ही खराब व दयनीय दशा में निकले। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। लेकिन किसी के आगे अपना हाथ नहीं फैलाया। कुछ भी हो सुबह के वक़्त सैर अवश्य करने जाते थे। और एक दिन सुबह दिल्ली के ताल कटोरा बाग में दिल की धडकन रूकने से वहीं उनका देहांत हो गया। धुन बनाने वाले, चुराने वाले, गाने वाले, कोई भी कुछ नहीं ले गया, सब कुछ यहीं रह गया, फिल्म 'मेला' का गीत "ये जिंदगी के मेले" दरअसल फिल्म 'मोती महल' का गीत था "जाएगा जब यहाँ से कुछ भी ना साथ होगा"।
सुजॉय - वाक़ई दिल उदास जाता है ऐसे शब्द सुन कर। अच्छा दादी, चलते चलते आप अपनी पसंद का कोई गीत पंडित हुस्नलाल-भगतराम जी का सुनवाना चाहेंगे हमारे श्रोताओं को?
गुड्डो दादी - "वो पास रहे या दूर रहे नज़रों में समाये रहते हैं"
सुजॉय - वाह! आइए सुना जाये यह गीत सुरैया की आवाज़ में, फ़िल्म 'बड़ी बहन' का यह गीत है, क़मर जलालाबादी के बोल और यह वर्ष १९४९ की तस्वीर है।
गीत - वो पास रहे या दूर रहे (बड़ी बहन)
सुजॉय - दादी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया, बागा राम जी और हुस्नलाल जी के जीवन और संगीत सफ़र के बारे में युं तो किताबों और पत्रिकाओं से जानकारी प्राप्त की जा सकती है, लेकिन आपनें जो बातें हमें बताईं, वो सब कहीं और से प्राप्त नहीं हो सकती थी। यह हमारा सौभाग्य है आप से बातचीत करना। आगे भी हम आप से सम्पर्क बनाये रखेंगे, आप भी 'आवाज़' पर हाज़िरी लगाते रहिएगा, बहुत बहुत शुक्रिया, नमस्कार!
गुड्डो दादी - मेरी तरफ़ से आप को बहुत बहुत आशिर्वाद और धन्यवाद!