'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार। मैं, सुजॊय चटर्जी एक बार फिर हाज़िर हूँ इस साप्ताहिक विशेषांक के साथ। यह करीब दो साल पहले की बात है। मुझे मेरे दोस्त रामास्वामी से गुज़रे ज़माने के इस विस्मृत संगीतकार का टेलीफ़ोन नंबर प्राप्त हुआ था। उस वक़्त मैं ख़ुद इंटरव्युज़ नहीं करता था और 'हिंद-युग्म' से बस जुड़ा ही था। यह सोच कर कि अगर इस भूले बिसरे संगीतकार का इंटरव्यु 'विविध भारती' पर प्रसारित हो जाये, तो कितना अच्छा हो! इस ख़याल और लालच से मैंने इस संगीतकार का टेलीफ़ोन नंबर 'विविध भारती' के एक उच्च अधिकारी को भेज दिया और उनसे इस इंटरव्यु की गुज़ारिश कर बैठा। लेकिन पता नहीं इनकी कोई मजबूरी ही रही होगी कि यह इंटरव्यु संभव नहीं हो पाया। पिछले कुछ महीनों से जब मैंने ख़ुद इंटरव्युज़ लेना शुरु किया तो इस संगीतकार का नाम भी मेरी लिस्ट में था। दो तीन महीनों से मैं सोच ही रहा था कि किसी रविवार के दिन उन्हें टेलीफ़ोन करूँगा और उनसे कुछ बातचीत करूँगा। आप शायद मेरी बात का यकीन न करें कि मैं पिछले ही रविवार २७ मार्च को उन्हें फ़ोन करने ही वाला था कि उससे पहले किसी कारणवश मैंने रामास्वामी को फ़ोन कर लिया। और रामास्वामी नें मुझे बताया कि संगीतकार अजीत मर्चैण्ट का पिछले १८ मार्च २०११ को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया है। कुछ पल के लिए मेरे मुंह से शब्द ही नहीं निकल पाये। हताशा और अफ़सोस की सीमा न थी। अजीत जी की काफ़ी उम्र हो गई थी; प्राकृतिक नियम से उनकी मृत्यु अस्वाभाविक नहीं थी, लेकिन मुझे एक अपराधबोध नें घेर लिया कि काश मैं कुछ दिन पहले उन्हें फ़ोन कर लिया होता। वो बीमार थे, इसलिए इंटरव्यु तो शायद मुमकिन नहीं होता, पर कम से कम उनकी बोलती हुई आवाज़ तो सुन लेता। और यह अफ़सोस शायद मेरे साथ एक लम्बे समय तक चलेगा। अफ़सोस इस बात का भी है कि अजीत जी की मृत्यु की ख़बर न किसी राष्ट्रीय अख़्बार में छपी, और न ही किसी टीवी चैनल नें अपना 'ब्रेकिंग् न्युज़' बनाया, जो किसी बिल्ली के पानी की टंकी के उपर चढ़ जाने और फिर नीचे न उतर पाने की ख़बर को भी 'ब्रेकिंग् न्युज़' में जगह दिया करते हैं। गुजरात के अखबारों और इंटरनेट के माध्यम से उनकी मृत्यु-संवाद लोगों तक पहुंचा। दोस्तों, अजीत जी से मैं ख़ुद आपका परिचय तो नहीं करवा सका, लेकिन आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का यह विशेषांक उन्हीं को समर्पित कर अपने दिल का बोझ थोड़ा कम करना चाहता हूँ, जिस बोझ को मैं पिछले कुछ दिनों से अपने साथ लिए घूम रहा हूँ।
१९५७ की फ़िल्म 'चंडीपूजा' के कवि प्रदीप के लिखे और गाये गीत "कोई लाख करे चतुराई" को आप नें कई कई बार विविध भारती के 'भूले बिसरे गीत' कार्यक्रम में सुना होगा। यह अभिनेत्री शांता आप्टे की अंतिम हिंदी फ़िल्म थी। 'चंडीपूजा' के कुछ गीत लोकप्रिय हुए तो थे लेकिन उनका श्रेय प्रदीप को ज़्यादा और अजीत मर्चैण्ट को कम दिया गया। अजीत मर्चैण्ट उसी बिल्डिंग् में रहते थे जिसमें गायक मुकेश भी रहते थे। लेकिन मुकेश नें जहाँ सफलता के नभ चूमें, अजीत जी की झोली ख़ाली ही रही। एक से एक सुरीली धुन देने वाले अजीतभाई एक कमचर्चित संगीतकार के रूप में ही जाने गये और आज की पीढ़ी नें तो शायद उनका नाम भी नहीं सुना होगा। पर गुज़रे ज़माने के संगीत रसिक अजीत मर्चैण्ट का नाम सम्मान के साथ लेते हैं।
अजीत मर्चैण्ट एक गुजराती फ़िल्म संगीतकार के रूप में ज़्यादा जाने गये और उन्हें शोहरत भी गुजराती फ़िल्मों से ही प्राप्त हुई। १९५० की गुजराती फ़िल्म 'दीवादांडी' में दिलीप ढोलकिया के गाये लोकप्रिय भजन "तारी आँखनो अफ़ीनी" के संगीतकार के रूप में अजीत मर्चैण्ट हमेशा याद किए जायेंगे। ग़ज़ल सम्राट जगजीत सिंह को पहला मौका अजीत मर्चैण्ट नें ही दिया था। गुजराती में "लागी राम भजन" को जगजीत सिंह की आवाज़ में सुनना भी एक अनोखा अनुभव है। अभी कुछ साल पहले, जगजीत सिंह पर एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था 'माइ लाइफ़ माइ स्टोरी'। उसमें जगजीत जी नें अपने भाषण में कहा था, "जब मैं संघर्ष कर रहा था, एक गुजराती भाई नें अपना हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाया था"। जज़्बाती जगजीत सिंह नें फिर ज़ोर से आवाज़ लगाई, "आप कहाँ पर हो अजीत भाई?" अजीत जी बिल्कुल पीछे की तरफ़ बैठे हुए थे। जगजीत साहब नें दोबारा आवाज़ दी, "आप कहाँ पर हो अजीत भाई?" जब अजीत जी नें अपना हाथ उपर किया, तब जगजीत सिंह ख़ुद मंच से उतरकर अजीत भाई के पास गये और उनसे गले मिले। दोनों के ही आँखों में आँसू थे।
दोस्तों, मेरा वही मित्र रामास्वामी एक बार अजीत मर्चैण्ट से जाकर मिला। मौका था एक नये म्युज़िक क्लब 'गीत-गुंजन' का गठन, जिसमें अजीत जी को बतौर मुख्य अतिथि निमंत्रित किया गया था। स्थान था गुजराती सेवा मंडल, माटुंगा, मुंबई। उस कार्यक्रम में अजीत जी को संबोधित करते हुए प्रकाश पुरंदरे नें यह जानकारी दी कि अजीत मर्चैण्ट नें हिंदी और गुजराती मिलाकर कुल ४५ फ़िल्मों में संगीत दिया है, और बहुत सारे ड्रामा में भी संगीत दिया है, जिसकी संख्या २५० से उपर है। एक दिलचस्प बात जिसका ज़िक्र प्रकाश जी नें किया, वह यह कि कवि प्रदीप नें "ऐ मेरे वतन के लोगों" अजीत जी के ही घर पर लिखा था। उस जल्से में अजीत मर्चैण्ट के स्वरबद्ध २० गीत सुनवाये गये जिसका सुभाष भट्ट नें संकलन किया था। ये रहे वो २० गीत। इस लिस्ट के ज़रिए आइए आज हम भी यादें ताज़ा कर लें अजीत जी के सुरीले गीतों का।
१. तारी आँखेनो अफ़ीनी (दीवादांडी - गुजराती), गायक- दिलीप ढोलकिया, गीत- बाल मुकुंद दवे
२. वगदवच्चे तलावाडी ने (दीवादांडी - गुजराती), गायक- दिलीप ढोलकिया, रोहिणी रॊय, गीत- बाल मुकुंद दवे
३. पंछी गाने लगे: भाग-१ (इंद्रलीला, १९५६), गायक- मोहम्मद रफ़ी, गीत- सरस्वती कुमार दीपक
४. पंछी गाने लगे: भाग-२ (इंद्रलीला, १९५६), गायक- मोहम्मद रफ़ी, गीत- सरस्वती कुमार दीपक
५. पर्वत हट जा धरती फट जा (इंद्रलीला, १९५६), गायक- आशा भोसले, गीत- सरस्वती कुमार दीपक
६. सुन लो जिया की बात (इंद्रलीला, १९५६), गायक- आशा भोसले, गीत- सरस्वती कुमार दीपक
७. पूरब दिसा की चंचल बदरिया (चंडीपूजा, १९५७), गायक- सुधा मल्होत्रा, साथी, गीत- कवि प्रदीप
८. अजी ओ जी कहो (चंडीपूजा, १९५७), गायक- शम्शाद बेगम, मोहम्मद रफ़ी, गीत- कवि प्रदीप
९. सुनो सुनाओ तुम एक कहानी (चंडीपूजा, १९५७), गायक व गीत- कवि प्रदीप
१०. कोई लाख करे चतुराई (चंडीपूजा, १९५७), गायक व गीत- कवि प्रदीप
११. रूप तुम्हारा आँखों से पी लूँ (सपेरा, १९६१), गायक- मन्ना डे, गीत - इंदीवर
१२. रात नें गेसू बिखराये (सपेरा, १९६१), गायक- मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर, गीत - इंदीवर
१३. मैं हूँ सपेरे तेरे जादू के देश में (सपेरा, १९६१), गायक- सुमन कल्याणपुर, गीत - इंदीवर
१४. बैरी छेड़ ना ऐसे राग (सपेरा, १९६१), गायक- सुमन कल्याणपुर, गीत - इंदीवर
१५. बोलो बोलो बोलो पिया (सपेरा, १९६१), गायक- सुमन कल्याणपुर, गीत - इंदीवर
१६. ओ री पिया मोरा तड़पे जिया (सपेरा, १९६१), गायक- सुमन कल्याणपुर, गीत- इंदीवर
१७. कुछ तुमनें कहा कुछ हमनें सुना (चैलेंज, १९६४), गायक- आशा भोसले, गीत- प्रेम धवन
१८. मैं भी हूँ मजबूर सजन (चैलेंज, १९६४), गायक- मुकेश, आशा भोसले, गीत- प्रेम धवन
१९. बदले रे रंग बदले ज़माना कहीं (चैलेंज, १९६४), गायक- लता मंगेशकर, साथी, गीत- प्रेम धवन
२०. मैं हो गई रे तेरे लिए बदनाम (चैलेंज, १९६४), गायक- आशा भोसले, गीत- प्रेम धवन
अजीत मर्चैण्ट के बारे में और विस्तारित जानकारी आप पंकज राग लिखित किताब 'धुनों की यात्रा' तथा योगेश जाधव लिखित किताब 'स्वर्णयुग के संगीतकार' से प्राप्त कर सकते हैं। अजीत मर्चैण्ट की प्रतिभा का मूल्यांकन हम इस बात से भी कर सकते हैं कि इस ज़मानें में कई जानेमाने संगीतकार अजीत जी से उनकी धुनें १०,००० रुपय तक में ख़रीदना चाहते थे। और इस राह में राज कपूर जैसे स्तंभ फ़िल्मकार भी पीछे नहीं थे। लेकिन अजीत जी नें कभी अपनी धुनें नहीं बेची। इससे ज़्यादा अफ़सोस की बात क्या हो सकती है संगीत के लिए। आज अजीत जी हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनके स्वरबद्ध तमाम गुजराती गीत और 'इंद्रलीला', 'चंडीपूजा', 'सपेरा', 'लेडी-किलर' और 'चैलेंज' जैसी फ़िल्मों के गानें हमें उनकी याद दिलाते रहेंगे, जिन्हें सुन कर कभी हम ख़ुश होंगे और कभी यह सोच कर मन उदास भी होगा कि अजीत मर्चैण्ट तो वो सबकुछ क्यों नहीं मिल पाया जो उनके समकालीन दूसरे सफल संगीतकारों को मिला? 'हिंद-युग्म आवाज़' परिवार की तरफ़ से स्वर्गीय अजीत मर्चैण्ट को भावभीनी श्रद्धांजली। अब इस प्रस्तुति को समाप्त करने से पहले आइए सुनें फ़िल्म 'चण्डीपूजा' का वही मशहूर गीत "कोई लाख करे चतुराई", और इसी के साथ इस विशेष प्रस्तुति को समाप्त करने की दीजिए इजाज़त, नमस्कार!
गीत - कोई लाख करे चतुराई
आलेख - सुजॉय चट्टर्जी