आज हिंद युग्मी दिव्य प्रकाश दुबे अपना २७ वां जन्मदिन मना रहे हैं, उनकी कविताओं से तो हम सब वाकिफ हैं, पर हम आपको बता दें कि उनका एक संगीत ग्रुप भी है- "जज्बा". जिसका बनाया हुआ ये गीत "आंगन में पंछी" हम चाहते थे कि हमारे वर्तमान सत्र का हिस्सा बनें, पर चूँकि ग्रुप के सभी छात्र अपनी पढ़ाई के अन्तिम दौर में हैं, इस कारण इस गीत को मुक्कमल तौर पर रिकॉर्ड नहीं कर पाये, पर एक preview के तौर पर इस शानदार गीत को आज हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं. साथ में है इस गीत का एक फोटो विडियो भी, जिसमें आप SIBM, पुणे के इन छात्रों की आँखों में बसे एक नए हिंद के सपनों को देख पायेंगें, और महसूस कर पायेंगें उस जज्बे को जिसको देखकर आपको अपनी इस नई पीढ़ी पर अवश्य गर्व होगा.
Presenting to you all "The passion to live it up and the spirit to wear it on our sleeve"
Debut song of team Jazba
अब सवाल ये है कि जज़्बा आखिर है क्या तो जानिए ख़ुद दिव्य से -
जज़्बा में आभार दाधीच, शिखर रंजन, विकास और दिव्य प्रकाश ये चार लोग हैं जो की SIBM,Pune (सिम्ब्योसिस इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिज़नस मैनेजमेंट, पुणे ) में पढ़ रहे हैं| इसको कॉलेज का एक छोटा मोटा band कह लीजिये या एक साथ कुछ नया गढ़ने की ललक जो हम सबको एक साथ लायी. ये सपने देखने की उम्र है और ये गाना उस spirit की ही बात करता है, जो आज का नया भारत अपनी रगों में महसूस करता है, ये गाना उस सपने को जीने को कहता है.... इसीलिए इसका नाम Spirit of SIBM (symbiosis institute of business management) रखा गया | यहाँ पे पढ़ने वाले हर एक शख्स का यही सपना है की एक दिन वो अपने हिस्से की दुनिया में अपने बनाये हुए रंग भरेगा .... ये गाना उन सभी लोगों को समर्पित है जो सपने देखते हैं और उन सपनों को जीने की हिम्मत रखते हैं ....
आशा है ये आप सबको पसंद आयेगा साभार टीम "ज़ज्बा"
Spirit of SIBM (बोल)
आंगन में पंछी आए ख्वाब सजाने को आँखों में सपने लाये ,कुछ कर दिखाने को कुछ सपने पीछे छूटे पलकों पे आंसू बनके कुछ अपने पीछे छूटे पलकों पे आंसू बनके कुछ ख्वाब झांकते हैं आँखों में मोती बनके कुछ वादे अपनों के हैं ,कुछ वादे अपने से कल दुनिया महकेगी फूल जो आज खिलने को हैं ....2 खिलने दो रंगों को फूलों को अपने संग महकेगी दुनिया सारी ,बहकेगी अपने संग ख्वाबों के परवाजो से आसमान झुकाने को है........2 आंगन में पंछी आए ख्वाब सजाने को आँखों में सपने लाये ,कुछ कर दिखाने को क़दमों की आहट अपनी दुनिया हिला देगी यारों की यारी अपनी हर मुश्किल भुला देगी -दिव्य प्रकाश दुबे
Divya Prakash Dubey SIBM Batch of 2007-09 dpd111@gmail.com
एक बार फ़िर "टीम ज़ज्बा" के सभी सदस्यों को हिंद युग्म परिवार की बधाइयाँ और दिव्य को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें.
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लघु कहानी 'वरदान'
'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना 'कौशल' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की एक छोटी किंतु प्रेरणादायी कहानी "वरदान", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: तीन मिनट और बाईस सेकंड।
यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।
मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी माता! मैंने सैकड़ों व्रत रखे, देवताओं की उपासनाएं की, तीर्थयाञाएं की, परन्तु मनोरथ पूरा न हुआ। तब तुम्हारी शरण आयी। अब तुम्हें छोड़कर कहां जाऊं? तुमने सदा अपने भक्तो की इच्छाएं पूरी की है। क्या मैं तुम्हारे दरबार से निराश हो जाऊं? (प्रेमचंद की "वरदान" से एक अंश)
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इश्क हो या दुनिया की चाहत, अक्सर वो नसीब नही होता जिसको पाने की आरजू होती है. जिंदगी चलती रहती है, बहती रहती है. पर कहीं न कहीं दिल के किसी कोने में एक खला बनी रहती है. कहीं कुछ रहता है जो कचोटता है तन्हाईयों में. कुछ कमरे ऐसे भी होते हैं जहनो दिल में जो किसी के जाने के बाद भी हमेशा खाली रहते हैं, उन्हें कोई भर नही पाता. कुछ ऐसे ही जज़्बात लिए है इस शुक्रवार का ये नया गीत. जिसके रचनाकार, संगीतकार और गायक हैं सुदीप यशराज. नए सत्र में उनका ये दूसरा गीत है, तो सुनतें हैं सुदीप की आवाज़ में "उड़ता परिंदा". अपनी राय देकर इस उभरते हुए बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार गायक का मार्गदर्शन अवश्य करें -
गीत को सुनने के लिए नीचे के प्लयेर पर क्लिक करें -
After his first song "beintehaa pyar" Sudeep Yashraj is here again in this new season with a brand new song "udta parinda". Penned and composed by Sudeep himself, this song has a retro feel to it which come across with his unique style of singing. So guys, lets enjoy this brand new song and let us know what you feel about it.
To listen to the song please click on the player below -
गीत के बोल - Lyrics
उड़ता परिंदा, उड़ते उड़ते थक के कहीं सो जाएगा, शायद वो बैचैन हो गई, ख़त को कौन पहुँचायेगा...
हमने खायी है कसम भूलेंगे न हम तेरा नाम आके ही सुनायेंगें, दिल की हर एक दास्तां, देख के तुमको रंग बदलता क्यों है, काला सा बादल, रंगों में ढलता क्यों है, कोई और नही, ये मैं हूँ सनम, छूने को तुझे लिया बूँदों का जनम, बूँदें ही सजायेंगीं मांग तेरी दिलबर, चूम के दे जायेंगीं, नाम मेरा लबों पर,
ये जो हैं, बूँदें ओस की, क्या है इनसे तुम्हारी दोस्ती, जब भी नाम लेता हूँ, तुम्हारी महक आए, अरे चल रे पगले चल, तू क्यों दिल को बहलाए, दिल को बहलाना है, इस तरह या उस तरह, जिंदगी फ़साना है, इस तरह या उस तरह, तेरे मेरे बीच में जो भी आए दीवार, उनको मैं तोड़ दूँगा, अनचाहे आए कोई तूफ़ान हज़ार, उनको मैं मोड़ दूँगा, और दस्तक दे कोई... चारों पहर दरवाजे पे....खोलो... खोलो ...खोलो....खोलो...
दूसरे सत्र के १९ वें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज.
SONG # 19, SEASON # 02, "UDTA PARINDAA" OPENED ON AWAAZ ON 07-11-2008. Music @ Hind Yugm, Where music is a passion
आज से हम आवाज़ पर एक नई शृंखला शुरू कर रहे हैं. विविध भारती से प्रसारित हुए कुछ अनमोल साक्षात्कारों को हम यहाँ टेक्स्ट और ऑडियो फॉर्मेट में पुनर्प्रस्तुत कर रहे हैं. इस काम में हमारी सहायता कर रहे हैं सुजोय चट्टर्जी. पहली कड़ी के रूप में आज हम AIR विविध भारती की रेणू बंसल द्वारा लिया गया पार्श्व गायक भूपेंद्र का ये साक्षात्कार यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं. साथ में हैं भूपेंद्र के गाये कुछ बेहद यादगार गीत जो कार्यक्रम के दौरान सुनवाये गए. कलाकार: भूपेंद्र (पार्श्व गायक) साक्षात्कारकर्ता : रेणु बंसल (विविध भारती AIR)
रेणु बंसल : दोस्तों, पार्श्व गायन की दुनिया में यूँ तो बहुत सी आवाज़ें सुनाई देते हैं, लेकिन एक आवाज़ सबसे अलग सुनाई पड़ती है,यूँ लगता है जैसे बहुत अलसाई सी हो और मीठी खुमारी से भारी हो.जैसे जैसे वो आवाज़ तान लेती है, यूँ लगता है कोई दोशीजा अंगडाई ले रही हो. यह वो आवाज़ है जो कभी हमारा हाथ पकड़ के बचपन की गलियों में,कभी गाँवों की मेडों पर दूर किसी राह पर ले जाती है जहाँ यादों के साथ साथ ज़िंदगी के कितने ही रंगों के खूबसूरत अहसासों से होकर हम गुज़रते हैं.कभी इन्होने खुद ही कहा था...
-------------------------------------------------------- मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे (किनारा) --------------------------------------------------------
रेणु बंसल : याद आया आपको? आज हम रु-ब-रु हो रहे हैं इनसे मिलिए 'प्रोग्राम' के तहत पार्श्व गायक भूपेंद्र से. भूपेंद्र-जी, आप का विविध भारती के 'स्टूडियो' में स्वागत है, नमस्कार!
भूपेंद : नमस्कार, बहुत बहुत शुक्रिया रेणु बंसल : आप दिल्ली के रहनेवाले हैं, और दिल्ली से आप के कदम जब मुंबई की तरफ बढ़े तो वो फिल्मी दुनिया के लिए ही बढ़े थे क्या?
भूपेंद : मैं बॉम्बे तो फिल्मी दुनिया के लिए ही आया था, ज़ाती तौर पर मुझे बॉम्बे आने का कुछ शौक नहीं था. लेकिन मुझे कुछ अच्छे लोगों ने यहाँ आने के लिए कहा था और मुझे उन्होने 'प्रॉमिस' किया था कि 'हम अगर आप के लिए कोई गाना बनाएँगे तो आप आकर गाएँगे क्या?' तो मैने कहा कि 'मैं ज़रूर गाऊँगा'. तो ऐसे ही मदन साहब ने मुझे पूछा था दिल्ली में,मरहूम मदन मोहन साहब ने और चेतन आनंद साहब ने. उनकी फिल्म हक़ीक़त बन रही थी तो शायद उनको कोई नयी आवाज़ चाहिए थी.तो उनके कहने पर मैं 'फिल्म इंडस्ट्री' में गाने के लिए ही आया था.
----------------------------------------------------- होके मजबूर मुझे उसने बुलाया होगा (हक़ीक़त) -----------------------------------------------------
रेणु बंसल : लेकिन हक़ीक़त यह भी है कि फिल्म हक़ीक़त में आप ने एक 'रोल' भी किया था और एक 'रोल' आप ने आखरी खत में भी किया था.
भूपेंद : (हँसते हुए) यह बहुत एक अजीब सी बात है की जिस चीज़ के बारे में नहीं सोचा था वो थी 'एक्टिंग'. कि मैं कभी फिल्मों में 'एक्टिंग' करूँ, यह बात मेरे दिमाग़ में कभी आती नहीं थी. तो मैं तो गाने के लिए आया था, पता नहीं चेतन साहब को मुझमें क्या नज़र आया, मेरा गाना जो मैने गाया था मेरे उपर ही 'पिक्चाराईस' करके और बहुत लोगों से तालियाँ बज़वाई थी कि,और यह भी, बड़ी बात मैं बोलना नहीं चाहता हूँ कि, यह भी 'अनाउन्स' किया था कि 'i am going to make another singing sahgal in the film industry'. तो तब मैं ज़रा कुछ और दिमाग़ का होता था, मैने सोचा की ऐसी बात आदमी बोलते रहते हैं, 'एक्टिंग' मुझे पसंद नहीं थी,actually 'एक्टिंग' मुझे शुरू से ही कुछ लगाव नहीं था. आप ने अगर हक़ीक़त 'पिक्चर' देखी होगी तो आपने देखा होगा की मैं 'पिक्चर' में से 'सडेनली' गायब हो जाता हूँ,क्यूंकि उसके बाद मैं बॉम्बे से दिल्ली भाग आया, मैं उसके बाद बॉम्बे आया ही नहीं. मुझे ज़बरदस्ती 'एक्टिंग' करनी पड़ती अगर मैं आता तो. 'एक्टिंग' मुझे नहीं करनी थी. ऐसे मुझसे आखरी खत में भी गाना गवाकर मुझपर 'पिक्चारईस' कर ली.
------------------------------------- हुज़ूर इस कदर भी न (फ़िल्म मासूम) -------------------------------------
रेणु बंसल : भूपेंद्र-जी, आपने जिन गानो का ज़िक्र किया, वो बेशक इतने सुरीले इतने मीठे हैं कि आज भी तन्हाई में 'होंट' करते हैं. पर्दे के पीछे जब आप चले गये, पार्श्व गायन जब आप ने अपना लिया, तो पार्श्व गायन में ग़ज़लों का दामन आप ने किस तरह थामा?
भूपेंद्र : अच्छा सवाल है क्यूंकि मुझे पहली बार किसी ने पूछा है, जब मैने फिल्मों में 'प्लेबॅक' शुरू किया था तो उस समय मेरे 'फवरेट प्लेबॅक सिंगर्स' थे, मोहमद रफ़ी साहब थे, तलत महमूद साहब थे, किशोर दादा थे, मन्ना डे साहब हैं,इनको दिमाग़ में छोड्के मुझे और कुछ, दूसरा गाना जमता ही नहीं था. तो मेरे दिमाग़ में एक बात थी की यह लोग बहुत ही ज़बरदस्त 'सिंगर्स' हैं, दिमाग़ में क्या यह तो सही बात थी और बहुत ज़बरदस्त लोग थे और हैं भी, तो इनसे अच्छा मैं नहीं गा पाऊंगा यह मैं सोचता रहता था, कि 'This is one thing i will never able to do'. तो गाना भी मेरा चलता रहा, मैं थोड़ा 'गिटार' भी बजाता था उस वक़्त, 'स्पॅनिश गिटार', तो उसमें भी मैने 'फिल्म इंडस्ट्री' में काफ़ी नाम कमाया, तो मैं क्या हुआ कि मैं 'साइड बाइ साइड' में 'गिटार' भी बजाता था, कोई गाने के लिए बुलाता था तो वहाँ भी चला जाता था, तो ऐसा करते करते 'ऑलमोस्ट 15' साल गुज़र गये, तब मेरी मिताली से मुलाक़ात हुई, 'she was already singing on the stage', ग़ज़ल गाती थी, 1983-84 में 'we got married', शादी हो गयी. मैं 'स्टेज' के सख्त खिलाफ था, मुझे 'स्टेज' में गाने से बड़ी तकलीफ़ होती थी. यह उन दिनों की बात है जब मैं ग़ज़लें 'कंपोज़' करता था और अपने लिए या अपने दोस्तों के लिए ही करता था, खुद ही हम घर में बैठ्के गाते थे. लेकिन 83-84 में 'i was convinced', जैसे किशोर दादा मुझसे कहा करते थे की ''स्टेज' पे गाया कर', मेरी ठोडी पकड्कर कहा करते थे जैसे छोटे बच्चे को कहते हैं, ''स्टेज' पे गाया कर, गाएगा नहीं तो 'पॉपुलर' कैसे होगा!' तो उस वक़्त मैं समझता नहीं था उनकी बात. बाद में 'when i started singing ghazal on the stage', क्यूंकि फिल्मी गानो का मेरा 'स्टेज' पे इतना लंबा चौड़ा 'प्रोग्राम' नहीं हो सकता था, इसलिए मैं जो ग़ज़लें गाता था या 'कंपोज़' करता था, या जो भी 'रेकॉर्ड' हुए थे, 'i statred singing those ghazals on the stage and believe me I felt for it'. मुझे इतना अच्छा लगा कि 'इन्स्टेंट' जो एक 'रेकग्निशन' मिलती है 'ऑडियेन्स' से, और इतने दिनों से जो लोग कहते थे कि 'भूपेंद्र को 'स्टेज' पे ले आइए', मिताली से कहते थे, मेरे दोस्तों से कहते थे, तो 83-84-85 में मेरा जो झुकाव था वो फिल्मों से, गीतों से निकलकर ग़ज़लों में और 'स्टेज' की तरफ चला गया, और काफ़ी 'रेकॉर्ड्स' बनाए मैने, जो काफ़ी बिकते हैं, लोग याद करते हैं अभी भी.
रेणु बंसल : भूपेंद्र-जी, गायन की दुनिया में आपकी एक अलग पहचान है,इसके पीछे कौन सी प्रेरणा है?
भूपेंद्र : प्रेरणा तो शायद कुदरत ही है, मैं तो यह मानता हूँ कि भले मैने कम गाने गाए हैं 'फिल्म इंडस्ट्री' में, लेकिन जितने भी गाए हैं वो लोगों को बहुत पसंद हैं और बहुत 'पॉपुलर' हैं, और आज भी जब मैं और मिताली ग़ज़लों के 'प्रोग्राम' में जाते हैं, तो 'believe me' कि आज भी उन गानो की दो दो बार फरमाशें आती हैं. 'रीज़न' शायद यह हो सकता है की मेरी आवाज़ में शायद मेरा अपनापन है, मैने आवाज़ में किसी की 'कॉपी' नहीं की, मेरा अपना 'स्टाइल' है, मुझे कुदरत ने जो आवाज़ बख्शी है, जो 'रिवॉर्ड' मुझे दिया है, मैं उसी को आगे इस्तेमाल कर रहा हूँ, मैं इसमें कोई बनावट नहीं किया. मैं किसी और की आवाज़ को नहीं अपनाया, मेरी अपनी ही 'स्टाइल' है, मेरा अपना ही आवाज़ है, शायद इसलिए मैं थोड़ा सा अलग लगता हूँ.
----------------------------------------- एक अकेला इस शहर में (घरौंदा) -----------------------------------------
रेणु बंसल : भूपेंद्र-जी, कुछ साल पहले बाज़ार में जैसे ग़ज़लों का एक 'बूम' सा आ गया था, अचानक बहुत सारे लोग बहुत सारी चीज़ें गा रहे थे और ग़ज़लें ही ग़ज़लें चारों तरफ से सुनाई देती थी. ग़ज़ल आजकल खामोश क्यूँ है?
भूपेंद्र : हमारे मुल्क में बहुत से 'चेंजस' आ रहे हैं, और वो 'चेंजस' हमारी जो 'कल्चर', जो सभ्यता है, उससे थोड़े से हटके हैं. तो 'रेकॉर्डिंग कंपनीज़' शायद यह सोचते हैं कि गजल्स के 'रेकॉर्ड्स' शायद नहीं बिके, और इसलिए वो ज़्यादा 'प्रमोट' करते हैं यह 'पोप म्यूज़िक अल्बम्स', और यही 'रीज़न' है कि फिल्मी ग़ज़लें या ऐसी फिल्में जिनमें कुछ 'ऑथेंटिक' ग़ज़लें हो सकते हैं वो आपको ज़्यादा नज़र नहीं आ रही है. यही कारण 'फिल्ममेकर्स' की तरफ से भी है, उनकी भी यह ज़िम्मेदारी होनी चाहिए थी की हमारी 'कल्चर' को ज़िंदा रखें. मैं यह सोचता हूँ की 'फिल्म डाइरेक्टर्स', 'एक्टर्स', 'म्यूज़िक डाइरेक्टर्स', 'आर्टिस्ट्स' लोग, इनके उपर भी एक ज़िम्मेदारी होती है, एक 'मोरल ऑब्लिगेशन' इनके उपर होती है, एक 'मोरल' ज़िम्मेदारी होती है, क्यूंकि अगर भगवान ने इनको 'आर्ट' दिया है तो इसको अच्छे 'साइड' में इस्तेमाल करें,उसको 'मिसयूज़' ना करे, 'आर्ट' के नाम पे कुछ ग़लत बात ना करे, जो कि लोगों को बहकाये, जो कि लोगों को ग़लत रास्ते पे डाले, जो कि आज लोग थोड़ा सा नाम और पैसा कमाने के लिए थोडी सी 'कॉंट्रोवर्सी क्रियेट' कर ली, और नाम कमा लिया, पैसे कमा लिए, किताब लिख डाली, तो यह बड़े सस्ते ढंग हैं अपने आप को 'पॉपुलर' करने के, तो अपने ही 'कल्चर' से हम बहुत दूर जा रहे हैं, जिसका मुझे सख्त अफ़सोस है और मैं उम्मीद करता हूँ कि बहुत जल्द लोगों को कुछ समझ आए कि अपनी 'कल्चर' को ज़िंदा रखने की कोशिश की जाए, यह उनके हाथ में यह ज़िम्मा है, बहुत बड़े बड़े 'फिल्म प्रोड्यूसर्स', बहुत बड़े बड़े 'म्यूज़िक डाइरेक्टर्स', 'फिल्म डाइरेक्टर्स', यह उनके हाथ में है के वो हिन्दुस्तान के 'कल्चर' को इससे ज़्यादा ना गिराएँ, और बच्चों को कुछ अच्छी बातें सीखाएँ, क्यूंकि यही बच्चे बड़े होकर क्या करेंगे? जो आज देख रहे हैं यह तो नहीं करेंगे, इससे सौ गुना ज़्यादा ही होगा ना! तो यह 'रीज़न' है कि फिल्मों में ग़ज़लें आजकल कम सुनाई डे रहे हैं, लेकिन सुननेवाले हैं, हम लोग 'प्रोग्राम्स' में जाते हैं तो सुननेवाले वो ही हैं
---------------------------------------------------------- कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता (आहिस्ता आहिस्ता) ----------------------------------------------------------
रेणु बंसल : भूपेंद्र-जी, हर चीज़ का एक दौर आता है, समय गतिशील है,आता है और निकल जाता है. हम उम्मीद करते हैं की संगीत का जो सुनहरा दौर जो देखा है लोगों ने, उम्मीद करते हैं कि वो फिर आये और आनेवाली पीढ़ी उस दौर को दोहराए.
भूपेंद्र : मैं आप के साथ प्रार्थना करूँगा कि जो आप सोच रही हैं काश ऐसा हो, काश कुछ लोगों को इतनी समझ आए कि इस बात पर गौर करे कि हमारी आनेवाली पीढियों को हिन्दुस्तानी ही रहने दे,क्यूंकि जो हम देंगे वोही 'कमिंग जेनरेशन' उसको 'ग्रास्प' करेगी. उनको कुछ अच्छी चीज़ देंगे तो वो कुछ अच्छी चीज़ सीखेंगे,और कुछ खराब चीज़ देंगे तो वो खराब ही सीखेंगे.
रेणु बंसल : भूपेंद्र-जी, आइए यहाँ से एक बार फिर मुड जाते हैं कविताओं और शायरी की तरफ. कविता लिखने का या शायरी पढने का एक तरीका होता है, एक नियम होता है, यानी कविता लिखने या शायरी लिखने में 'मीटर' का ध्यान रखा जाता है. और आप ने कई गीत ऐसे गाए हैं जिनमें 'मीटर' का ध्यान नहीं रहा,यानी ऐसे 'एक्सपेरिमेंट' कह सकते हैं जैसे फिल्म मौसम का एक गीत है, ऐसे 'एक्सपेरिमेंट' को आप क्या कहेंगे?
भूपेंद्र : उसको 'ब्लैक वर्स' कहते हैं, 'ब्लैक वर्स' यानी जिसका 'मीटर' नहीं होता है, जैसे आप मुझसे बात कर रही हैं, जैसे हम आपस में बात करते हैं, 'इट्स कॉल्ड ब्लॅक वर्स', 'आक्च्युयली ब्लैक वर्स' गयी नहीं जाती, उसको गाना मुश्किल होता है, उसको 'मीटर' पे ले जाना मुश्किल होता है, लेकिन फिर भी मैं आप से कहना चाहता हूँ कि मैने इसमें 'एक्सपेरिमेंट' किया था, मैने एक 'रेकॉर्ड' बनाया था, वो जो शायर था उसका नाम था, और उसमें जीतने भी 6 के 6 ग़ज़लें थी वो 'ब्लॅक वर्स' थी. तो मैं इस 'एक्सपेरिमेंट' को बहुत 'चॅलेंज' से लेता हूँ. यह काम ज़रा, 'you got to do something different, you know'. मौसम का जो गाना है, 'बिगिनिंग' का जो शेर है की "दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन", उसके बाद गुलज़ार साहब ने कितनी ही शायरी 'ब्लॅक वर्स टाइप' की लिखी है, 'and i enjoy singing it always'.
---------------------------------------------------------- दिल ढूंढता है फ़िर वही फुर्सत के रात दिन (फ़िल्म-मौसम) ----------------------------------------------------------
रेणु बंसल : भूपेंद्र-जी, हर वो गीत या हर वो ग़ज़ल जो आप की आवाज़ से सज़ा है, आप के बच्चे के समान है, यह पूछना तो गुस्ताखी होगी कि आप को अपना कौन सा बच्चा सबसे ज़्यादा अच्छा लगता है.
भूपेंद्र : यह बात तो सही है कि जो भी 'कॉंपोज़िशन' करता हूँ, वो अपने बच्चे की तरह ही होती है, लेकिन फिर लोग जो हैं आगे वो बच्चों को अलग अलग कर देते हैं, किसी को कुछ पसंद आता है,किसी को कुछ पसंद आता है, तो मैं जितनी भी 'कॉंपोज़िशन' करता हूँ, जो मैं और मिताली बनाते हैं, उनमें कुछ ना कुछ सबके लिए रखते हैं, जो कि महफ़िल में, अभी संजीदा ग़ज़लें तो लोग नहीं सुनते, हालाँकि संजीदा ग़ज़लें गाना और संजीदा 'कॉंपोज़िशन' गाना मेरा 'सब्जेक्ट' है 'you know i love to sing it', लेकिन फिर कुछ 'रोमॅंटिक' ग़ज़लें, कुछ छेड-छाड़ के गीत, या कुछ शराब के गीत यह सब कुछ गाने पड़ते हैं, सो आप मुझे पूछे तो मैं जितनी भी 'कॉमपोज़िशन्स' करता हूँ, 'i love them i like them'.
रेणु बंसल : ज़िंदगी में ऐसी कोई ख्वाहिश जो अभी तक पूरी ना हुई हो?
भूपेंद्र : बस और अच्छा गा सकूँ, और लोगों की खिदमत कर सकूँ, और अच्छा गाता रहूँ!
---------------------------------------------------- बीती न बितायी रैना (फ़िल्म-परिचय) ----------------------------------------------------
दो गीत जो हमें उपलब्ध नही हो पायें "रुत जवां जवां" फ़िल्म आखिरी ख़त का और "जिंदगी है कि बदलता मौसम" फ़िल्म एक नया रिश्ता का जिनके स्थान पर हमने आपको क्रमशा "हुज़ूर इस कदर" और "बीती न बिताई रैना" सुनवाये. मूल गीत यदि किसी श्रोता के पास उपलब्ध हों तो हमें भेजें. हमें इंतज़ार रहेगा.
हिंद युग्म ने जिस उद्देश्य से बाल-उद्यान मंच की शुरूआत की थी, वो था बच्चों को सीधे तौर पर इस हिन्दी इंटरनेटिया आयाम से जोड़ने की। आज हम अगर इस उद्देश्य में काफी हद तक सफल हो पाये हैं तो उसका एक बड़ा श्रेय जाता है हमारे सबसे सक्रिय और समर्पित कार्यकर्ताओं में से एक सुनीता यादव को। महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे द्वारा आदर्श शिक्षक पुरस्कार (२००४) और जॉर्ज फेर्नादिज़ पुरस्कार (२००६) से सम्मानित सुनीता ने और भी बहुत सी उपलब्धियाँ हासिल की है जैसे केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा आयोजित हिन्दी नव लेखक शिविरों में कविता पाठ, आकाशवाणी औरंगाबाद से भी कविताओं का प्रसारण, परिचर्चायों में भागीदारी, गायन में अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत, २००५ में कत्थक नृत्यांगना कु.पार्वती दत्ता द्वारा आयोजित विश्व नृत्य दिवस कार्यक्रम का संचालन आदि। अभी पिछले महीने की आकाशवाणी औरंगाबाद के हिन्दी कार्यक्रम में सुनीता यादव का काव्य-पाठ प्रसारित हुआ, जिसे सुनीता ने बहुत ही अलग ढंग से पेश किया। हमें इस कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग प्राप्त हुई है, आपको भी सुनवाते हैं-
उर्जा से भरपूर सुनीता यादव हैं - हमारी सप्ताह की फीचर्ड आर्टिस्ट, जिनसे हमने की एक खास मुलाकात। पेश है उसी बातचीत के कुछ अंश -
हिंद युग्म - लेखन, गायन, संगीत कला, चित्र कला, तैराकी, आपके तो इतने सारे रचनात्मक रूप हैं, कैसे समय निकाल पाती है सबके लिए ?
सुनीता यादव - जीवन के सभी क्षेत्रों में विचारों, भावनाओं तथा कर्मों की रचना से जुडी आदतों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। छोटे-बड़े सभी कार्य एकाग्रता तथा व्यवस्थित रूप से किए जाने पर ही मनुष्य में निपुणता और सहज भाव से सब कुछ करने की क्षमता आती है। जिस तरह एक साइकिल चलानेवाला साइकिल चलाते-चलाते मित्रों से बातें कर सकता है, अपने चारों तरफ़ की सुरम्य दृश्यावली का आनंद उठा सकता है और बिना भय, उलझन या चिंता के अन्य वाहनों तथा पैदल चलनेवालों को बचाते हुए निकल जाता है :-) रुकने की जरूरत हो तो स्वत: ही ब्रेक लग जाते हैं ..
हिंद युग्म- ओडिसा, हैदराबाद,असम और अब औरंगाबाद इन सब मुक्तलिफ़ भाषा व संस्कारों वाले क्षेत्रों में रहने का अनुभव कैसा रहा और इस यायावरी ने आपकी रचनात्मकता को कितना समृद्ध किया ?
सुनीता यादव - ये मेरा सौभाग्य है कि भारत के विभिन्न राज्यों में रहने का आनंद मिला। इन प्रदेशों की भाषा, सामाजिक जीवन तथा संस्कृति से परिचित होने का सुअवसर मिला। मुसाफिरी व यायावरी ने मुझे बहुभाषी बना दिया। रही बात रचनात्मकता की मैं बहुत ही साधारण हूँ। जी हाँ मेरी उपलब्धियां सामान्य हैं, ये बड़ी बात है कि हिंद युग्म ने मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
हिंद युग्म - एक अध्यापिका होने का कितना फायदा मिलता है ?
सुनीता यादव - बहुत फायदा होता है ...मेरी बुद्धि बहुत सामान्य है. मुझे तो विद्यार्थियों से ही बहुत सारी बातें सीखने को मिलती है :-) मेरी इच्छा है कि जिस प्रकार पदार्थों को ऊर्जा में बदलने के लिए विशेष विधिओं की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मैं उनमें आत्म विश्वास, साहस व बौद्धिक जिज्ञासा भर दूँ ...ताकि वे जीवन में किसी भी क्षण में अपने आप को छोटा न समझें।
हिंद युग्म -हिंद युग्म परिवार में आपके लिए मशहूर है कि आप एक multi dimensional artist हैं, जो कला की हर विधा में निपुण हैं, कैसा रहा युग्म में अब तक का आपका सफर ?
सुनीता यादव - बहुत ही बढिया सफर रहा है। शुरू से विद्यालयीन स्तर पर इन गतिविधिओं से जुडी तो थी पर हिंद युग्म से जुड़ने के बाद यह समझ में आया कि अपने को उन्नत करनेवाले गुणों का विकास सम्भव है :-) प्रथम प्रयास की सफलता ही बाद के प्रयासों के लिए टॉनिक का कार्य करती है, है न ? चाहे जो भी हो हिंद-युग्म से जुड़ने के बाद उसकी रचनात्मक और कला क्षेत्र की सीमा विस्तृत हो जाती है। 'पहला सुर' महज एक प्रयास ही नहीं सारे भारत के संगीत प्रेमियों के लिए एक दिग्दर्शन भी है।
हिंद युग्म - इतना सब कुछ करने के बाद भी आप एक पत्नी हैं, माँ हैं. परिवार का सहयोग किस हद तक मिलता है, क्या कभी आपकी व्यस्तता को लेकर आपके पति या बिटिया ने असहजता जताई है ?
तेरे कितने रूप!
सुनीता यादव - पति और बेटी की तो बात बाद में आती है ...मैं पहले अपनी मम्मी जी की बात कह दूँ ? कोई अपनी बहू का साथ इतना नहीं देती होगी जितनी वे देती हैं। स्कूल की शिक्षिकाएँ हों, राष्ट्रभाषा के सदस्य हों या मेरे मित्र हों सभी के साथ उनका व्यवहार बहुत ही आत्मीय है। मेरे पति के बारे में क्या कहूँ सहृदय को धन्यवाद की आवश्यकता या प्रशंसा के शब्दों का प्रयोजन नहीं होता .. अंधेरे में फूलों का सुगंध भी प्रकाश का कार्य कर सकती है वे तो मुझे...शिला पर स्थिर बैठ कर जलधारा के वेग का सामना करते हुए बहते हुओं को बचाने की प्रेरणा देते हैं ... और मेरी बिटिया ने हिंद-युग्म के सारे गतिविधियों में मेरा साथ दिया...हम दोनों ही थे जब गरमी की छुट्टियों में भिन्न-भिन्न संस्थाओं में जाकर २५० विद्यार्थियों के लिए प्रतियोगिताओं का आयोजन किए थे. मुझे इस बात का गर्व भी है कि वह self-made है...बाल दिवस के अवसर पर आप उसकी प्रतिभा से परिचित होंगे .
हिंद युग्म - आप युग्म पर बहुतों के लिए प्रेरणा हैं, आपकी प्रेरणा कौन है ?
सुनीता यादव - मेरे लिए मेरे प्रेरणा स्रोत रहे मेरे माता-पिता. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के मेरे गुरुजन। वे सारे प्रिय जन जिन्होंने मुझे आगे बढ़ने में दिशा प्रदान की। पिताजी की कर्मठता मुझमें रच-बस जाए तो अपने-आप को धन्य समझूंगी। अपने जीवन में सबसे महीयसी महिला मैं श्रीमती अनीता सिद्धये को मानती हूँ जिनकी प्रेरणा ही मेरे एक मात्र संबल हैं। आतंरिक गुणों का विकास कैसे किया जाय ये कोई उनसे सीखे.
हिंद युग्म - बच्चों के लिए बाल-उद्यान के माध्यम से आपका योगदान अमूल्य रहा है, आने वाले बाल-दिवस के लिए क्या योजनायें हैं?
सुनीता यादव - बाल- दिवस आने तो दीजिए :-)
हिंद युग्म - बहुत से पुरस्कार और सम्मान आपने पाये....पर वो कौन सा सम्मान है जो सुनीता यादव को सबसे अधिक प्रिय है, या जिसे पाने की तमन्ना है ?
सुनीता यादव - महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा ने जिन पुरस्कारों से सम्मानित किया उसके लिए मैं अत्यन्त आभारी हूँ. सभी के कल्याणार्थ साधारण-सा कार्य भी कर सकूँ यही मेरा लक्ष्य है ..बाकी.. सेवा, प्रसिद्धि या प्रशंसा नहीं चाहती .
सुनीता जी आप इसी उर्जा और लगन से काम करती रहें और जीवन के हर मुकाम पर सफलता आपके कदम चूमें, हम सब की यही कामना है.
सुनीता यादव ने हिन्द-युग्म के पहले इंटरनेटीय एल्बम 'पहला सुर' के एक गीत 'तू है दिल के पास' को स्वरबद्ध भी किया था (साथ में गीत के बोल भी सुनीता ही ने लिखे थे और गाया भी इन्होंने ही था)। साथ-साथ यह गीत दुबारा सुन लें-
आज छठ पर्व है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक श्रृद्धालु डूबते सूरज को अर्घ्य दे चुके होंगे और कल भोर में दूसरा अर्घ्य उगते सूरज को दिया जाएगा। छठ का नाम बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे पावन पर्वों में शुमार होता है। विश्व में जहाँ कहीं भी इन प्रदेशों के लोग गए हैं वो अपने साथ इसकी परंपराओं को ले कर गए हैं। छठ जिस धार्मिक उत्साह और श्रृद्धा से मनाया जाता है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जब तीन चौथाई पुलिसवालों के छुट्टी पर रहते हुए भी बिहार जैसे राज्य में इस दौरान आपराधिक गतिविधियाँ सबसे कम हो जाती हैं।
अब छठ की बात हो और छठ के गीतों का जिक्र ना आए ये कैसे हो सकता है। बचपन से मुझे इन गीतों की लय ने खासा प्रभावित किया था। इन गीतों से जुड़ी एक रोचक बात ये है कि ये एक ही लए में गाए जाते हैं और सालों साल जब भी ये दिन आता है मुझे इस लय में छठ के गीतों को गुनगुनाने में बेहद आनंद आता है। यूँ तो शारदा सिन्हा ने छठ के तमाम गीत गा कर काफी प्रसिद्धि प्राप्त की है पर आज जिस छठ गीत की मैं चर्चा कर रहा हूँ उसे मैंने टीवी पर भोजपुरी लोक गीतों की गायिका देवी की आवाज में सुना था और इतने भावनात्मक अंदाज में उन्होंने इस गीत को गाया था कि मेरी आँखें भर आईं थीं।
इससे पहले कि ये गीत मैं आपको सुनाऊँ, इसकी पृष्ठभूमि से अवगत कराना आपको जरूरी होगा। छठ में सूर्य की अराधना के लिए जिन फलों का प्रयोग होता है उनमें केला और नारियल का प्रमुख स्थान है। नारियल और केले की पूरी घौद गुच्छा इस पर्व में प्रयुक्त होते हैं।
इस गीत में एक ऐसे ही तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें नहीं माफ करेंगे। पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को ? अब तो ना देव या सूर्य कोई उसकी सहायता नहीं कर सकते आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है उसने।
ये गीत थोड़ी बहुत फेर बदल के बाद सभी प्रमुख भोजपुरी गायकों द्वारा गाया गया है। पिछले साल मैंने इसे अपने चिट्ठे पर चढ़ाया था। आज छठ के गीत में छुपी भावनाओं को इस गीत के माध्यम से आवाज़ के सुधी श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़राय उ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से सुगा देले जुठियाए
उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरझाय
उ जे सुगनी जे रोए ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहाय अब देवी का गाया हुआ ये गीत तो मुझे नहीं मिल सका पर आप सब के लिए अनुराधा पोडवाल के स्वर में ये गीत प्रस्तुत है
भारत पर्व प्रधान देश है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन दिनों छठ पूजा की धूम है। इस अवसर हम आपके लिए गीत-संगीत से सजा आलेख लेकर आये हैं। छठ गीत की पारम्परिक धुन इतनी मधुर है कि जिसे भोजपुरी बोली समझ में न भी आती हो तो भी गीत सुंदर लगता है। यही कारण है कि इस पारम्परिक धुन का इस्तेमाल सैकड़ों गीतों में हुआ है, जिसपर लिखे बोलों को बहुत से गायक और गायिकाओं ने अपनी आवाज़ दी है। आलेख की शुरूआत पहले हम इसी पारम्परिक धुन पर पद्मश्री शारदा सिंहा द्वारा गाये एक गीत 'ओ दीनानाथ' को सुना कर करना चाहेंगे। पद्मश्री शारदा सिंहा को बिहार की कोकिला भी कहा जाता है। यह मशहूर लोकगायिका विंध्यवासिनी देवी की शिष्या थीं।
सुख-समृद्धि और और सूर्य उपासना का पर्व है 'छठ'
सूर्य नमन
इस वर्ष ४ नवम्बर को मनाई जा रही सूर्य षष्ठी गायत्री साधको के लिए अनुदानों का अक्षय कोष है। गायत्री महामंत्र के अधिष्ठाता भगवन सूर्य प्रत्यक्ष देव हैं। सूर्य देव की आराधना एवं उपासना से शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शान्ति एवं अध्यात्मिक अनुदान-वरदान की उपलब्धि होती है। सूर्योपासना के लिए निर्धारित तिथि को सूर्यषष्ठी के रूप में जाना जाता है। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि सूर्यषष्ठी कहलाती है। सूर्यषष्ठी व्रत मुख्यतः रोग मुक्ति, पुत्र प्राप्ति तथा दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है। श्रद्धा एवं भावना के साथ किया गया छठ या सूर्यषष्ठी व्रत अत्यंत लाभदायक एवं फलदायक होता है। छठ शब्द का प्रादुर्भाव षष्ठी यानी षष्ठ से हुआ है। यह सूर्य उपासना की विशिष्ठ एवं खास तिथि है। सूर्योपासना को सूर्योपस्थान भी कहते हैं, इसमें सूर्य भगवान को भाव भरा अर्घ्य भी चढ़ाया जाता है। इस अर्घ्य दान में वैज्ञानिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का गहन एवं गूढ़ रहस्य भी भरा पड़ा है, जिसका वेद, उपनिषदों एवं पुराणों में विस्तार से उल्लेख किया गया है।
शारदा सिंहा के स्वर में कुछ प्रसिद्ध छठ गीत
1. ओ दीनानाथ 2. उठअऽ सुरुज होइल बिहान 3. उगीहें सुरुज गोसैया हो 4. साम चकेबा खेलब 5. केलवा के पात पर 6. हे छठी मैया 7. हे गंगा मैया
वैदिक साहित्य में सूर्य देव की महिमा का भाव भरा गायन किया गया है। इनमें सर्वसुलभ सूर्य देव के सूक्ष्म एवं दिव्य आध्यात्मिक तुल्य का प्रतिपादन करते हुए सविता को सूर्य की आत्मा कहा गया है। गायत्री महामंत्र का सूर्य से गहरा तादातम्य है, इस तथ्य के पीछे तीन कारण है- १-गायत्री महामंत्र का देवता सविता है। २-सूर्योपासना सार्वभौमिक है। ३-सूर्य की उपासना-आराधना से होने वाला प्रभाव सर्वथा वैज्ञानिक एवं तथ्यपूर्ण है।
आर्ष साहित्य में इस तथ्य को प्रमाणितत करते हुए उल्लेख किया गया है। इस कथानक के अनुसार "गायत्री वरदां देवीं सावत्रीं वेदमातरम्", प्रजापति बोले, हे देवताओ! यह जो अनेक प्रकार के वरदान देने वाली गायत्री है उसे तुम सावित्री अर्थात सूर्य से उद्भाषित होने वाला ज्ञान जानो। इसके अतिरिक्त गोपथ ब्राह्मण ५/३ में तेजो वै गायत्री, के रूप में इसका निरूपण किया गया है। इसके अतिरिक्त ज्योतिर्वे गायत्री छंद साम् ज्योतिर्वे गायत्री, दविद्युतती वैगायत्री गायत्र्यैव भर्ग, तेजसा वेगायत्रीपथमं त्रिरात्रं दाधार पदै द्वितीयं त्र्यक्षरै स्तृतीयम् के रूप में सूर्य और गायत्री के सम्बन्ध को दर्शाया गया है। गायत्री मन्त्र के सवितुः पद में इसी एकात्मकता का संकेत है। गायत्री मन्त्र सविता देव से आपको एकात्म करने की गुह्य तकनीक है। गायत्री का देवता सविता सूर्य संसार के जीवन के ज्ञान-विज्ञान का केन्द्र है। यह अन्य समस्त देव शक्तियों का मुख्य केन्द्र भी है। चारों वेदों में भी जो कुछ है वो सब भी सविता सूर्य शक्ति का विवेचन-विश्लेषण मात्र है। शतपथ ब्राहमण में असौ व आदित्यो देवः सविता, कहकर सूर्य की प्रतिष्ठा की गई है। भविष्योत्तर पुराण में कृष्ण और अर्जुन संवाद में सूर्य को त्रिदेवों के गुणों से विभूषित किया गया है। इस संवाद के अनुसार सूर्य उदयकाल में ब्रह्म, मध्याह्न काल में महेश और संध्या काल में विष्णु के रूप हैं। अन्य शास्त्रों में सूर्य देव को इस तरह अलंकृत किया गया है, सूर्यो वै सर्वेषा देवानामात्मा अर्थात् सूर्य ही समस्त देवों की आत्मा है, सर्वदेवामय रविः अर्थात् सूर्य सर्वदेवमय है। मनुस्मृति का वचन है, सूर्य से वर्षा, वर्षा से अन्न और अन्न से प्रजा (प्राणी) का जन्म होता है। पौराणिक कथानकों के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण काश्यप कहलाये। उमका लोकावतरण महर्षि की पत्नी अदिति के गर्भ से हुआ था अतः उनका एक नाम आदित्य भी लोकविख्यात और प्रसिद्ध हुआ।
एक व्रती
उपनिषदों में आदित्य को ब्रह्मा के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। छान्दोपनिषद् आदित्यो ब्रह्म कहता है तो तैत्तिरीयारण्यक असावादिव्यो ब्रह्म की उपमा देता है। अथर्ववेद की भी यही मान्यता है। इसके मतानुसार आदित्य ही ब्रह्म का साकार स्वरूप है। ऋग्वेद में सर्व्यापक ब्रह्म और सूर्य में समानता का स्पष्ट बोध होता है। यजुर्वेद सूर्य और भगवान में फर्क नहीं करता। कपिला तंत्र में, सूर्य को ब्रह्माण्ड में मूलभूत पंचतत्वों में से वायु का अधिपति घोषित किया गया है। हठ योग के अंतर्गत श्वास (वायु) को प्राण माना गया है। और सूर्य इन प्राणों का मूलाधार है। अतः आदित्यो वै प्राणः कहा गया है। योग साधना में प्रतिपादित मणि पूरक चक्र को सूर्य चक्र भी कहते हैं। हमारा नाभिकेंद्र (सूर्यचक्र) प्राणों का उद्गम स्थल ही नहीं, अपितु अचेतन मन के संस्कारों तथा चेतना का संप्रेषण केन्द्र भी है। सूर्यदेव इस चराचर जगत में प्राणों का प्रबल संचार करते हैं-"प्राणः प्रजानामुदयप्येषंषम सूर्यः"। सूर्य भगवान को मार्तंड भी कहते हैं, क्योंकि ये जगत को अपनी ऊष्मा और प्रकाश से ओत-प्रोत कर जीवन प्रदान करते हैं। सूर्यदेव कल्याण के उद्गम स्थान होने के कारण शम्भु भी कहलाते हैं। भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत का संहार करने के कारण इन्हें त्वष्टा भी कहते हैं। किरण को धारण करने वाले सूर्यदेव अन्शुमान भी जाने जाते हैं। योग शास्त्र में पतंजलि उल्लेख करते हैं कि "भुवनज्ञानं सूर्य संयमात्" अर्थात् सूर्य के ध्यान एवं उपासना से समस्त संसार को ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
बिहार के एक गाँव में पारम्परिक छठ-पर्व का दृश्य
सूर्य कालचक्र के महाप्रणेता हैं। सूर्य से ही दिन-रात्रि, मास, अयन एवं संवत्सर का निर्माण होता है। भारतीय संस्कृति में किसी वार का प्रारम्भ सूर्योदय से ही होता है। भारतीय सुर्योपासना के मूल में आध्यात्मिक लाभ के आलावा शारीरिक स्वास्थ्य एवं भौतिक लाभ का भाव निहित होता है। यह कई प्रकार के रोगों से रक्षा करता है। सूर्य की दिव्य किरणों में कुष्ठ तथ अन्य प्रकार के चर्म रोगों के किटाणुओं को नष्ट करने की अपार क्षमता एवं शक्ति सन्निहित है। इसी करण ऋग्वेद में कहा गया है " आदित्योऽसौजगप्स्याद् देवा विश्वस्य भुवनस्य गौपाः" अर्थात् सूर्य की किरणें सारे चराचर संसार की रक्षा करती हैं। ऋग्वेद में सूर्य की रश्मियों को हृदय रोग तथा पीलिया की चिकित्सा में लाभकारी बताया गया है। कुष्ठ रोग का शमन भी सूर्यदेव की कृपा से हो जाता है। श्री कृष्ण एवं जाबवंती के पुत्र सांब सूर्यदेव की उपासना से ही रोगमुक्त हुए थे। कृष्ण यजुर्वेदीय चाक्षुषोपनिषद् में सभी प्रकार के नेत्र रोगों से मुक्ति का उपाय सूर्य को बताया गया है। तंत्र शास्त्र की मान्यता है कि नित्य सूर्य नमस्कार करने से सात पीढ़ियों से चली आ रही महा दरिद्रता दूर हो जाती है। सूर्य नमस्कार स्वयं में सूर्य आराधना भी है और स्वास्थ्य का व्यायाम भी। इसमें अनेक प्रकार की बीमारियों एवं विकृतियों का शमन होता है। इन्हीं कारणों से सूर्य को आरोग्य का देवता कहा गया है और उसकी किरणों को पवित्र, तेजस्वी एवं अक्षत माना गया है। सूर्य रश्मियाँ नदी की निर्मल धारा के सामान पावन हैं, जो अपने सानिध्य में आने वाले हर एक व्यक्ति को तेजस्विता, प्रखरता एवं पवित्रता से भर देती हैं। सूर्योपासना आरोग्य की रक्षा करने के आलावा अंतःकरण की चट्टानी मलिनता एवं कषाय-कलभषों को धोकर रख देती हैं। आरोग्य भास्करादिच्छेत् से स्वतः ही विदित होता है की सूर्य आरोग्य प्रदान करने वाले देवता है। यह आरोग्य केवल शरीर के धरातल तक ही सीमित नहीं है, वरन् मानसिक एवं आत्मिक स्तर पर प्रभाव छोड़ने में समर्थ एवं सक्षम है। अतः सूर्योपासना सभी रूपों में अनादिकाल से भारतवर्ष में ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व के विभिन्न भागों में श्रद्धापूर्वक सूर्य की भक्ति की जाती रही है।
अनुराधा पौडवाल के स्वर में छठ गीत
यद्यपि कालचक्र के दुष्प्रभाव से वर्त्तमान समय में सूर्योपासना कि परम्परा का अत्यन्त ह्रास हो गया है, परन्तु फिर भी धर्म प्रधान भारतवर्ष में सनातन धर्मोजनता आज भी किसी न किसी रूप में सूर्य को देवता मानकर उनकी पूजा-आराधना करती है। इसी क्रम में सूर्यषष्ठी व्रत को मनाया जाता है। बिहार एवं झारखण्ड की जनता इस पावन तिथि को छठ पूजा के रूप में अत्यन्त श्रद्धा, उत्साह एवं उमंग के साथ मनाती है। वाराणसी एवं पूर्वांचल में इसे डालछठ कहा जाता है। कार्तिक शुल्क चतुर्थी के दिन नियम-स्नानादि से निवृत हो कर फलाहार किया जाता है। पंचमी में दिन भर उपवास करके किसी नदी या सरोवर में स्नान करके अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके पश्चात् अस्वाद भोजन किया जाता है। गायत्री महामंत्र का भाव भरा उच्चारण कर विविध पूजोपहार वस्तुओं से सूर्य अर्घ्यदान दिया जाता है। तथा मनोकामना की जाती है। छठ, पुत्र प्राप्ति की कामना को पूर्ति करता है। अतः इसका सम्बन्ध षष्ठी माता से जोड़ दिया गया है। षष्ठी देवी दुर्गा की ही प्रतिरूप हैं। इसीलिए छठ व्रत के अवसर पर सूर्यदेव और षष्ठी माता के प्रति समान भक्ति भावना के दर्शन होते हैं। इस व्रत को सर्वप्रथम यवन मुनि की पुत्नी सुकन्या ने अपने जराजीर्ण अधिपति के आरोग्य के निमित्त किया था। व्रत के सफल अनुष्ठान के सुप्रभाव से ऋषि को नेत्र ज्योति प्राप्त हुई और वे जराजीर्ण वृद्ध से युवा हो गये। ऐसी मान्यता है कि आज भी गायत्री महामंत्र का जप करते हुए नियमपूर्वक १२ वर्षों तक जो भी यह व्रत करता है, उसकी इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है। सूर्य षष्ठी में गायत्री मन्त्र के जप एवं सुर्यध्यान करने से सहज ही आतंरिक चेतना परिष्कृत होती है, साथ ही पवित्रता, प्रखरता में अभिवृद्धि होती है।
लेखक- सिद्धार्थ शंकर (साभार 'साधना-पथः नवम्बर २००८ अंक) प्रस्तुति- शैलेश भारतवासी प्रस्तुति- दीपाली मिश्रा और अमिताभ मीत कविता पौडवाल के स्वर में छठ गीत
पटना के हाट पर नरियर कीनबे जरूर छठी मैया हसिया पूरन हो रखी सभी छठ के बरात मनावो अगना में पोखरी खानिब
छठ का एक एल्बम बहुत मशहूर हुआ जिसे भोजपुरी लोकगीत गायकों में सबसे अधिक लोकप्रिय गायक-संगीतकार भरत शर्मा 'व्यास' ने अनुराधा पौडवाल से साथ आवाज़ दी थी और संगीत भी दिया था। एल्बम- आहो दीनानाथ स्वर- अनुराधा पौडवाल और भरत शर्मा 'व्यास' बोल- आलोक शिवपुरी संगीत- भरत शर्मा 'व्यास'
पटना के घाट पर देलू अरगवा केकरा कार्तिक में ऐहू परदेसी बलम घर फलवा से भरल दौरिया उसपे पियरी नैहरे में करबो परब हम साँझ भईल सूरज डुबिहे चल आहो दीनानाथ दरसन दीजिए बाझीन पर बैठ बाघिन बन छठ चैती के छठवा तो हल्का बुझाला रोजे-रोजे उगेला फजिराही आधी
एक और एल्बम के गीत हम आपके लिए लेकर आये हैं जिसे भोजपुरी और अंगिका लोकगीतों के मशहूर गायक सुनील छैला बिहारी, अपने पहले ही एल्बम 'कभी राम बनके, कभी श्याम बनके' से पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध हुईं गायिका तृप्ति शाक्या तथा ९० के दशक में हिन्दी पार्श्व गीतों में अपना विशेष स्थान बनाने वाली गायिका अनुराधा पौडवाल ने आवाज़ दी है। एल्बम- उगऽहो सूरज देब हमार स्वर- सुनील छैला बिहारी, अनुराधा पौडवाल, तृप्ति शाक्या बोल- राम मौसम, बिनय बिहारी, सुनील छैला बिहारी तथा कुछ पारम्परिक गीत संगीत- सुनील छैला बिहारी
छठी मैया आही जइयो मोर अंगना छठी मैया के महिमा छे भारी छठी माई के दौरा रखे रे बबुआ चारी ओ घाट के तलैया जलवा उमरत कखनो रवि बन के कखनो आदित दलिइवा कबूल करअ गगन बिहारी भूऊल माफ करियअ हे छठी मैया कहवाँ तोहार नहिरा गे धोबिन कहवाँ कहवाँ-कहवाँ के सुरजधाम छै नामी दोहरी कल सुपने सविता अरग देबे काहे लगे सेवें तुलसी-खरना गीत
डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम के आशीर्वाद का साथ "बीट ऑफ इंडियन यूथ" आरंभ कर रहा है अपना महा अभियान. इस महत्वकांक्षी अल्बम के माध्यम से सपना है एक नया इतिहास रचने का. थीम सोंग लॉन्च हो चुका है, सुनिए और अपना स्नेह और सहयोग देकर इस झुझारू युवा टीम की हौसला अफजाई कीजिये
इन्टरनेट पर वैश्विक कलाकारों को जोड़ कर नए संगीत को रचने की परंपरा यहाँ आवाज़ पर प्रारंभ हुई थी, करीब ५ दर्जन गीतों को विश्व पटल पर लॉन्च करने के बाद अब युग्म के चार वरिष्ठ कलाकारों ऋषि एस, कुहू गुप्ता, विश्व दीपक और सजीव सारथी ने मिलकर खोला है एक नया संगीत लेबल- _"सोनोरे यूनिसन म्यूजिक", जिसके माध्यम से नए संगीत को विभिन्न आयामों के माध्यम से बाजार में उतारा जायेगा. लेबल के आधिकारिक पृष्ठ पर जाने के लिए नीचे दिए गए लोगो पर क्लिक कीजिए.
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संगीत का तीसरा सत्र
हिन्द-युग्म पूरी दुनिया में पहला ऐसा प्रयास है जिसने संगीतबद्ध गीत-निर्माण को योजनाबद्ध तरीके से इंटरनेट के माध्यम से अंजाम दिया। अक्टूबर 2007 में शुरू हुआ यह सिलसिला लगातार चल रहा है। इस प्रक्रिया में हिन्द-युग्म ने सैकड़ों नवप्रतिभाओं को मौका दिया। 2 अप्रैल 2010 से आवाज़ संगीत का तीसरा सीजन शुरू कर रहा है। अब हर शुक्रवार मज़ा लीजिए, एक नये गीत का॰॰॰॰
ओल्ड इज़ गोल्ड
यह आवाज़ का दैनिक स्तम्भ है, जिसके माध्यम से हम पुरानी सुनहरे गीतों की यादें ताज़ी करते हैं। प्रतिदिन शाम 6:30 बजे हमारे होस्ट सुजॉय चटर्जी लेकर आते हैं एक गीत और उससे जुड़ी बातें। इसमें हम श्रोताओं से पहेलियाँ भी पूछते हैं और 25 सही जवाब देने वाले को बनाते हैं 'अतिथि होस्ट'।
महफिल-ए-ग़ज़ल
ग़ज़लों, नग्मों, कव्वालियों और गैर फ़िल्मी गीतों का एक ऐसा विशाल खजाना है जो फ़िल्मी गीतों की चमक दमक में कहीं दबा-दबा सा ही रहता है। "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" शृंखला एक कोशिश है इसी छुपे खजाने से कुछ मोती चुन कर आपकी नज़र करने की। हम हाज़िर होते हैं हर बुधवार एक अनमोल रचना के साथ, और इस महफिल में अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में आपसे मुखातिब होते हैं कवि गीतकार और शायर विश्व दीपक "तन्हा"। साथ ही हिस्सा लीजिये एक अनोखे खेल में और आप भी बन सकते हैं -"शान-ए-महफिल". हम उम्मीद करते हैं कि "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" का ये आयोजन आपको अवश्य भायेगा...
ताजा सुर ताल
अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं। "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है। आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रूरत है उन्हें ज़रा खंगालने की। हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं।
सुनो कहानी
इस साप्ताहिक स्तम्भ के अंतर्गत हम कोशिश कर रहे हैं हिन्दी की कालजयी कहानियों को आवाज़ देने की है। इस स्तम्भ के संचालक अनुराग शर्मा वरिष्ठ कथावाचक हैं। इन्होंने प्रेमचंद, मंटो, भीष्म साहनी आदि साहित्यकारों की कई कहानियों को तो अपनी आवाज़ दी है। इनका साथ देने वालों में शन्नो अग्रवाल, पारुल, नीलम मिश्रा, अमिताभ मीत का नाम प्रमुख है। हर शनिवार को हम एक कहानी का पॉडकास्ट प्रसारित करते हैं।
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ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रविवार से गुरूवार शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी होती है उस गीत से जुडी कुछ खास बातों की. यहाँ आपके होस्ट होते हैं आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों का लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
"डंडे के ज़ोर पर उसके पिता उसे अपने साथ तीर्थ यात्रा पर भी ले जाते थे और झाड़ू के ज़ोर पर माँ की छठ पूजा की तैयारियाँ भी वही करता था।" (अनुराग शर्मा की "बी. एल. नास्तिक" से एक अंश) सुनिए यहाँ
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