हमने पॉडकास्ट ब्लॉग 'आवाज़' की शुरूआत सूरज प्रकाश की कहानी 'एक जीवन समांतर' से की थी। आज कहानी सुनाने के क्रम में हम लाये हैं राजीव रंजन प्रसाद के स्वर में इन्हीं की कहानी 'ज़िंदा हो गया है'। यह कहानी कहानी-कलश पर २६ सितम्बर २००७ को प्रकाशित है।
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संस्कार गीतों पर एक विशेष शृंखला
मन जाने - विवधताओं से भरी अल्बम








लता मंगेशकर जब मिली आवाज़ के श्रोताओं से
द रिटर्न ऑफ आलम आरा प्रोजेक्ट एक कोशिश है, हिंदुस्तान की पहली बोलती फिल्म के गीत संगीत को फिर से रिवाईव करने की, सहयोग दें, और हमारी इस नेक कोशिश का हिस्सा बनें 

सुप्रसिद्ध गायक, गीतकार और संगीतकार रविन्द्र जैन यानी इंडस्ट्री के दाद्दु पर एक विशेष शृंखला जिसके माध्यम हम सलाम कर रहे हैं फिल्म संगीत जगत में, इस अदभुत कलाकार के सुर्रिले योगदान को
लोरियों की मधुरता स्त्री स्वर के माम्तत्व से मिलकर और भी दिव्य हो जाती है. पर फिल्मों में यदा कदा ऐसी परिस्थियों भी आई है जब पुरुष स्वरों ने लोरियों को अपनी सहजता प्रदान की है. पुरुष स्वरों की दस चुनी हुई लोरियाँ लेकर हम उपस्थित हो रहे हैं ओल्ड इस गोल्ड में इन दिनों 

शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम।



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श्रोता का कहना है :
aराजीव जी आपकी कहानी पढने का लाभ तो मैं नहीं पा पाया पर आज आपकी ही आवाज मी सुनकर ऐसा लगा मानो कहानी का हर एक पत्र मन मष्तिस्क में जिंदा हो गया है.
बहुत बहुत साधुवाद
साथ ही साथ पोडकास्ट से जुड़े सभी मित्रों को मेरे तरफ़ से धन्यवाद
उनके प्रयासों के कारण ही आज यह सब सम्भव हो पाया है
शुभकामनाओं समेत
आलोक सिंह "साहिल"
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