Saturday, August 20, 2011

फिर मत कहना कि सिस्टम ख़राब है...



ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 55

ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नम्स्कार! दोस्तों, अभी इसी हफ़्ते हमनें अपने देश की आज़ादी का ६५-वाँ वर्षगांठ मनाया। हम अक्सर इस बात पर ख़ुश होते हैं कि विदेशी ताक़तों नें जब भी हम पर आक्रमण किया या जब भी हमें ग़ुलाम बनाने की कोशिशें की, तो हर बार हमनें अपने आप को आज़ाद किया, दुश्मनों की धज्जियाँ उड़ाईं। पर 'स्वाधीनता दिवस' की ख़ुशियाँ मनाते हुए या कारगिल विजय पर नाज़ करते हुए हम यह अक्सर भूल जाते हैं कि हम अब भी ग़ुलाम हैं हमारी सरज़मीन पर ही पनपने वाले भष्टाचार के। क्या आप यह जानते हैं कि अंग्रेज़ों नें २०० साल में इस देश को इतना नहीं लूटा जितना इस देश के भ्रष्टाचारियों ने इन ६४ सालों में लूट लिया। इन दिनों देश के हर शहर में, हर गाँव में, हर कस्बे में एक नई क्रान्ति की लहर आई है जिसकी चर्चा हर ज़बान पर है। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' के ज़रिए हम आप तक पहुँचाना चाहते हैं एक अपील।

"अगर हम अपनी प्रतिष्ठा के लिए संघर्ष करने को तैयार नहीं है तो हम आज़ादी के हकदार भी नहीं है। देश सेवा एक क़ुर्बानी नहीं, एक सौभाग्य है। क्या हम आने वाले ६० साल वैसे ही गुज़ारना चाहते हैं कि जैसे पिछले ६० साल गुज़ारे हैं? हमारे युवा इस देश की १०० प्रतिशत जनसंख्या तो नहीं लेकिन १०० प्रतिशत इस देश का भविष्य ज़रूर बनाते हैं। समय की पुकार है, भारत की मांग है और अच्छे क़ानून द्वारा अच्छा शासन। देश सिर्फ़ नारे लगाने से महान नहीं बनता, देश महान तब बनता है जब उसके नागरिक महान काम करते हैं। हमारा विश्वास है कि भारत में ९९ प्रतिशत लोग सच्चे और ईमानदार हैं, वह भष्टाचार में भागीदार नहीं है लेकिन समुद्र में बूंद के समान इन १ प्रतिशत भष्टाचारियों ने ९९ फ़ीसदी भारत को बंधक बना लिया है। गांधीजी ने मद्रास में कहा था कि "सहयोग देना हर नागरिक का तब तक फ़र्ज़ बनता है जब तक सरकार उनके सम्मान की रक्षा करती है और असहयोग का भी उतना ही फ़र्ज़ बनता है जब सरकार उनके सम्मान की हिफ़ाज़त के बजाय उसे लूटने लगती है"। संघर्ष औतर तक़लीफ़ के लिए तैयार रहें। आज़ादी कभी मिलती नहीं है, बल्कि हमेशा हासिल करनी पड़ती है। अपने पैरों पर खड़े होने की कीमत चुकानी पड़ती है, और अपने घुटनों को टेक कर भी जीने की कीमत चुकानी पड़ती है। फ़ैसला आपका, आख़िर देश है आपका। याद रहे, अभी नहीं तो कभी नहीं। फिर मत कहना कि सिस्टम खराब है!" (अधिक जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर पधारें - www.indiaagainstcorruption.org)

दोस्तों, वक्त आ गया है अब जागने का। बहुत हो चुका। अगर एक ७४ वर्ष का वृद्ध इस महायुद्ध को लड़ने की हिम्मत रख सकता है, तो हम कम से कम उन्हें अपना सहयोग देकर इस महान मिशन को कामयाब करने में थोड़ा सा योगदान तो दे ही सकते हैं! आख़िर 280 लाख करोड़ का भी तो सवाल है! जी हाँ, "भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा", ये कहना है 'स्विस बैंक' के डाइरेक्टर का। स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपये उनके स्विस बैंक में जमा है। ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है। या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है। या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है। ऐसा भी कह सकते है कि 500 से ज्यादा सामाजिक प्रोजेक्ट पूर्ण किये जा सकते है। ये रकम इतनी ज्यादा है कि अगर हर भारतीय को 2000 रुपये हर महीने भी दिए जाये तो 60 साल तक ख़त्म ना हो। यानी भारत को किसी 'वर्ल्ड बैंक' से लोन लेने कि कोई जरुरत नहीं है। जरा सोचिये, हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और नोकरशाहों ने कैसे देश को लूटा है और ये लूट का सिलसिला अभी 2011 तक जारी है। इस सिलसिले को अब रोकना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है। अंग्रेजो ने हमारे भारत पर करीब 200 सालो तक राज करके करीब 1 लाख करोड़ रुपये लूटा। मगर आजादी के केवल 64 सालों में हमारे भ्रष्टाचार ने 280 लाख करोड़ लूटा है। एक तरफ 200 साल में 1 लाख करोड़ है और दूसरी तरफ केवल 64 सालों में 280 लाख करोड़ है। यानि हर साल लगभग 4.37 लाख करोड़, या हर महीने करीब 36 हजार करोड़ भारतीय मुद्रा 'स्विस बैंक' में इन भ्रष्ट लोगों द्वारा जमा करवाई गई है। भारत को किसी वर्ल्ड बैंक के लोन की कोई दरकार नहीं है। सोचो की कितना पैसा हमारे भ्रष्ट राजनेताओं और उच्च अधिकारीयों ने ब्लाक करके रखा हुआ है। हमे भ्रष्ट राजनेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ जाने का पूर्ण अधिकार है। हाल ही में हुए घोटालों का आप सभी को पता ही है - CWG घोटाला, 2G स्पेक्ट्रुम घोटाला, आदर्श होउसिंग घोटाला, और न जाने कौन कौन से घोटाले अभी उजागर होने वाले हैं। दोस्तों, आइए, हम सब मिलकर इस महामुहीम में ऐसे भाग लें कि यह एक आन्दोलन बन जाये, एक ऐसा आन्दोलन जो 'स्वाधीनता संग्राम' के बाद पहली बार हुआ हो। और सच भी तो है, यह हमारी दूसरी आज़ादी की लड़ाई ही तो है!

आइए आज चलते चलते सुनें फ़िल्म 'भ्रष्टाचार' का शीर्षक गीत मोहम्मद अज़ीज़ और साथियों की आवाज़ों में।

गीत - ये जनता की है ललकार, बन्द करो ये भ्रष्टाचार (भ्रष्टाचार)



इसी के साथ आज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' यहीं समाप्त होता है, फिर मुलाक़ात होगी, अब अपने दोस्त सुजॉय चटर्जी को अनुमति दीजिए, नमस्कार!

और अब एक विशेष सूचना:

२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

सुनो कहानी - अपील का जादू - हरिशंकर परसाई



'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने संज्ञा टंडन की आवाज़ में पद्म भूषण भीष्म साहनी की कहानी "चील" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य "अपील का जादू", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने।

कहानी का कुल प्रसारण समय 9 मिनट 48 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।




मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। ।
~ हरिशंकर परसाई (1922-1995)

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी

प्रधानमंत्री ने चिढकर कहा, "मैं गोबर में से नैतिक शक्ति पैदा कर रहा हूँ।"
(हरिशंकर परसाई की "अपील का जादू" से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
VBR MP3

#141th Story, Appeal ka Jadoo: Harishankar Parsai/Hindi Audio Book/2011/22. Voice: Anurag Sharma

Thursday, August 18, 2011

झंकारो झंकारो झंकारो अग्निवीणा....कवि प्रदीप के शब्दों से निकलती आग



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 725/2011/165

भारत नें हमेशा अमन और सदभाव का राह चुनी है। हमनें कभी किसी को नहीं ललकारा। हज़ारों सालों का हमारा इतिहास गवाह है कि हमनें किसी पर पहले वार नहीं किया। जंग लड़ना हमारी फ़ितरत नहीं। ख़ून बहाना हमारा धर्म नहीं। लेकिन जब दुश्मनों नें हमारी इस धरती को अपवित्र करने की कोशिश की है, हम पर ज़ुल्म करने की कोशिश की है, तो हमने भी अपनी मर्यादा और सम्मान की रक्षा की है। न चाहते हुए भी बंसी के बदले बंदूक थामे हैं हम प्रेम-पुजारियों नें। अंग्रेज़ी सरकार नें 200 वर्ष तक इस देश पर राज किया। 1857 से ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ आवाज़ उठनी शुरु हुई थी, और 90 वर्ष की कड़ी तपस्या और असंख्य बलिदानों के बाद 1947 में ब्रिटिश राज से इस देश को मुक्ति मिली।

भारत के स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानियों में एक महत्वपूर्ण नाम है नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का। उनके वीरता की कहानियाँ हम जानते हैं, और उन पर एकाधिक फ़िल्में भी बन चुकी हैं। ऐसी ही एक फ़िल्म आई थी 'नेताजी सुभाषचन्द्र बोस' और इस फ़िल्म में एक जोश पैदा कर देने वाला गीत था हेमन्त कुमार, सबिता चौधरी और साथियों की आवाज़ों में। सलिल चौधरी के संगीत में इसके गीतकार थे कवि प्रदीप। कवि प्रदीप की कलम से निकले कई ओजस्वी गीत। उन्होने न केवल गहरे अर्थपूर्ण गीत लिखे,बल्कि अनेक गीतों को दक्षता के साथ गायन भी किया। फ़िल्म 'जागृति' का "आओ बच्चों तुम्हें दिखायें" हमेशा इस देश की महान संस्कृति और इस देश के वीरों की शौर्यगाथा सुनाता रहेगा। 'नेताजी सुभाषचन्द्र बोस' फ़िल्म के जिस गीत को आज की कड़ी के लिए हमनें चुना है, उसके बोल हैं "झंकारो झंकारो झननन झंकारो, झंकारो अग्निवीणा,आज़ाद होके बंधुओं जियो, ये जीना क्या जीना"।

जहाँ भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वाधीनता को अध्याय दर अध्याय के रूप में चाहते थे, जबकि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार की कोई शर्त मंज़ूर नहीं था। फिर भगत सिंह का शहीद होना और कांग्रेस नेताओं का भगत सिंह की ज़िंदगी को न बचा सकने की व्यर्थता नें नेताजी को इतना क्रोधित कर दिया कि उन्होंने 'गांधी-इरविन पैक्ट' के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ दिया। नेताजी को गिरफ़्तार कर लिया गया और भारत से भी निकाला गया। इस देश-निकाले को अमान्य करते हुए नेताजी देश वापस आये और फिर से गिरफ़्तार हुए। नेताजी दो बार 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के प्रेसिडेण्ट भी चुने गए,पर महात्मा गांधी के विचारधारा से एकमत न हो पाने की वजह से उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। कांग्रेस से मिलकर उन्होंने कांग्रेस को सीधी चुनौती दे दी। उनका यह मानना था कि सत्याग्रह से कभी स्वतंत्रता हासिल नहीं हो सकती। नेताजी नें अपनी पार्टी 'ऑल इण्डिया फ़ॉरवार्ड ब्लॉक' का गठन किया और ब्रिटिश राज से सीधा टक्कर ले लिया। ब्रिटिश सरकार को दाँतों तले चने चबवाया और 11 बार गिरफ़्तार हुए। कई बार अंग्रेज़ों की आँखों में धूल झोंक कर वो फ़रार भी हो गए थे। देशवासियों के लिए उनका एक ही पैग़ाम और निवेदन था - "तुम मुझे ख़ून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा"। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वो सोवियत यूनियन, नाज़ी जर्मनी और इम्पीरियल जापान का दौरा किया और भारत की आज़ादी के लिए उनसे गठबंधन की गुज़ारिश की। जापान की मदद से उन्होंने ''आज़ाद हिंद फ़ौज' का गठन किया जिसके जंगबाज़ बनें भारतीय युद्ध-बंदी, ब्रिटिश मलय और सिंगापुर के प्लैण्टेशन वर्कर्स। बर्मा से होते हुए अपनी फ़ौज को लेकर उन्होने इम्फाल के रास्ते भारत में प्रवेश किया पर असफल हुए। कहा जाता है कि ताइवान में 18 अगस्त 1945 में एक प्लेन-क्रैश में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन इसमें भी घोर संशय है। आइए आज 18 अगस्त को हम नेताजी को श्रद्धा सुमन अर्पित करें और सुनें उन्हीं पर बनी फ़िल्म का यह जोशीला गीत।

फिल्म – नेताजी सुभाषचन्द्र बोस : 'झंकारो झंकारो झननन अग्निवीणा....' गीतकार – प्रदीप


और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - एक और अमर स्वतंत्रता सेनानी के जीवन पर है ये फिल्म भी.
सूत्र २ - गीतकार और संगीतकार एक ही व्यक्ति थे.
सूत्र ३ - गीत के एक अंतरे में देश के विभिन्न प्रान्तों का जिक्र है.

अब बताएं -
किस दिन इस अमर शहीद को अंग्रेज सरकार ने फांसी की सजा सुनाई थी (मुक़दमे की अंतिम तारीख़ आपको बतानी है)- ३ अंक
किस क्रांतिकारी की जीवनी से प्रेरित था ये अमर शहीद - ३ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
लगता है कल की पहेली काफी मुश्किल रही सबके लिए, फिर भी अमित और क्षिति जी को बधाई सही जवाब के लिए.

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, August 17, 2011

कर चले हम फ़िदा...कैफी आज़मी के इन बोलों ने चीर कर रख दिया था हर हिन्दुस्तानी कलेजा



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 724/2011/164

‘वतन के तराने’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में आपका स्वागत है। इस श्रृंखला की पिछली दो कड़ियों मे आप नारी शक्ति की प्रतीक, झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के त्याग और बलिदान की अमर गाथा के कुछ चुने हुए प्रसंगों के भागीदार हुए हैं। आज के अंक में भी इस गाथा को जारी रखते हुए आगे के कुछ प्रसंग आपके लिए प्रस्तुत करेंगे। इसके साथ ही बलिदानियों द्वारा अपने से आगे की पीढ़ी के लिए दिये गए सन्देश से परिपूर्ण गीत भी आपको सुनवाएँगे। पिछले अंक में आपने पढ़ा कि झाँसी के उत्तराधिकारी की असमय मृत्यु से महाराज गंगाधर राव अवसादग्रस्त होकर राजकीय कार्यों से विमुख हो गए। ऐसी परिस्थिति में लक्ष्मीबाई ने समस्त शासन-सूत्र अपने हाथों में ले लिये।

कुछ समय बाद शोकग्रस्त गंगाधर राव का भी निधन हो गया। यह 1853 का वर्ष था। पूरे देश में अंग्रेजों के अत्याचार से जनता त्रस्त थी। उस समय झाँसी में अंग्रेज़ अधिकारी मेजर मालकम तैनात था। उसने दामोदर राव को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया। धीरे-धीरे संघर्ष की स्थिति बनती जा रही थी। लक्ष्मीबाई तो पहले से ही तैयार थीं। उधर तात्याटोपे राष्ट्रभक्त शक्तियों को एकजुट कर अंग्रेजों के विरुद्ध महासंग्राम की तैयारी के लिए गुप्त रूप से भ्रमण कर रहे थे। अचानक एक दिन तात्या झाँसी आकर लक्ष्मीबाई से भी मिले। अन्ततः 1857 भी आ पहुँचा। देश के अलग-अलग हिस्सों में अन्दर ही अन्दर चिंगारी ज्वाला बनने के लिए धधक रही थी, किन्तु अंग्रेज़ इससे अनभिज्ञ थे। क्रान्ति की ज्वाला धधकने का दिन 31 मई, 1857 का दिन निश्चित था, किन्तु 29 मार्च को ही बंगाल में बैरकपुर छावनी में मंगल पाण्डेय ने समय से पहले क्रान्ति का शंखनाद कर दिया। लक्ष्मीबाई की चौकस दृष्टि क्रान्ति पर जमी हुई थी। अचानक एक दिन रानी को सूचना मिली कि झाँसी में तैनात अंगेजों की 12वीं पैदल सेना और घुड़सवार सेना की टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया है।

सेनाधिकारी डनलप और कुछ अन्य अंग्रेज़ परिवार झाँसी किले में छिप गए और क्रान्तिकारियों ने किले को घेर लिया।लक्ष्मीबाई ने किले में कैद अंग्रेज़ महिलाओं और बच्चों को क्रान्तिकारियों से मुक्त कराने का प्रयास किया किन्तु डनलप की जिद के सामने ऐसा न हो सका। अन्ततः क्रान्तिकारियों ने हमला कर किले पर कब्जा कर लिया और किला रानी को सौंप दिया।

भारतीय सैनिको द्वारा अँग्रेजी सेना से विद्रोह कर देने से गोरों के डगमगाए कदम धीरे-धीरे सहज हो रहे थे। स्थिति कुछ सामान्य होते ही गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग की आँख में अब झाँसी खटकने लगी। उसने जनरल ह्यूरोज को एक बड़ी सेना के साथ झाँसीविजय के लिए भेजा। तेरह दिनों तक रानी ने हयूरोज से भीषण युद्ध किया, किन्तुमुट्ठीभर देशभक्तों की सेना के साथ वह अधिक प्रतिरोध न कर सकी। झाँसी के नागरिकों और सैनिकों को रक्तपात से बचाने के लिए रानी ने युद्धभूमि से हट कर कर कालपी जाने का निर्णय लिया। कालपी पहुँच कर लक्ष्मीबाई ने नानासाहब और तात्या टोपे के साथ विचार-विमर्श किया और कानपुर की ओर बढ़ते ह्यूरोज के रोकने के लिए भीषण युद्ध किया। रानी ने घोड़े की लगाम को अपने मुख से पकड़ा और दोनों हाथों में तलवार लेकर लड़ते हुए अंग्रेजों के तोपखाने पर कब्जा कर लिया। अंग्रेज़ सेनापति ह्यूरोज से रानी का तीसरा और निर्णायक युद्ध ग्वालियर में हुआ। इससे पूर्व रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने ग्वालियर नरेश की अंग्रेज़-भक्ति का सबक सिखाते हुए ग्वालियर और मुरार किले पर नियंत्रण कर लिया। एक विशाल सेना लेकर ह्यूरोज फिर ग्वालियर को रानी से मुक्त कराने पहुँच गया। रानी ने उस विशाल सेना से भीषण युद्ध किया। युद्ध करते-करते रानी एक ऐसे स्थान पर पहुँच गईं जहाँ सामने एक बड़ी खाईं थी और पीछे गोरों की एक बड़ी फौज थी। रानी के घोड़े के लिए उस खाईं को पार करना असम्भव था। रानी क्रुद्ध बाघिन सी अँग्रेजी सेना पर टूट पड़ी। उस दिन उसने अपने प्राणोत्सर्ग करने का निश्चय कर लिया था। रानी चारो ओर से घिर गई थी। अचानक एक सैनिक के वार से बचने के लिए रानी घूमी ही थी कि दूसरी ओर से कई सैनिकों ने एक साथ वार किया। यह वार घातक था। मृत्यु की गोद मे जाने से पहले लक्ष्मीबाई ने वार करने वाले सैनिक को स्वर्ग पहुँचा दिया था। आसमान को चीर कर रानी लक्ष्मीबाई स्वर्ग की ओर कूच कर गईं। उनके मृत शरीर को रघुनाथ अंग्रेजों के व्यूह से निकाल कर निकट के एक साधु के आश्रम ले गए और वहीं उनका अन्तिम संस्कार कर दिया। इस प्रकार भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का त्याग और बलिदान से परिपूर्ण एक अध्याय पूरा हुआ।

बलिदानी लक्ष्मीबाई के अन्तिम क्षणों में सम्भवतः यही भाव प्रस्फुटित हुए होंगे जो भाव आज के इस गीत में व्यक्त है। आज हम आपको 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘हक़ीक़त’ का गीत सुनवा रहे हैं। कैफी आज़मी के गीत को मदनमोहन ने संगीतबद्ध किया है और इसे मुहम्मद रफी ने गाया है। फिल्म ‘हक़ीक़त’ भारत-चीन युद्ध पर बनी थी। देशभक्ति भावों से भरे इस फिल्म के गीत आज भी प्रेरक बने हुए हैं। लीजिए प्रस्तुत है एक बलिदानी के अन्तिम मनोभावों की अभिव्यक्ति करता यह गीत-

फिल्म हक़ीक़त : ‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों....’ – गीतकार : कैफी आज़मी


(समय के अभाव के चलते कुछ दिनों तक हम ऑडियो प्लेयर के स्थान पर यूट्यूब लिंक लगा रहे हैं, आपका सहयोग अपेक्षित है)

और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - एक महान क्रांतिकारी के नाम पर था फिल्म का नाम भी.
सूत्र २ - दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित ये कवि अपने राष्ट्रीय प्रेम से भरे गीतों के लिए अधिक जाने गए .
सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है - "आज़ाद".

अब बताएं -
इस महान स्वतंत्रता सेनानी का मशहूर नारा क्या था - ३ अंक
संगीतकार कौन हैं - २ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी एक बार फिर सही जवाब के साथ सबसे पहले आये, हिन्दुस्तानी जी और सत्यजीत जी को भी बधाई

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, August 16, 2011

चलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न...जब मजरूह साहब ने जगाई खून में गर्मी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 723/2011/163

स्वतन्त्रता दिवस की 64वीं वर्षगाँठ के अवसर पर श्रृंखला ‘वतन के तराने’ कीतीसरी कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत है। कल की कड़ी में हमने आपसे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की अप्रतिम वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के प्रेरक जीवन-प्रसंग के कुछ अंश को रेखांकित किया था। आज हम आपसे उसके आगे के प्रसंगों की चर्चा करेंगे।

झाँसी के महाराज गंगाघर राव से विवाह हो जाने के बाद मनु अब झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई बन कर महलों में आ गईं। विवाह के समय मनु की आयु 14 वर्ष और महाराज की आयु लगभग 50 वर्ष थी। वास्तव में इस बेमेल विवाह की जिम्मेदार तत्कालीन परिस्थितियाँ थी, जिन्हें अंग्रेजों ने ही उत्पन्न किया था। देशी राजाओं के राज्यों को हड़पने के लिए अंग्रेजों ने एक कानून बना दिया था कि जिन राजाओं की अपनी सन्तान नहीं होगी, उस राज्य को राजा के निधन के बाद अंग्रेजों की सत्ता के अधीन कर लिया जाएगा। उस समय झाँसी को विदेशी सत्ता के अधीन होने से बचाने के लिए महाराज गंगाधर राव को अपने एक उत्तराधिकारी की आवश्यकता थी। इसीलिए इस बेमेल विवाह को हर पक्ष से मौन स्वीकृति मिली।

दूसरी ओर लक्ष्मीबाई में बाल्यावस्था से प्रशासनिक महत्वाकांक्षा, युद्ध-कौशल और देश-प्रेम का जो बीजारोपण हुआ था, उसके पुष्पित-पल्लवित होने के लिए अनुकूल वातावरण मिलने लगा। विवाह के बाद लक्ष्मीबाई राज्य की शासन व्यवस्था में महाराज का सहयोग करने लगी। उन्होने सेना का संगठन नये सिरे से किये और राज्य प्रबन्ध में फैली अव्यवस्था में सुधार की नई योजनाएँ बनाईं। रानी ने सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य यह किया कि महिलाओं की एक अलग सेना बनाई और स्वयं उन्हें प्रशिक्षित भी किया। सेना की इस टुकड़ी का व्यायाम, घुड़सवारी, अश्व-संचालन आदि देख कर महाराज गंगाधर राव चकित रह गए। स्त्री जाति को वह अबला मानते थे, किन्तु इन वीरांगनाओं को देख कर उन्हें अपना विचार बदलना पड़ा। लक्ष्मीबाई राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था के साथ-साथ गृहस्थ जीवन में भी कुशल थी। कुछ समय बाद महारानी को पुत्र-रत्न की प्राप्ति और राज्य को एक उत्तराधिकारी मिला। पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई, किन्तु अंग्रेजोंके खेमे में शोक छा गया। एक पक्ष की प्रसन्नता और दूसरे पक्ष के शोक का अनुपात बहुत दिनों तक कायम नहीं रह सका। झाँसी के उत्तराधिकारी की असमय मृत्यु से महाराज को राज्य-कार्य से विमुख कर दिया। लक्ष्मीबाई ने शासन-व्यवस्था अपने हाथ में लेकर भारतीय परम्परा के अनुसार अपने ही वंश के एक बालक दामोदर राव को दत्तक पुत्र बनाया और अंग्रेजों को सीधी चुनौती दे दी।

दोस्तों, झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई की यह अमर गाथा आज के अंक में भी पूर्ण नहीं हो सकती। महारानी के त्याग और बलिदान की इस गाथा को हम कल के अंक में जारी रखते हुए थोड़ी चर्चा आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत पर करते हैं। आज हम आपको 1963 में प्रदर्शित फिल्म “काबली खान” से लिया गया ऊर्जा से भरा हुआ एक गीत सुनवाएँगे। मजरूह सुल्तानपुरी के गीत को चित्रगुप्त ने संगीतबद्ध किया है। देशभक्त सैनिकों में उत्साह और ऊर्जा का संचार करने वाले इस गीत को लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। जिस प्रकार रानी झाँसी ने अंग्रेजों को ललकारते हुए अपने देशभक्त सैनिकों का उत्साहवर्द्धन किया था, ऐसा ही कुछ भाव इस गीत में भी है। लीजिए आप भी सुनिए यह गीत-

फिल्म - काबली खान : ‘चलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न..’ – गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी


(समय के अभाव के चलते कुछ दिनों तक हम ऑडियो प्लेयर के स्थान पर यूट्यूब लिंक लगा रहे हैं, आपका सहयोग अपेक्षित है)

और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - कृष्णमोहन जी के शब्दों में कहें तो एक बलिदानी के अन्तिम मनोभावों की अभिव्यक्ति है ये गीत.
सूत्र २ - आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में जन्में थे इसके शायर.
सूत्र ३ - एक अंतरे में हुस्न और इश्क का जिक्र है.

अब बताएं -
संगीतकार कौन है - ३ अंक
शायर बताएं - २ अंक
फिल्म के निर्देशक कौन हैं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
वाह शरद जी जबरदस्त वापसी की और ३ अंकों के साथ बधाई

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Monday, August 15, 2011

जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा....सुनिए समृद्ध भारत की कहानी राजेंद्र कृष्ण की जुबानी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 722/2011/162

ज स्वतन्त्रता दिवस के पावन पर्व पर आप सब संगीत-प्रेमियों को ‘आवाज़’ परिवार की ओर से बहुत-बहुत बधाई। आज के पावन दिन को ही ध्यान में रख कर हम ‘ओल्ड इज गोल्ड’ स्तम्भ पर श्रृंखला ‘वतन के तराने’ प्रस्तुत कर रहे हैं। दोस्तों, इस श्रृंखला में हम गीतों के बहाने कुछ ऐसे महान स्वतन्त्रता सेनानियों की चर्चा कर रहे हैं जिन्होने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की बलि चढ़ा दी। आज के अंक में हम वीरांगना लक्ष्मीबाई के त्याग और बलिदान का स्मरण करेंगे और एक प्यारा सा गीत सुनेंगे, जिसमें अपने राष्ट्रीय गौरव का गुण-गान किया गया है।

19नवम्बर, 1835 को काशी (वाराणसी) में महाराष्ट्रीय ब्राह्मण मोरोपन्त और भगीरथ बाई के घर एक विलक्षण कन्या का जन्म हुआ। कन्या का नाम रखा गया- मनु। मनु के जन्म के कुछ ही समय बाद मोरोपन्त के आश्रयदाता चिमोजी अप्पा का निधन हो गया। चिमोजी अप्पा बिठूर (कानपुर) में निर्वासित जीवन बिता रहे पेशवा बाजीराव के भाई थे। अपने समय के सशक्त पेशवा का परिवार अंग्रेजों के षड्यंत्रके कारण ही छिन्न-भिन्न होकर अलग-अलग स्थानों पर निर्वासित जीवन बिता रहा था। चिमोजी अप्पा के देहान्त के बाद मोरोपन्त उनके भाई पेशवा बाजीराव के आश्रय मे बिठूर आकर रहने लगे। अभी मनु की आयु मात्र चार वर्ष की ही थी, तभी उसकी माँ भगीरथ बाई का निधन हो गया। मोरोपन्त ने धैर्य के साथ नन्ही मनु का पालन-पोषण किया। मनु को बचपन के खेल-खिलौने या गुड़ियों से खेलने मेंकोई रुचि नहीं थी। उसे तो तीर-तलवार से खेलना और साहसपूर्ण करतब ही भाते थे।

पेशवा बाजीराव मनु को पुत्रीवत मानते थे और उसे ‘छबीली’नाम से पुकारते थे। उन्होने राज परिवार के अन्य बालकों के साथ मनु की शिक्षा की व्यवस्था गंगा तट पर स्थित गुरु आश्रम में कर दी। गुरु केआश्रम में मनु, पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहब, राव साहब और पाण्डुरंग राव (तात्या टोपे) के साथ शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा पाने लगी। धीरे-धीरे मनु दस वर्ष की हो चुकी थी। वह घुड़सवारी, भाला,तीर, तलवार आदि चलाने में अपने से बड़ी आयु के बालकों की तुलना में अधिक कुशल हो गई थी। इसके साथ ही धर्मग्रंथों के अध्ययन में भी ऐसी प्रवीण हुई कि पिता मोरोपन्त, पेशवा बाजीराव और स्वयं उसके गुरु भी चकित थे। एक दिन मनु ने गुरुदेव से प्रश्न किया –‘मुट्ठीभर अंग्रेज़ आज हमें हमारे ही देश में अपने इशारों पर नचा रहे हैं। क्या हम निर्बल हैं? क्या हमारी आत्मा मृत हो चुकी है?उस दिन गुरुदेव ने उन्हें हिंसा और अहिंसा का भेद समझाया और कहा कि आततायी के साथ अहिंसा की नीति अपनाना व्यर्थ है। उस दिन नाना साहब, तात्या टोपे और मनु ने प्रण किया- “हम स्वाधीन होने का प्रयत्न करेंगे। पराधीन होकर जीने से तो मर जाना अच्छा है।“ बचपन में लिया गया यह प्रण तीनों ने निभाया।

मनु जब तेरह वर्ष की हुई तो मोरोपन्त को उसके विवाह की चिन्ता हुई। एक दिन पेशवा बाजीराव ने मोरोपन्त को सूचित किया कि झाँसी के राजा गंगाधर राव का मनु से विवाह का प्रस्ताव आया है।दरअसल गंगाधर राव की कोई सन्तान नहीं थी। मनु से उनके विवाह करने का उद्देश्य था- झाँसी को अंग्रेजों की कुदृष्टि से बचाना। काफी विचार-विमर्श के बाद यह विवाह सम्पन्न हुआ और मनु झाँसी की रानी बन कर झाँसी के राजमहल में आ गई। विवाह के उपरान्त मनु का नामकरण हुआ लक्ष्मीबाई।दोस्तों, वीरांगना झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की गाथा के लिए सैकड़ों पृष्ठ भी कम होंगे, यह तो हमारी श्रृंखला का एक अंक मात्र है। आज के अंक में हमने लक्ष्मीबाई के जन्म से लेकर झाँसी की रानी बननेके प्रसंग और उस काल के राजनैतिक परिवेश का संकेत देने का प्रयास किया है। कल के अंक में हम आपसे रानी के सैन्य संगठन की क्षमता, युद्ध कौशल और बलिदान की गाथा की चर्चा करेंगे।

और अब हम स्वतन्त्रता की 64वीं वर्षगाँठ के पावन दिन‘सोने की चिड़िया’भारत के यथार्थ स्वरूप का दर्शन एक गीत के माध्यम से करेंगे। यह गीत 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘सिकन्दरे आजम’ से लिया गया है। पाँचवें और छठे दशक में राजेन्द्र कृष्ण फिल्म जगत के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार थे। उन्हीं के गीत –“जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती हैं बसेरा, वह भारत देश है मेरा....” की संगीत रचना संगीतकार हंसराज बहल ने की थी। फिल्मी दुनिया में श्री बहल को ‘मास्टर जी’ के सम्बोधन से पुकारा जाता था। राग शुद्ध कल्याण की छाया लिये देश के इस गौरव गान को मुहम्मद रफी ने स्वर देकर इसे अमर कर दिया। लीजिए, आप भी सुनिए यह गौरव-गान-

फिल्म - सिकन्दरे आजम : ‘जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करतीं हैं बसेरा..' : गीतकार - राजेन्द्र कृष्ण


(समय के अभाव के चलते कुछ दिनों तक हम ऑडियो प्लेयर के स्थान पर यूट्यूब लिंक लगा रहे हैं, आपका सहयोग अपेक्षित है)

और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - स्वर है लता मंगेशकर का.
सूत्र २ - गीतकार दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित हैं.
सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है "कफ़न".

अब बताएं -
संगीतकार कौन है - ३ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक
फिल्म के निर्देशक कौन हैं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
हिन्दुस्तानी जी भूल सुधरने के लिए धन्येवाद. और २ अंको की बधायी भी लें, सभी श्रोताओं को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ और हम सबके प्रिय शम्मी कपूर को भावभीनी श्रद्धाजन्ली...इस पूरे आलेख को भी पढ़ें

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Sunday, August 14, 2011

जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है....भारत व्यास के शब्दों में मातृभूमि का जयगान



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 721/2011/161

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों का हार्दिक स्वागत है इस नए सप्ताह में। दोस्तों, कल है 15 अगस्त, इस देश का एक बेहद अहम दिन। 200 वर्ष की ग़ुलामी के बाद इसी दिन 1947 में हमें आज़ादी मिली थी। पर इस आज़ादी को प्राप्त करने के लिए न जाने कितने प्राण न्योछावर हुए, न जाने कितनी औरतें विधवा हुईं, न जाने कितने गोद उजड़ गए, और न जाने कितने बच्चे अनाथ हो गए। अपने देश की ख़ातिर प्राणों की आहुति देने वाले अमर शहीदों को समर्पित करते हुए प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'वतन के तराने'।

देशभक्ति गीतों की इस शृंखला को हम सजा रहे हैं दस अलग-अलग ऐसे गीतकारों की लिखी हुई देशभक्ति की रचनाओं से जिनमें स्तुति है जननी जन्मभूमि की, वंदनवार है इस शस्य श्यामला धरा की, राष्ट्रीय स्वाभिमान की, देश के गौरव की। ये वो अमर गानें हैं दोस्तों, जो गाथा सुनाते हैं उन अमर महर्षियों की जिन्होंने न्योछावर कर दिये अपने प्राण इस देश पर, अपनी मातृभूमि पर। "मातृभूमि के लिए जो करता अपने रक्त का दान, उसका जीवन देवतूल्य है उसका जन्म महान"। स्वर्ग से महान अपनी इस मातृभूमि को सलाम करते हुए इस शृंखला का पहला गाना हमने चुना है गीतकार भरत व्यास का लिखा हुआ। वीरों की धरती राजस्थान में जन्म हुआ था भरत व्यास का। लेकिन कर्मभूमि उन्होंने बनाया मुंबई को। भरत व्यास के फ़िल्मी गीत भी साहित्यिक रचनाओं की श्रेणी में स्थान पाने योग्य हैं। काव्य के शील और सौंदर्य से सम्पन्न जितने उत्कृष्ट उनके रूमानी गीत हैं,उतने ही उत्कृष्ट हैं उनके देशभक्ति की रचनाएँ। और इनमें से जिस रचना को आज हमनेचुना है वह है फ़िल्म 'सम्राट पृथ्वीराज चौहान' का, "जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है..."।मन्ना डे और साथियों के गाये इस गीत को स्वरबद्ध किया था, वसंत देसाई नें। भरत व्यास - वसंत देसाई की जोड़ी का एक और उत्कृष्ट देशभक्ति गीत है फ़िल्म 'लड़की सह्याद्रि की' में पंडित जसराज की आवाज़ में "वंदना करो, अर्चना करो"।

पृथ्वीराज (1149-1192), जो सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम से जाने जाते हैं, हिन्दू चौहान साम्राज्य के राजा थे जिन्होंने 12वीं सदी के उत्तरार्द्ध में अजमेर और दिल्ली पर राज किया। पृथ्वीराज चौहान अंतिम हिन्दू राजा थे जो दिल्ली के सिंहासन में बैठे। अपने नाना बल्लाल सेन (बंगाल के सेन साम्राज्य) से 20 वर्ष की आयु में सन्‍ 1169 में पृथ्वीराज को अजमेर और दिल्ली का शासन मिला था। उन्होंने वर्तमान राजस्थान और हरियाणा मेंराजपूतों को एकत्रित कर विदेशी आक्रमणों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। पृथ्वीराज नें 1175 में कन्नौज के राजा जयचन्द्र राठौड़ की बेटी संयोगिता को भगाकर ले गए। पृथ्वीराज-संयोगिता की प्रेम कहानी भारत में मशहूर है, जिसे चौहान साम्राज्य के कवि और मित्र चन्द बरदाई नें अपनी कविता में क़ैद किया। तरैन की पहली लड़ाई में 1191 में पृथ्वीराजचौहान नें शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी को परास्त किया। गोरी नें अगले ही वर्ष दोबारा आक्रमण किया जिसमें पृथ्वीराज को हार स्वीकारनी पड़ी। उन्हें क़ैद कर लिया गया और गोरी उन्हें ग़ज़नी ले गए जहाँ उन्हें मृत्यु प्रदान की गई। और इस तरह से दिल्ली हिन्दू राजाओं के हाथ से निकल कर विदेशी मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं के कब्ज़े में चला गया। पृथ्वीराज चौहान की देशभक्ति की गाथा अमर वीरगाथाओं में शोभा पाता है। आइए 'वतन के तराने' शृंखला की पहली कड़ी में इस वीर योद्धा को नमन करते हुए उन्हीं पर बनीफ़िल्म का गीत सुनें "जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है"। साथ ही स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर हम अपने सभी श्रोता-पाठकों का हार्दिक अभिनन्दन करते हैं।

फिल्म – सम्राट पृथ्वीराज चौहान : ‘जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है’ : गीतकार –भरत व्यास


(समय के अभाव के चलते कुछ दिनों तक हम ऑडियो प्लेयर के स्थान पर यूट्यूब लिंक लगा रहे हैं, आपका सहयोग अपेक्षित है)

और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

और अब वक्त है आपके संगीत ज्ञान को परखने की. अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - गीतकार हैं राजेंद्र कृष्ण.
सूत्र २ - ये फिल्म दुनिया के एक महान योद्धा की अमर दास्तान है.
सूत्र ३ - गीत में देश के उस नाम का जिक्र है जिस नाम से ये देश जाना जाता था.

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संगीतकार कौन है - ३ अंक
गायक बताएं - २ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक

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पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी बढ़िया शुरुआत....अवध जी को भी बधाई

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

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