पुणे के शिशिर पारखी हालाँकि हमारे नए गीतों से प्रत्यक्ष रूप से नहीं जुड़ सके पर श्रोताओं को याद होगा कि उनके सहयोग से हमने उस्ताद शायरों की एक पूरी श्रृंखला आवाज़ पर चलायी थी, जहाँ उनकी आवाज़ के माध्यम से हमने आपको मिर्जा ग़ालिब, मीर तकी मीर, बहादुर शाह ज़फर, अमीर मिनाई, इब्राहीम ज़ौक, दाग दहलवी और मोमिन जैसे शायरों की शायरी और उनका जीवन परिचय आपके रूबरू रखा था. उसके बाद हमने आपको शिशिर का के विशेष साक्षात्कार भी किया था. शिशिर आज बेहद सक्रिय ग़ज़ल गायक हैं जो अपनी पहली मशहूर एल्बम "एहतराम" के बाद निरंतर देश विदेश में कंसर्ट कर रहे हैं बावजूद इसके वो रोज आवाज़ पर आना नहीं भूलते और समय समय पर अपने कीमती सुझाव भी हम तक पहुंचाते रहते हैं. आज फिर एक बार उनकी आवाज़ का लुत्फ़ उठाईये. ये लाजवाब ग़ज़ल है शायरों के शायर जिगर मुरादाबादी की -
तेरी ख़ुशी से अगर गम में भी ख़ुशी न हुई,
वो जिंदगी तो मोहब्बत की जिंदगी न हुई.
किसी की मस्त निगाही ने हाथ थाम लिया,
शरीके हाल जहाँ मेरी बेखुदी न हुई,
ख्याल -ए- यार सलामत तुझे खुदा रखे,
तेरे बगैर कभी घर में रोशनी न हुई.
इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी,
कि हमने आह तो की उनसे आह भी न हुई.
गए थे हम भी "जिगर" जलवा गाहे-जानाँ में
वो पूछते ही रहे हम से बात भी न हुई.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
3 श्रोताओं का कहना है :
जिगर साहेब की ग़ज़ल और शिशिर जी की आवाज़ सोने में सुहागा...युग्म पर अब तक मिली श्रेष्ठ प्रस्तुति... अविस्मरणीय. बधाई...
ये ग़ज़ल कुछ आसान नहीं थी पर न सिर्फ आपने बहुत ही खूबसूरत धुन दी इसे पर गाया भी बहुत खूब है. मुझे आपकी सुनी हुई अब तक की सबसे बढ़िया ग़ज़ल लगी ये
शिशिर जी,
'एहतेराम' के बहुत दिनों के बाद हमें आपको सुनने का अवसर मिला। लेकिन इंतज़ार का फल मीठा रहा। लेकिन अगली बार ज्यादा इंतज़ार न करायें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)