Friday, August 8, 2008

वो पीपल का पत्ता, है अब भी अकेला...



दूसरे सत्र के छठे गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज.

आज हम अपने संगीत प्रेमियों के समक्ष लेकर आए हैं, एक और ताज़ी आवाज़, सुदीप यशराज की, ये युग्म के संगीत इतिहास में दूसरी बार है, जब किसी भी गीत के समस्त पक्ष को एक ही कलाकार ने संभाला है. सुदीप ने यह गीत ख़ुद ही लिखा, स्वरबद्ध किया और गाया है, उनका संगीत ताजगी भरा है और हमें यकीं हैं कि नयेपन की कमी जो हमारे कुछ श्रोताओं को महसूस हुई है अब तक, वो इस गीत के साथ दूर हो जायेगी. तो सुनें ये ताज़ा गीत, और अपने विचारों से सुदीप का प्रोत्साहन/मार्गदर्शन करें.

गीत सुनने के लिए प्लेयर पर क्लिक करें.




This Friday, we are introducing another very talented upcoming composer and singer, Sudeep Yashraaj to you. Sudeep is here with a new genre of sound, this song has a fresh new feel to it. With a very new way of writing and singing we are sure that he will steal your heart with his "beinteha pyar...". So enjoy this brand new song and do leave your comments as well.

To listen to the song, please click on the player



Lyrics:

Vo o o o o, Beinteha pyar
Vo o o o o, Beinteha pyar
Dooba hua hun, barso se, teri aankho mein, hoooo

Sagar meri zindagi, zindagi hai
Mainey boond boond bhari hai apney aansu se

Meri majboori hai jo ab tak lab hai siley
Aur uspey ek tum jo ab tak chup ho khadey
Kya yeh zaarori hai, ke main izhar karun
Jaana tum samajh bhi jao mai tumsey pyar karun

Vo o o o o, Beinteha pyar
Vo o o o o, Beinteha pyar

Who bachpan ki galtiyaan, Tera woh rona
Mere dil ki dhadkan kaa har aansu pe khona
Woh pipal ke ped ke niche bhooke hi sona

Woh pipal ka patta hai ab bhi akela
Woh toofaan si baarish, Akeley hi jhela
Yehi zindagi hai, akele hi jeena, akele hi jaana

Wo o o o o o o
Vo o o o o, Beinteha pyar
Vo o o o o, Beinteha pyar

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SONG # 06, SEASON # 02, "Beintehaa pyaar...",OPENED ON 08/08/2008 ON AWAAZ,HIND YUGM.
Music @ Hind Yugm, Where music is a passion

Thursday, August 7, 2008

ऑनलाइन अभिनय और काव्यपाठ का मौका



आवाज़ पर हम कहानियों और कविताओं का पॉडकास्ट प्रकाशित करते आये हैं। कहानी-कलश की कहानियों के पॉडकास्ट के प्रसारण के तहत हमने सूरज प्रकाश की कहानी 'दो जीवन समांतर', राजीव रंजन प्रसाद की कहानी 'ज़िंदा हो गया है' और रंजना भाटिया की कहानी 'एक और मुखौटा' का प्रसारण किया है। श्रोताओं से बहुत अच्छी प्रतिक्रियाएँ मिलीं।

कहानी के पॉडकास्ट के प्रसारण के लिए

अब से हम कहानियों के पॉडकास्ट के माध्यम से सभी श्रोताओं को अभिनय का मौका दे रहे हैं। हम प्रत्येक माह एक कहानी चुनकर आपको देंगे, जिसमें आप निम्न तरह से अपनी आवाज़ दे सकते हैं-


  • कहानी का नैरेटर (वाचक) बनकर

  • किसी एक पात्र के सभी संवादों को रिकॉर्ड करके

  • सभी पात्रों के संवादों को आवाज़ देकर



हमारी संपादकीय टीम को जिस पॉडकास्टर की आवाज़, जिस भाग के लिए बढ़िया लगेगी, उसका इस्तेमाल करके संपूर्ण कहानी का पॉडकास्ट तैयार किया जायेगा और प्रसारित किया जायेगा।

इस बार के लिए हमने जिस कहानी को चुना है वो है नवलेखन पुरस्कार प्राप्त कहानी 'स्वेटर'। आप कहानी पढ़ें और अपनी रिकॉर्डिंग १८ अगस्त २००८ तक podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें।

यदि आप रिकॉर्डिंग के लिए नये हैं और आपको यह नहीं पता कि अपनी आवाज़ कैसे रिकॉर्ड करें तो हमारी e-मदद लें

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन के लिए

पिछले महीने से हमने ऑनलाइन सम्मिलित काव्य-पाठ का भी आयोजन किया। लोगों ने काफी पसंद किया। पहला अंक यहाँ से सुनें। हम अगस्त माह के पॉडाकस्ट कवि सम्मेलन के लिए कवियों से ऊनकी कविताएँ, उन्हीं की आवाज़ में आमंत्रित करते हैं। आप अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके २४ अगस्त २००८ तक podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। अगस्त माह के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का अंक रविवार ३१ अगस्त २००८ को प्रसारित किया जायेगा।

यदि आप रिकॉर्डिंग के लिए नये हैं और आपको यह नहीं पता कि अपनी आवाज़ कैसे रिकॉर्ड करें तो हमारी e-मदद लें

मम्मी-पापा



बच्चो,

आज बाल-उद्यान की कविता के पॉडकास्ट के रूप में हम लेकर हाज़िर हैं डॉ॰ अनिल चड्डा की कविता 'मम्मी-पापा' लेकर। यह कविता जिसकी आवाज़ में है ना, उसकी आवाज़ आप पहले भी सुन चुके हैं, लेकिन आज उसने अपना अंदाज़ बदला है। बस आपको अंदाज़ा लगाकर बताना है कि आवाज़ किसकी है। सुनकर बताएँ ज़रा॰॰॰॰

नीचे ले प्लेयर से सुनें.

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# Baal-Kavita 'Mummy-Papa' of \Dr. Anil Chadda, # Voice- *******

Wednesday, August 6, 2008

हमेशा लगता है, कि यह गीत और बेहतर हो सकता था....



दोस्तो,
आवाज़ पर इस हफ्ते के "फीचर्ड कलाकार" है, युग्म के संगीत खजाने को पाँच गीतों से सजाने वाले ऋषि एस. संगीतकार ए आर रहमान के मुरीद, ऋषि हमेशा ये कोशिश करते हैं कि वो हर बार पहले से कुछ अलग करें. उनके हर गीत को अब तक युग्म के श्रोताओं ने सर आँखों पे बिठाया है, कभी मात्र शौकिया तौर पर वोइलिन बजाने वाले ऋषि, अब बतौर संगीतकार भी ख़ुद को महत्त्व देने लगे हैं, युग्म ने की ऋषि एस से एक ख़ास बातचीत.


(ऋषि मूल रूप से हिन्दी भाषी नही हैं, पर उन्होंने हिन्दी में अपने जवाब लिखने की कोशिश की है, तो हमने उनकी भाषा में बहुत अधिक संशोधन न करते हुए, यहाँ रखा है, ऋषि हिन्दी को शिखर पर देखने की, हिंद युग्म की मुहीम के पुरजोर समर्थक है, और युग्म के लिए वार्षिक अंशदान भी देते हैं)


हिंद युग्म - स्वागत है ऋषि, "मैं नदी..." आपका ५ वां गीत है, कैसे रहा अब तक का सफर युग्म के संगीत के साथ ?

ऋषि -सबसे पहले मैं हिंद युग्म को शुक्रिया अदा करना चाहूँगा, मेरे जैसे "amateur" संगीतकारों को अपना "talent" प्रदर्शन करने का मौका दिया है. हर गाने का "feedback" पढ़कर न सिर्फ़ प्रोत्साहन मिलता है बल्कि यह भी पता चलता है की गाने मे क्या कमियां है. इन गानों का एल्बम बनाकर उसे एक "larger audience" तक पहुंचने का कष्ट जो हिंद युग्म उठता है, मैं इसके लिये बहुत शुक्रगुजार हूँ. इस अवसर पर मे सजीव जी और अलोक जी और मेरे सभी सिंगेर्स, सुबोध साठे, मानसी पिम्पले और जयेश शिम्पी का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ. "They have added soul to my songs".

हिंद युग्म -कुछ अपने बारे में बताईये, हमारे श्रोता आपके बारे में बहुत कम जानते हैं ?

ऋषि द्वारा कम्पोज्ड गीत
मैं नदी
बढ़े चलो
सुबह की ताज़गी (पहला सुर)
वो नर्म सी (पहला सुर)
झलक (पहला सुर)
ऋषि - मै हैदराबाद से हूं और "by profession software engineer" का काम करता हूँ.संगीत रात मे और weekends पे इस दुनिया से कुछ समय दूर रहने के लिये compose करता हूँ. मैने वोइलिन पे कार्नाटिक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिया है. western हार्मोनी, orchestration/अर्रंजेमेंट , audio mixing की शिक्षा मैने " self study" करके सिखा हैं.अभी सीखना जारी है. मुझे नही लगता कभी ख़तम होगी ये प्रक्रिया. Music compose करते समय थोड़ा सा कीबोर्ड बजा लेता हूँ.Guitar सीखने के कोशिश किया था एक समय, लेकिन software profession के कारण continue नही कर पाया.

हिंद युग्म - संगीत किस तरह का पसंद है आपको सुनना, अगर आप अपनी एल्बम प्लान करेंगे तो वो किस तरह की होगी ?

ऋषि -मै अपने mood और महौल के हिसाब से अलग अलग style का संगीत सुनना पसंद करता हूँ. खासकर इन्डियन classical, western classical, इंडियन film music, कुछ तरह के fusion, world music, सुनना पसंद करता हूँ.कभी कभी पॉप, रॉक, R&बी, रैप, Jazz जैसे western फोरम्स भी सुन लेता हूँ.
मेरे एल्बम का संगीत के बारे में कुछ नही जानता, क्यों की मै प्लान कर compose नही करता. I compose what ever comes to me from my heart. लेकिन एक सपना है ज़रूर है कि कुछ ऐसा एल्बम बनाऊं जिसमे सिर्फ़ संगीत का मज़ा ही नही बल्कि समाज के लिए कोई स्ट्रोंग मेसेज हो.फिलहाल ऐसे कोई थीम की खोज में हूँ.

हिंद युग्म - आप एक बड़ी कंपनी में कार्यरत हैं, कैसे समय निकाल पाते हैं अपने संगीत कार्यों के लिए ?


ऋषि -If someone asks you how you make time for having breakfast, lunch, dinner, sleep everyday when you have to work for a company, what would you say? I don't make any special efforts to make time for music. I compose only when it comes naturally to me.It has become a daily habit now.

हिंद युग्म - अब तक आपके रचे गए गीतों में आपका सबसे पसंदीदा गीत कौन सा है ?

ऋषि - अब तक के मेरे compose किये हुए गीतों से मैं संतुष्ट नही हूँ. मै गाना पुरा ख़तम कर जब प्रोजेक्ट बंद कर देता हूँ तो उसके बाद् उस गाने को बहुत कम सुनता हूँ. इसका कारण यह है की मुझे उस गाने की कमियां नज़र आती हैं और गाने का मज़ा नही ले पाता. यही लगता है कि यह गाना इससे भी अच्छा हो सकता है. लेकिन समय की पाबन्दी और गाने को ज्यादा manipulate करने से उसकी natural flow ख़राब होने के डर से अगले गाने में कुछ बेहतर करने का उम्मीद लेकर आगे बढता हूँ.

हिंद युग्म - "बढ़े चलो..." में आपको सबसे अधिक समय लगा, उस गीत के बारे में कुछ बताईये ?

ऋषि -"बढ़े चलो..." ख़तम करने में हमे करीब ५ मैने लग गये. कोम्पोसिशन में मुझे ज्यादा वक्त नही लगा लेकिन delay के कई कारण थे. जब इस गाने का concept सजीव जी ने मुझे बताया था तब मै official काम पर विदेश में था. गाना record कर mix करने के लिये मुझे India वापिस आने तक इंतज़ार करना पड़ा. India आकर मुझे अपने होम स्टूडियो मै कुछ changes करने थे. इसमे कुछ वक्त निकल गया. गाने में तीन आवाजों की जरुरत थी. हमे गायकों को खोज कर उनके availability के हिसाब से record करने में और वक्त लग गया. हमे दूसरा मेल गायक नही मिल रहा था, गाना का काफ़ी delay हो जाने के कारण मुझे ख़ुद आवाज़ देनी पड़ी.

हिंद युग्म - अक्सर पहले गीत लिखा जाता है या फ़िर धुन पर बोल पिरोये जाते हैं, आप को कौन सी प्रक्रिया बेहतर लगती है ?


ऋषि - मै गाना बनाना या तो धुन से शुरू कर सकता हूँ या फिर कविता से. मै यह मानता हूँ कि दोनों तरीकों में अपनी अपनी pros and cons है. मेरे "सुबह की ताजगी", "झलक" और "बढ़े चलो" गाने पहले लिखे गये. उनका धुन बाद मे बनाया गया. "मैं नदी .." और "वो नर्म सी मदहोशी" गानों का धुन पहले बनाए थे. It is challenging for the poet to write meaningfully to the tune.


हिंद युग्म - इस इन्टरनेट jamming के माध्यम से संगीत रचना कठिन काम है, मगर आप इस आईडिया के मूल बीज कहे जा सकते हैं युग्म के लिए, इस पर कुछ कहें ?

ऋषि- IT industry मे होने के कारण मुझे internet के द्वारा गाने बनाने मे ऐसा नही लगा की कुछ नई चीज़ कर रहा हूँ. हम दफ्तर मे दुनिया के opposite कोने के लोगों के साथ रोज़ काम करते हैं. गायकों के साथ आमने सामने बात नही होने के कारण गाने के vocals पे बहुत असर पड़ा है. मेरे गानों मे vocals हमेशा ही weak रहे हैं और इसका कारण गायक और संगीतकार remote है.मुझे इस बात का अफ़सोस है और आशा करता हूँ की मुझे गायकों को face-to-face record करने का मौका मिले और उनके singing abilities का फ़ायदा उठा सकूं .

हिंद युग्म - साल में लगभग ४-५ महीने आप विदेश यात्रा पर होते हैं, उस दौरान क्या आप संगीत से अलगाव महसूस करते हैं ? इस वक्त भी आप शिकागो में हैं.


ऋषि -I make use of of my time outside India to listen to new music and to learn about the new developments in music technology. In India, the resources are less on one hand and I m too busy composing so I don't find time to sit and read books. I also record tunes when I get the inspiration. I work on some song concepts as well.

हिंद युग्म - शुक्रिया ऋषि आप जल्दी से स्वदेश वापस आयें और नए गीतों पर काम शुरू करें, युग्म के श्रोता आपके अगले गीत का बेसब्री से इन्तेज़ार करेंगे.

ऋषि - Thanks once again to Hind Yugm for giving me the opportunity to compose for it. I look forward to do better music for yugm audience.

दोस्तों एक बार फ़िर ढेर सारी शुभकामनायें देते हुए, बतौर संगीतकार उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए, सुनते हैं, ऋषि एस का स्वरबद्ध किया, ये ताज़ा और मधुर गीत.



Tuesday, August 5, 2008

मैं इस जमीं पे भटकता रहा हूँ सदियों तक...गुलजार



जब रंजना भाटिया "रंजू" ,रूबरू हुई गुलज़ार की कलम के तिलिस्म से ...

मैं जब छांव छांव चला था अपना बदन बचा कर
कि रूह को एक खूबसूरत जिस्म दे दूँ
न कोई सिलवट .न दाग कोई
न धूप झुलसे, न चोट खाएं
न जख्म छुए, न दर्द पहुंचे
बस एक कोरी कंवारी सुबह का जिस्म पहना दूँ, रूह को मैं

मगर तपी जब दोपहर दर्दों की, दर्द की धूप से
जो गुजरा
तो रूह को छांव मिल गई है .

अजीब है दर्द और तस्कीं [शान्ति ] का साँझा रिश्ता
मिलेगी छांव तो बस कहीं धूप में मिलेगी ...


जिस शख्स को शान्ति तुष्टि भी धूप में नज़र आती है उसकी लिखी एक एक पंक्ति, एक एक लफ्ज़ के, साए से हो कर जब दिल गुजरता है, तो यकीनन् इस शख्स से प्यार करने लगता है सुबह की ताजगी हो, रात की चांदनी हो, सांझ की झुरमुट हो या सूरज का ताप, उन्हें खूबसूरती से अपने लफ्जों में पिरो कर किसी भी रंग में रंगने का हुनर तो बस गुलजार साहब को ही आता है। मुहावरों के नये प्रयोग अपने आप खुलने लगते हैं उनकी कलम से। बात चाहे रस की हो या गंध की, उनके पास जा कर सभी अपना वजूद भूल कर उनके हो जाते हैं और उनकी लेखनी में रचबस जाते है। यादों और सच को वे एक नया रूप दे देते है। उदासी की बात चलती है तो बीहड़ों में उतर जाते हैं, बर्फीली पहाडियों में रम जाते हैं। रिश्तों की बात हो वे जुलाहे से भी साझा हो जाते हैं। दिल में उठने वाले तूफान, आवेग, सुख, दुख, इच्छाएं, अनुभूतियां सब उनकी लेखनी से चल कर ऐसे आ जाते हैं जैसे कि वे हमारे पास की ही बातें हो।


तुम्हारे गम की डली उठा कर
जुबान पर रख ली हैं मैंने
वह कतरा कतरा पिघल रही है
मैं कतरा कतरा ही जी रहा हूँ
पिघल पिघल कर गले से उतरेगी ,आखरी बूंद दर्द की जब
मैं साँस की आखरी गिरह को भी खोल दूंगा ----

जब हम गुलजार साहब के गाने सुनते हैं तो .एहसास होता है की यह तो हमारे आस पास के लफ्ज़ हैं पर अक्सर कई गीतों में गुलज़ार साब ने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जो श्रोता को चकित कर देते हैं.जैसे की उन्होने कोई जाल बुना हो और हम उसमें बहुत आसानी से फँस जाते हैं. दो अलग अलग शब्द जिनका साउंड बिल्कुल एक तरह होता है और वो प्रयोग भी इस तरह किए जा सकते हैं की कुछ अच्छा ही अर्थ निकले गीत का...गुलज़ार साब ने अक्सर ही ऐसा किया है.इसे हम गुलज़ार का तिलिस्म भी कह सकते हैं.

मरासिम एलबम की एक ग़ज़ल है -

“हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते.....”

इस ग़ज़ल में एक शेर है-
“शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा करते”


कितना आसान है दूसरे मिसरे में थोड़ा को तोड़ा सुन लेना.और उसका मतलब भी बिल्कुल सटीक बैठता है. मगर यही जादू है गुलज़ार साब की कलम का. साउंड का कमाल.

आर डी बर्मन और गुलजार की जोड़ी के कमाल को कौन नही जानता..."मेरा कुछ सामान..." गाना जब गुलज़ार ने RD के सामने रखा तो पढ़कर बोले - अच्छे संवाद हैं...पर गुलज़ार जानते थे कि RD को किस तरह समझाना है कि ये संवाद नही बल्कि गीत है जिसे वो स्वरबद्ध करना चाहता थे अपनी नई फ़िल्म "इजाज़त" के लिए, लगभग दो महीने बाद मौका देखकर उन्होंने इसी गीत को फ़िर रखा RD के सामने और इस बार आशा जी भी साथ थी, बर्मन साब कहने लगे "भाई एक दिन तुम अखबार की ख़बर उठा लाओगे और कहोगे कि लो इसे कम्पोज करो..." पर तभी आशा जी ने गीत के बोल पढ़े और कुछ गुनगुनाने लगी, बस RD को गाने का मर्म मिल गया और एक कालजयी गीत बना. गुलज़ार और आशा दोनों ने इस गीत के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. (जाने पंचम दा कैसे पीछे छूट गए)..एक सौ सोलह चाँद की रातें...एक तुम्हारे कांधे का तिल....वाह क्या बात है....गुलज़ार साब की.

जरा याद कीजिये घर का वह गाना ..."आप की आँखों में" ..इस से ज्यादा रोमांटिक गाना मेरे ख्याल से कोई नही हो सकता है इस में गाये किशोर दा की वह पंक्ति जैसे दिल की तारों को हिला देती है .."लब खिले तो मोंगरे के फूल खिलते हैं कहीं ..." और फ़िर लो पिच पर यह "आपकी आंखों में क्या साहिल भी मिलते हैं कहीं .....आपकी खामोशियाँ भी आपकी आवाज़ है ..." और लता जी की एक मधुर सी हलकी हँसी के साथ "आपकी बदमाशियों के यह नए अंदाज़ है ...".का कहना जो जादू जगा देता है वह कमाल सिर्फ़ गुलजार ही कर सकते हैं अपने लफ्जों से .....

ज़िंदगी के हर रंग को छुआ है उन्होंने अपनी कही नज्मों में, गीतों में ...कुदरत के दिए हर रंग को उन्होंने इस तरह अपनी कलम से कागज में उतारा है, जो हर किसी को अपना और दिल के करीब लगता है, इतना कुदरत से जुडाव बहुत कम रचना कार कर पाये हैं, फिल्मों में भी, और साहित्य में भी .

मैं कायनात में ,सय्यारों में भटकता था
धुएँ में धूल में उलझी हुई किरण की तरह
मैं इस जमीं पे भटकता रहा हूँ सदियों तक
गिरा है वक्त से कट कर जो लम्हा .उसकी तरह
वतन मिला तो गली के लिए भटकता रहा
गली में घर का निशाँ तलाश करता रहा बरसों
तुम्हारी रूह में अब ,जिस्म में भटकता हूँ

लबों से चूम लो आंखो से थाम लो मुझको
तुम्हारी कोख से जनमू तो फ़िर पनाह मिले ..

फ़िर मिलूंगी आपसे दोस्तों, गुलज़ार साहब के कुछ और अहसास लेकर तब तक आनंद लें उनके लिखे इस लाजवाब गीत का, संगीत इलयाराजा का है.



- रंजना भाटिया
( हिंद युग्म )

Monday, August 4, 2008

वो खंडवा का शरारती छोरा



किशोर कुमार का नाम आते ही जेहन में जाने कितनी तस्वीरें, जाने कितनी सदायें उभर कर आ जाती है. किशोर दा यानी एक हरफनमौला कलाकार, एक सम्पूर्ण गायक, एक लाजवाब शक्सियत. युग्म के वाहक और किशोर दा के जबरदस्त मुरीद, अवनीश तिवारी से हमने गुजारिश की कि वो किशोर दा पर, "आवाज़" के लिए एक श्रृंखला करें. आज हम सब के प्यारे किशोर दा का जन्मदिन है, तो हमने सोचा क्यों न आज से ही इस श्रृंखला का शुभारम्भ किया जाए. पेश है अवनीश तिवारी की इस श्रृंखला का पहला अंक, इसमें उन्होंने किशोर दा के फिल्मी सफर के शुरूवाती दस सालों पर फोकस किया है, साथ में है कुछ दुर्लभ तस्वीरें भी.

किशोर कुमार ( कालावधी १९४७ - १९६० )- वो खंडवा का शरारती छोरा

यह एक कठिन प्रश्न है कि किशोर कुमार जैसे हरफनमौला व्यक्तित्व के विषय में जिक्र करते समय कहाँ से शुरुवात करें आइये सीधे बढ़ते है उनके पेशेवर जीवन ( प्रोफेसनल करिअर ) के साथ , जो उनकी पहचान है बात करते है उनके शुरू के दशक की, याने १९४७ - १९६० तक की बड़े भाई अशोक कुमार के फिल्मों में पैर जमाने के बाद छोटे भाई आभास यानी हमारे चहेते किशोर और मझले भाई अनूप बम्बई ( मुम्बई ) आ गए आभास की उम्र १८ बरस थी छुटपन से ही कुंदन लाल सहगल का अनुसरण ( follow up ) कर उनके गीतों को गाने में माहीर किशोर को पहला मौका पार्श्व गायक ( play back singer ) के रूप में मिला फ़िल्म "जिद्दी" में और गाना था - "मरने की दुआएं क्या मांगू " देव आनद पर फिल्माए इस गीत में कुछ भी नया नही था और के. एल. सहगल की नक़ल जैसी थी इसके पहले किशोर ने एक समूह गीत में भी भाग लिया था उन्ही दिनों आभास ने अपना नाम बदल कर किशोर रख लिया कहा जाता है कि नाम में बहुत कुछ होता है तभी तो यह नाम आज तक याद किया जा रहा है

अदाकारी में कामयाबी की मंजिलों को चुमते दादा मुनी याने अशोक कुमार चाहते थे कि किशोर भी अभिनय (acting) में ही मन लगाये लेकिन मन मौजी किशोर को यह दिखावे कि दुनिया कम भाती रही बड़े भाई के दबाव से अभिनय शुरू किया साथ - साथ अपने लिए गीत भी गाये लेकिन शुरुवाती दौर का यह सफर इतना मशहूर नही हो पा रहा था " शिकारी" नाम की एक फ़िल्म में उन्होंने अपना पहला अभिनय किया

इन बरसों की कुछ यादगार फिल्में -

१९५१ - आन्दोलन - अभिनय किया

१९५४ - नौकरी - सफल निर्देशक बिमल रॉय की फ़िल्म में किशोर ने अभिनय किया और गाया भी
एक मीठा गीत है - " छोटा सा घर होगा बादलों की छाँव में ...." ख्याल आया ?

१९५६ - नयी दिल्ली का गाना - " नखरेवाली ..."

१९५६ - फंटूस - इसका एक गीत " दुखी मन मेरे ..." आज भी मन को भाव विभोर करता है यह एक ऐसा गीत है जो सच में किशोर के उन दिनों की जदोजहत को बयान करता है ध्यान से सुनने पर मुझे ऐसा लगा जैसे सहगल और किशोर दोनों कि आवाज़ मिली है इसमे किशोर अपने माने गुरु सहगल को सुनते और सीखते अपनी पहचान बनाने में लगे थे यह उसी बदलाव का एक बेहतरीन नमूना है जगजीत सिंह जैसे गायकों ने भी यह गीत दोहराया है अपनी आवाज में

१९५७ - नौ दो ग्यारह - सदाबहार गीत " आंखों में क्या जी ...."

१९५७ - मुसाफिर

१९५८ - दिल्ली का ठग - अभिनेत्री नूतन और किशोर की एक सौगात - " हम तो मोहब्बत करेगा ..."

किशोर की आवाज़ में उनके इस दशक का मेरा सबसे पसंदीदा गीत "दुखी मन मेरे", ज़रूर सुनें -



अशोक कुमार के घर आए संगीत निर्देशक सचिन देव बर्मन ( S. D. Burman) ने किशोर को बाथरूम में गाते सूना और उनकी तारीफ़ करते हुए उन्हें आपने आवाज़ में गाने की सलाह दी दो गुणों का मेल किसी नए कृति का सृजक होता है बर्मन दा और किशोर मिले और शुरू हुया एक ऐसा सफर जो हिन्दी फ़िल्म जगत का एक सुनहरा इतिहास बन गया बर्मन जी ने किशोर को और निखारा और दोनों ने उस दशक में कई अच्छे गीत दिए

दोनों के कुछ सफल प्रयोग -

१९५४ - मुनीमजी ,

१९५६ - फंटूस - पहले ही बताया इस के बारे में ,

१९५७ - Paying Guest ,

१९५८- फ़िल्म चलती का नाम गाडी के गीत ह्म्म्म... इस फ़िल्म के सभी गानों में तो किशोर ने आवाज़ दी थी
इस फ़िल्म के लिए क्या कहा जाए - superb

दशक में किशोर ने मेहनत कर अपनी पहचान तो लगभग बना ली थी लेकिन अभी तक आवाज़ से ज्यादा अभिनय के लिए ही मशहूर हुए थे १९५१ में रुमा गुहा के साथ शादी की लेकिन यह केवल ८ बरस तक ही कामयाब रही रुमा खास कर बंगला की अभिनेत्री और गायिका है इस दंपत्ति ने हमे अमित कुमार के नाम से एक नया कलाकार दिया

इस तरह शुरूवात के दशक में किशोर की आवाज देव आनंद के लिए पहचान बनी , आशा और लता जी का संग हुया और एस. डी. बर्मन जैसे गुरु का हाथ मिला

ये कुछ दुर्लभ तस्वीरें है पहला किशोर और देव जी का है



दूसरे में किशोर और रफी जी के साथ हैं कुछ और बड़े धुरंधर भी, खोजिये और बताएं ये कौन कौन हैं.



किशोर कुमार के शुरुवात के दिनों की कहानी को मै अपने इन शेरों से रोकता हूँ -

अभिनय - गायकी, कला में वो लाजवाब था ,
सिने जगत में आया एक नया आफताब था ,
आया बोम्बे वो खंडवा का शरारती छोरा ,
जैसे राजकुमार चला कोई बनने नवाब था ,
वक्त की रफ़्तार में गिरते - संभलते रहा ,
नया मुकाम हासील करना उसका ख्वाब था


धन्यवाद

बाबू अब तो चलते हैं,
अगले माह मिलेंगे
पम्प पम्प पम्प .....



(जारी...)

Sunday, August 3, 2008

जुलाई के जादूगरों की पहली भिडंत



जैसा की आवाज़ के श्रोता वाकिफ हैं, कि संगीत का ये दूसरा सत्र जुलाई महीने के पहले शुक्रवार से आरंभ हुआ था और दिसम्बर के अन्तिम शुक्रवार तक चलेगा, इस दौरान रीलीस होने वाले तमाम गीतों में से एक गीत को चुना जाएगा "सत्र का सरताज गीत", लेकिन सरताज गीत बनने के लिए हर गीत को पहले पेश होना पड़ेगा जनता की अदालत में, और फ़िर गुजरना पड़ेगा समीक्षा की परीक्षा से भी, ये समीक्षा करेंगे हिंद युग्म, आवाज़ के लिए संगीत / मीडिया और ब्लॉग्गिंग से जुड़े हमारे वरिष्ट और अनुभवी समीक्षक. हम आपको बता दें, कि समीक्षा के दो चरण होंगे, पहले चरण में ३ निर्णायकों द्वारा, बीते महीने में जनता के सामने आए गीतों की परख होगी और उन्हें अंक दिए जायेंगे, हर निर्णायक के द्वारा दिए गए अंक गीत के खाते में जुड़ते जायेंगे. दूसरे और अन्तिम चरण में, २ निर्णायक होंगे जो जनता के रुझान को भी ध्यान में रख कर अंक देंगे, दूसरे चरण की समीक्षा सत्र के खत्म होने के बाद यानि की जनवरी के महीने में आरंभ होगी, हर गीत को प्राप्त हुए कुल अंकों का गणित लेकर हम चुनेगें अपना - सरताज गीत.

तो "जुलाई के जादूगर" गीतों की पहले चरण की समीक्षा आज से शुरू हो रही है, आईये जानते हैं कि जुलाई के इन जादूगरों को हमारे पहले समीक्षक ने अपनी कसौटी पर आंक कर क्या कहा और कितने अंक दिए हर गीत को.

निर्णायक की नज़र में हिंद युग्म का ये प्रयास -

हिन्द-युग्म” के एक उत्कृष्ट प्रयास के तौर पर युवा गायकों और संगीतकारों को मौका देने के पवित्र उद्देश्य से शुरु हुआ “आवाज़” का सफ़र प्रारम्भ हो चुका है। युग्म ने मुझसे गीतों की समीक्षा का आग्रह किया जिसे मैं टाल नहीं सका। असल में मेरे जैसे “कानसेन” (एक होता है तानसेन, जो अच्छा गाता है और एक होता है कानसेन जो सिर्फ़ अच्छा सुनता है) से गीतों की समीक्षा करवाना कुछ ऐसा ही है जैसे किसी लुहार से नाक में पहनने का काँटा बनवाना.

जुलाई माह के दौरान चार नये गीत “रिलीज़” हुए। चारों गीत युवाओं की टीम ने आपसी सामंजस्य और तकनीकी मदद से बनाये हैं और तकनीकी तौर पर कुछ गलतियाँ नज़र-अंदाज़ कर दी जायें (क्योंकि ये लोग अभी प्रोफ़ेशनल नहीं हैं और साधन भी होम स्टूडियो के अपनाये हैं) तो इन युवाओं की मेहनत बेहद प्रभावशाली लगती है।


गीत समीक्षा

संगीत दिलों का उत्सव है ....

पहला गीत है “संगीत दिलों का उत्सव है…” इसे सजीव सारथी ने लिखा है और निखिल-चार्ल्स की जोड़ी ने इसकी धुन बनाई है। गीत की धुन कहीं धीमी, कहीं तेज लगती है, खासकर शुरुआत में जब मुखड़ा शुरु होने से पहले के वाद्य तो बेहतरीन बजते हैं, लेकिन “बेजान” शब्द ऐसा लगता है कि जल्दी-जल्दी में गा दिया गया हो, “बेजान” शब्द में यदि थोड़ा भी आलाप दिया जाता या उसे थोड़ा सा और लम्बा खींचा जाता तो और भी प्रभावशाली होता, इसी प्रकार दूसरी पंक्ति का अन्तिम शब्द “जब” यह भी जल्दी से समाप्त हुआ सा लगता है और अस्पष्ट सा सुनाई देता है। चूंकि यह अन्तिम शब्द है, जहाँ गीत की एक पंक्ति “लैण्ड” कर रही है और कई बार कर रही है, वह शब्द एकदम साफ़ होना चाहिये। गीत को पहली बार सुनते ही समझ में आ जाता है कि यह किसी दक्षिण भारतीय ने गाया है, क्योंकि हिन्दी उच्चारण का दोष तुरन्त सुनाई दे जाता है, यह नहीं होना चाहिये। कई जगह इस प्रकार की छोटी-छोटी गलतियाँ हैं, लेकिन पहली कोशिश के तौर पर इसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। मिथिला जी का स्वर भी काफ़ी दबा हुआ सा लगता है, जैसे कि हिचकिचाते हुए गाया गया हो, आवाज में जो खुलापन होना चाहिये वह फ़िलहाल नदारद है। गीत की धुन अच्छी बन पड़ी है और हमें केरल के बैकवाटर में ले जाती है। गीत पर “येसुदास इफ़ेक्ट” को भी साफ़ महसूस किया जा सकता है। कुल मिलाकर देखा जाये तो कुछ बिन्दुओं को छोड़कर गीत को दस में से छः अंक दिये जा सकते हैं।

संगीत दिलों का उत्सव है... को पहले निर्णायक द्वारा मिले 6 /10 अंक, कुल अंक अब तक 6 /10

बढे चलो.

दूसरा गीत है “बढ़े चलो…”, यह गीत अपेक्षाकृत बेहतर बन पड़ा है। संगीतकार ॠषि ने इस पर काफ़ी मेहनत की है, धुन जोशीली है और खासकर ढोल का आभास देती कोरस आवाजें एक उत्साह सा जगाती हैं। गीत में पुरुष आवाज कुछ बनावटीपन लिये हुए है, शायद संगीतकार ने अधिक जोश भरने के लिये गायक की आवाज में परिवर्तन करवाया है, ऐसा प्रतीत होता है। बताया गया है कि यह गीत कुछ छः माह में तैयार हुआ है, जो कि स्वाभाविक भी है, इतने लोगों को विभिन्न जगहों से नेट पर एकत्रित करके इस प्रकार का उम्दा काम निकलवाना अपने आप में एक जोरदार प्रयास है और इसमें पूरी टीम सफ़ल भी हुई है और हमें एक बेहतरीन गाना दिया है। गीत के बोल तो युवाओं का प्रतिनिधित्व करते ही हैं, बीच-बीच में दी गई “बीट्स” भी उत्तेजना पैदा करने में सक्षम हैं। इस गीत को मैं दस में सात अंक दे सकता हूँ।

बढे चलो, को पहले निर्णयक से अंक मिले 7 / 10, कुल अंक अब तक 7 /10.

आवारा दिल.

तीसरा गीत है, “आवारा दिल…”। समीक्षा के लिये प्रस्तुत चारों गीतों में से यह सर्वश्रेष्ठ है। संगीतकार सुभोजित ने इसमें जमकर मेहनत की है। युवाओं को पसन्द आने वाली सिसकारियों सहित, तेज धुन बेहद “कैची” (Catchy) बन पड़ी है। “आवारा दिल” में “ल्ल्ल्ल्ल” कहने का अन्दाज बहुत ही अलहदा है, इसी प्रकार की वेरियेशन अन्य गायकों और संगीतकारों से अपेक्षित है, इस गीत में रोमांस छलकता है, एक साफ़ झरने सा बहता हुआ। सारथी के शब्द भी अच्छे हैं, और गायक की आवाज और उच्चारण एकदम स्पष्ट हैं। हालांकि कई जगह दो लाइनों और दो शब्दों के बीच में साँस लेने की आवाज आ जाती है, लेकिन कुल मिलाकर इस गीत को मैं दस में से आठ अंक देता हूँ।

आवारा दिल, को पहले निर्णायक से मिले 8 / 10, कुल अंक अब तक 8 / 10.


तेरे चेहरे पे ...

आखिरी गीत एक गज़ल है “तेरे चेहरे पे…”। यह गज़ल पूर्णरूप से गज़ल के “मूड” में गाई गई है, निशांत की आवाज़ में एक विशिष्ट रवानगी है, उनका उर्दू तलफ़्फ़ुज़ भी काफ़ी अच्छा है। उनकी आवाज़ को परखने के लिये अभी उनका और काम देखना होगा, लेकिन गज़ल के “मीटर” पर उनकी आवाज़ फ़िट बैठती लगती है। गज़ल के बोलों की बात करें तो यह काफ़ी छोटी सी लगती है, ऐसा लगता है कि शुरु होते ही खत्म हो गई। काफ़िया कहीं-कहीं नहीं मिल रहा, लेकिन इसे नज़र-अंदाज़ किया जा सकता है क्योंकि यह आजकल का “ट्रेंड” है। गज़ल की धुन ठीक बन पड़ी है, हालांकि यह एक “रूटीन” सी धुन लगती है और “कुछ हट के” चाहने वालों को निराश करती है। फ़िर भी यह एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है। इसे मैं दस में से छः अंक देता हूँ।

तेरे चेहरे पे..., को पहले निर्णायक ने मिले 6 /10, कुल अंक अब तक 6 /10

चलते चलते...

जुलाई माह का स्टार सुभोजित / साठे की जोड़ी को घोषित किया जा सकता है, जिन्होंने सर्वाधिक प्रभावित किया है। प्रस्तुत समीक्षा युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिये है, जो छोटी-छोटी गलतियाँ गिनाई हैं उन्हें आलोचना नहीं, बल्कि एक स्वस्थ सुझाव माना जाये। युवाओं में जोश है और यही लोग नई तकनीक के पुरोधा हैं सो अगली बार इनसे और बेहतर की उम्मीद रहेगी। जाहिर है कि यह प्राथमिक प्रयास हैं, जैसे-जैसे संगीतकारों में अनुभव आयेगा वे और भी निखरते जायेंगे…

तो दोस्तों पहले निर्णायक के फैसले के बाद सुभोजित / सुबोध के गीत आवारा दिल है अब तक सबसे आगे, लेकिन बाकि दो निर्णायकों के निर्णय आने अभी बाकी हैं, पहले चरण के बाद कौन बाजी मारेगा, अभी कहना मुश्किल है, दूसरे समीक्षक की पारखी समीक्षा लेकर हम उपस्थित होंगे अगले रविवार को. हिंद युग्म, आवाज़ द्वारा संगीत के क्षेत्र में हो रहे इस महाप्रयास के लिए अपना बेशकीमती समय निकल कर, युवा कलाकारों को प्रोत्साहन/ मार्गदर्शन देने के उद्देश्य से आगे आए हमारे समीक्षकों के प्रति हिंद युग्म की पूरी टीम अपना आभार व्यक्त करती है.

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