Saturday, July 30, 2011

रफ़ी साहब की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजली एक चित्र-प्रदर्शनी के ज़रिये, चित्रकार हैं श्रीमती मधुछंदा चटर्जी



ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 52

ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' में। दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' ७०० अंक पूरे कर चुका है, और अब देखते ही देखते 'शनिवार विशेषांक' भी आज अपना एक साल पूरा कर रहा है। पिछले साल ३१ जुलाई की शाम हमनें इस साप्ताहिक स्तंभ की शुरुआत की थी 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' के रूप में, और उस पहले अंक में हमनें गुड्डो दादी का ईमेल शामिल किया था जो समर्पित था गायिका सुरिंदर कौर को। आज ३० जुलाई 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेषांक' की ५२ वी कड़ी में हम नमन कर रहे हैं गायकी के बादशाह मोहम्मद रफ़ी साहब को, जिनकी कल ३१ जुलाई को पुण्यतिथि है। लेकिन उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करने का ज़रिया जो हमने चुना है, वह ज़रा अलग हट के है। हम न उन पर कोई आलेख प्रस्तुत करने जा रहे हैं और न ही उन पर केन्द्रित कोई साक्षात्कार लेकर आये हैं। बल्कि हम प्रस्तुत कर रहे हैं एक चित्र-प्रदर्शनी। यह रफ़ी साहब के चित्रों की प्रदर्शनी ज़रूर है, लेकिन यह प्रदर्शनी खींची हुई तस्वीरों की नहीं है, बल्कि उनके किसी चाहने वाले की चित्रकारी है। रफ़ी साहब के चाहनेवालों की तादाद कम होना तो दूर, दिन ब दिन बढ़ती चली जा रही है। आज हम आपसे मिलवा रहे हैं कोलकाता निवासी श्रीमती मधुछंदा चटर्जी से, जो रफ़ी साहब की गायकी की दीवानी तो हैं ही, वो एक बहुत अच्छी चित्रकार भी हैं, जिन्होंने रफ़ी साहब की बिल्कुल जीवंत स्केचेस बना कर सब को चकित कर दिया है। उनका साक्षात्कार तो हम मधुछंदा जी की व्यक्तिगत कारणों की वजह से नहीं ले सके, पर उन्होंने इस अंक के लिए हमें एक संदेश लिख भेजा है, जिसे हम नीचे पेश कर रहे हैं; पर उससे पहले आइए उनके बनाये रफ़ी साहब के स्केचेस की यह प्रदर्शनी देख लें।

निम्न लिंक पर क्लिक कीजिये और एक अलग विंडो में इन चित्रों को देखिये
चित्र प्रदर्शनी

कहिये यह चित्र-प्रदर्शनी कैसी लगी दोस्तों? अब रफ़ी साहब के लिए मधुछंदा जी के शब्दों की कलाकारी भी आज़मा लीजिये...

बड़े रूप में देखने के लिए चित्र पर क्लिक कीजिये


मधुछंदा जी ने ख़ास 'हिंद-युग्म आवाज़' के पाठकों के लिए जो संदेश लिख भेजा है, आइए अब उसी संदेश को पढ़ा जाये...

"रफ़ी साहब के लिए यही कह सकती हूँ कि वो सब से महान गायक थे, एक बहुत ही सीधे-सच्चे इंसान, बहुत ही नरम दिल, कम बात करने वाले शांत प्रकृति के इंसान। मुझे गर्व है कि मैं उनका फ़ैन हूँ और हमेशा रहूँगी। और उनकी गायकी? हर किसी को पता है कि फ़िल्म-संगीत के तमाम लेजेन्ड्स उन्हें सब से महान गायक मानते हैं। जहाँ तक मेरी चित्रकारी की बात है, मैंने कहीं से सीखा नहीं। यह तो बस मेरा शौक़ है और जब भी कभी समय मिल पाता है, मैं चित्रकारी करती हूँ।"

तो दोस्तों, यह थे मधुछंदा जी का संदेश, और आइए अब आज का यह अंक समाप्त करने से पहले रफ़ी साहब को श्रद्धांजली स्वरूप सुनते हैं मोहम्मद अज़ीज़ का गाया हुआ फ़िल्म 'क्रोध' का गीत "न फ़नकार तुझसा तेरे बाद आया, मुहम्मद रफ़ी तू बहुत याद आया"। 'हिंद-युग्म आवाज़' परिवार की तरफ़ से रफ़ी साहब की पुण्यतिथि की पूर्वसंध्या पर उन्हें श्रद्धा सुमन।

गीत - मुहम्मद रफ़ी तू बहुत याद आया (क्रोध)


और अब एक विशेष सूचना:

२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

अभिषेक ओझा की कहानी "प्रेम गली अति..."



'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी "गुरुर्ब्रह्मा ..." का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अभिषेक ओझा की कहानी "प्रेम गली अति...", उन्हीं की आवाज़ में।

कहानी "प्रेम गली अति..." का कुल प्रसारण समय 6 मिनट 52 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

इस कथा का टेक्स्ट ओझा-उवाच पर उपलब्ध है।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।


वास्तविकता तो ये है कि किसे फुर्सत है मेरे बारे में सोचने की, लेकिन ये मानव मन भी न!
~ अभिषेक ओझा

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी
"...ठीक ऐसी ही ठंढ थी... उसे गुस्सा आ रहा था। एक तो उसे ठंड पसंद नहीं थी ऊपर से बर्फ... और ये लड़की। "
(अभिषेक ओझा की "प्रेम गली अति..." से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)

यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
VBR MP3
#138th Story, Prem Gali Ati : Abhishek Ojha/Hindi Audio Book/2011/19. Voice: Abhishek Ojha

Thursday, July 28, 2011

मेघा बरसने लगा है आज की रात...राग "जयन्ती मल्हार" पर आधारित एक आकर्षक गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 710/2011/150

र्षा गीतों पर आधारित श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ| इस श्रृंखला का समापन हम राग "जयन्ती मल्हार" और इस राग पर आधारित एक आकर्षक गीत से करेंगे| परन्तु आज के राग और गीत पर चर्चा करने से पहले संगीत के रागों और फिल्म-संगीत के बारे में एक तथ्य की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है| शास्त्रीय संगीत में रागानुकुल स्वरों की शुद्धता आवश्यक होती है| परन्तु सुगम और फिल्म संगीत में रागानुकुल स्वरों की शुद्धता पर कड़े प्रतिबन्ध नहीं होते| फिल्मों के संगीतकार का ज्यादा ध्यान फिल्म के प्रसंग और चरित्र की ओर होता है| इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये गए दो गीतों को छोड़ कर शेष गीतों में एकाध स्थान पर राग के निर्धारित स्वरों में आंशिक मिलावट की गई है; इसके बावजूद राग का स्पष्ट स्वरुप इन गीतों में नज़र आता है| गीतों को चुनने में यही सावधानी बरती गई है|


आज हमारी चर्चा में राग "जयन्ती मल्हार" है| वर्षा ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले रागों में "जयन्ती मल्हार" भी एक प्रमुख राग है| राग के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह "जयजयवन्ती" और "मल्हार" के मेल से बनता है| वैसे राग "जयजयवन्ती" स्वतंत्र रूप से वर्षा ऋतु के परिवेश को रचने में समर्थ है| राग "जयजयवन्ती" की विलम्बित त्रिताल की एक प्रचलित रचना के शब्दों पर ध्यान दीजिए, इससे आपको राग की क्षमता का अनुमान हो जाएगा|

दामिनि दमके, डर मोहे लागे| उमगे दल-बादल श्याम घटा|
लिख भेजो सखि, उस नंदन को, मेरी खोल किताब देखो बिथा|


"जयजयवन्ती" के साथ जब "मल्हार" का मेल हो जाता है, तब इस राग से अनुभूति और अधिक मुखर हो जाती है| राग "जयन्ती मल्हार" के पूर्वांग में "जयजयवन्ती" और उत्तरांग में "मल्हार" की प्रधानता रहती है| इस राग के आरोह-अवरोह में कोमल और शुद्ध, दोनों निषाद का प्रयोग होता है| अवरोह में कोमल और शुद्ध गान्धार का प्रयोग "मल्हार"का गुण प्रदर्शित करता है| "जयजयवन्ती" की तरह "जयन्ती मल्हार" का वादी स्वर ऋषभ और संवादी स्वर पंचम होता है|

आज हम राग "जयन्ती मल्हार" पर आधारित एक प्यारा सा गीत, जिसे हम आपके लिए लेकर आए हैं वह 1976 में प्रदर्शित फिल्म "शक" से लिया गया है| विकास देसाई और अरुणा राजे द्वारा निर्देशित इस फिल्म के संगीत निर्देशक बसन्त देसाई थे| इस श्रृंखला में बसन्त देसाई द्वारा संगीतबद्ध किया यह तीसरा गीत है| श्रृंखला की सातवीं कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्षाकालीन रागों पर आधारित सर्वाधिक गीत बसन्त देसाई ने ही संगीतबद्ध किया है| हालाँकि जिस दौर की यह फिल्म है, उस अवधि में बसन्त देसाई का रुझान फिल्म संगीत से हट कर शिक्षण संस्थाओं में संगीत के प्रचार-प्रसार की ओर अधिक हो गया था| फिल्म संगीत का मिजाज़ भी बदल गया था| परन्तु उन्होंने बदले हुए दौर में भी अपने संगीत में रागों का आधार नहीं छोड़ा| फिल्म "शक" बसन्त देसाई की अन्तिम फिल्म साबित हुई| फिल्म के प्रदर्शित होने से पहले एक लिफ्ट दुर्घटना में उनका असामयिक निधन हो गया| फिल्म "शक" का राग "जयन्ती मल्हार" के स्वरों पर आधारित जो गीत हम सुनवाने जा रहे हैं, उसके गीतकार हैं गुलज़ार और इस गीत को स्वर दिया है आशा भोसले ने| आइए सुनते हैं यह रसपूर्ण गीत-



इसी गीत के साथ "ओल्ड इज गोल्ड" की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" को यहीं विराम लेने के लिए कृष्णमोहन मिश्र को अनुमति दीजिए| इस श्रृंखला में जिन वर्षाकालीन रागों को हमने सम्मिलित किया है, उनके परिचय में सहयोग देने के लिए मैं जाने-माने "इसराज" वादक, वैदिककालीन वाद्य "मयूर वीणा" के अन्वेषक-वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र का ह्रदय से आभारी हूँ| आपको यह श्रृंखला कैसी लगी, हमें अवगत अवश्य कराएँ|

क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार बसन्त देसाई ने कई वृत्तचित्रों में भी संगीत दिया था| फारेस्ट जड के चर्चित वृत्तचित्र "मानसून" में मल्हार-प्रेमी बसन्त देसाई ने संगीत देकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की थी|

आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - ये फिल्म एक क्लास्सिक का दर्जा रखती है हिंदी फिल्म इतिहास में.
सूत्र २ - एक मशहूर लेखक की किताब पर आधारित इस फिल्म के इस गीत को स्वर दिया था रफ़ी साहब ने.
सूत्र ३ - इस दर्द भरे गीत का पहला अंतरा शुरू होता है इस शब्द से - "प्यार"

अब बताएं -
गीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म के निर्देशक बताएं - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
कड़े मुकाबले में एक बार फिर अमित जी विजयी बनकर निकले हैं, बहुत बधाई, साथ में क्षति जी को भी बधाई जिन्होंने जम कर मुकाबला किया, इस बार की पहेली में भाग लेने के लिए सभी श्रोताओं का आभार, ये अब तक का सबसे रोचक मुकाबला रहा.

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, July 27, 2011

अंग लग जा बालमा..."मेघ मल्हार" के सुरों से वशीभूत नायिका का मनुहार



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 709/2011/149

"ओल्ड इज गोल्ड" पर जारी वर्षाकालीन रागों पर आधारित गीतों की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार फिर उपस्थित हूँ| आज एक बार फिर हम राग "मेघ मल्हार" पर चर्चा करेंगे और उसके बाद इसी राग पर आधारित, श्रृंगार रस से सराबोर संगीतकार शंकर-जयकिशन की एक संगीत रचना का आनन्द लेंगे| श्रृंखला की पहली कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि राग "मेघ मल्हार" एक प्राचीन राग है| संगीत शास्त्र के प्राचीन ग्रन्थों में इस राग को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है| आचार्य लोचन के ग्रन्थ "राग तरंगिणी" में रागों के वर्गीकरण के लिए जिन 12 थाटों का वर्णन है, उनमे एक थाट "मेघ" भी है| प्राचीन राग-रागिनी पद्यति में भी छह मुख्य रागों में "मेघ" भी है| पण्डित विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा वर्गीकृत थाट व्यवस्था में यह राग काफी थाट के अन्तर्गत आता है| भातखंडे जी ने "संगीत शास्त्र" के चौथे खण्ड में लिखा है कि राग "मेघ मल्हार" उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में बहुत कम विद्वानों द्वारा प्रयोग किया जाता था, जबकि यह जटिल राग नहीं है| विदुषी शोभा राव ने अपनी पुस्तक "राग निधि" के तीसरे खण्ड में राग "मेघ" और "मेघ मल्हार" को एक ही राग का दो नाम माना है| वर्षाकालीन रागों में यह राग सबसे गम्भीर प्रकृति का होने से विरह-वेदना की अभिव्यक्ति के लिए इस राग के स्वर उपयुक्त होते हैं| कविवर बिहारी ने अपने एक दोहे में राग "मेघ मल्हार" के स्वभाव का बड़ा सटीक चित्रण किया है-

पावक झर तें मेह झर, दाहक दुसह बिसेख,
दहै देह वाके परस, याहि दृगन ही देख |


दोस्तों; बिहारी के इस दोहे की नायिका जिस प्रकार विरह की अग्नि से पीड़ित है, ठीक वैसी ही दशा आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत के नायिका की भी है| आज का गीत हमने 1970 में प्रदर्शित राज कपूर की बेहद महत्वाकांक्षी फिल्म "मेरा नाम जोकर" से लिया है| हसरत जयपुरी के शब्दों और शंकर-जयकिशन द्वारा राग "मेघ मल्हार" के स्वरों का आधार लेकर संगीतबद्ध किये गीत -"कारे कारे बदरा, सुनी सुनी रतियाँ..." को आशा भोसले ने स्वर दिया| सातवें दशक के अन्तिम वर्षों में जब फिल्म "मेरा नाम जोकर" का निर्माण हुआ था, उन दिनों फिल्म संगीत के क्षेत्र में शंकर-जयकिशन यश के शिखर पर थे| फिल्म में उन्होंने एक से एक बढ़ कर सदाबहार गीतों की रचना की थी, इसके बावजूद राज कपूर की यह भव्य परिकल्पना टिकट खिड़की पर असफल ही रही| इस गीत के अलावा फिल्म के अन्य गीतों की रचना भी स्तरीय रही| राग शिवरंजनी पर आधारित -"जाने कहाँ गए वो दिन..." और मन्ना डे की आवाज़ में गाया हुआ गीत -"ऐ भाई जरा देख के चलो..." इस फिल्म के सर्वाधिक लोकप्रिय गीत थे| "जाने कहाँ गए..." गीत के लिए मन्ना डे को पहला फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ था| आज प्रस्तुत किये जाने वाले गीत "कारे कारे बदरा..." में वर्षा ऋतु की ध्वनियों का बड़ा प्रभावी प्रयोग किया गया है| आइए हम सब आज इसी रसपूर्ण गीत का आनन्द लेते हैं-
राग मेघ मल्हार : "कारे कारे बदरा सूनी सूनी रतियाँ..." : फिल्म - मेरा नाम जोकर



क्या आप जानते हैं...
कि फिल्म "मेरा नाम जोकर" का यह गीत आर.के. कैम्प की सर्वप्रमुख गायिका लता मंगेशकर को ही गाना था, किन्तु लता जी ने गीत के शब्दों पर आपत्ति की थी| राज कपूर ने गीत या गीत के शब्द तो नहीं बदले, हाँ; पहली बार ("आग" को छोड़ कर) अपनी फिल्म में लता जी की आवाज़ नहीं ली|

आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - एक सुरीले संगीतकार (इनके दो गीत पहले ही इस शृंखला में बज चुके हैं)की अंतिम फिल्म थी ये.
सूत्र २ - गायिका आशा जी हैं.
सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है - "रात"

अब बताएं -
गीतकार बताएं - २ अंक
किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
शृंखला खतम होने की कगार पर है, और अमित जी एक अंक से आगे निकल गए हैं, देखना दिलचस्प होगा कि क्या क्षिति जी इस बार उन्हें मात दे पाती है या नहीं

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, July 26, 2011

छाई बरखा बहार...राग सूर मल्हार के स्वरों का जादू



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 708/2011/148

र्षा ऋतु के रागों पर आधारित गीतों की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की आठवीं कड़ी में एक बार फिर आपका हार्दिक स्वागत है| दोस्तों; इन दिनों हम प्रकृति के रंग-रस से सराबोर ऐसे गीतों की महफ़िल सजा रहें हैं, जो शब्दों और स्वरों के माध्यम से बाहर हो रही वर्षा के साथ जुगलबन्दी कर रहें हैं| यह पावस के रागों का सामर्थ्य ही है कि इनके गायन-वादन से परिवेश आँखों के सामने उपस्थित हो जाता है| वर्षा ऋतु का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करने वाला एक और राग है- "सूर मल्हार"| आज हम आपको इसी राग का संक्षिप्त परिचय कराते हुए राग आधारित गीत भी सुनवाने जा रहें हैं|

यह मान्यता है कि राग "सूर मल्हार" के स्वरों की संरचना भक्त कवि सूरदास ने की थी| इस राग को "सूरदासी मल्हार" भी कहा जाता है| इस राग में सारंग और मल्हार का मेल होता है| काफी थाट के इस राग की गणना मल्हार रागों के अन्तर्गत ही की जाती है| यह औडव-षाडव जाति का राग है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छह स्वरों का प्रयोग होता है| आरोह में शुद्ध गन्धार और शुद्ध धैवत का प्रयोग नहीं होता, किन्तु शुद्ध निषाद का प्रयोग होता है| अवरोह शुद्ध गन्धार रहित होता है, किन्तु कोमल निषाद और धैवत का अल्प प्रयोग किया जाता है| यदि राग "देस" के आरोह-अवरोह से शुद्ध गान्धार हटा दिया जाए तो राग "सूर मल्हार" स्पष्ट परिलक्षित होने लगता है, किन्तु ऐसी स्थिति में वादी-संवादी स्वर षडज-माध्यम के स्थान पर पंचम-ऋषभ हो जाता है|

राग "सूर मल्हार" के अविष्कारक भक्त कवि सूरदास के साहित्य में वात्सल्य के साथ-साथ श्रृंगार रस का अधिकाधिक प्रयोग मिलता है| श्रृंगार के संयोग पक्ष के लिए कृष्ण का अपार सौन्दर्य-युक्त मधुर रूप और रासलीला कारक है; वहीं वियोग पक्ष की अभिव्यक्ति के लिए कृष्ण का गोकुल से मथुरा जाना कारक है| जब गोपियों की आँखों से आँसू-वर्षा हो रही है, तब सूरदास ने मल्हार का सफल प्रयोग किया| नैनों के नीर की उपमा वर्षा ऋतु से कर सूर ने अद्भुत कल्पनाशीलता का परिचय दिया है| सूर-साहित्य से लिए गये ये दो उदाहरण देखें-

सखी इन नैननि तै घन हारे |
बिनहीं रितु बरसत निसि-वासर, सदा मलिन दोउ तारे |

इन नैनन के नीर सखी री, सेज भई घर नाँव,
चाहत हौं ताही पर चढ़ीके हरिजू के ढिंग जाँव|


आइए, अब कुछ चर्चा करते हैं राग "सूर मल्हार" पर आधारित आज के गीत के बारे में| आज का गीत 1969 में प्रदर्शित फिल्म "चिराग" का है| संगीतकार मदनमोहन यूँ तो ग़ज़लों की संगीत रचना में अद्वितीय थे परन्तु उनके संगीतबद्ध राग आधारित गीत भी गुणबत्ता की दृष्टि से अत्यन्त उत्कृष्ट हैं| आरम्भिक वर्षों में मदनमोहन ने राग "भैरवी" पर आधारित कई अच्छे गीतों की रचना की थी| इसके अलावा राग "पीलू" पर आधारित गीत -"मैंने रंग ली आज चुनरिया...", राग "मिश्र खमाज" पर आधारित गीत -"खनक गयो हाय बैरी कंगना...", राग "भीमपलासी" पर आधारित श्रेष्ठतम गीत -"नैनो में बदरा छाए..." आदि कभी न भुलाए जाने वाली रचनाएँ हैं| फिल्म "चिराग" के आज के गीत -"छाई बरखा बहार..." में भी मदनमोहन ने राग "सूर मल्हार" के स्वरों का बेहद आकर्षक प्रयोग किया है| मजरुह सुल्तानपुरी के लिखे, लता मंगेशकर और साथियों द्वारा गाये इस गीत की दो और विशेषताएँ भी हैं| इस गीत में शास्त्रीयता के साथ-साथ लोकरंग की छाया भी मौजूद है| दूसरी विशेषता यह है कि गीत में "कहरवा" ताल का चटक और फैलाव लिये हुए जैसा प्रयोग है वह गीत के श्रोता को थिरकने के लिए विवश कर देने में समर्थ है| यह गीत अभिनेत्री आशा पारेख और लोक नर्तकियों के समूह पर फिल्माया गया है| फिल्म के नायक सुनील दत्त हैं| आप रिमझिम फुहारों के बीच इस गीत का आनन्द लीजिए और आज मुझे यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए|



क्या आप जानते हैं...
कि संगीतकार मदनमोहन को पहला राष्ट्रीय पुरस्कार शास्त्रीय राग आधारित एक गीत पर ही मिला था| 1970 की फिल्म "दस्तक" के राग "चारुकेशी" की ठुमरी -"बैंया ना धरो..." की संगीत रचना के लिए उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया था|

आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - आशा जी का आग्रहपूर्ण स्वर है गीत में.
सूत्र २ - एक महान निर्देशक की महत्वकांक्षी फिल्म थी ये.
सूत्र ३ - पहला अंतरा शुरू होता है इस शब्द से - "आज"

अब बताएं -
गीतकार बताएं - ३ अंक
किस राग पर आधारित है ये गीत - २ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
हिन्दुस्तानी जी, वैसे तो ये जरूरी नहीं है कि रागों के नाम अमित जी या क्षिति जी को ही पता हों, पर फिर भी खास आपके लिए आज हमने राग के नाम को २ अंकों का प्रश्न बनाया है, गौर कीजिये कि पिछले कई अंकों से अमित जी राग के नाम से बचकर सेफ खेल रहे हैं, दरअसल ये शृंखला कृष्णमोहन जी खास रूप से वर्षा के रागों पर आधारित बनायीं है इसलिए वो अहम प्रश्न बनकर आता है. कल की पहेली में राग को लेकर कुछ शंकाएं थी, जिसे खुद कृष्ण मोहन जी दूर करना चाहते हैं अपने निम्न सन्देश के माध्यम से-
"सजीव जी,
फडके जी की प्रतिक्रिया को पढ़ा. उनके दिये विवरण का खण्डन या समर्थन न करते हुए केवल इतना ही कहना चाहता हूँ कि फिल्म गीतों में राग के स्वरों की शुद्धता कम ही होती है. मैंने अपने आलेख में जो सन्दर्भ सामग्री ली है उन पृष्ठों की jpg copy और उसके लिंक भेज रहा हूँ. श्री एस.एन. टाटा ने राग आधारित फ़िल्मी गीतों पर महत्वपूर्ण शोध किया है. उनके कार्य को देखते हुए उन्हें सरलता से नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता.

Raga-based Hindi Film Songs
http://www.indiapicks.com/SNT_Hindi/P-361.htm
http://www.indiapicks.com/SNT_Hindi/P-362.htm
"
चूँकि गीत का आरंभिक हिस्सा राग मल्हार (मियां की) पर है और मुख्या गाना सुर मल्हार पर, और हो सकता है कि अविनाश जी और सत्येंदर जी ने शुरू के हिस्से को सुनकर अनुमान लगाया हो, हम अविनाश जी और क्षिति जी दोनों को ही पूरे अंक देना चाहेंगें. अमित जी और सत्यजीत जी को भी बधाई.

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Monday, July 25, 2011

झिर झिर बरसे सावनी अँखियाँ...बरसती बौछारों में तन और मन का अंतरद्वंद



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 707/2011/147

पावस ऋतु के रागों पर आधारित फिल्म-गीतों की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ का आई रे घटा" की सातवीं कड़ी में सभी संगीतप्रेमी पाठकों-श्रोताओं का एक बार फिर; मैं कृष्णमोहन मिश्र सहर्ष अभिनन्दन करता हूँ| दोस्तों; इस श्रृंखला की तीसरी कड़ी में हमने आपको राग "गौड़ मल्हार" में निबद्ध एक बन्दिश का रसास्वादन कराया था| आज पुनः हम राग "गौड़ मल्हार" की विशेषताओं और प्रवृत्ति पर चर्चा करेंगे और इस राग पर आधारित एक मधुर गीत का रसास्वादन कराएँगे|

तीसरी कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि राग "गौड़ मल्हार" की संरचना सारंग और मल्हार अंग के मेल से हुई है| श्रावण (सावन) मास में अचानक आकाश पर बादल छा जाते हैं और मल्हार अंग के स्वाभाव के अनुरूप रिमझिम फुहारें मानव-मन को तृप्त करने में संलग्न हो जातीं हैं| कुछ ही देर में आकाश मेघ रहित हो जाता है और खुला आकाश सारंग अंग के अनुकूल अनुभूति कराने लगता है| अर्थात राग "गौड़ मल्हार" में दोनों प्रवृत्तियाँ मौजूद रहतीं हैं| इस राग के थाट के बारे में विद्वानों के बीच थोड़ा मतभेद है| कुछ विद्वान इसे खमाज थाट का, तो कुछ इसे काफी थाट के अन्तर्गत मानते हैं| इलाहाबाद के वरिष्ठ संगीतज्ञ पण्डित रामाश्रय झा राग "गौड़ मल्हार" को बिलावल थाट के अन्तर्गत मानते हैं| राग का वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है| राग में शुद्ध मध्यम के साथ कोमल निषाद का प्रयोग आनन्ददायक होता है|

इस राग की एक बड़ी प्यारी सी बन्दिश है जिसे कई सुप्रसिद्ध संगीतज्ञों ने तीनताल में निबद्ध कर प्रभावी ढंग से गाया है-
आए बदरा कारे कारे, हमरे कन्त निपट भए बारे,
ऐसे समय परदेश सिधारे |
एक तो मुरला वन में पुकारे, मोहे जरी को अधिक जरावे |
है कोई ऐसो, पियु को मिलावे; उड़जा पंछी, कौन बिसारे |


राग "गौड़ मल्हार" के इस द्रुत ख़याल में जैसा भाव व्यक्त होता है; ठीक वैसा ही भाव 1968 में प्रदर्शित फिल्म "आशीर्वाद" के हिट गीत -"झिर झिर बरसे सावनी अँखियाँ..." में भी उपस्थित है| इस फिल्म के संगीतकार बसन्त देसाई द्वारा राग "वृन्दावनी सारंग" के स्वरों में संगीतबद्ध एक गीत आप इस श्रृंखला की चौथी कड़ी में सुन चुके हैं| इस श्रृंखला के लिए गीतों का चयन करते समय मेरे लिए यह आश्चर्य का विषय रहा है कि वर्षाकालीन रागों पर आधारित फ़िल्मी गीतों में सर्वाधिक संख्या बसन्त देसाई के संगीतबद्ध किये गीतों की है| वह एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने संगीत की गुणबत्ता से कभी समझौता नहीं किया| सातवाँ दशक फिल्म संगीत के परिवर्तन का दौर था| इस दशक के अन्तिम वर्षों में बसन्त देसाई द्वारा संगीतबद्ध दो फ़िल्में- "रामराज्य" (1967) और "आशीर्वाद" (1968) प्रदर्शित हुई थी| इन दोनों फिल्मों में बसन्त देसाई ने बदलते दौर के बावजूद न तो शास्त्रीय और लोक संगीत का आधार छोड़ा और न वर्षा ऋतु के रागों के प्रति अपने मोह का त्याग कर पाए| फिल्म "रामराज्य" का राग "सूर मल्हार" पर आधारित गीत -"डर लागे चमके बिजुरिया..." तथा फिल्म "आशीर्वाद" का राग "गौड़ मल्हार" पर आधारित गीत -"झिर झिर बरसे सावनी अँखियाँ..." अपने दशक में जितने लोकप्रिय थे उतनी ही ताजगी से भरे आज भी लगते हैं|

आज हम आपको फिल्म "आशीर्वाद" का राग "गौड़ मल्हार" पर आधारित गीत सुनवाएँगे| गीतकार गुलज़ार के शब्द कहरवा ताल में निबद्ध है और इस गीत को लता मंगेशकर ने स्वर दिया है| फिल्म के निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी और संगीतकार बसन्त देसाई ने इस गीत के फिल्मांकन में अनूठा प्रयोग किया था| फिल्म के प्रसंग के अनुसार नायिका सुमिता सान्याल बाहर हो रही बरसात में नायक संजीव कुमार की प्रतीक्षा कर रही है| वह इसी गीत का रिकार्ड सुनना आरम्भ करती है और बीच बीच में कुछ पंक्तियाँ स्वयं भी गाती है| रिकार्ड का पूरा गीत तो लता मंगेशकर की आवाज़ में है ही; नायिका द्वारा दुहराई पंक्तियाँ भी उन्हीं की आवाज़ में है; जिसे मूल गीत के साथ जोड़ा गया है| आइए सुनते हैं, श्रावण मास का यथार्थ चित्र उकेरने वाला यह गीत-



क्या आप जानते हैं...
क्या आप जानते हैं...कि फिल्म "आशीर्वाद" के एक अन्य गीत -"एक था बचपन..." को लता जी ने बसन्त देसाई की इच्छानुसार नहीं गाया| इसके बाद 1971 की फिल्म "गुड्डी" में बिलकुल नई गायिका वाणी जयराम से महत्वाकांक्षी गीत -"बोले रे पपीहरा..." गवा कर बसन्त देसाई ने अपने ढंग से उस घटना का प्रतिवाद किया| कहने की आवश्यकता नहीं कि "गुड्डी" का यह गीत मल्हार अंग के रागों पर आधारित गीतों की सूची में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित है|

आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - फिल्म के नायक है सुनील दत्त.
सूत्र २ - गीत फिल्म की प्रमुख अभिनेत्री और उनकी सहेलियों पर फिल्माया गया है.
सूत्र ३ - आरंभ कोरस से होता है जिसमें शब्द आता है -"अंगना"

अब बताएं -
किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
गीतकार कौन हैं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
क्षिति जी अब एक अंक से ही आगे हैं मात्र, अमित जी बढ़िया खेल रहे हैं...पंकज जी क्या बात है क्या पकड़ा है आपने :)

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Sunday, July 24, 2011

नाच मेरे मोर जरा नाच...कम चर्चित संगीतकार शान्ति कुमार देसाई की रचना



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 706/2011/146

"ओल्ड इज गोल्ड" पर जारी श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की छठीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः उपस्थित हूँ| आज हम आपके लिए एक बेहद मधुर राग और उतना ही मधुर गीत लेकर आए हैं| दोस्तों; आज का राग है "मियाँ की मल्हार" | इस राग पर आधारित कुछ चर्चित गीत -"बोले रे पपीहरा..." (फिल्म - गुड्डी) और -"भय भंजना वन्दना सुन हमारी..." (फिल्म - बसन्त बहार) आप "ओल्ड इज गोल्ड" की पूर्व श्रृंखलाओं में सुन चुके हैं| इसी राग पर आधारित एक और सुरीला गीत आज हम आपको सुनवाएँगे, परन्तु उससे पहले थोड़ी चर्चा राग "मियाँ की मल्हार" पर करते हैं|

राग "मियाँ की मल्हार" एक प्राचीन राग है| यह तानसेन के प्रिय रागों में से एक है| कुछ विद्वानों का मत है कि तानसेन ने कोमल गान्धार तथा शुद्ध और कोमल निषाद का प्रयोग कर इस राग का सृजन किया था| यह राग काफी थाट का और षाडव-सम्पूर्ण जाति का राग है| अर्थात; आरोह में छह और अवरोह में सात स्वर प्रयोग किये जाते हैं| आरोह में शुद्ध गान्धार का त्याग, अवरोह में कोमल गान्धार का प्रयोग तथा आरोह-अवरोह दोनों में शुद्ध और कोमल दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है| आरोह में शुद्ध निषाद से पहले कोमल निषाद तथा अवरोह में शुद्ध निषाद के बाद कोमल निषाद का प्रयोग होता है| राग "मियाँ की मल्हार", राग "बहार" के काफी निकट है| इन दोनों रागों को एक के बाद दूसरे का गायन-वादन कठिन होता है, किन्तु उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने एक बार ऐसा प्रयोग कर श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया था| राग "मियाँ की मल्हार" के स्वरों में प्रकृति के मनमोहक चित्रण की तथा विरह-पीड़ा हर लेने की अद्भुत क्षमता है| महाकवि कालिदास रचित "मेघदूत" के पूर्वमेघ, नौवें श्लोक का काव्यानुवाद करते हुए हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि डा. ब्रजेन्द्र अवस्थी कहते हैं-

गिनती दिन जोहती बार जो व्याकुल अर्पित जीवन सारा लिए
प्रिया को लखोगे घन निश्चय ही गतिमुक्त अबाधित धारा लिए
सुमनों-सा मिला ललनाओं को है मन प्रीतिमरंद जो प्यारा लिए
विरहानल में जल के रहता मिलनाशा का एक सहारा लिए |


वास्तव में पावस के उमड़ते-घुमड़ते मेघ, विरह से व्याकुल नायक- नायिकाओं की विरहाग्नि को शान्त करते हैं और मिलन की आशा जगाते हैं| वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण करने की अद्भुत क्षमता भी राग "मियाँ की मल्हार" के स्वरों में है| इस राग पर आधारित और वर्षाकालीन परिवेश का कल्पनाशील चित्रण करता आज का गीत हमने 1964 में प्रदर्शित फिल्म "तेरे द्वार खड़ा भगवान" से चुना है| इस फिल्म की संगीत रचना शान्ति कुमार देसाई नामक एक ऐसे संगीतकार ने की थी, जिनके बारे में आज की पीढ़ी प्रायः अनजान ही होगी| 1934 में चुन्नीलाल पारिख द्वारा निर्देशित फिल्म "नवभारत" से संगीतकार शान्ति कुमार देसाई का फिल्मों में पदार्पण हुआ था| उनके संगीत निर्देशन में कई देशभक्ति गीत अपने समय में बेहद लोकप्रिय हुए थे| शान्ति कुमार देसाई ने अधिकतर स्टंट और धार्मिक फिल्मों में संगीत रचनाएँ की थी| पाँचवें दशक के अन्तिम वर्षों में नई धारा के वेग में उखड़ जाने वाले संगीतकारों में श्री देसाई भी थे| लगभग एक दशक तक गुमनाम रहने के बाद 1964 में फिल्म "तेरे द्वार खड़ा भगवान" के गीतों में फिर एक बार उनकी प्रतिभा के दर्शन हुए| अभिनेता शाहू मोदक और अभिनेत्री सुलोचना अभिनीत इस फिल्म में शान्ति कुमार देसाई ने राग "मियाँ कि मल्हार" के स्वरों में बेहद कर्णप्रिय गीत -"नाच मेरे मोर जरा नाच..." की संगीत रचना की थी| वर्षाकालीन प्रकृति का मनमोहक चित्रण करते पण्डित मधुर के शब्दों को श्री देसाई ने सहज-सरल धुन में बाँधा था| पूरा गीत दादरा ताल में निबद्ध है; किन्तु अन्त में द्रुत लय के तीनताल का टुकड़ा गीत का मुख्य आकर्षण है| मींड और गमक से परिपूर्ण मन्नाडे के स्वर तथा सितार, ढोलक और बाँसुरी का प्रयोग भी गीत की गुणबत्ता को बढ़ाता है| आइए; सुनते हैं, राग "मियाँ की मल्हार" पर आधारित फिल्म "तेरे द्वार खड़ा भगवान" का यह गीत-



क्या आप जानते हैं...
कि मराठी फिल्म "रायगढ़" (१९४०) में शान्ति कुमार देसाई ने लता मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर के साथ संगीत निर्देशन किया था|

आज के अंक से पहली लौट रही है अपने सबसे पुराने रूप में, यानी अगले गीत को पहचानने के लिए हम आपको देंगें ३ सूत्र जिनके आधार पर आपको सही जवाब देना है-

सूत्र १ - फिल्म के नायक है संजीव कुमार.
सूत्र २ - लता की आवाज़ में है गीत.
सूत्र ३ - मुखड़े में शब्द है -"बसंती".

अब बताएं -
किस राग पर आधारित है ये गीत - ३ अंक
फिल्म की नायिका कौन है - २ अंक
गीतकार कौन हैं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी, अविनाश जी और हिन्दुस्तानी जी बहुत बधाई

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

सुर संगम में आज - सगीत शिरोमणि कुमार गन्धर्व



सुर संगम - 30 - पंडित कुमार गंधर्व

वे अपने गायन में छोटे-छोटे व सशक्त टुकड़ों व तानों के प्रयोग के लिए जाने जाते थे परंतु कैंसर से जूझने के कारण उनकी गायकी में काफ़ी प्रभाव पड़ा

"मोतिया गुलाबे मरवो... आँगना में आछो सोहायो
गेरा गेराई चमेली... फुलाई सुगंधा मोहायो..."


उपरोक्त पंक्तियाँ हैं एक महान शास्त्रीय गायक की रचना के| एक ऐसा नाम जिसे शास्त्रीय भजन गायन में सर्वोत्तम माना गया है, कुछ लोगों का मानना है कि वे लोक संगीत व भजन के सर्वोत्तम गायक थे तो कुछ का मानना है कि उनकी सबसे बहतरीन रचनाएँ हैं उनके द्वारा रचित राग जिन्हें वे ६ से भी अधिक प्रकार के ले व तानों को मिश्रित कर प्रस्तुत करते थे| मैं बात करा रहा हूँ महान शास्त्रीय संगीतज्ञ पंडित कुमार गंधर्व की जिन्हें इस अंक के माध्यम से सुर-संगम दे रहा है श्रद्धांजलि|

कुमार गंधर्व का जन्म बेलगाम, कर्नाटक के पास 'सुलेभवि' नामक स्थान में ८ अप्रैल १९२४ को हुआ, माता-पिता ने नाम रखा ' शिवपुत्र सिद्दरामय्या कोमकलीमठ'| उन्होंने संगीत की शिक्षा उन दिनों जाने-माने संगीताचार्य प्रो. बी. आर. देवधर से ली| बाल्यकाल से ही संगीत में असाधारण प्रतिभा दिखाने के कारण उन्हें 'कुमार गंधर्व' शीर्षक दिया गया - भारतीय पुराणों में गंधर्व को संगीत का देवता माना गया है| उन्होंने १९४७ में भानुमति कांस से विवाह किया तथा देवास, मध्य प्रदेश चले गये| कुछ समय पश्चात वे बीमार रहने लगे तथा टीबी की चिकित्सा शुरू की गयी| चिकित्सा का कोई असर न होने पर उन्हें पुनः जाँचा गया और उनमें फेफड़े का कैंसर पाया गया| कुमार अपने परिवार के अनुनय पर सर्जरी के लिए मान गये जबकि उन्हें भली-भाँति बता दिया गया था की संभवत: सर्जरी के बाद वे कभी न गा सकेंगे| सर्जरी के बाद उनके एक प्रशंसक उनसे मिलने आए जो एक चिकित्सक भी थे| जाँचने पर उन्होंने पाया कि कुमार के सर्जरी के घाव भर चुके हैं तथा उन्हें गायन प्रारंभ करने की सलाह दी| प्रशंसक डाक्टर की चिकित्सा व आश्वासन तथा पत्नी भानुमति की सेवा से पंडित गंधर्व स्वस्थ हो उठे तथा उन्होंने गायन पुनः प्रारंभ किया| तो ये थी बातें पंडित गंधर्व के व्यक्तिगत जीवन की, उनके बारे में और जानने से पहले लीजिए आपको सुनाते हैं उनके द्वारा प्रस्तुत राग नंद में यह सुंदर बंदिश|

राजन अब तो आजा रे - बंदिश(राग नंद)


स्वस्थ होने के पश्चात कुमारजी ने अपनी पहली प्रस्तुति दी वर्ष १९५३ में| इससे पहले वे अपने गायन में छोटे-छोटे व सशक्त टुकड़ों व तानों के प्रयोग के लिए जाने जाते थे परंतु कैंसर से जूझने के कारण उनकी गायकी में काफ़ी प्रभाव पड़ा, वे उस समय के दिग्गज जैसे पं. भिमसेन जोशी की भाँति उन ऊँचाईयो को तो न छू सके परंतु अपने लिए एक अलग स्थान अवश्य बना पाए| शास्त्रीय गायन के साथ-साथ उन्होंने कई और भी प्रकार के संगीत जैसे निर्गुणी भजन तथा लोक गीतों में अपना कौशल दिखाया जिनमें वे अलग अलग रागों की मिश्रित कर, कभी धीमी तो कभी तीव्र तानों का प्रयोग कर एक अद्भुत सुंदरता ले आते थे| आइए सुनें उनके द्वारा प्रस्तुत ऐसे ही एक निर्गुणी भजन को जिसे उन्होंने गाया है राग भैरवी पर, भजन के बोल हैं - "भोला मन जाने अमर मेरी काया..."|

भोला मन जाने अमर मेरी काया - भजन (राग भैरवी)


पंडित गंधर्व का गायन विवादास्पद भी रहा| विशेष रूप से उनकी विलंबित गायकी की कई दिग्गजों ने, जिनमें उनके गुरु प्रो. देवधर भे शामिल थे, ने निंदा की| १९६१ में उनकी पत्नी भानुमति का निधन हो गया, उनसे कुमार को एक पुत्र हुआ| इसके पश्चात उन्होंने देवधर की ही एक और छात्रा वसुंधरा श्रीखंडे के साथ विवाह किया जिनके साथ आयेज चलकर उन्होंने भजन जोड़ी बनाई| कुमारजी को वर्ष १९९० में पद्म-भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया| दुर्भाग्यपूर्ण, १२ जनवरी ११९२ को ६७ वर्ष की आयु में उनका देहांत हो गया परंतु पंडित जी अपने पीछे छोड़ गये अपनी रचनाओं की एक बहुमूल्य विरासत| आइए उन्हें नमन करते हुए तथा इस अंक को यहीं विराम देते हुए सुने उनके द्वारा गाए इस वर्षा गीत को इस वीडियो के माध्यम से|
वर्षा गीत


और अब बारी है इस कड़ी की पहेली की जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से अधिक अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।

पहेली: यह पारंपरिक लोक संगीत शैली उत्तर-प्रदेश में वर्षा ऋतु के समय गायी जाती है|

पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित जी को बधाई| क्षिति जी कहाँ ग़ायब हैं???

अब समय आ चला है आज के 'सुर-संगम' के अंक को यहीं पर विराम देने का। आशा है आपको यह प्रस्तुति पसन्द आई होगी। हमें बताइये कि किस प्रकार हम इस स्तंभ को और रोचक बना सकते हैं!आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। शाम ६:३० बजे कृष्णमोहन जी के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!

प्रस्तुति - सुमित चक्रवर्ती


आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.

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