Saturday, September 17, 2011

भारत में ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड की शुरुआत



ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 59

यूं तो ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के बारे में हम सभी को जानकारी है, लेकिन ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड की सटीक परिभाषा क्या है? विकिपीडिआ में इसकी परिभाषा कुछ इस तरह से दी गई है - "A gramophone record, also known as a phonograph record, is an analogue sound storage medium consisting of a flat disc with an inscribed modulated spiral groove starting near the periphery and ending near the center of the disc." ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के कई प्रकार हैं जैसे कि एल.पी रेकॉर्ड (LP, 33, or 33-1/3 RPM), ई.पी रेकॉर्ड (EP, 16-2/3 RPM), 45 RPM रेकॉर्ड और 78 RPM रेकॉर्ड। 78 RPM रेकॉर्ड वह रेकॉर्ड है जो प्रति मिनट ७८ बार अपनी धूरी पर घूमती है। एल.पी का अर्थ है 'लॉंग प्ले' तथा ई.पी का अर्थ है 'एक्स्टेण्डेड प्ले'। एल.पी, 16 और 45 RPM रेकॉर्डों का निर्माण पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC) से होता था, जिस वजह से इन्हें विनाइल रेकॉर्ड भी कहते हैं। 'सोसायटी ऑफ़ इण्डियन रेकॉर्ड कलेक्टर्स मुंबई' के सुरेश चंदावरकर नें बहुत अच्छी तरह से भारत में ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के विकास को अपने लेख 'इण्डियन ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स - दि फ़र्स्ट १०० यीअर्स' में क़ैद किया है। थॉमस आल्वा एडिसन (जिन्होंने ईलेक्ट्रिक बल्ब का भी आविष्कार किया था) नें १८७७ में 'सीलिंडर फ़ोनोग्राफ़' का आविष्कार किया, जिसका भारत में पहला डेमो अगले ही साल १८७८ में दिया गया। रेकॉर्डिंग्‍कंपनियों में 'दि ग्रामोफ़ोन कंपनी' प्राचीनतम कंपनियों में से थीं, तथा इसका एक मुख्य लेबल था 'हिस मास्टर्स वॉयस', जिसे हम HMV के नाम से जानते हैं। भारत में इसकी स्थापना हुई १८९५ में। HMV के पहले डीलर थे दिल्ली के 'महाराजा लाल ऐण्ड को'। उन दिनों यह डीलर सीलिंडर रेकॉर्ड्स बेचा करते थे, जो मार्केट में चली तकरीबन १९१० के आसपास तक। आज ये रेकॉर्ड्स नष्ट हो चुकी हैं, बस एक रेकॉर्ड अभी ज़िंदा है और वह है कविगुरु रबीन्द्रनाथ ठाकुर की आवाज़ में "वन्देमातरम" का।

हैनोवर, जर्मनी के एमिल बर्लिनर नें सीलिंडर की जगह एक फ़्लैट ज़िंक-डिस्क के इस्तमाल से फ़ोनोग्राफ से बहतर एक मशीन का निर्माण किया। मास्टर डिस्क से असंख्य प्रतियाँ रेकॉर्ड करने का यह आसान ज़रिया साबित हुआ जिसकी बाज़ार में व्यावसायिक मूल्य बहुत अधिक थी। इस तरह की ७ इंच डायमीटर वाली सिंगल-साइड डिस्क पर १८९९ में लंदन में पहले भारतीय की आवाज़ रेकॉर्ड हुई। ये 44 RPM की रेकॉर्ड्स थीं जिनमें आवाज़ें थीं कैप्टन भोलानाथ, डॉ. हरनामदास और अहमद की, जिन्होंने अलग अलग भाषाओं में कविता-पाठ या गीत रेकॉर्ड करवाये। सन्‍१९०१ में जे. डब्ल्यु. हॉड कलकत्ता आये और अपनी एक ब्रांच-ऑफ़िस खोली। १९०२ में एफ़. डब्ल्यु. गैज़बर्ग आये अपनी पहली रेकॉर्डिंग्‍अभियान पर, और भारत की धरती से करीब करीब ५०० गीत रेकॉर्ड करके ले गये। इन्हें फिर हैनोवर के बर्लिनर के प्रेसिंग्‍ फ़ैक्टरी में ले जा कर इनकी प्रतियाँ बनाई गईं। इनमें से ज़्यादातर रेकॉर्डिंग्स कोठों में जा कर रेकॉर्ड किये गये थे क्योंकि उस ज़माने में अच्छे घर की औरतों का गाना-बजाना अच्छा नहीं माना जाता था। लेकिन धीरे धीरे वक़्त बदला, और कई नामचीन कलाकारों नें रेकॉर्ड कंपनियों के लिये अपनी आवाज़ें दी। इनमें शामिल थे कलकत्ते की गौहर जान, इलाहाबाद की जानकीबाई, पियारा साहिब आदि। इसके बाद दो और रेकॉर्डिंग अभियान हुए और करीब ३००० वाक्स रेकॉर्ड्स बनें, जिन्हें जर्मनी में प्रेस कर वापस भारत में लाया गया बेचने के लिये। अब तक रेकॉर्ड्स ज़िंक से बदल कर वाक्स यानी मोम और शेलैक (shellac) के बनने लगे थे।

पहले विश्वयुद्ध (१९१४-१९१९) के दौरान ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड उद्योग शेलैक की सप्लाई के लिये भारत पर बुरी तरह से निर्भर थी। भारत ७५ सालों तक शेलैक का एकमात्र सप्लायर था और यहाँ से भारी तादाद में शेलैक निर्यात होता था। १९१६ तक करीब करीब ७५ अलग रेकॉर्ड कंपनियों नें भारत में अपने क़दम जमाये, जिनमें प्रमुख थे Nicole, Universal, Neophone, Elephone, H. Bose, Beka, Kamla, Binapani, Royal, Ram-a-Phone (Ramagraph), James Opera, Singer, Sun, Odeon, और Pathe। समय के साथ साथ ये तमाम कंपनियाँ या तो ग़ायब हो गईं या फिर 'दि ग्रामोफ़ोन कंपनी' के साथ मिल गईं। HMV लेबल नें भारतीय बाज़ार में एकतरफ़ा अधिकार जमा लिया। ध्वनि-मूद्रण तकनीकी दृष्टि से निरंतर बदलती चली जा रही थी। शुरु शुरु में सब कुछ मेकनिकली होता था और उस काल को 'ऐकोस्टिक ईरा' भी कहा जाता है। सन्‍१९२५ के आसपास यह रेकॉर्डिंग्‍की तकनीक मेकनिकल से बदलकर हो गई ईलेक्ट्रिकल, और कार्बन माइक्रोफ़ोन का आगमन हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के आसपास चुम्बकीय तकनीक लिये टेप-रेकॉर्डर्स आ गये। १९३१ में 'दि ग्रामोफ़ोन कंपनी' और 'कोलम्बिआ ग्रामोफ़ोन कंपनी' एक जुट हो गईं और स्थापना हुई 'ईलेक्ट्रिकल ऐण्ड म्युज़िकल इन्ड्रस्ट्रीस लिमिटेड' (EMI) की। और इस तरह से HMV भी आ गई EMI में।

आलेख - सुजॉय चटर्जी

संदर्भ -

१. "Gramophone Record" (URL: http://en.wikipedia.org/wiki/Gramophone_record)
२. "Indian Gramophone Records - The First 100 Years", Suresh Chandavarkar, Society of Indian Record Collectors, Mumbai (URL: http://www.mustrad.org.uk/articles/indcent.htm)

अनुराग शर्मा की कहानी "करमा जी की टुन्न-परेड"



'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी "बी. एल. नास्तिक" का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी "करमा जी की टुन्न-परेड", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "करमा जी की टुन्न-परेड" का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 44 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।


शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम।
~ अनुराग शर्मा

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी
"सभी लोग पान खाने चले गए मगर करमा जी बड़ी कठिनाई से फितूर साहब की कार का सहारा लेकर खड़े हो गए।"
(अनुराग शर्मा की "करमा जी की टुन्न-परेड" से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)

यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
VBR MP3
#145th Story, Karma Ji Ki Tunn Parade: Anurag Sharma/Hindi Audio Book/2011/26. Voice: Anurag Sharma

Thursday, September 15, 2011

करुणा सुनो श्याम मोरी...जब वाणी जयराम बनी मीरा की आवाज़



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 745/2011/185

धुनिक भारतीय संगीत में प्रचलित थाट पद्धति पर केन्द्रित श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की पाँचवीं कड़ी में आपका हार्दिक स्वागत है। इस श्रृंखला में हम पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित उन दस थाटों की चर्चा कर रहे हैं, जिनके माध्यम से रागों का वर्गीकरण किया जाता है।

उत्तर और दक्षिण भारतीय संगीत की दोनों पद्धतियों में संगीत के सात शुद्ध, तीन कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल बारह स्वरों के प्रयोग में समानता है। दक्षिण भारत के ग्रन्थकार पण्डित व्यंकटमखी ने सप्तक में १२ स्वरों को आधार मान कर ७२ थाटों की रचना गणित के सिद्धान्तों पर की थी। भातखण्डे जी ने इन ७२ थाटों में से केवल उतने ही थाट चुन लिये, जिनमें उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित सभी रागों का वर्गीकरण होना सम्भव हो। इस विधि से वर्तमान उत्तर भारतीय संगीत को उन्होने पक्की नींव पर प्रतिस्थापित किया। साथ ही उन सभी विशेषताओं को भी, जिनके आधार पर दक्षिण और उत्तर भारतीय संगीत पद्धति पृथक होती है, उन्होने कायम किया। भातखण्डे जी ने पं॰ व्यंकटमखी के ७२ थाटों में से १० थाट चुन कर प्रचलित सभी रागों का वर्गीकरण किया। थाट सिद्धान्त पर भातखण्डे जी ने ‘लक्ष्य-संगीत’ नामक एक ग्रन्थ की रचना भी की थी।

आइए, अब हम आज के थाट ‘पूर्वी’ के विषय में थोड़ी जानकारी प्राप्त करते हैं। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे॒, ग, म॑, प ध॒, नि। पूर्वी थाट का आश्रय राग पूर्वी है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ प्रमुख राग हैं- ‘पूरिया’, ‘धनाश्री’, ‘जैतश्री’, ‘परज’, ‘श्री’, ‘गौरी’, ‘वसन्त’ आदि। राग पूर्वी के आरोह के स्वर- सा, रे, ग, म॑प, ध, निसां और अवरोह के स्वर- सां, नि ध, प, म॑ ग, रे, सा होते हैं। इस राग में ऋषभ और धैवत कोमल तथा मध्यम के दोनों प्रकार प्रयोग किये जाते हैं। राग ‘पूर्वी’ का वादी स्वर गांधार और संवादी निषाद होता है तथा इसे दिन के अन्तिम प्रहर में गाया-बजाया जाता है।

आज के अंक में हम राग ‘पूर्वी’ पर आधारित जो फिल्मी-गीत आपको सुनवाने जा रहे हैं, उसे हमने १९७९ में प्रदर्शित फिल्म ‘मीरा’ से लिया है। गीतकार गुलज़ार द्वारा निर्मित और हेमा मालिनी द्वारा अभिनीत इस फिल्म की संगीत रचना पण्डित रविशंकर ने की थी। विख्यात सितार वादक के रूप में पहचाने जाने वाले पण्डित रविशंकर ने कुछ गिनी-चुनी फिल्मों में ही संगीत दिया है, परन्तु जो दिया है, वह अविस्मरणीय है। पण्डित जी इस फिल्म में लता मंगेशकर से मीरा के पदों गवाना चाहते थे, परन्तु लता जी ने अपने भाई हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत में मीरा के अधिकतर पदों को लोकप्रिय बना दिया था, अतः रविशंकर जी ने फिल्म में वाणी जयराम से मीरा के पदों का गायन कराया। फिल्म के सभी गीत विविध रागों पर आधारित थे। आज प्रस्तुत किया जाने वाला पद अर्थात गीत- ‘करुणा सुनो श्याम मोरी...’ राग ‘पूर्वी’ के स्वरों पर आधारित है। सितारखानी ताल में निबद्ध ‘मीरा’ के इस भक्तिपरक गीत के सौंदर्य और माधुर्य का अनुभव आप भी कीजिये-



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. श्रृंगार रस प्रधान एक नृत्य गीत है ये.
२. सायरा बानो पर फिल्माया गया है.
३. वास्तविक मुखड़े से पहले नायिका एक "दुनिया" की लंबी दास्ताँ सुनाती है.

अब बताएं -
किस राग पर आधारित है गीत - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
जी इंदु जी गुलज़ार रचित एक खूबसूरत फिल्म थी ये

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, September 14, 2011

जागो मोहन प्यारे...राग भैरव पर आधारित ये अमर गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 744/2011/184

‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में आपका पुनः स्वागत है। आपको मालूम ही है कि इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि वर्तमान में प्रचलित थाट पद्यति पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे द्वारा प्रवर्तित है। पं॰ भातखण्डे ने गम्भीर अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन प्रचलित राग-वर्गीकरण की जितनी भी पद्धतियाँ उत्तर भारतीय संगीत में प्रचार में आईं और उनके काल में अस्तित्व में थीं, उनके रागों का वर्गीकरण आज के रागों पर लागू नहीं हो सकता। गत कुछ शताब्दियों में सभी रागों में परिवर्तन एवं परिवर्द्धन हुए हैं, अतः उनके पुराने और नए स्वरूपों में कोई समानता नहीं है। भातखण्डे जी ने तत्कालीन राग-रागिनी प्रणाली का परित्याग किया और इसके स्थान पर जनक मेल और जन्य प्रणाली को राग वर्गीकरण की अधिक उचित प्रणाली माना। उन्हें इस वर्गीकरण का आधार न केवल दक्षिण में, बल्कि उत्तर में ‘राग-तरंगिणी’, ‘राग-विबोध’, ‘हृदय-कौतुक’, और ‘हृदय-प्रकाश’ जैसे ग्रन्थों में मिला।

आज हमारी चर्चा का थाट है- ‘भैरव’। इस थाट में प्रयोग किये जाने वाले स्वर हैं- सा, रे॒, ग, म, प, ध॒, नि । अर्थात ऋषभ और धैवत स्वर कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग होते हैं। थाट ‘भैरव’ का आश्रय राग ‘भैरव’ ही है। राग ‘भैरव’ के आरोह के स्वर हैं- सा, रे, ग म, पध, नि, सां तथा अवरोह के स्वर- सां, नि, ध, पमग, रे, सा होते हैं। इस राग का वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर ऋषभ होता है। इस राग का गायन-वादन समय प्रातःकाल होता है। ‘भैरव’ थाट के अन्तर्गत आने वाले अन्य प्रमुख राग होते हैं- ‘रामकली’, ‘गुणकली’, ‘कलिंगड़ा’, ‘जोगिया’, ‘विभास’ आदि।

राग ‘भैरव’ पर आधारित फिल्म-गीतों में से एक अत्यन्त मनमोहक गीत आज हमने चुना है। १९५६ में राज कपूर ने महत्वाकांक्षी फिल्म ‘जागते रहो’ का निर्माण किया था। इस फिल्म के संगीतकार सलिल चौधरी का चुनाव स्वयं राज कपूर ने ही किया था, जबकि उस समय तक शंकर-जयकिशन उनकी फिल्मों के स्थायी संगीतकार हो चुके थे। फिल्म ‘जागते रहो’ बांग्ला फिल्म ‘एक दिन रात्रे’ का हिन्दी संस्करण था और बांग्ला संस्करण के संगीतकार सलिल चौधरी को ही हिन्दी संस्करण के संगीत निर्देशन का दायित्व दिया गया था। सलिल चौधरी ने इस फिल्म के गीतों में पर्याप्त विविधता रखी। इस फिल्म में उन्होने एक गीत ‘जागो मोहन प्यारे, जागो...’ की संगीत रचना ‘भैरव’ राग के स्वरों पर आधारित की थी। शैलेन्द्र के लिखे गीत जब लता मंगेशकर के स्वरों में ढले, तब यह गीत हिन्दी फिल्म संगीत का मीलस्तम्भ बन गया। आइए, आज हम राग ‘भैरव’ पर आधारित, फिल्म ‘जागते रहो’ का यह गीत सुनते हैं-



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. गुलज़ार निर्मित फिल्म है ये.
२. पारंपरिक भजन है ये.
३. पहले पद में शब्द है -"श्याम"

अब बताएं -
किस राग पर आधारित है गीत - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी आप जिस गीत का अनुमान लगा रहे थे उसमें लक्ष्मी प्यारे का संगीत है :), "जेल"(?) जी, उदास मत हुआ कीजिये, ये गीत खुशी के क्षणों में भी मन को छूते हैं, धन्येवाद

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, September 13, 2011

अब क्या मिसाल दूं...वाकई बेमिसाल है ये गीत और इस गीत में रफ़ी साहब की आवाज़



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 743/2011/183

शृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की तीसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र सभी संगीत अनुरागियों का स्वागत करता हूँ। इन दिनों हम भारतीय संगीत के दस थाटों पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि संगीत के रागों के वर्गीकरण के लिए थाट प्रणाली को अपनाया गया। थाट और राग के विषय में कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि पहले थाट और फिर उससे राग की उत्पत्ति हुई होगी। दरअसल ऐसा है नहीं। रागों की संरचना अत्यन्त प्राचीन है। रागों में प्रयुक्त स्वरों के अनुकूल मिलते स्वर जिस थाट के स्वरों में मौजूद होते हैं, राग को उस थाट विशेष से उत्पन्न माना गया है। मध्य काल में राग-रागिनी पद्यति प्रचलन में थी। बाद में इस पद्यति की अवैज्ञानिकता सिद्ध हो जाने पर थाट-वर्गीकरण के अन्तर्गत समस्त रागों को विभाजित किया गया। हमारे शास्त्रकारों ने थाट के नामकरण के लिए ऐसे रागों का चयन किया, जिसके स्वर थाट के स्वरों से मेल खाते हों। थाट के नामकरण के उपरान्त सम्बन्धित राग को उस थाट का आश्रय राग कहा गया।

खमाज थाट के स्वर होते हैं- सा, रे ग, म, प ध, नि॒। इस थाट का आश्रय राग ‘खमाज’ कहलाता है। ‘खमाज’ राग में निषाद कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इसका आरोह- सा, गम, प, ध नि सां और अवरोह- सांनि धप, मग, रेसा होता है। वादी स्वर गांधार और संवादी स्वर निषाद होता है। इस राग के गायन-वादन का समय रात्रि का दूसरा प्रहर होता है। खमाज थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ प्रमुख राग है- झिंझोटी, तिलंग, रागेश्वरी, गारा, देस, जैजैवन्ती, तिलक कामोद आदि।

आज हम आपको राग ‘खमाज’ पर आधारित जो गीत सुनवाने जा रहे हैं, वह १९६३ में प्रदर्शित फिल्म ‘आरती’ से लिया गया है। इस फिल्म के संगीत निर्देशक रोशन थे। हिन्दी फिल्म के जिन संगीतकारों ने राग आधारित गीतों की उत्तम रचनाएँ की हैं, उनमें रोशन का नाम सर्वोपरि है। रोशन द्वारा संगीतबद्ध अनेक राग आधारित गीत आज कई दशक बाद भी लोकप्रिय हैं। आज हमने राग ‘खमाज’ पर आधारित, फिल्म ‘आरती’ का जो गीत आपको सुनवाने के लिए चुना है, उसे रोशन ने ही संगीतबद्ध किया था। गीत के बोल हैं- ‘अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की...’। इसके गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी हैं और इसे मोहम्मद रफी ने स्वर दिया है। आइए सुनते हैं, राग ‘खमाज’ पर आधारित यह गीत-



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. ये फिल्म का क्लाइमेक्स गीत है.
२. लता की दिव्य आवाज़ है.
३. गीतकार ने मुखड़े से पहले कुछ सुन्दर पंक्तियाँ जोड़ी है जिसकी पहली पंक्ति में शब्द है - "उजियारा"

अब बताएं -
किस राग पर आधारित है गीत - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
गीतकार बताएं - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी पहेली तो बेहद आसान हम पूछते हैं, आप तो यूहीं भोले बनते हैं :)

खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Monday, September 12, 2011

मीठी मीठी बातों से बचना ज़रा....एक हिदायत जिसमें है ढेर सारी सीख भी



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 742/2011/182

भारतीय संगीत के दस थाटों की परिचय श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है। इस श्रृंखला में हम आपको भारतीय संगीत के दस थाटों का परिचय करा रहे हैं। क्रमानुसार सात स्वरों के समूह को थाट कहते हैं। सात शुद्ध स्वरों, चार कोमल और एक तीव्र स्वरों अर्थात कुल बारह स्वरों में से कोई सात स्वर एक थाट में प्रयोग किये जाते हैं। संगीत के प्राचीन ग्रन्थ ‘अभिनव राग मंजरी’ के अनुसार थाट उस स्वर समूह को कहते हैं, जिससे राग उत्पन्न हो सके। नाद से स्वर, स्वर से सप्तक और सप्तक से थाट बनता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्यति में थाट को मेल नाम से सम्बोधित किया जाता है। उत्तर भारतीय संगीत में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे की दस थाट विभाजन व्यवस्था का प्रचलन है।

इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हमने आपको ‘कल्याण’ थाट का परिचय दिया था। आज दूसरा थाट है- ‘बिलावल’। इस थाट में प्रयोग होने वाले स्वर हैं- सा, रे, ग, म, प, ध, नि अर्थात सभी शुद्ध स्वर का प्रयोग होता है। पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे कृत ‘क्रमिक पुस्तक मालिका’ (भाग-1) के अनुसार ‘बिलावल’ थाट का आश्रय राग ‘बिलावल’ ही है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले अन्य प्रमुख राग हैं- अल्हइया बिलावल, बिहाग, देशकार, हेमकल्याण, दुर्गा, शंकरा, पहाड़ी, माँड़ आदि। राग ‘बिलावल’ में सभी सात शुद्ध स्वरों का प्रयोग होता है। वादी स्वर धैवत और संवादी स्वर गांधार होता है। इस राग के गायन-वादन का समय प्रातःकाल का प्रथम प्रहर होता है।

अब हम आपको राग ‘बिलावल’ पर आधारित एक गीत सुनवाते हैं, जिसे हमने फिल्म ‘कैदी नम्बर ९११’ से लिया है। १९५९ में प्रदर्शित इस फिल्म के संगीतकार दत्ताराम ने राग 'बिलावल' पर आधारित गीत ‘मीठी मीठी बातों से बचना ज़रा...’ को लता मंगेशकर से गवाया था। फिल्म संगीत की दुनिया में दत्ताराम, संगीतकार शंकर-जयकिशन के सहायक के रूप में जाने जाते हैं। स्वतंत्र संगीतकार के रूप में दत्ताराम की पहली फिल्म १९५७ की ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ थी। दत्ताराम के संगीत निर्देशन में सर्वाधिक लोकप्रिय गीत, फिल्म 'परिवरिश' का -'आँसू भरी है ये जीवन की राहें...' ही है, किन्तु फिल्म ‘कैदी नम्बर ९११’ का गीत 'मीठी मीठी बातों से बचना ज़रा...' भी मधुरता और लोकप्रियता में कम नहीं है। हसरत जयपुरी के लिखे इस गीत में लता मंगेशकर और फिल्म की बाल कलाकार डेज़ी ईरानी ने स्वर दिया है। लीजिए, आप भी सुनिए- राग ‘बिलावल’ पर आधारित यह मधुर गीत-



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. नायिका के रूप यौवन की तारीफ में नायक मिसालें पेश कर रहा है.
२. राग खमाज पर आधारित है ये गीत.
३. एक अंतरे में शब्द है - "गर्दन"

अब बताएं -
इस गीत के गीतकार - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म की नायिका कौन है - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
बहुत अच्छे शरद जी, कहाँ रहे इतने दिन ?
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Sunday, September 11, 2011

नवकल्पना नव रूप से...हम कर रहे हैं एक नई शृंखला का आरंभ शम्भू सेन के इस गीत से



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 741/2011/181

'ओल्ड इज गोल्ड’ के समस्त संगीत-प्रेमी पाठकों-श्रोताओं का एक बार पुनः मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक नई श्रृंखला में हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, अपने देश में संगीत की हजारों वर्ष पुरानी समृद्ध परम्परा है। आज नई पीढ़ी के सामने संगीत के अनेक विकल्प हैं। इस पीढ़ी ने नए विकल्पों को सहर्ष अपनाया है। नवीन विकल्पों को समझने का प्रयास करना अच्छी बात है, परन्तु प्राचीन समृद्ध संगीत परम्परा की उपेक्षा उचित नहीं है। आपने ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ पर परम्परागत भारतीय संगीत पर आधारित कुछ श्रृंखलाओं का आनन्द लिया है और इन्हें सराहा भी है। ऐसी श्रृंखलाओं को प्रस्तुत करने का हमारा उद्येश्य आपको संगीत का विद्वान बनाना कदापि नहीं है। हमारी अपेक्षा है कि आप संगीत के एक अच्छे श्रोता बनें और उसकी सराहना कर सकें।

आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला- ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ में भी हमारा यही प्रयास रहेगा कि शास्त्रीय संगीत आपके लिए अनबूझ पहेली बन कर न रह जाय। यह तो आप जानते ही हैं कि भारतीय संगीत के सबसे प्रमुख तत्त्व सात स्वर और इन स्वरों से बनने वाले राग होते हैं। संगीत के प्रचलित, कम प्रचलित, अप्रचलित और लुप्तप्राय रागों की संख्या हजारों में है। इन रागों को वर्गीकृत करने के लिए 'थाट' पद्यति का प्रयोग किया जाता है। प्राचीन काल में रागों के वर्गीकरण के लिए मूर्च्छना पद्यति का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक संगीत में पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे ने रागों के वर्गीकरण के लिए दस ‘थाट’ पद्यति की स्थापना की थी। इस श्रृंखला- ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ में इन्हीं दस थाटों का सरल परिचय देने का प्रयास करेंगे।

भातखण्डे जी द्वारा निर्धारित दस थाट क्रमानुसार हैं- कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव, पूर्वी, मारवा, काफी, आसावरी, भैरवी, और तोड़ी। इन दस थाटों के क्रम में पहला थाट है कल्याण। कल्याण थाट के स्वर होते हैं- सा, रे,ग, म॑, प ध, नि। कल्याण थाट का आश्रय राग कल्याण अथवा यमन होता है। इस थाट के अन्तर्गत आने वाले कुछ अन्य प्रमुख राग हैं- भूपाली, हिंडोल, हमीर, केदार, कामोद, छायानट, गौड़ सारंग आदि। इस थाट के आश्रय राग कल्याण अथवा यमन में सभी सात स्वरों का प्रयोग होता है। मध्यम स्वर तीव्र और शेष सभी छः स्वर शुद्ध प्रयोग किए जाते हैं। वादी स्वर गांधार और संवादी निषाद होता है। इसका गायन-वादन समय गोधूली बेला अर्थात सूर्यास्त से लेकर रात्रि के प्रथम प्रहर तक होता है। राग कल्याण अथवा यमन के आरोह के स्वर हैं- सा रेग, म॑ प, ध, निसां तथा अवरोह के स्वर सांनिध, पम॑ग, रेसा होते हैं।

कल्याण थाट के आश्रय राग कल्याण अथवा यमन पर आधारित एक गीत अब हम आपको सुनवाते हैं। यह गीत १९७५ में प्रदर्शित फिल्म ‘मृगतृष्णा’ का है। रूपक ताल में निबद्ध इस गीत के संगीतकार और गीतकार हैं शम्भु सेन। मोहक साहित्यिक शब्दों से युक्त इस गीत को मोहम्मद रफी ने स्वर दिया है और गीत पर अभिनेत्री हेमा मालिनी ने नृत्य किया है। लीजिए, आप भी सुनिए ‘कल्याण’ राग पर आधारित यह गीत-



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. दीदी बच्चों को गीत के माध्यम से दुनिया में जीना सिखा रही है.
२. आवाज़ है लता की.
३. एक अंतरे की पहली पंक्ति में शब्द है - "इल्म"

अब बताएं -
इस गीत के गीतकार - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म की नायिका कौन है - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -
गीतकार और संगीतकार एक ही थे इस गीत के, अमित जी को बधाई, हिन्दुस्तानी जी स्वागत आपका
खोज व आलेख- कृष्ण मोहन मिश्र



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

उपन्यास में वास्तविक जीवन की प्रतिष्ठा हुई रविन्द्र युग में - माधवी बंधोपाध्याय



सुर संगम - 34 -रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सार्द्धशती वर्ष-२०११ पर श्रद्धांजलि (दूसरा भाग)

बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से कृष्णमोहन मिश्र की रवीन्द्र साहित्य और उसके हिन्दी अनुवाद विषयक चर्चा
पहला भाग पढ़ें
‘सुर संगम’ के आज के अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। दोस्तों, गत सप्ताह के अंक में हमने आपको बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से रवीन्द्र-साहित्य पर बातचीत की शुरुआत की थी। पिछले अंक में माधवी जी ने रवीन्द्र-साहित्य के विराट स्वरूप का परिचय देते हुए रवीन्द्र-संगीत की विविधता के बारे में चर्चा की थी। आज हम उससे आगे बातचीत का सिलसिला आरम्भ करते हैं।

कृष्णमोहन- माधवी दीदी, नमस्कार और एक बार फिर स्वागत है,"सुर संगम" के मंच पर। पिछले अंक में आपने रवीन्द्र संगीत पर चर्चा आरम्भ की थी और प्रकृतिपरक गीतों की विशेषताओं के बारे में हमें बताया। आज हम आपसे रवीन्द्र संगीत की अन्य विशेषताओं के बारे में जानना चाहते हैं।

माधवी दीदी- सभी पाठकों को नमस्कार करती हुई आज मैं विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के देशात्मबोधक गीतों पर कुछ चर्चा करना चाहती हूँ। सन् १९०५ में बंगभग आन्दोलन के समय उन्होंने बहुत सारे देशात्मबोधक गीतों की रचना की थी जिसने देशवासियों के मन को देशप्रेम से ओत-प्रोत कर दिया था। केवल यही नहीं उन्होंने दो राष्ट्रों के लिए दो राष्ट्रगीत भी लिखे। भारत के लिए "जन गण मन..." और बांग्लादेश के लिए "ओ आमार देशेर माटि..."।

कृष्णमोहन- माधवी दी’, भारतीय संगीत की विधाओं में रवीन्द्र संगीत को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि रवीन्द्र संगीत में रागों का महत्त्व कितना होता है?

माधवी दीदी- रवीन्द्रनाथ, शास्त्रीय संगीत तथा रागों के पूर्ण रूप से ज्ञाता थे। पर उनके संगीत को राग-रागिनी ने एक सीमा तक ही प्रभावित किया। रवीन्द्र संगीत की मर्मवाणी है, भाषा, भाव और रस। रागों को रवीन्द्रनाथ, अपने संगीत में एक सीमा तक व्यवहार करते थे। यह सीमा वहीं तक है कि राग शब्द, भाव और रस पर आरोपित न हो, बल्कि भावभिव्यक्ति में वह सहायक हो। वे कहते थे कि यदि रवीन्द्र संगीत पूर्णतया रागों पर आधारित कर दिया जाय तो संगीत पूर्णतया शास्त्रगत तथा व्याकरण-सम्मत बन जायगा और इसका भाव, रस और सुर-माधुर्य लुप्त हो जायगा। यद्यपि रवीन्द्रनाथ स्वररोपण करते समय अपने सुर के साथ एक नहीं कई रागों का मिश्रण कर देते थे, उसके बावजूद उसमें ऐसा प्राण-संचार होता था कि वह रागाश्रयी होने की जगह भावाश्रयी बनकर कानों में गूँजते हैं और हृदय को स्पर्श करते हैं।

कृष्णमोहन- माधवी जी, आपने रवीन्द्र संगीत के विषय में बहुत अच्छी जानकारी दी। यहाँ थोड़ा रुक कर हम अपने पाठकों/श्रोताओं को रवीन्द्र संगीत का एक ऐसा उदाहरण सुनवाते हैं, जो मूल बांग्ला का हिन्दी काव्यान्तरण है। इस गीत को स्वर दिया है, "विश्वभारती विश्वविद्यालय" के संगीत विभाग के प्राध्यापक मोहन सिंह खंगूरा ने। आइए, सुनते हैं, बांग्ला गीत –"आजि झोरेर राते तोमार अभिसार...." का हिन्दी अनुवाद-

रवीद्र संगीत (हिन्दी अनुवाद) : "आज आँधी की रात..." : स्वर – मोहन सिंह खंगूरा


कृष्णमोहन- माधवी जी, अत्यन्त मधुर गीत सुनने के बाद अब मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के कथा-साहित्य के विषय में कुछ बताइए।

माधवी दीदी- कृष्णमोहन जी, रवीन्द्रनाथ की विशाल साहित्य-परिधि के विषय में जितना कहा जाय उतना ही कम है। कथा-साहित्य के क्षेत्र में विगत शताब्दी के प्रथमार्द्ध को रवीन्द्र-युग कहा जाता है। बंकिम युग के पश्चात् रवीन्द्रनाथ ने उपन्यास में नये युग की अवतारणा की। उन्होंने उपन्यास में आधुनिक युग की स्थापना की। रवीन्द्र-युग की दो विशेषताएँ है- एक, बंकिमचन्द्र के ऐतिहासिक युग का तिरोभाव और दूसरा- सामाजिक उपन्यास के रूप में एक सूक्ष्मतर और व्यापक वास्तविकता का प्रवर्त्तन। बंकिमचन्द्र का उपन्यास, इतिहास और अपूर्व कल्पनाशक्ति का द्योतक था। उन्होंने इतिहास का सिंहद्वार खोलकर उसमें जान फूँक दिया था। पर रवीन्द्र-युग के उपन्यास में इतिहास और कल्पना हट गई और सामाजिकता तथा वास्तविकता ने सम्पूर्ण रूप से स्थान ग्रहण कर लिया। उपन्यास में वास्तविक जीवन की प्रतिष्ठा हुई। वैसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बहुत सारे उत्कृष्ट उपन्यासो की रचना की है-‘चोखेर बालि’, ‘विषवृक्ष’, घरे बाहिरे, ‘गोरा’, ‘नवनीत’, ‘चार अध्याय’, ‘जोगाजोग’, ‘चतुरंग’, ‘शेषेर कविता’ इत्यादि। पर उनका ‘गोरा’ उपन्यास सर्वश्रेष्ठ है। कल्पना जगत से निकलकर यथार्थवाद को आधार बनाकर जो सर्वश्रेष्ट उपन्यास उन्होंने लिखा, वह है ‘गोरा’। १९०९ में लिखे गए इस उपन्यास का विस्तार और परिधि एक साधारण उपन्यास से बहुत अधिक है। इसमें एक महाकाव्य की विशेषता और महाकाव्य के लक्षण दिखते हैं। इसमें जितने में चरित्र लिये गये हैं, उनकी केवल व्यक्तिगत जीवन की या साधारण जीवन की छवि ही अंकित नहीं की गयी है। उन्हें हम तरह-तरह के आन्दोलन में, धर्मगत् संघर्ष में, राजनैतिक भावनाओं में प्रतिनिधित्व करते हुए पाते हैं। जीवन के ये सारे संघर्ष, उनके जीवन-आदर्श की कहानी उन्हें एक वृहत्तर संस्था के रूप में पाठकों के सामने स्थापित करती हैं।

गोरा, सुचरिता, विनय, ललिता, परेश बाबू, आनन्दमयी, इन सभी के चरित्र-विस्तार में, क्रियाकलाप में, संकल्प से, उस समय के बंगदेश में, उस विशिष्ट्य युग-सन्धिक्षण में फैला हुआ समस्त विक्षोभ, आलोड़ल और चांचल्य की छवि परिस्फुट होती है। उस समय धर्म-विप्लव एक विशेष समस्या के रूप में सामने आया था। इस उपन्यास के चरित्रों के संकल्पों के माध्यम से पता चलता है कि उन दिनों समाज में सनातनपन्थ तथा नवीनपन्थ दो धर्ममार्ग विद्यमान थे। लोग अपने-अपने विचार तथा युक्तितर्क द्वारा उसकी पुष्टि करते थे। इसमें एक भावना को और उजागर किया गया है- मानव का देशात्म-बोध और नारी की जागरूकता। गोरा की जन्म-कथा तो उपन्यास की रूपरेखा है। समस्त धार्मिक विचारों के ऊपर मानव सत्य है। गोरा को एक आइरिसमैन के रूप में अंकित करना रवीन्द्रनाथ ठाकुर का लेखन कौशल ही तो था, जिसके द्वारा उन्होंने साबित किया कि मानव का स्थान सर्वोपरि है।

कृष्णमोहन- माधवी दी’ आज हमें यहीं पर विराम लेना पड़ेगा। परन्तु विराम लेने से पहले हम अपने पाठको/श्रोताओं के लिए रवीन्द्र संगीत का एक अनूठा प्रयोग प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे हिन्दी फिल्म के संगीतकार सचिनदेव बर्मन ने फिल्म "अभिमान" में शामिल किया था। मूल रवीन्द्र संगीत और उसी धुन पर आधारित फिल्म ‘अभिमान’ का गीत आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं- साशा घोषाल। आप यह गीत सुनिए और माधवी दीदी के साथ मुझे आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए। अगले रविवार को प्रातःकाल इस श्रृंखला की तीसरी और समापन कड़ी लेकर हम पुनः उपस्थित होंगे।

रवीद्र संगीत (हिन्दी/बांग्ला) : “तेरे मेरे मिलन की ये रैना.../जोदि तारे नाईं छिलिगो...” : स्वर – साशा घोषाल



संलग्न चित्र परिचय :- माधवी जी की मौलिक बाँग्ला कृति 'गल्पो संकलन' का विमोचन करते हुए तत्कालीन राज्यपाल विष्णुकान्त शास्त्री.

प्रस्तुति - सुमित चक्रवर्ती

आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

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संडे स्पेशल

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