Saturday, September 6, 2008

यही वो जगह है - आशा, एक परिचय



बहुमुखी प्रतिभा-यही शब्द हैं जो आशा भोंसले के पूरे कैरियर को अपने में समाहित करते है। और कौन ऐसा है जो गर्व कर सके, जिसने व्यापक तौर पर तीन पीढ़ियों के महान संगीतकारों के साथ काम किया हो। चाहें ५० के दशक में ऒ.पी नय्यर का मधुर संगीत हो या आर.डी.बर्मन के ७० के दशक के पॉप हों या फिर ए.आर.रहमान का लयबद्ध संगीत- आशा जी ने सभी के साथ भरपूर काम किया है। गायन के क्षेत्र में प्रयोग करने की उनकी भूख की वजह से ही उनमें विविधता आ पाई है। उन्होंने १९५० के दशक में हिन्दी सिने जगत के पहले रॉक गीतों में से एक "ईना, मीना, डीका.." गाया। उन्होंने महान गज़ल गायक गुलाम अली व जगजीत सिंह के साथ कईं गज़लों में भी काम किया, और बिद्दू के पॉप व बप्पी लहड़ी के डिस्को गीत भी गाये।

मंगेशकर बहनों में से एक, आशा भोंसले का जन्म ८ सितम्बर १९३३ को महाराष्ट्र के मशहूर अभिनेता व गायक दीनानाथ मंगेशकर के घर छोटे से कस्बे "गोर" में हुआ। अपनी बड़ी बहन लता मंगेशकर की तरह इन्होंने भी बचपन से ही गाना शुरु कर दिया था। परन्तु अपने पिता से शास्त्रीय संगीत सीखने के कारण वे जल्द ही पार्श्व गायन के क्षेत्र में कूद पड़ी। अप्रैल १९४२ में इनके पिताजी का देहांत हो गया जिसके बाद इनका परिवार पुणे से कोल्हापुर और बाद में मुम्बई जा बसा। करीबन १० वर्ष की उम्र में इन्होंने अपना पहला गीत मराठी फिल्म "माझा बाल" के लिये गाया। आशा अपने जन्म-स्थल को आज भी याद करती हैं और कहती हैं-"मैं अब भी संगली में बिताये अपने बचपन के दिन याद करती हूँ क्योंकि मेरी वजह से ही लता दी स्कूल से भागतीं थीं। मैं संगली को कभी नहीं भूल सकती क्योंकि वहाँ मेरा जन्म हुआ था"।

हम सबकीं आशा
आशा ने पार्श्व गायन की शुरुआत १९४८ में फिल्म "चुनरिया" से कर दी थी। किन्तु उन्हें अपनी जगह बनाने में काफी समय लगा। १९४९ का अंत होते होते लाहौर, बरसात, अंदाज़ और महल जैसी फिल्में आईं और लता मंगेशकर संगीतकारों की पहली पसंद बन गईं थीं। आशा, लता दी जितनी ही प्रतिभाशाली होने के बावजूद अपना सही हक नहीं ले पा रहीं थी। ऐसे भी कईं संगीतकार थे जो लता के बाद शमशाद बेगम और गीता दत्त से गवाने के बारे में सोचते थे। जिसकी वजह से फिल्मी जगत में आशा की जगह न के बराबर थी। काफी हल्के बजट की फिल्में या वो फिल्में जिनमें लता न गा पा रहीं हों, वे ही उन्हें मिल पा रहीं थी। मास्टर कृष्ण दयाल, विनोद, हंसराज बहल, बसंत प्रकाश, धनीराम व अन्य संगीतकार थे जिन्होंने आशा जी के शुरुआती दिनों में उन्हें काम दिया। "चुनरिया" के अलावा १९४९ में आईं "लेख" और "खेल" ही ऐसी फिल्में रहीं जिनमें आशा जी ने गाना गाया। "लेख" में उन्होंने मास्टर कृष्ण दयाल के संगीत से सजा एक एकल गीत गाया व मुकेश के साथ एक युगल गीत -'ये काफिला है प्यार का चलता ही जायेगा..." गाया। १९५३ में "अरमान" के बाद ही उन्हें कामयाबी मिलनी शुरु हुई। एस.डी.बर्मन द्वारा संगीतबद्ध मशहूर गाना-"चाहें कितना मुझे तुम बुलावो जी, नहीं बोलूँगी, नहीं बोलूँगी...' गाया। यही गाना उन्होंने तलत महमूद के साथ भी गाया।

उसके बाद रवि ने उन्हें १९५४ में "वचन" में काम दिया। जहाँ उन्होंने मोहम्मद रफी के साथ फिल्म में एकमात्र गीत गाया-"जब लिया हाथ में हाथ..."। ये अकेला गीत ही उन्हें प्रसिद्धि दिला गया और उन्होंने अपने पैर जमाने शुरु कर दिये। लेकिन एक दो तीन (१९५२), मुकद्दर(१९५०), रमन(१०५४), सलोनी (१९५२), बिजली(१९५०), नौलखा हार(१९५४) और जागृति(१९५३) जैसी कुछ फिल्में ही थी जिनमें उन्होंने एक या दो गाने गाये और यही उनके गाते रहने की उम्मीद थी।

१९५७ उनके लिये एक नईं किरण ले कर आया जब ओ.पी नय्यर जी ने उनसे "तुमसा नहीं देखा" और " नया दौर" के गीत गाने को कहा। उसी साल एस.डी.बर्मन और लता के बीच में थोड़ी अनबन हुई। उधर गीता दत्त भी शादी के बाद परेशान थीं और उपलब्ध नहीं रहती थीं। नतीजतन एस.डी.बर्मन ने भी आशा जी को अपनी फिल्म में लेने का निश्चय किया। उससे अगले साल उन्होंने हावड़ा ब्रिज, चलती का नाम गाड़ी और लाजवंती के कईं सुपरहिट गाने गाये। उसके बाद तो १९७० के दशक तक ओ.पी. नय्यर के लिये आशा जी पहली पसंद बनी रहीं। उसके बाद इन दोनों की जोड़ी में दरार आई। १९६० के दशक में ओ.पी नय्यर के संगीत में आशा जी ने एक से बढ़कर एक बढ़िया गाने गाये। १९७० का दशक उन्हें आर.डी. बर्मन के नज़दीक ले कर आया जिन्होंने आशा जी से कईं मस्ती भरे गीत गवाये। पिया तू अब तो आजा(कारवाँ), दम मारो दम(हरे राम हरे कृष्णा) जैसे उत्तेजक और नईं चुनौतियों भरे गाने भी उन्होंने गाये। जवानी दीवानी (१९७२) के गीत "जाने जां...." में तो उन्होंने बड़ी आसानी से ही ऊँचे और नीचे स्केल में गाना गाया। १९८० में तो उन्होंने गज़ल के क्षेत्र में कमाल ही कर दिया। "दिल चीज़ क्या है..", " इन आँखों की मस्ती..", " ये क्या जगह है दोस्तों..", "जुस्तुजू जिसकी थी.." जैसी सदाबहार गज़लें उनकी उम्दा गायकी निशानी भर हैं। इजाज़त (१९८७) में उन्होंने "मेरा कुछ सामान..: गाना गाया, जिसके लिये उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। ये गाना सबसे मुश्किल गानों में से एक गिना जाता है क्योंकि ये पद्य न हो कर गद्य के रूप में है। ९० के दशक में तो आशा ही छाईं रहीं। चाहें पॉप फिल्मी गीत हो, या पाश्चात्य संगीत की एल्बम हो सभी में आशा जी ही दिखाई पड़ती थीं। वैसे तो उन्होंने गाने गाने कम कर दिये हैं पर आज भी उर्मिला या ऐश्वर्या को रंगीला (१९९४) व ताल ('९९) में आशा जी के गानों पर थिरकते हुए देखा जा सकता है।

आज उनकी आवाज़ पहले से बेहतर और विविधता भरी हो गई है। यदि हम उन्हें संदीप चौटा के "कम्बख्त इश्क.." से पहले आर.डी.बर्मन "तेरी मेरी यारी बड़ी पुरानी.." गाते हुए सुन लें तो भी प्रत्यक्ष तौर पर दोनों आवाज़ों में अंतर करना बहुत कठिन होगा.. जबकि दोनों गानों में ३० बरस का अंतर है!!

दो दिन बाद आशा जी अपना ७५ वां जन्मदिन मनायेंगी, इस अवसर पर संजय पटेल का विशेष आलेख अवश्य पढियेगा, फिलहाल सुनते हैं फ़िल्म "ये रात फ़िर न आयेगी" फ़िल्म का ये मधुर गीत आशा जी की आवाज़ में -



जानकारी स्रोत - इन्टनेट
संकलन - तपन शर्मा "चिन्तक"

Friday, September 5, 2008

कहने को हासिल सारा जहाँ था...



दूसरे सत्र के १० वें गीत और उसके विडियो का विश्वव्यापी उदघाटन आज.

चलते चलते हम संगीत के इस नए सत्र की दसवीं कड़ी तक पहुँच गए, अब तक के हमारे इस आयोजन को श्रोताओं ने जिस तरह प्यार दिया है, उससे हमारे हौसले निश्चित रूप से बुलंद हुए है. तभी शायद हम इस दसवें गीत के साथ एक नया इतिहास रचने जा रहे हैं, आज ये नया गीत न सिर्फ़ आप सुन पाएंगे, बल्कि देख भी पाएंगे, यानि "खुशमिजाज़ मिट्टी" युग्म का पहला गीत है जो ऑडियो और विडियो दोनों रूपों में आज ओपन हो रहा है.


सुबोध साठे की आवाज़ से हमारे, युग्म के श्रोता बखूबी परिचित हैं, लेकिन अब तक उन्होंने दूसरे संगीतकारों, जैसे ऋषि एस और सुभोजित आदि के लिए अपनी आवाज़ दी है, पर हम आपको बता दें, सुबोध ख़ुद भी एक संगीतकार हैं और अपनी वेब साईट पर दो हिन्दी और एक मराठी एल्बम ( बतौर संगीतकार/ गायक ) लॉन्च कर चुके हैं, युग्म के लिए ये उनका पहला स्वरबद्ध गीत है, जाहिर है आवाज़ भी उनकी अपनी है, संगीत संयोजन में उनका साथ निभाया है, पुणे के चैतन्य अड़कर ने. गीतकार हैं युग्म के एक और प्रतिष्टित कवि, गौरव सोलंकी, जिनका अंदाज़ अपने आप में सबसे जुदा है, तो आनंद लें इस ताजातरीन प्रस्तुति का, और अपने विचार टिप्पणियों के माध्यम से हम तक अवश्य पहुंचायें.


गीत को सुनने के लिए नीचे के प्लेयर पर क्लिक करें -





To listen to this brand new song, please click on the player below -




With this 10th song of the season, we are creating a new history, as this is the first song, which we are opening in audio and video format together. Subodh who sung many song for us before, this time handle the tough job of composing also, along with singing in his mesmerizing voice.


Song penned by another reputed poet from yugm family, Gaurav Solonki, while Chaitanya Adhker from Pune, helped with music arrangement. So now after hearing the audio watch here the video of "khushmizaz mitti".We hope you like this effort, feel free to post your comments about the song and its video so that we can better ourselves in accordance with your suggestions.

Other credits - (Regarding Video)

Video Direction - Subodh Sathe.
Camera - Navendu thosar, Pankaj Makhe.
Editing - Manoj Pidadi

Video of "khushmizaz mitti"



Lyrics - गीत के बोल


खुशमिजाज मिट्टी
पहले उदास थी
चाँदनी की चिट्ठी
अँधेरे के पास थी
सुस्त सुस्त शामें थीं,
सुबहें उनींदी
सूरज के होठों को उजाले की प्यास थी
कहने को हासिल सारा जहाँ था
तुम जो नहीं थे तो कुछ भी कहाँ था...

इधर था मोहल्ला नींदों का लेकिन
रातों में पागल सोता नहीं था
अजब सी थी हालत दिल की भी मेरे
हँसता नहीं था, रोता नहीं था
कहने को हासिल सारा जहाँ था
तुम जो नहीं थे तो कुछ भी कहाँ था...

बहुत डोर थी, बहुत थी पतंगें
मगर उड़ती कैसे, नहीं थी उमंगें
ऐसा हुआ था, दिल में कुँआ था
पानी का साया भी डूबा हुआ था
कहने को हासिल सारा जहाँ था
तुम जो नहीं थे तो कुछ भी कहाँ था...

यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)




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SONG # 10, SEASON # 02, "KHUSHMIZAZ MITTI" (Khushmizas Mitti), OPENED ON 05/09/2008, AWAAZ, HIND YUGM.Music @ Hind Yugm, Where music is a passion.

ब्लॉग/वेबसाइट/ऑरकुट स्क्रैपबुक/माईस्पैस/फेसबुक में 'खुशमिज़ाज मिट्टी' का पोस्टर लगाकर नये कलाकारों को प्रोत्साहित कीजिए


Thursday, September 4, 2008

लता संगीत उत्सव ( १ ) - पंकज सुबीर



रूह की वादियों में बह रही दिलरुबा नदी

ख़ैयाम साहब ने जितना भी संगीत दिया है वो भीड़ से अलग नज़र आता है । उनके गीत अर्द्ध रात्रि का स्वप्न नहीं हो कर दोपहर की उनींदी आंखों का ख्वाब हैं जो नींद टूटने के बाद कुछ देर तक अपने सन्नाटे में डुबोये रखते हैं । आज जिस गीत की बात हो रही है ये गीत फ़िल्म "शंकर हुसैन" का है । "शंकर हुसैन" जितना विचित्र नाम उतने ही मधुर गीत । दुर्भाग्य से फ़िल्म नहीं चली और बस गीत ही चल कर रह गये । फ़िल्म में ''कैफ भोपाली'' का लिखा गीत जो लता मंगेशकर जी ने ही गाया था ''अपने आप रातों में '' भी उतना ही सुंदर था जितना कि ये गीत है, जिसकी आज चर्चा होनी है । हम आगे कभी ''अपने आप रातों में '' की भी बातें करेंगें लेकिन आज तो हमको बात करनी है ''आप यूं फासलों से ग़ुज़रते रहे दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही'' की । लता जी की बर्फानी आवाज़, जांनिसार अख्तर ( जावेद जी के पिताजी) के शबनम के समान शब्दों को, खैयाम साहब की चांदनी की पगडंडी जैसी धुन पर इस तरह बिखेरती हुई गुज़र जाती है कि समय भी उस आवाज़ के पैरों की मधुर आहट में उलझा अपनी चाल भूलता नज़र आता है ।

इस गीत के भावों को पहचानना सबसे मुश्किल कार्य है कभी यह करुण रस में भीगा होता है तो अगले ही अंतरे में रहस्यवाद की छांव में खड़ा हो जाता है, या एक पल में ही सम्‍पूर्ण श्रृंगार और कुछ भी नहीं । चलिये हम भी लताजी, खैयाम साहब और जांनिसार अख्तर साहब के साथ एक मधुर यात्रा पर चलें । सुनतें हैं ये गीत -



इसकी शुरूआत होती है लता जी के मधुर आलाप के साथ जो शत प्रतिशत कोयल की कूक समेटे है और रूह को आम्र मंजरियों के मौसम का एहसास कराता है । मुखड़े के शुरूआत में एक रहस्य है जो मैं केवल इसलिये नहीं सुलझा पा रहा हूं कि मैंने फ़िल्म नहीं देखी है । रहस्य ये है कि ''आप यूं '' कहते समय लता जी ने हल्‍की सी हंसी का समावेश किया है । खनकती हंसी से शुरू होते हुए मुखड़े की बानगी देखिये -

''( हंसी) आप यूं फ़ासलों से ग़ुज़रते रहे...2
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही
आहटों से अंधेरे चमकते रहे
रात आती रही रात जाती रही
आप यूं ....''

शायद आपको भी इस रहस्यवाद में गुलज़ार साहब की मौज़ूदगी का एहसास हो रहा होगा । जांनिसार अख्तर साहब ने आहटों से अंधेरों को कुछ वैसे ही चमकाया है जैसे गुलज़ार साहब ने आंखों की महकती खुशबू को देखा था । ''आप यूं फ़ासलों से ग़ुज़रते रहे. दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही'' में ताने उलाहने का भाव है, या शिकायत है किंतु फिर उस हंसी का क्या ? जो मुखड़े को शुरू करती है और अगले ही क्षण ''आहटों से अंधेरे चमकते रहे रात आती रही रात जाती रही'' में रहस्यवाद का घना कुहासा छा जाता है मानो महादेवी वर्मा का उर्दू रूपांतरण हो गया हो।

लता जी की हल्‍की सी गुनगुनाहट के बाद पहला अंतरा आता है

''गुनगुनाती रहीं मेरी तनहाईयां...2
दूर बजती रहीं कितनी शहनाईयां
जिंदगी जिंदगी को बुलाती रही
आप यूं ( हंसी) फ़ासलों से ग़ुज़रते रहे
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही
आप यूं....

शायद ये दर्द ही है जो अपनी तनहाईयों के गुनगुनाने की आवाज़ को सुन रहा है । क्‍योंकि दूर से आती शहनाईयों की आवाज़ पीड़ा के एहसास को और गहरा कर देती है । जिंदगी ख़ुद को बुला रही है, या अपने सहभागी को कुछ स्पष्ट नहीं है । आप जब तक पीड़ा के मौज़ूद होने के निर्णय पर पहुंचते हैं, तब तक वापस मुखड़े के फासलों शब्द में फिर वही हंसी मौज़ूद नज़र आती है आपके निर्णय का उपहास करती ।

अगला अंतरा गुलज़ार साहब की उदासी और महादेवी वर्मा के सन्नाटों का अद्भुत संकर है

कतरा कतरा पिघलता रहा आसमां ...2
रूह की वादियों में न जाने कहां इक नदी....
हक नदी दिलरुबा गीत गाती रही
आप यूं फ़ासलों से ग़ुज़रते रहे
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही
आप यूं....( हंसी)

आज तक कोई नहीं समझ पाया के आसमान जब शबनम के रूप में पिघलता है तो इसमें करुणा होती है या कोई ख़ुशी? यहां भी आसमां के कतरा कतरा पिघलने पर अधिक व्यक्ख्या नहीं की गई है क्‍योंकि अगले ही क्षण लता जी की आवाज़ आपका हाथ थाम कर रूह की वादियों में उतर जाती है । वैसे इस गाने को आंख बंद कर आप सुन रहे हैं तो पूरे समय आप रूह की वादियों में ही घूमते रहेंगें । और वो दिलरुबा नदी ? निश्चित रूप से लता जी की आवाज़ । मुखड़े के दोहराव के बाद आये ''आप यूं '' के बाद फिर एक सबसे स्पष्ट हंसी ....?

तीसरा अंतरा गीत का सबसे ख़ूबसूरत अंतरा है ।

आपकी नर्म बांहों में खो जायेंगे..2
आपके गर्म ज़ानों पे सो जायेंगे--सो जायेंगे
मुद्दतों रात नींदे चुराती रही
आप यूं फ़ासलों से ग़ुज़रते रहे
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही
आप यूं....( हंसी) आप यूं ....

शायद किसी भटकती हुई आत्मा के अपने पुनर्जन्‍म पाए हुए प्रेमी से पुर्नमिलन के लिये ही ये गीत लिखा गया है । उसका प्रेमी अभी सोलह साल का किशोर ही है जो उसके होने का एहसास भी नहीं कर पा रहा है । चंदन धूप के धुंए की तरह उड़ती वो रूह उस किशोर की नर्म बांहों के आकाश या गर्म ज़ानों ( कंधे) की धरती पर अपनी मुक्ति का मार्ग ढूँढ रही है । थकी सी आवाज़ में लताजी जब इन शब्दों को दोहराती हैं ''सो जायेंगे, सो जायेंगे'' तो जन्मों जन्मों की थकान को स्पष्ट मेहसूस किया जो सकता है । अचानक आवाज़ रुक जाती है संगीत थम जाता है । ऐसा लगता है मानो उस आत्मा को अपने हल्‍की हल्‍की मूंछों वाले किशोर प्रेमी के गर्म ज़ानों पर मुक्ति मिल ही गई है, किंतु क्षण भर में ही सन्नाटा टूट जाता है और पीड़ा अपनी जगरातों भरी रातों का हिसाब देने लगती है ''मुद्दतों रात नींदे चुराती रही '' । फिर वही मुखड़ा और ''आप यूं '' में फिर वही हंसी । और सब कुछ ग़ुज़र जाता है । रह जाते हैं आप ठगे से, लता जी, खैयाम साहब और जां निसार अख्तर साहब तीन मिनट में आपको सूफी बना जाते हैं ।

1975 में ये फ़िल्म 'शंकर हुसैन" आई थी, और आज लगभग 33 साल बीत गये हैं किंतु इस गीत के आज भी उतने ही दीवाने हैं जो 33 साल पहले थे. अंत में इस गीत को सुनने के बाद इसके दीवानों की जो अवस्था होती है उसको शंकर हुसैन का लता जी का दूसरा गीत अच्छी तरह से परिभाषित करता है -

''अपने आप रातों में चिलमनें सरकती हैं

चौंकते हैं दरवाज़े सीढि़यां धड़कती हैं ''


प्रस्तुति - पंकज सुबीर

सुनो कहानीः शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रेमचंद की कहानी 'प्रेरणा'



सुनो कहानीः शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रेमचंद की कहानी 'प्रेरणा' का पॉडकास्ट

गुरु गोबिंद दोउ खड़े काके लागूँ पाऊँ,
बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो बताय

संत कबीर के उपरोक्त शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। प्राचीन काल से ही भारतीय बच्चे "आचार्य देवो भवः" का बोध-वाक्य सुन-सुन कर ही बड़े होते हैं। माता पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है।

आइये इस शिक्षक दिवस पर अपने पथ-प्रदर्शक शिक्षकों, अध्यापकों, आचार्यों और गुरुओं को याद करके उनको नमन करें। शिक्षक दिवस के इस शुभ अवसर पर उन शिक्षकों को हिंद-युग्म का शत शत प्रणाम जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों की वजह से आज हम इस योग्य हुए कि मनुष्य बनने का प्रयास कर सकें।

आवाज़ की ओर से आपकी सेवा में प्रस्तुत है एक शिक्षक और एक छात्र के जटिल सम्बन्ध के विषय में मुंशी प्रेमचंद की मार्मिक कहानी "प्रेरणा"। इस कहानी को स्वर दिया है शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह एवं अनुराग शर्मा ने।

सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

नीचे के प्लेयर से सुनें।(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)(Broadband कनैक्शन वालों के लिए)




(Dial-Up कनैक्शन वालों के लिए)





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आज भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं, तो यहाँ देखें।

#Third Story, Prerana: Munsi Premchand/Hindi Audio Book/2008/4. Voice: Shobha Mahendru, Shivani Singh, Anuraag Sharma

Wednesday, September 3, 2008

मैं अमर के शब्दचित्र में उतरी एक छोटी-सी कविता हूँ...



मैं अमर के शब्दचित्र में उतरी एक छोटी-सी कविता हूँ,
है फख्र कि मैं भी उस जैसा कई लोकों का रचयिता हूँ।
कहना है विश्व दीपक "तन्हा" का.

विश्व दीपक "तन्हा",एक कवि के रूप में इन्टरनेट पर एक ऐसा नाम है जो किसी परिचय का मोहताज नही है,अपनी कविताओं और कहानियो से एक उभरते हुए साहित्यकर्मी के रूप में अपनी पहचान बनने वाले "तन्हा",का लिखा पहला स्वरबद्ध गीत "
मेरे सरकार",पिछले हफ्ते आवाज़ पर ओपन हुआ,और बेहद सराहा गया,आईये मिलते हैं,कवि कथाकार और गीतकार विश्व दीपक तन्हा से,जो हैं इस हफ्ते हिंद युग्म,आवाज़ के उभरते सितारे -

अपने बारे में ज्यादा क्या बताऊँ? एक संक्षिप्त परिचय यानि कि intro दे देता हूँ बस । जन्म बिहार के सोनपुर में हुआ, दिनांक २२ फरवरी १९८६ को। अब मैं अपने सोनपुर से आप सब को अवगत करा देता हूँ। मेरा/हमारा सोनपुर हरिहरक्षेत्र के नाम से विख्यात है, जहाँ हरि और हर एक साथ एक हीं मूर्त्ति में विद्यमान है और जहाँ एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। पूरा क्षेत्र मंदिरों से भरा हुआ है। इसलिए बचपन से हीं धार्मिक माहौल में रहा। लेकिन मैं कभी भी पूर्णतया धार्मिक न हो सका। पूजा-पाठ के श्लोकों और दोहों को मैं कविता की तरह हीं मानता था। पर मेरे परिवार में कविता, कहानियों का किसी का भी शौक न था। आश्चर्य की बात है कि जब मैं आठवीं में था, तब से पता नहीं कैसे मुझे कविता लिखने की आदत लग गई । फिर तो चूहा, बिल्ली, चप्पल, छाता किसी भी विषय पर लिखने लगा। मेरे परिवार में पढाई के अलावा कुछ भी करना पढाई से आँख और नाक चुराने जैसा माना जाता था। इसलिए घरवालों से छिपाकर लिखता था।


पहली कविता कौन-सी थी याद नहीं लेकिन पहली कविता जिसे मेरे पिताजी ने स्वीकार किया, वो याद है। जब मैं दसवीं में था, तो मेरी छोटी बहन को १५ अगस्त के अवसर पर अपने स्कूल में एक कविता सुनानी थी। मैने अपनी लिखी एक कविता "तिरंगा के तीन रंग" अपनी बहन को दी और कहा कि पापा से पूछ लेना कि इसे कैसे गाना है। मेरे पिताजी ने मेरी बहन को कहा कि कवि से हीं पूछो ;) । अपनी कविता की स्वीकृति सुनकर मुझे बेहद अच्छा लगा। फिर जब मैं १२वीं में था पिताजी के कार्यालय में होली के अवसर पर एक कविता की आवश्यकता थी। मेरी खुशी का ठिकाना न रहा जब मेरे पिताजी ने खुद मुझसे कविता लिखने के लिए कहा। यह अलग बात है कि वह कविता कार्यालय में पढी नहीं जा सकी , क्योंकि कुछ बड़े कवि आए हुए थे, लेकिन मुझे जो चाहिए था, वह मैने पा लिया था।
इसतरह शनै:शनै: कविता-लेखन का मेरा सफ़र चलता रहा।

१२वीं के बाद आई०आई०टी० जे०ई०ई० की तैयारी के लिए पटना चला गया।माहौल बदला, मूड बदला, उमर बदली तो प्यार-मोहब्बत की कविताएँ लिखने लगा। कभी महसूस होता था कि कहीं मेरी कविताएँ मेरे भविष्य को बर्बाद न कर दे, क्योंकि हर समय कुछ न कुछ लिखता हीं रहता था , तैयारी अधोगति पर थी। फिर भी कुछ दुआओं और सदबुद्धि आने के बाद बहुत सारी मेहनत के बलबूते मैं आई०आई०टी० में प्रवेश पाने में सफल हुआ। नामांकन संगणक विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग(Computer science and Engineering Department) में हुआ। बिहार बोर्ड का छात्र होने के कारण मुझे कम्पूटर की कुछ भी जानकारी न थी। इसलिए नामांकन के बाद मुझे बाकी छात्रों के लेवेल में आने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ी। लेखन का दौर धीरे-धीरे खत्म होने लगा।

इंजीनियरिंग के प्रथम और द्वितीय वर्षों में मैने नाम-मात्र की कविताएँ लिखीं। हास्टल मैगजीन और इन्स्टीच्युट मैगजीन के लिए एक-दो कविताएँ लिखता रहा बस। फिर तृतीय वर्ष में आरकुट पर "गिरीराज जोशी" ,"शैलेश भारतवासी" और "राजीव रंजन प्रसाद" से मुलाकात हुई। इन लोगों के माध्यम से हिन्द-युग्म के संपर्क में आया। दिसंबर २००६ में मैं हिन्द-युग्म का नियमित सदस्य हो गया। अब तो हर सप्ताह कविताएँ, मुझे लगा जैसे मैने खुद को वापस पा लिया। तकनीकी दुनिया और साहित्यिक दुनिया के बीच का पुल मैने पा लिया था। पहली कविता जो मैने युग्म पर प्रकाशित की थी , वो थी "याद" । आज भी मुझे याद है कि जब इस कविता पर सकारात्मक टिप्पणियाँ आई थीं तो दिल कितना खुश हुआ था। कुछ महीनों के पश्चात काव्य-पल्लवन की शुरूआत हुई। एक दिए गए विषय पर लिखना एक नया हीं अनुभव था। युग्म के अन्य मित्रों के सहयोग से धीरे-धीरे मैं भी अनुभवी होता गया।

फरवरी २००७ के यूनिकवि विजेता "गौरव सोलंकी" के प्रयास से युग्म ने एक नया अभियान शुरू किया , जिसका नाम था "कहानी-कलश" । युग्म बस कविताओं तक हीं सीमित नहीं रहना चाहता था , उसके पास कहानिकारों की भी एक उम्दा फौज थी। इसलिए कहानी-कलश भी चल निकला। मैने कभी पहले कोई कहानी नहीं लिखी थी, लेकिन मित्र गौरव के कहने पर मुझमे भी कहानी-लेखन की जिज्ञासा जगी। कुछ कच्चे शब्दों को जोड़कर मैने भी एक कहानी रच डाली "तुलसी की छांव" । कुछ सुधि पाठकों ने मेरी प्रथम कहानी को सराहा । फिर २-३ महीनों के अंतराल पर मैने कहानी लिखने का प्रण किया। ३-४ कहानियाँ लिख डालीं, लेकिन अब भी मुझे कहानी लेखन बड़ा हीं मेहनत का काम लगता है, इसलिए ज्यादा लिख नहीं पाता।

इसी तरह "राजीव रंजन प्रसाद" की कड़ी निष्ठा के बदौलत युग्म ने बाल-साहित्य पर भी काम करने का वचन लिया। इसी दिशा में "बाल-उद्यान" नाम का एक नया मंच तैयार किया गया। मैने भी अपनी कुछ कविताएँ वहाँ प्रेषित की , जो मैने आठवीं से दसवीं के बीच लिखी थी। जब लिखी थी, तब मुझे वो रचनाएँ बचकानी नहीं लगती थी, लेकिन अब वे बचकानी के अलावा कुछ नहीं लगतीं ;) बाल-उद्यान अभी भी अपने कार्य में सफलतापूर्वक तल्लीन है।

कुछ महीनों के बाद युग्म पर "सजीव सारथी" का पदार्पण हुआ और उन्होंने युग्म को एक नई दिशा हीं दे दी। कविताएँ, कहानियाँ अब बस लिखी हीं नई जाने लगीं, बल्कि उनमें आवाज रूपी जान भी पैदा की गई। गीत बनने लगें, गज़लें तैयार होने लगीं, नए-नए संगीतकार,गीतकार और गायकों का युग्म पर आगमन शुरू हो गया।शुरू-शुरू में हर महीने एक नया गीत युग्म की शोभा बढाने लगा, फिर हर पंद्रह दिनों पर और अब हर सप्ताह। मैने भी सोचा कि अपनी प्रतिभा का इम्तीहान लिया जाए। मैने अपना एक गीत सुभोजित को भेज दिया। २ हफ्तों की माथापच्ची के बाद गीत के बोल में ढेर सारे परिवर्त्तन किए गए । २-३ महीनों की मेहनत के पश्चात सुभोजित ने इसे फाईनल लूक और टच दिया और १-२ हफ्तों की कलाकारी और गलाकारी लगाकर बिस्वजीत ने इसे अपनी आवाज से एक नया हीं रंग दे दिया। आखिरकार वह गीत पिछले सप्ताह आवाज़ के मंच पर रीलिज हो गया। उम्मीद है कि सभी पाठको और श्रोताओं ने उस गीत का रसास्वादन किया होगा।

"मेरे सरकार" इस गीत के पीछे की कहानी कुछ खास नहीं है। आज सबके समक्ष मैं उस कहानी का पर्दाफाश कर रहा हूँ। दर-असल सुभोजित ( हमारे प्यारे संगीतकार साहब) , जो कि अभी ११वीं में पढते हैं, को एक ऎसे गाने की जरूरत थी, जो वे अपनी भावी प्रेमिका को सुना सकें और उसे मोहित कर सकें। भावी इसलिए क्योंकि वो सौभाग्यशाली लड़की अभी तक उनकी प्रेमिका बनी नहीं थी, एकतरफा प्यार था। मैने उसे जो गाना दिया था, उसमें कुछ बांग्ला के भी शब्द थे। मैने सोचा था कि लड़की बंगाली हीं होगा, इसलिए "बोलबो आमि सोना, तुमाके भालो बासि"(मैं तुमसे कहूँगा कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ) जैसे वाक्य मैने जानकर डाले थे। लेकिन न जाने क्यों सुभोजित ने वह गाना स्वीकार नहीं किया। शायद लड़की बंगाली नहीं होगी :) । उसने कहा कि एक हिंदी गाना लिखकर दो। तो मैने "मेरे सरकार" लिखा। और वाह............सुभोजित ने वह गाना स्वीकार कर लिया। उसने कहा कि बहुत हीं मीठे बोल हैं, मैं इसपर कुछ क्लासिकल टाईप का म्युजिक दूँगा। मैं हैरान.....इस गाने पर क्लासिकल म्युजिक। मरता क्या न करता....आखिर मेरा पहला गाना था। मैने बोला कि तुम जो भी बनाओगे , अच्छा हीं बनाओगे, तुम्हारी मर्जी क्लासिकल हीं दो। और उसने जो म्युजिक(संगीत) दिया, मैने उसकी आशा भी नहीं की थी। बहुत हीं खूबसूरत.....मजा आ गया।

तो ये रही "मेरे सरकार" के पीछे की कहानी..............। अब पता नहीं सुभोजित अपने सरकार को अपनी प्रेयसी बना पाए कि नहीं ;)

जब मैं युग्म का सदस्य बना था, तो बमुश्किल १० लोग हीं हमारे साथ थे। लेकिन हम सबों के प्रयास से युग्म की सदस्य-संख्या बढती गई। अब तो ५० से भी ज्यादा लोग हमारे कारवां में शामिल हैं। इसलिए युग्म की प्रगति में हम सबका बराबर का सहयोग अपेक्षित है। मैं बस यही दुआ करता हूँ कि हर कोई निस्वार्थ भाव से यूँ हीं युग्म की सेवा करते रहे और युग्म अपने हरेक मंच पर सफलता का परचम लहराए।

- विश्व दीपक "तन्हा"

युग्म परिवार की तरफ़ से भी "तन्हा" जी को बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें. इसी बात पर क्यों न एक बार फ़िर आनंद लें सप्ताह के गीत "मेरे सरकार" का, और हौंसलाअफजाई करें आवाज़ की इस नयी संगीत टीम का -




आप भी इसका इस्तेमाल करें

गाइए गणपति जगवंदन- पारूल की पेशकश



सुनिए सिद्धि विनायक गणपति बप्पा की वंदना



आज गणेश चतुर्थी है, पूरे देश में इस त्योहार की धूम है। कोई नये कपड़े खरीद रहा होगा तो कोई अपने परिजनों के लिए नये-नये उपहार। हलवाई की दुकान पर भीड़ होगी तो गणेश के मंदिर में हुजूम। आवाज़ के मंच पर तो कुछ संगीतमयी होना चाहिए। इसीलिए हम लेकर आये हैं एक संगीतबद्ध भजन जिसे पेश कर रही हैं बोकारो से पारूल। यह भजन पारूल द्वारा तानपुरा (तानपूरा) पर संगीतबद्ध है।

सुनिए और खो जाइए भक्ति-संगीत में।





हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार बुद्धि के देवता श्री गणपति का जन्मोत्सव हम सब भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को आनन्द व उल्लास के साथ विभिन्न तरीकों से मनाते हैं। अलग-अलग प्रांतों में इस पावन पर्व की महिमा विविध रंगों में दिखायी पड़ती है। भारत में गणेशोत्सव की धूम सबसे अधिक माहारा्ष्ट्र प्रान्त में गूँजती है। यहाँ गणपति बप्पा की मूर्ति की स्थापना से प्रारम्भ होकर दस दिनों तक यह त्यौहार जन-जन को भक्ति रस में सरोबार करने के बाद, अनंत चतुर्दशी को मूर्ति विसर्जन के साथ संपन्न होता है।

गणेश चतुर्थी की हमारे स्वतंत्रता संग्राम में अहम् भूमिका रही है. यह त्यौहार सन १८९३ से पहले घर की चारदीवारियों में मनाया जाता था. इसे जन-जन में लोकप्रिय करने का श्रेय श्री बाल गंगाधर तिलक को जाता है. श्री तिलक स्वतंत्रता संग्राम में सामाजिक एकता के महत्व को समझते थे। उन्होंने समझ लिया था की अंग्रेजों की "बाँटो और राज करो" की नीति को तोड़े बगैर स्वतंत्रता नहीं पायी जा सकती. समाज विभिन्न वर्गों में बँटा था और अंग्रेज इस बँटवारे को हवा दे रहे थे. श्री तिलक ने गणेश चतुर्थी के अवसर पर गणेश की प्रतिमा सार्वजनिक स्थलों पर स्थापित करवाई और इस बात पर जोर दिया की समाज के विभिन्न तबके के लोग आये और पूजा में सम्मिलित हों. दस दिनों तक संगीत सभाओं आदि का आयोजन किया जाने लगा जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों के लोग भाग लेते थे. दसवें दिन सम्मिलित रूप से प्रतिमा विसर्जित करने के पीछे तिलक की भावना सामाजिक भेदभाव को दूर करना था. एकबार जब सामजिक एकता दृढ़ हुई तो तिलक ने स्वराज आन्दोलन का सूत्रपात किया.

गणेश चतुर्थी के माध्यम से तिलक ने एक ऐसे विशाल मंच को तैयार किया जहाँ से कालांतर में गाँधी ने स्वतंत्रता संग्राम की बिगुल फूंकी.

प्रस्तुति- पारूल


#pics of Ganapati Bappa Morya

Tuesday, September 2, 2008

कोई हमदम न रहा... किशोर कुमार ( २ )



अवनीश तिवारी लिख रहे हैं हरफनमौला फनकार किशोर कुमार के सगीत सफर की दास्तान, जिसकी पहली कड़ी आप यहाँ पढ़ चुके हैं, अब पढ़ें आगे -

साथियों ,
इस महीने याद करेंगे किशोर कुमार के जीवन के उस दशक की जो उनके भीतर के कुदरती कला को प्रस्तुत कर उनको एक बेजोड़ कलाकार के रूप में स्थापित करता है. १९६०-१९७० का वह दशक हिन्दी फ़िल्म जगत में किशोर के नाम से छाया रहा चाहे अभिनय हो, संगीत बनाना हो या गाना गाना और या फ़िर फिल्मो का निर्देशन, लगभग फिल्मी कला के हर क्षेत्र में किशोर ने सफल प्रयोग किए. किसी साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि उन दिनों वे इतने व्यस्त थे कि एक स्टूडियो से दुसरे स्टूडियो जाते समय, चलती गाडी में ही अगले दिए गए कामों (assignments) की तैयारी करने लगते.

इस सुनहरे दशक में किशोर के अभिनय और आवाज़ की कुछ यादगार फिल्मे -

१. १९६० - बेवकूफ , गर्ल फ्रेंड
गर्ल फ्रेंड फ़िल्म सत्येन बोश की निर्देशित फ़िल्म थी जिसका एक गीत अपनी छाप छोड़ गया गायिका सुधा मल्होत्रा के साथ गाया गीत " कश्ती का खामोश सफर है " यादगार रहा

२. १९६१ - झुमरू
किशोर के हरफनमौला होने का परिचय देती यह फ़िल्म कभी भुलाई नही जा सकती इसके योडेल्लिंग अंदाज़ में गाये सारे गीत आज भी ताजे हैं " कोई हम दम ना रहा , कोई सहारा ना रहा ..." यह गीत तो किशोर को भी बेहद पसंद था बड़े भाई अशोक कुमार भी इसी गीत से छोटे किशोर को याद कर लिया करते थे



३. १९६२ - बॉम्बे का चोर - माला सिन्हा के साथ अभिनय किया

४. १९६२ - Half Ticket - अभिनेत्री मधुबाला के साथ की यह फ़िल्म मस्ती और हंसी से भरपूर थी बच्चों की तरह शरारत करते किशोर को खूब पसंद किया गया

५. १९६४ - दूर गगन की छाँव में - " आ चल के तुझे मैं लेकर चलूं ..." यह मीठा गाना काफी लोकप्रिय हुया
यह फ़िल्म किशोर को भी प्रिय थी

६. १९६५ - श्रीमान फंटूस - यह नाम लेते ही गम से दिल को भर जाने वाला गाना याद आ जाता है गाना था - " वो दर्द भरा अफ़साना ..." जितने भी बड़े स्टेज शो हुए, लगभग सभी में किशोर ने इस गीत को दोहराया

६. १९६७ - हम दो डाकू

७. १९६८ - पडोसन - यह एक ऐसी दिलचस्प फ़िल्म है कि जिसे १०० बार देखने के बाद भी देखने का मन करे
साइड हीरो के रूप में किए गए अभिनय से किशोर ने इसे आज तक जवां रखा है
" एक चतुर नार..." इस भिडंत गाने के लिए सफल गायक मन्ना दे ने तक किशोर के हुनर की दाद दी
शास्त्रीय संगीत से बेखबर किशोर ने तैयारी कर कामयाबी से इस गीत को पूरा किया

८. अन्य फिल्मे -
१९६८ - श्रीमान , पायल की झंकार
१९७० - आंसू और मुस्कान आदि ...

गायक बना संगीतकार -

संगीत की समझ आने पर किशोर ने संगीतकार का भी काम किया उनका हुनर यहाँ भी हिट हुया

१९६२ - झुमरू में संगीत बनाया इतना ही नही तो गीत के बोल भी लिखे और सभी जानते है गानों से ही यह फ़िल्म आज भी देखी जाती है

१९६४ - दूर गगन की छाँव में और १९६७ - हम दो डाकू में भी संगीत दिया

किशोर कुमार आपने गानों में योडेलीन के अंदाज़ के कारण जाने जाते रहे. यह नुस्खा उन्होंने अपने मझले भाई अनूप कुमार के एक रिकॉर्डिंग से छिप कर सीखा था. अनूपजी ने इसे विदेश से लाये थे.
गीत और संगीत में किशोर इतने उलझे थे कि उनके अभिनय के गीत उस समय मोहम्मद रफी जी को गाने पड़े.

साथ का यह फोटो किशोर कुमार के अलग अलग पहलू को बता रहा है.




गायकी में सम्मान -

यह एक सफल और कई मायनो में याद गार फ़िल्म रही १९६९ में शक्ति सामंत की फ़िल्म "आराधना"
राजेश खन्ना पर फिल्माए गीतों ने तो हिन्दी फिल्मो में Romantic Songs की कड़ी में एक हलचल सी मचा दी "मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू ..." और "रूप तेरा मस्ताना ..." - आज भी सुपर हिट है
" रूप तेरा मस्ताना ..." - इस गीत के लिए किशोर को जीवन का पहला फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला
यही फ़िल्म है जहाँ से मशहूर संगीतकार आर. डी. बर्मन ने अपने पिता की गैरमौजूदगी में ख़ुद ब ख़ुद काम संभाला और फ़िर बस आगे चलते ही गए.

राजेश खन्ना बताते हैं कि पहली बार उनके लिए गाने से पहले किशोर दा ने उन्हें बुलाया और उनसे सवाल-जवाब किए. गानों के बन जाने पर राजेश जी को पता चला कि किशोर उस मुलाक़ात में उनके बोलने के अंदाज़ की मालूमात कर रहे थे. बस इसके बाद किशोर और राजेश खन्ना एक दुसरे के लिए पर्याय से हो गए.

१९६० में उस जमाने की मशहूर और खुबसूरत आदकारा मधुबाला के साथ शादी के बंधन में बंधे पारिवारिक नाराजगी के चलते उन्हें इस सम्बन्ध में तकलीफों का सामना करना पडा दिल की मरीज़ मधुबाला के इलाज़ के लिए किशोर ने कोशिश की लेकिन १९६९ में यह साथ टूट गया और बिना साथी के किशोर फ़िर अकेले पड़े.

गैर हिन्दी गाने -

असल में किशोर बंगाली थे और बंगला में भी गाने गाये १९६४ में सत्यजीत रॉय जैसे सफल निर्देशक की फ़िल्म "चारुलता" में उन्होंने गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर के बंगला गीत " आमी चीनी गो चीनी तोमारे ..." गीत को गाकर यह साबित कर दिया कि वे एक प्रतिभाशाली ( versatile ) कलाकार थे वे सत्यजीत रॉय के करीब रहे और "पाथर पंचोली" फ़िल्म के निर्माण में उन्होंने रोय जी की आर्थिक मदद भी की

इस तरह से १९६०-१९७० का दशक किशोर कुमार को एक कुशल कलाकार के रूप में देखता है

इस महीने के इस किशोरनामे को मैं कुछ पंक्तियों से सलाम करता हूँ -

गजब के सूर थे और खूबसरत थी आवाज़ ,
लाजवाब अभिनय था और अलग ही अंदाज़ ,
छीडके थे जो बीज अपने हुनर के तुमने ,
बन चमन महका करती है वो आज





- अवनीश तिवारी

( जारी...)

मिलिए बर्ग वार्ता वाले स्मार्ट इंडियन से



'पढ़ने' की बजाय 'सुनने' को ज्यादा प्राकृतिक मानने वाले अनुराग

दोस्तो,

पिछले २ सप्ताहों से आप एक आवाज़ को हिन्द-युग्म पर खूब सुन रहे हैं। और आवाज़ ही क्या, इंटरनेट पर हिन्दी की जहाँ उपस्थिति है, वहाँ ये उपस्थित दिखाई देते हैं। हमारे भी हर मंच पर ये दिखते हैं। इन्होंने आवाज़ पर ऑडियो-बुक का बीज डाला। इनका मानना है कि भारत में ऑडियो बुक्स में अभी बहुत सम्भावने हैं। ये हिन्दी साहित्य को किसी भी तरह से जनप्रिय बनाना चाहते हैं। इसीलिए अपनी आवाज़ में प्रसिद्ध कहानियों को वाचने का सिलसिला शुरू कर दिया है।
अनुराग शर्मा
अनुराग विज्ञान में स्नातक तथा आईटी प्रबंधन में स्नातकोत्तर हैं। एक बैंकर रह चुके हैं और वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक स्वास्थ्य संस्था में ऍप्लिकेशन आकिर्टेक्ट हैं। उत्तरप्रदेश में जन्मे अनुराग भारत के विभिन्न राज्यों में रह चुके हैं । फिलहाल पिट्सबर्ग में रहते हैं। लिखना, पढ़ना, बात करना यानी सामाजिक संवाद उनकी हॉबी है। शायद इसीलिए वे कविता, कहानी, लेख आदि विधाओं में सतत् लिखते रहे हैं। वे दो वर्ष तक एक इन्टरनेट रेडियो (PittRadio) चला चुके है। पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति पर वे सृजनगाथा पर एक शृंखला लिख रहे हैं। एक हिन्दी काव्य संग्रह "पतझड़ सावन वसंत बहार" प्रकाशनाधीन है। आजकल अपने उपन्यासों “बांधों को तोड़ दो”"An Alien Among Flesh Eaters" पर काम कर रहे हैं। उन्हें Friends of Tibet (भारत) एवं United Way (संयुक्त राज्य अमेरिका) जैसे समाजसेवी संगठनों से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त है। वे सन् 2005 में लगभग एक लाख डॉलर की सहायता राशि जुटाने वाली त्सुनामी समिति के सदस्य भी रहे हैं। आप उन्हें स्मार्ट इंडियन पर भी मिल सकते हैं।

आइए इनसे कुछ बाते हैं करते हैं।

सवाल- आप इतना सबकुछ करते हैं, कहीं आपका २४ घण्टा ४८ का तो नहीं होता! :)

अनुराग: मेरा दिन सिर्फ़ १५-१६ घंटे का होता है क्योंकि और कुछ हो न हो ८-९ घंटे की नींद मेरी सबसे ज़रूरी खुराक है. काम शुरू करने से पहले जहाँ तक सम्भव हो उसकी योजना मन में बना लेता हूँ, याददाश्त अच्छी है और मन शांत रहता है इसलिए थोड़ी आसानी हो जाती है. समय का सदुपयोग करता हूँ. मेरा काम ऐसा है जिसमें नयी तकनीक से हमेशा रूबरू होना पड़ता है और मैं आजन्म विद्यार्थी हूँ. किताबें पढने के बजाय जहाँ तक सम्भव हो ऑडियो बुक्स को सुनता हूँ. ड्राइव करते समय रेडियो पर खबरें और CD पर किताबें व संगीत सुनता हूँ. दफ्तर व घर में काम करते समय भी अपने काम से जुड़े हुए पॉडकास्ट सुनता हूँ.

सवाल:- जबकि भारत में इंटरनेट गति की बहुत अच्छी हालत नहीं है, फिर आप कैसे मान रहे हैं कि हमारा कहानियों, उपन्यासों, नाटकों को आवाज़ देने का प्रोजेक्ट सफल होगा?

अनुराग- पता नहीं इसका उत्तर मैं ठीक से (express) समझा पाऊँगा की नहीं, मगर उदाहरणों से कोशिश करता हूँ:

क) सुनना प्राकृतिक है, पढ़ना नहीं.
ख) आज इन्टरनेट धीमा हो सकता है मगर कल उसे तेज़ ही होना है.
ग) ८० के दशक में भारतीय बैंकों ने कंप्यूटर लगाने की कोशिश की थी. एक लाख रुपये में बिना हार्ड डिस्क के १२८ MB राम के कंप्यूटर आए तो लोगों ने कहा की पैसे की बर्बादी है. वामपंथी दलों ने तो बहुत पुरजोर विरोध इस बिना पर किया की कंप्यूटर से सारा भारत बेरोजगार हो जायेगा. एक दशक के अन्दर न सिर्फ़ कंप्यूटर सुधरे, उसी जुडी हुई नई तकनीक, इन्टरनेट, मोबाइल आदि छा गए. बेरोजगारी तो दूर, आज भारतीयों को सारी दुनिया में रोज़गार मिला कंप्यूटर की बदौलत. यह घटना बताने का तात्पर्य यह है कि दृष्टा आज को नहीं कल और परसों को देखता है - यहीं पर वह अन्य लोगों से भिन्न होता है.
घ) पढने में समय लगता है. धीमी गति में डाउनलोड होने पर भी वह डाउनलोड दूसरा काम करते हुए - मसलन आप नहायिये तब तक डाउनलोड हो जाता है - कपड़े पहनिए तब तक सुना भी जा सकता है.

प) वृद्ध लोग, कमज़ोर आंखों वाले, या मेरे जैसे जो आँखें बंद करके बेहतर ध्यान दे पाते हैं - ऐसे लोगों के लिए तो ऑडियो-बुक्स वरदान के समान हैं. मैं कितना भी थका हुआ हूँ, भले ही पढ़ न सकूं, सुन तो सकता ही हूँ.

फ) कागज़ आया और चला गया - श्रुतियां उससे पहले भी थीं और उसके बाद भी रहेंगी - सरस्वती वाक्-देवी हैं. संस्कृत का पूरा नाम संस्कृत-वाक् है. हमारी संस्कृति में कथा का पाठ नहीं वाचन होता है.
भ) टीवी आया तो सबने कहा कि रेडियो के दिन पूरे हुए - मगर हुआ क्या? AM से हम FM में आ गए और आगे शायद कहीं और जाएँ मगर निकट भविष्य में सुनना आउट ऑफ़ फैशन नहीं होने वाला है यह निश्चित है.

सवाल- क्या आप अपने वाचन से संतुष्ट हैं या इसमें परिमार्जन के पक्षधर हैं?

अनुराग- मैं अपने वाचन से कतई भी संतुष्ट नहीं हूँ मगर मेरा विश्वास है कि -लेट परफेक्शन नोट बी दि एनेमी ऑफ़ द गुड. (मेरे ही) दूसरे शब्दों में -बात तो आपकी सही है यह, थोडा करने से सब नहीं होता फ़िर भी इतना तो मैं कहूंगा ही, कुछ न करने से कुछ नहीं होता। इस प्रक्रिया में मेरा वाचन भी सुधरेगा - दूसरे जब यह काम शुरू हो जायेगा, तो दूसरी बहुत अच्छी आवाजें सामने आयेंगी. जब हम एक टीम बना पायेंगे, तो कथा-संकलन संगीत, आवाज़ व रिकार्डिंग तकनीक के श्रेष्ठ पक्ष सामने आयेंगे।

सवाल- भारत से दूर रहकर खुद को भारत से जोड़ना ब्लॉगिंग के कारण कुछ आसान नहीं हो गया है?

अनुराग- भारत से दूर रहकर खुद को भारत से जोड़ना ब्लॉगिंग के कारण आसान हुआ है- मैं इसका श्रेय यूनीकोड और ट्रांसलिट्रेशन को दूंगा जिन्होंने हम जैसों में लिखना आसान कर दिया.

सवाल- आवाज़ पर आपकी भावी योजनाएँ क्या हैं?

अनुराग- आवाज़ की भावी योजनाएँ तो सारी टीम को मिलकर लोकतांत्रिक (पारंपरिक शब्दों में याज्ञिक) रूप से ही तय होनी चाहिए।

Monday, September 1, 2008

अहमद फ़‌राज़ की शायरी, उनकी अपनी आवाज़ में



सुनिए अहमद फ़राज़ की २३ रिकॉर्डिंग उन्हीं की आवाज़ में

पिछला सप्ताह कविता-शायरी के इतिहास के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता क्योंकि हमने पिछले सोमवार कविता का न मिट सकने वाले अध्याय का सृजक, पाकिस्तानी शायर अहमद फ़राज़ को खो दिया। एक दिन बाद ही हिन्द-युग्म पर प्रेमचंद की रूला देने वाली श्रद्धाँजलि प्रकाशित हुई। दीप-जगदीप ने उनके आखिरी ३७ दिनों का ज़िक्र किया। मेरा कविता-प्रेमी मन भी उनको इंटरनेट पर तलाशता रहा। मैंने उनकी आवाज़ कभी नहीं सुनी थी। हाँ, उनकी शायरियाँ दूसरे लोगों की जुबानों से सैकड़ों बार सुन चुका था।

पाकिस्तान के नवशेरा में जन्मे फ़राज़ की आवाज़ खोजते-खोजते मैं एक पाकिस्तानी फोरम पर पहुँच गया, जहाँ उनकी आवाज़ सुरक्षित थी। एक नहीं पूरी २३ रिकॉर्डिंग। कुछ तकनीकी कमियों के कारण उन्हें सीधे सुन पाना आसान न था, तो मैंने सोचा इस महान शायर के साथ यह अन्याय होगा, यदि आवाज़ बहुत बड़े श्रोतावर्ग तक नहीं पहुँची तो। वे फाइलें भी सुनने लायक हालत में नहीं थी। अनुराग शर्मा से निवेदन किया कि वे उन्हें परिवर्धित और संपादित कर दें।

उसी का परिणाम है कि आज हम आपके सामने उनकी २३ रिकॉर्डिंग लेकर उपलब्ध हैं। हर शे'र में अलग-अलग रंग हैं। ज़िदंगी के फलसफे हैं। नीचे के प्लेयर को चलाएँ और कम से कम १ घण्टे के लिए अहमद फ़राज़ की यादों में डूब जायें।


Ahmad Faraz ki ghazalen, unhin ki aawaaz mein

बहुत से पाठकों और श्रोताओं को अहमद फ़राज़ के बारे में अधिक पता नहीं है। आइए शॉर्ट में जानते हैं उनका परिचय।

अहमद फ़राज़ (जनवरी १४, १९३१- अगस्त २५, २००८)


अहमद फ़राज़ बीती सदी के आधुनिक कवियों में से एक माने जाते हैं। 'फ़राज़' उनका तख़ल्लुस है। इनका मूल नाम सैयद अहमद शाह था। अपनी साधारण मगर प्रभावी शैली के कारण फ़राज़ की तुलना मोहम्मद इकबाल और फै़ज़ अहमद फ़ैज़ से की जाती है, तथा तात्कालिक कवियों (शायरों) में इन्हें विशेष स्थान प्राप्त था। मज़हबी रूप से पश्तूनी होते हुए भी फ़राज़ ने पेशावर विश्वविद्यालय से पर्शियन और ऊर्दू भाषा में दक्षता हासिल की और बाद में वहीं अध्यापन करने लगे। हालाँकि उनका जन्मस्थान नौशेरा बताया जाता है लेकिन 'डेली जंग' के साथ एक साक्षात्कार में फ़राज़ ने अपना जन्मस्थान कोहाट बताया था। रेडिफ डॉट कॉम से साथ एक इंटरव्यू में फ़राज़ ने अपने पिता सैयद मुहम्मद शाह के द्वारा अपने भाइयों के लिए आधुनिक वस्त्र और इनके लिए एक साधारण काश्मीरा लाने पर उसको लौटाये जाने और एक पर्ची पर अपनी पहली द्विपंक्ति लिखे जाने का ज़िक्र भी किया था। लाइने थीं-

लाये हैं कपड़े सबके लिए सेल से
लाये हैं हमारे लिए कम्बल जेल से।


( उपर्युक्त बात का उल्लेख साहित्यकार प्रेमचंद सहजवाला ने भी फ़राज़ पर लिखे अपने लेख में किया है)

अपने कॉलेज़ के दिनों में अहमद फ़राज़ और अली सरदार जाफ़री सर्वश्रेष्ठ प्रगतिशील कवि माने जाते थे। खुद फ़राज़ भी जाफरी से प्रभावित थे और उन्हें अपना रॉल मॉडेल मानते थे।

अनेक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़े गये फ़राज़ को तब जेल भेज दिया गया था जब वे एक मुशायरे में ज़िया-उल-हक़ काल के मिलिटरी राज़ की आलोचना करते पाये गये थे। फिर उन्होंने खुद को ही ६ वर्षों के लिए देश निकाला दे दिया। बाद में जब वे स्वदेश लौटे तो पाकिस्तानी एकादमी ऑफ लेटर्स के चेयरमैन बनें, पाकिस्तान नेशनल बुक फाउँडेशन के भी कई वर्षों तक चेयरमैन रहे।

फ़राज़ जुल्फ़िक़ार-अली-भुट्टो और पाकिस्तानी पिपुल्स पार्टी से प्रभावित थे। साहित्य-सेवा के लिए इन्हें वर्ष २००४ में हिलाल-ए-इम्तियाज़ का पुरस्कार मिला, जिसे इन्होंने सन् २००६ में पाकिस्तानी सरकार की कार्यप्रणाली और नीतियों से नाखुश होकर लौटा दिया।

"मेरी आत्मा मुझे कभी क्षमा नहीं करेगी यदि मैं मूक-चश्मदीद की तरह अपने आस-पास को देखता रहा। कम से कम मैं इतना कर सकता हूँ कि तानाशाह सरकार यह जाने कि अपने मानवाधिकारों के लिए गंभीर जनता की नज़रों क्या स्थान रखती है। मैं यह गरिमामयी सम्मान लौटाकर यह दिखाना चाहता हूँ कि मैं इस सरकार के साथ किसी भी तौर पर नहीं हूँ।" फ़राज़ का वक्तव्य।

शायर अहमद फ़राज़ ने अपना सर्वोत्तम देश-निकाला के समय लिखा। जुलाई २००८ में एक अफ़वाह फैली कि फ़राज़ का शिकागो के एक हस्पताल में देहांत हो गया। फ़राज़ के चिकित्सक ताहिर रोहैल ने इस समाचार का खंडन किया, लेकिन यह सुनिश्चित किया कि वो बहुत बीमार हैं। धीरे-धीरे फ़राज़ का स्वास्थ्य बिगड़ता रहा और २५ अगस्त २००८ की शाम इस्लामाबाद के एक अस्पताल में इनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। इनके मृत-शरीर को २६ अगस्त २००८ की शाम को एच-८, कब्रगाह, इस्लामाबाद में दफना दिया गया।

प्रस्तुति- शैलेश भारतवासी
सहयोग- अनुराग शर्मा

हिस्सा बनिए आवाज़ पर " लता संगीत पर्व " का और जीतिए इनाम



दोस्तो,

लता दी
इस माह की 28 तारीख को हम सब की प्रिय गायिका लता मंगेशकर यानी लता दी, अपना 79वां जन्मदिन मनायेंगी. चूँकि लता दी हिन्दी फ़िल्म संगीत जगत की इतनी बड़ी शख्सियत हैं कि मात्र एक दिन का समय काफ़ी नहीं होगा, उनके अपार गीतों के संग्रह का जिक्र करने के लिए, इसलिए आवाज़ की टीम ने तय किया है कि हम महीने भर का "लता संगीत पर्व" मनाएंगे. जिसमें लता दी के संगीत दीवानों के लिए एक नायाब प्रतियोगिता हम आयोजित करने जा रहे हैं. कोई भी व्यक्ति इस प्रतियोगिता में भाग ले सकता है, करना सिर्फ़ इतना है, कि लता दी का कोई एक गीत आपको चुनना होगा, और उस गीत से सम्बंधित तमाम जानकारियों पर 300 से 400 शब्दों का एक आलेख लिखना होगा. जिसमे उस गीत से जुड़ी हुई कोई अनूठी बात, उस गीत को कोई ख़ास विशेषता जिसके कारण वो गीत आपको इतना अधिक पसंद है, उस गीत से जुड़े अन्य कलाकारों के नाम और गीत के बोल आदि शामिल होंगे. सबसे बढ़िया तरीके से प्रस्तुत पहले 3 आलेखों को क्रमशः 500, 300 और 200 रुपए की पुस्तकें मसि कागद की तरफ़ से और 10 अन्य आलेखों को आवाज़ की तरफ़ से "पहला सुर" एल्बम की एक एक प्रति भेंट की जायेगी.


शर्तें -

1. आलेख हिन्दी में लिखा होना चाहिए, हिन्दी में लिखने के लिए आप इस लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं, किसी भी सहायता के लिए आप hindyugm@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं.

2. प्रवाष्ठियाँ podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें.

3. प्रवष्टि भेजनी की अन्तिम तारीख 15 सितम्बर 2008 है.

4. परिणामों की घोषणा 28 तारीख, लता दी के जन्मदिवस पर की जायेगी.

5. एक मेल खाते से एक ही प्रवष्टि भेजी जा सकती है.

6. आप यदि अपनी तस्वीर व अन्य कोई जानकारी अपने बारे में प्रकाशित करना चाहें तो साथ में संलग्न कर भेज सकते हैं.

तो देर किस बात की, लिख डालिए लता दी के अपने पसंदीदा गीत पर एक आलेख और इस लता संगीत पर्व में शामिल होकर उस महान गायिका तक पहुंचाइये अपने दिल की बात जिसके गीतों ने आपके जीवन को कई मधुर और सुरीले लम्हें दिए हैं.

हमारी कोशिश रहेगी की इस माह हम लता दी का एक्सक्लूसिव संदेश (आवाज़ के नाम) आप तक पहुंचायें, इसके आलावा पंकज सुबीर आपके लिए लायेंगे लता दी के कुछ अनमोल नगमें और बातें, और संजय पटेल अपने ख़ास अंदाज़ में बताएँगे लता दी की कुछ अनसुनी बातें.


आप यदि लता का कोई विशेष गीत सुनना चाह रहे हैं, जिसे आप काफ़ी अर्से से सुन नहीं पाये हैं, ऑनलाइन कहीं मिल नहीं पा रहा है तो कृपया कमेंट में आप अपना अनुरोध भेज दें, आवाज़ के पाठक, श्रोता और कर्ता-धर्ता अगले २४ घण्टों के भीतर आवाज़ पर उसे उपलब्ध कराने की कोशिश करेंगे।

लता दी का कोई गीत यदि आप बहुत बढ़िया गाती हैं, और आपको लगता है कि आपके गायकी में है ज़ादू तो उसे भी रिकॉर्ड कर हमें भेजिए, २८ सित्मबर को हम चुने हुए सर्वश्रेष्ठ गीत को प्रसारित करेंगे। इस सब के अलावा और भी बहुत कुछ होगा, जिससे रोशन होगा आवाज़ पर - लता संगीत पर्व.

मासिक टॉप 10 पन्ने



पाठकों का रूख क्या है? यह जानने के लिए यह टेबल उपयोगी है। हम डायरेक्ट विजीट के आधार पर प्रत्येक माह के शीर्ष १० पोस्टों को प्रदर्शित कर रहे हैं।

आवाज़ पर जुलाई २००८ के टॉप १० पन्ने

RankPage TitleDirect VisitsTotal Page Views
1बढ़े चलो452818
2संगीत दिलों का उत्सव है404772
3आवारादिल400583
4तेरे चेहरे पे263422
5अलविदा इश्मित158179
6पॉडकास्ट कवि सम्मेलन155210
7सीखिए गायकी के गुर130160
8मानसी का साक्षात्कर107172
9नैना बरसे रिमझिम-रिमझिम98163
10झूमो रे दरवेश76118

Stats from 1 July 2008 to 31 July 2008
Source: FeedBurner

आवाज़ पर अगस्त २००८ के टॉप १० पन्ने

RankPage TitleDirect VisitsTotal Page Views
1मैं नदी366612
2मेरे सरकार265410
3चले जाना263448
4जीत के गीत225452
5बे-इंतहा170312
6ऑनलाइन काव्यपाठ और अभिनय का मौका140208
7आसाम के लोकसंगीत का ज़ादू132170
8वो खंडवा का शरारती छोरा130199
9सूफी संगीत भाग दो112151
10लौट चलो पाँव पड़ूँ तोरे श्याम83124

Stats from 1 August 2008 to 31 August 2008
Source: FeedBurner

आवाज़ पर सितम्बर २००८ के टॉप १० पन्ने

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1कहने को हासिल सारा जहाँ था304351
2चलो एक बार फिर से265329
3अहमद फ़‌राज़ की शायरी279321
4दोस्तों ने निभा दी दुश्मनी प्यार से254288
5प्रेमचंद की कहानी 'प्रेरणा'237264
6ओ मुनिया216234
7कोई ना रोको दिल की उड़ान को॰॰157178
8गाइए गणपति जगवंदन135168
9हाहाकार और बालिका-वधू122148
10सच बोलता है मुँह पर120136

Stats from 1 September 2008 to 30 September 2008
Source: Google Analytics

आवाज़ पर अक्टूबर २००८ के टॉप १० पन्ने

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1करवाचौथ पर कविता तथा संगीतबद्ध गीत310367
2राकेश खंडेलवाल की पुस्तक का विमोचन222271
3ऐसा नही कि आज मुझे चाँद चाहिए221265
4डरना-झुकना छोड़ दे191247
5माह का पॉडकास्ट कवि सम्मेलन179210
6जी॰बी॰ रोड पर एक फिल्म195208
7सूरज, चंदा और सितारें158186
8आखिरी बार बस, तेरा दीदार160185
9सांसों की माल में सिमरूँ मैं94118
10बेकरार कर के हमें यूँ न जाइए89102

Stats from 1 October 2008 to 31 October 2008
Source: Google Analytics

आवाज़ पर नवम्बर २००८ के टॉप १० पन्ने

RankPage TitleDirect VisitsTotal Page Views
1छठ-पर्व विशेष पृष्ठ226269
2हुस्न205237
3उड़ता परिंदा169192
4पाकिस्तानी बैंड गीत-माहिया119134
5तू रूबरू89130
6प्रेमचंद की कहानी 'देवी'95116
7सुनीता यादव का साक्षात्कार91106
8पर्यावरण बचाओ- Go Green86102
9षड़ज ने पायो ये वरदान6488
10प्रेमचंद की कहानी 'वरदान'7186

Stats from 1 October 2008 to 31 October 2008
Source: Google Analytics

Sunday, August 31, 2008

आवाज़ की सिफारिश - " रॉक ऑन "



संगीत और दोस्ती पर आधारित ये नई फ़िल्म, एक बेहतरीन प्रस्तुति है और सभी संगीत कर्मियों और संगीत प्रेमियों के लिए "A must watch" है, कहानी है चार दोस्तों की जो की हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा रॉक बैंड बनाना चाहते थे, पर बहुत कोशिशों के बावजूद वो ऐसा नही कर पाते, सब की जिंदगियां अलग अलग रास्तों की तरफ़ मुड जाती है, लगभग १० साल बाद वो फ़िर मिलते हैं, और फ़िर से शुरू करते हैं एक नया सफर....और इस बार... इस बार उन्हें जीतने से कोई नही रोक सकता. अभिषेक कपूर जो इससे पहले "आर्यन" बना चुके हैं, ने पूरी कहानी को जिस अंदाज़ में प्रस्तुत किया है, वह बेमिसाल है, सभी कलकारों, अर्जुन रामपाल, पूरब कोहली, फरहान अख्तर, लुक केन्नी, और प्राची देसाई (जिन्हें आप अब तक बहु के रूप में देख चुके हैं एकता कपूर के धारावाहिकों में, यहाँ एक बिल्कुल ही अलग अंदाज़ में दिखेंगी) ने बेहतरीन अभिनय किया है, शंकर-एहसान-लोय का संगीत जबरदस्त है.



ज्यादा हम क्या कहें, आप ख़ुद देखें और जानें, फ़िल्म का संदेश बेहद साफ़ है, "अपने सपनों को जियो, तो जिंदगी सपनों की तरह खूबसूरत बन जाती है", यही संदेश आवाज़ का भी है, हमें यकीं है कि हमारी संगीत टीम को यह फ़िल्म विशेष रूप से प्रेरित करेगी, जरूर देखें और अपने विचार हम तक पहुंचायें. तब तक फ़िल्म की एक झलक लीजिये यहाँ -



AWAAZ recommends this new movie from abhishek kapoor "ROCK ON",a must watch for all, who believes in music and friendship

पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का दूसरा अंक



पॉडकास्ट के माध्यम से काव्य-पाठों का युग्मन


मृदुल कीर्ति
लीजिए हम एक बार पुनः हाज़िर हैं पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का नया अंक लेकर। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन भौगौलिक दूरियाँ कम करने का माध्यम है। पिछले महीने शुरू हुए इस आयोजन को मिली कामयाबी ने हमें दूसरी बार करने का दमखम दिया। पिछली बार के संचालन से हमारी एक श्रोता मृदुल कीर्ति बिल्कुल संतुष्ट नहीं थीं, उन्होंने हमसे संचालन करने का अवसर माँगा, हमने खुशी-खुशी उन्हें यह कार्य सौंपा और जो उत्पाद निकलकर आया, वो आपके सामने हैं। इस बार के पॉडकास्ट कवि सम्मेलन ने ग़ाज़ियाबाद से कमलप्रीत सिंह, धनवाद से पारूल, फ़रीदाबाद से शोभा महेन्द्रू, पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा, म॰प्र॰ से प्रदीप मानोरिया, पुणे से पीयूष के मिश्रा तथा अमेरिका से ही मृदुल कीर्ति को युग्मित किया है। इनके अतिरिक्त शिवानी सिंह और नीरा राजपाल की भी रिकॉर्डिंग प्राप्त हुई लेकिन एम्पलीफिकेशन के बावज़ूद स्वर बहुत धीमा रहा, इसलिए हम इन्हें शामिल न कर सके, जिसका हमें दुःख है।

नीचे के प्लेयरों से सुनें।

(ब्रॉडबैंड वाले यह प्लेयर चलायें)


(डायल-अप वाले यह प्लेयर चलायें)


यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें)




VBR MP364Kbps MP3Ogg Vorbis


हम सभी कवियों से यह गुज़ारिश करते हैं कि अपनी आवाज़ में अपनी कविता/कविताएँ रिकॉर्ड करके podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। आपकी ऑनलाइन न रहने की स्थिति में भी हम आपकी आवाज़ का समुचित इस्तेमाल करने की कोशिश करेंगे।

# Podcast Kavi Sammelan. Part 2. Month: Aug 2008.

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