Friday, April 23, 2010

मन के बंद कमरों को लौट चलने की सलाह देता एक रॉक गीत कृष्ण राजकुमार की आवाज़ में



Season 3 of new Music, Song # 04


दोस्तों, आवाज़ संगीत महोत्सव, सत्र ३ के चौथे गीत की है आज बारी. बतौर संगीतकार- गीतकार जोड़ी में ऋषि एस और सजीव सारथी ने गुजरे पिछले दो सत्रों में सुबह की ताजगी, मैं नदी, जीत के गीत, और वन वर्ल्ड, जैसे बेहद चर्चित और लोकप्रिय गीत आपकी नज़र किये हैं. इस सत्र में ये पहली बार आज साथ आ रहे हैं संगीत का एक नया (कम से कम युग्म के लिए) जॉनर लेकर, जी हाँ रॉक संगीत है आज का मीनू, रॉक संगीत में मुख्यता लीड और बेस गिटार का इस्तेमाल होता है जिसके साथ ताल के लिए ड्रम का प्रयोग होता है, अमूमन इस तरह के गीतों में एक लीड गायक/गायिका को सहयोग देने को एक या अधिक बैक अप आवाजें भी होती हैं. रॉक हार्ड और सोफ्ट हो सकता है. सोफ्ट रॉक अक्सर एक खास थीम को लेकर रचा जाता है. फिल्म "रॉक ऑन" के गीत इसके उदाहरण हैं. इसी तरह के एक थीम को लेकर रचा गया आज का ये सोफ्ट रॉक गीत है कृष्ण राज कुमार की आवाज़ में, जिन्हें ऋषि ने खुद अपनी आवाज़ में बैक अप दिया है. कृष्ण राज कुमार बतौर संगीत/गायक युग्म में पधारे थे "राहतें सारी" गीत के साथ. काव्यनाद के लिए आयोजित प्रतियोगिताओं में इन्होने अपने संगीत और गायन का उन्दा उदाहरण सामने रखा हर बार, और हर बार ही किसी न किसी सम्मान के ये हक़दार बनें. काव्यनाद में इनकी आवाज़ में दो शानदार गीत हैं, जिन्हें खासी सराहना मिली है. "अरुण ये मधुमय देश हमारा" राष्ट्रीय एफ एम् चैनल "एफ एम् रेनबो" से बज चुका है. तो सुनिए आज की ये प्रस्तुति और अपने स्नेह सुझावों से इन कलाकारों का मार्गदर्शन करें.

गीत के बोल -

ये गलियां, रंग रलियाँ,
ये तेरी नहीं हैं,
तेरा नहीं है जो उसे अब छोड़ चल,
लौट चल...लौट चल...
इस शोर के जंगल से निकल,
रफ़्तार के दल दल में बस,
तन्हाईयाँ है, बेजारियां है,
इस दौड से मुंह मोड चल,
लौट चल...लौट चल...

तुने देखा है फलक को कफस से आज तक,
कभी पंख फैला और उड़ने की कोशिश तो कर,
जो ये जहाँ है, बस एक गुमाँ है,
सारे भरम अब तोड़ चल,
लौट चल...लौट चल...

तू बन्दा अपने खुदा का है, तेरा सानी कौन है,
एक मकसद है यहाँ हर शय का बेमानी कौन है,
उसका निशाँ है, तू जो यहाँ है,
खुद को खुदी से अब जोड़ चल,
लौट चल...लौट चल...

इस धूप के परे भी है एक आसमां,
एक नूर से रोशन है वो तेरा जहाँ,
एक आसमां है, तेरा जहाँ है,
अपनी जमीं को अब खोज चल,
लौट चल...लौट चल...
लौट चल...आ लौट चल



मेकिंग ऑफ़ "लौट चल" - गीत की टीम द्वारा

ऋषि एस- "लौट चल" एक और कोशिश है सामान्य रोमांटिक गीतों से कुछ अलग करने का, एक थीम और उसमें छुपे सन्देश को युवाओं की अभिरुचि अनुरूप रॉक अंदाज़ में इसे किया गया है

कृष्ण राजकुमार- ऋषि ने करीब ५-६ महीने पहले मुझे इस गीत के लिए संपर्क किया था, वो किसी रॉक संगीत मुकाबले के लिए इसे भेजना चाहते थे, मुझे शक था कि क्या मैं रॉक गीत को निभा पाऊंगा, पर ऋषि ने मुझे पर विश्वास किया. और ईश्वर की कृपा से मुझे लगता है कि कुछ हद तक मैं इस गीत के साथ न्याय कर पाया हूँ, बाकी तो आप श्रोता ही बेहतर बता सकते हैं. मैं ऋषि का शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने मुझे इस गीत के काबिल समझा.

सजीव सारथी-ये गीत लगभग ५-६ महीने पहले बना था, एक दिन ऋषि कहने लगे कि कुछ अलग करना चाहिए, उस दिन वो कुछ दार्शनिक जैसी बातें कर रहे थे, मैंने कहा गीत तो हमारे किसी भी एक खास ख़याल से पैदा हो सकता है, तो उन्होंने कहा कि फिर आप कोई नयी थीम पर लिखिए, मैंने कहा लीजिए आज हम जिस विषय पर बात कर रहे हैं इसी पर आपको कुछ लिख कर भेजता हूँ, अमूमन मेरी और ऋषि की जब भी बात होती है संगीत से सम्बंधित ही होती है उसी से फुर्सत नहीं मिलती कि कुछ और कहा सुना जाए, मगर उस दिन हम कुछ इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे, जो इस गीत का भी थीम है, दुनिया की दौड धूप जो शायद हमने खुद अपने ऊपर थोपी हुई है उससे अलग एक दुनिया है हमारे ही भीतर जिसे शास्त्रों में स्वर्ग जन्नत आदि नाम दिए गए हैं, जहाँ कविता है संगीत है रचनात्मकता है, और आप खुद है अपने वास्तविक स्वरुप में, तमाम वर्जनाओं से पृथक...खैर अब आप बताएं कि इस विषय पर आप क्या सोचते हैं और अपने इस गीत के माध्यम किस हद तक मैं इस बात को कहने में सफल हो पाया हूँ

ऋषि एस॰
ऋषि एस॰ ने हिन्द-युग्म पर इंटरनेट की जुगलबंदी से संगीतबद्ध गीतों के निर्माण की नींव डाली है। पेशे से इंजीनियर ऋषि ने सजीव सारथी के बोलों (सुबह की ताज़गी) को अक्टूबर 2007 में संगीतबद्ध किया जो हिन्द-युग्म का पहला संगीतबद्ध गीत बना। हिन्द-युग्म के पहले एल्बम 'पहला सुर' में ऋषि के 3 गीत संकलित थे। ऋषि ने हिन्द-युग्म के दूसरे संगीतबद्ध सत्र में भी 5 गीतों में संगीत दिया। हिन्द-युग्म के थीम-गीत को भी संगीतबद्ध करने का श्रेय ऋषि एस॰ को जाता है। इसके अतिरिक्त ऋषि ने भारत-रूस मित्रता गीत 'द्रुजबा' को संगीत किया। मातृ दिवस के उपलक्ष्य में भी एक गीत का निर्माण किया। भारतीय फिल्म संगीत को कुछ नया देने का इरादा रखते हैं।

कृष्ण राजकुमार
कृष्ण राज कुमार ने इस प्रतियोगिता की हर कड़ी में भाग लिया है। जयशंकर प्रसाद की कविता 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' के लिए प्रथम पुरस्कार, सुमित्रा नंदन पंत की कविता 'प्रथम रश्मि' के लिए द्वितीय पुरस्कार, महादेवी वर्मा के लिए भी प्रथम पुरस्कार। निराला की कविता 'स्नेह निर्झर बह गया है' के लिए भी इनकी प्रविष्टि उल्लेखनीय थी। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'कलम! आज उनकी जय बोल' के लिए द्वितीय पुरस्कार प्राप्त किया। और इस बार भी इन्होंने पहला स्थान बनाया है। कृष्ण राज कुमार जो मात्र 22 वर्ष के हैं, और जिन्होंने अभी-अभी अपने B.Tech की पढ़ाई पूरी की है, पिछले 14 सालों से कर्नाटक गायन की दीक्षा ले रहे हैं। इन्होंने हिन्द-युग्म के दूसरे सत्र के संगीतबद्धों गीतों में से एक गीत 'राहतें सारी' को संगीतबद्ध भी किया है। ये कोच्चि (केरल) के रहने वाले हैं। जब ये दसवीं में पढ़ रहे थे तभी से इनमें संगीतबद्ध करने का शौक जगा।

सजीव सारथी
हिन्द-युग्म के 'आवाज़' मंच के प्रधान संपादक सजीव सारथी हिन्द-युग्म के वरिष्ठतम गीतकार हैं। हिन्द-युग्म पर इंटरनेटीय जुगलबंदी से संगीतबद्ध गीत निर्माण का बीज सजीव ने ही डाला है, जो इन्हीं के बागवानी में लगातार फल-फूल रहा है। कविहृदयी सजीव की कविताएँ हिन्द-युग्म के बहुचर्चित कविता-संग्रह 'सम्भावना डॉट कॉम' में संकलित है। सजीव के निर्देशन में ही हिन्द-युग्म ने 3 फरवरी 2008 को अपना पहला संगीतमय एल्बम 'पहला सुर' ज़ारी किया जिसमें 6 गीत सजीव सारथी द्वारा लिखित थे। पूरी प्रोफाइल यहाँ देखें।
Song - Laut Chal
Voices - Krishna Raajkumar, Rishi S
Music - Rishi S
Lyrics - Sajeev Sarathie
Graphics - Samarth Garg


Song # 04, Season # 03, All rights reserved with the artists and Hind Yugm

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2 श्रोताओं का कहना है :

रोमेंद्र सागर का कहना है कि -

निश्चय ही एक अच्छा प्रयास .... गीत के बोल सरल मगर पूरी संवेदनशीलता को खुद में समेटे हुए हैं !
मेरी ओर से बधाई और ढेरों शुभकामनायें !

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

हम तो यहाँ आ गए....और बस सुन रहे.
इस धूप के परे भी है एक आसमां,
एक नूर से रोशन है वो तेरा जहाँ,
एक आसमां है, तेरा जहाँ है,
अपनी जमीं को अब खोज चल,
लौट चल...लौट चल...

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