Saturday, September 10, 2011

...और जो बिक ही नहीं पाई वो वैसे भी किसी काम की नहीं थी - असद भोपाली



सुविख्यात शायर और फिल्म-गीतकार श्री असद भोपाली के सुपुत्र श्री ग़ालिब खाँ साहब से उनके पिता के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बातचीत
अब तक आपने पढ़ा...
अब आगे

‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के ‘शनिवार विशेषांक’ में आपका एक बार पुनः स्वागत है। दोस्तों, पिछले सप्ताह हमने फिल्म-जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार असद भोपाली के सुपुत्र ग़ालिब खाँ से उनके पिता के व्यक्तित्व और कृतित्व पर बातचीत का पहला भाग प्रस्तुत किया था। इस भाग में आपने पढ़ा था कि असद भोपाली को भाषा और साहित्य की शिक्षा अपने पिता मुंशी अहमद खाँ से प्राप्त हुई थी। आपने यह भी जाना कि अपनी शायरी के उग्र तेवर के कारण असद भोपाली, तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर जेल में डाल दिये गये थे। आज़ादी के बाद अपनी शायरी के बल पर ही उन्होने फिल्म-जगत में प्रवेश किया था। आज हम उसके आगे की बातचीत को आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।

कृष्णमोहन- ग़ालिब साहब, ‘शनिवार विशेषांक’ के दूसरे भाग में एक बार फिर आपका हार्दिक स्वागत है।
ग़ालिब खाँ- धन्यवाद, और सभी पाठकों को मेरा नमस्कार। अपने पिता असद भोपाली के बारे में ज़िक्र करते हुए पिछले भाग में मैंने बताया था कि १९४९ की फिल्म ‘दुनिया’ के माध्यम से एक गीतकार के रूप में उनकी शुरुआत हुई थी। इसके बाद १९५१ की फिल्म ‘अफसाना’ के गीत से उन्हें लोकप्रियता भी मिली, परन्तु फिल्म कि सफलता के सापेक्ष उन्हें काम नहीं मिला। उस समय के कलाकारों को काम से ज्यादा संघर्ष करना पड़ता था, उन्होंने भी किया। १९६३ में प्रदर्शित फिल्म 'पारसमणि' के गीत लिखने का उन्हें प्रस्ताव मिला। यह एक फेण्टेसी फिल्म थी। फिल्म की संगीत-रचना के लिए नये संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल को अनुबन्धित किया गया था। मेरे पिता ने उस समय की जन-रुचि और फिल्म की थीम के मुताबिक इस फिल्म के लिए गीत लिखे थे। फिल्म ‘पारसमणि’ के गीत- "हँसता हुआ नूरानी चेहरा..." और "वो जब याद आये, बहुत याद आये..." ने लोकप्रियता के परचम लहरा दिये थे। ये गीत वर्षों बाद आज भी लोकप्रियता के शिखर पर हैं।

कृष्णमोहन- आगे बढ़ने से पहले क्यों न हम इस फिल्म का एक गीत अपने पाठकों-श्रोताओं को सुनवाते चलें।
ग़ालिब खाँ- जी हाँ, मेरे खयाल से हम अपने पाठकों को ‘पारसमणि’ का बेहद लोकप्रिय गीत– "हँसता हुआ नूरानी चेहरा..." सुनवाते हैं-

फिल्म – पारसमणि : "हँसता हुआ नूरानी चेहरा..." : स्वर – लता मंगेशकर और कमल बरोट


कृष्णमोहन- बहुत ही मधुर गीत आपने सुनवाया। ग़ालिब साहब; अब हम जानना चाहेंगे की आपके पिता असद भोपाली ने किन-किन संगीतकारों के साथ काम किया और किन संगीतकारों से उनके अत्यन्त मधुर सम्बन्ध रहे?
ग़ालिब खाँ- मेरे पिता ने संगीतकार सी. रामचन्द्र, हुस्नलाल-भगतराम, खैय्याम, हंसराज बहल, एन. दत्ता, नौशाद, ए.आर. कुरैशी (मशहूर तबलानवाज़ अल्लारक्खा), चित्रगुप्त, रवि, सी. अर्जुन, सोनिक ओमी, राजकमल, लाला सत्तार, हेमन्त मुखर्जी, कल्याणजी-आनन्दजी जैसे दिग्गज संगीतकरों के साथ काम किया। परन्तु ‘पारसमणि’ में लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल जैसे नए संगीतकारों के साथ सफलतम गीत देने के बाद नए संगीतकारों के साथ काम करने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अन्त तक चलता रहा। नए संगीतकारों में गणेश और उषा खन्ना के साथ वो अधिक सहज थे। संगीतकार राम लक्ष्मण उनके अन्तिम संगीतकार साथियों में से हैं, जिनके पास आज भी उनके कई मुखड़े और गीत लिखे पड़े हैं।

कृष्णमोहन- असद भोपाली जी ने हर श्रेणी की फिल्मों में अनेक लोकप्रिय गीत लिखे हैं, किन्तु उन्हें वह सम्मान नहीं मिल सका, जो उन्हें बहुत पहले ही मिलना चाहिए था। इस सम्बन्ध में आपका और आपके परिवार का क्या मत है?
ग़ालिब खाँ- मेरे पिता ने १९४९ से १९९० तक लगभग चार सौ फिल्मों में दो हज़ार से ज्यादा गीत लिखे परन्तु फिल्म ‘दुनिया’ से लेकर ‘मैंने प्यार किया’ के गीत "कबूतर जा जा जा..." तक उन्हें वो प्रतिष्ठा नहीं मिली जिसके वो हकदार थे। इस अन्तिम फिल्म के लिए ही उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर अवार्ड प्राप्त हुआ था। दरअसल इस स्थिति के लिए वो खुद भी उतने ही ज़िम्मेदार थे, जितनी ये फिल्म नगरी। कवियों और शायरों वाली स्वाभाविक अकड़ उन्हें काम माँगने से रोकती थी और जीवनयापन के लिए जो काम मिलता गया वो करना पड़ा। बस इतना ध्यान उन्होने अवश्य रखा था कि कभी अपनी शायरी का स्तर नहीं गिरने दिया। कम बजट की स्टंट फिल्मों में भी उन्होंने "हम तुमसे जुदा हो के, मर जायेंगे रो-रो के..." जैसे गीत लिखे। अपेक्षित सफलता न मिलने से या यूँ कहूँ कि उनकी असफलता ने उन्हें शराब का आदी बना दिया था और उनकी शराब ने पारिवारिक माहौल को कभी सुखद नहीं होने दिया। पर आज जब मैं उनकी स्थिति को अनुभव कर पाता हूँ तो समझ में आता है कि जितना दुःख उनकी शराब ने हमें दिया उससे ज्यादा दुःख वो चुपचाप पी गए और हमें एहसास तक नहीं होने दिया। प्रसिद्ध शायर ग़ालिब के हमनाम (असद उल्लाह् खाँ) होने के साथ-साथ स्वभाव, संयोग और भाग्य भी उन्होंने कुछ वैसा ही पाया था। मेरे पिता के अन्तर्मन का दर्द उनके गीतों में झलकता है। दर्द भरे गीतों की लम्बी सूची में से फिल्म ‘मिस बॉम्बे’ का एक गीत मैं पाठकों को सुनवाना चाहता हूँ।

कृष्णमोहन- दोस्तों, ग़ालिब खाँ के अनुरोध पर हम आपको १९५७ की फिल्म ‘मिस बॉम्बे’ का यह गीत सुनवा रहे हैं। स्वर मोहम्मद रफी का और संगीत हंसराज बहल का है।

फिल्म – मिस बॉम्बे : "ज़िंदगी भर ग़म जुदाई का.." : स्वर – मोहम्मद रफी


कृष्णमोहन- ग़ालिब साहब! साहित्य क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के बारे में भी हमें बताएँ। क्या उनके गीत/ग़ज़ल के संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं?
ग़ालिब खाँ- इस मामले में भी दुर्भाग्य ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। उनकी लिखी हजारों नज्में और गजले जिस डायरी में थी वो डायरी बारिश कि भेंट चढ़ गयी। उन दिनों हम जिस स्थान पर रहते थे उसका नाम था "नालासोपारा", जो पहाड़ी के तल पर था और वहाँ मामूली बारिश में भी बाढ़ कि स्थिति पैदा हो जाती थी और ऐसी ही एक बाढ़, असद भोपाली की सारी "गालिबी" को बहा ले गयी। तब उनकी प्रतिक्रिया, मुझे आज भी याद है। उन्होने कहा था- 'जो मैं बेच सकता था मैं बेच चुका था,और जो बिक ही नहीं पाई वो वैसे भी किसी काम की नहीं थी'। एक शायर के पूरे जीवन की त्रासदी इस एक वाक्य में निहित है।

कृष्णमोहन- आप अपने बारे में भी हमारे पाठको को कुछ बताएँ। यह भी बताएँ कि अपने पिता का आपके ऊपर कितना प्रभाव पड़ा?
ग़ालिब खाँ- मेरे पिता मिर्ज़ा ग़ालिब से कितने प्रभावित थे इसका अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि उन्होने मेरा नाम ग़ालिब ही रखना पसन्द किया। वो अक्सर कहते थे कि वो असदउल्लाह खाँ "ग़ालिब" थे और ये 'ग़ालिब असदउल्लाह खाँ’ है। अब ये कुछ उस नाम का असर है और कुछ धमनियों में बहते खून का, कि मैंने भी आखिरकार कलम ही थाम ली। शायरी और गीत लेखन से शुरुआत की, फिर टेलीविज़न सीरियल के लेखन से जुड़ गया। ‘शक्तिमान’ जैसे धारावाहिक से शुरुआत की। फिर ‘मार्शल’, ‘पैंथर’, ‘सुराग’ जैसे जासूसी धारावाहिकों के साथ ‘युग’, ‘वक़्त की रफ़्तार’, ‘दीवार’ के साथ-साथ ‘माल है तो ताल है’, ‘जीना इसी का नाम है’, ‘अफलातून’ जैसे हास्य धारावाहिक भी लिखे। ‘हमदम’, ‘वजह’ जैसी फिल्मो का संवाद-लेखन किया और अभी कुछ दिनों पहले एक फिल्म ‘भिन्डी बाज़ार इंक’ की पटकथा-संवाद लिखने का सौभाग्य मिला, जिसे दर्शकों ने काफी सराहा। बस मेरी इतनी ही कोशिश है कि मैं अपने पिता के नाम का मान रख सकूँ और उनके अधूरे सपनों को पूरा कर पाऊँ।

कृष्णमोहन- आपका बहुत-बहुत आभार, आप ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के मंच पर आए और अपने पिता असद भोपाली की शायरी के विषय में हमारे पाठकों के साथ चर्चा की। अब चलते –चलते आप अपनी पसन्द का कोई गीत हमारे पाठकों/श्रोताओं को सुनवा दें।
ग़ालिब खाँ- ज़रूर, पाठको को मैं एक ऐसा गीत सुनवाना चाहता हूँ, जिसे जब भी मैं सुनता हूँ अपने पिता को अपने आसपास पाता हूँ। यह फिल्म ‘एक नारी दो रूप’ का गीत है जिसे रफी साहब ने गाया है और संगीतकार हैं गणेश। चूँकि फिल्म चली नहीं इसलिए गीत भी अनसुना ही रह गया। आप इस गीत को सुने और मुझे इजाज़त दीजिए।

फिल्म – एक नारी दो रूप : “दिल का सूना साज तराना ढूँढेगा...” : स्वर – मोहम्मद रफी


कृष्णमोहन मिश्र

अनुराग शर्मा की कहानी "बी. एल. नास्तिक"



'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी "सौभाग्य" का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा और डॉ. मृदुल कीर्ति की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी "बी. एल. नास्तिक", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "बी. एल. नास्तिक" का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 44 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।

इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है।

यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।


शक्ति के बिना धैर्य ऐसे ही है जैसे बिना बत्ती के मोम।
~ अनुराग शर्मा

हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी
"डंडे के ज़ोर पर उसके पिता उसे अपने साथ तीर्थ यात्रा पर भी ले जाते थे और झाड़ू के ज़ोर पर माँ की छठ पूजा की तैयारियाँ भी वही करता था।"
(अनुराग शर्मा की "बी. एल. नास्तिक" से एक अंश)


नीचे के प्लेयर से सुनें.
(प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)

यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंक से डाऊनलोड कर लें:
VBR MP3
#144th Story, B.L Nastik: Anurag Sharma/Hindi Audio Book/2011/25. Voice: Anurag Sharma

Thursday, September 8, 2011

करलो जितना सितम कर सको तुम...शमशाद जी का गाया अंतिम फ़िल्मी गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 740/2011/180

पार्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' की अंतिम कड़ी लेकर हम हाज़िर हैं। आज शमशाद बेगम मुंबई के पवई में हीरानंदानी कॉम्प्लेक्स में अपनी बेटी उषा रात्रा और उषा की पति के साथ रहती हैं, मीडिया से दूर, अपने चाहने वालों से दूर। शमशाद जी अपने पति गणपत लाल बट्टो के १९५५ में मृत्यु के बाद से ही अपनी बेटी के साथ रहती हैं। अपने रूढ़ीवादी पिता को दिये वादे के मुताबिक उन्होंने पहले के तीन दशकों में किसी को अपनी तसवीर खींचने नहीं दी। रेकॉर्डिंग् स्टुडिओ भी वो बुर्खे में जाया करती थीं। भले ही उनके लाखों फ़ैन थे, लेकिन इंडस्ट्री के चंद लोगों को ही मालूम था कि वो दिखती कैसी हैं। कभी उन्होंने प्रेस या मीडिआ को इंटरव्यू नहीं दिया। बस उनकी आवाज़ और उनके गाये हुए गीत ही उनकी पहचान बनी रही। और हम भी यही समझते हैं कि यही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। शमशाद जी नें अपना पहला स्टेज शो पचास साल की उम्र में पेश किया। अपना पहला फ़ोटो भी 'टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' को इसी दौरान खींचने दिया। अभी कुछ समय पहले मीडिआ में एक विवाद खड़ा हो गया था जब कई पत्र-पत्रिकाओं ने उनकी मृत्यु का ग़लत समाचार छाप दिया था। बाद में पता लगा कि वो शमशाद बेगम दरअसल अभिनेत्री सायरा बानू की माँ थीं। शमशाद जी को २००९ में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। आज शमशाद जी ९२ वर्ष की हो चुकी हैं। उनके स्वस्थ और दीर्घ जीवन की कामना करते हुए इस शृंखला का अंतिम गीत अब सुनने जा रहे हैं।

१९४१ में शमशाद जी का जो फ़िल्मी करीयर शुरु हुआ था (फ़िल्म 'ख़ज़ान्ची' से), वह आकर रुका था १९८१ में। ६० के दशक से ही उनके गाये गानें कम होने लगे थे, और ७० के दशक में तो ना के बराबर उन्हें सुनने को मिला। १९७० की फ़िल्म 'हीर रांझा' में शमशाद बेगम, नूरजहाँ और जगजीत कौर की आवाज़ों में "नाचे अंग वे" गीत सुनने को मिला था। उसके बाद शमशाद जी जैसे ख़ामोश हो गईं। लेकिन १९८१ की फ़िल्म 'गंगा मांग रही बलिदान' में गीतकार-संगीतकार प्रेम धवन नें उन्हें गवाया। और यही अंतिम फ़िल्म थी जिसमें शमशाद जी नें अपनी आवाज़ दी थीं। आइए आज इस शृंखला का समापन इसी फ़िल्म के एक गीत से किया जाये, जिसे शमशाद जी नें मुबारक़ बेगम और चेतन के साथ मिलकर गाया है। बहुत ही अफ़सोस की बात है कि शमशाद बेगम नें उस वक़्त फ़िल्म-संगीत जगत से सन्यास लेने की सोची जब उनके मनपसंद संगीतकार नें उन्हें कोरस में गाने का निमंत्रण दिया। एक सुप्रतिष्ठित गायिका के लिए इससे बड़ा असम्मान दूसरा हो नहीं सकता था। इसलिए शमशाद जी फ़िल्मों से चली गईं। 'हिंद-युग्म - आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम शमशाद बेगम जी को स्वस्थ जीवन और दीर्घायु होने की शुभकामनाएँ देते हुए उन पर केन्द्रित यह शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' यहीं सम्पन्न करते हैं। इस शृंखला के बारे में आप अपनी राय टिप्पणी के अलावा oig@hindyugm.com पर भी भेज सकते हैं, नमस्कार!



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

ओल्ड इस गोल्ड का अगला गीत पहचानिये इन सूत्रों के माध्यम से
१. आवाज़ है रफ़ी साहब की.
२. "ड्रीम गर्ल" पर फिल्मांकित है गीत.
३. कविता रुपी इस गीत में शुरू होने से पहले एक अन्य गायक के स्वर में दो पंक्तियाँ है जिसका आरंभ - "अंग-प्रत्यंग"

गीतकार बताएं - ३ अंक
संगीतकार कौन हैं - २ अंक
फिल्म का नाम बताएं - २ अंक

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Wednesday, September 7, 2011

भीगा भीगा प्यार का समां....भीगे भीगे मौसम में सुनिए ये युगल गीत



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 740/2011/180

'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इन दिनों जारी है सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे'। आज इस शृंखला की नवी कड़ी में प्रस्तुत है शमशाद जी का गाया एक युगल गीत। अब तक आपनें उनके गाये हुए एकल गीत सुनें, पर आज वो आवाज़ मिला रही हैं रफ़ी साहब के साथ। यूं तो तलत महमूद और मुकेश के साथ भी शमशाद जी गा चुकी हैं, पर किशोर कुमार के साथ उन्होंने बहुत से मज़ाइया गीत गाये हैं, और उनके सब से ज़्यादा युगल गीत रफ़ी साहब के साथ हैं। आज की कड़ी के लिए हमने जिस रफ़ी-शमशाद डुएट को चुना है, वह है साल १९६० की फ़िल्म 'सावन' का रिमझिम सावन बरसाता हुआ "भीगा भीगा प्यार का समा, बता दे तुझे जाना है कहाँ"। संगीतकार हैं हंसराज बहल। नय्यर साहब के संगीत की थोड़ी बहुत झलक मिलती है इस गीत में, शायद घोड़ा-गाड़ी रीदम की वजह से। और यह भी सच है कि नय्यर साहब से पहले पंकज मल्लिक और नौशाद साहब इस तरह के रीदम का प्रयोग अपने गीतों में कर चुके थे। क्योंकि नय्यर साहब नें इस रीदम पर सब से ज़्यादा गानें कम्पोज़ किये, इसलिये यह रीदम उनका ट्रेडमार्क बन गया था। बहरहाल फ़िल्म 'सावन' के इस सदाबहार युगल गीत को लिखा है गीतकार प्रेम धवन नें। गीत फ़िल्माया गया है भारत भूषण और अमीता पर।

और आइए अब एक बार फिर से मुड़ा जाये कमल शर्मा के लिए हुए उसी इंटरव्यू की तरफ़ जिसमें शमशाद जी बता रही हैं सहगल साहब, किशोर दा और रफ़ी साहब के बारे में।

कमल जी - सहगल साहब के साथ हुई मुलाक़ात के बारे में हमें कुछ बताइए।

शमशाद जी - उन्हें मैंने बम्बई में देखा था। एक दिन मैं 'रणजीत' में रिहर्सल कर रही थी। ख़बर आई कि सहगल साहब आ रहे हैं। मैंने उन लोगों से कह रखा था कि सहगल साहब की गाड़ी आये तो मुझे बताना। इतने में उनकी गाड़ी आ गई, उनकी उंगली में हीरे की अंगूठी थी। मैंने कहा, "सलाम"। किसी ने उन्हें मेरे बारे में बताया हुआ था, वो मेरे पास आये और पंजाबी में कहा कि ओए तूने अपने बारे में कुछ नहीं बताया, सिर्फ़ सलाम कह कर चली जा रही थी!

कमल जी - सहगल साहब के बाद, अब मैं किशोर दा के बारे में पूछना चाहता हूँ, ये बहुत बाद की बात होगी, उनके साथ भी आपने गाया है।

शमशाद जी - वो बहुत ही शरीफ़ आदमी थे (हँसते हुए)। वो अपनी स्टाइल का बड़ा अच्छा गायक थे, हमारे साथ उनका बहुत अच्छा रिलेशन था, उनके साथ कुछ डुएट्स मैंने गाये हैं। एक गाना बड़ा चला था 'नया अंदाज़' पिक्चर का, उन्होंने भी इतना अच्छा गाया था इसे, "मेरी नींदों में तुम"।

कमल जी - और किन किन गायकों के साथ आपकी जोड़ी बनी?

शमशाद जी - कोई जोड़ी-वोड़ी नहीं जी, उस ज़माने में म्युज़िक डिरेक्टर्स किसी की बात नहीं सुनते थे, वो जिस गायक को चुनेंगे, हमें उसी के साथ गाना पड़ेगा, किसी की मजाल है जो कोई ज़बरदस्ती करे!

कमल जी - अच्छा तो किस गायक के साथ आपको गाते हुए सबसे अच्छा लगा?

शमशाद जी - किसी के भी साथ बुरा नहीं लगा। मैंने हमेशा चाहा कि मैं जिसके साथ गा रही हूँ, वो भी अच्छा गाये। उसका अच्छा होगा तो मेरा भी अच्छा होगा।

कमल जी - शमशाद जी, एक आर्टिस्ट, रफ़ी साहब, उनके बारे में लोग ज़रूर आप के मुंह से जानना चाहेंगे, आपको कैसा लगा उनके साथ काम करके?

शमशाद जी - बहुत शरीफ़ आदमी, नेक आदमी थे. उनका वैसा मिज़ाज नहीं था कि मेरा नाम है इतना, गाने-बजाने वाले लोग ज़्यादा बद-मिज़ाज होते ही नहीं हैं।

तो आइए दोस्तों, इस भीगे भीगे गीत का मज़ा लेते हुए अनुभव करें कि बारिश में भीगते हुए किसी तांगे पे बैठ कर हम सफ़र कर रहे हैं अपने प्रिय साथी के साथ।



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Tuesday, September 6, 2011

कहाँ चले हो जी प्यार में दीवाना करके...अपनी आवाज़ से दीवाना करती शमशाद बेगम



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 739/2011/179

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! शमशाद बेगम के गाये गीतों पर केन्द्रित इस लघु शृंखला में आइए आज एक बार फिर से रुख़ करते हैं कमल शर्मा द्वारा ली गई साक्षात्कार की तरफ़ और पढ़ा जाये उसी साक्षात्कार से कुछ और अंश।

कमल जी - मुंबई में आने के बाद यहाँ आपकी पहली फ़िल्म कौन सी थी?

शमशाद जी - पहली फ़िल्म महबूब साहब का किया, 'तक़दीर', वो लाहौर गये थे। 'तक़दीर' पिक्चर के लिए मुझे बूक किया था। वहाँ उनकी हीरोइन थी, उनका ससुराल भी वहीं था। वो तो नहीं आईं, महबूब साहब मेरे घर आए और कहा कि तुम मेरे साथ चलो। मेरे बाबा आने नहीं देते थे। वो कहते थे इधर ही ठीक है, तुम क्या इतनी दूर बम्बई जाओगी? दो दो साल शक्ल देखने को नहीं मिलेंगे। महबूब साहब नें कहा कि अरे समुंदर में जाने दो उसको। उन्होंने बाबा से कहा कि मिया, आप ग़लत समझ रहे हैं, इसको जाने दीजिए। अब इसका नाम इतना है कि जाने दो इसे, आप नें सोचा भी नहीं होगा कितनी बड़ी इंडस्ट्री है। उनके कहने पर बाबा नें कहा कि अच्छा जाने देते हैं। फिर 'तक़दीर' पिक्चर बनाकर हम वापस (लाहौर) चले गये। 'तक़दीर' में संगीत था रफ़ीक़ ग़ज़नवी का। रफ़ीक़ बहुत अच्छा गाते थे।

कमल जी - लेकिन 'तक़दीर' नें तय कर दिया कि आपकी तक़दीर मुंबई में ही लिखी है।

शमशाद जी - बम्बई में, यहाँ से चली गई थी मैं, फिर मुझे पूना से बुलाया। एक पिक्चर थी 'नवयुग चित्रपट' की - 'पन्ना'। इसके सारे गानें सुपरहिट हुए। और फ़िल्म सिल्वर जुबिली से भी ज़्यादा टाइम चली थी। फिर वहाँ से बम्बई आ गए। बम्बई आने के बाद, यहाँ सब लोग कहने लगे यह करो वह करो। सब करते करते दो महीने लग गए। फिर आहिस्ता आहिस्ता मैं इधर ही रहने लगी। अभी मकान लिया नहीं था, होटल में रहते थे कई कई। जब हम इधर आकर सेटल हो गए, तब मकान लिया। माहिम में रहते थे।

कमल जी - और पहली गाड़ी आपनें कब ख़रीदी?

शमशाद जी - पहली गाड़ी तो आते ही साल ख़रीदी थी, नहीं तो कैसे आते जाते? नई गाड़ी तो मिलती नहीं थी, तो हमने सेकण्ड हैण्ड ली। नई गाड़ी तो आती नहीं थी। बुकिंग करवानी पड़ती थी या फिर बाहर से आती थी। और कितने कितने साल लग जाते थे, बुकिंग में। फिर '४७ में नई गाड़ी ली, शेवरोले।

कमल जी - मुंबई में सब से ज़्यादा रेकॉर्डिंग् आपकी कहाँ होती थी? यूं तो आज बहुत सारे रेकॉर्डिंग् स्टुडिओज़ हैं, पर उस समय तो गिने-चुने स्टुडिओज़ ही थे। तो सबसे ज़्यादा रेकॉर्डिंग् आपकी कहाँ हुई?

शमशाद जी - आपनें देखा होगा जहाँ पे रणजीत स्टुडिओ हैं न, वहाँ पे गली में जाकर एक बहुत बड़ा स्टुडिओ था - 'सिने साउण्ड'। वहाँ पर बहुत सारे गानें रेकॉर्ड होते थे, क्योंकि वहाँ पे शर्मा का बहुत नाम था ऐज़ रेकॉर्डिस्ट।

कमल जी - अच्छा सब से ज़्यादा रिहर्सल आपने किस गाने के लिये किया था?

शमशाद जी - यह तो भ‍इया मुझे कुछ नहीं याद! मैंने कितने ही गाने गाये हैं।

कमल जी - ऐसा गाना कि एक दिन हो गया, दो दिन भी हो गए?

शमशाद जी - यह तो रोज़ की बात थी। वो एक एक गाने को चार चार छह छह दिन गवाते थे; नौशाद साहब मानेंगे नहीं, आँखें बंद करके बैठ जाते थे। उनकी कितनी ही पिक्चरें हैं जो सिल्वर जुबिली, गोल्डन जुबिली मनायी।

दोस्तों, आज हम शमशाद जी के गाये जिस गीत को लेकर आये हैं, वह है १९५७ की ही फ़िल्म 'मोहिनी' का "कहाँ चले हो जी प्यार में दीवाना करके, मैं तो नीम तले आ गई बहाना करके"। फ़िल्म के संगीतकार थे नारायण दत्ता, जिन्हें हम एन. दत्ता के नाम से ज़्यादा जानते हैं। १९५७ में दत्ता जी नें 'हम पंछी एक डाल के', 'हमारा राज', 'मिस्टर एक्स' और 'मोहिनी' जैसी फ़िल्मों में संगीत दिया। 'मोहिनी' में आज के प्रस्तुत गीत के अलावा शमशाद बेगम नें एक और एकल गीत गाया था जिसके बोल हैं "मेरे दिल का सजनवा इलाज"। इस साल शमशाद नें जिन फ़िल्मों में गीत गाये, उसकी फ़ेहरिस्त इस प्रकार है - मदर इण्डिया, मोहिनी, अमर सिंह राठोड़, भक्त ध्रुव, चंडी पूजा, चंगेज़ ख़ान, छोटी बहू, गरमा-गरम, हम पंछी एक डाल के, जहाज़ी लुटेरा, जय अम्बे, कितना बदल गया इंसान, लाल बत्ती, लक्ष्मी पूजा, मायानगरी, मेरा सलाम, मिर्ज़ा साहिबा, मिस बॉम्बे, मिस इण्डिया, मुसाफ़िर, नाग लोक, नया दौर, पाक दमन, पैसा, परिस्तान, पवन पुत्र हनुमान, क़ैदी, राम-लक्ष्मण, सती परीक्षा, शाही बज़ार, शारदा, शेर-ए-बग़दाद, श्याम की जोगन, ताजपोशी, यहूदी की लड़की। इस फ़ेहरिस्त को देख कर आप समझ चुके होंगे कि उस साल शमशाद जी कितनी व्यस्त गायिका रही होंगी। तो आइए आज का गीत सुना जाये, फ़िल्म 'मोहिनी' के इस गीत को लिखा है गीतकार राजा मेहंदी अली ख़ान नें।



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

अमित जी, कुछ दिन यूहीं चलने दीजिए, फिर पहेली में कोई नयेपन लेकर हाज़िर होंगें हम

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Monday, September 5, 2011

पी के घर आज प्यारी दुल्हन....एक विदाई गीत शमशाद के स्वरों में



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 738/2011/178

पार्श्वगायिका शमशाद बेगम पर केन्द्रित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' की सातवीं कड़ी में आप सब का स्वागत है। नय्यर साहब के दो गीत सुनने के बाद आज एक बार फिर बारी नौशाद साहब की। १९५७ में नौशाद साहब की एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही 'मदर इण्डिया'। इस फ़िल्म में शमशाद बेगम के गाये दो एकल गीतों नें फ़िल्म के अन्य गीतों के साथ साथ ख़ूब धूम मचाई। इनमें से एक तो है मशहूर होली गीत "होली आयी रे कन्हाई रंग छलके सुना दे ज़रा बांसुरी", जिसे हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पिछले साल सुनवाया था, और इस साल भी होली के अवसर पर शकील बदायूनी के बेटे जावेद बदायूनी से की गई बातचीत पर केन्द्रित 'शनिवार विशेष' में सुनवाया था। शमशाद जी का गाया 'मदर इण्डिया' का दूसरा गीत था विदाई गीत "पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली, रोये माता पिता उनकी दुनिया चली"। बड़ा ही दिल को छू लेने वाला विदाई गीत है यह। शमशाद बेगम के गाये मस्ती भरे गीतों को हमने ज़्यादा सुना है। लेकिन कुछ गीत उनके ऐसे भी हैं जो सीरियस क़िस्म के हैं। १९४८ में नौशाद साहब नें शमशाद बेगम से गवाया था "धरती को आकाश पुकारे"। और इसके १० साल बाद नौशाद साहब नें ही उनसे 'मदर इण्डिया' में "पी के घर" गवाया। दृश्य में राज कुमार और नरगिस का विवाह होता है, और उसके बाद विदाई होती है और पाश्व में शमशाद बेगम और सखियों की आवाज़ें गूंज उठती है। दीपचंदी ताल पर आधारित यह गीत शमशाद बेगम के करीयर का एक उल्लेखनीय गीत है। दीपचंदी ताल पर बहुत से गीत बने हैं, जिनमें राग पहाड़ी का मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है।

आज जब नरगिस और शमशाद बेगम का एक साथ ज़िक्र चल पड़ा है, तो क्यों न आज इस अभिनेत्री-गायिका जोड़ी के बारे में थोड़ी चर्चा की जाये! महबूब ख़ान नें जब अपनी फ़िल्म 'तक़दीर' प्लैन की तो वो एक नए चेहरे की तलाश कर रहे थे। और १४ साल की नरगिस को मोतीलाल के ऑपोज़िट चुन लिया। और उनकी पार्श्वगायन के लिए चुना गया शमशाद बेगम को। फ़िल्म के सभी गीत कामयाब रहे और शमशाद जी बन गईं नरगिस जी की आवाज़। 'तक़दीर' की सफलता के बाद शमशाद-नरगिस जोड़ी वापस आईं दो साल बाद, यानी १९४५ में महबूब साहब की ही फ़िल्म 'हुमायूं' में। इस फ़िल्म में शमशाद जी से गीत गवाये गये लेकिन ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड पर राजकुमारी की आवाज़ थी। इस फ़िल्म का "नैना भर आये नीर" गीत को बहुत सफलता मिली थी। १९४७ में नरगिस अभिनीत फ़िल्म 'मेहंदी' में शमशाद जी नें गाया "ओ दूर जाने वाले आती है याद आजा"। १९४८ में नरगिस-शमशाद की जोड़ी नें दो सुपरहिट फ़िल्मों में काम किया - 'आग' और 'मेला'। 'आग' फ़िल्म का "काहे कोयल शोर मचाये" आप इसी शृंखला में सुन चुके हैं। 'नरगिस आर्ट कन्सर्ण' की फ़िल्म 'अंजुमन' में भी शमशाद जी से गीत गवाये गये। इस फ़िल्म के सात शमशाद नंबर्स में पाँच एकल थे और दो युगल। १९४९ की फ़िल्म 'अंदाज़' में लता जी नें नरगिस का प्लेबैक किया, जब कि शमशाद जी की आवाज़ ली गई कुक्कू के लिए। यह वह समय था जब लता मंगेशकर पहली पहली बार के लिए उस समय की प्रचलित गायिकाओं के सामने कड़ी चुनौती रख दी। १९५० में 'बाबुल' फ़िल्म में एक बार फिर शमशाद जी की आवाज़ सजी नरहिस के होठों पर, हालांकि फ़िल्म के सभी शमशाद नंबर्स गीत नरगिस पर नहीं फ़िल्माये गये थे। इस फ़िल्म में शमशाद जी मुख्य गायिका थीं और लता जी दूसरी गायिका। लेकिन बहुत जल्द ही लता जी मुख्य गायिका के रूप में स्थापित हो गईं। फ़ीमेल डुएट्स में पहले पहले शमशाद बेगम नायिका की आवाज़ बनतीं और लता जी नायिका की सहेली या बहन की; पर ५० के दशक में लता जी बन गईं नायिका की आवाज़ और शमशाद जी की आवाज़ पर "दूसरी लड़की" नें होंठ हिलाये। आइए अब सुना जाये आज का गीत फ़िल्म 'मदर इण्डिया' से। शक़ील साहब के बोल और नौशाद साहब का संगीत।



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

पहेली में अमित जी के आलावा कोई उत्साह के साथ रूचि नहीं ले रहा. हमें लगता है कि आने वाले गीत का अंदाजा लगाने के बजाय अब से हम प्रस्तुत गीत पर चर्चा करें...आपका क्या विचार है

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

Sunday, September 4, 2011

रात रंगीली गाये रे....एक अलग भाव का गीत शमशाद का गाया



ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 736/2011/176

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के एक और नई सप्ताह में आप सभी का मैं, सुजॉय चटर्जी, स्वागत करता हूँ। इन दिनों इस स्तंभ में जारी है फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका शमशाद बेगम के गाये गीतों से सुसज्जित लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे'। पाँच गीत आपनें सुनें, पाँच गीत अभी और सुनने वाले हैं। पिछले हफ़्ते यह शृंखला आकर रुकी थी नय्यर साहब की धुन पर फ़िल्म 'सी.आइ.डी' के गीत पर। नय्यर साहब के साथ शमशाद जी की पारी इतनी सफल रही है कि केवल एक गीत सुनवाकर हम आगे नहीं बढ़ सकते। इसलिए आज के अंक में भी है धूम नय्यर-शमशाद के जोड़ी की। 'दास्तान-ए-नय्यर' सीरीज़ में जब नय्यर सहाब से शमशाद बेगम के बारे में ये पूछा गया था -

कमल शर्मा: शमशाद जी से आप किस तरह से मिले?

ओ.पी. नय्यर: शमशाद जी को क्योंकि मैं लाहौर से ही जानता हूँ, रेडियो से। वो मेरे से ४-५ साल बड़ी हैं, तो बच्चा था मैं उनके आगे, और मैं उनको बहुत पहले से, पेशावर में, पश्तो गाने गाया करती थीं। फिर रेडियो लाहौर में आ गईं। बड़ी ख़ुलूस, बहुत प्यार करने वाली ईमोशनल औरत है।

कमल शर्मा: क्या खनकती आवाज़ है!

ओ.पी. नय्यर: टेम्पल वॉयस साहब, उनका नाम ही टेम्पल वॉयस है।

यूनुस ख़ान: नय्यर साहब, आपके कई गानें शमशाद बेगम नें गाये हैं, और आपने कहा है कि शमशाद बेगम आपको ख़ास हिंदुस्तानी धरती से जुड़ा स्वर लगता है।

ओ.पी. नय्यर: टेम्पल वॉयस, उसकी आवाज़ का नाम है टेम्पल बेल; जब मंदिर में घंटियाँ बजती हैं, गिर्जा में घंटे बजते हैं, इस तरह की खनक है उनकी आवाज़ में, जो किसी फ़ीमेल आर्टिस्ट में नहीं है और न कभी होगी।

यूनुस ख़ान: और वो आपके कम्पोज़ किए हुए और शमशाद बेगम के गाये हुए जो जो आपके गीत हैं, उनके बारे में हमको बताइए कि शमशाद बेगम की क्या रेंज थी और...

ओ.पी. नय्यर: ख़ूब रेंज थी उनकी, कोई रेंज कम नहीं थी। ऑरिजिनल वॉयसेस जो हैं, वो शमशाद और गीता ही हैं। आशा की कई क़िस्म की आवाज़ें आपको आज भी मिलेंगी, लता जी की आवाज़ें आपको आज भी मिलेंगी, लेकिन गीता और शमशाद की आवाज़ कहीं नहीं मिलेगी। यह हक़ीक़त है। देखिये पहले तो मैं गीता जी, शमशाद जी, इनसे काफ़ी मैं गानें लेता रहा, और बाद में आशाबाई आ गईं हमारी ज़िंदगी में, तो वो हमसे भी मोहब्बत करने लगीं और हमारे संगीत से भी।

और इस तरह से दोस्तों, आशा भोसले के आ जाने के बाद गीता दत्त और शमशाद बेगम, दोनों के लिये नय्यर साहब नें अपने दरवाज़े बंद कर दिए। लेकिन तब तक ये दोनों गायिकायें उनके लिए इतने गानें गा चुकी थी कि जिनकी फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी है। उसी लम्बी फ़ेहरिस्त से आज प्रस्तुत है १९५६ की फ़िल्म 'नया अंदाज़' से "रात रंगीली गाये रे, मोसे रहा न जाये रे, मैं क्या करूँ"। मीना कुमारी पर फ़िल्माया हुआ गीत है। इस फ़िल्म का शमशाद जी और किशोर दा के युगल स्वरों में "मेरी नींदों में तुम" गीत आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर पहले सुन चुके हैं। जाँनिसार अख़्तर साहब का लिखा हुआ गीत है, और खनकती आवाज़ शमशाद बेगम की। मीना कुमारी, जो बाद में ट्रैजेडी क्वीन के रूप में जानी गईं, इस फ़िल्म में उनका किरदार एक सामान्य लड़की की थी। इस गीत के फ़िल्मांकन में मीना कुमारी अपने कमरे में, आंगन में गाती हुई दिखाई देती हैं। रात में नायिका अपने दिल का हाल बयाँ करती शीर्षक पर बहुत सारे गीत बने हैं समय समय पर, यह गीत भी उन्हीं में से एक है। यह बताते हुए कि किशोर कुमार और मीना कुमारे के अलावा 'नया अंदाज़' में जॉनी वाकर, प्राण, कुमकुम, जयंत और टुनटुन नें भी मुख्य भूमिकाएँ निभाई थी, आइए आपको सुनवाते हैं "रात रंगीली गाये रे"।



और अब एक विशेष सूचना:
२८ सितंबर स्वरसाम्राज्ञी लता मंगेशकर का जनमदिवस है। पिछले दो सालों की तरह इस साल भी हम उन पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक शृंखला समर्पित करने जा रहे हैं। और इस बार हमने सोचा है कि इसमें हम आप ही की पसंद का कोई लता नंबर प्ले करेंगे। तो फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द अपना फ़ेवरीट लता नंबर और लता जी के लिए उदगार और शुभकामनाएँ हमें oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। प्रथम १० ईमेल भेजने वालों की फ़रमाइश उस शृंखला में पूरी की जाएगी।

इन तीन सूत्रों से पहचानिये अगला गीत -
१. ये एक विदाई गीत है.
२. आवाज़ है शमशाद बेगम की.
३. मुखड़े में शब्द है - प्यारी"

अब बताएं -
इस गीत के गीतकार - ३ अंक
संगीतकार बताएं - २ अंक
फिल्म की नायिका कौन है - २ अंक

सभी जवाब आ जाने की स्तिथि में भी जो श्रोता प्रस्तुत गीत पर अपने इनपुट्स रखेंगें उन्हें १ अंक दिया जायेगा, ताकि आने वाली कड़ियों के लिए उनके पास मौके सुरक्षित रहें. आप चाहें तो प्रस्तुत गीत से जुड़ा अपना कोई संस्मरण भी पेश कर सकते हैं.

पिछली पहेली का परिणाम -

खोज व आलेख- सुजॉय चट्टर्जी



इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को

वे (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) असाधारण गीतकार तथा संगीतकार थे - माधवी बंद्योपाध्याय



सुर संगम - 33 -रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सार्द्धशती वर्ष-२०११ पर श्रद्धांजलि (पहला भाग)

बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से कृष्णमोहन मिश्र की रवीन्द्र साहित्य और उसके हिन्दी अनुवाद विषयक चर्चा
त कर देना शीश को प्रभु, चरण कमल रज के तल में।
मेरे अहं को सतत डुबोना, मेरे वचन अश्रु-जल में।


‘सुर संगम’ का आज का अंक हमने कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता के हिन्दी अनुवाद से किया है।‘गीतांजलि’ के इस पद का हिन्दी काव्यानुवाद विदुषी माधवी बंद्योपाध्याय ने किया है। १२ सितम्बर, १९३७ को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में एक प्रवासी बंगाली परिवार में माधवी जी का जन्म हुआ था। पारिवारिक संस्कार और स्वाध्याय से उन्होने बांग्ला भाषा और साहित्य का गहन अध्ययन किया। अँग्रेजी विषय में उन्होने स्नातक तक शिक्षा ग्रहण की। माधवी जी को बाल्यावस्था से कविता, कहानी, निबन्ध आदि लिखने में पर्याप्त रुचि थी। विवाह के उपरान्त पति श्री दिलीप कुमार बनर्जी के सहयोग और प्रोत्साहन से बांग्ला और हिन्दी की मौलिक तथा अनूदित कृतियाँ एक के बाद एक प्रकाशित होती रहीं। अब तक माधवी जी की लगभग डेढ़ दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हमारे आग्रह पर माधवी दीदी ने‘सुर संगम’के लिए रवीन्द्र-संगीत, साहित्य और उनके हिन्दी अनुवाद पर चर्चा करने की सहर्ष सहमति दी। हम उनके प्रति आभार प्रकट करते हुए इस बातचीत का सिलसिला आरम्भ करते हैं।

कृष्णमोहन- आदरणीया माधवी दीदी, नमस्कार! और‘सुर संगम’के मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है। यद्यपि यह स्तम्भ शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक संगीत पर केन्द्रित है किन्तु इस अंक में हम रवीन्द्रनाथ ठाकुर के १५० वें जयन्ती वर्ष के उपलक्ष्य में रवीन्द्र संगीत के साथ-साथ उनके समग्र साहित्य पर आपसे चर्चा करेंगे।

माधवी दीदी- नमस्कार! कृष्णमोहन जी आपको और ‘सुर संगम’के सभी पाठकों का आभार प्रकट करती हूँ कि आपने मुझे विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सार्द्धशती वर्ष में उनको श्रद्धांजलि अर्पण करने का अवसर दिया।

कृष्णमोहन- माधवी जी, आपने रवीन्द्र साहित्य का न केवल गहन अध्ययन किया है, बल्कि उनकी अनेक कृतियों का हिन्दी अनुवाद भी किया है। सर्वप्रथम हमें यह बताएँ कि विश्वकवि और उनका साहित्य आपकी दृष्टि में किस प्रकार उल्लेखनीय है?

माधवी दीदी- विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर आज हमारे बीच सशरीर उपस्थित नहीं हैं, किन्तु उनकी पवित्र आत्मा सदा हमारे बीच विद्यमान है। वह हमारी अन्तरात्मा के साथ इस प्रकार घुलमिल गए हैं कि अब उन्हें स्वयं से अलग करना सम्भव नहीं है। वायु-प्रकाश सदैव हमारे साथ लिप्त रहते हैं। उनके बिना हम एक पल नहीं जी सकते। हम उन्हें हर समय अनुभव नहीं करते है फिर भी ये दोनों तत्व अनजाने में ही हमारे साथ बने रहते हैं। कविगुरु भी इसी प्रकार अनजाने में सदा हमारे मन में विद्यमान रहते हैं। यद्यपि हम उन्हें हर समय स्मरण नहीं करते हैं पर, वह हमारे मन में इस प्रकार बसे हुए है कि हम उन्हें कभी भूलते भी नहीं हैं। रवीन्द्रनाथ को हम एक शब्द में महामानव कह सकते हैं। उनके गुणों की परिधि की विशालता उनके ६ विराट कर्मकाण्ड तथा उनकी विविधता के बारे में हम निर्वाक होकर केवल सोचते ही रहते है।

एक तरफ है उनकी साहित्यिक कृतियों के अन्तर्गत- कथा साहित्य में उपन्यास, लघुकथाएँ, प्रबन्ध आदि अत्यन्त रोचक है। नाट्य साहित्य में उनके नाटक, नृत्य नाटिकाएँ वास्तव में मनोगुग्धकारी है। कविताओं की जितनी प्रशंसा करें, कम हैं। ‘गीतांजलि’ में उन्होंने नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था, जो हर भारतवासी के लिये गर्व की बात है। रवीन्द्रनाथ का प्रबन्ध अपनी एक अलग गभ्भीरता रखता है। यदि उनके संगीत के बारे में कहा जाय तो वह रस और भाव से भरा हुआ है। वे असाधारण गीतकार तथा संगीतकार थे। स्वयं गीत लिखते थे और स्वयं ही उसकी स्वरलिपि बनाते थे। रवीन्द्र संगीत का एक अलग ही वैशिष्ट्य होता है। गाने से पूरे परिवेश में वह सुर छा जाता है। गीत सुनकर ही पता चल जाता है कि वह रवीन्द्र संगीत है।


कृष्णमोहन- इससे पहले कि हम आपसे रवीन्द्र संगीत की विशेषताओं के बारे में कुछ और प्रश्न करें, हम अपने पाठकों/श्रोताओं को रवीन्द्रनाथ ठाकुर की ही आवाज़ में कुछ काव्य-पंक्तियाँ सुनवाना चाहते हैं।

माधवी दीदी- अवश्य सुनवाइए कृष्णमोहन जी, स्वयं कविगुरु की आवाज़ में उन्हीं की कविता को सुनना मेरे लिए भी दुर्लभ क्षण होगा।

कविता का शीर्षक ‘प्रोश्नों’ : स्वर – रवीन्द्रनाथ ठाकुर


माधवी दीदी- इस आवाज़ को सुनवा कर आपने मेरे कानों को तृप्त कर दिया। अब मैं आपके प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करती हूँ। रवीन्द्र संगीत में ऐसी विशेषताएँ होती हैं कि इसे भारतीय संगीत के क्षेत्र में एक अलग विधा के रूप में मान्यता भी प्राप्त हो चुकी है। रवीन्द्र संगीत, स्वर तथा भाव प्रधान होता है और सादगी में सुन्दरता इसकी विशेषता है। रवीन्द्रनाथ अपने संगीत को तान-तरानों से नहीं सजाते थे। वाद्य संगति में भी सादगी होती है। मात्र स्वर और ताल के लिए एक-एक वाद्य संगति के लिए पर्याप्त होता है। खुले हुए कण्ठ में रवीन्द्र संगीत गाना चाहिए। काव्य के भावों के अनुकूल रागों का चयन और स्वर के साथ-साथ अपनी आत्मा को संतुष्टि देना ही इस संगीत का वैशिष्ट्य है। गाते समय केवल कण्ठ का ही नहीं बल्कि आत्मा की आवाज भी सुनाई देती है। रवीन्द्र संगीत कई पर्वों में विभाजित है। प्रकृति पर्व, प्रेम पर्व, पूजा पर्व, देशात्मबोधक संगीत, भानु सिंह की पदावलि इत्यादि उनके संगीत की विविधता है। एक और विशेषता यह है कि उनका प्रेमपर्व और पूजापर्व मानों एक ही साथ घुल-मिल गया है। यदि वे गीत में प्रेमी को सम्बोधित करते है तो ऐसा प्रतीत होता है कि वह ईश्वर के उद्देश्य से बोल रहे है। ईश्वर ही उनका प्रेमी है।

इसके साथ ही कविगुरु प्रकृति-प्रेमी थे। प्रत्येक ऋतु के अनुकूल उन्होंने गीत रचना की है। वर्षा ऋतु पर उनके सबसे अधिक गीत हैं। उनका मानना था कि वर्षा ऋतु का प्रभाव सीधे मनुष्य के मन पर पड़ता है। बरसात की ध्वनि में जो विविधता होती है वह व्यक्ति की मानसिकता पर अलग-अलग प्रभाव का विस्तार करती है। कभी प्रेम तो कभी विरह जगाता है, कभी मन उदास होकर दूर आसमान में उड़ने लगता है, कभी-कभी वर्षा की ध्वनि मनुष्य को बावरा सा बना देता है, उसे घर में, या फिर किसी काम में मन नहीं लगता है। उन्होंने वर्षा ऋतु पर बहुत सारे गीत लिखे और भाष्य के साथ ‘वर्षामंगल’ नामक धारा-भाष्य लिखा है। ‘ऋतुरंग’ उनका दूसरा धारा-भाष्य है।

कृष्णमोहन- माधवी दी’ आपने अभी ‘वर्षामंगल’ की चर्चा की है। यहाँ थोड़ा विराम लेकर हम रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कालजयी रचना ‘वर्षामंगल’ का एक ऋतु आधारित गीत अपने पाठकों/श्रोताओं को सुनवाते हैं।

रवीन्द्र संगीत : "एसो श्यामलो सुन्दरो..." (वर्षामंगल) : स्वर – आशा भोसले


दोस्तों, इस गीत के साथ आज के अंक को यहीं विराम देता हूँ। ‘सुर संगम’ के अगले अंक में भी हम रवीन्द्र साहित्य की विदुषी माधवी वंद्योपाध्याय से की गई यह चर्चा जारी रखेंगे। आप सभी संगीत प्रेमियों की हमें अगले रविवार को प्रतीक्षा रहेगी।

संलग्न चित्र परिचय :- भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्याख्यान/प्रदर्शन करती हुई श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय.

प्रस्तुति - सुमित चक्रवर्ती

आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.

संग्रहालय

25 नई सुरांगिनियाँ

ओल्ड इज़ गोल्ड शृंखला

महफ़िल-ए-ग़ज़लः नई शृंखला की शुरूआत

भेंट-मुलाक़ात-Interviews

संडे स्पेशल

ताजा कहानी-पॉडकास्ट

ताज़ा पॉडकास्ट कवि सम्मेलन